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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्राण के लिए एक बेहतर आशा

रोमी सैनिकों ने इसकी अपेक्षा नहीं की थी। जब उन्होंने मसाडा के पर्वतीय दुर्ग पर धावा बोला, जो यहूदी विद्रोही सेनाओं का आख़िरी गढ़ था, तब उन्होंने अपने शत्रुओं के आक्रमण के लिए, योद्धाओं की चीखों के लिए, स्त्रियों और बच्चों की चीत्कारों के लिए अपने आपको तैयार कर लिया। इसके बजाय उन्हें केवल लपटों की चरचराहट सुनायी दी। जब उन्होंने जलते हुए क़िले की जाँच-पड़ताल की, तब रोमियों को यह भयंकर सत्य पता चला: उनके शत्रु—कुछ ९६० लोग—मर चुके थे! व्यवस्थित रूप से, यहूदी योद्धाओं ने स्वयं अपने परिवारों का वध कर दिया था, फिर एक दूसरे का। आख़िरी पुरुष ने स्वयं अपनी हत्या कर ली थी।a उनके इस प्रकार बीभत्स जनसंहार और आत्महत्या करने का कारण क्या था?

समकालिक इतिहासकार जोसीफ़स के अनुसार, एक महत्त्वपूर्ण तत्व था अमर प्राण में विश्‍वास। मसाडा में ज़ॆलटस्‌ के अगुवे, एलीएज़र बॆन जाईर ने पहले अपने लोगों को यह समझाने की कोशिश की कि रोमियों के हाथों मृत्यु या दासत्व से तो आत्महत्या अधिक आदरणीय होती। उन्हें हिचकिचाते हुए देख, उसने प्राण के बारे में एक आवेगपूर्ण भाषण शुरू कर दिया। उसने उनसे कहा कि शरीर मात्र एक बाधा है, प्राण के लिए एक क़ैदख़ाना। “लेकिन जब, वह उस भार से मुक्‍त हो जाता है जो उसे पृथ्वी पर खींच लाता है और जकड़े रहता है,” उसने आगे कहा, “तब प्राण अपने स्थान को लौट जाता है, तब असल में उसे बड़ी सामर्थ और असीम शक्‍ति मिलती है, वह मानव आँखों से ऐसा अदृश्‍य रहता है जैसा स्वयं परमेश्‍वर।”

प्रतिक्रिया? जोसीफ़स रिपोर्ट करता है कि जब एलीएज़र इस विषय पर विस्तार से बोल चुका, तब “उसके सभी सुननेवालों ने उसे बीच में ही रोक दिया और असीम उत्साह से भरकर जल्द ही वह कार्य करने गए।” जोसीफ़स आगे कहता है: “वे ऐसे दौड़ गए मानो ग्रस्त हों, हर व्यक्‍ति दूसरे व्यक्‍ति से जल्दी करने की उत्सुकता में, . . . उन्हें अपनी पत्नियों का, अपने बच्चों का, और अपना वध करने की तीव्र इच्छा ने जकड़ लिया था।”

यह घृणित उदाहरण इस बात को सचित्रित करने का काम करता है कि अमर प्राण का धर्म-सिद्धान्त मृत्यु के बारे में सामान्य मानव दृष्टिकोण को कितना अधिक बदल सकता है। इसमें विश्‍वास करनेवालों को यह सिखाया जाता है कि मृत्यु को मनुष्य के सबसे बुरे शत्रु के रूप में नहीं, परन्तु मात्र एक निकास-द्वार के रूप में देखें जो प्राण को एक श्रेष्ठतर अस्तित्व का आनन्द लेने के लिए मुक्‍त करता है। लेकिन उन यहूदी ज़ॆलटस्‌ ने इस प्रकार विश्‍वास क्यों किया? अनेक लोग अनुमान लगाते कि उनके पवित्र लेख, इब्रानी शास्त्र, सिखाते हैं कि मनुष्य के अन्दर एक सचेत आत्मा है, एक प्राण जो मृत्यु के बाद जीवित रहने के लिए बचकर निकल जाता है। क्या वास्तव में ऐसा है?

