वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w97 1/1 पेज 6-11
  • सभी यहोवा की महिमा करें!

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • सभी यहोवा की महिमा करें!
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • “सेनाओं का यहोवा” कहता है
  • महिमावान्‌ आत्मिक मन्दिर
  • “मैं तुम्हारे संग हूं”
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2006
  • तुम्हारे हाथ मज़बूत हों
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2006
  • हाग्गै और जकर्याह किताबों की झलकियाँ
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • हाग्गै की किताब पर एक नज़र
    पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 1/1 पेज 6-11

सभी यहोवा की महिमा करें!

“पूर्व में यहोवा की महिमा करो।”—यशायाह २४:१५.

१. यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं द्वारा उसके नाम को कैसा समझा जाता था, जो आज मसीहीजगत की किस मनोवृत्ति की विषमता में है?

यहोवा—परमेश्‍वर का प्रतिष्ठित नाम! उस नाम से बोलने के लिए पुरातनकाल के विश्‍वासी भविष्यवक्‍ता कितने हर्षित होते थे! उल्लास के साथ उन्होंने अपने सर्वसत्ताधारी प्रभु, यहोवा की महिमा की, जिसका नाम एक महान उद्देष्टा के रूप में उसकी पहचान कराता है। (यशायाह ४०:५; यिर्मयाह १०:६, १०; यहेजकेल ३६:२३) यहाँ तक कि तथाकथित छोटे-मोटे भविष्यवक्‍ता भी बहुत ही खुलकर यहोवा की महिमा करते थे। इनमें से एक हाग्गै था। हाग्गै की पुस्तक में, जो केवल ३८ आयतों से बनी है, परमेश्‍वर का नाम ३५ बार इस्तेमाल किया गया है। लगता है कि ऐसी भविष्यवाणी में कोई जान ही नहीं है जब बहुमूल्य नाम यहोवा की जगह उपाधि “प्रभु” को रखा जाता है, जैसे कि मसीहीजगत के बड़े से बड़े प्रेरित अपने बाइबल अनुवाद में भाषान्तरित करते हैं।—२ कुरिन्थियों ११:५ से तुलना कीजिए।

२, ३. (क) इस्राएल की पुनःस्थापना के सम्बन्ध में एक उल्लेखनीय भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? (ख) यहूदी शेषवर्ग और उनके साथियों ने किस आनन्द में भाग लिया?

२ यशायाह १२:२ (NW) में इस नाम का एक दोहरा रूप इस्तेमाल किया गया है।a वह भविष्यवक्‍ता घोषणा करता है: “देखो! परमेश्‍वर मेरा उद्धार है। मैं भरोसा रखूँगा और भयभीत न होऊँगा; क्योंकि याह यहोवा मेरा बल और मेरी शक्‍ति है, और वह मेरा उद्धार बन गया है।” (यशायाह २६:४, NHT, फुटनोट भी देखिए।) इस प्रकार, बाबुलीय बन्धुवाई से इस्राएल की मुक्‍ति के कुछ २०० साल पहले, याह यहोवा अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के माध्यम से आश्‍वासन दे रहा था कि वह उनका शक्‍तिशाली उद्धारक था। उस बन्धुवाई को सा.यु.पू. ६०७ से ५३७ तक रहना था। यशायाह ने यह भी लिखा: “मैं यहोवा ही सब का बनानेवाला हूं . . . जो कुस्रू के विषय में कहता है, वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है और मेरी इच्छा पूरी करेगा; यरूशलेम के विषय कहता है, वह बसाई जाएगी और मन्दिर के विषय कि तेरी नेव डाली जाएगी।” यह कुस्रू कौन था? उल्लेखनीय बात है कि वह फारस का राजा कुस्रू साबित हुआ, जिसने सा.यु.पू. ५३९ में बाबुल पर क़ब्ज़ा किया।—यशायाह ४४:२४, २८.

