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  • स्वतंत्रता की ओर सकरा मार्ग
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
w95 9/1 पेज 5-7

स्वतंत्रता की ओर सकरा मार्ग

विरले ही समझदार लोग इस बात का विरोध करते हैं कि यह विश्‍व प्राकृतिक नियमों द्वारा नियंत्रित है। ये नियम छोटे परमाणुओं से लेकर खरबों तारोंवाली विशाल मंदाकिनियों तक हरेक चीज़ पर नियंत्रण रखते हैं। अगर प्राकृतिक नियम न होते, तो कोई योजना और कोई समझ नहीं होती; स्वयं जीवन अस्तित्व में नहीं रह पाता। प्राकृतिक नियमों को समझने के द्वारा और उनके सामंजस्य में कार्य करने के द्वारा, मनुष्य आश्‍चर्यजनक कार्य करने में समर्थ हो सका है, जैसे कि चंद्रमा पर चलना और पृथ्वी पर किसी भी स्थान से या यहाँ तक कि पृथ्वी के वायुमण्डल से परे किसी स्थान से, हमारे घरों में टी.वी. के पर्दों पर रंगीन चित्र प्रसारित करना।

लेकिन नैतिक नियमों के बारे में क्या? क्या उनको मानना भी उतना ही लाभप्रद और फलदायक है? ऐसा लगता है कि अनेकों लोग महसूस करते हैं कि कोई नैतिक नियम नहीं हैं और वे एक अनुज्ञात्मक धारणा या धर्म चुनते हैं जो उनकी अपनी अभिलाषाओं पर ठीक बैठता है।

लेकिन, कुछ ऐसे हैं जो दूसरा मार्ग चुनते हैं, वह ‘सकरा मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है’ जैसे बाइबल में दिया गया है। हमें चकित नहीं होना चाहिए कि इसे सिर्फ़ कुछ ही लोग चुनते हैं, क्योंकि यीशु ने सकरे मार्ग के बारे में कहा: “थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।” (मत्ती ७:१४) सिर्फ़ थोड़े ही क्यों?

क्योंकि यह सकरा मार्ग परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धान्तों द्वारा प्रतिबंधित है। यह सिर्फ़ ऐसे व्यक्‍ति को आकर्षक लगता जो अपने जीवन को परमेश्‍वर के दर्जों के अनुरूप करने की सच्ची इच्छा रखता है। चौड़े मार्ग के बिलकुल विपरीत, जो स्वतंत्रता का भ्रम तो देता है लेकिन असल में दास बनाता है, सकरा मार्ग जो प्रतिबंधक प्रतीत होता है, एक व्यक्‍ति को हर महत्त्वपूर्ण तरीक़े से स्वतंत्र कर देता है। इसकी सीमाएँ “स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था” द्वारा नियत की गयी हैं।—याकूब १:२५.

सकरा मार्ग कैसे छुटकारा देता है

सच है, सकरे मार्ग पर रहना हमेशा आसान नहीं होता। हर जीवित मानव अपरिपूर्ण है और ग़लत कार्य की ओर उसका वंशागत झुकाव होता है। सो एक व्यक्‍ति शायद थोड़ा भटकने की ओर प्रवृत्त हो। फिर भी, ‘सकरे मार्ग’ पर चलते रहने के लाभ किसी भी आवश्‍यक आत्म-अनुशासन या समायोजन के योग्य हैं, क्योंकि परमेश्‍वर ‘हमें हमारे लाभ के लिये शिक्षा देता है।’—यशायाह ४८:१७; रोमियों ३:२३.

उदाहरण के लिए: बुद्धिमान माता-पिता अपने बच्चों के लिए भोजन-सम्बन्धी ‘सकरा मार्ग’ तैयार करते हैं। इसका कभी-कभी अर्थ है कि भोजन के समय सख़्त होना। लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, वे अपने माता-पिता के प्रेमपूर्ण अनुशासन की क़दर करेंगे। वयस्कों के तौर पर, उन्होंने स्वास्थ्यकर भोजन के लिए स्वाद विकसित किया होगा। और उपलब्ध पौष्टिक भोजन की अत्यधिक विविधता के कारण वे कभी प्रतिबंधित महसूस नहीं करेंगे।

आध्यात्मिक तरीक़े से, परमेश्‍वर उन लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करता है जो जीवन की ओर ले जानेवाले सकरे मार्ग पर हैं। वह नम्र जनों में हितकर इच्छाओं को विकसित करता है जो ख़ुशी और सच्ची स्वतंत्रता की ओर ले जाती हैं। वह ऐसा अपना वचन, बाइबल प्रदान करने के द्वारा करता है। इसके अतिरिक्‍त, वह हमें आमंत्रण देता है कि हमारी मदद करने के वास्ते उसकी आत्मा के लिए प्रार्थना करें, और वह हमें आज्ञा देता है कि संगी मसीहियों के साथ संगति करें, जो हमें सकरे पथ पर बने रहने के लिए प्रोत्साहन दे सकते हैं। (इब्रानियों १०:२४, २५) जी हाँ, परमेश्‍वर प्रेम है, और यह सर्वश्रेष्ठ गुण उसके हेतुओं और उसके सभी तरीक़ों का एक आधार है।—१ यूहन्‍ना ४:८.

