‘हारी हुई आत्मा’ वालों के लिए सांत्वना
आज, शैतान का संसार “सब नैतिक बुद्धि से सुन्न” हो गया है। (इफिसियों ४:१९, NW; १ यूहन्ना ५:१९) परस्त्रीगमन और व्यभिचार सर्वत्र-व्याप्त हैं। अनेक देशों में ५० प्रतिशत या अधिक विवाह तलाक़ में समाप्त होते हैं। समलिंगकामुकता व्यापक रूप से स्वीकार की जाती है। लैंगिक हिंसा—बलात्कार—अकसर समाचार में होता है। अश्लील साहित्य एक अरब-डॉलर का धंधा है।—रोमियों १:२६, २७.
सबसे घिनौनी विकृतियों में से एक है मासूम बच्चों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार। शैतान के संसार की बुद्धि की तरह, बाल लैंगिक दुर्व्यवहार “शारीरिक, और शैतानी” है। (याकूब ३:१५) टाइम (अग्रेज़ी) पत्रिका कहती है, केवल अमरीका ही में हर साल, “४,००,००० से भी ज़्यादा प्रमाणिक लैंगिक हमलों की रिपोर्टों को शिक्षकों और डॉकटरों द्वारा अधिकारियों के पास दर्ज़ करवाया जाता है।” जब इस दुर्व्यवहार के शिकार वयस्क होते हैं, अनेक अब तक दर्दनाक घाव लिए होते हैं, और वे घाव वास्तविक होते हैं! बाइबल कहती है: “रोग में मनुष्य अपनी आत्मा [मानसिक झुकाव, आन्तरिक भावनाएँ और विचारों] से सम्भलता है; परन्तु जब आत्मा हार जाती [घायल, पीड़ित] है तब इसे कौन सह सकता है?”—नीतिवचन १८:१४.
परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सभी क़िस्म के लोगों को आकर्षित करता है, जिनमें ‘खेदित मन के लोग’ और जो ‘उदास’ हैं वे लोग भी शामिल हैं। (यशायाह ६१:१-४) इसमें आश्चर्य नहीं कि, अनेक लोग जिन्हें भावात्मक पीड़ा है, इस निमंत्रण के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं: “जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।” (प्रकाशितवाक्य २२:१७) मसीही कलीसिया ऐसों के लिए सांत्वना का एक स्थान हो सकती है। वे यह सीखकर हर्षित होते हैं कि दुःख जल्द ही एक बीती हुई बात हो जाएगा। (यशायाह ६५:१७) लेकिन, उस समय तक, उन्हें “सांत्वना” (NW) दिए जाने और उनके खेदित मन को ‘शान्ति देने’ की आवश्यकता हो सकती है। पौलुस ने मसीहियों को उपयुक्त सलाह दी: “हताश प्राणों से सांत्वनापूर्वक बोलो, कमज़ोरों को सहारा दो, सब के प्रति सहनशील बनो।”—१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW.
“दमित स्मृतियाँ”
हाल के वर्षों में कुछ लोगों के ‘खेदित मन’ उन कारणों से रहें हैं जिन्हें अन्य लोग समझना कठिन पाते हैं। ये ऐसे वयस्क हैं, जो उन बातों के आधार पर कहते हैं, जिनकी व्याख्या “दमित स्मृतियों” के रूप में की गई है, कि जब वे बच्चे थे तब उनके साथ लैंगिक दुर्व्यवहार किया गया था।a कुछ को भ्रष्ट किए जाने का कोई विचार नहीं था जब तक कि अचानक, उन्हें जब वे छोटे थे तब किसी वयस्क द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने के सजीव दृश्य और “स्मृतियों” का अनुभव नहीं हुआ। क्या मसीही कलीसिया में किसी को ऐसे परेशान करनेवाले विचार आते हैं? हाँ, कुछ देशों में आते हैं, और ये समर्पित जन गहरी वेदना, क्रोध, दोष की भावना, शर्म, या अकेलेपन का अनुभव कर सकते हैं। दाऊद की तरह वे परमेश्वर से दूर महसूस कर सकते हैं और पुकारते हैं: “हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्यों छिपा रहता है?”—भजन १०:१.