इब्रानी शास्त्र में प्राण

एक शब्द में, नहीं। बाइबल की पहली ही पुस्तक, उत्पत्ति में हमें बताया गया है कि प्राण कुछ ऐसा नहीं जो आपके पास है, यह वह है जो आप स्वयं हैं। हम प्रथम मानव जीवधारी, आदम की सृष्टि के बारे में पढ़ते हैं: “मनुष्य एक जीवित प्राण बन गया।” (उत्पत्ति २:७, NW) यहाँ प्राण के लिए प्रयुक्‍त इब्रानी शब्द, नीफ़ॆश इब्रानी शास्त्र में ७०० से अधिक बार आता है, परन्तु कभी मनुष्य के एक अलग, लोकोत्तर, आत्मिक भाग का विचार नहीं देता। इसके विपरीत, प्राण दैहिक, ठोस, भौतिक है।

निम्नलिखित उल्लिखित पाठ बाइबल की अपनी प्रति में देखिए, क्योंकि इनमें से हरेक में इब्रानी शब्द नीफ़ॆश मिलता है। वे स्पष्ट रीति से दिखाते हैं कि प्राण जोख़िम और ख़तरे का सामना कर सकता है, और उसका अपहरण भी किया जा सकता है (व्यवस्थाविवरण २४:७; न्यायियों ९:१७; १ शमूएल १९:११); चीज़ों को छू सकता है (अय्यूब ६:७); सराख़ों में बंद किया जा सकता है (भजन १०५:१८); खाने की इच्छा कर सकता है, उपवास करने से दुःखी हो सकता है, और भूख और प्यास के कारण मूर्छित हो सकता है; और किसी क्षय-रोग अथवा शोक के कारण अनिद्रारोग से भी पीड़ित हो सकता है। (व्यवस्थाविवरण १२:२०; भजन ३५:१३; ६९:१०; १०६:१५; १०७:९; ११९:२८) दूसरे शब्दों में, क्योंकि आपका प्राण आप हैं, स्वयं आप, आपका प्राण किसी भी चीज़ का अनुभव कर सकता है जिसका अनुभव आप कर सकते हैं।b

तो फिर, क्या इसका यह अर्थ है कि प्राण वास्तव में मर सकता है? जी हाँ। अमर होने के विपरीत, इब्रानी शास्त्र में मानव प्राण के बारे में कहा गया है कि उसे कुकर्म के लिए “नाश किया,” या मृत्युदण्ड दिया जा सकता है, उस पर घातक प्रहार किया जा सकता है, उसकी हत्या की जा सकती है, उसे नष्ट किया जा सकता है, और उसके फाड़कर टुकड़े-टुकड़े किए जा सकते हैं। (निर्गमन ३१:१४; व्यवस्थाविवरण १९:६; २२:२६; भजन ७:२) “जो प्राण पाप करता है—वह स्वयं मरेगा,” यहेजकेल १८:४ (NW) कहता है। स्पष्टतया, मृत्यु मानव प्राण का सामान्य अन्त है, क्योंकि हम सब पाप करते हैं। (भजन ५१:५) प्रथम पुरुष, आदम से कहा गया कि पाप का दण्ड मृत्यु है—आत्मिक क्षेत्र में स्थानांतरण और अमरता नहीं। (उत्पत्ति २:१७) और जब उसने पाप किया, तब यह दण्डादेश दिया गया: “तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१९) जब आदम और हव्वा मरे, तब वे जिसे बाइबल प्रायः “मृत प्राण” या “दिवंगत प्राण” के रूप में सूचित करती है मात्र वही बन गए।—गिनती ५:२; ६:६, NW.

यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं कि द एनसाइक्लोपीडिया अमॆरिकाना इब्रानी शास्त्र में प्राण के बारे में कहती है: “पुराने नियम में मनुष्य की धारणा एकता की धारणा है, प्राण और शरीर के मिलन की नहीं।” वह आगे कहती है: “नीफ़ॆश . . . के बारे में कभी यह विचार नहीं आता कि वह शरीर से अलग होकर काम करता है।”

सो, विश्‍वासी यहूदी मृत्यु को क्या मानते थे? सरल शब्दों में कहें तो वे मानते थे कि मृत्यु जीवन का विपरीत है। भजन १४६:४ (NW) बताता है कि जब आत्मा, या जीवन-शक्‍ति एक मानव जीवधारी को छोड़ती है तब क्या होता है: “उसकी आत्मा चली जाती है, वह वापस अपनी भूमि में चला जाता है; उसी दिन उसके विचार नष्ट हो जाते हैं।”c उसी प्रकार, राजा सुलैमान ने लिखा कि मरे हुए “कुछ भी नहीं जानते।”—सभोपदेशक ९:५.

