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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 8/15 पेज 30-31

पाठकों के प्रश्‍न

कुछ सालों की रिपोर्टें दिखाती हैं कि स्मारक प्रतीकों में भाग लेनेवालों की संख्या थोड़ी-सी बढ़ गयी है। क्या यह सुझाता है कि अनेक नए जन पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त हो रहे हैं?

यह विश्‍वास करने का ठोस कारण है कि १,४४,००० अभिषिक्‍त मसीहियों की संख्या दशकों पहले पूरी हो चुकी है।

प्रेरितों २:१-४ में हम उस सीमित समूह के पहले जनों के बारे में पढ़ते हैं: “जब पिन्तेकुस्त का दिन आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। और एकाएक आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द हुआ, और उस से सारा घर जहां वे बैठे थे, गूंज गया। और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।”

उसके बाद, यहोवा ने दूसरों को चुना, और उसने उन्हें अपनी पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया। हज़ारों लोग मसीहियत के अति आरंभिक सालों में शामिल किए गए। हमारे समय के स्मारक समारोह में, वक्‍ता प्रायः रोमियों ८:१५-१७ में दिए गए प्रेरित पौलुस के शब्दों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जो इसका उल्लेख करते हैं कि अभिषिक्‍त जनों को ‘लेपालकपन की आत्मा मिलती है।’ पौलुस ने आगे कहा कि जो पवित्र आत्मा उन्हें मिलती है वह ‘आप ही उनकी आत्मा के साथ गवाही देती है कि वे परमेश्‍वर की सन्तान हैं, और मसीह के संगी वारिस हैं।’ जो सचमुच इस प्रकार आत्मा-अभिषिक्‍त हैं वे निश्‍चितता से यह जानते हैं। यह मात्र एक चाह या अपने बारे में एक भावात्मक और अवास्तविक दृष्टिकोण का परिणाम नहीं है।

हमारी समझ है कि यह स्वर्गीय बुलावा शताब्दियों के दौरान जारी रहा, जबकि तथाकथित अन्धकार युग के दौरान, शायद ऐसे समय थे जब अभिषिक्‍त जनों की संख्या बहुत थोड़ी थी।a पिछली शताब्दी के अन्त के निकट सच्ची मसीहियत की पुनःस्थापना के बाद, अधिक लोगों को बुलाया और चुना गया। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि दशक १९३० के मध्य में, १,४४,००० की कुल संख्या मूलतः पूरी हो गयी। अतः पार्थिव आशावाले निष्ठावान मसीहियों का एक समूह प्रकट होने लगा। यीशु ने इन्हें “अन्य भेड़ें” (NW) कहा, जो एक अनुमोदित झुंड के रूप में अभिषिक्‍त जनों के साथ उपासना में एक होते हैं।—यूहन्‍ना १०:१४-१६.

पिछले दशकों के तथ्य दिखाते हैं कि अभिषिक्‍त जनों का बुलावा पूरा हो गया है और यहोवा की आशिष बढ़ती हुई “बड़ी भीड़” पर है, जो “बड़े क्लेश” से बचकर निकलने की आशा रखते हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) उदाहरण के लिए, १९३५ के स्मारक समारोह में, उपस्थित ६३,१४६ जनों में से, अपने अभिषिक्‍त होने की घोषणा के प्रमाण के रूप में प्रतीकों में भाग लेनेवालों की संख्या ५२,४६५ थी। तीस साल बाद, अथवा १९६५ में, उपस्थिति १९,३३,०८९ थी, जबकि भाग लेनेवाले घटकर ११,५५० हो गए थे। तीस साल आगे आते हुए, १९९५ में उपस्थिति बढ़कर १,३१,४७,२०१ हो गयी, लेकिन केवल ८,६४५ जनों ने रोटी और दाखमधु में भाग लिया। (१ कुरिन्थियों ११:२३-२६) स्पष्टतया, जैसे-जैसे दशक गुज़रे, शेषजन होने का दावा करनेवालों की संख्या बहुत ही घट गयी—१९३५ में ५२,४००; १९६५ में ११,५००; १९९५ में ८,६०० के लगभग। लेकिन, जिनकी पार्थिव आशाएँ हैं उन्हें आशिष मिली है, और उनकी संख्या में बहुत बढ़ोतरी हुई है।

सबसे हाल की प्रकाशित रिपोर्ट वर्ष १९९५ की है, और वह दिखाती है कि पिछले साल से २८ अधिक लोगों ने भाग लिया, जबकि भाग लेनेवालों और उपस्थित होनेवालों का अनुपात असल में गिर गया। सबकुछ देखकर कहें तो यह तथ्य कि कुछ अधिक लोगों ने प्रतीकों में भाग लेने का चुनाव किया चिन्ता की कोई बात नहीं है। सालों के दौरान कुछ लोगों ने, यहाँ तक कि नए-नए बपतिस्मा प्राप्त लोगों ने, अचानक ही भाग लेना शुरू किया है। कई मामलों में, कुछ समय के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि वह एक भूल थी। कुछ लोगों ने माना है कि उन्होंने संभवतः शारीरिक या मानसिक तनाव से उत्पन्‍न भावात्मक प्रतिक्रिया के रूप में भाग लिया। लेकिन उन्हें समझ आया कि वास्तव में उन्हें स्वर्गीय जीवन के लिए नहीं बुलाया गया था। उन्होंने परमेश्‍वर की दयापूर्ण समझ की बिनती की। और वे पृथ्वी पर अनन्त जीवन की आशा के साथ, उत्तम, निष्ठावान मसीहियों के रूप में उसकी सेवा करना जारी रखते हैं।

यदि एक व्यक्‍ति प्रतीकों में भाग लेना शुरू कर देता है या लेना बन्द कर देता है तो हममें से किसी को चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं। यह वास्तव में हम पर नहीं कि कोई असल में पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त हुआ है और स्वर्गीय जीवन के लिए बुलाया गया है या नहीं। यीशु के ठोस आश्‍वासन को याद कीजिए: “अच्छा चरवाहा मैं हूं; . . . मैं अपनी भेड़ों को जानता हूं।” उतनी ही निश्‍चितता से, यहोवा उनको जानता है जिन्हें उसने आत्मिक पुत्रों के रूप में चुना है। यह विश्‍वास करने का हर कारण है कि अभिषिक्‍त जनों की संख्या घटती जाएगी जैसे-जैसे बुढ़ापा और अप्रत्याशित घटनाएँ उनका पार्थिव जीवन समाप्त करती हैं। फिर भी, जैसे ये सचमुच अभिषिक्‍त जन मृत्यु तक वफ़ादार साबित होते हैं, और जीवन का मुकुट पाने की आस देखते हैं, वैसे ही अन्य भेड़ें, जिन्होंने अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोए हैं, सन्‍निकट बड़े क्लेश से बचकर निकलने की उत्सुकता से प्रत्याशा कर सकते हैं।—२ तीमुथियुस ४:६-८; प्रकाशितवाक्य २:१०.

[फुटनोट]

a मार्च १५, १९६५ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ १९१-२ देखिए।

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