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  • यहोवा उद्देश्‍य का परमेश्‍वर

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  • यहोवा उद्देश्‍य का परमेश्‍वर
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
w94 3/1 पेज 23-27

यहोवा उद्देश्‍य का परमेश्‍वर

“निःसन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैं ने युक्‍ति की है, वैसी ही पूरी होगी।”—यशायाह १४:२४.

१, २. अनेक लोग जीवन के उद्देश्‍य के बारे में क्या कहते हैं?

हर जगह लोग पूछते हैं: “जीवन का उद्देश्‍य क्या है?” एक पश्‍चिमी राजनीतिक नेता ने कहा: “पहले से कहीं ज़्यादा लोग आज पूछ रहे हैं, ‘हम कौन हैं? हमारा उद्देश्‍य क्या है?’” जब एक अख़बार ने युवाओं से इस प्रश्‍न पर मतदान लिया कि जीवन का उद्देश्‍य क्या है, तो ठेठ प्रतिक्रियाएँ थीं: “जो आप का दिल चाहे वही करना।” “हर पल का पूरा मज़ा लेना।” “ख़ुशी से जीना और मनमानी करना।” “बच्चे पैदा करना, ख़ुश रहना और फिर मर जाना।” अधिकांश लोगों ने महसूस किया कि यही जीवन सब कुछ था। किसी ने भी पृथ्वी पर जीवन के दीर्घकालिक उद्देश्‍य के बारे में बात नहीं की।

२ एक कन्फ्यूशियन विद्वान ने कहा: “जीवन का मूल अर्थ हमारे सामान्य, मानव जीवन में पाया जाता है।” इस दृष्टिकोण के अनुसार, लोग पैदा होते, ७० या ८० साल तक संघर्ष करते, फिर मर कर सदा के लिए असत्‌ होते जाएँगे। एक विकासवादी वैज्ञानिक ने कहा: “हम शायद एक ‘उच्चतर’ उत्तर के लिए तरसें—लेकिन ऐसा उत्तर है नहीं।” इन विकासवादियों के लिए, जीवन उत्तरजीविता के लिए एक संघर्ष है, और मृत्यु इन सब का अन्त कर देती है। ऐसे तत्त्वज्ञान जीवन का एक आशाहीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

३, ४. जीवन के प्रति अनेक लोगों के दृष्टिकोण को संसार की परिस्थितियाँ किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

३ जब लोग देखते हैं कि मानव अस्तित्व इतने अधिक दुःखों से भरा हुआ है तो अनेक लोग इस बात पर संदेह करते हैं कि जीवन का एक उद्देश्‍य है। हमारे समय में, जब माना जाता है कि मनुष्य औद्योगिक और वैज्ञानिक उपलब्धियों में एक शिखर तक पहुँच गया है, संसार भर में लगभग एक अरब लोग गंभीर रूप से बीमार या कुपोषित हैं। ऐसे कारणों से हर साल लाखों बच्चे मरते हैं। साथ ही, इस २०वीं शताब्दी में युद्धों से हुई मृत्यु कुल मिलाकर पिछली चार शताब्दियों में युद्धों से हुई मृत्यु से चारगुना है। अपराध, हिंसा, नशीले पदार्थों का दुष्प्रयोग, परिवार विभाजन, एडस्‌ और अन्य लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियाँ—नकारात्मक तत्त्वों की सूची बढ़ती जाती है। विश्‍व नेताओं के पास इन समस्याओं के समाधान नहीं हैं।

४ ऐसी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, एक स्त्री ने वही व्यक्‍त किया जो अनेकों का विश्‍वास है: “जीवन का कोई उद्देश्‍य नहीं है। यदि ये सब बुरी बातें हो रही हैं, तो जीवन का कोई अर्थ ही नहीं।” और एक वृद्ध पुरुष ने कहा: “मैं अपने अधिकांश जीवन यह पूछता आया हूँ कि मैं यहाँ क्यों हूँ। यदि एक उद्देश्‍य है भी, तो अब मुझे कोई परवाह नहीं।” इसलिए क्योंकि बहुसंख्य लोग यह नहीं जानते कि परमेश्‍वर दुःखों को अनुमति क्यों देता है, संसार की दुःखद परिस्थितियों के कारण उनके पास भविष्य के लिए कोई असली आशा नहीं है।

५. इस संसार के धर्म जीवन के उद्देश्‍य के बारे में उलझन को और अधिक क्यों बढ़ाते हैं?