३ यशायाह द्वारा अभिलिखित यहोवा के शब्दों की पूर्ति में, कुस्रू ने बँधुआ इस्राएल को यह आज्ञा दी: “उसकी समस्त प्रजा के लोगों में से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्‍वर उसके साथ रहे, और वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा का भवन बनाए—जो यरूशलेम में है वही परमेश्‍वर है।” एक अत्यंत आनन्दित यहूदी शेषवर्ग, ग़ैर-इस्राएली नतीनों और सुलैमान के दासों के पुत्रों के साथ यरूशलेम लौटा। वे सा.यु.पू. ५३७ में झोपड़ियों का पर्व मनाने और उसकी वेदी पर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाने के लिए वक़्त पर पहुँचे। उसके अगले साल, दूसरे महीने में उन्होंने यहोवा के लिए हर्ष और स्तुति के ऊँचे-ऊँचे नारों के बीच, दूसरे मन्दिर की नेंव डाली।—एज्रा १:१-४; २:१, २, ४३, ५५; ३:१-६, ८, १०-१३.

४. यशायाह अध्याय ३५ और ५५ एक हक़ीक़त कैसे बने?

४ यहोवा की पुनःस्थापना की भविष्यवाणी को इस्राएल में महिमा के साथ पूरा होना था: “जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरुभूमि मगन होकर केसर की नाईं फूलेगी; . . . वे यहोवा की शोभा [“महिमा,” NW] और हमारे परमेश्‍वर का तेज देखेंगे।” “तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाड़ियां गला खोलकर जयजयकार करेंगी, . . . और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।”—यशायाह ३५:१, २; ५५:१२, १३.

५. इस्राएल की ख़ुशी थोड़े ही समय की क्यों थी?

५ लेकिन, वह ख़ुशी थोड़े ही समय की थी। आस-पड़ोस के लोग मन्दिर के निर्माण के लिए एक अन्तरधर्म मित्रता चाहते थे। पहले तो यहूदी लोग टस से मस नहीं हुए, और घोषणा की: “हमारे परमेश्‍वर के लिये भवन बनाने में तुम को हम से कुछ काम नहीं; हम ही लोग एक संग मिलकर फारस के राजा कुस्रू की आज्ञा के अनुसार इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा के लिये उसे बनाएंगे।” ये अड़ोस-पड़ोसवाले अब कटु विरोधी बन गए। वे “यहूदियों के हाथ ढीला करने और उन्हें डराकर मन्दिर बनाने में रुकावट डालने लगे।” उन्होंने कुस्रू के उत्तराधिकारी, अर्तक्षत्र को स्थिति का ग़लत रूप प्रस्तुत किया, जिसने मन्दिर के निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा दिया। (एज्रा ४:१-२४) १७ सालों तक काम ठप्प पड़ा रहा। अफ़सोस की बात है, यहूदी लोग उस समय के दौरान भौतिकवादी जीवन-शैली में पड़ गए।

“सेनाओं का यहोवा” कहता है

६. (क) यहोवा ने इस्राएल की स्थिति के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? (ख) हाग्गै के नाम का प्रत्यक्ष अर्थ उपयुक्‍त क्यों है?

६ फिर भी, यहोवा ने यहूदियों को उनकी ज़िम्मेदारियों के प्रति उन्हें सचेत करने के लिए विशेषकर हाग्गै और जकर्याह जैसे भविष्यवक्‍ता भेजने के द्वारा इस्राएल के पक्ष में ‘अपना बल और अपनी शक्‍ति’ प्रदर्शित की। हाग्गै का नाम पर्व से जुड़ा हुआ है, क्योंकि लगता है कि इसका अर्थ है “पर्व पर जन्मा हुआ।” उचित ही, उसने झोपड़ियों के पर्व के महीने के पहले दिन से भविष्यवाणी करनी शुरू की, जिस समय यहूदियों से ‘आनन्द ही करने’ की माँग की गयी थी। (व्यवस्थाविवरण १६:१५) हाग्गै के माध्यम से, यहोवा ने ११२ दिनों की अवधि के दरमियान चार संदेश दिए।—हाग्गै १:१; २:१, १०, २०.

