“तुम भी अपने सारे चालचलन में पवित्र बनो”
“पर जैसा तुम्हारा बुलानेवाला पवित्र है, वैसे ही तुम भी अपने सारे चालचलन में पवित्र बनो। क्योंकि लिखा है, कि पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।”—१ पतरस १:१५, १६.
१. पतरस ने मसीहियों को पवित्र होने के लिए क्यों प्रोत्साहित किया?
प्रेरित पतरस ने उपरोक्त सलाह क्यों दी? क्योंकि उसने हरेक मसीही द्वारा अपने विचारों और कार्यों की चौकसी करने की ज़रूरत को देखा ताकि वे यहोवा की पवित्रता के सामंजस्य में रह सकें। अतः, उसने उपरोक्त शब्दों के आगे यह कहा: ‘अपनी अपनी बुद्धि की कमर बान्धकर, और सचेत रहो और आज्ञाकारी बालकों की नाईं अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के सदृश न बनो।’—१ पतरस १:१३, १४.
२. हमारे सच्चाई सीखने से पहले हमारी अभिलाषाएँ क्यों अपवित्र थीं?
२ हमारी पहले की अभिलाषाएँ अपवित्र थीं। क्यों? क्योंकि हमारे मसीही सच्चाई को स्वीकारने से पहले हम में से अनेक लोग एक सांसारिक मार्ग पर चलते थे। पतरस इसे जानता था जब उसने साफ़-साफ़ लिखा: “अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्त्तिपूजा में जहां तक हम ने पहिले समय गंवाया, वही बहुत हुआ।” निश्चय ही, पतरस ने उन अपवित्र कार्यों के बारे में नहीं बताया जो हमारे आधुनिक संसार की ख़ासियत हैं, चूँकि ये तब अज्ञात थे।—१ पतरस ४:३, ४.
३, ४. (क) हम ग़लत अभिलाषाओं का विरोध कैसे कर सकते हैं? (ख) क्या मसीहियों को अभावात्मक होना चाहिए? समझाइए।
३ क्या आपने ध्यान दिया कि ये अभिलाषाएँ वे हैं जो शरीर को, इन्द्रियों को, और भावनाओं को भाती हैं? जब हम इनको हावी होने देते हैं, तब हमारे विचार और कार्य बहुत आसानी से अपवित्र हो जाते हैं। यह बात हमारे कार्यों पर तर्क-शक्ति को नियंत्रण करने देने की ज़रूरत को सचित्रित करती है। पौलुस ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया: “इसलिए हे भाइयों, मैं परमेश्वर की करुणा द्वारा तुमसे बिनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, पवित्र, और परमेश्वर को स्वीकार्य बलिदान के रूप में चढ़ाओ, अर्थात् अपनी तर्क-शक्ति सहित पवित्र सेवा।”—रोमियों १२:१, २, NW.
४ परमेश्वर को एक पवित्र बलिदान प्रस्तुत करने के लिए, हमें तर्क-शक्ति को, न कि भावनाओं को प्रबल होने देना चाहिए। कितने लोग अनैतिकता में बह गए हैं क्योंकि उन्होंने अपनी भावनाओं को अपने आचरण पर नियंत्रण रखने दिया! इसका यह अर्थ नहीं है कि हमारी भावनाओं को दबाया जाना है; नहीं तो, हम यहोवा की सेवा में आनन्द कैसे व्यक्त कर सकते हैं? लेकिन, यदि हम शरीर के कामों के बजाय आत्मा के फल उत्पन्न करना चाहते हैं, तो हमें अपने मन को बदलकर मसीह की विचार-शैली की तरह बनाना चाहिए।—गलतियों ५:२२, २३; फिलिप्पियों २:५.
पवित्र जीवन, पवित्र मूल्य
५. पवित्रता की ज़रूरत के प्रति पतरस क्यों सचेत था?
