प्रभु का संध्या भोज इसे कितनी बार मनाया जाना चाहिए?
क्रिस्मस, ईस्टर, “सन्तों के” दिन। मसीहीजगत के गिरजों द्वारा अनेक छुट्टियाँ और पर्व मनाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों को कितने उत्सव मनाने की आज्ञा दी? उत्तर है, सिर्फ़ एक! मसीहियत के संस्थापक द्वारा अन्य कोई पर्व प्राधिकृत नहीं किया गया था।
स्पष्ट है कि, यदि यीशु ने सिर्फ़ एक उत्सव संस्थापित किया, तो वह अति महत्त्वपूर्ण है। मसीहियों को उसे ठीक वैसे ही मनाना चाहिए जैसे यीशु ने आज्ञा दी थी। यह अद्वितीय अनुपालन क्या था?
वह एक उत्सव
यह अनुपालन यीशु द्वारा उसकी मृत्यु के दिन शुरू किया गया। उसने अपने प्रेरितों के साथ यहूदी फसह का पर्व मनाया था। फिर उसने फसह की कुछ अखमीरी रोटी उन्हें यह कहते हुए दी: “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये दी जाती है।” उसके बाद, यीशु ने दाखमधु का कटोरा यह कहते हुए दिया: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” उसने यह भी कहा: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका २२:१९, २०; १ कुरिन्थियों ११:२४-२६) यह अनुपालन प्रभु का संध्या भोज, या स्मारक कहलाता है। यह एकमात्र उत्सव है जिसको मनाने की आज्ञा यीशु ने अपने अनुयायियों को दी।
अनेक गिरजे यह दावा करते हैं कि वे इस अनुपालन को भी अपने अन्य सभी पर्वों के साथ-साथ मनाते हैं, लेकिन अधिकांश इसे भिन्न रूप से मनाते हैं, वैसे नहीं जैसे यीशु ने आज्ञा दी थी। शायद उत्सव मनाने की बारंबारता सबसे उल्लेखनीय भिन्नता है। कुछ गिरजे इसे मासिक, साप्ताहिक, यहाँ तक कि दैनिक रूप से भी मनाते हैं। क्या यीशु का यही अभिप्राय था जब उसने अपने अनुयायियों से कहा: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो”? द न्यू इंग्लिश बाइबल कहती है: “इसे मेरे स्मारक के रूप में किया करो।” (१ कुरिन्थियों ११:२४, २५) एक स्मारक या जयंती कितनी बार मनायी जाती है? सामान्य रूप से, साल में सिर्फ़ एक बार।
यह भी याद रखिए कि यीशु ने इस अनुपालन को शुरू किया और फिर यहूदी कलेण्डर की तारीख़, निसान १४ को मरा।a वह फसह का दिन था, वह त्योहार जो यहूदियों को उस बड़े छुटकारे की याद दिलाता था जो उन्होंने मिस्र में सा.यु.पू. १६वीं शताब्दी में अनुभव किया था। उस समय एक मेम्ने के बलिदान के परिणामस्वरूप यहूदियों के पहलौठों का उद्धार हुआ, जबकि यहोवा के स्वर्गदूत ने मिस्र के सभी पहलौठों का घात किया।—निर्गमन १२:२१, २४-२७.
यह हमारी समझ में कैसे मदद करता है? मसीही प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।” (१ कुरिन्थियों ५:७) यीशु की मृत्यु फसह का बड़ा बलिदान था, जिसने मानवजाति को कहीं बड़े उद्धार का अवसर दिया। इसलिए, मसीहियों के लिए मसीह की मृत्यु के स्मारक ने यहूदी फसह का स्थान ले लिया है।—यूहन्ना ३:१६.