७. हाग्गै के शुरूआती शब्दों से हमें कैसे प्रोत्साहित होना चाहिए?

७ अपनी भविष्यवाणी की शुरूआत करते हुए, हाग्गै ने कहा: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है।” (हाग्गै १:२क) ये ‘सेनाएँ’ कौन हो सकती हैं? ये यहोवा के स्वर्गदूतीय दल हैं, जिन्हें बाइबल में कभी-कभी सैन्य शक्‍तियों के रूप में उल्लिखित किया जाता है। (अय्यूब १:६; २:१; भजन १०३:२०, २१; मत्ती २६:५३) क्या यह आज हमें प्रोत्साहित नहीं करता कि स्वयं सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा इन अपराजेय स्वर्गीय शक्‍तियों को पृथ्वी पर सच्ची उपासना की पुनःस्थापना के हमारे कार्य को निर्देशित करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है?—२ राजा ६:१५-१७ से तुलना कीजिए।

८. किस मनोवृत्ति ने इस्राएल को प्रभावित किया था, और इसका परिणाम क्या हुआ?

८ हाग्गै के पहले संदेश का अन्तर्विषय क्या था? लोगों ने कहा था: “यहोवा का भवन बनाने का समय नहीं आया है।” मन्दिर का निर्माण-कार्य, जो ईश्‍वरीय उपासना की पुनःस्थापना को सूचित करता था, अब से उनकी मुख्य चिन्ता नहीं रही। वे लोग अपने लिए आलीशान घरों के निर्माण करने में लग गए थे। एक भौतिकवादी मनोवृत्ति ने यहोवा की उपासना के लिए उनके उत्साह को कम कर दिया था। फलतः, उसकी आशिष हटा ली गयी थी। उनके खेत अब और फलदायक नहीं रहे, और कड़ाके की ठंढ के मौसम के लिए उनके पास कपड़े-लत्तों का अभाव था। उनकी आमदनी कम हो चुकी थी, और ऐसा था मानो वे छेदवाली थैली में पैसे डाल रहे थे।—हाग्गै १:२ख-६.

९. यहोवा ने कौन-सी शक्‍तिशाली, प्रोत्साहक सलाह दी?

९ दो बार, यहोवा ने यह सख़्त सलाह दी: “अपनी अपनी चालचलन पर ध्यान करो।” स्पष्टतः, यरूशलेम के अधिपति, जरुब्बाबेल, और महायाजक यहोशूb ने प्रतिक्रिया दिखायी और सभी लोगों को साहस के साथ प्रोत्साहन दिया कि ‘अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात मानें; और जो वचन उनके परमेश्‍वर यहोवा ने उन से कहने के लिये हाग्गै भविष्यद्वक्‍ता को भेज दिया था, उसे वे मानें; और लोगों ने यहोवा का भय माना।’ इसके अलावा, “यहोवा के दूत हाग्गै ने यहोवा से आज्ञा पाकर उन लोगों से यह कहा, यहोवा की यह वाणी है, मैं तुम्हारे संग हूं।”—हाग्गै १:५, ७-१४.

१०. यहोवा ने इस्राएल के पक्ष में अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल कैसे किया?

१० यरूशलेम के कुछ बड़े-बूढ़ों ने शायद सोचा हो कि पुनःनिर्मित मन्दिर की महिमा पिछले मन्दिर की महिमा की तुलना में ‘कुछ भी नहीं’ होगी। लेकिन, क़रीब ५१ दिनों बाद, यहोवा ने हाग्गै को दूसरा सन्देश देने के लिए प्रेरित किया। उसने उद्‌घोषणा की: “हे जरुब्बाबेल, हियाव बान्ध; और हे यहोसादाक के पुत्र यहोशू महायाजक, हियाव बान्ध; और यहोवा की यह भी वाणी है कि हे देश के सब लोगो हियाव बान्धकर काम करो, क्योंकि मैं तुम्हारे संग हूं, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है। . . . तुम मत डरो।” यहोवा ने, जो समय आने पर ‘आकाश और पृथ्वी को कम्पित’ करने के लिए अपनी असीम ताक़त को इस्तेमाल करता, यह निश्‍चित किया कि सभी विरोध, यहाँ तक कि राजकीय प्रतिबन्ध पर भी जीत पायी जाती। पाँच सालों के भीतर ही मन्दिर के निर्माण को शानदार सफलता मिली।—हाग्गै २:३-६.

