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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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बाँटने के लिए एक अनमोल ख़ज़ाना

ग्लोरिया मालास्पीना द्वारा बताया गया

जब सिसिली की तट रेखा हमारी नज़रों से ओझल हो गयी, तो मेरे पति और मैं ने हमारी मंज़िल, भूमध्य सागर के माल्टा द्वीप पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। माल्टा जाने की प्रत्याशा कितनी रोमांचक थी! जब जहाज़ समुद्र पार कर रहा था, तो हम पहली शताब्दी के दौरान माल्टा में प्रेरित पौलुस के अनुभव के बारे में सोच रहे थे।—रतों २८:१-१०.

वर्ष था १९५३, और माल्टा में उस समय यहोवा के गवाहों का प्रचार कार्य मान्य नहीं था। एक वर्ष पहले, हम ने वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड से स्नातक किया था और हमारी नियुक्‍ति इटली में की गयी थी। केवल थोड़े ही समय इटालियन सीखने के बाद, हम यह देखने के लिए उत्सुक थे कि हमारे लिए माल्टा कैसा होगा।

क्या आप जानना चाहेंगे कि मैं, एक युवा स्त्री कैसे एक विदेशी मिशनरी बन गयी? मुझे समझाने दीजिए।

माँ का प्रेरक उदाहरण

वर्ष १९२६ में, जब हमारा परिवार फोर्ट फ्रांसस, ओन्टारियो, कनाडा में रहता था, तो मेरी माँ ने एक बाइबल विद्यार्थी (उस समय यहोवा के गवाह इस नाम से जाने जाते थे) से अभी जीवित लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे (अंग्रेज़ी) पुस्तिका स्वीकार की। उन्होंने उसे बड़े चाव से पढ़ा, और उसी सप्ताह वो एक सामूहिक बाइबल अध्ययन में उपस्थित हुईं, जिसमें वॉच टावर पत्रिका का प्रयोग किया गया। माँ एक उत्सुक बाइबल पाठक थीं, और उन्होंने परमेश्‍वर के राज्य के संदेश को एक ख़ज़ाने के रूप में स्वीकार किया जिसे वो खोज रही थीं। (मत्ती ६:३३; १३:४४) पिताजी की ओर से हिंसक विरोध के बावजूद, और हालाँकि उन्हें तीन छोटी लड़कियों को पालना था, जो वो सीख रही थीं उसके लिए उन्होंने अपनी स्थिति ली।

अगले २० वर्षों के दौरान माँ के अडिग विश्‍वास ने मुझे और मेरी दो बड़ी बहनों, थेलमा और वायला को धार्मिकता के नए संसार में अनन्त जीवन की अद्‌भुत आशा के बारे में अवगत रखा। (२ पतरस ३:१३) उन्होंने अनेक कठिन परीक्षाओं का सामना किया, लेकिन हम ने कभी उनके चुने हुए रास्ते की उपयुक्‍तता पर संदेह नहीं किया।

वर्ष १९३१ में, जब मैं केवल दस वर्ष की थी, हम उत्तरी मिनेसोटा, यू.एस.ए. में एक फ़ार्म पर चले गए। वहाँ हम यहोवा के गवाहों के साथ नियमित संगति से दूर हो गए लेकिन माँ के बाइबलीय शिक्षण से नहीं। एक कॉलपोर्टर, या पूर्ण-समय की सेविका के रूप में उनकी समर्पित सेवा ने मुझे उनके साथ मिलकर वह काम करने के लिए प्रेरित किया। वर्ष १९३८ में मैं ने और मेरी दो बहनों ने डलूथ, मिनेसोटा में एक सम्मेलन में बपतिस्मा लेने के द्वारा यहोवा के प्रति अपना समर्पण चिह्नित किया।

वर्ष १९३८ में मेरे हाई स्कूल ख़त्म करने के बाद, माँ ने मुझे एक व्यावसायिक कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि मैं एक पायनियर (कॉलपोर्टर के लिए नया नाम) के रूप में अपने आपको आर्थिक रूप से सँभाल सकूँ। यह अच्छी सलाह साबित हुई, ख़ासकर क्योंकि पिताजी ने हमें छोड़कर जाने का निर्णय कर लिया और इसलिए हमें अपने आपको ख़ुद सँभालना था।

