हमारे कठिन समय के लिए सहायक शिक्षा
“यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। और दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१, १३.
१, २. हम किन शिक्षाओं पर चलते हैं इसमें हमारी दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए?
क्या आपकी सहायता की जा रही है, या क्या आपको चोट पहुँचाई जा रही है? क्या आपकी समस्याओं का समाधान हो रहा है, या क्या वे बदतर बनाई जा रही हैं? किसके द्वारा? शिक्षाओं के द्वारा। जी हाँ, शिक्षाएँ आपके जीवन को बेहतर या बदतर बनाने के लिए उसे बहुत प्रभावित कर सकती हैं।
२ तीन संगी प्रोफ़ेसरों ने हाल ही में इस विषय का अध्ययन किया और अपने जाँच-परिणाम को धर्म के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए पत्रिका (अंग्रेज़ी) में प्रस्तुत किया। माना कि उन्होंने आपका या आपके परिवार का अध्ययन नहीं किया हो। फिर भी, उन्होंने जो पता लगाया, वह शिक्षाओं के और हमारे कठिन समय का सामना करने में एक व्यक्ति की सफलता या असफलता के बीच एक निश्चित सम्बन्ध दिखाता है। अगले लेख में हम उनकी प्राप्ति का विशेष उल्लेख करेंगे।
३, ४. कुछ प्रमाण क्या हैं कि हम कठिन समय में जी रहे हैं?
३ लेकिन, पहले इस प्रश्न पर विचार कीजिए: क्या आप मानते हैं कि हम कठिन समय में जी रहे हैं? यदि हाँ, तो आप निश्चय ही देखेंगे कि प्रमाण प्रमाणित करता है कि ये “कठिन समय” हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) लोग विविध तरीक़ों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, आप शायद ऐसे देशों के बारे में जानते हैं जो इस समय विभाजित और विघटित हो रहे हैं क्योंकि विभिन्न दल राजनीतिक प्रभुत्व के लिए लड़ रहे हैं। अन्य स्थानों पर, खून-ख़राबा धार्मिक या नृजातीय मतभेदों के कारण होता है। चोट केवल सैनिकों को ही नहीं पहुँचती है। उन अनगिनत स्त्रियों और लड़कियों के विषय में सोचिए जिनका निर्दयता से अपमान किया गया है या वे बुज़ुर्ग जिन्हें भोजन, गर्मी, और घर से वंचित किया गया है। अनगिनत लोग बुरी तरह कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, इसके कारण शरणार्थियों की और अनेक सम्बन्धित दुःखों की भरमार है।
४ हमारे समय को आर्थिक समस्याएँ भी चिह्नित करती हैं जिनका परिणाम हैं बन्द फैक्टरियाँ, बेरोज़गारी, आर्थिक मदद और पेंशन खोना, मुद्रा का मूल्य घटना, और छोटे या कम भोजन। क्या आप समस्याओं की सूची में जोड़ कर सकते हैं? शायद हाँ। संसार भर में लाखों अन्य लोग भोजन की कमी और बीमारियों के कारण दुःख झेलते हैं। संभव है कि आपने पूर्वी अफ्रीका से दुर्बल पुरुष, स्त्रियों, और बच्चों की भयानक तस्वीरें देखी हैं। एशिया में भी लाखों लोग इसी प्रकार दुःख झेल रहे हैं।
५, ६. यह क्यों कहा जा सकता है कि बीमारी भी हमारे कठिन समय का एक ज़बरदस्त पहलू है?