११. यहोवा ने दूसरे मन्दिर को ‘बड़ी महिमा’ से कैसे भरा?

११ तब जाकर एक उल्लेखनीय प्रतिज्ञा की पूर्ति हुई: “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” (हाग्गै २:७) ये “मनभावनी वस्तुएं” ग़ैर-इस्राएली साबित हुए जो मन्दिर में उपासना के लिए आए, क्योंकि इसने उसकी शाही उपस्थिति की महिमा को प्रतिबिम्बित किया। यह पुनःनिर्मित मन्दिर सुलैमान के दिन में निर्मित मन्दिर की बराबरी में कैसा था? परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता ने घोषणा की: “इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” (हाग्गै २:९) इस भविष्यवाणी की प्रारम्भिक पूर्ति में, यह पुनःनिर्मित मन्दिर पहले भवन से अधिक समय तक टिका। यह तब भी खड़ा था जब सा.यु. २९ में मसीहा प्रकट हुआ। इसके अतिरिक्‍त, इससे पहले कि उसके धर्मत्यागी शत्रुओं ने सा.यु. ३३ में उसका क़त्ल करवाया, स्वयं मसीहा उसे महिमा लाया जब उसने वहाँ सच्चाई का प्रचार किया।

१२. पहले दो मन्दिरों ने कौन-से उद्देश्‍य को पूरा किया?

१२ यरूशलेम के पहले और दूसरे मन्दिरों ने मसीहा की याजकीय सेवा की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का पूर्वसंकेत करने और मसीहा के वास्तविक प्रकटन तक पृथ्वी पर यहोवा की शुद्ध उपासना को ज़िन्दा रखने में एक अत्यावश्‍यक उद्देश्‍य को पूरा किया।—इब्रानियों १०:१.

महिमावान्‌ आत्मिक मन्दिर

१३. (क) सा.यु. २९ से ३३ तक आत्मिक मन्दिर के सम्बन्ध में कौन-सी घटनाएँ हुईं? (ख) इन विकासों में यीशु के छुड़ौती बलिदान ने कौन-सी आवश्‍यक भूमिका निभायी?

१३ क्या हाग्गै की पुनःस्थापना की भविष्यवाणी का बाद के समयों के लिए कोई ख़ास अर्थ है? बिलकुल है! यरूशलेम का पुनःनिर्मित मन्दिर पृथ्वी पर सभी सच्ची उपासना का एक केन्द्र-बिन्दु बन गया। लेकिन इसने एक और भी अधिक महिमावान्‌ आत्मिक मन्दिर का पूर्वसंकेत किया। यह सा.यु. २९ में काम करने लगा, जब यरदन नदी में यीशु के बपतिस्मे के समय, यहोवा ने यीशु को महायाजक के रूप में अभिषिक्‍त किया, और पवित्र आत्मा एक कबूतर के रूप में उस पर उतरी। (मत्ती ३:१६) यीशु के बलिदान-रूपी मृत्यु में अपनी पार्थिव सेवकाई को समाप्त करने के बाद, उसे स्वर्ग के लिए पुनरुत्थित किया गया, जो मन्दिर के परम पवित्र को चित्रित करता है, और वहाँ उसने यहोवा को अपने बलिदान का मूल्य पेश किया। इसने एक छुड़ौती का काम किया, उसके शिष्यों के पापों को ढाँपा, और सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, यहोवा के आत्मिक मन्दिर में उपयाजकों के रूप में उनके अभिषिक्‍त होने के लिए मार्ग खोला। पृथ्वी पर मन्दिर के आँगन में मरते दम तक उनकी वफ़ादार सेवकाई, जारी याजकीय सेवा के लिए एक भावी स्वर्गीय पुनरुत्थान की ओर ले जाती।

१४. (क) प्रारम्भिक मसीही कलीसिया की उत्साही गतिविधि के साथ कौन-सा आनन्द था? (ख) यह आनन्द थोड़े समय का क्यों था?