५ मसीही पवित्रता की ज़रूरत के प्रति पतरस इतना सचेत क्यों था? क्योंकि वह आज्ञाकारी मनुष्यजाति को छुड़ाने के लिए चुकाए गए पवित्र मूल्य से अच्छी तरह अवगत था। उसने लिखा: “तुम जानते हो, कि तुम्हारा निकम्मा चालचलन जो बापदादों से चला आता है उस से तुम्हारा छुटकारा चान्दी सोने अर्थात् नाशमान वस्तुओं के द्वारा नहीं हुआ। पर निर्दोष और निष्कलंक मेम्ने अर्थात् मसीह के बहुमूल्य लोहू के द्वारा हुआ।” (१ पतरस १:१८, १९) जी हाँ, पवित्रता के स्रोत, यहोवा परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र, अर्थात् “पवित्र जन” को पृथ्वी पर उस छुड़ौती को देने के लिए भेजा जिससे लोगों का परमेश्वर के साथ एक अच्छा सम्बन्ध संभव होता।—यूहन्ना ३:१६; ६:६९; निर्गमन २८:३६; मत्ती २०:२८.
६. (क) हमारे लिए पवित्र आचरण में लगे रहना क्यों आसान नहीं है? (ख) अपने आचरण को पवित्र बनाए रखने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?
६ लेकिन, हमें यह समझना होगा कि शैतान के भ्रष्ट संसार के बीच एक पवित्र जीवन व्यतीत करना आसान नहीं है। वह उन सच्चे मसीहियों के लिए फंदे डालता है जो उसकी रीति-व्यवस्था में जीने की कोशिश कर रहे हैं। (इफिसियों ६:१२; १ तीमुथियुस ६:९, १०) लौकिक कार्य, परिवार से विरोध, स्कूल में उपहास, और समकक्षों का दबाव व्यक्ति द्वारा पवित्रता बनाए रखने के लिए मज़बूत आध्यात्मिकता को अत्यावश्यक बनाता है। यह हमारे व्यक्तिगत अध्ययन और मसीही सभाओं में हमारी नियमित उपस्थिति की अत्यावश्यक भूमिका पर ज़ोर देता है। पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी: “उन स्वास्थ्यकर शब्दों के नमूने को पकड़े रहो जिसे तुमने मुझसे उस विश्वास और प्रेम के साथ सुना, जो मसीह यीशु के सम्बन्ध में हैं।” (२ तीमुथियुस १:१३, NW) हम उन स्वास्थ्य-प्रदान करनेवाले शब्दों को हमारे राज्यगृह में और बाइबल के अपने व्यक्तिगत अध्ययन में सुनते हैं। वे हमें अनेक भिन्न स्थितियों में रोज़ अपने आचरण में पवित्र होने के लिए हमारी मदद कर सकते हैं।
परिवार में पवित्र आचरण
७. पवित्रता को हमारे पारिवारिक जीवन को कैसे प्रभावित करना चाहिए?
७ जब पतरस ने लैव्यव्यवस्था ११:४४ को उद्धृत किया, तब उसने यूनानी शब्द हेगिऑस का इस्तेमाल किया, जिसका अर्थ है “पाप से वियोजित और इसीलिए परमेश्वर को अर्पित, पावन।” (डब्ल्यू. ई. वाइन द्वारा एन एक्सपॉसिट्री डिक्शनरी ऑफ़ न्यू टॆस्टामेंट वर्ड्स, अंग्रेज़ी) इसे हमारे मसीही पारिवारिक जीवन में हमें कैसे प्रभावित करना चाहिए? इसका निश्चय ही यह अर्थ है कि हमारे पारिवारिक जीवन को प्रेम पर आधारित होना चाहिए, क्योंकि “परमेश्वर प्रेम है।” (१ यूहन्ना ४:८) आत्म-त्यागी प्रेम वह तेल है जो पति-पत्नी के बीच और माता-पिता तथा बच्चों के बीच के रिश्ते को मधुर बनाता है।—१ कुरिन्थियों १३:४-८; इफिसियों ५:२८, २९, ३३; ६:४; कुलुस्सियों ३:१८, २१.
८, ९. (क) कौन-सी स्थिति कभी-कभी एक मसीही घर में विकसित होती है? (ख) इस विषय पर बाइबल कौन-सी ठोस सलाह देती है?