५ धार्मिक नेता भी जीवन के उद्देश्‍य के बारे में विभाजित, और अनिश्‍चित हैं। लन्डन में सेन्ट पॉल्स्‌ कथीड्रल के एक भूतपूर्व डीन ने कहा: “जीवन भर मैं ने जीने का उद्देश्‍य ढूँढने का संघर्ष किया है। . . . मैं हार गया।” यह सच है कि अनेक पादरी सिखाते हैं कि मृत्यु होने पर अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं और बुरे लोग हमेशा के लिए नरक की अग्नि में जाते हैं। लेकिन यह दृष्टिकोण फिर भी मानवजाति को पृथ्वी पर उसके उत्पीड़क मार्ग में चलते रहने के लिए छोड़ देता है। और यदि परमेश्‍वर का यह उद्देश्‍य था कि लोग स्वर्ग में रहें, तो उसने पहले ही उन्हें स्वर्गीय प्राणी क्यों नहीं बनाया, जैसा कि उसने स्वर्गदूतों को बनाया, और इस प्रकार मनुष्यों को इतने सारे दुःख नहीं सहने पड़ते? अतः पृथ्वी पर जीवन के उद्देश्‍य के बारे में उलझन या इस बात पर विश्‍वास करने से इन्कार करना कि जीवन का कोई उद्देश्‍य है सामान्य है।

उद्देश्‍य का परमेश्‍वर

६, ७. बाइबल हमें विश्‍व सर्वसत्ताधारी के बारे में क्या बताती है?

६ फिर भी, इतिहास में सबसे व्यापक रूप से वितरित पुस्तक, पवित्र बाइबल, हमें बताती है कि यहोवा, विश्‍व का सर्वसत्ताधारी, उद्देश्‍य का परमेश्‍वर है। यह दिखाती है कि उसके पास पृथ्वी पर मानवजाति के लिए एक दीर्घकालिक, वस्तुतः, एक अनन्तकालीन उद्देश्‍य है। और जब यहोवा कुछ ठानता है, तो वह अवश्‍य ही पूरा होगा। यहोवा कहता है कि जिस प्रकार वर्षा उपज उपजाती है, “उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।” (यशायाह ५५:१०, ११) जो कुछ यहोवा कहता है कि वह पूरा करेगा, ‘वह पूरा होगा।’—यशायाह १४:२४.

७ हम मनुष्य पूरा विश्‍वास रख सकते हैं कि सर्वशक्‍तिमान अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करेगा, क्योंकि परमेश्‍वर “झूठ बोल नहीं सकता।” (तीतुस १:२; इब्रानियों ६:१८) जब वह हम से कहता है कि वह कुछ करेगा, उसका वचन गारंटी है कि वह बात पूरी होगी। वह पूरी हो जाने के बराबर है। वह घोषित करता है: “ईश्‍वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्‍वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है। मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूं, मेरी युक्‍ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूंगा। . . . मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्धा है और उसे सुफल भी करूंगा।”—यशायाह ४६:९-११.

८. क्या वे जो निष्कपटता से परमेश्‍वर को जानना चाहते हैं उसे ढूँढ सकते हैं?

