क्या परम्परा को सच्चाई के विरुद्ध होना चाहिए?
मार्टिन लूथर निश्चिंत थे कि वो सही हैं। बाइबल उनका समर्थन करती है, इसका उन्हें विश्वास था। दूसरी ओर, पोलैंड के खगोल-शास्त्री कॉपरनिकस, ने सोचा कि उस समय का पारम्परिक विश्वास ग़लत था।
कौन सा विश्वास? यह कि पृथ्वी विश्व-मंडल का केन्द्र थी और सब वस्तुएँ उसके चारों ओर घूमती थीं। सच्चाई यह थी, कॉपरनिकस ने कहा, कि पृथ्वी स्वयं सूर्य के चारों ओर घूमती थी। लूथर ने इसे यह कहते हुए रद्द किया: “लोग एक नए-नए खगोल-शास्त्री की सुनते हैं जिसने यह दिखाने की कोशिश की है कि पृथ्वी घूमती है, न कि आकाश या उसका गगन-मंडल, न ही सूर्य और चन्द्रमा।” —पश्चिमी तत्त्वज्ञान का इतिहास (अंग्रेज़ी)।
पारम्परिक विश्वास अकसर वास्तविकताओं से, और सच्चाई के विरुद्ध रहे हैं। वे लोगों द्वारा हानिकारक कार्य किए जाने का भी कारण बन सकते हैं।
इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि परम्परा हमेशा सच्चाई के विरुद्ध होती है। वास्तव में, प्रेरित पौलुस ने अपने दिन के मसीहियों को उन परम्पराओं का निरन्तर पालन करने को कहा जो उसने उन्हें सौंपी थीं: “मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूं, क्योंकि तुम . . . परम्पराओं का पालन दृढ़ता से ठीक उसी प्रकार करते हो जिस प्रकार मैंने तुम्हें सौंपा था।”—१ कुरिन्थियों ११:२ NHT; २ थिस्सलुनीकियों २:१५; ३:६ भी देखिए।
पौलुस का “परम्पराओं” से क्या अभिप्राय था? शास्त्रवचनों पर अन्तर्दृष्टि (अंग्रेज़ी), खंड २, पृष्ठ १११८, सूचित करता है कि उसने “परम्परा” के लिए जिस यूनानी शब्द, पाराडोसिस, का प्रयोग किया है उसका अर्थ है ऐसा कुछ जो “मौखिक रूप से या लिखित में संचारित किया जाता है।” इस अंग्रेज़ी शब्द का अर्थ है “वह जानकारी, धर्म-सिद्धान्त, या व्यवहार जो माता-पिता द्वारा बच्चों को सौंपे गये थे, अथवा वह जो सोचने या कार्य करने का प्रतिष्ठित तरीक़ा बन गया है।”a क्योंकि वे परम्पराएँ जो पौलुस ने सौंपी थी अच्छे स्रोत से आई थीं, मसीही उनका पालन करके अच्छा करते।
हालाँकि, स्पष्टतः परम्परा सच्ची या झूठी, अच्छी या बुरी हो सकती है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेनवासी तत्त्वज्ञानी बर्ट्रन्ड रस्सल ने १६वीं शताब्दी के कॉपरनिकस जैसे लोगों की प्रशंसा की जिनके पास पारम्परिक विश्वासों पर प्रश्न उठाने के लिए ईमानदारी और साहस था। उन्होंने एक ऐसी “मान्यता [विकसित की] कि प्राचीन समय से जो विश्वास किया जाता था वह झूठ भी हो सकता है।” क्या आप भी आँखें बंद करके परम्परा को न मानने की बुद्धिमानी को देख सकते हैं?—मत्ती १५:१-९, १४ से तुलना कीजिए।
फिर, धार्मिक विश्वासों और रीति-रिवाज़ों के बारे में क्या? क्या हम यह मान सकते हैं कि ये सही और अहानिकारक हैं? हम कैसे जान सकते हैं? हमें क्या करना चाहिए यदि हम यह पाते हैं कि धार्मिक परम्पराएँ वास्तव में सच्चाई के विरुद्ध हैं? अगला लेख इन सवालों की जाँच करेगा।
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
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Cover: Jean-Leon Huens © National Geographic Society
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Universität Leipzig