पूर्ण-समय अपना ख़ज़ाना बाँटना

बाद में मैं कैलिफोर्निया आ गयी, और १९४७ में मैं ने सैन फ्रैंसिस्को में पायनियर कार्य शुरू कर दिया। लॉस ऐंजलस में “सभी राष्ट्रों में विस्तार” सम्मेलन के लिए तैयारी कार्य करते समय मेरी मुलाक़ात फ्रांसिस मालास्पीना से हुई। मिशनरी कार्य के हमारे समान लक्ष्य के कारण एक प्रेममय सम्बन्ध शुरू हुआ। हमारा विवाह १९४९ में हुआ।

सितम्बर १९५१ में, फ्रांसिस और मुझे गिलियड की १८वीं क्लास के लिए आमंत्रण मिला। पाँच महीने के गहन प्रशिक्षण के बाद, फरवरी १०, १९५२ में स्नातक दिन पर, जिन देशों में हमें भेजा जाना था उनके नाम स्कूल के अध्यक्ष, नेथन एच. नॉर द्वारा वर्णानुक्रम से पढ़े गए। जब उसने कहा, “इटली, भाई और बहन मालास्पीना,” हम तभी से अपने मन में सफ़र कर रहे थे!

कुछ सप्ताह बाद, हम न्यू यॉर्क से जेनोवा, इटली की दस-दिन लम्बी यात्रा के लिए जहाज़ पर चढ़े। ब्रुकलिन मुख्यालय के कर्मचारी जोवानी डचेका और मैक्स लारसन डॉक पर हमें अलविदा कहने आए। जेनोवा में जहाज़ से उतरने पर मिशनरियों ने हमारा स्वागत किया जो देश में प्रवेश करने की जटिल कार्य-विधि से परिचित थे।

हमारे चारों ओर की सभी चीज़ों से उत्तेजित, हम बोलोयना जानेवाली एक ट्रेन पर चढ़े। वहाँ पहुँचने पर हम ने देखा कि वह शहर दूसरे विश्‍व युद्ध की गोलाबारी के कारण अभी तक बुरी हालत में था। लेकिन अनेक सुखद चीज़ें भी थीं, जैसे भुनती हुई कॉफ़ी की मनभावन महक जो सुबह की हवा को भर देती थी और अनगिनत क़िस्म के पास्टा के लिए तैयार की जा रही मज़ेदार चटनियों की मसालेदार सुगंध।

एक लक्ष्य पूरा करना

हम ने एक रटी हुई प्रस्तुति के साथ सेवकाई शुरू की, और हम प्रस्तुति को तब तक दोहराते रहते जब तक कि संदेश को स्वीकार नहीं कर लिया जाता या दरवाज़ा बन्द नहीं कर दिया जाता था। अपने आपको व्यक्‍त करने की चाह ने हमें वह भाषा मेहनत से सीखने के लिए प्रेरित किया। चार महीने बाद, हमारी नियुक्‍ति नेपलस्‌ में एक नए मिशनरी घर में हुई।

यह बड़ा शहर अपने सुंदर नज़ारों के लिए विख्यात है। हम ने वहाँ अपनी सेवा का आनन्द लिया, लेकिन और चार महीने बाद, मेरे पति को सर्किट, या सफ़री कार्य के लिए नियुक्‍त किया गया, जिसमें रोम से लेकर सिसिली तक के क्षेत्र की कलीसियाओं को भेंट करना था। कुछ समय बाद, हम ने माल्टा और उत्तरी अफ्रीका में लिबिया में भी भेंट की।

उन वर्षों में नेपलस्‌ से सिसिली के ट्रेन सफ़र शारीरिक सहन-शक्‍ति की एक परीक्षा थे। हम एक खचाखच-भरी ट्रेन में चढ़ते और आने-जाने के भरे हुए रास्ते में खड़े हो जाते, कभी-कभी तो छः से आठ घंटे तक खड़े रहते। लेकिन, इससे हमें अपने चारों ओर के लोगों का अध्ययन करने का उत्तम अवसर मिला। कई बार घर की बनी दाखरस की बड़ी बोतल उसके मालिक के लिए सीट का काम करती, जो लम्बे सफ़र के दौरान अपनी प्यास बुझाने के लिए समय-समय पर उस में से दाखरस निकाल कर पी लेता। मिलनसार यात्री अकसर अपनी रोटी और सलामी हमारे साथ बाँट कर खाने का प्रस्ताव रखते, एक ऐसा सत्कारशील, हृदयस्पर्शी व्यवहार जिसकी हम ने क़दर की।