जब प्रेम, मेल, भलाई, आत्मसंयम और परमेश्‍वर की आत्मा के अन्य फल प्रचुर होते हैं, तब सकरा मार्ग प्रतिबंधक नहीं लगता। जैसे शास्त्रवचन कहता है, “ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।” (गलतियों ५:२२, २३) “जहां कहीं प्रभु [यहोवा] का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।” (२ कुरिन्थियों ३:१७) अब भी, सच्चे मसीही इस स्वतंत्रता का स्वाद ले रहे हैं। वे ऐसे क़िस्म के भय से स्वतंत्र हैं जिनसे आज लोग पीड़ित हैं, जैसे कि भविष्य का भय और मौत का अन्धविश्‍वासी भय। उस भविष्य पर विचार करना कितना रोमांचकारी है जब “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है”! (यशायाह ११:९) उसके बाद, अपराध का भी भय नहीं रहेगा। ताले और सलाखें हमेशा के लिए ग़ायब हो जाएँगे। सभी लोग रात-दिन, घर में और घर के बाहर भी स्वतंत्र और सुरक्षित महसूस करेंगे। वह वाक़ई स्वतंत्रता होगी!

हमें परमेश्‍वर की मदद का आश्‍वासन दिया गया है

सच है, परमेश्‍वर के दर्जों के अनुरूप जीने में प्रयास लगता है, फिर भी अपरिपूर्ण मनुष्यों के लिए भी “उस की आज्ञाएं कठिन नहीं” हैं। (१ यूहन्‍ना ५:३) जब हम सकरे रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं और उस पर चलने के लाभों को महसूस करते हैं, हम उन कार्यों और सोच-विचार के लिए अधिकाधिक नापसंदगी विकसित करते हैं जो चौड़े मार्ग पर चलनेवालों की विशेषता है। (भजन ९७:१०) परमेश्‍वर के नियम को मानना हमारे परमेश्‍वर-प्रदत्त अंतःकरण को अच्छा लगता है। उस “खेदित हृदय” और “टूटे मन” के बजाय जो अनेक लोगों की विशेषता है, परमेश्‍वर प्रतिज्ञा करता है: “देखो, मेरे दास हर्षित मन से जयजयकार करेंगे।” जी हाँ, यहोवा द्वारा प्रशिक्षित हृदय हर्षित और स्वतंत्र होता है।—यशायाह ६५:१४, NHT.

यीशु हमारे लिए सच्ची स्वतंत्रता संभव करने के लिए मरा। बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्‍ना ३:१६) अब, परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य के राजा के तौर पर, यीशु उस बलिदान के लाभों को लागू कर रहा है। जल्द ही, “बड़े क्लेश” के बाद, जब चौड़े मार्ग और उस पर चल रहे लोगों का अन्त होगा, वह धैर्य से आज्ञाकारी मानवजाति का, बाक़ी के सकरे रास्ते पर उसके अन्त तक, अर्थात्‌ मानव परिपूर्णता तक पथप्रदर्शन करना शुरू करेगा। (प्रकाशितवाक्य ७:१४-१७; मत्ती २४:२१, २९-३१) आख़िरकार हम इस भव्य प्रतिज्ञा की पूर्ति का अनुभव करेंगे: “सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्‍वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।” इस परमेश्‍वर-प्रदत्त स्वतंत्रता को मात नहीं दी जा सकती है। मृत्यु को भी निकाल दिया जाएगा।—रोमियों ८:२१; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

