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पाठकों के प्रश्‍न

इब्रानियों ४:१५, १६ में उल्लिखित, यीशु मसीह की महायाजकीय सेवाओं के लाभ अब ‘अन्य भेड़ों’ पर कैसे लागू होते हैं?

हालाँकि महायाजक के रूप में यीशु की भूमिका की प्राथमिक महत्ता उनके लिए है जो उसके साथ स्वर्ग में होंगे, पार्थिव आशा रखनेवाले मसीही अब भी यीशु की याजकीय सेवाओं से लाभ उठाते हैं।

आदम के समय से मनुष्य पाप से दबे हुए हैं। हम वंशागत अपरिपूर्णता से पीड़ित हैं, जैसे इस्राएली भी थे। उन्होंने महायाजकों और सह-याजकों के एक लम्बे वंशक्रम को अपनाया, जिन्होंने अपने ख़ुद के और साथ ही लोगों के पापों के लिए बलिदान चढ़ाए। समय आने पर, यीशु को “मल्कीसेदेक की रीति” के अनुसार याजक के तौर पर अभिषिक्‍त किया गया। पुनरुत्थित होने के बाद, यीशु अपने परिपूर्ण मानवी बलिदान के मूल्य को पेश करने के लिए यहोवा के सामने प्रकट हुआ।—भजन ११०:१, ४.

आज हमारे लिए इसका क्या अर्थ है? इब्रानियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस ने महायाजक के रूप में यीशु की सेवा की चर्चा की। इब्रानियों ५:१ में हम पढ़ते हैं: “हर एक महायाजक मनुष्यों में से लिया जाता है, और मनुष्यों ही के लिये उन बातों के विषय में जो परमेश्‍वर से सम्बन्ध रखती हैं, ठहराया जाता है; कि भेंट और पाप बलि चढ़ाया करे।” फिर, आयत ५ और ६ में पौलुस ने दिखाया कि यीशु एक महायाजक बना, जिसके कारण हमें लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

वह कैसे? पौलुस ने लिखा: “पुत्र होने पर भी, उस ने दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी। और सिद्ध बनकर, अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिये सदा काल के उद्धार का कारण हो गया।” (इब्रानियों ५:८, ९) पहले-पहल, इस आयत से हमारे मन में शायद यह विचार आए कि हम नए संसार में लाभ कैसे उठा सकेंगे, जब परमेश्‍वर और यीशु के प्रति निष्ठावान लोगों की पापमय अवस्था को निकाला जाएगा और वे अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे। यह यीशु के बलिदान के मुक्‍तिप्रद मूल्य और महायाजक के रूप में उसकी सेवा पर आधारित एक उचित प्रत्याशा है।

दरअसल, महायाजक के रूप में उसकी भूमिका या सेवा से हम अभी-भी लाभ उठा सकते हैं। इब्रानियों ४:१५, १६ पर ध्यान दीजिए: “हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। इसलिये आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्‍यकता के समय हमारी सहायता करे।” यह ‘आवश्‍यकता का समय’ कब होता? जब हमें दया और अनुग्रह की ज़रूरत होती है। अपनी अपरिपूर्णता के कारण, हम सभी को इस ज़रूरत को अभी महसूस करना चाहिए।

इब्रानियों ४:१५, १६ इस बात पर भी ज़ोर देता है कि यीशु—जो स्वर्ग में अब एक याजक है—एक मनुष्य भी रह चुका है, इसलिए वह तदनुभूतिशील हो सकता है। किसके प्रति? हमारे प्रति। कब? अभी। जब यीशु एक मनुष्य था, तब उसने तनावों और दबावों का अनुभव किया जो मनुष्यों के लिए सामान्य हैं। कभी-कभी, यीशु भूखा और प्यासा था। और परिपूर्ण होने के बावजूद, वह थक जाता था। इससे हमें पुनःआश्‍वस्त होना चाहिए। क्यों? क्योंकि यीशु ने स्वाभाविक थकावट का अनुभव किया, वह इस बात से अवगत है कि हम अकसर कैसा महसूस करते हैं। यह भी याद कीजिए कि यीशु को अपने प्रेरितों के बीच हुए ईर्ष्यालु झगड़ों का सामना करना पड़ा था। (मरकुस ९:३३-३७; लूका २२:२४) जी हाँ, वह निराश हुआ था। क्या इससे हमें विश्‍वस्त नहीं होना चाहिए कि जब हम निराश, या निरुत्साहित हो जाते हैं तो वह हमें समझता है? निश्‍चित ही, हम विश्‍वस्त हो सकते हैं।

जब आप निरुत्साहित हैं, तब आप क्या कर सकते हैं? क्या पौलुस ने कहा कि आपको तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा जब तक नए संसार में आपका महायाजक, यीशु तन और मन से परिपूर्ण होने में आपकी मदद नहीं करता? नहीं। पौलुस ने कहा: “हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्‍यकता के समय हमारी सहायता करे,” और उसमें वर्तमान भी शामिल है। इसके अतिरिक्‍त, जब यीशु एक मनुष्य था, उसने दुःख-तकलीफ़ों का अनुभव किया, और ‘सब बातों में हमारी नाईं परखा गया।’ सो हमारे द्वारा अनुभव की जा रही बातों के बारे में उसकी समझ के आधार पर वह हमारी मदद करने को तैयार है। क्या यह आपको उसकी ओर आकर्षित नहीं करता?