१४ हज़ारों पश्‍चातापी यहूदी—और बाद में अन्यजाति—उस मसीही कलीसिया में धारा की नाईं आए, और उन्होंने पृथ्वी पर आनेवाले परमेश्‍वर के राज्य शासन के सुसमाचार की घोषणा करने में भाग लिया। कुछ ३० साल बाद, प्रेरित पौलुस कह सका कि सुसमाचार का प्रचार “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” किया जा चुका था। (कुलुस्सियों १:२३) लेकिन प्रेरितों की मृत्यु के बाद, महा धर्मत्याग स्थापित होने लगा, और सत्य की ज्योति टिमटिमाने लगी। असली मसीहियत पर मसीहीजगत की साम्प्रदायिकता का साया छा गया, जो विधर्मी शिक्षाओं और तत्त्वज्ञानों पर आधारित थी।—प्रेरितों २०:२९, ३०.

१५, १६. (क) वर्ष १९१४ में भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? (ख) किस एकत्रीकरण ने १९वीं सदी के अन्तिम भाग को और २०वीं सदी के आरम्भिक भाग को चिन्हित किया?

१५ सदियाँ बीत गयीं। तब १८७० के दशक में, निष्कपट मसीहियों के एक समूह ने बाइबल का एक गहन अध्ययन आरम्भ किया। शास्त्र से, वे ठीक-ठीक बता पाए कि वर्ष १९१४ ‘अन्य जातियों के नियुक्‍त समय’ के अन्त को चिन्हित करता है। यह उस समय था जब सात लाक्षणिक “युग” (पशुसमान मानवी शासन के २,५२० वर्ष) मसीह यीशु के—जो पृथ्वी के मसीहाई राजा के रूप में “अधिकारी” है—स्वर्गीय सिंहासनारूढ़ होने के साथ अन्त हुए। (लूका २१:२४; दानिय्येल ४:२५; यहेजकेल २१:२६, २७) ख़ासकर १९१९ के बाद से, ये बाइबल विद्यार्थी, जो आज यहोवा के साक्षियों के नाम से जाने जाते हैं, पूरी पृथ्वी में आनेवाले राज्य के सुसमाचार को ज़ोरदार रूप से फैलाने में लगे हुए हैं। यह १९१९ में था कि इनमें से कुछ हज़ार लोगों ने कार्य के लिए उस पुकार का जवाब दिया जो सीडार पॉइन्ट, ओहायो, अमरीका के अधिवेशन में की गयी थी। वे वर्ष १९३५ तक संख्या में बढ़ गए, जब ५६,१५३ लोगों ने क्षेत्र सेवा की रिपोर्ट दी। उस साल, ५२,४६५ लोगों ने यीशु की मृत्यु के वार्षिक स्मारक पर रोटी और दाखमधु के प्रतीकों में भाग लिया था, और इस प्रकार यहोवा के महान आत्मिक मन्दिर के स्वर्गीय भाग में मसीह यीशु के साथ याजक बनने की अपनी आशा को चिन्हित किया। उन्हें उसके साथ उसके मसीहाई राज्य में सह राजाओं के तौर पर भी सेवा करनी है।—लूका २२:२९, ३०; रोमियों ८:१५-१७.