स्पष्ट रूप से यह देखने और समझने के द्वारा कि एक सकरा मार्ग कहाँ ले जाता है, एक व्यक्‍ति अपना पथ चुनने और उस पर चलते रहने के लिए बेहतर तरीक़े से समर्थ होता है। युवाओं को विशेषकर मदद दी जाती है कि वे अदूरदर्शी न हों और वे जिन्हें परमेश्‍वर के दर्जों द्वारा लादे गए प्रतिबंध समझते हैं उन पर खीजे नहीं। वे इन्हें परमेश्‍वर के प्रेम के सबूत और चौड़े मार्ग की बुराइयों से एक आड़ के रूप में देखना सीखते हैं। (इब्रानियों १२:५, ६) निःसंदेह, एक व्यक्‍ति को धैर्यवान होने की ज़रूरत है, उसे यह याद रखना है कि ईश्‍वरीय गुणों और इच्छाओं को विकसित करने के लिए वक़्त लगता है, ठीक जैसे एक फलवाले वृक्ष को फल देने के लिए वक़्त लगता है। लेकिन अगर उसका पोषण किया जाए और उसे पानी दिया जाए तो वह वृक्ष ज़रूर फल देगा।

इसलिए, परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन कीजिए, अन्य मसीहियों के साथ संगति कीजिए, और पवित्र आत्मा के लिए “निरन्तर प्रार्थना में लगे” रहिए। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७) आपको ‘अपने लिए सीधा मार्ग निकालने’ में मदद देने के लिए परमेश्‍वर पर भरोसा रखिए। (नीतिवचन ३:५, ६) लेकिन क्या यह सबकुछ व्यावहारिक है? क्या यह असल में प्रभावकारी है? जी हाँ, यह टॉम के लिए और मेरी के लिए प्रभावकारी था, जिनका ज़िक्र पिछले लेख में किया गया था।

उन्होंने चौड़े मार्ग पर चलना छोड़ दिया

टॉम लिखता है: “सत्तरादि में हम यहोवा के साक्षियों के संपर्क में आए, जब उनमें से एक हमारे घर पर आया। वह चर्चा बाइबल के अध्ययन की ओर ले गयी। धीरे-धीरे मैं ने अपने जीवन को स्वच्छ करना शुरू किया। मेरा बपतिस्मा १९८२ में हुआ और अब मैं स्थानीय कलीसिया में सेवा कर रहा हूँ। हमारा बेटा भी अब बपतिस्मा ले चुका है। मैं अपनी पत्नी का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मेरे सत्य सीखने से पहले इतने सालों तक मेरे साथ धीरज से काम लिया। और सबसे ज़्यादा मैं यहोवा और उसके पुत्र, मसीह यीशु का, उन्होंने हमें जो कुछ दिया है और भविष्य के लिए जो आशा अब हमारे पास है उसके लिए धन्यवाद करता हूँ।”

और मेरी के बारे में क्या? उसने महसूस किया कि परमेश्‍वर उसे कभी क्षमा नहीं करेगा, लेकिन वह अपने बच्चों की ख़ातिर उसके बारे में सीखना चाहती थी। जब उसने सुना कि यहोवा के साक्षी उसके पड़ोसी को बाइबल सिखा रहे थे, तब उसने भी मदद माँगी। लेकिन, उसकी पक्की बुरी आदतों ने प्रगति मुश्‍किल कर दी। अध्ययन में उतार-चढ़ाव आए। लेकिन, उसकी छोटी सात-वर्षीय बेटी उसे प्रोत्साहन देती रही। “हार मत मानिए, माँ। आप सफल हो सकती हैं!” वह कहती। तब मेरी और भी कड़ा प्रयास करती।

जिस पुरुष के साथ वह रहती थी, जो ख़ुद नशीले पदार्थों का दुष्प्रयोग करता था, जब वह घर लौटा तो वह भी अध्ययन में शामिल हो गया। आख़िरकार, दोनों ने अपनी बुरी आदतों पर जय प्राप्त की। उसके बाद, अपनी शादी को वैध करने और बपतिस्मा लेने के बाद, उन्होंने बड़ी ख़ुशी का अनुभव किया और पहली बार असल परिवार की तरह महसूस किया। दुःख की बात है, एड्‌स ने अंततः मेरी की जान ले ली, लेकिन वह पुनरुत्थान और एक ऐसी परादीस पृथ्वी पर जीवन की बाइबल की प्रतिज्ञा को अपने दिल में लिए मरी, जहाँ अहितकर चौड़े मार्ग का कोई नामो-निशान नहीं होगा।

जी हाँ, चौड़े और विशाल मार्ग से, जो विनाश की ओर ले जाता है, हटना संभव है। मसीह यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना १७:३) तो फिर, क्यों न जीवन की ओर ले जानेवाले सकरे पथ पर अपने क़दम रखने का दृढ़संकल्प करें? परमेश्‍वर के वचन से आप जो सीखते हैं उसे स्वीकार करने और उसे लागू करने के द्वारा, आप व्यक्‍तिगत रूप से बाइबल की हृदयस्पर्शी प्रतिज्ञा का अनुभव कर सकते हैं: “[तुम] सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।”—यूहन्‍ना ८:३२.

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