आपका जीवन—इसका उद्देश्य क्या है?
“मेरा हृदय बुद्धिमानी से मेरी अगुवाई करता रहा, जब तक मालूम न कर लूँ कि मनुष्यों के लिए कौन-सा अच्छा काम है जिसे वे . . . अपने अपने जीवन के थोड़े दिनों में करें।”—सभोपदेशक २:३, NHT.
१, २. ख़ुद में उचित दिलचस्पी लेना ग़लत क्यों नहीं है?
आप ख़ुद में दिलचस्पी रखते हैं, क्या नहीं रखते? जो कि सामान्य है। इसलिए हम रोज़ खाते हैं, जब हम थके होते हैं तो सोते हैं, और हम मित्रों और प्रिय जनों के साथ होना पसन्द करते हैं। कभी-कभी ख़ुद में एक संतुलित दिलचस्पी दिखाते हुए, हम खेल खेलते हैं, तैरते, या ऐसे अन्य काम करते हैं जिनमें हमें आनन्द मिलता है।
२ ऐसा आत्म-हित उस बात के साथ मेल खाता है जिसे लिखने के लिए परमेश्वर ने सुलैमान को प्रेरित किया: “किसी मनुष्य के लिए इस से भली और कोई बात नहीं कि वह खाए-पीए और अपने परिश्रम को देखकर सन्तुष्ट रहे।” अनुभव पर आधारित, सुलैमान ने आगे कहा: “यह भी मैंने देखा है कि यह परमेश्वर की ओर से होता है, क्योंकि परमेश्वर के बिना कौन खा-पी और आनन्द मना सकता है?”—सभोपदेशक २:२४, २५.
३. अधिकांश लोग कौन-से दुविधापूर्ण सवालों का जवाब नहीं पाते हैं?
३ फिर भी आप जानते हैं कि जीवन खाने, पीने, सोने, और कुछ अच्छा करने से ज़्यादा और भी कुछ है। हमारे पास बीमारी, निराशाएँ, और चिन्ताएँ हैं। और हम अपने जीवन के अर्थ पर विचार करने के लिए बहुत व्यस्त मालूम पड़ते हैं। क्या आपके साथ भी यह बात नहीं है? वॉल स्ट्रीट जर्नल (अंग्रेज़ी), के भूतपूर्व सम्पादक, वरमॉन्ट रॉइस्टर ने हमारे विस्तृत ज्ञान और कौशल पर ग़ौर करने के बाद लिखा: “यह एक दिलचस्प बात है। ख़ुद मनुष्य के बारे में, उसकी दुविधाओं के बारे में, विश्वमंडल में उसके स्थान के बारे में सोचते हुए, हम समय के शुरू होने के वक़्त से ज़्यादा कुछ नहीं जानते। आज भी हमारे पास ये सवाल बाक़ी हैं कि हम कौन हैं और हम क्यों हैं और हम कहाँ जा रहे हैं।”
४. हममें से हरेक व्यक्ति को ख़ुद से सम्बन्धित सवालों के जवाब देने में समर्थ होने की इच्छा क्यों रखनी चाहिए?
४ आप इन सवालों का कैसे जवाब देंगे: हम कौन हैं? हम यहाँ क्यों हैं? और हम कहाँ जा रहे हैं? पिछली जुलाई, श्री. रॉइस्टर की मृत्यु हो गई। क्या आप मानते हैं कि उन्होंने तब तक संतोषजनक जवाब पा लिए थे? और उपयुक्त रूप से, क्या कोई ऐसा तरीक़ा है जिससे आप ऐसा कर सकते हैं? और यह आपको ज़्यादा ख़ुशी, ज़्यादा अर्थपूर्ण जीवन का आनन्द उठाने में कैसे मदद दे सकता है? आइए हम देखें।
अन्तर्दृष्टि का एक प्रमुख स्रोत
५. जीवन के अर्थ के सवालों के बारे में जब हम अन्तर्दृष्टि की खोज कर रहे हों तो हमें परमेश्वर की ओर क्यों देखना चाहिए?