तो फिर, क्यों अनेक प्रथम-शताब्दी यहूदी, जैसे मसाडा में ज़ॆलटस्‌, प्राण के अमरत्व के बारे में इतने विश्‍वस्त थे?

यूनानी प्रभाव

यहूदियों को यह विचार बाइबल से नहीं, बल्कि यूनानियों से मिला। सामान्य युग पूर्व सातवीं और पाँचवीं शताब्दी के बीच, प्रतीत होता है कि यह धारणा रहस्यमयी यूनानी धार्मिक सम्प्रदायों से यूनानी तत्वज्ञान में आ गयी। एक ऐसे उत्तरजीवन का विचार जहाँ बुरे प्राणों को पीड़ादायी दण्ड मिलता अरसे से बहुत आकर्षक था, और इस धारणा ने रूप लिया और फैल गयी। तत्वज्ञानियों ने प्राण के वास्तविक स्वरूप पर अन्तहीन वाद-विवाद किए। होमर ने दावा किया कि मृत्यु के समय प्राण एक श्रव्य भनभनाहट, चहचहाहट, या सरसराहट की आवाज़ करता हुआ फुरती से उड़ जाता है। एपीक्यूरस ने कहा कि वास्तव में प्राण के पास द्रव्यमान है और, इसलिए यह एक अति सूक्ष्म पदार्थ है।d

लेकिन संभवतः अमर प्राण का सबसे बड़ा समर्थक सा.यु.पू. चौथी शताब्दी का यूनानी तत्वज्ञानी अफ़लातून था। उसके शिक्षक, सुकरात की मृत्यु के बारे में उसका वर्णन कुछ वैसे ही विश्‍वास प्रकट करता है जैसे शताब्दियों बाद मसाडा के ज़ॆलटस्‌ के थे। जैसे विद्वान ऑस्कार कुलमान कहता है, “अफ़लातून हमें दिखाता है कि सुकरात कैसे पूर्ण शान्ति और सुस्थिर-भाव से मरता है। सुकरात की मृत्यु एक सुंदर मृत्यु है। यहाँ मृत्यु के भय का कुछ भी नहीं दिखता। सुकरात मृत्यु से नहीं डर सकता, क्योंकि सचमुच यह हमें शरीर से मुक्‍त कर देती है। . . .  मृत्यु प्राण की बड़ी मित्र है। इसी प्रकार वह सिखाता है; और अपनी शिक्षा के अद्‌भुत सामंजस्य में, इसी प्रकार वह मरता है।”

यह प्रत्यक्षतः मसीह पूर्व दूसरी शताब्दी में, मकाबियों की अवधि में था कि यहूदियों ने यूनानियों से यह शिक्षा अपनानी शुरू की। सामान्य युग प्रथम शताब्दी में, जोसीफ़स हमें बताता है कि फरीसियों और एसीनियों—शक्‍तिशाली यहूदी धार्मिक समूहों—ने इस धर्म-सिद्धान्त को बढ़ावा दिया। कुछ कविताएँ जो संभवतः उस युग में लिखी गयी थीं इसी विश्‍वास को प्रतिबिंबित करती हैं।

लेकिन, यीशु मसीह के बारे में क्या? क्या इसी प्रकार उसने और उसके अनुयायियों ने यूनानी धर्म से यह विचार सिखाया?