५ हम सब ने अभी बढ़ रही भयानक बीमारियों के बारे में सुना है। जनवरी २५, १९९३ में द न्यू यॉर्क टाइम्स् ने कहा: “स्वच्छंद संभोग, आडंबर और अव्यवस्थित रोकथाम के मध्य बढ़ती हुई, लातिन अमरीका की एडस् महामारी संयुक्त राज्य अमरीका [की एडस् महामारी] को भी मात देने की ओर बढ़ रही है . . . ज़्यादातर बढ़ोतरी स्त्रियों के बीच बढ़ते संदूषण दर से आ रही है।” अक्तूबर १९९२ में यू.एस. न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट ने कहा: “केवल दो दशक पहले यू.एस. सर्जन जनरल ने एक सबसे महान जन-स्वास्थ्य विजय की प्रशंसा करते हुए, घोषणा की कि ‘समय आ गया है कि संक्रामक बीमारियों के बारे में चिन्ता करना बन्द कर दें।’” अभी के बारे में क्या? “अस्पताल फिर उन महाविपत्तियों के शिकारों से भर रहे हैं जिन्हें समझा जाता था कि पराजित कर दिया गया है। . . . रोगाणु इतनी निपुण आनुवंशिक युक्तियाँ विकसित कर रहे हैं कि वे नए ऐन्टीबायोटिक के विकास से पहले विकसित हो जाते हैं। . . . ‘हम संक्रामक बीमारियों के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं।’”
६ एक उदाहरण के रूप में, जनवरी ११, १९९३ की न्यूज़वीक ने रिपोर्ट किया: “मलेरिया परजीवी अब हर साल अनुमानित २७ करोड़ लोगों को संदूषित करते हैं, २० लाख लोगों की जान लेते हैं . . . और कम से कम १० करोड़ लोगों को अतिपाती बीमारी के रोगी बनाते हैं। . . . उसी समय, जो पहले रोगनाशक दवाएँ थीं उनका प्रभाव इस बीमारी पर कम होता जा रहा है। . . . बीमारी के कुछ विभेद जल्द ही अनुपचारित हो सकते हैं।” यह सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
७. आज अनेक लोग मुश्किल समय के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं?
७ आपने शायद ध्यान दिया हो कि इस कठिन समय में अनेक लोग अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए मदद की तलाश कर रहे हैं। उनके बारे में विचार कीजिए जो तनाव या किसी नई बीमारी का सामना करने के लिए किताबों का सहारा लेते हैं। दूसरे लोग असफल होते विवाह, शिशुपालन, शराब या नशीले पदार्थों की समस्याओं के बारे में सलाह के लिए उतावले हैं, या इसलिए कि किस प्रकार अपनी नौकरी की माँगों और घर के दबावों में संतुलन कर सकें। जी हाँ, उन्हें सचमुच मदद की ज़रूरत है! क्या आप एक निजी समस्या के साथ संघर्ष कर रहे हैं या युद्ध, अकाल, अथवा महाविपदा से उत्पन्न कुछ समस्याओं का अनुभव कर रहे हैं? चाहे यह प्रतीत हो कि एक घोर समस्या का कोई समाधान नहीं, तोभी यह पूछने के लिए आपके पास कारण है, ‘हम ऐसी कठिन स्थिति में क्यों पहुँच गए हैं?’
८. अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शन के लिए हमें बाइबल की ओर क्यों मुड़ना चाहिए?
८ इससे पहले कि हम प्रभावी रूप से इन समस्याओं का सामना कर सकें और जीवन में अभी और भविष्य में संतुष्टि प्राप्त कर सकें, हमें यह जानने की ज़रूरत है कि हम ऐसे कठिन समय का सामना क्यों कर रहे हैं। स्पष्टतया, यह हम में से हरेक को बाइबल पर विचार करने के लिए कारण देता है। हम बाइबल पर ध्यान क्यों निर्दिष्ट कर रहे हैं? क्योंकि सिर्फ़ इसमें ही यथार्थ भविष्यवाणी, अर्थात् पहले से लिखा इतिहास है, जो हमारी दुर्दशा के कारण बताता है, बताता है कि हम कहाँ हैं, और हम कहाँ जा रहे हैं।
इतिहास से एक सबक़
९, १०. मत्ती अध्याय २४ में यीशु की भविष्यवाणी प्रथम शताब्दी में कैसे पूरी हुई?
