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  • उन्होंने “सब कुछ वैसा ही किया”

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  • उन्होंने “सब कुछ वैसा ही किया”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • नूह के दिनों में
  • मूसा—मनुष्यों में सबसे अधिक नम्र व्यक्‍ति
  • यहोशू—साहसी और बहुत शक्‍तिशाली
  • राजा—वफ़ादार और अवज्ञाकारी
  • परमेश्‍वर के वचन के अनुसार जीना
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
w95 12/15 पेज 11-16

उन्होंने “सब कुछ वैसा ही किया”

“परमेश्‍वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” —१ यूहन्‍ना ५:३.

१. परमेश्‍वर के प्रेम की हद के बारे में क्या कहा जा सकता है?

“परमेश्‍वर प्रेम है।” वे सभी जो परमेश्‍वर को जानने लगते हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, उस प्रेम की गहराई के लिए गहरा मूल्यांकन प्राप्त करते हैं। “प्रेम इस में नहीं, कि हम ने परमेश्‍वर से प्रेम किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।” जैसे-जैसे हम यीशु के बहूमूल्य छुड़ौती बलिदान में विश्‍वास व्यक्‍त करते हैं, हम ‘परमेश्‍वर के प्रेम में बने रहते हैं।’ (१ यूहन्‍ना ४:८-१०, १६) इस प्रकार हम अभी और आनेवाली रीति-व्यवस्था में आध्यात्मिक आशिषों की दौलत का आनन्द उठा सकते हैं, अर्थात्‌ अनन्त जीवन।—यूहन्‍ना १७:३; १ यूहन्‍ना २:१५, १७.

२. परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानने से उसके सेवकों ने कैसे लाभ प्राप्त किया है?

२ बाइबल अभिलेख में ऐसे लोगों के उदाहरणों की भरमार है जिन्होंने परमेश्‍वर की आज्ञाओं को माना है और परिणामस्वरूप प्रचुर रूप से आशिषें प्राप्त की हैं। इनमें मसीही-पूर्व साक्षी शामिल हैं, जिनमें से कुछ लोगों के बारे में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “ये सब विश्‍वास में मरे, हालाँकि उन्हें प्रतिज्ञाओं की पूर्ति नहीं मिली, लेकिन उन्होंने उन्हें दूर से ही देखा और उनका स्वागत किया तथा सार्वजनिक रूप से घोषित किया कि वे देश में अजनबी और अस्थायी निवासी थे।” (इब्रानियों ११:१३, NW) बाद में, परमेश्‍वर के समर्पित मसीही सेवकों ने उस “अनुग्रह, और सच्चाई” से लाभ प्राप्त किया “[जो] यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।” (यूहन्‍ना १:१७) मानव इतिहास के कुछ ६,००० सालों के दौरान, यहोवा ने ऐसे वफ़ादार साक्षियों को प्रतिफल दिया है जिन्होंने उसकी आज्ञाओं का पालन किया, जो वास्तव में “कठिन नहीं” हैं।—१ यूहन्‍ना ५:२, ३.

नूह के दिनों में

३. किन तरीक़ों से नूह ने “सब कुछ वैसा ही” किया?

३ बाइबल अभिलेख कहता है: “विश्‍वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चितौनी पाकर भक्‍ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उस ने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ, जो विश्‍वास से होता है।” “धर्म के प्रचारक” के तौर पर नूह ने परमेश्‍वर की आज्ञा का निर्विवाद रूप से पालन किया, और जलप्रलय-पूर्व के हिंसक संसार को सन्‍निकट ईश्‍वरीय न्यायदण्ड के बारे में चितौनी दी। (इब्रानियों ११:७; २ पतरस २:५) जहाज़ बनाने में, उसने ईश्‍वरीय रूप से प्रदान की गयी रूप-रेखा के अनुसार ध्यानपूर्वक कार्य किया। फिर वह चुने हुए जानवरों और खाद्य सामग्री को लाया। “जैसी परमेश्‍वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने ऐसा ही किया। उसने सब कुछ वैसा ही किया।”—उत्पत्ति ६:२२, NHT.