प्राण के बारे में आरंभिक मसीहियों का दृष्टिकोण

प्रथम-शताब्दी मसीहियों का प्राण के प्रति वह दृष्टिकोण नहीं था जो यूनानियों का था। उदाहरण के लिए, यीशु के मित्र लाज़र की मृत्यु पर विचार कीजिए। यदि लाज़र के पास एक अमर प्राण था जो मृत्यु के समय फुरती से उड़ गया था, मुक्‍त और सुखी, तो क्या यूहन्‍ना अध्याय ११ का वृत्तान्त बहुत भिन्‍न न होता? यदि लाज़र स्वर्ग में जीवित और ठीक-ठाक और सचेत होता, तो निश्‍चित ही यीशु ने अपने अनुयायियों को बताया होता; इसके विपरीत, उसने इब्रानी शास्त्र को प्रतिध्वनित किया और उनसे कहा कि लाज़र सो रहा था, अचेत था। (आयत ११) यदि उसका मित्र एक अद्‌भुत नए अस्तित्व का आनन्द ले रहा था, तो निश्‍चित ही यीशु आनन्दित हुआ होता; इसके बजाय, हम इस मृत्यु पर उसे सब के सामने रोता हुआ पाते हैं। (आयत ३५) निश्‍चित ही, यदि लाज़र का प्राण स्वर्ग में होता, आनन्ददायी अमरता में प्रफुल्लित, तो यीशु इतना क्रूर कभी न होता कि उसे बीमार और मरणासन्‍न मानवजाति के बीच एक अपरिपूर्ण भौतिक शरीर की “क़ैद” में कुछ साल और रहने के लिए लौटने का आदेश देता।

क्या लाज़र एक स्वतंत्र, शरीरहीन आत्मिक जीवधारी के रूप में अपने आश्‍चर्यपूर्ण चार दिनों के बारे में रोमांचक कहानियाँ लिए मृत्यु से लौटा? जी नहीं, वह ऐसे नहीं लौटा। अमर प्राण में विश्‍वास करनेवाले यह उत्तर देंगे कि ऐसा इसलिए था क्योंकि उस पुरुष का अनुभव इतना विस्मयकारी था कि समझाने के लिए शब्द थोड़े पड़ते। लेकिन यह तर्क विश्‍वास दिलाने में असफल रहता है; आख़िरकार, क्या लाज़र अपने प्रियजनों को कम-से-कम इतना नहीं बता सकता था—कि उसका अनुभव इतना अद्‌भुत था कि वर्णन भी नहीं किया जा सकता? इसके बजाय, लाज़र ने मृतावस्था में उसे हुए किसी अनुभव के बारे में कुछ नहीं कहा। विचार कीजिए—उस विषय पर चुप जो कि किसी भी अन्य विषय से अधिक मानव जिज्ञासा का केंद्र है: मृत्यु कैसी होती है! वह चुप्पी केवल एक तरीक़े से समझायी जा सकती है। कहने के लिए कुछ था ही नहीं। मृतक सो रहे हैं, अचेत हैं।

सो, क्या बाइबल मृत्यु को प्राण के मित्र के रूप में प्रस्तुत करती है, अस्तित्व के चरणों के बीच मात्र एक मार्ग-प्रक्रिया? जी नहीं! प्रेरित पौलुस जैसे सच्चे मसीहियों के लिए, मृत्यु कोई मित्र नहीं थी; वह “अन्तिम बैरी” थी। (१ कुरिन्थियों १५:२६) मसीही मृत्यु को स्वाभाविक नहीं, बल्कि घृणित, अस्वाभाविक समझते हैं, क्योंकि यह परमेश्‍वर के विरुद्ध पाप और विद्रोह का सीधा परिणाम है। (रोमियों ५:१२; ६:२३) यह मानवजाति के लिए परमेश्‍वर के मूल उद्देश्‍य का कभी-भी भाग नहीं थी।