फसह एक वार्षिक उत्सव था। तो फिर, तर्कसंगत रूप से, स्मारक भी वैसा ही है। फसह—जिस दिन यीशु मरा—हमेशा यहूदी महीने, निसान के १४वें दिन आता था। अतः, मसीह की मृत्यु का स्मारक साल में एक बार कलेण्डर की उस तारीख़ को मनाया जाना चाहिए जो निसान १४ से मेल खाती है। वर्ष १९९४ में वह दिन सूर्यास्त के बाद, शनिवार, मार्च २६ है। लेकिन ऐसा क्यों है कि मसीहीजगत के गिरजों ने इसे ख़ास अनुपालन का दिन नहीं बनाया है? इतिहास की एक हल्की-सी झलक इस प्रश्न का उत्तर देगी।
प्रेरितिक प्रथा ख़तरे में
इसमें कोई संदेह नहीं कि सा.यु. प्रथम शताब्दी में, जो यीशु के प्रेरितों द्वारा मार्गदर्शित थे वे प्रभु के संध्या भोज को ठीक उसी तरह मनाते थे जैसी उसने आज्ञा दी थी। लेकिन, दूसरी शताब्दी के दौरान, कुछ लोगों ने उसे मनाने के समय को बदलना शुरू कर दिया। वे स्मारक को सप्ताह के पहले दिन (जो अब रविवार कहलाता है) आयोजित करते थे, उस दिन नहीं जो निसान १४ से मेल खाता था। ऐसा क्यों किया गया?
यहूदियों के लिए, एक दिन शाम को लगभग छः बजे शुरू होता था और दूसरे दिन उसी समय तक चलता था। यीशु सा.यु. ३३ में निसान १४ को मरा, जो गुरुवार शाम से शुक्रवार शाम तक चला। उसका पुनरुत्थान तीसरे दिन हुआ, रविवार की भोर में। कुछ लोग चाहते थे कि यीशु की मृत्यु का स्मरणोत्सव सप्ताह के एक नियत दिन पर हर साल मनाया जाना चाहिए, न कि उस दिन पर जब निसान १४ पड़ता था। वे यीशु के पुनरुत्थान के दिन को उसकी मृत्यु के दिन से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण समझते थे। अतः, उन्होंने रविवार चुन लिया।
यीशु ने आज्ञा दी कि उसकी मृत्यु का स्मारक मनाया जाना चाहिए, न कि उसके पुनरुत्थान का। और क्योंकि अभी प्रयुक्त ग्रेगोरियन कलेण्डर के अनुसार यहूदी फसह हर साल एक भिन्न दिन पर पड़ता है, यह स्वाभाविक है कि यही स्मारक के लिए भी सच होगा। इसलिए अनेक लोग आरंभिक प्रबन्ध पर चलते रहे और प्रभु के संध्या भोज को हर साल निसान १४ को मनाया। कुछ समय बाद वे क्वॉर्टोडेसिमंस, अर्थात् “चौदहवें” कहलाने लगे।
कुछ विद्वानों ने स्वीकार किया कि ये “चौदहवें” आरंभिक प्रेरितिक नमूने पर चल रहे थे। एक इतिहासकार ने कहा: “पासका [प्रभु का संध्या भोज] को मनाने के दिन के सम्बन्ध में एशिया के क्वॉर्टोडेसिमंस गिरजों की प्रथा यरूशलेम गिरजे की प्रथा के समान थी। दूसरी शताब्दी में ये गिरजे निसान १४ को अपने पासका पर मसीह की मृत्यु द्वारा संभव हुए छुटकारे का स्मरणोत्सव मनाते थे।”—स्टडिआ पैटरिस्टिका, खण्ड ५, १९६२, पृष्ठ ८.