४, ५. (क) मनुष्यजाति पर आज तक एक अनर्थकारी प्रभाव ने कैसे असर किया है? (ख) ईश्‍वरीय निर्देशनों का पालन करने में, हमें क्यों “सब कुछ वैसा ही” करना चाहिए?

४ नूह और उसके परिवार को अवज्ञाकारी स्वर्गदूतों के अनर्थकारी प्रभाव के साथ संघर्ष करना पड़ा। परमेश्‍वर के इन पुत्रों ने भौतिक देह धारण की और स्त्रियों के साथ सहवास किया, और ऐसी अतिमानवीय संकर सन्तान उत्पन्‍न की जिसने मनुष्यजाति को डराया-धमकाया। “उस समय पृथ्वी परमेश्‍वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी।” यहोवा ने दुष्ट पीढ़ी को मिटाने के लिए जलप्रलय भेजा। (उत्पत्ति ६:४, ११-१७; ७:१) नूह के दिनों से पैशाचिक स्वर्गदूतों को मानवी रूप धारण करने की अनुमति नहीं दी गयी है। फिर भी, “सारा संसार उस दुष्ट,” शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस ‘के वश में अब भी पड़ा हुआ है।’ (१ यूहन्‍ना ५:१९; प्रकाशितवाक्य १२:९) भविष्यसूचक रूप से, यीशु ने नूह के दिन की उस विद्रोही पीढ़ी की तुलना मनुष्यजाति की उस पीढ़ी के साथ की जिसने उसे तब से ठुकराया है जब से १९१४ में उसकी “उपस्थिति” का चिन्ह प्रत्यक्ष होने लगा।—मत्ती २४:३, NW, ३४, ३७-३९; लूका १७:२६, २७.

५ आज, नूह के दिनों की तरह, शैतान मनुष्यजाति और हमारे ग्रह को बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है। (प्रकाशितवाक्य ११:१५-१८) इसलिए यह अत्यावश्‍यक है कि हम उत्प्रेरित आज्ञा का पालन करें: “परमेश्‍वर के सारे हथियार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्‍तियों [“धूर्त युक्‍तियों,” NW फुटनोट] के साम्हने खड़े रह सको।” (इफिसियों ६:११) इसमें, हम परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और इसे अपने जीवन में लागू करने के द्वारा मज़बूत किए जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त, हमारे पास यहोवा का परवाह करनेवाला संगठन है, और उसके साथ उसके अभिषिक्‍त “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और उसके प्रेममय प्राचीन हैं, जो हमें जिस मार्ग पर जाना चाहिए उस पर धैर्यपूर्वक हमारी रखवाली करते हैं। हमें एक विश्‍वव्यापी प्रचार कार्य को पूरा करना है। (मत्ती २४:१४, ४५-४७) नूह की तरह, जिसने ईश्‍वरीय निर्देशनों का इतना ध्यानपूर्वक पालन किया, ऐसा हो कि हम भी हमेशा “सब कुछ वैसा ही” करें।

मूसा—मनुष्यों में सबसे अधिक नम्र व्यक्‍ति

६, ७. (क) मूसा ने कौन-सा लाभप्रद चुनाव किया? (ख) मूसा ने हमारे लिए कौन-सा साहसी नमूना छोड़ा?

६ एक और विश्‍वासी व्यक्‍ति पर ग़ौर कीजिए—मूसा। वह मिस्र के सुख-विलास के बीच एक असंयमी जीवन का आनन्द उठा सकता था। लेकिन उसने “पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्‍वर के लोगों के साथ दुख भोगना” पसन्द किया। यहोवा के नियुक्‍त सेवक के तौर पर, “उस की आंखें फल पाने की ओर लगी थीं [और] वह अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।”—इब्रानियों ११:२३-२८.