९ फरवरी १, १९९४ प्रहरीदुर्ग ने मत्ती अध्याय २४ में यीशु की सजीव भविष्यवाणी का उल्लेखनीय पुनर्विचार प्रदान किया। यदि आप अपनी बाइबल में वह अध्याय खोलें, तो आप आयत ३ में देख सकते हैं कि यीशु के प्रेरितों ने उसकी भावी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था की समाप्ति के बारे में एक चिह्न माँगा। फिर, आयत ५ से १४ में यीशु ने झूठे मसीहों, युद्धों, अकालों, मसीहियों पर सताहट, अधर्म, और परमेश्वर के राज्य के बारे में व्यापक प्रचार को पूर्वबताया।
१० इतिहास प्रमाणित करता है कि ठीक वही बातें यहूदी रीति-व्यवस्था की समाप्ति के दौरान घटित हुईं। यदि आप उस समय में जी रहे होते, तो क्या वे कठिन समय न होते? फिर भी, घटनाएँ एक चरमसीमा की ओर बढ़ रही थीं, यरूशलेम और यहूदी व्यवस्था पर एक अपूर्व क्लेश। आयत १५ में हम पढ़ना शुरू करते हैं कि सा.यु. ६६ में रोमी सेना द्वारा यरूशलेम पर आक्रमण करने के बाद क्या विकास हुए। यीशु द्वारा आयत २१ में उल्लिखित क्लेश के साथ वह घटनाएँ अपनी चरमसीमा तक पहुँचीं—सा.यु. ७० में यरूशलेम का विनाश, उस शहर पर आया सबसे भयंकर क्लेश। फिर भी, आप जानते हैं कि इतिहास वहीं नहीं रुका, न ही यीशु ने कहा कि यह रुकेगा। आयत २३ से २८ में उसने दिखाया कि सा.यु. ७० के क्लेश के बाद, अन्य बातें होंगी।
११. मत्ती अध्याय २४ की प्रथम-शताब्दी पूर्ति किस प्रकार हमारे दिन से सम्बन्धित है?
११ आज कुछ लोग शायद अतीत की इन बातों को ‘तो क्या हुआ?’ कहकर टाल देने के लिए प्रवृत्त हों। यह एक भूल होगी। उस समय हुई भविष्यवाणी की पूर्ति अनिवार्यतः महत्त्वपूर्ण है। क्यों? यहूदी व्यवस्था की समाप्ति के दौरान होनेवाले युद्ध, अकाल, भूईंडोल, महामारियों, और सताहट को १९१४ में ‘अन्यजातियों के नियुक्त समय’ के अन्त के बाद एक बड़ी पूर्ति में प्रतिबिम्बित होना था। (लूका २१:२४, NW) आज जीवित अनेक लोग प्रथम विश्व युद्ध के चश्मदीद गवाह थे जब यह आधुनिक पूर्ति शुरू हुई। लेकिन यदि आप १९१४ के बाद भी पैदा हुए थे, तोभी आपने यीशु की भविष्यवाणी को पूरा होते देखा है। इस २०वीं शताब्दी की घटनाएँ अति विशाल रूप से प्रमाणित करती हैं कि हम वर्तमान दुष्ट व्यवस्था की समाप्ति में जी रहे हैं।
१२. यीशु के अनुसार, हम आगे और क्या देखने की प्रत्याशा कर सकते हैं?
१२ इसका अर्थ है कि मत्ती २४:२९ का “क्लेश” हमारे सामने है। इसमें ऐसी अद्भुत दिव्य घटनाएँ सम्मिलित होंगी जिनकी शायद कल्पना भी न की जा सके। आयत ३० दिखाती है कि तब लोग एक भिन्न प्रकार का चिह्न देखेंगे—जो यह प्रमाणित करेगा कि विनाश निकट है। लूका २१:२५-२८ में समानांतर वृत्तान्त के अनुसार, उस भावी समय पर ‘भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।’ लूका का वृत्तान्त यह भी कहता है कि तब मसीही अपने सिर उठाएँगे क्योंकि उनका छुटकारा बहुत निकट होगा।
१३. कौनसे दो मुख्य मुद्दे हमारे ध्यान के योग्य हैं?
१३ शायद आप कहें, ‘मैं यह सब कुछ मानता हूँ, लेकिन मैं ने सोचा विषय यह था कि मैं किस प्रकार हमारे कठिन समय को समझ सकता हूँ और उसका सामना कर सकता हूँ?’ सही। हमारा पहला मुद्दा है मुख्य समस्याओं की पहचान करना और यह देखना कि हम उनसे कैसे बच सकते हैं। उससे सम्बन्धित है दूसरा मुद्दा, किस प्रकार शास्त्रीय शिक्षाएँ अभी एक बेहतर जीवन का आनन्द लेने के लिए हमारी मदद कर सकती हैं। इस सम्बन्ध में, अपनी बाइबल में २ तीमुथियुस अध्याय ३ खोलिए, और देखिए कि कैसे प्रेरित पौलुस के शब्द आपको कठिन समय का सामना करने में मदद कर सकते हैं।
हमारे समय के बारे में एक भविष्यवाणी
१४. यह विश्वास करने का कारण क्यों है कि २ तीमुथियुस ३:१-५ का विचार-विमर्श हमें लाभ पहुँचा सकता है?