८ हम शायद सोचें कि ऐसा प्रेम व्यक्त करना एक मसीही परिवार में स्वाभाविक होगा। फिर भी, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि कुछ मसीही घरों में प्रेम हमेशा उतना प्रबल नहीं होता है जितना कि उसे होना चाहिए। राज्यगृह में शायद ऐसा होते हुए प्रकट हो, लेकिन पारिवारिक विन्यास में कितनी आसानी से हमारी पवित्रता घट सकती है। तब हम शायद एकाएक भूल जाएँ कि पत्नी अब भी हमारी मसीही बहन है या कि पति अब भी वही भाई (और शायद एक सहायक सेवक या एक प्राचीन) है जो राज्यगृह में सम्मानित प्रतीत होता था। हम खीज जाते हैं, और गहमा-गहमी बहस उत्पन्न हो सकती हैं। हमारे जीवन में एक दोहरा-स्तर भी आहिस्ते-आहिस्ते आ सकता है। फिर यह मसीह-समान पति और पत्नी का रिश्ता नहीं रह जाता बल्कि असहमति में महज़ एक पुरुष और स्त्री का रिश्ता बनकर रह जाता है। वे भूल जाते हैं कि घर पर एक पवित्र माहौल होना चाहिए। शायद वे सांसारिक लोगों कि तरह बोलने लगते हैं। तब मुंह से कितनी आसानी से गन्दी, कटु टिप्पणी फूट सकती है!—नीतिवचन १२:१८. प्रेरितों १५:३७-३९ से तुलना कीजिए।
९ लेकिन, पौलुस सलाह देता है: “कोई गन्दी बात [यूनानी, लोगोस सैप्रॉस्, “दूषित करनेवाली बोली,” इसीलिए अपवित्र] तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुननेवालों पर अनुग्रह हो।” और यह घर पर सभी सुननेवालों को सूचित करता है, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं।—इफिसियों ४:२९; याकूब ३:८-१०.
१०. पवित्रता पर सलाह बच्चों पर कैसे लागू होती है?
१० अब पवित्रता पर यह मार्गदर्शन मसीही परिवार के बच्चों पर समान रूप से लागू होता है। उनके लिए स्कूल से घर आकर अपने सांसारिक समकक्षों की विद्रोहपूर्ण और अनादरपूर्ण बोली की नक़ल शुरू करना कितना आसान होता है! बच्चों, उन असभ्य लड़कों द्वारा दिखायी गयी मनोवृत्तियों की ओर आकर्षित मत होइए जिन्होंने यहोवा के भविष्यवक्ता का अपमान किया और जिनकी तरह आज गन्दी भाषा बोलनेवाले, ईशनिन्दा करनेवाले युवा हैं। (२ राजा २:२३, २४) आपकी बोली को उन लोगों की अशिष्ट चालू भाषा से दूषित नहीं होना चाहिए जो उचित शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए या तो बहुत ही आलसी हैं या लापरवाह हैं। मसीहियों के तौर पर, हमारी बोली पवित्र, सुहावनी, प्रोत्साहक, कृपालु, और “सलोनी” होनी चाहिए। इसे हमें दूसरे लोगों से भिन्न के रूप में अलग दिखाना चाहिए।—कुलुस्सियों ३:८-१०; ४:६, NHT.
पवित्रता और हमारे परिवार के अविश्वासी सदस्य
११. पवित्र होने का अर्थ दंभी होना क्यों नहीं है?
११ जबकि हम ईमानदारी से पवित्रता की आदत डालने की कोशिश करते हैं, हमें अहंकारी और दंभी प्रतीत नहीं होना चाहिए, विशेषकर परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ व्यवहार करते वक़्त। हमारे कृपालु मसीही आचरण से कम-से-कम उन्हें यह देखने में मदद मिलनी चाहिए कि हम सकारात्मक रूप से भिन्न हैं, कि हम यीशु के दृष्टान्त के भले सामरी की तरह प्रेम और करुणा दिखाना वाक़ई जानते हैं।—लूका १०:३०-३७.
१२. मसीही पति-पत्नी अपने विवाह-साथी के लिए सच्चाई को और भी आकर्षक कैसे बना सकते हैं?