७ गिनती १२:३ में हम पढ़ते हैं: “मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” इसके विपरीत, मिस्र के फ़िरौन ने सब मनुष्यों में सबसे ज़्यादा घमण्डी की तरह कार्य किया। जब यहोवा ने मूसा और हारून को फ़िरौन पर उसका न्यायदण्ड घोषित करने की आज्ञा दी, तो उन्होंने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? हमसे कहा जाता है: “मूसा और हारून ने यही किया; जैसा यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी उन्होंने वैसा ही किया।” (निर्गमन ७:४-७, NHT) आज यहोवा के न्यायदण्ड घोषित करनेवाले हम लोगों के लिए क्या ही साहसी नमूना!

८. इस्रालियों से “ठीक वैसा ही” करने के लिए कैसे माँग की गयी, और उसके परिणामस्वरूप जो आनन्द मनाया गया, उसकी समानता निकट भविष्य में कैसे होगी?

८ क्या इस्रालियों ने मूसा को निष्ठावान रीति से सहायता दी? यहोवा ने मिस्र को दस विपत्तियों में से नौ विपत्तियों से पीड़ित किया। उसके बाद उसने इस्राएल को फसह मनाने के बारे में विस्तृत निर्देशन दिए। “तब लोगों ने सिर झुकाकर दण्डवत्‌ किया। तब इस्राएलियों ने जाकर ऐसा ही किया। यहोवा ने मूसा और हारून को जैसा करने की आज्ञा दी थी उन्होंने ठीक वैसा ही किया।” (निर्गमन १२:२७, २८, NHT) उस घटना के दिन, निसान १४, सा.यु.पू. १५१३ की मध्यरात्रि को, परमेश्‍वर का स्वर्गदूत मिस्र के सब पहिलौठों का वध करने लगा लेकिन इस्राएली घरों के ऊपर से गुज़र गया। इस्राएल के पहिलौठों को क्यों बख़्श दिया गया? क्योंकि उन्होंने अपने दरवाज़ों पर छिड़के गए फसह के मेम्ने के लोहू के अधीन सुरक्षा पा ली थी। उन्होंने ठीक वैसा ही किया था जैसे यहोवा ने मूसा और हारून को आज्ञा दी थी। जी हाँ, “उन्होंने ठीक वैसा ही किया।” (निर्गमन १२:५०, ५१, NHT) लाल समुद्र पर, यहोवा ने अपने आज्ञाकारी लोगों को बचाने में फ़िरौन और उसके शक्‍तिशाली सैन्य वाहन को नाश करने के द्वारा एक अतिरिक्‍त चमत्कार किया। इस्राएलियों ने कितना आनन्द मनाया! उसी तरह आज अनेक लोग जिन्होंने यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया है, अरमगिदोन में उसके दोषनिवारण के चश्‍मदीद गवाह होने में आनन्द मनाएँगे।—निर्गमन १५:१, २; प्रकाशितवाक्य १५:३, ४.

९. निवास-स्थान के सम्बन्ध में इस्राएलियों द्वारा “ठीक वैसा ही” करना कौन-से आधुनिक-दिन विशेषाधिकारों का पूर्वसंकेत देता है?

९ जब यहोवा ने इस्राएल को चन्दा इकट्ठा करने और मरुभूमि में निवास-स्थान बनाने की आज्ञा दी, तो लोगों ने उदारता से अपना पूरा समर्थन दिया। फिर, छोटे-से-छोटे विवरण में भी, मूसा और उसके स्वैच्छिक सहकर्मियों ने यहोवा द्वारा प्रदान की गयी वास्तुशिल्पीय योजनाओं का अनुसरण किया। “सो मिलापवाले तम्बू के निवास-स्थान का सब कार्य अपनी समाप्ति पर आया, कि जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्राएल के पुत्र उसी के अनुसार कार्य करते रहे। उन्होंने ठीक वैसा ही किया।” उसी तरह, याजकवर्ग के प्रारंभण पर, “जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसने उसी के अनुसार किया। उसने ठीक वैसा ही किया।” (निर्गमन ३९:३२; ४०:१६, NW) आधुनिक समय में, हमारे पास प्रचार कार्य को और राज्य विस्तार के कार्यक्रमों को हार्दिक समर्थन देने का अवसर है। “ठीक वैसा ही” करने में इस प्रकार एक होने का हमारा विशेषाधिकार है।

यहोशू—साहसी और बहुत शक्‍तिशाली

१०, ११. (क) किस बात ने यहोशू को सफलता के लिए सज्जित किया? (ख) आधुनिक-दिन परीक्षाओं का सामना करने के लिए हम कैसे मज़बूत किए जा सकते हैं?