सिसिली में हमें भाई मिलते जो हमारे सूटकेस उठाकर पहाड़ के ऊपर कलीसिया तक साढ़े-तीन घंटे निरन्तर चढ़ते। हमारे मसीही भाइयों का स्नेही स्वागत हमें हमारी थकान भुला देता। कभी-कभी हम अचूक खच्चरों पर सवारी करते, लेकिन हम ने कभी-भी नीचे गहरी खाई को नहीं देखा जिसमें खच्चर के एक भी ग़लत क़दम से हम गिर जाते। हमारे भाइयों की कठिनाइयों के बावजूद बाइबल सत्य के लिए उनकी दृढ़ स्थिति ने हमें शक्‍ति दी, और जो प्रेम हमें दिखाया जाता था उसके कारण हम उनके साथ रहने के लिए आभारी थे।

माल्टा और लिबिया

सिसिली में अपने भाइयों की यादों से उमड़ते हुए, हम माल्टा के लिए रवाना हुए। प्रेरित पौलुस ने वहाँ कृपालु लोग पाए थे, और हम ने भी वैसा ही पाया। सेंट पॉल की खाड़ी में आए एक तूफ़ान से हमें उस ख़तरे का एहसास हुआ जिसका सामना पहली शताब्दी में छोटे जहाज़ों को करना पड़ता था। (प्रेरितों २७:३९-२८:१०) फिर हमें लिबिया जाना था। हम इस अफ्रीकी देश में कितने सफल होते जहाँ हमारे कार्य पर प्रतिबंध लगा हुआ था?

एक बार फिर हमें बिल्कुल भिन्‍न संस्कृति मिली। जब हम ट्रिपोली शहर के बाज़ार क्षेत्र की खंभे-लगी सड़कों पर चल रहे थे तो शहर के दृश्‍यों और आवाज़ों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। दिन के समय सहारा रेगिस्तान की तपती धूप से और रात की ठंडक से अपने आपको बचाने के लिए पुरुष ऊँट के बाल से बुने कपड़े पहनते थे। लोग जहाँ रहते हैं वहाँ के मौसम के अनुसार वे कैसे अपने आपको ढाल लेते हैं इस बात को हम ने समझना और इसका आदर करना सीखा।

भाइयों के सतर्क जोश ने हमें यहोवा पर पूरी तरह भरोसा रखने और जिनको ऐसी परिस्थितियों में प्रचार करने के बारे में ज़्यादा ज्ञान है उनके निर्देशों का पालन करने के बारे में काफ़ी कुछ सिखाया। हमारे मसीही भाई अनेक राष्ट्रीयताओं से थे; फिर भी वे यहोवा की अपनी सेवा में एकता से कार्य करते थे।

एक नयी कार्य-नियुक्‍ति

हमारे प्रचार कार्य के प्रति विरोध के कारण हमें इटली को छोड़ना पड़ा, लेकिन हम ने १९५७ में ख़ुशी से ब्राज़ील में एक नयी प्रचार नियुक्‍ति स्वीकार की। फ्रांसिस और मैं ने अपने आपको वहाँ के जीवन और प्रथाओं के अनुकूल बनाया, और आठ महीने बाद फ्रांसिस को सर्किट कार्य करने का आमंत्रण मिला। हम ने बस से, हवाई जहाज़ से, और पैदल सफ़र किया। इस विशाल, सुन्दर देश में सफ़र करना मानो भूगोल का पाठ पढ़ना था।

हमारी पहली सर्किट में साओ पाउलो शहर की दस कलीसियाएँ, साथ ही साओ पाउलो राज्य के भीतरी भाग में और दक्षिणी तटीय क्षेत्र से लगे दस छोटे नगर शामिल थे। उस समय उन नगरों में कोई कलीसिया नहीं थी। हम रहने के लिए एक स्थान ढूँढते, और फिर व्यवस्थित होने के बाद हम राज्य संदेश के साथ घर-घर जाते। हम वॉच टावर संस्था की एक शैक्षिक फ़िल्म दिखायी जाने के लिए आमंत्रण-पत्र भी देते।