इन “स्मृतियों” के अनेक पहलू मानसिक-स्वास्थ्य पेशेवरों को अच्छी तरह समझ में नहीं आए हैं। फिर भी, ऐसी “स्मृतियाँ” समर्पित मसीहियों की अध्यात्मिकता को प्रभावित कर सकती हैं। सो इनसे निपटने के लिए हम विश्वास के साथ परमेश्वर के वचन की ओर मार्गदर्शन के लिए देखते हैं। बाइबल “सब बातों की समझ” प्रदान करती है। (२ तीमुथियुस २:७; ३:१६) यह सभी चिन्तित लोगों को यहोवा पर विश्वास रखने में भी मदद करती है, “जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति [“सांत्वना,” NW] का परमेश्वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति [“सांत्वना,” NW] देता है”—२ कुरिन्थियों १:३, ४.
क्या यह वास्तव में हुआ?
संसार में, इस बात पर काफ़ी विवाद है कि ये “स्मृतियाँ” क्या हैं, और किस हद तक ये उन बातों को दर्शाती हैं जो वास्तव में हुई हैं। यहोवा के साक्षी “संसार के नहीं” हैं और इस विवाद में कोई हिस्सा नहीं लेते। (यूहन्ना १७:१६) प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, कभी-कभी “स्मृतियाँ” सच साबित हुई हैं। उदाहरण के लिए, बीमा समायोजक फ्रैन्क फिट्सपैट्रिक ने एक पादरी द्वारा भ्रष्ट किया जाना “याद किया,” इसके बाद लगभग एक सौ अन्य लोग यह दावा करने आगे आए कि उनके साथ भी इसी पादरी द्वारा दुर्व्यवहार किया गया था। बताया जाता है कि पादरी ने दुर्व्यवहार करना स्वीकृत किया।
फिर भी, यह उल्लेखनीय है कि कई व्यक्ति अपनी “स्मृतियों” की परिपुष्टि करने में असमर्थ रहे हैं। इस प्रकार पीड़ित कुछ लोगों को किसी ख़ास व्यक्ति द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने या किसी निश्चित स्थान पर दुर्व्यवहार किए जाने के सजीव अनुस्मरण हुए हैं। हालाँकि, बाद में, पुष्टियोग्य प्रमाणों ने इसके विपरीत यह स्पष्ट किया कि ये “याद की गई” तफ़सीलें सच नहीं हो सकती थीं।
शरण प्रदान करना
फिर भी, उन को जो ऐसी ‘हारी हुई आत्मा’ का अनुभव करते हैं सांत्वना कैसे दी जा सकती है? यीशु के पड़ोसी-समान सामरी की नीतिकथा याद कीजिए। एक मनुष्य पर डाकुओं द्वारा हमला किया गया, उसे पीटा गया, और उसका सामान लूट लिया गया था। जब वह सामरी वहाँ आया, उसने घायल मनुष्य पर तरस खाया। उसने क्या किया? क्या उसने मार-पीट का सारा विवरण सुनने का आग्रह किया? या उस सामरी ने डाकुओं का हुलिया पूछकर तुरन्त उनका पीछा किया? नहीं। वह मनुष्य घायल था! इसलिए सामरी ने आराम से उसके घावों पर पट्टी बान्धी और प्रेमपूर्वक उसे पास की एक सराय की सुरक्षा में ले गया जहाँ वह ठीक हो सकता था।—लूका १०:३०-३७.