१२ पतरस ने हमारे परिवार के अविश्वासी सदस्यों के प्रति उचित मनोवृत्ति के महत्त्व पर ज़ोर दिया जब उसने मसीही पत्नियों को लिखा: “हे पत्नियो, तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित पवित्र चालचलन को देखकर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।” एक मसीही पत्नी (या पति ही क्यों न हो) एक अविश्वासी विवाह-साथी के लिए सच्चाई को और भी आकर्षक बना सकती है यदि उसका आचरण शुद्ध, विचारशील, और आदरपूर्ण है। इसका अर्थ है कि ईश्वरशासित सारणी में नम्यता होनी चाहिए ताकि अविश्वासी विवाह-साथी का तिरस्कार नहीं किया जाता या उसकी उपेक्षा नहीं की जाती है।a—१ पतरस ३:१, २.
१३. किस प्रकार प्राचीन और सहायक सेवक अविश्वासी पतियों को सच्चाई का मूल्यांकन करने में कभी-कभार मदद कर सकते हैं?
१३ प्राचीन और सहायक सेवक अनौपचारिक रूप से अविश्वासी पति से परिचित होने के द्वारा कभी-कभी मदद कर सकते हैं। इस तरीक़े से वह देख सकता है कि साक्षी व्यापक क़िस्म की रुचियाँ रखनेवाले, जिनमें बाइबल के अलावा अन्य विषय भी शामिल हैं, आम, सभ्य लोग हैं। एक मामले में, एक प्राचीन ने एक पति की मछुवाही के शौक़ में दिलचस्पी ली। यह रोड़े को हटाने के लिए काफ़ी था। वह पति अंततः एक बपतिस्मा-प्राप्त भाई बना। एक और मामले में, एक अविश्वासी पति को कनारी चिड़ियों में दिलचस्पी थी। प्राचीनों ने हार नहीं मानी। उनमें से एक ने इस विषय का अध्ययन किया ताकि अगली बार जब वह उस व्यक्ति से मिले, तो वह पति के उस पसन्दीदा विषय पर वार्तालाप शुरू कर सके! इसलिए, पवित्र होने का अर्थ सख़्त होना या संकीर्ण मनवाले होना नहीं है।—१ कुरिन्थियों ९:२०-२३.
हम कलीसिया में पवित्र कैसे हो सकते हैं?
१४. (क) कलीसिया को कमज़ोर करने के लिए शैतान का एक तरीक़ा कौन-सा है? (ख) हम शैतान के फंदे का विरोध कैसे कर सकते हैं?
१४ शैतान अर्थात् इब्लीस एक निन्दक है, क्योंकि इब्लीस के लिए यूनानी नाम, डियाबोलोस का अर्थ है “दोष लगानेवाला” या “निन्दक।” निन्दा करना उसकी एक विशेषता है, और वह इसका इस्तेमाल कलीसिया में करने की कोशिश करता है। उसका पसन्दीदा तरीक़ा है गप। इस अपवित्र आचरण में क्या हम अपने आपको उसके द्वारा ठगे जाने देते हैं? यह कैसे हो सकता है? इसकी शुरूआत करने, इसे दोहराने, या इसे सुनने के द्वारा। बुद्धिमान नीतिवचन कहता है: “टेढ़ा मनुष्य बहुत झगड़े को उठाता है, और कानाफूसी करनेवाला परम मित्रों में भी फूट करा देता है।” (नीतिवचन १६:२८) गप और निन्दा का प्रतिकारक क्या है? हमें यह निश्चित करना चाहिए कि हमारी बोली हमेशा प्रोत्साहक और प्रेम पर आधारित है। यदि हम अपने भाइयों के कल्पित दुर्गुणों के बजाय सद्गुणों की ताक में रहें, तो हमारा वार्तालाप हमेशा सुखद और आध्यात्मिक रहेगा। याद रखिए कि आलोचना आसान होती है। और जो व्यक्ति दूसरों के बारे में आपको गप सुनाता है, वह शायद आपके बारे में भी दूसरों को गप सुनाए!—१ तीमुथियुस ५:१३; तीतुस २:३.
१५. कौन-से मसीह-समान गुण कलीसिया में सभी को पवित्र बनाए रखने में मदद करेंगे?