फ़िल्म, प्रोजेक्टर, ट्रान्सफ़ॉर्मर, फ़ाइलें, साहित्य, आमंत्रण-पत्र, और फ़िल्म दिखायी जाने के स्थान का आमंत्रण-पत्रों पर हाथ से ठप्पा लगाने का उपकरण लेकर बस में चढ़ना आसान कार्य नहीं था। तुलना करें तो हमारे कपड़ों का छोटा सूटकेस बड़ा सामान नहीं था। प्रोजेक्टर को अपनी गोद में रखना पड़ता था ताकि ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर सफ़र करते समय वह हिल-हिल कर टूट न जाए।

फ़िल्म दिखाने के लिए एक स्थान ढूँढने के बाद, हम दर-दर जाकर फ़िल्म दिखाने के आमंत्रण-पत्र देते। कभी-कभी हम किसी रेस्तोरां या होटल में फ़िल्म दिखाने की अनुमति ले लेते। अन्य समय हम खुली हवा में दो खंभों के बीच एक चादर बान्ध देते। क़दरदान दर्शक, जिनमें से अनेकों ने कभी चलचित्र नहीं देखा था, खड़े होकर ध्यान से सुनते जब फ्रांसिस वृत्तांत पढ़ता। उसके बाद, हम बाइबल साहित्य वितरित करते।

गाँवों तक पहुँचने के लिए हम बस से सफ़र करते थे। कुछ नदियों पर पुल नहीं बंधे थे, इस कारण बस को एक बड़े-से बेड़े पर रखकर दूसरी ओर पार कराया जाता। हमें सलाह दी जाती कि बस से उतर जाएँ और यदि हम बस को नदी में सरकते हुए देखें तो डूबने से बचने के लिए बेड़े की दूसरी ओर कूद जाएँ। शुक्र है कि हमारी कोई भी बस पानी में नहीं गिरी—यह एक अच्छी बात थी, ख़ासकर इसलिए कि वह नदी मांसाहारी पिरान्हा मछली के लिए प्रसिद्ध थी!

वर्ष १९५८ में न्यू यॉर्क में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में उपस्थित होने के बाद, हम ब्राज़ील लौटे, जहाँ हम जल्द ही फिर से सफ़री कार्य में लग गए। हमारा ज़िला कार्य हमें दक्षिण में युरुग्वे की सीमा तक, पश्‍चिम में पराग्वे, उत्तर में परनामब्यूको राज्य, और ब्राज़िल के पूर्वी ओर अटलांटिक महासागर तक ले गया।

कोढ़ियों की बस्ती

दशक १९६० के मध्य में, हम ने कोढ़ियों की एक बस्ती में संस्था की एक फ़िल्म दिखाने का आमंत्रण स्वीकार किया। मुझे यह मानना पड़ेगा कि मैं थोड़ी चिन्तित थी। कोढ़ के बारे में हम ने बाइबल से जो पढ़ा था उसके अलावा हमारे पास उसका कोई ज्ञान नहीं था। अहाते में पहुँचने पर, जो सफ़ेद रंग से रंगा हुआ था, हमें एक बड़े हॉल की ओर निर्दिष्ट किया गया। बीच में एक हिस्सा रस्सियाँ लगाकर हमारे और हमारे सामान के लिए अलग किया गया था।

वह बिजलीवाला जो हमारी मदद कर रहा था उस बस्ती में ४०-वर्ष का निवासी था। उसके हाथ और शरीर के कुछ अन्य अंग भी पूरी तरह ख़त्म हो गए थे, जिसके कारण वह बुरी तरह विकृत हो गया था। पहले-पहल तो मैं चौंक गयी, लेकिन फिर उसके हँसमुख स्वभाव और अपना कार्य करने के उसके कौशल ने मुझे तनाव-मुक्‍त कर दिया। जल्द ही हम ज़रूरी तैयारियों को पूरा करते समय अनेक चीज़ों के बारे में बातचीत कर रहे थे। उस संस्था में रह रहे एक हज़ार पीड़ित लोगों में से दो सौ से ज़्यादा लोग उपस्थित हुए। जब वे लंगड़ाते हुए आ रहे थे, तो जिस बीमारी से वे पीड़ित थे हम ने उसकी भिन्‍न अवस्थाओं को नोट किया। हमारे लिए कितना हृदयस्पर्शी, भावात्मक अनुभव!