८ इसके अतिरिक्‍त, यहोवा “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (२ पतरस ३:९) इस कारण, वह नहीं चाहता कि कोई उससे अनजान रहे। अजर्याह नामक भविष्यवक्‍ता ने कहा: “यदि तुम [परमेश्‍वर की] खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा।” (२ इतिहास १५:१, २) इसलिए, जो निष्कपटता से परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍यों को जानना चाहते हैं वे निश्‍चय ही ऐसा कर सकते हैं यदि वे उसे खोजने का प्रयास करें।

९, १०. (क) जो परमेश्‍वर को जानना चाहते हैं उनके लिए क्या प्रदान किया गया है? (ख) परमेश्‍वर के वचन की खोज हमें क्या करने में समर्थ करती है?

९ कहाँ खोजें? उनके लिए जो सचमुच परमेश्‍वर की खोज कर रहे हैं, उसने अपना वचन, बाइबल को प्रदान किया है। उसकी पवित्र आत्मा के द्वारा, वही सक्रिय शक्‍ति जिसका प्रयोग उसने विश्‍व की सृष्टि करने के लिए किया था, परमेश्‍वर ने वफ़ादार मनुष्यों को वह लिखने के लिए निर्देशित किया जो हमें उसके उद्देश्‍यों के बारे में जानना ज़रूरी है। उदाहरण के लिए, बाइबल भविष्यवाणी के सम्बन्ध में, प्रेरित पतरस ने कहा: “कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।” (२ पतरस १:२१) उसी प्रकार, प्रेरित पौलुस ने घोषित किया: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्‍वर का जन सिद्ध [पूर्णतया सक्षम, NW] बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर [संपूर्णतया सज्जित, NW] हो जाए।”—२ तीमुथियुस ३:१६, १७; १ थिस्सलुनीकियों २:१३.

१० नोट कीजिए कि परमेश्‍वर का वचन हमें अंशतः या अपूर्ण रूप से नहीं, बल्कि “पूर्णतया सक्षम,” “संपूर्णतया सज्जित” होने में समर्थ करता है। यह हमें इस बारे में निश्‍चित होने में समर्थ करता है कि परमेश्‍वर कौन है, उसके उद्देश्‍य क्या हैं, और वह अपने सेवकों से क्या माँग करता है। इसकी अपेक्षा एक ऐसी पुस्तक से की जाती है जिसका रचयिता परमेश्‍वर है। और यह एकमात्र स्रोत है जिसमें हम परमेश्‍वर का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए खोज कर सकते हैं। (नीतिवचन २:१-५; यूहन्‍ना १७:३) ऐसा करने से, हम ‘बालक नहीं रहेंगे, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्‍तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हैं।’ (इफिसियों ४:१३, १४) भजनहार ने उचित दृष्टिकोण व्यक्‍त किया: “तेरा [परमेश्‍वर का] वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।”—भजन ११९:१०५.

क्रमिक रूप से प्रकट

११. यहोवा ने अपने उद्देश्‍य मानवजाति को कैसे प्रकट किए हैं?

११ मानव परिवार की शुरूआत में ही, यहोवा ने इस पृथ्वी और इस पृथ्वी पर मनुष्यों के प्रति अपने उद्देश्‍य प्रकट किए। (उत्पत्ति १:२६-३०) लेकिन जब हमारे प्रथम माता-पिता ने परमेश्‍वर की सर्वसत्ता को अस्वीकार किया, मनुष्यजाति आध्यात्मिक अन्धकार और मृत्यु में गिर गई। (रोमियों ५:१२) फिर भी, यहोवा जानता था कि कुछ लोग होंगे जो उसकी सेवा करना चाहेंगे। इसलिए, शताब्दियों के दौरान, उसने अपने वफ़ादार सेवकों को अपने उद्देश्‍य क्रमिक रूप से प्रकट किए हैं। जिनके साथ उसने संचार किया उनमें से कुछ थे हनोक (उत्पत्ति ५:२४; यहूदा १४, १५), नूह (उत्पत्ति ६:९, १३), इब्राहीम (उत्पत्ति १२:१-३), और मूसा (निर्गमन ३१:१८; ३४:२७, २८)। परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता आमोस ने लिखा: “प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्‍ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।”—आमोस ३:७; दानिय्येल २:२७, २८.