५ यदि हममें से हरेक अकेले ही अपने जीवन का उद्देश्य खोजने लगे, तो शायद हमें थोड़ी-बहुत या कोई भी सफलता न मिले, जैसा कि अधिकांश पुरुष और स्त्रियों, यहाँ तक बहुत सीखे-पढ़े और अनुभवी लोगों के साथ होता है। लेकिन हमें अकेला नहीं छोड़ा गया है। हमारे सृष्टिकर्ता ने मदद का प्रबन्ध किया है। जब आप इसके बारे में सोचते हैं, क्या वह “अनादिकाल से अनन्तकाल तक” होने और विश्वमंडल और इतिहास के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान रखने के कारण अन्तर्दृष्टि और बुद्धि का परम स्रोत नहीं है? (भजन ९०:१, २) उसने मनुष्य की सृष्टि की और पूरे मानवी अनुभव को देखा है, तो वही है जिसकी ओर अन्तर्दृष्टि के लिए हमें ताकना चाहिए, न कि अपरिपूर्ण मनुष्यों की ओर, जिनके पास सीमित ज्ञान और समझ है।—भजन १४:१-३; रोमियों ३:१०-१२.
६. (क) सृष्टिकर्ता ने कैसे ज़रूरी अन्तर्दृष्टि प्रदान की है? (ख) सुलैमान कैसे शामिल है?
६ जबकि हम सृष्टिकर्ता को जीवन के अर्थ के बारे में एक प्रकटन हमारे कान में कहने की उम्मीद नहीं कर सकते, उसने अन्तर्दृष्टि के एक स्रोत—उसके उत्प्रेरित वचन—का प्रबन्ध किया है। (भजन ३२:८; १११:१०) सभोपदेशक की पुस्तक इस सम्बन्ध में ख़ासकर मूल्यवान है। परमेश्वर ने इसके लेखक को उत्प्रेरित किया, सो इसलिए “सुलैमान की बुद्धि पूर्व देश के सब निवासियों . . . की भी बुद्धि से बढ़कर बुद्धि थी।” (१ राजा ३:६-१२; ४:३०-३४) “सुलैमान की बुद्धिमानी” ने एक भेंट करनेवाली शासक को इतना प्रभावित किया कि उसने कहा कि उसे आधा भी नहीं बताया गया था और कि जो लोग उसकी बुद्धिमानी की बातें सुनते वे वाक़ई ख़ुश होते।a (१ राजा १०:४-८) हम भी उस ईश्वरीय बुद्धि से अन्तर्दृष्टि और ख़ुशी प्राप्त कर सकते हैं जो हमारे सृष्टिकर्ता ने सुलैमान के माध्यम से हमें प्रदान की।
७. (क) सूर्य के नीचे अधिकांश गतिविधियों के बारे में सुलैमान ने क्या निष्कर्ष निकाला? (ख) सुलैमान की यथार्थवादी जाँच किस बात से सचित्रित होती है?
७ सभोपदेशक उस परमेश्वर-प्रदत्त बुद्धि को व्यक्त करती है, जिसने सुलैमान के हृदय और मस्तिष्क को प्रभावित किया। ऐसा करने के लिए समय, साधन, और अन्तर्दृष्टि होने के कारण, सुलैमान ने “जो कुछ सूर्य के नीचे किया [गया था]” उसकी जाँच की। उसने देखा कि उसमें से अधिकांश “व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है,” जो कि एक उत्प्रेरित विश्लेषण है जिसे हमें अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में सोचते वक़्त मन में रखना चाहिए। (सभोपदेशक १:१३, १४, १६) सुलैमान स्पष्टवादी, यथार्थवादी रहा था। उदाहरण के लिए, सभोपदेशक १:१५, १८ में पाए गए उसके शब्दों पर ग़ौर कीजिए। आप जानते हैं कि शताब्दियों के दौरान मनुष्यों ने विभिन्न प्रकार की सरकारों को आज़माया है, कभी-कभी समस्याओं को सुलझाने और लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने की निष्कपटता से कोशिश की है। लेकिन क्या इनमें से किसी ने भी वाक़ई इस अपरिपूर्ण रीति-व्यवस्था की सभी ‘टेढ़ी’ बातों को सीधा किया है? और आपने शायद देखा हो कि जितना ज़्यादा एक व्यक्ति का ज्ञान होता है, उतनी ज़्यादा तीव्रता से वह महसूस करता है कि इतने छोटे जीवन-काल में, बातों को पूर्ण रूप से ठीक करना असंभव है। ऐसी जागरूकता अनेक लोगों को कुंठित कर देती है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि हमें भी करे।
८. कौन-से चक्र बहुत समय से अस्तित्त्व में हैं?