१५ कलीसिया को पवित्र बनाए रखने के लिए, हम सभी के पास मसीह का मन होने की ज़रूरत है, और हम जानते हैं कि उसका प्रमुख गुण प्रेम है। अतः, पौलुस ने कुलुस्सियों को मसीह के समान करुणामय होने की सलाह दी: “इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। . . . एक दूसरे के अपराध क्षमा करो . . . इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।” फिर उसने आगे कहा: “और मसीह की शान्ति . . . तुम्हारे हृदय में राज्य करे।” इस क्षमाशील भावना के साथ निश्चय ही हम कलीसिया की एकता और पवित्रता को बनाए रख सकते हैं।—कुलुस्सियों ३:१२-१५.
क्या हमारी पवित्रता हमारे पास-पड़ोस में दिखती है?
१६. हमारी पवित्र उपासना को आनन्दायी उपासना क्यों होना चाहिए?
१६ हमारे पड़ोसियों के बारे में क्या? वे हमें किस दृष्टिकोण से देखते हैं? क्या हम सच्चाई के आनन्द को फैलाते हैं, या क्या हम इसे एक बोझ की तरह दिखाते हैं? यदि हम पवित्र हैं, जिस तरह यहोवा भी पवित्र है, तो यह बात हमारी बोली और हमारे आचरण में प्रत्यक्ष होनी चाहिए। यह स्पष्ट होना चाहिए कि हमारी पवित्र उपासना आनन्दायी उपासना है। ऐसा क्यों? क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा एक ख़ुश परमेश्वर है, जो चाहता है कि उसके उपासक आनन्दपूर्ण हों। अतः, प्राचीन समयों में यहोवा के लोगों के बारे में भजनहार कह सका: “क्या ही धन्य [“ख़ुश,” NW] है वह प्रजा जिसका परमेश्वर यहोवा है!” क्या हम इस ख़ुशी को प्रतिबिंबित करते हैं? क्या हमारे बच्चे भी राज्यगृहों और सम्मेलनों में यहोवा के लोगों के बीच होने में संतुष्टि प्रकट करते हैं?—भजन ८९:१५, १६; १४४:१५ख।
१७. संतुलित पवित्रता दिखाने के लिए हम व्यावहारिक तरीक़े से क्या कर सकते हैं?
१७ सहयोग और मित्रवत् कृपा की अपनी भावना के द्वारा हम अपनी संतुलित पवित्रता भी दिखा सकते हैं। कभी-कभी पड़ोसियों के लिए साथ-साथ काम करना ज़रूरी होता है, शायद पास-पड़ोस की सफ़ाई करने के लिए या, जैसे कुछ देशों में होता है, सड़कों और राजमार्गों को सुधारने में मदद करने के लिए। इस सम्बन्ध में, जिस प्रकार हम अपने बग़ीचों, आँगनों, या अन्य सम्पत्ति की देखभाल करते हैं, उससे हमारी पवित्रता प्रत्यक्ष हो सकती है। यदि हम अपना कूड़ा-कचरा यहाँ-वहाँ पड़ा रहने देते हैं या हमारा आँगन अस्त-व्यस्त रहता है, जिसमें शायद सब की नज़रों में पड़नेवाली पुरानी ख़राब गाड़ियाँ भी हों, तो क्या हम कह सकते हैं कि हम अपने पड़ोसियों के साथ आदर सहित व्यवहार कर रहे हैं?—प्रकाशितवाक्य ११:१८.
कार्यस्थल और स्कूल में पवित्रता
१८. (क) आज मसीहियों के लिए एक विकट स्थिति क्या है? (ख) हम संसार से भिन्न कैसे हो सकते हैं?