१४ परमेश्वर ने पौलुस को उत्प्रेरित किया कि निष्ठावान् तीमुथियुस को काफ़ी उत्तम सलाह लिखे जिससे उसे ज़्यादा सफल और ख़ुशहाल जीवन व्यतीत करने में मदद मिली। जो पौलुस ने लिखा उसके एक भाग की मुख्य प्रयुक्ति हमारे दिनों में होनी थी। चाहे आप को लगता है कि आप उन भविष्यसूचक शब्दों को अच्छी तरह जानते हैं, तोभी २ तीमुथियुस ३:१-५ में दिए गए भविष्यसूचक शब्दों पर अभी पूरा ध्यान दीजिए। पौलुस ने लिखा: “यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उसकी शक्ति को न मानेंगे।”
१५. क्यों २ तीमुथियुस ३:१ अभी हमारी ख़ास दिलचस्पी का होना चाहिए?
१५ कृपया नोट कीजिए, १९ बातों की सूची दी गई थी। इससे पहले कि हम इनकी जाँच करें और लाभ उठाने की स्थिति में आएँ, भविष्यवाणी की पूरी तरह से समझ पाने के लिए क्षण भर ठहरिए। आयत १ देखिए। पौलुस ने पूर्वबताया: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे।” कैसे ‘अन्तिम दिन’? अनेक अन्तिम दिन आए हैं, जैसे प्राचीन पोमपे शहर के अन्तिम दिन या एक राजा या राजवंश के अन्तिम दिन। बाइबल भी अनेक अन्तिम दिनों का उल्लेख करती है, जैसे यहूदी व्यवस्था के अन्तिम दिन। (प्रेरितों २:१६, १७) लेकिन, यीशु ने हमारे लिए यह समझने का आधार रखा कि पौलुस द्वारा उल्लिखित ‘अन्तिम दिन’ हमारे समय को सूचित करते हैं।
१६. गेहूं और जंगली बीज के दृष्टान्त ने हमारे समय के लिए क्या स्थिति पूर्वबतायी?
१६ यीशु ने गेहूं और जंगली बीज के बारे में दृष्टान्त देने के द्वारा ऐसा किया। इन्हें खेत में बोकर बढ़ने के लिए छोड़ दिया गया था। उसने कहा कि गेहूं और जंगली पौधे लोगों को चित्रित करते हैं—सच्चे मसीही और झूठे मसीही। हम इस दृष्टान्त का उल्लेख इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह सिद्ध करता है कि सम्पूर्ण दुष्ट व्यवस्था की समाप्ति से पहले काफ़ी समय बीतना था। जब वह समाप्ति आती, तब कोई चीज़ पूरी तरह फल-फूल रही होती। क्या? धर्मत्याग, या सच्ची मसीहियत से अलग फिरना, जिसका परिणाम दुष्टता की बड़ी फ़सल है। अन्य बाइबल भविष्यवाणियाँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह दुष्ट व्यवस्था के अन्तिम दिनों के दौरान घटित होगा। हम वहीं, रीति-व्यवस्था की समाप्ति में हैं।—मत्ती १३:२४-३०, ३६-४३.
१७. रीति-व्यवस्था की समाप्ति के बारे में २ तीमुथियुस ३:१-५ क्या समानान्तर जानकारी प्रदान करता है?
१७ क्या आप अभिप्राय समझे? दूसरा तीमुथियुस ३:१-५ हमें समानान्तर संकेत देता है कि व्यवस्था की समाप्ति के दौरान, या अन्तिम दिनों में, मसीहियों के चारों ओर बुरे फलन होंगे। पौलुस यह नहीं कह रहा था कि सूचीबद्ध १९ बातें ही यह प्रमाणित करने का मुख्य तरीक़ा होंगी कि अन्तिम दिन आ गए हैं। बल्कि, वह इस बारे में चेतावनी दे रहा था कि हमें अन्तिम दिनों के दौरान किन बातों से संघर्ष करना पड़ेगा। पहली आयत “कठिन समय” के बारे में बोलती है। यह अभिव्यक्ति यूनानी भाषा से ली गई है, और इसका शाब्दिक अर्थ है “नियुक्त समय भीषण।” (किंग्डम इंटरलीनियर) क्या आप नहीं मानते कि “भीषण” उपयुक्त रूप से उन बातों का वर्णन करता है जिनका हम आज सामना कर रहे हैं? यह उत्प्रेरित लेखांश आगे हमारे समय के लिए ईश्वरीय अंतर्दृष्टि देता है।
१८. जब हम पौलुस के भविष्यसूचक शब्द पढ़ते हैं तो हमें किस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?