सच है, शारीरिक घावों में और एक वास्तविक बाल लैंगिक दुर्व्यवहार के कारण ‘हारी हुई आत्मा’ के बीच अन्तर है। परन्तु दोनों ही के कारण बड़ा दुःख होता है। अतः, सामरी ने घायल यहूदी के लिए जो किया वह दिखाता है कि एक संगी पीड़ित मसीही की मदद के लिए क्या किया जा सकता है। पहली प्राथमिकता प्रेमपूर्ण सांत्वना देना और उसे ठीक होने में मदद करना है।
इब्लीस ने प्रत्यक्ष रूप से विश्वस्त होते हुए वफ़ादार अय्यूब को पीड़ित किया कि भावात्मक या शारीरिक पीड़ा उसकी खराई को तोड़ देगी। (अय्यूब १:११; २:५) तब से, शैतान ने अकसर दुःख का प्रयोग—चाहे वह सीधे रूप से इसे लाए या नहीं—परमेश्वर के सेवकों का विश्वास कमज़ोर बनाने के लिए किया है। (२ कुरिन्थियों १२:७-९ से तुलना कीजिए।) क्या हम सन्देह कर सकते हैं कि इब्लीस मसीहियों के विश्वास को कमज़ोर करने की कोशिश में अब बाल दुर्व्यवहार का और अनेक वयस्कों की “उदासी” का प्रयोग कर रहा है जिन्होंने इसे सहा (या इसे सहने के बारे में “स्मृतियों” से परेशान हैं)? यीशु की तरह जब शैतान के आक्रमण के अधीन है, एक मसीही जो पीड़ा सहता है लेकिन दृढ़ता के साथ अपनी खराई छोड़ने से इनकार कर देता है वह यह कह रहा है: “हे शैतान दूर हो जा।”—मत्ती ४:१०.
आध्यात्मिक रूप से मज़बूत रहिए
“विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने बाल दुर्व्यवहार द्वारा हुए आध्यात्मिक और भावात्मक आघात से निपटने में मदद देने के लिए जानकारी प्रकाशित की है। (मत्ती २४:४५-४७) अनुभव दिखाता है कि पीड़ित व्यक्ति को मदद मिलती है यदि वह ‘प्रभु और उसके सामर्थ्य की शक्ति में’ भरोसा कर सके, ‘परमेश्वर के सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र’ धारण कर ले। (इफिसियों ६:१०-१७, NHT) इन हथियारों में बाइबल “सत्य” शामिल है, जो शैतान का हमारे मूलभूत शत्रु के रूप में परदाफ़ाश करता है और उस अंधकार को दूर करता है जिसमें उसके समर्थक कार्य करते हैं। (यूहन्ना ३:१९) फिर, “धार्मिकता की झिलम” भी है। पीड़ित व्यक्ति को धर्मी स्तरों को थामे रहने के लिए निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ लोगो में स्वयं को चोट पहुँचाने या अनैतिकता करने के तीव्र आवेग आते हैं। हर बार जब वे इन आवेगों का विरोध करते हैं, वे एक विजय प्राप्त करते हैं!
आध्यात्मिक हथियार में ‘मेल का सुसमाचार’ भी शामिल है। यह बात करनेवाले और सुननेवाले, दोनो को यहोवा के उद्देश्यों के बारे में मज़बूती देता है। (१ तीमुथियुस ४:१६) यदि आपकी ‘हारी हुई आत्मा’ है जिसके कारण सुसमाचार के बारे में बात करना आपके लिए कठिन हो गया है, तो दूसरे मसीही भाई या बहन के साथ जाने की कोशिश कीजिए जब वह यह अनिवार्य कार्य करता है। और “विश्वास की ढाल” को मत भूलिए। विश्वास रखिए कि यहोवा आपसे प्रेम रखता है और कि वह सब कुछ जो आप ने खो दिया है उसे वह फिर से लौटा देगा। निःसन्देह यह विश्वास कीजिए कि यीशु भी आपसे प्रेम रखता है, और उसने इसे आपके लिए मरने के द्वारा दिखाया है। (यूहन्ना ३:१६) शैतान ने हमेशा झूठे तौर पर आरोप लगाया है कि यहोवा अपने सेवकों की परवाह नहीं करता। यह उसका एक और महा, द्वैषपूर्ण झूठ है।—यूहन्ना ८:४४; अय्यूब ४:१, १५-१८; ४२:१०-१५ से तुलना कीजिए।
यदि हृदय की पीड़ा यह मानना कठिन बनाती है कि यहोवा आपकी चिन्ता करता है, तो ऐसे अन्य लोगों के साथ संगति करना आपकी मदद करेगा जो यह दृढ़तापूर्वक विश्वास रखते हैं कि वह चिन्ता करता है। (भजन ११९:१०७, १११; नीतिवचन १८:१; इब्रानियों १०:२३-२५) शैतान को आपसे जीवन के ईनाम को छीनने मत दीजिए। याद रखिए, “उद्धार का टोप” हथियार का हिस्सा है; वैसे ही “आत्मा की तलवार” भी है। बाइबल पवित्र आत्मा द्वारा उत्प्रेरित है, जिसे शैतान हरा नहीं सकता। (२ तीमुथियुस ३:१६; इब्रानियों ४:१२) इसके चंगाई के वचन भावात्मक पीड़ा को कम कर सकते हैं।—भजन १०७:२० से तुलना कीजिए; २ कुरिन्थियों १०:४, ५.