८ एक और बात जिस पर ध्यान देना है, हमें प्रभावित करनेवाले बार-बार चलनेवाले चक्र हैं, जैसे सूर्य का निकलना और अस्त होना या हवा और पानी की गतिविधि। वे मूसा, सुलैमान, नेपोलियन, और हमारे परदादाओं के समय अस्तित्त्व में थे। और ये चक्र चलते रहते हैं। इसी प्रकार, “एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है।” (सभोपदेशक १:४-७) मानवी दृष्टिकोण से, बहुत कम परिवर्तन हुआ है। प्राचीन और आधुनिक लोगों की समान गतिविधियाँ, आशाएँ, महत्त्वकांक्षाएँ, और उपलब्धियाँ रही हैं। मानवीय तरीक़े से ही सही, माना किसी व्यक्ति ने अच्छा नाम कमाया, सुन्दरता अथवा योग्यता में वह असाधारण रहा था, वह व्यक्ति अब कहाँ है? मर चुका और संभवतः भुला दिया गया। ऐसा दृष्टिकोण अस्वस्थ भावना रखना नहीं है। अधिकांश लोग अपने परदादाओं का नाम भी नहीं बता सकते या यह कि वे कहाँ पैदा हुए थे और उनकी अंत्येष्टि कहाँ हुई थी। आप देख सकते हैं कि क्यों सुलैमान ने मानव उद्यमों और प्रयासों में यथार्थ रूप से व्यर्थता देखी।—सभोपदेशक १:९-११.
९. मनुष्यजाति की परिस्थिति के बारे में यथार्थवादी अन्तर्दृष्टि प्राप्त करने के द्वारा शायद हमें कैसे मदद मिले?
९ हमें कुंठित करने के बजाय, मनुष्यजाति की बुनियादी परिस्थिति पर यह ईश्वरीय अन्तर्दृष्टि का सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, यह हमें ऐसे लक्ष्यों या कार्यों को जो जल्द ही मिट जाएँगे और भुला दिए जाएँगे, अनुचित महत्त्व देने से दूर रहने को प्रेरित करती है। इसे यह जाँच करने में हमारी मदद करनी चाहिए कि हम जीवन से क्या पा रहे हैं और हम क्या प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। सचित्रित करने के लिए, तपस्वी बनने के बजाय, हम संतुलित खाने और पीने से आनन्द पा सकते हैं। (सभोपदेशक २:२४) और जैसा हम देखेंगे, सुलैमान बहुत ही सकारात्मक और आशापूर्ण निष्कर्ष पर पहुँचता है। संक्षिप्त रूप से, वह यह है कि हमें अपने सृष्टिकर्ता के साथ अपने सम्बन्ध का गहरा मूल्यांकन करना चाहिए, जो एक अनन्तकाल तक सुखी, उद्देश्यपूर्ण भविष्य पाने में हमारी मदद कर सकता है। सुलैमान ने ज़ोर दिया: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभोपदेशक १२:१३.
जीवन के चक्र को मद्देनज़र रखते हुए उद्देश्य
१०. किस तरीक़े से सुलैमान ने जानवरों और मनुष्यों की तुलना की?
१० सभोपदेशक में प्रकट की गई ईश्वरीय बुद्धि हमें इससे आगे अपने जीवन के उद्देश्य पर विचार करने में हमारी मदद कर सकती है। वह कैसे? वह ऐसे कि सुलैमान ने ऐसी अन्य सच्चाइयों पर यथार्थ रूप से ध्यान केन्द्रित किया जिनके बारे में हम बहुत कम सोचते हैं। इनमें से एक में मनुष्यों और जानवरों में समानता शामिल है। हालाँकि आम तौर पर लोग जानवरों से तुलना किया जाना पसन्द नहीं करते, यीशु ने अपने अनुयायियों की तुलना भेड़ से की। (यूहन्ना १०:११-१६) फिर भी सुलैमान कुछ अखण्डनीय तथ्य सामने लाया: “परमेश्वर मनुष्यों को जांचे और कि वे देख सकें कि वे पशु-समान हैं। क्योंकि जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। . . . और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है। . . . सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।”—सभोपदेशक ३:१८-२०.