१० जब मूसा ने यहोशू को इस्राएल को प्रतिज्ञा के देश में ले जाने के लिए नियुक्‍त किया, तो संभवतः यहोवा का उत्प्रेरित लिखित वचन केवल मूसा की पाँच पुस्तकों में, एक या दो भजनों में, और अय्यूब की पुस्तक में उपलब्ध था। मूसा ने यहोशू को प्रतिज्ञात देश पहुँचने पर लोगों को इकट्ठा करने और ‘इस व्यवस्था को सब इस्राएलियों को पढ़कर सुनाने’ का निर्देश दिया था। (व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१२) इसके अतिरिक्‍त, यहोवा ने ख़ुद यहोशू को आज्ञा दी: “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।”—यहोशू १:८.

११ यहोवा की “पुस्तक” के दैनिक पठन से यहोशू आगे की परीक्षाओं से निपटने के लिए सज्जित हुआ, ठीक उसी तरह जैसे यहोवा के वचन, बाइबल का दैनिक पठन, उसके आधुनिक-दिन साक्षियों को इस ‘कठिन समय’ में परीक्षाओं का सामना करने के लिए मज़बूत करता है। (२ तीमुथियुस ३:१) क्योंकि हम एक हिंसक संसार से घिरे हुए हैं, आइए हम यहोशू को दी गयी परमेश्‍वर की सलाह पर गम्भीरतापूर्वक विचार करें: “हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे संग रहेगा।” (यहोशू १:९) कनान पर विजय पाने के बाद, अपनी विरासत में बसते वक़्त इस्राएल के गोत्रों को भरपूर प्रतिफल दिया गया। “इस्राएलियों ने ठीक वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।” (यहोशू १४:५, NHT) समान प्रतिफल आज हम सब के लिए रखा हुआ है जो परमेश्‍वर का वचन पढ़ते हैं और उसे अपने जीवन में लागू करते हैं, इस प्रकार आज्ञाकारिता से “ठीक वैसा ही” करते हैं।

राजा—वफ़ादार और अवज्ञाकारी

१२. (क) इस्राएल के राजाओं को क्या आज्ञा दी गयी थी? (ख) आज्ञा पालन करने में राजा की असफलता का क्या परिणाम हुआ?

१२ इस्राएल के राजाओं के बारे में क्या? यहोवा ने इस माँग को पूरा करने के लिए राजा को बाध्य किया था: “जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक, जो लेवीय याजकों के पास रहेगी, उसकी एक नकल अपने लिये कर ले। और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे।” (व्यवस्थाविवरण १७:१८, १९) क्या इस्राएल के राजाओं ने इस आज्ञा का पालन किया? अधिकांशतः, वे बुरी तरह असफल हुए, इस वजह से वे व्यवस्थाविवरण २८:१५-६८ में पूर्वबताए गए शापों से पीड़ित हुए। अंततः, इस्राएल “पृथ्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक” तितर बितर हो गया।

१३. यहोवा के वचन के लिए प्रेम दिखाने के द्वारा जिस तरह दाऊद लाभ प्राप्त कर सका, हम कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं?