१८ इस भविष्यवाणी में हमारी दिलचस्पी के कारण हमें उन दुःखान्त उदाहरणों को पहचानने में समर्थ होना चाहिए जो दिखाते हैं कि हमारा समय कितना कठिन, या भीषण है। हमारे दो मुख्य उद्देश्यों को याद कीजिए: (१) उन समस्याओं की पहचान करना जो हमारे समय को कठिन बनाती हैं और यह देखना कि उनसे कैसे बचा जा सकता है; (२) ऐसी शिक्षाओं का अनुसरण करना जो सचमुच व्यावहारिक हैं और जो एक बेहतर जीवन का आनन्द लेने में हमारी मदद कर सकती हैं। इसलिए, नकारात्मक बातों पर ज़ोर देने के बजाय हम उन शिक्षाओं पर ध्यान देंगे जो इस कठिन समय में हमारी और हमारे परिवारों की मदद कर सकती हैं।
भरपूर लाभ प्राप्त कीजिए
१९. आपने क्या प्रमाण देखा है कि लोग अपस्वार्थी हैं?
१९ पौलुस अपनी सूची यह भविष्यवाणी करके शुरू करता है कि अन्तिम दिनों में, “मनुष्य अपस्वार्थी” होंगे। (२ तीमुथियुस ३:२) उसका क्या अर्थ था? आपका यह कहना सही होगा कि पूरे इतिहास में अहंकारी, अपस्वार्थी पुरुष और स्त्रियाँ रहे हैं। फिर भी, इसमें कोई संदेह नहीं कि आज यह त्रुटि असाधारण रूप से सामान्य है। कई लोगों में यह आत्यंतिक है। राजनीतिक और वाणिज्यिक संसार में तो यह लगभग नियम ही बन गया है। पुरुष और स्त्रियाँ हर क़ीमत पर शक्ति और प्रसिद्धि का पीछा करते हैं। सामान्यतः चाहे दूसरों को इसकी कोई भी क़ीमत चुकानी पड़े, क्योंकि इन अपस्वार्थी लोगों को इस बात की कोई परवाह नहीं कि वे कैसे दूसरे लोगों को नुक़सान पहुँचाते हैं। वे दूसरों पर मुक़दमा दायर करने या उनके साथ बेईमानी करने में देर नहीं लगाते। आप समझ सकते हैं कि अनेक लोग इसे “मैं पीढ़ी” क्यों कहते हैं। अनुशासनहीन और अहंकारी लोग बहुतायत में हैं।
२०. बाइबलीय सलाह किस प्रकार अपस्वार्थ की व्यापक प्रवृत्ति की विषमता में है?
२० “अपस्वार्थी” लोगों के साथ व्यवहार करने में हुए कटु अनुभवों की हमें याद दिलायी जाने की ज़रूरत नहीं है। फिर भी यह सच है कि स्पष्ट रूप से इस समस्या की पहचान कराने के द्वारा बाइबल हमारी मदद कर रही है, क्योंकि यह हमें सिखा रही है कि इस जाल से कैसे बचा जाए। यह कहती है: “स्वार्थी महत्त्वाकांक्षा या झूठी बड़ाई करने की हीन इच्छा से कोई काम न करो, परन्तु नम्रतापूर्वक अपनी अपेक्षा दूसरों को उत्तम समझो। और हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।” “अपने आप को जितना समझना चाहिए उस से बढ़कर न समझो। परन्तु अपने सोच-विचार में निराहंकार रहो।” यह अत्युत्तम सलाह फिलिप्पियों २:३, ४ और रोमियों १२:३ में पाई जाती है, जैसा टुडेज़ इंग्लिश वर्शन में अनुवादित है।
२१, २२. (क) क्या बड़ा प्रमाण है कि ऐसी सलाह आज सहायक साबित हो सकती है? (ख) सामान्य व्यक्तियों पर परमेश्वर की सलाह का क्या प्रभाव हुआ है?