११. (क) एक जानवर के ठेठ जीवन चक्र का कैसे वर्णन किया जा सकता है? (ख) आप ऐसे विश्लेषण के बारे में कैसा महसूस करते हैं?
११ एक ऐसे जानवर की कल्पना कीजिए जिसे देखना आपको पसन्द है, शायद एक बन्दर या एक ख़रगोश। (व्यवस्थाविवरण १४:७; नीतिवचन ३०:२६) या आप एक गिलहरी की कल्पना कर सकते हैं; संसार-भर में इनकी ३०० से ज़्यादा जातियाँ हैं। इसका जीवन चक्र क्या होता है? पैदा होने के बाद, इसकी माँ कुछ हफ़्तों के लिए इसका भरण-पोषण करती है। जल्द ही इसके बाल आ जाते हैं और यह बाहर घूम सकती है। आप उसको भोजन तलाशना सीखते वक़्त भागता हुआ देख सकते हैं। लेकिन अकसर यह केवल खेलती, अपने यौवन का आनन्द लेती जान पड़ती है। एकाध साल बढ़ने के बाद, यह अपना साथी तलाशती है। उसके बाद इसका एक घोंसला या खोह बनाना और बच्चों की देखभाल करना ज़रूरी है। यदि इसे पर्याप्त सरसफल, गिरीदार फल, और बीज मिलते हैं तो गिलहरी परिवार मोटा-ताज़ा हो जाता है और उसके पास अपने घर को बढ़ाने का समय होता है। लेकिन मात्र कुछ वर्षों में, यह जानवर बूढ़ा और दुर्घटनाओं और बीमारियों के प्रति ज़्यादा प्रवृत्त हो जाता है। लगभग दस वर्ष की उम्र में यह मर जाता है। गिलहरियों की विभिन्न जातियों में यह थोड़ा भिन्न हो सकता है, लेकिन सामान्य रूप से इसका जीवनचक्र इतना ही होता है।
१२. (क) यथार्थवादी रूप से, अनेक मनुष्यों का जीवन चक्र एक औसत जानवर के जीवन चक्र के समान क्यों होता है? (ख) जो जानवर हमारे मन में था उसे अगली बार देखकर शायद हम क्या सोचें?
१२ अधिकांश लोग जानवरों के लिए इस चक्र पर एतराज़ नहीं करेंगे, और वे मुश्किल ही एक गिलहरी से जीवन में एक बुद्धिसंपन्न उद्देश्य रखने की आशा करते हैं। लेकिन, अनेक मनुष्यों का जीवन इससे बहुत अधिक भिन्न नहीं है, है ना? वे पैदा होते हैं और बचपन से उनका पालन-पोषण होता है। वे युवावस्था में खाते, बढ़ते, और खेलते हैं। जल्द ही वे वयस्क हो जाते हैं, एक साथी पा लेते हैं, और रहने के लिए घर और खाने का प्रबन्ध करने का साधन खोजते हैं। यदि वे सफल होते हैं, तो शायद वे मोटे-ताज़े हो जाएँ और अपना घर (घोंसला) बढ़ाएँ जिसमें बच्चों की परवरिश हो। लेकिन दशक जल्दी बीत जाते हैं, और वे बूढ़े हो जाते हैं। यदि पहले नहीं, तो “कष्ट और शोक” से भरे ७० या ८० वर्षों के बीतने के बाद वे शायद मर जाएँ। (भजन ९०:९, १०, १२) आप शायद जब अगली बार एक गिलहरी (या कोई अन्य जानवर जो आपके मन में था) देखें तो शायद आप इन गंभीर तथ्यों को याद करें।
१३. मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए कौन-सा परिणाम सच साबित होता है?