१३ लेकिन, दाऊद—इस्राएल के पहले वफ़ादार मानवी राजा—ने यहोवा के लिए असाधारण भक्‍ति दिखायी। वह ‘यहूदा में सिंह का बच्चा’ साबित हुआ, और उसने ‘यहूदा के गोत्र के सिंह, दाऊद के मूल,’ मसीह यीशु का पूर्वसंकेत किया। (उत्पत्ति ४९:८, ९, NHT; प्रकाशितवाक्य ५:५) दाऊद की शक्‍ति का स्रोत क्या था? उसे यहोवा के लिखित वचन के लिए गहरा मूल्यांकन था और वह उसके अनुसार जीता था। ‘दाऊद के भजन,’ भजन १९ में, हम पढ़ते हैं: “यहोवा की व्यवस्था खरी है।” यहोवा के अनुस्मारक, आदेशों, आज्ञा, और न्यायिक निर्णयों की ओर सूचित करने के बाद, दाऊद आगे कहता है: “वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकनेवाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं। और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।” (भजन १९:७-११) यदि यहोवा के वचन का दैनिक पठन और उस पर मनन करना ३,००० साल पहले लाभप्रद था, तो यह आज और कितना अधिक लाभप्रद है!—भजन १:१-३; १३:६; ११९:७२, ९७, १११.

१४. किस तरीक़े से सुलैमान की जीवन-शैली मात्र ज्ञान से कुछ ज़्यादा की ज़रूरत को दिखाती है?

१४ फिर भी, मात्र ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं है। परमेश्‍वर के सेवकों के लिए यह भी अत्यावश्‍यक है कि वे उस ज्ञान के अनुसार कार्य करें, ईश्‍वरीय इच्छा के मुताबिक़ उसे लागू करें।—जी हाँ, “ठीक वैसा ही” करें। यह बात दाऊद के पुत्र, सुलैमान के मामले से सचित्रित की जा सकती है, जिसे यहोवा ने चुना कि “इस्राएल के ऊपर यहोवा के राज्य की गद्दी पर विराजे।” सुलैमान को दाऊद द्वारा “ईश्‍वर के आत्मा की प्रेरणा से” प्राप्त वास्तुशिल्पीय योजनाओं का इस्तेमाल करते हुए मन्दिर बनाने की कार्य-नियुक्‍ति प्राप्त हुई। (१ इतिहास २८:५, ११-१३) सुलैमान यह बहुत बड़ा कार्य कैसे पूरा कर सकता था? एक प्रार्थना के जवाब में, यहोवा ने उसे बुद्धि और ज्ञान दिया। इनके साथ, और ईश्‍वरीय रूप से प्रदान की गयी योजनाओं का पालन करने के द्वारा, सुलैमान उस शानदार भवन का निर्माण करने में समर्थ हुआ, जो यहोवा के तेज से भर गया। (२ इतिहास ७:२, ३) लेकिन, बाद में सुलैमान असफल हुआ। किस पहलू में? इस्राएल के राजा के सम्बन्ध में यहोवा के नियम ने कहा था: “वह बहुत स्त्रियां भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए।” (व्यवस्थाविवरण १७:१७) फिर भी सुलैमान की “सात सौ रानियां, और तीन सौ रखेलियां हो गईं थीं और उसकी इन स्त्रियों ने . . . उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया।” अपने बाद के सालों में, सुलैमान “ठीक वैसा ही” करने से हट गया।—१ राजा ११:३, ४; नेहमायाह १३:२६.

१५. योशिय्याह ने कैसे “ठीक वैसा ही” किया?

१५ यहूदा में कुछ ही राजा आज्ञाकारी थे, जिनमें से आख़री योशिय्याह था। सामान्य युग पूर्व वर्ष ६४८ में, उसने देश में से मूर्तिपूजा का सफ़ाया करना और यहोवा के मन्दिर की मरम्मत करनी शुरू की। वहीं महा याजक को “मूसा के द्वारा दी हुई यहोवा की व्यवस्था की पुस्तक” मिली। योशिय्याह ने इसके बारे में क्या किया? “राजा यहूदा के सब लोगों और यरूशलेम के सब निवासियों और याजकों और लेवियों वरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगों को संग लेकर यहोवा के भवन को गया; तब उस ने जो वाचा की पुस्तक यहोवा के भवन में मिली थी उस में की सारी बातें उनको पढ़कर सुनाईं। तब राजा ने अपने स्थान पर खड़ा होकर, यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपने पूर्ण मन और पूर्ण जीव से उसकी आज्ञाएं, चितौनियों और विधियों का पालन करूंगा, और इन वाचा की बातों को जो इस पुस्तक में लिखी हैं, पूरी करूंगा।” (२ इतिहास ३४:१४, ३०, ३१) जी हाँ, योशिय्याह ने “ठीक वैसा ही” किया। उसकी वफ़ादार जीवन-शैली के परिणामस्वरूप, विश्‍वासहीन यहूदा पर यहोवा के न्यायदण्ड का कार्यान्वयन उसके अपराधी पुत्रों के दिनों तक रोक दिया गया।