हम ने याद किया कि यीशु ने उस कोढ़ी से क्या कहा जिसने बिनती की, “हे प्रभु यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” उस मनुष्य को छूते हुए, यीशु ने उसे आश्‍वासन दिया, “मैं चाहता हूं, तू शुद्ध हो जा।” (मत्ती ८:२, ३) कार्यक्रम समाप्त होने के बाद, अनेक लोग वहाँ आने के लिए हमारा धन्यवाद करने हमारे पास आए, उनके क्षतिग्रस्त शरीर मानवजाति की अत्यधिक पीड़ा की स्पष्ट गवाही थे। बाद में, स्थानीय गवाहों ने उन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया जो ज़्यादा सीखने के इच्छुक थे।

वर्ष १९६७ में हम कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए अमरीका लौट आए। जब हम इन स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में लगे हुए थे, हमें फिर से सर्किट कार्य में सेवा करने का विशेषाधिकार मिला। अगले २० वर्षों तक, मैं ने अमरीका में फ्रांसिस के साथ सफ़री कार्य में हिस्सा लिया। इस दौरान उस ने राज्य सेवकाई स्कूल में भी पढ़ाया।

एक प्रेममय पति और वफ़ादार साथी का होना, जो उसे दी गयी किसी भी नियुक्‍ति को पूरा करता था, मेरे लिए प्रोत्साहन का क्या ही स्रोत था! साथ मिलकर हमें चार महाद्वीपों के कुछ भागों में बाइबल सत्य का ख़ज़ाना बाँटने का विशेषाधिकार मिला।

ख़ज़ाने के द्वारा क़ायम

वर्ष १९५० में माँ ने एक विश्‍वासी भाई, डेविड ईस्टर से विवाह किया, जिसका बपतिस्मा १९२४ में हुआ था। उन्होंने साथ मिलकर बहुत वर्ष पूर्ण-समय की सेवकाई की। लेकिन, माँ के जीवन के अन्तिम वर्षों में एल्ज़ाइमरस्‌ रोग के लक्षण दिखने लगे। उन्हें काफ़ी देख-रेख की ज़रूरत थी क्योंकि बीमारी के कारण उनकी तर्क-क्षमता कम हो गयी थी। मेरी सहारा-देनवाली बहनों ने और डेविड ने उनकी देख-रेख करने की भारी ज़िम्मेदारी उठायी, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि हम पूर्ण-समय की सेवा के अपने ख़ास विशेषाधिकारों को त्यागें। वर्ष १९८७ में माँ की मृत्यु तक उनके विश्‍वासी उदाहरण ने हमें अपना जीवन-मार्ग तय करने में मदद दी, और उन्हें प्रिय स्वर्गीय प्रतिफल की आशा से हमें सांत्वना मिली।

वर्ष १९८९ तक, मैं देख सकती थी कि फ्रांसिस अब उतना फुर्तीला नहीं था जितना कि वह पहले हुआ करता था। हमें पता नहीं था कि संसार के अनेक भागों में जाने-माने रोग, स्नेल ज्वर का हानिकर प्रभाव हो रहा था। वर्ष १९९० में इस रोग ने उस पर विजय पा ली, और मैं ने अपना प्रिय साथी खो दिया जिसके साथ मैं ने यहोवा की सेवा में ४० वर्ष से ज़्यादा समय बिताया था।

समायोजन जीवन का एक हिस्सा हैं। कुछ आसान होते हैं, और कुछ मुश्‍किल। लेकिन बाइबल सत्य का अनमोल ख़ज़ाना देनेवाले, यहोवा ने मुझे अपने संगठन और मेरे परिवार के प्रेम और प्रोत्साहन के द्वारा क़ायम रखा। मैं अभी भी संतुष्टि प्राप्त कर रही हूँ क्योंकि मैं यहोवा की सभी अचूक प्रतिज्ञाओं की पूर्ति की उत्सुकता से प्रत्याशा करती हूँ।

[पेज 23 पर तसवीर]

जब मैं और मेरे पति इटली में मिशनरी थे

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