२१ शायद कोई विरोध करे, ‘यह सुनने में तो अच्छा है, लेकिन व्यावहारिक नहीं है।’ जी हाँ, यह व्यावहारिक है। यह सलाह काम कर सकती है, और यह आज सामान्य मनुष्यों के साथ काम करती भी है। वर्ष १९९० में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के प्रकाशक ने साम्प्रदायिकता के सामाजिक आयाम (अंग्रेज़ी) पुस्तक छापी। अध्याय ८ का शीर्षक था “एक कैथोलिक देश में यहोवा के गवाह,” और उसमें बेल्जियम में हुए एक अनुसंधान का वर्णन किया गया। हम पढ़ते हैं: “स्वयं ‘सत्य’ के आकर्षण के अलावा गवाह बनने के सकारात्मक आकर्षण की ओर ध्यान देते हुए, प्रतिक्रिया दिखानेवालों ने कभी-कभी एक से ज़्यादा विशिष्टताओं का दुबारा उल्लेख किया। . . . स्नेह, मैत्रीभाव, प्रेम, और एकता ऐसे गुण थे जिनका उल्लेख सबसे ज़्यादा बार किया गया, लेकिन ईमानदारी, और व्यक्तिगत आचरण में ‘बाइबलीय सिद्धान्तों को कार्य में लाना’ भी वे गुण थे जो गवाहों को प्रिय थे।”
२२ हम इस वर्णन की तुलना एक विस्तृत-कोण (Wide-angle) लेंस से ली गई फोटो से कर सकते हैं; इसके बजाय यदि आप ज़ूम लेंस, या टेलीफोटो लेंस का प्रयोग करते, तो आप निकट-शॉट, अर्थात् अनेक सच्चे-जीवन अनुभव देख सकते। इनमें वे पुरुष सम्मिलित होंगे जो घमंडी, रोब जमानेवाले, या अति स्वार्थी हुआ करते थे लेकिन जो अब ज़्यादा नम्र हैं, शोभनीय पति और पिता हैं जो अपनी पत्नियों, बच्चों, और अन्य जनों को ज़्यादा कोमल स्नेह और कृपालुता दिखाते हैं। इनमें वे स्त्रियाँ भी सम्मिलित होंगी जो निरंकुश या निर्दयी हुआ करती थीं और अब सच्ची मसीहियत का मार्ग सीखने में दूसरों की मदद करती हैं। ऐसे लाखों उदाहरण हैं। अब, सच बोलिए। क्या ऐसे लोगों के आस-पास रहना आपको ज़्यादा अच्छा नहीं लगेगा, इसके बजाय कि हमेशा उन पुरुषों और स्त्रियों का सामना करें जो सबसे ज़्यादा अपने आपसे प्रेम करते हैं? क्या यह हमारे कठिन समय का सामना करना और आसान नहीं बनाएगा? इसलिए क्या ऐसी बाइबलीय शिक्षाओं का अनुसरण करना आपको ज़्यादा सुखी नहीं बनाएगा?
२३. दूसरा तीमुथियुस ३:२-५ पर और ध्यान देना क्यों लाभप्रद होगा?
२३ लेकिन, हमने २ तीमुथियुस ३:२-५ में अभिलिखित पौलुस की सूची की मात्र एक बात पर विचार किया है। दूसरी बातों के बारे में क्या? क्या आपका ध्यानपूर्वक उनकी जाँच करना आपको हमारे समय की मुख्य समस्याओं की पहचान करने में भी मदद करेगा ताकि आप उनसे दूर रह सकें और यह समझने में समर्थ हो सकें कि कौनसा मार्ग आपके और आपके प्रिय जनों के लिए ज़्यादा सुख-शान्ति लाएगा? अगला लेख आपको उन प्रश्नों के उत्तर देने में और भरपूर आशिष प्राप्त करने में सहायता करेगा।
स्मरण के लिए मुद्दे
▫ कुछ प्रमाण क्या हैं कि हम कठिन समय में जी रहे हैं?
▫ हम क्यों विश्वस्त हो सकते हैं कि हम अन्तिम दिनों में जी रहे हैं?
▫ हम २ तीमुथियुस ३:१-५ के अध्ययन से कौनसे दो मुख्य मुद्दे निकाल सकते हैं?
▫ इस समय में जब इतने सारे लोग अपस्वार्थी हैं, बाइबल शिक्षाओं ने यहोवा के लोगों की कैसे मदद की है?
[पेज 20 पर चित्र का श्रेय]
Photo top left: Andy Hernandez/Sipa Press; photo bottom right: Jose Nicolas/Sipa Press