लेकिन, जब प्राण की मृत्यु की बात आती है तब सच्चे मसीही आशाहीन नहीं हैं। लाज़र का पुनरुत्थान अनेक बाइबल वृत्तान्तों में से एक है जो हमें मृत प्राणों की सच्ची, शास्त्रीय आशा—पुनरुत्थान—को सजीव रीति से दिखाते हैं। बाइबल दो भिन्‍न प्रकार के पुनरुत्थान के बारे में सिखाती है। अधिकांश मानवजाति के लिए जो क़ब्र में सो रही है, चाहे धर्मी हों या अधर्मी, यहीं पृथ्वी पर परादीस में सनातन जीवन के पुनरुत्थान की आशा है। (लूका २३:४३; यूहन्‍ना ५:२८, २९; प्रेरितों २४:१५) एक छोटे समूह के लिए जिसे यीशु ने अपना ‘छोटा झुण्ड’ कहकर सूचित किया, स्वर्ग में आत्मिक जीवधारियों के रूप में अमर जीवन का पुनरुत्थान है। ये, जिनमें मसीह के प्रेरित सम्मिलित हैं, मसीह यीशु के साथ मानवजाति पर राज्य करेंगे और उन्हें परिपूर्णता में पुनःस्थापित करेंगे।—लूका १२:३२; १ कुरिन्थियों १५:५३, ५४; प्रकाशितवाक्य २०:६.

तो फिर, हम मसीहीजगत के गिरजों को पुनरुत्थान नहीं, बल्कि मानव प्राण का अमरत्व सिखाते हुए क्यों पाते हैं? १९५९ में द हार्वर्ड थिओलॉजिकल रिव्यू में धर्मविज्ञानी वर्नर यॆगर द्वारा प्रदान किए गए उत्तर पर विचार कीजिए: “मसीही धर्म-सिद्धान्त के इतिहास में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह था कि मसीही धर्म-विज्ञान का पिता, ऑरिजॆन सिकन्दरिया के स्कूल में अफ़लातूनी तत्वज्ञानी था। उसने मसीही धर्म-सिद्धान्त में अमर प्राण के बारे में विस्तृत शिक्षाएँ जोड़ दीं, जो उसने अफ़लातून से ली थीं।” सो गिरजे ने ठीक वही किया जो शताब्दियों पहले यहूदियों ने किया था! उन्होंने यूनानी तत्वज्ञान अपनाने के लिए बाइबलीय शिक्षाएँ त्याग दीं।

इस धर्म-सिद्धान्त के वास्तविक उद्‌गम

प्राण के अमरत्व के धर्म-सिद्धान्त की प्रतिरक्षा में, अब कुछ लोग पूछ सकते हैं, ऐसा क्यों है कि वही धर्म-सिद्धान्त एक-न-एक रूप में संसार के इतने सारे धर्मों में सिखाया जाता है? शास्त्र इसका एक ठोस कारण देता है कि क्यों यह शिक्षा इस संसार के धार्मिक समुदायों में इतनी प्रचलित है।

बाइबल हमें बताती है कि “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है” और स्पष्ट रीति से शैतान की पहचान ‘इस जगत के सरदार’ के रूप में कराती है। (१ यूहन्‍ना ५:१९; यूहन्‍ना १२:३१) स्पष्टतया, संसार के धर्म शैतान के प्रभाव से अछूते नहीं रहे हैं। इसके विपरीत, उन्होंने आज के संसार के संकट और संघर्ष में अत्यधिक योग दिया है। और प्राण के विषय पर, ऐसा दिखता है कि वे शैतान का विचार स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करते हैं। वह कैसे?

सबसे पहला झूठ याद है ना। परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा से कहा था कि यदि वे उसके विरुद्ध पाप करेंगे तो फलस्वरूप मृत्यु आएगी। लेकिन शैतान ने हव्वा को आश्‍वस्त किया: “तुम निश्‍चय न मरोगे।” (उत्पत्ति ३:४) निःसंदेह, आदम और हव्वा मरे; वे फिर से मिट्टी में मिल गए जैसा परमेश्‍वर ने कहा था। शैतान ने, जो “झूठ का पिता” है, अपने पहले झूठ को छोड़ा नहीं। (यूहन्‍ना ८:४४) उन अनगिनत धर्मों में जो बाइबल धर्म-सिद्धान्त से विचलित होते हैं या सीधे-सीधे उसकी उपेक्षा करते हैं, यही विचार अभी-भी फैलाया जाता है: ‘तुम निश्‍चय न मरोगे। तुम्हारा शरीर नष्ट हो सकता है, परन्तु तुम्हारा प्राण जीवित रहेगा, सर्वदा—परमेश्‍वर के तुल्य!’ दिलचस्पी की बात है कि शैतान ने हव्वा से यह भी कहा था कि वह “परमेश्‍वर के तुल्य” हो जाएगी!—उत्पत्ति ३:५.