एक विवाद बढ़ता है
जबकि एशिया माइनर में अनेक लोग प्रेरितिक रीति पर चलते थे, रोम में अनुपालन के लिए रविवार अलग रखा गया। लगभग सा.यु. १५५ में, स्मुरना का पॉलीकार्प, एशियाई कलीसियाओं का एक प्रतिनिधि, इसकी और अन्य समस्याओं की चर्चा करने रोम गया। दुःख की बात है कि इस मामले पर कोई सहमति नहीं हो पायी।
लियों के आइरीनियस ने एक पत्र में लिखा: “न तो [रोम का] अनासीटस पॉलीकार्प को राज़ी कर सका कि वह उस पर्व को न मनाए जो हमेशा से उसने हमारे प्रभु के शिष्य यूहन्ना के साथ और अन्य प्रेरितों के साथ मनाया था जिनके साथ वह संगति रखता था; और न ही पॉलीकार्प उस अनुपालन के लिए अनासीटस को राज़ी कर पाया, क्योंकि अनासीटस ने कहा कि उसे उन प्राचीनों की प्रथा पर चलना है जो उससे पहले थे।” (यूसीबियस, पुस्तक ५, अध्याय २४) नोट कीजिए कि रिपोर्ट के अनुसार पॉलीकार्प ने जो स्थिति अपनायी वह प्रेरितों के प्रामाणिक सूत्र पर आधारित थी, जबकि अनासीटस ने रोम के पिछले प्राचीनों की प्रथा का समर्थन किया।
यह विवाद सा.यु. दूसरी शताब्दी के अन्त में तीव्र हो गया। लगभग सा.यु. १९० में, एक विक्टर नामक व्यक्ति रोम का बिशप चुना गया। उसका विश्वास था कि प्रभु का संध्या भोज रविवार को मनाया जाना चाहिए, और उसने अधिक से अधिक संभव अगुओं का समर्थन चाहा। विक्टर ने एशियाई कलीसियाओं पर दबाव डाला कि रविवार प्रबन्ध को अपनाएँ।
एशिया माइनर के लोगों की ओर से उत्तर देते हुए इफिसुस के पलिकरेटीज़ ने इस दबाव तले झुकने से इन्कार किया। उसने कहा: “हम उस दिन को उसमें बिना हेर-फेर किए मनाते हैं, न कुछ जोड़ते हैं, न घटाते हैं।” फिर उसने अनेक प्रामाणिक सूत्रों की सूची दी, जिसमें प्रेरित यूहन्ना सम्मिलित था। उसने कहा कि, “ये सभी जन, सुसमाचार वृत्तांत के अनुसार, पासका को चौदहवें दिन मनाते थे, किसी भी तरह उससे विचलित नहीं होते थे।” पलिकरेटीज़ ने आगे कहा: “भाइयों, जहाँ तक मेरा सवाल है, . . . मैं धमकियों से नहीं डरता। क्योंकि मुझसे उत्तम लोगों ने कहा है, हमें मनुष्यों के बजाय परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना है।”—यूसीबियस, पुस्तक ५, अध्याय २४.
विक्टर इस उत्तर से अप्रसन्न था। एक ऐतिहासिक कार्य कहता है कि उसने “सभी एशियाई गिरजों को बहिष्कृत कर दिया, और उन सभी गिरजों को जो उस के मत से सहमत थे, अपने परिपत्र भेजे और कहा कि वे बहिष्कृत गिरजों के साथ कोई सम्बन्ध न रखें।” लेकिन, “उसका यह अविवेकी और दुःसाहसी कार्य स्वयं उसी के दल के सभी बुद्धिमान और निष्कपट लोगों को पसन्द नहीं आया, उनमें से अनेकों ने उसे यह सलाह देते हुए कड़ा उत्तर दिया कि . . . प्रेम, एकता, और शान्ति बनाए रखे।”—बिन्घम द्वारा मसीही गिरजे के पुरावशेष, (अंग्रेज़ी) पुस्तक २०, अध्याय ५.