अन्त में, धीरज धरने की शक्ति के लिए लगातार प्रार्थना कीजिए। (रोमियों १२:१२; इफिसियों ६:१८) हार्दिक प्रार्थना ने यीशु को तीव्र भावात्मक व्यथा में संभाले रखा, और यह आपकी भी मदद कर सकती है। (लूका २२:४१-४३) क्या प्रार्थना करना आपके लिए कठिन है? दूसरों को आपके साथ और आपके लिए प्रार्थना करने को कहिए। (कुलुस्सियों १:३; याकूब ५:१४) पवित्र आत्मा आपकी प्रार्थनाओं को सहायता देगी। (रोमियों ८:२६, २७ से तुलना कीजिए।) जैसा एक पीड़ादायक शारीरिक बीमारी के साथ होता है, कुछ गहरे भावात्मक घावोंवाले लोग शायद इस रीति-व्यवस्था में पूर्ण रूप से चंगे न हों। परन्तु यहोवा की सहायता से हम धीरज धर सकते हैं, और धीरज धरना विजय है, जैसे यीशु के सम्बन्ध में था। (यूहन्ना १६:३३) “हे लोगो, हर समय [यहोवा] पर भरोसा रखो; उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्वर हमारा शरणस्थान है।”—भजन ६२:८.
आरोपित दुर्व्यवहारकर्ता का क्या?
एक व्यक्ति जो वास्तव में एक बच्चे के साथ लैंगिक रूप से दुर्व्यवहार करता है वह बलात्कारी है और उसे इसी प्रकार देखा जाना चाहिए। कोई भी जो इस प्रकार शिकार बना हो, वह अपने दुर्व्यवहारकर्ता पर अभियोग लगाने का अधिकार रखता है। तो भी, एक अभियोग जल्दबाज़ी में नहीं लगाया जाना चाहिए, यदि यह केवल दुर्व्यवहार की “दमित स्मृतियों” पर ही आधारित है। इस मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि पीड़ित व्यक्ति कुछ हद तक भावात्मक स्थिरता प्राप्त करे। कुछ समय के बीत जाने पर, वह इन “स्मृतियों” को निर्धारित करने और यह फ़ैसला करने की ज़्यादा अच्छी स्थिति में होगा कि वह उनके बारे में कुछ करना भी चाहता है तो वह क्या है।
डॉना के मामले पर विचार कीजिए। बताया जाता है कि उन्हें भोजन अनियमितता की शिकायत थी और वे प्रत्यक्ष रूप से सन्देहपूर्ण योग्यता वाले एक सलाहकार के पास गईं। शीघ्र ही वे अपने पिता पर बलात्कार का दोष लगाने लगीं और उनके पिता को अदालत ले जाया गया। जूरी किसी समझौते पर नहीं पहुँच सकी, इसलिए पिता जेल नहीं गए, लेकिन उन्हें $१,००,००० का अदालती कार्यवाही का ख़र्चा भुगतना पड़ा। इस सबके बाद, डॉना ने अपने माता-पिता को बताया कि वे अब इस पर विश्वास ही नहीं करतीं कि दुर्व्यवहार हुआ भी था!