परमेश्‍वर के वचन के अनुसार जीना

१६, १७. (क) हमें किन पहलुओं में यीशु के पदचिन्हों पर चलना चाहिए? (ख) परमेश्‍वर के कौन-से अन्य वफ़ादार सेवक हमारे लिए उदाहरण प्रदान करते हैं?

१६ उन सब मनुष्यों में से जो कभी जीवित रहे, परमेश्‍वर के वचन पर मनन करने और उसके अनुसार जीने का सर्वोत्तम उदाहरण प्रभु यीशु मसीह है। परमेश्‍वर का वचन उसके लिए भोजन की तरह था। (यूहन्‍ना ४:३४) उसने अपने श्रोताओं से कहा: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।” (यूहन्‍ना ५:१९, ३०; ७:२८; ८:२८, ४२) यीशु ने “ठीक वैसा ही किया,” और घोषणा की: “मैं अपनी इच्छा नहीं, बरन अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूं।” (यूहन्‍ना ६:३८) हम से, जो यहोवा के समर्पित साक्षी हैं, यीशु के पदचिन्हों पर चलने के द्वारा “ठीक वैसा ही” करने की माँग की जाती है।—लूका ९:२३; १४:२७; १ पतरस २:२१.

१७ यीशु के मन में परमेश्‍वर की इच्छा करना हमेशा प्रमुख था। वह परमेश्‍वर के वचन से पूरी तरह से परिचित था और इस प्रकार शास्त्रीय जवाब देने में सज्जित था। (मत्ती ४:१-११; १२:२४-३१) परमेश्‍वर के वचन पर निरन्तर ध्यान देने के द्वारा, हम भी “सिद्ध . . . और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो” सकते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) आइए हम प्राचीन समयों और उसके बाद के समयों के यहोवा के वफ़ादार सेवकों और सबसे बढ़कर हमारे शिक्षक, यीशु मसीह के उदाहरण का अनुकरण करें जिसने कहा: “यह इसलिये होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूं, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूं।” (यूहन्‍ना १४:३१) ऐसा हो कि हम भी “ठीक वैसा ही” करना जारी रखने के द्वारा परमेश्‍वर के लिए अपना प्रेम दिखाएँ।—मरकुस १२:२९-३१.

१८. किस बात से हमें ‘वचन पर चलनेवाले बनने’ के लिए प्रेरित होना चाहिए, और इसके बाद क्या चर्चा की जाएगी?

१८ जैसे-जैसे हम बाइबल समयों के परमेश्‍वर के सेवकों की आज्ञाकारी जीवन-शैली पर मनन करते हैं, क्या हम शैतान की दुष्ट व्यवस्था के आख़िरी दिनों के दौरान वफ़ादार सेवा करने के लिए प्रोत्साहित नहीं होते? (रोमियों १५:४-६) हमें सचमुच पूरे अर्थ में ‘वचन पर चलनेवाले बनने’ के लिए प्रेरित होना चाहिए, जैसा कि आगामी लेख चर्चा करेगा।—याकूब १:२२.

क्या आपको याद है?

◻ ‘परमेश्‍वर के प्रेम’ का हमारे लिए क्या अर्थ होना चाहिए?

◻ नूह, मूसा, और यहोशू के उदाहरणों से हम क्या सीखते हैं?

◻ इस्राएल के राजाओं ने किस हद तक परमेश्‍वर के “वचन” का पालन किया?

◻ “ठीक वैसा ही” करने में यीशु हमारा आदर्श कैसे है?

[पेज 15 पर तसवीरें]

नूह, मूसा, और यहोशू ने “ठीक वैसा ही किया”

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