१८ प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ के अपवित्र शहर के मसीहियों को लिखा: “मैं ने अपनी पत्री में तुम्हें लिखा है, कि व्यभिचारियों की संगति न करना। यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अन्धेर करनेवालों, या मूर्त्तिपूजकों की संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता।” (१ कुरिन्थियों ५:९, १०) यह मसीहियों के लिए एक विकट स्थिति है, जिन्हें अनैतिक या निर्नैतिक लोगों के साथ रोज़ाना मिलना-जुलना पड़ता है। यह खराई की एक बड़ी परीक्षा है, विशेषकर ऐसी संस्कृतियों में जहाँ लैंगिक उत्पीड़न, भ्रष्टाचार, और बेइमानी को बढ़ावा दिया जाता या अनदेखा किया जाता है। ऐसी स्थिति में, हम अपने स्तरों को नीचे नहीं गिरा सकते ताकि हम अपने आस-पास के लोगों के लिए “सामान्य” प्रतीत हों। इसके बजाय, हमारे कृपालु लेकिन भिन्न मसीही आचरण से हमें समझदार लोगों को भिन्न दिखना चाहिए, ऐसे लोग जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत को पहचानते हैं और जो कुछ बेहतर की ताक में हैं।—मत्ती ५:३; १ पतरस ३:१६, १७.
१९. (क) आप बच्चों को स्कूल में कौन-सी परीक्षाएँ आती हैं? (ख) अपने बच्चों और उनके पवित्र आचरण को सहारा देने के लिए माता-पिता क्या कर सकते हैं?
१९ उसी तरह, स्कूल में हमारे बच्चों के सामने अनेक परीक्षाएँ होती हैं। क्या आप माता-पिता अपने बच्चों के स्कूल में भेंट करने जाते हैं? क्या आप जानते हैं कि वहाँ किस प्रकार का माहौल प्रबल है? क्या आपका शिक्षकों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध है? ये सवाल क्यों महत्त्वपूर्ण हैं? क्योंकि संसार के अनेक शहरी क्षेत्रों में, स्कूल हिंसा, नशीली दवाइयों, और सॆक्स के अड्डे बन गए हैं। यदि आपके बच्चों को अपने माता-पिता का पूरा-पूरा सहानुभूतिशील सहारा न मिले तो वे अपनी खराई और अपना पवित्र आचरण कैसे बनाए रख सकते हैं? उचित रूप से पौलुस ने माता-पिताओं को सलाह दी: “हे पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, ऐसा न हो कि वे निरुत्साहित हो जाएं।” (कुलुस्सियों ३:२१, NHT) बच्चों को क्रोध दिलाने का एक तरीक़ा है उनकी रोज़ की समस्याओं और परीक्षाओं को समझने से चूक जाना। स्कूल के प्रलोभनों के लिए तैयारी एक मसीही घर के आध्यात्मिक माहौल से शुरू होती है।—व्यवस्थाविवरण ६:६-९; नीतिवचन २२:६.
२०. हम सभी के लिए पवित्रता अत्यावश्यक क्यों है?
२० अंत में, हम सभी के लिए पवित्रता अत्यावश्यक क्यों है? क्योंकि यह शैतान के संसार और सोच-विचार के अतिक्रमण के प्रति एक बचाव का काम करती है। यह अभी एक आशीष है और भविष्य में भी होगी। यह उस जीवन की हमें गारंटी देने में मदद देती है जो धार्मिकता के नए संसार में असल जीवन होगा। यह हमें संतुलित, सुगम्य, अभिव्यक्तिशील मसीही—न कि निष्ठुर हठधर्मी—होने में मदद देती है। संक्षिप्त में, यह हमें मसीह-समान बनाती है।—१ तीमुथियुस ६:१९.
[फुटनोट]
a अविश्वासी विवाह-साथियों के साथ व्यवहार-कुशल सम्बन्धों के बारे में अतिरिक्त जानकारी के लिए, अगस्त १५, १९९० की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २०-२ पर “अपने विवाह-साथी की उपेक्षा मत कीजिए!” और नवम्बर १, १९८८ (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २४-५ के अनुच्छेद २०-२ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ पतरस को पवित्रता पर मसीहियों को सलाह देने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई?
◻ पवित्र जीवन व्यतीत करना आसान क्यों नहीं है?
◻ परिवार में पवित्रता को बढ़ाने के लिए हम सभी क्या कर सकते हैं?
◻ कलीसिया के पवित्र बने रहने के लिए, हमें कौन-से अपवित्र आचरण से दूर रहना चाहिए?
◻ कार्यस्थल और स्कूल में हम कैसे पवित्र बने रह सकते हैं?
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
यहोवा के साक्षियों के तौर पर, हमें यहोवा की सेवा करने में और अन्य गतिविधियों में आनन्दपूर्ण होना चाहिए