धर्मत्याग का संस्थापन
ऐसे विरोधों के बावजूद, एशिया माइनर के मसीही इस वादविषय पर अधिकाधिक पृथक होते गए कि प्रभु का संध्या भोज कब मनाया जाए। दूसरे स्थानों पर धीरे-धीरे परिवर्तन किए जा रहे थे। कुछ लोग निसान १४ से लेकर आनेवाले रविवार तक की पूरी अवधि को मनाते थे। अन्य लोग उस स्मरणोत्सव को ज़्यादा जल्दी-जल्दी मनाते थे—रविवार को साप्ताहिक रूप से।
सामान्य युग ३१४ में ऑरल (फ्राँस) की काउन्सिल ने रोमी व्यवस्था को मजबूर करने तथा किसी भी विकल्प को दबाने की कोशिश की। बाक़ी के क्वॉर्टोडेसिमंस ने साथ देने से इन्कार कर दिया। इसे और अन्य मामलों को सुलझाने के लिए जो उसके साम्राज्य में तथाकथित मसीहियों को विभाजित कर रहे थे, सा.यु. ३२५ में अन्यजातीय सम्राट कॉन्सटेन्टीन ने एक अखिलचर्ची धर्मसभा, नीसिया की काउन्सिल आयोजित की। उसने एक आदेश जारी किया जिसने एशिया माइनर में सभी लोगों को रोमी प्रथा के अनुसार चलने का निर्देश दिया।
यहूदी कलेण्डर की तारीख़ के अनुसार मसीह की मृत्यु के स्मारक को न मनाने के समर्थन में दिए एक मुख्य तर्क को नोट करना रुचिकर है। के. जे. हेफल द्वारा मसीही काउन्सिलों का एक इतिहास (अंग्रेज़ी) कहती है: “सबसे पवित्र त्योहार के लिए यहूदियों की प्रथा पर चलना ख़ासकर इसलिए अयोग्य घोषित किया गया क्योंकि यहूदी सबसे भयंकर अपराध में शर्मनाक रूप से अन्तर्ग्रस्त थे, और उनके मन अन्धकार में थे।” (खण्ड १, पृष्ठ ३२२) स्टीडिआ पेटरिस्टिका, खण्ड ४, १९६१, पृष्ठ ४१२ में उल्लिखित, जे. जस्टर कहता है, ऐसी स्थिति में होना “यहूदी सभाभवन की ‘अपमानजनक अधीनता’” में होना समझा गया “जिसने गिरजे को तंग किया था।”
सामी-विरोध! जो लोग यीशु की मृत्यु का स्मारक उसकी मृत्यु के दिन ही मनाते थे उन्हें यहूदी बनानेवालों के रूप में देखा जाता था। इस बात को भूला जा चुका था कि यीशु स्वयं यहूदी था और कि उसने मानवजाति की ओर से अपना जीवन बलिदान करने के द्वारा उस दिन को अर्थ दिया। उस समय से, क्वॉर्टोडेसिमंस की विधर्मियों और सांप्रदायिकों के रूप में निन्दा की जाती और सताया जाता था। सामान्य युग ३४१ में, अन्ताकिया की काउन्सिल ने आदेश दिया कि उन्हें बहिष्कृत किया जाना था। फिर भी, सा.यु. ४०० में अनेक क्वॉर्टोडेसिमंस थे, और उसके बहुत समय बाद तक वे छोटी संख्या में दृढ़ रहे।
उन दिनों से अब तक, मसीहीजगत ने यीशु का आरंभिक प्रबन्ध दुबारा नहीं अपनाया है। प्रोफेसर विलियम ब्राइट ने स्वीकार किया: “जब एक ख़ास दिन, गुड फ्राइडे, दुःखभोग के स्मरणोत्सव के लिए अर्पित किया जाने लगा, तो इसके साथ ‘पासका के’ उन सम्बन्धों को रोकने के लिए बहुत देर हो चुकी थी जिन्हें संत पौलुस ने बलिदान रूपी मृत्यु के साथ जोड़ा था: ‘पासका के’ सम्बन्धों को स्वयं पुनरुत्थान-त्योहार के साथ आसानी ने जोड़ा जाता था, और यूनानी तथा लातीनी मसीहीजगत की आनुष्ठानिक भाषा में उलझे विचार स्थापित हो गए थे।”—पुरोहितों का युग, (अंग्रेज़ी) खण्ड १, पृष्ठ १०२.
आज के बारे में क्या?