अब आयत १६ पर ध्यान दीजिए। पौलुस कहता है कि हम—और इसमें दोनों, अभिषिक्‍त और अन्य भेड़ के लोग शामिल हैं—हियाव बान्धकर परमेश्‍वर के पास जा सकते हैं। (यूहन्‍ना १०:१६) उस प्रेरित का यह अर्थ नहीं था कि हम प्रार्थना में जो चाहे वह बोल सकते हैं, यहाँ तक कि गुस्से से भरी, श्रद्धाहीन बातें भी। इसके बजाय, हमारे पापी होने के बावजूद यीशु के बलिदान और महायाजक के रूप में उसकी भूमिका के आधार पर, हम परमेश्‍वर के पास जा सकते हैं।

हमारे पापों, या ग़लतियों के सम्बन्ध में एक और तरीक़ा है जिससे हम अपने महायाजक, यीशु मसीह की सेवाओं से अब भी लाभ उठा सकते हैं। निश्‍चय ही हम यह अपेक्षा नहीं करते कि वर्तमान व्यवस्था में यीशु हम पर अपने बलिदान के पूरे मूल्य को लागू करेगा। अगर वह ऐसा करे, फिर भी हमें अनन्तकाल का जीवन नहीं मिलेगा। क्या आपको लूका ५:१८-२६ में अभिलिखित घटना याद है, जिसमें एक लकवा मारा हुआ व्यक्‍ति शामिल था, जिसकी खाट छत के रास्ते नीचे उतारी गयी थी? यीशु ने उससे कहा: “हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।” इसका अर्थ यह नहीं था कि कुछ विशिष्ट पाप थे जिनके कारण उसे लकवा मारा था। उसका अर्थ रहा होगा सामान्यतः उसके पाप, और इसमें कुछ हद तक उसकी वंशागत अपरिपूर्णता भी शामिल रही होगी जिसके कारण तकलीफ़ें होती हैं।

उस बलिदान पर आधारित जो यीशु देता, वह उस मनुष्य के पाप ले जा सकता था, जैसे अजाजेल का बकरा प्रायश्‍चित्त के दिन में इस्राएल के पापों को ले जाता था। (लैव्यव्यवस्था १६:७-१०) फिर भी, वह लकवा मारा हुआ व्यक्‍ति एक मनुष्य ही था। वह फिर पाप करता, और आख़िरकार वह मर गया, जैसे पापियों के लिए ज़रूरी है। (रोमियों ५:१२: ६:२३) यीशु ने जो कहा उसका अर्थ यह नहीं था कि उस मनुष्य को फ़ौरन अनन्त जीवन मिल गया। लेकिन उस व्यक्‍ति को उस समय कुछ हद तक क्षमा की आशिष दी गयी।

अब हमारी परिस्थिति पर ग़ौर कीजिए। अपरिपूर्ण होने के नाते, हम रोज़ ग़लतियाँ करते हैं। (याकूब ३:२) हम इसके बारे में क्या कर सकते हैं? स्वर्ग में हमारे लिए एक दयालु महायाजक है जिसके द्वारा हम यहोवा के पास प्रार्थना में जा सकते हैं। जी हाँ, जैसे पौलुस ने लिखा, हम सभी ‘अनुग्रह के [परमेश्‍वर के] सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर जा सकते हैं, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्‍यकता के समय हमारी सहायता करे।’ परिणामस्वरूप, अन्य भेड़ के सभी लोग मसीह की महायाजकीय सेवाओं से अद्‌भुत लाभों को निश्‍चय ही प्राप्त कर रहे हैं, जिसमें एक साफ़ अंतःकरण भी शामिल है।

पार्थिव आशा रखनेवाले सभी मसीही आनेवाले नए संसार में ज़्यादा बड़े लाभों का इंतज़ार कर सकते हैं। तब हमारा स्वर्गीय महायाजक अपने बलिदान के मूल्य को पूरी तरह से लागू करेगा, जो पाप की पूरी क्षमा की ओर ले जाएगा। लोगों के शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की देखभाल करने के द्वारा वह और बड़े लाभों को भी प्रदान करेगा। और यीशु पृथ्वी पर परमेश्‍वर के लोगों के शिक्षण के काम को बड़े पैमाने पर विस्तृत करेगा, क्योंकि व्यवस्था का सिखाना, इस्राएल में याजकों की मुख्य ज़िम्मेदारी थी। (लैव्यव्यवस्था १०:८-११; व्यवस्थाविवरण २४:८; ३३:८, १०) अतः, जबकि अब हम यीशु की याजकीय सेवाओं से लाभ उठाते हैं, हमारे लिए आगे बहुत कुछ धरा है!

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