१२. यीशु ने परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों पर ज़्यादा प्रकाश कैसे डाला?

१२ अदन में विद्रोह के कुछ ४,००० साल बाद जब परमेश्‍वर का पुत्र, यीशु मसीह, पृथ्वी पर था, तब यहोवा के उद्देश्‍यों के अनेक और विवरण प्रकट किए गए। यह ख़ासकर पृथ्वी पर शासन करने के लिए स्वर्गीय राज्य स्थापित करने के परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के सम्बन्ध में था। (दानिय्येल २:४४) यीशु ने उस राज्य को अपनी शिक्षा का मूलविषय बनाया। (मत्ती ४:१७; ६:१०) उसने और उसके शिष्यों ने सिखाया कि उस राज्य के अधीन, पृथ्वी और मानवजाति के लिए परमेश्‍वर का मूल उद्देश्‍य पूरा होगा। पृथ्वी परादीस में परिवर्तित की जाएगी और उसमें परिपूर्ण मनुष्य बसेंगे, जो सर्वदा जीवित रहेंगे। (भजन ३७:२९; मत्ती ५:५; लूका २३:४३; २ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:४) इसके अतिरिक्‍त, उस नए संसार में क्या किया जाएगा इसे यीशु और उसके शिष्यों ने उन चमत्कारों के द्वारा प्रदर्शित किया जिन्हें करने के लिए परमेश्‍वर ने उन्हें शक्‍ति दी।—मत्ती १०:१, ८; १५:३०, ३१; यूहन्‍ना ११:२५-४४.

१३. मनुष्यजाति के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार के सम्बन्ध में सा.यु. ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन क्या परिवर्तन हुआ?

१३ पिन्तेकुस्त के दिन, सा.यु. ३३ में, यीशु की मृत्यु के ५० दिन बाद, परमेश्‍वर की आत्मा मसीह के अनुयायियों की कलीसिया पर उँडेली गई। उसने यहोवा के वाचा किए हुए लोगों के रूप में अविश्‍वासी इस्राएल का स्थान लिया। (मत्ती २१:४३; २७:५१; प्रेरितों २:१-४) उस अवसर पर पवित्र आत्मा का उँडेला जाना इस बात का प्रमाण था कि, उस समय से, परमेश्‍वर अपने उद्देश्‍यों के बारे में सच्चाई को इस नए माध्यम के द्वारा प्रकट करेगा। (इफिसियों ३:१०) सामान्य युग प्रथम शताब्दी के दौरान मसीही कलीसिया का संगठनात्मक ढाँचा स्थापित किया गया।—१ कुरिन्थियों १२:२७-३१; इफिसियों ४:११, १२.

१४. सत्य के खोजी किस प्रकार सच्ची मसीही कलीसिया को पहचान सकते हैं?

१४ आज, सत्य के खोजी सच्ची मसीही कलीसिया को उसके द्वारा परमेश्‍वर के श्रेष्ठ गुण, प्रेम के निरन्तर प्रदर्शन से पहचान सकते हैं। (१ यूहन्‍ना ४:८, १६) सचमुच, भाईचारे का प्रेम असली मसीहियत का पहचान चिह्न है। यीशु ने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।” (यूहन्‍ना १३:३५; १५:१२) और यीशु ने अपने सुननेवालों को याद दिलाया: “जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।” (यूहन्‍ना १५:१४) इस प्रकार परमेश्‍वर के सच्चे सेवक वे हैं जो प्रेम के नियम के अनुसार जीते हैं। वे उस के बारे में सिर्फ़ बातें नहीं करते, क्योंकि ‘विश्‍वास कर्म बिना मरा हुआ है।’—याकूब २:२६.

प्रबोधन

१५. परमेश्‍वर के सेवक किस चीज़ के बारे में विश्‍वस्त हो सकते हैं?