आप पूछ सकते हैं, ‘इतने सालों के बाद, क्या वास्तव में कुछ फ़रक पड़ता है कि स्मारक कब मनाया जाता है?’ जी हाँ, फ़रक पड़ता है। शक्ति के पीछे भाग रहे दृढ़निश्चयी लोगों द्वारा परिवर्तन किए गए थे। लोग यीशु मसीह की आज्ञा मानने के बजाय स्वयं अपने विचारों पर चले। स्पष्ट रूप से प्रेरित पौलुस की चेतावनी पूरी हुई: “मैं जानता हूं, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम [मसीहियों] में आएंगे, जो झुंड को न छोड़ेंगे। तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे।”—प्रेरितों २०:२९, ३०.
आज्ञाकारिता वादविषय है। यीशु ने मसीहियों के मनाने के लिए सिर्फ़ एक उत्सव स्थापित किया था। बाइबल स्पष्ट रूप से समझाती है कि उसे कब और कैसे मनाया जाना चाहिए। तो फिर, उसे बदलने का अधिकार किसके पास है? आरंभिक क्वॉर्टोडेसिमंस ने इस मामले में समझौता करने के बजाय सताहट और बहिष्कार सहा।
आपको शायद यह जानने में दिलचस्पी होगी कि अभी-भी पृथ्वी पर ऐसे मसीही हैं जो यीशु की इच्छाओं का आदर करते हैं और उसकी मृत्यु का स्मरणोत्सव उसी के द्वारा स्थापित तारीख़ को मनाते हैं। इस साल, यहोवा के गवाह पूरी पृथ्वी पर अपने राज्यगृहों में शनिवार, मार्च २६ को शाम ६:०० बजे के बाद मिलेंगे—जब निसान का १४वाँ दिन शुरू होता है। तब वे ठीक वही करेंगे जो यीशु ने इस अति अर्थपूर्ण समय पर करने को कहा था। क्यों न उनके साथ प्रभु का संध्या भोज मनाएँ? उपस्थित होने के द्वारा, आप भी यीशु मसीह की इच्छाओं के लिए अपना आदर दिखा सकते हैं।
[फुटनोट]
a निसान, यहूदी साल का पहला महीना, नए चाँद के पहली बार दिखने से शुरू होता था। अतः निसान १४ हमेशा पूर्णिमा के समय आता था।
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“मूल्यवान छुड़ौती”
यीशु मसीह का छुड़ौती बलिदान एक धर्मसिद्धान्त से कहीं बढ़कर है। यीशु ने अपने बारे में कहा: “मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।” (मरकुस १०:४५) उसने यह भी समझाया: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६) मृत लोगों के लिए, छुड़ौती पुनरुत्थान का मार्ग खोलती है और अनन्तकाल के जीवन की प्रत्याशा देती है।—यूहन्ना ५:२८, २९.
प्रभु के संध्या भोज के अनुपालनों पर यीशु मसीह की अति महत्त्वपूर्ण मृत्यु का स्मारक मनाया जाता है। उसका बलिदान बहुत कुछ निष्पन्न करता है! एक स्त्री ने, जिसे धर्मपरायण माता-पिता द्वारा प्रशिक्षण मिला और जो दशकों से परमेश्वर के सत्य में चल रही है, अपना आभार इन शब्दों में व्यक्त किया:
“हम स्मारक की प्रतीक्षा करते हैं। यह हर साल ज़्यादा ख़ास बन जाता है। मुझे याद है कि मैं २० साल पहले क़ब्रिस्तान में खड़ी अपने प्यारे पापा की लाश देख रही थी और तब मुझे छुड़ौती के लिए सच्चा हार्दिक मूल्यांकन हुआ। उससे पहले यह सिर्फ़ ऊपरी ज्ञान था। ओह, मुझे सारे शास्त्रवचन मालूम थे और मैं उन्हें समझा सकती थी! लेकिन जब मैं ने मृत्यु की वास्तविकता महसूस की केवल तब ही मेरा हृदय आनन्द से उछला कि उस मूल्यवान छुड़ौती के माध्यम से हमारे लिए क्या निष्पन्न किया जाएगा।”