बुद्धिमानी से, सुलैमान ने कहा: “मुक़दमा करने में शीघ्रता न कर।” (नीतिवचन २५:८, NHT) यदि सन्देह करने का कुछ वैध कारण है कि आरोपित कुकर्मी अब भी बच्चों से दुर्व्यवहार कर रहा है, तो शायद एक चेतावनी दिए जाने की ज़रूरत है। कलीसिया प्राचीन ऐसे मामले में मदद कर सकते हैं। अन्यथा, जल्दबाज़ी मत कीजिए। कुछ समय बाद, आप शायद इस विषय को छोड़ देना चाहें। लेकिन यदि, आप आरोपित कुकर्मी का सामना करना चाहें (पहले यह निर्धारित करने के बाद कि आप संभव प्रतिक्रिया के बारे में कैसा महसूस करेंगे), तो आपको ऐसा करने का अधिकार है।
उस समय के दौरान जब “स्मृतियाँ” अनुभव करनेवाला ठीक हो रहा हो, अटपटी परिस्थितियाँ शायद सामने आएँ। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति उसके द्वारा भ्रष्ट किए जाने के सजीव मानसिक चित्र देख सकता है जिसे वह प्रतिदिन देखता या देखती है। इससे निपटने के लिए कोई नियम स्थापित नहीं किए जा सकते हैं। “हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।” (गलतियों ६:५) कभी-कभी एक व्यक्ति महसूस कर सकता है कि एक रिश्तेदार या उसका एक सगा पारिवारिक सदस्य इसमें शामिल है। जब उस व्यक्ति को पहचानने की बात आती है जिस पर कुकर्मी होने का संदेह किया गया है तब “दमित स्मृतियों” के संन्देहपूर्ण स्वभाव को याद रखिए। एक ऐसी परिस्थिति में, जब तक विषय पूरी तरह स्थापित नही किया गया हो, परिवार के साथ सम्पर्क बनाए रखना—कम से कम कभी-कभी भेंटों के द्वारा, या पत्रों के द्वारा या टेलीफ़ोन के द्वारा—यह दिखाएगा कि एक व्यक्ति शास्त्रीय मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहा है।—इफिसियों ६:१-३ से तुलना कीजिए।
प्राचीन क्या कर सकते हैं?
यदि प्राचीनों के पास कलीसिया का एक सदस्य आता है जो बाल दुर्व्यवहार के अतीत या “दमित स्मृतियों” का अनुभव कर रहा है, तब मदद के लिए अधिकतर दो प्राचीन नियुक्त किए जाते हैं। इन प्राचीनों को पीड़ित व्यक्ति को इस दौरान भावात्मक दुःख से निपटने में ध्यान केन्द्रित करने के लिए कृपापूर्ण प्रोत्साहन देना चाहिए। किसी भी “याद किए गए” दुर्व्यवहारकर्ताओं के नाम पूर्ण रूप से गोपनीय रखे जाने चाहिए।
प्राचीनों का प्राथमिक कार्य चरवाहों के रूप में कार्य करना है। (यशायाह ३२:१, २; १ पतरस ५:२, ३) उन्हें ख़ास तौर से स्वयं “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण” करने के लिए चौकस रहना चाहिए। (कुलुस्सियों ३:१२) उन्हें कृपापूर्ण तरीक़े से सुनना चाहिए और फिर शास्त्र से चंगाई के वचनों को लागू करना चाहिए। (नीतिवचन १२:१८) कुछ व्यक्ति, जो पीड़ादायक “स्मृतियों” के शिकार हैं, उन्होंने ऐसे प्राचीनों के लिए आभार दिखाया है जो नियमित भेंट करते हैं या यह पूछने के लिए टेलीफ़ोन करते हैं कि वे कैसे हैं। ज़रूरी नहीं की ऐसे सम्पर्क अधिक समय लें, परन्तु ये दिखाते हैं कि यहोवा का संगठन परवाह करता है। जब पीड़ित व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसके मसीही भाई उसे सचमुच प्रेम करते हैं, तो उसे भावात्मक संतुलन पाने में काफ़ी हद तक मदद मिल सकती है।