१३ आप देख सकते हैं कि सुलैमान ने लोगों के जीवन की तुलना जानवरों से क्यों की। उसने लिखा: “हर एक बात का . . . एक समय है। जन्म का समय, और मरन का भी समय।” यह बाद की संभाव्यतः, मृत्यु, मनुष्य और जानवर के लिए एक जैसी है, “जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है।” उसने आगे कहा: “सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।”—सभोपदेशक ३:१, २, १९, २०.
१४. कुछ मनुष्य सामान्य जीवन चक्र को बदलने के लिए कैसे कोशिश करते हैं, लेकिन इसका क्या परिणाम होता है?
१४ हमें इस यथार्थवादी जाँच को नकारात्मक विचारधारा नहीं समझना चाहिए। सच है, कुछ लोग परिस्थिति को बदलने की कोशिश करते हैं, जैसे कि अपनी भौतिक स्थिति को और अधिक सुधारने के लिए ज़्यादा काम करते हैं ताकि अपने माता-पिता की तुलना में ज़्यादा धन प्राप्त करें। जीवन की अपनी समझ को बढ़ाने की कोशिश करते हुए, साथ ही उच्च जीवन स्तर को प्राप्त करने के लिए वे शायद शिक्षा प्राप्त करने में ज़्यादा वर्ष बिताएँ। या अच्छी सेहत और थोड़ा लम्बा जीवन प्राप्त करने के लिए वे कसरत या आहार नियमों पर शायद ध्यान केन्द्रित करें। और ये प्रयास शायद कुछ फ़ायदे लाएँ। लेकिन इसके बारे में कौन निश्चिंत हो सकता है कि ये प्रयास सफल होंगे? यदि ये होते भी हैं तो कब तक?
१५. अधिकांश लोगों के जीवन का कौन-सा स्पष्टवादी विश्लेषण प्रामाणिक है?
१५ सुलैमान ने पूछा: “बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनके कारण जीवन और भी व्यर्थ होता है तो फिर मनुष्य को क्या लाभ? क्योंकि मनुष्य के क्षणिक व्यर्थ जीवन में जो वह परछाईं की नाईं बिताता है कौन जानता है कि उसके लिये अच्छा क्या है? क्योंकि मनुष्य को कौन बता सकता है कि उसके बाद . . . क्या होगा?” (सभोपदेशक ६:११, १२) चूँकि मृत्यु एक व्यक्ति के प्रयासों को अपेक्षाकृत शीघ्रता से समाप्त कर देती है, क्या अधिक भौतिक वस्तुओं को हासिल करने के लिए संघर्ष करने में या मुख्यतः ज़्यादा सम्पत्ति हासिल करने के लिए स्कूली शिक्षा में अधिक वर्ष लगाने में, वाक़ई ज़्यादा लाभ है? और चूँकि जीवन इतना अल्प है, एक छाया की तरह ढलता हुआ, अनेक लोग समझते हैं कि जब उन्हें असफलता का आभास होता है तो किसी अन्य मानव लक्ष्य के लिए पुनः प्रयास करने के लिए समय नहीं रह जाता; न ही एक मनुष्य इस पर निश्चित हो सकता कि “उसके बाद” उसके बच्चों का क्या होगा।
अच्छा नाम कमाने का समय
१६. (क) हमें क्या करना चाहिए जिसे जानवर नहीं कर सकते? (ख) किस अन्य सच्चाई को हमारे सोच-विचार को प्रभावित करना चाहिए?
१६ जानवरों के विपरीत, हम मनुष्यों के पास इस पर सोचने की क्षमता है, ‘मेरे अस्तित्त्व का क्या अर्थ है? क्या यह एक निश्चित चक्र है, जिसमें जन्म का समय और मृत्यु का समय है?’ इस सम्बन्ध में, मनुष्य और पशु के बारे में सुलैमान के शब्दों की सच्चाई को याद कीजिए: “सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।” क्या इसका यह अर्थ है कि मृत्यु एक व्यक्ति के अस्तित्त्व को पूरी तरह समाप्त कर देती है? बाइबल दिखाती है कि मनुष्यों के पास एक अमर प्राण नहीं होता जो शरीर से निकल कर बच जाता है। मनुष्य प्राण हैं, और जो प्राण पाप करता है वह मर जाता है। (यहेजकेल १८:४, २०) सुलैमान ने विवरण दिया: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है। जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना, क्योंकि अधोलोक में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धि है।”—सभोपदेशक ९:५, १०.