कितना बेहतर है एक ऐसी आशा रखना जो झूठ या मानव तत्वज्ञान पर नहीं, बल्कि सत्य पर आधारित है। कितना बेहतर है इस बारे में विश्‍वस्त होना कि हमारे मृत प्रियजन क़ब्र में अचेत हैं, बजाय इसके कि किसी अमर प्राण के हालचाल के बारे में चिन्ता करना! मृतकों की इस नींद से हमको भयभीत या हताश होने की ज़रूरत नहीं। एक तरीक़े से, हम यह समझ सकते हैं कि मृतक एक सुरक्षित विश्राम स्थान में हैं। सुरक्षित क्यों? क्योंकि बाइबल हमें आश्‍वस्त करती है कि जिन मृतकों से यहोवा प्रेम करता है वे एक ख़ास अर्थ में जीवित हैं। (लूका २०:३८) वे उसके स्मरण में जीवित हैं। यह बहुत ही सांत्वनादायी विचार है क्योंकि उसकी स्मरण-शक्‍ति की कोई सीमा नहीं। वह अनगिनत लाखों प्रिय मनुष्यों को जीवित करने और उन्हें परादीस पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहने का अवसर देने के लिए उत्सुक है।—अय्यूब १४:१४, १५ से तुलना कीजिए।

पुनरुत्थान का शानदार दिन आएगा, क्योंकि यहोवा की सभी प्रतिज्ञाओं का पूरा होना अवश्‍य है। (यशायाह ५५:१०, ११) इस भविष्यवाणी के पूरा होने के बारे में ज़रा सोचिए: “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्‍न होती है, और पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी।” (यशायाह २६:१९) सो वे मृतक जो क़ब्र में सो रहे हैं उतने ही सुरक्षित हैं जितना की माता के गर्भ में एक बच्चा। वे जल्द ही “जन्म” लेनेवाले हैं, अर्थात्‌ परादीस पृथ्वी पर वापस लाए जानेवाले हैं!

कौन-सी आशा इससे बेहतर हो सकती है?

[फुटनोट]

a कहा जाता है कि दो स्त्रियाँ और पाँच बच्चे छिपकर बच गए। बाद में उन स्त्रियों ने अपने रोमी बन्दीकर्ताओं को विस्तृत विवरण दिया।

b निःसंदेह, जैसा उन अनेक शब्दों के साथ है जिनका अति विस्तृत प्रयोग है, शब्द नीफ़ॆश के भी अन्य अर्थ-भेद हैं। उदाहरण के लिए, यह आन्तरिक व्यक्‍ति को सूचित कर सकता है, ख़ासकर गहरी भावनाओं के सम्बन्ध में। (१ शमूएल १८:१) यह उस जीवन को भी सूचित कर सकता है जिसका आनन्द एक व्यक्‍ति एक प्राण के रूप में लेता है।—१ राजा १७:२१-२३.

c “आत्मा” के लिए इब्रानी शब्द रूआक का अर्थ है “साँस” या “हवा।” मानव जीवधारियों के सम्बन्ध में, यह एक सचेत आत्मिक अस्तित्व को सूचित नहीं करता परन्तु, इसके बजाय, जैसा द न्यू इंटरनैशनल डिक्शनरी ऑफ़ न्यू टॆस्टामॆंट थिऑलोजी कहती है, यह “व्यक्‍ति की जीवन-शक्‍ति” को सूचित करता है।

d इन कुछ-कुछ अजीबो-ग़रीब विचारधाराओं पर सोचनेवाला वह आख़िरी व्यक्‍ति नहीं था। इस शताब्दी के आरंभिक भाग में, एक वैज्ञानिक ने दावा किया कि उसने वास्तव में कई लोगों के प्राणों को तौला है, मृत्यु से तुरन्त पहले उनके वज़न में से मृत्यु के तुरन्त बाद उनके वज़न को घटाने के द्वारा।

[पेज 7 पर तसवीरें]

मसाडा के यहूदी ज़ॆलटस्‌ मानते थे कि मृत्यु उनके प्राण मुक्‍त करेगी

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