तब क्या जब पीड़ित व्यक्ति यह फ़ैसला करे कि वह अभियोग लगाना चाहता है?b तब दोनों प्राचीन उसे सलाह दे सकते हैं कि मत्ती १८:१५ में दिए गए सिद्धान्त के सामंजस्य में, इस विषय के बारे में उसे स्वयं ही अभियोगी के पास जाना चाहिए। यदि अभियोक्ता इसे आमने-सामने करने में भावात्मक रूप से समर्थ नहीं है तो यह टेलिफ़ोन द्वारा या शायद पत्र लिखने के द्वारा किया जा सकता है। इस तरह अभियुक्त व्यक्ति को आरोपों के लिए अपने जवाबों के साथ यहोवा के सामने ब्यौरा देने का मौक़ा दिया जाता है। वह शायद प्रमाण भी दिखाने में समर्थ हो कि वह दुर्व्यवहार नहीं था। या शायद अभियोगी पाप-स्वीकृति कर लेगा और एक मेल-मिलाप किया जा सके। वह क्या ही आशीष होगी! यदि पाप-स्वीकृति होती है तो, दोनों प्राचीन विषयों को आगे शास्त्रीय सिद्धान्तों के आधार पर निपटा सकते हैं।
यदि आरोपों का खण्डन किया जाता है, तो प्राचीनों को अभियोगी को यह समझाना चाहिए कि न्यायिक रूप से और अधिक कुछ नहीं किया जा सकता। और कलीसिया अभियुक्त को एक निर्दोष व्यक्ति मानती रहेगी। बाइबल कहती है कि न्यायिक कार्यवाही करने के लिए दो या तीन गवाहों का होना ज़रूरी है। (२ कुरिन्थियों १३:१; १ तीमुथियुस ५:१९) यदि एक से भी ज़्यादा लोग उसी व्यक्ति द्वारा दुर्व्यवहार किया जाना “याद करते हैं,” तो भी इन यादों का स्वभाव इतना ज़्यादा अनिश्चित है कि बिना अन्य अतिरिक्त प्रमाण के इन पर न्यायिक फ़ैसले आधारित नहीं किए जा सकते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि ये “स्मृतियाँ” झूठ समझी जाती हैं (या उन्हें सच समझा जाता है)। लेकिन एक विषय को न्यायिक रूप से स्थापित करने के लिए बाइबल सिद्धान्तों को लागू किया जाना है।
तब क्या, यदि अभियुक्त—जबकि अपराध अस्वीकार करता है—वास्तव में दोषी है? क्या वह मानो “इससे बच निकलेगा”? निश्चित ही नहीं! उसके दोषी होने अथवा निर्दोष होने के प्रश्न को आश्वस्त होकर यहोवा के हाथों में छोड़ा जा सकता है। “कुछ लोगों के पाप बिलकुल प्रगट होते हैं और पहिले ही से न्याय के लिये पहुंच जाते हैं, परन्तु अन्य लोगों के पाप बाद में प्रकट होते हैं।” (१ तीमुथियुस ५:२४, NHT; रोमियों १२:१९; १४:१२) नीतिवचन की पुस्तक कहती है: “धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है।” “जब दुष्ट मरता, तब उसकी आशा टूट जाती है।” (नीतिवचन १०:२८; ११:७) अंततः, यहोवा परमेश्वर और मसीह यीशु न्याय से अनन्त न्यायदण्ड सुनाते हैं।—१ कुरिन्थियों ४:५.
इब्लीस का विरोध करना
जब समर्पित लोग भारी शारीरिक या भावात्मक पीड़ा के होते हुए भी धीरज धरते हैं, यह उनकी आन्तरिक शक्ति और परमेश्वर के लिए प्रेम का क्या ही प्रमाण होता है! और यह उनको संभालने में यहोवा की आत्मा की सामर्थ का क्या ही साक्ष्य है!—२ कुरिन्थियों ४:७ से तुलना कीजिए।
ऐसे लोगों पर पतरस के शब्द लागू होते हैं: “विश्वास में दृढ़ होकर . . . [शैतान का] साम्हना करो।” (१ पतरस ५:९) ऐसा करना शायद आसान न हो। कभी-कभी, स्पष्ट रूप से और तर्क के साथ सोचना भी कठिन हो सकता है। परन्तु निराश मत होइए! जल्द ही, इब्लीस और उसके धूर्त कार्य अस्तित्व में न रहेंगे। वास्तव में, हम उस समय की आस देखते हैं जब “परमेश्वर आप . . . उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.
[फुटनोट]
a “दमित स्मृतियाँ” और ऐसी ही अभिव्यक्तयों को सामान्य प्रकार की स्मृतियों से जो हम सभी के पास हैं, अलग दिखाने के लिए उद्धरण चिन्हों में रखा गया है।
b इस अनुच्छेद में दिया गया क़दम उठाना इसलिए भी अनिवार्य हो सकता है यदि यह विषय कलीसिया में आम जानकारी बन चुकी है।