१५ यीशु ने पूर्वबताया कि समय के बीतने पर, सच्ची मसीही कलीसिया परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के सम्बन्ध में अधिकाधिक प्रबुद्ध की जाएगी। उसने अपने अनुयायियों से प्रतिज्ञा की: “सहायक अर्थात्‌ पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा।” (यूहन्‍ना १४:२६) यीशु ने यह भी कहा: “देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती २८:२०) अतः, परमेश्‍वर के सेवकों के बीच परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍यों के बारे में सत्य से सम्बन्धित प्रबोधन बढ़ रहा है। जी हाँ, “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।”—नीतिवचन ४:१८.

१६. परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के सम्बन्ध में हम कहाँ हैं इसके बारे में हमारा आध्यात्मिक प्रबोधन हमें क्या बताता है?

१६ आज, आध्यात्मिक ज्योति पहले से कहीं तेज़ चमक रही है, क्योंकि हम ऐसे समय में हैं जब अनेक बाइबल भविष्यवाणियाँ पूरी हो रही हैं या पूरी होनेवाली हैं। ये हमें दिखाती हैं कि हम इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। इस कालावधि को “रीति-व्यवस्था की समाप्ति” कहा गया है; इसके बाद परमेश्‍वर का नया संसार आएगा। (२ तीमुथियुस ३:१-५, १३; मत्ती २४:३-१३, NW) जैसा दानिय्येल ने पूर्वबताया, परमेश्‍वर का स्वर्गीय राज्य जल्द ही “उन सब राज्यों को [जो अभी अस्तित्व में हैं] चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।”—दानिय्येल २:४४.

१७, १८. कौनसी महान भविष्यवाणियाँ अभी पूरी हो रही हैं?

१७ अभी पूरी होनेवाली भविष्यवाणियों में से एक मत्ती अध्याय २४ की आयत १४ में अभिलिखित है। वहाँ यीशु ने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” पूरी पृथ्वी पर, वह राज्य-प्रचार कार्य लाखों यहोवा के गवाहों द्वारा किया जा रहा है। और हर साल लाखों लोग उनके साथ सम्मिलित हो रहे हैं। यह यशायाह २:२, ३ की भविष्यवाणी के सामंजस्य में है, जो कहती है कि इस दुष्ट संसार के “अन्त के दिनों में,” अनेक जातियों के लोग यहोवा की सच्ची उपासना के लिए आएंगे, और ‘वह उनको अपने मार्ग सिखाएगा, और वे उसके पथों पर चलेंगे।’

१८ जैसा यशायाह अध्याय ६०, आयत ८ में पूर्वबताया गया है ये नए लोग “बादल की नाईं” यहोवा की उपासना की ओर चले आते हैं। आयत २२ आगे कहती है: “छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।” प्रमाण दिखाता है कि वह समय ठीक अभी है। और नए लोग विश्‍वस्त हो सकते हैं कि यहोवा के गवाहों के साथ संगति करने से वे सच्ची मसीही कलीसिया के संपर्क में आ गए हैं।

१९. हम क्यों कहते हैं कि नए लोग जो यहोवा के गवाहों के साथ संगति करते हैं वे सच्ची मसीही कलीसिया में आ रहे हैं?

१९ यह हम निश्‍चितता के साथ क्यों कह सकते हैं? क्योंकि इन नए लोगों ने, उन लाखों लोगों के साथ जो पहले ही यहोवा के संगठन में हैं, अपने जीवन परमेश्‍वर को समर्पित कर दिए हैं और उसकी इच्छा पूरी कर रहे हैं। इसमें ईश्‍वरीय प्रेम के नियम के सामंजस्य में जीना सम्मिलित है। इसके एक प्रमाण के रूप में, इन मसीहियों ने ‘अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बना लिया है और अब युद्ध विद्या नहीं सीख रहे हैं।’ (यशायाह २:४) संसार-भर में सभी यहोवा के गवाहों ने ऐसा किया है क्योंकि वे प्रेम का अभ्यास करते हैं। इसका अर्थ है कि वे कभी-भी एक दूसरे के या किसी भी दूसरे के विरुद्ध युद्ध शस्त्र नहीं उठा सकते। इसमें वे अद्वितीय हैं—संसार के धर्मों से भिन्‍न। (यूहन्‍ना १३:३४, ३५; १ यूहन्‍ना ३:१०-१२, १५) वे विभाजक राष्ट्रीयवाद में अन्तर्ग्रस्त नहीं होते, क्योंकि वे प्रेम, “जो सिद्धता का कटिबन्ध है,” से दृढ़ किया गया विश्‍वव्यापी भाईचारा बनाते हैं।—कुलुस्सियों ३:१४; मत्ती २३:८; १ यूहन्‍ना ४:२०, २१.