१६ बहरहाल, प्रकाशितवाक्य ७:४-८ और १४:१-४ दिखाता है कि इन अभिषिक्‍त मसीहियों की कुल संख्या १,४४,००० तक सीमित है, जिनमें से अनेक लोग महा धर्मत्याग के स्थापित होने से पहले प्रथम शताब्दी के दौरान इकट्ठे किए गए थे। १९वीं शताब्दी के अन्त से और २०वीं शताब्दी में, यहोवा उस समूह के एकत्रीकरण को समाप्त कर रहा है जो उसके वचन के पानी से स्वच्छ किए गए हैं, यीशु के प्रायश्‍चितिक बलिदान में विश्‍वास के द्वारा धर्मी घोषित किए गए हैं, और आख़िरकार १,४४,००० की सम्पूर्ण संख्या को बनाने के लिए अभिषिक्‍त मसीहियों के तौर पर सील किए गए हैं।

१७. (क) कौन-सा एकत्रीकरण १९३० के दशक से शुरू हुआ है? (ख) यहाँ यूहन्‍ना ३:३० दिलचस्पी का क्यों है? (लूका ७:२८ भी देखिए।)

१७ अभिषिक्‍त जनों की समस्त संख्या के चुने जाने के बाद क्या होता है? १९३५ में, वॉशिंग्टन, डी.सी., अमरीका में एक ऐतिहासिक अधिवेशन में, यह ज़ाहिर किया गया था कि प्रकाशितवाक्य ७:९-१७ की “बड़ी भीड़” एक ऐसा समूह था जिसे १,४४,००० के “बाद” पहचाना जाता और जिनकी प्रत्याशा एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन है। अभिषिक्‍त यीशु की स्पष्ट रूप से पहचान कराने के बाद, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने, जिसका पुनरुत्थान पृथ्वी पर एक “अन्य भेड़” के रूप में होगा, मसीहा के बारे में कहा: “अवश्‍य है कि वह बढ़े और मैं घटूं।” (यूहन्‍ना १:२९; ३:३०; १०:१६, NW; मत्ती ११:११) मसीहा के लिए शिष्य तैयार करने का यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का काम ख़त्म हो रहा था क्योंकि तब यीशु ने एक बढ़ती संख्या के चुनाव का कार्य सम्भाल लिया जो १,४४,००० में होते। १९३० में इसका उलटा हुआ। १,४४,००० में शामिल होने के लिए एक घटती संख्या को ‘बुलाया और चुना गया’ जबकि “अन्य भेड़ों” की “बड़ी भीड़” की संख्या में ज़बरदस्त वृद्धि होने लगी। जैसे-जैसे इस संसार की दुष्ट व्यवस्था अरमगिदोन में अपने अन्त के नज़दीक जा रही है, इस बड़ी भीड़ का बढ़ना जारी है।—प्रकाशितवाक्य १७:१४ख.

१८. (क) क्यों हम यक़ीन के साथ अपेक्षा कर सकते हैं कि “अभी जीवित लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे”? (ख) हमें हाग्गै २:४ का उत्साह के साथ पालन क्यों करना चाहिए?

१८ यहोवा के साक्षियों द्वारा १९२० के दशक के आरम्भ में विशिष्ट किए गए एक जन भाषण का शीर्षक था “अभी जीवित लाखों लोग कभी नहीं मरेंगे।” इसने उस समय शायद अति-आशावाद को प्रतिबिंबित किया हो। लेकिन आज उस कथन को पूरे यक़ीन के साथ किया जा सकता है। बाइबल भविष्यवाणी पर बढ़ता हुआ प्रकाश और इस मरणासन्‍न संसार की अराजकता चिल्ला-चिल्लाकर कहती है कि शैतान की व्यवस्था का अन्त बहुत ही निकट है! १९९६ के लिए स्मारक रिपोर्ट दिखाती है कि १,२९,२१,९३३ लोग उपस्थित थे, जिनमें से केवल ८,७५७ (.०६८ प्रतिशत) लोगों ने प्रतीकों में भाग लेने के द्वारा अपनी स्वर्गीय आशा को सूचित किया। सच्ची उपासना की पुनःस्थापना समाप्ति के निकट है। लेकिन आइए हम इस काम में कभी भी हाथ ढीले न पड़ने दें। जी हाँ, हाग्गै २:४ कहता है: “यहोवा की यह . . . वाणी है कि हे देश के सब लोगो हियाव बान्धकर काम करो, क्योंकि मैं तुम्हारे संग हूं, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।” ऐसा हो कि हम दृढ़-निश्‍चयी रहें कि किसी भी प्रकार का भौतिकवाद या सांसारिकता यहोवा के काम के लिए हमारे उत्साह को कभी न मारें!—१ यूहन्‍ना २:१५-१७.