१७. सभोपदेशक ७:१, २ को किस बात पर हमारे विचार करने का कारण होना चाहिए?
१७ इस अटल सच्चाई के कारण, इस कथन पर ध्यान दीजिए: “अच्छा नाम अनमोल इत्र से और मृत्यु का दिन जन्म के दिन से उत्तम है। जेवनार के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है; क्योंकि सब मनुष्यों का अन्त यही है, और जो जीवित है वह मन लगाकर इस पर सोचेगा।” (सभोपदेशक ७:१, २) हम ज़रूर सहमत होंगे कि मृत्यु “सब मनुष्यों का अन्त” रही है। कोई भी मनुष्य ऐसा अमृत पीने, कोई विटामिन मिश्रण खाने, निश्चित आहार खाने, या किसी क़िस्म की ऐसी कसरत में भाग नहीं ले सका है जिसका परिणाम अनन्त जीवन हो। और आम तौर पर उनकी मृत्यु के कुछ ही समय बाद “उनका स्मरण मिट गया है।” सो क्यों अच्छा नाम “अनमोल इत्र से और मृत्यु का दिन जन्म के दिन से उत्तम है”?
१८. हम क्यों निश्चित हो सकते हैं कि सुलैमान ने पुनरुत्थान पर विश्वास किया?
१८ जैसे बताया गया है, सुलैमान यथार्थवादी था। वह अपने पुरखों इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के बारे में जानता था, जिन्होंने अपने सृष्टिकर्ता के सामने एक अच्छा नाम कमाया था। इब्राहीम से अच्छी तरह परिचित होने के कारण, यहोवा परमेश्वर ने उसे और उसके वंश को आशिष देने की प्रतिज्ञा की। (उत्पत्ति १८:१८, १९; २२:१७) जी हाँ, परमेश्वर का मित्र बनकर, इब्राहीम का उसके सामने अच्छा नाम था। (२ इतिहास २०:७; यशायाह ४१:८; याकूब २:२३) इब्राहीम जानता था कि उसका जीवन और उसके पुत्र का जीवन मात्र एक कभी न ख़त्म होनेवाले जीवन और मृत्यु के चक्र का हिस्सा नहीं था। वहाँ निश्चित ही इससे भी ज़्यादा कुछ था। उनके पास दोबारा जीवन पाने की निश्चित आशा थी, इसलिए नहीं कि उनके पास एक अमर प्राण था, लेकिन इसलिए कि उन्हें पुनरुत्थित किया जाता। इब्राहीम आश्वस्त था कि “परमेश्वर सामर्थी है, कि मरे हुओं में से [इसहाक को] जिलाए।”—इब्रानियों ११:१७-१९.
१९. सभोपदेशक ७:१ के अर्थ के बारे में हम अय्यूब से कैसे अन्तर्दृष्टि पा सकते हैं?
१९ यह इस समझ की कुंजी है कि कैसे “अच्छा नाम अनमोल इत्र से और मृत्यु का दिन जन्म के दिन से उत्तम है।” जैसे उससे पहले अय्यूब आश्वस्त था, सुलैमान भी आश्वस्त था कि जिसने मानव जीवन की सृष्टि की है वह उसे पुनर्जीवित कर सकता है। वह उन मनुष्यों को पुनर्जीवित कर सकता है जो मर चुके हैं। (अय्यूब १४:७-१४) वफ़ादार अय्यूब ने कहा: “तू [यहोवा] मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।” (अय्यूब १४:१५) इसके बारे में सोचिए! अपने वफ़ादार सेवक के लिए जो मर गया है, हमारे सृष्टिकर्ता को “अभिलाषा” है। (“तू अपने हाथ के काम को एक बार फिर देखना चाहेगा।”—द जॆरूसलेम बाइबल, अंग्रेज़ी।) यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान का प्रयोग करते हुए, सृष्टिकर्ता मनुष्यों को पुनरुत्थित कर सकता है। (यूहन्ना ३:१६; प्रेरितों २४:१५) स्पष्ट रूप से, मनुष्य उन जानवरों से जो मरते हैं भिन्न हो सकते हैं।
२०. (क) जन्म के दिन से मृत्यु का दिन कब उत्तम होता है? (ख) लाज़र के पुनरुत्थान ने अनेक लोगों को कैसे प्रभावित किया होगा?
२० इसका यह अर्थ है कि मृत्यु का दिन एक व्यक्ति के जन्म लेने के दिन से उत्तम हो सकता है, यदि उस व्यक्ति ने उस समय तक यहोवा के सामने अच्छा नाम क़ायम कर लिया हो, जो उन वफ़ादार जनों को पुनरुत्थित कर सकता है जो मर चुके हैं। महान सुलैमान, यीशु मसीह ने यह साबित किया। उदाहरण के लिए, उसने वफ़ादार मनुष्य लाज़र को पुनर्जीवित किया। (लूका ११:३१; यूहन्ना ११:१-४४) जैसी आप कल्पना कर सकते हैं, अनेक लोग जिन्होंने लाज़र को जीवित होते देखा था, गहराई से प्रभावित हुए और परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास किया। (यूहन्ना ११:४५) क्या आप सोचते हैं कि उन्होंने जीवन में उद्देश्यहीन महसूस किया होगा, जिन्हें यह पता नहीं था कि वे कौन हैं और कहाँ जा रहे थे? इसके विपरीत, वे देख सकते थे कि उन्हें उन मात्र जानवरों के सदृश होने की कोई ज़रूरत नहीं थी, जो पैदा होते हैं, कुछ समय के लिए जीते हैं और फिर मर जाते हैं। जीवन में उनका उद्देश्य यीशु के पिता को जानने और उसकी इच्छा पूरी करने के साथ सीधे और घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। आपके बारे में क्या? क्या इस चर्चा ने आपको यह देखने में, या और स्पष्ट रूप से देखने में मदद की है कि आपके जीवन में कैसे वास्तविक उद्देश्य हो सकता है और क्यों होना चाहिए?
२१. अपने जीवन में अर्थ ढूँढने के किस पहलू को हम अब भी जाँचना चाहेंगे?
२१ फिर भी, जीवन में असली और अर्थपूर्ण उद्देश्य होने का, मात्र मृत्यु और उसके बाद दोबारा जीने के बारे में सोचने से कहीं अधिक अर्थ है। यह इस बात को शामिल करता है कि हम अपने जीवन के साथ हर दिन क्या कर रहे हैं। सुलैमान ने इसे भी सभोपदेशक में स्पष्ट किया, जैसा हम अगले लेख में देखेंगे।
[फुटनोट]
a “शीबा की रानी के बारे में वर्णन सुलैमान की बुद्धि पर ज़ोर देता है, और इस कहानी को अकसर एक दन्तकथा कहा गया है (१ रा. १०:१-१३)। लेकिन संदर्भ सूचित करता है उसकी भेंट वाक़ई व्यापार से सम्बन्धित थी और इस कारण समझ में आती है; इसकी ऐतिहासिकता पर शक करने की ज़रूरत नहीं।”—दी इन्टरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल एनसाइक्लोपीडिया (अंग्रेज़ी), (१९८८), खण्ड IV, पृष्ठ ५६७.
क्या आपको याद है?
◻ किन तरीक़ों से जानवर और मनुष्य की तुलना की जा सकती है?
◻ मृत्यु क्यों स्पष्ट करती है कि अधिकांश मानव प्रयास और गतिविधि व्यर्थ है?
◻ मृत्यु का दिन जन्म के दिन से कैसे उत्तम हो सकता है?
◻ जीवन में हमारा एक अर्थपूर्ण उद्देश्य होना किस सम्बन्ध पर निर्भर करता है?
[पेज 10 पर तसवीरें]
आपका जीवन जानवरों के जीवन से कैसे विशिष्ट रूप से भिन्न है?