अधिकांश नहीं जानने का चुनाव करते हैं

२०, २१. अधिकांश मानवजाति आध्यात्मिक अन्धकार में क्यों है? (२ कुरिन्थियों ४:४; १ यूहन्‍ना ५:१९)

२० जबकि परमेश्‍वर के सेवकों के बीच आध्यात्मिक ज्योति अधिकाधिक तेज़ चमकती जा रही है, पृथ्वी की बाक़ी जनसंख्या अधिकाधिक आध्यात्मिक अन्धकार में गिरती जा रही है। वे यहोवा को या उसके उद्देश्‍यों को नहीं जानते। परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता ने इस समय का वर्णन किया जब उसने कहा: “देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है।” (यशायाह ६०:२) ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग परमेश्‍वर के बारे में सीखने के लिए निष्कपट दिलचस्पी प्रदर्शित नहीं करते, न ही वे उसे प्रसन्‍न करने की कोशिश करने की इच्छा दिखाते हैं। यीशु ने कहा: “दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।”—यूहन्‍ना ३:१९, २०.

२१ ऐसे व्यक्‍तियों को परमेश्‍वर की इच्छा जानने के लिए असल में दिलचस्पी नहीं होती। इसके बजाय, वे अपने जीवन को स्वयं अपनी इच्छा पूरी करने पर केंद्रित करते हैं। परमेश्‍वर की इच्छा को नज़रअंदाज़ करने से वे अपने आपको एक ख़तरनाक स्थिति में डालते हैं, क्योंकि उसका वचन कहता है: “जो अपना कान व्यवस्था सुनने से फेर लेता है, उसकी प्रार्थना घृणित ठहरती है।” (नीतिवचन २८:९) वे अपने चुने हुए मार्ग का फल भुगतेंगे। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “धोखा न खाओ, परमेश्‍वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।”—गलतियों ६:७.

२२. बहुसंख्य लोग जो परमेश्‍वर को जानना चाहते हैं अभी क्या कर रहे हैं?

२२ फिर भी, बहुसंख्य लोग हैं जो परमेश्‍वर की इच्छा जानना चाहते हैं, निष्कपटता से उसकी खोज करते हैं, और उसके निकट आते हैं। “परमेश्‍वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा,” याकूब ४:८ कहता है। ऐसे लोगों के बारे में यीशु ने कहा: “जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्‍वर की ओर से किए गए हैं।” (यूहन्‍ना ३:२१) और परमेश्‍वर ने उन के लिए क्या ही शानदार भविष्य का उद्देश्‍य रखा है जो ज्योति में आते हैं! हमारा अगला लेख रोमांचक प्रत्याशाओं की चर्चा करेगा।

आप कैसे उत्तर देंगे?

▫ जीवन के उद्देश्‍य के सम्बन्ध में अनेक लोग क्या कहते हैं?

▫ यहोवा अपने आपको एक उद्देश्‍य के परमेश्‍वर के रूप में कैसे प्रकट करता है?

▫ सामान्य युग प्रथम शताब्दी में कौनसा महान प्रबोधन हुआ?

▫ आज सच्ची मसीही कलीसिया को कैसे पहचाना जा सकता है?

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