१९. हाग्गै २:६, ७ की पूर्ति में हम कैसे भाग ले सकते हैं?

१९ हाग्गै २:६, ७ की आधुनिक-दिन पूर्ति में भाग लेने का हमारा विशेषाधिकार आनन्दपूर्ण है: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अब थोड़ी ही देर बाकी है कि मैं आकाश और पृथ्वी और समुद्र और स्थल सब को कम्पित करूंगा। और मैं सारी जातियों को कम्पकपाऊंगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” इस पूरी २०वीं शताब्दी के संसार में लोभ, भ्रष्टाचार, और घृणा व्यापक है। वाक़ई यह अपने अन्तिम दिनों में है, और यहोवा अपने साक्षियों से ‘अपने पलटा लेने के दिन का प्रचार’ करवाने के द्वारा इसे पहले से ही ‘कम्पकपाना’ शुरू कर चुका है। (यशायाह ६१:२) यह प्राथमिक कम्पकपाना अरमगिदोन में संसार के विनाश के साथ चरम पर पहुँचेगा, लेकिन उस समय से पहले, यहोवा अपनी सेवा के लिए “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं”—अर्थात्‌, पृथ्वी के दीन, भेड़समान लोग—एकत्रित कर रहा है। (यूहन्‍ना ६:४४) यह “बड़ी भीड़” अब उसके उपासना के भवन के पार्थिव आँगन में ‘पवित्र सेवा करती है।’—प्रकाशितवाक्य ७:९, १५.

२०. सबसे बहुमूल्य ख़ज़ाना कहाँ मिलेगा?

२० यहोवा के आत्मिक मन्दिर में सेवा ऐसे लाभ लाती है जो किसी भी भौतिक ख़ज़ाने से अधिक बहुमूल्य है। (नीतिवचन २:१-६; ३:१३, १४; मत्ती ६:१९-२१) इसके अतिरिक्‍त, हाग्गै २:९ कहता है: “इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है, और इस स्थान में मैं शान्ति दूंगा, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।” इन शब्दों का आज हमारे लिए क्या अर्थ है? हमारा अगला लेख बताएगा।

[फुटनोट]

a अभिव्यक्‍ति “याह यहोवा” ख़ास बल के लिए इस्तेमाल की जाती है। शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि, (अंग्रेज़ी) खण्ड १, पृष्ठ १२४८, देखिए।

b एज्रा और अन्य बाइबल पुस्तकों में येशू।

पुनर्विचार के लिए प्रश्‍न

◻ यहोवा के नाम के सम्बन्ध में भविष्यवक्‍ताओं के किस उदाहरण का हमें पालन करना चाहिए?

◻ पुनःस्थापित इस्राएल के लिए यहोवा के शक्‍तिशाली संदेश से हम कौन-सा प्रोत्साहन पाते हैं?

◻ आज कौन-सा महिमावान्‌ आत्मिक मन्दिर कार्य करता है?

◻ १९वीं और २०वीं शताब्दियों में कौन-से एकत्रीकरण क्रम में हुए हैं, और किस शानदार प्रत्याशा को नज़र में रखते हुए?

[पेज 7 पर तसवीर]

यहोवा की स्वर्गीय सेनाएँ पृथ्वी पर उसके साक्षियों को निर्देशित करती और संभालती हैं

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें