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  • उनका प्रकाश बुझा नहीं
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
w95 11/15 पेज 24-25

उनका प्रकाश बुझा नहीं

बाइबल समय में यहोवा के ऐसे विश्‍वासी साक्षी थे जिन्होंने बाधाओं और कठिनाइयों का अनुभव किया। उन्होंने विरोध और प्रत्यक्ष असफलताओं का सामना किया। फिर भी, उन्होंने निराशा की वज़ह से हार नहीं माना। वस्तुतः, उनका प्रकाश बुझा नहीं।

उदाहरण के लिए, भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह को यहूदा की धर्मत्यागी जाति के लिए परमेश्‍वर का भविष्यवक्‍ता बनने की नियुक्‍ति दी गयी थी। उसने यरूशलेम के आनेवाले नाश के बारे में चेतावनी की घोषणा की। (यिर्मयाह १:११-१९) परिणामस्वरूप, यिर्मयाह के अपने संगी देशवासियों के साथ कई मुक़ाबले हुए, जिन्होंने उसे एक विपत्ती हूकनेवाले के तौर पर देखा।

यिर्मयाह ने जो भविष्यवाणी की थी उसकी वजह से परमेश्‍वर के भवन के प्रधान रखवाले, याजक पशहूर ने एक बार उसे मारा और काठ में डाल दिया। इस प्रतीयमान बाधा की वजह से, यिर्मयाह ने कहा: “दिन भर मेरी हंसी होती है; सब कोई मुझ से ठट्ठा करते हैं। क्योंकि जब मैं बातें करता हूं, तब मैं जोर से पुकार पुकारकर ललकारता हूं कि उपद्रव और उत्पात हुआ, हां उत्पात! क्योंकि यहोवा का वचन दिन भर मेरे लिये निन्दा और ठट्ठा का कारण होता रहता है।” भविष्यवक्‍ता इस हद तक निराश हो गया कि उसने कहा: “मैं उसकी [यहोवा की] चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा।”—यिर्मयाह २०:१, २, ७-९.

लेकिन, यिर्मयाह निराशा के आगे नहीं झुका। ‘यहोवा के वचन’ के बारे में बात करते हुए उसने घोषणा की: “मेरे हृदय की ऐसी दशा होगी मानो मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग हो, और मैं अपने को रोकते रोकते थक गया पर मुझ से रहा नहीं जाता।” (यिर्मयाह २०:८, ९) परमेश्‍वर की उद्‌घोषणाओं को कहने के लिए अत्यधिक रूप से प्रेरित, यिर्मयाह को पवित्र आत्मा का सहारा मिला और उसने अपनी नियुक्‍ति पूरी की।

यदि प्रेरित पौलुस उनके सामने झुक जाता, तो उसके पास भी निराश होने के लिए अनेक कारण थे। उसने प्राकृतिक विपदाएँ, जिस जहाज़ पर वह था उसका टूटना, सताहट, और कोड़े खाना, ये सब सहा। इसके अतिरिक्‍त, ‘सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन उसे दबाती थी।’ (२ कुरिन्थियों ११:२३-२८) जी हाँ, पौलुस को रोज़ समस्याओं से निपटना पड़ता था, और उन नयी कलीसियाओं के बारे में चिन्ता करनी पड़ती थी जिन्हें उसने स्थापित करने में मदद की थी। इसके अतिरिक्‍त, वह अपरिपूर्ण था और उसे “शरीर में एक कांटा,” संभवतः कमज़ोर दृष्टि से संघर्ष करना पड़ता था। (२ कुरिन्थियों १२:७; रोमियों ७:१५; गलतियों ४:१५) कुछ लोगों ने तो पौलुस के पीठ-पीछे उसके विरुद्ध बातें कीं, और यह उसके कानों तक पहुँच गयी।—२ कुरिन्थियों १०:१०.

फिर भी, पौलुस ने निराशा को ख़ुद को अभिभूत करने नहीं दिया। जी नहीं, वह कोई अतिमानव नहीं था। (२ कुरिन्थियों ११:२९, ३०) किस बात ने उसकी ‘आन्तरिक आग’ को जलता हुआ रखा? एक बात तो यह थी कि उसके पास सहारा देनेवाले साथी थे, जिनमें से कुछ उसके साथ रोम को भी गए जहाँ उसे घर में नज़रबंद करके रखा गया था। (प्रेरितों २८:१४-१६) दूसरा, प्रेरित ने अपनी स्थिति को एक संतुलित दृष्टिकोण से देखा। उसके सतानेवाले और विरोधी दोषी थे, पौलुस नहीं। अपने पार्थिव जीवन का अन्त होते-होते, उसने अपनी सेवकाई को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से आँका और कहा: “भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है मुझे . . . देगा।”—२ तीमुथियुस ४:८.

सबसे बढ़कर, पौलुस नियमित रूप से यहोवा परमेश्‍वर के पास प्रार्थना में जाता था, और ‘प्रभु उसका सहायक रहा, और उसे सामर्थ दी।’ (२ तीमुथियुस ४:१७) पौलुस ने कहा, “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।” (फिलिप्पियों ४:१३) पौलुस को यहोवा की सेवा में बने रहने में परमेश्‍वर और संगी मसीहियों के साथ संचार करने, साथ ही अपनी सेवकाई को सकारात्मक रूप से आँकने से मदद मिली।

परमेश्‍वर ने पौलुस को यह लिखने के लिए प्रेरित किया: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।” (गलतियों ६:७-९) किस चीज़ की कटनी? अनन्त जीवन। तो फिर, यिर्मयाह, पौलुस, और शास्त्र में उल्लिखित यहोवा के अनेक अन्य विश्‍वासी साक्षियों की तरह होइए। जी हाँ, उनकी तरह होइए, और निराशा के आगे मत झुकिए। अपने प्रकाश को बुझने न दीजिए।—मत्ती ५:१४-१६ से तुलना कीजिए।

[पेज 25 पर तसवीरें]

पौलुस और यिर्मयाह ने अपना प्रकाश बुझने न दिया

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