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  • समझ को अपनी रक्षा करने दीजिए

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  • समझ को अपनी रक्षा करने दीजिए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 3/15 पेज 17-22

समझ को अपनी रक्षा करने दीजिए

“विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी।”—नीतिवचन २:११.

१. समझ किस बात से हमारी रक्षा कर सकती है?

यहोवा चाहता है कि आप समझ का प्रयोग करें। क्यों? क्योंकि वह जानता है कि यह विभिन्‍न ख़तरों से आपकी रक्षा करेगी। नीतिवचन २:१०-१९ यह कहने के द्वारा आरम्भ होता है: “क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी।” किस बात से आपकी रक्षा करेगी? “बुराई के मार्ग” जैसी बातों से, ऐसे लोगों से जो सीधाई का मार्ग छोड़ देते हैं, और जिनके मार्ग बिगड़े हुए हैं।

२. समझ क्या है, और मसीही किस प्रकार की समझ पाना चाहते हैं?

२ संभवतः आपको याद होगा कि समझ मन की वह क्षमता है जिसके द्वारा वह एक वस्तु को दूसरी से अलग करती है। एक समझदार व्यक्‍ति विचारों अथवा बातों में भिन्‍नता को समझता है और अच्छी परख शक्‍ति रखता है। मसीहियों के रूप में, ख़ास तौर पर हम परमेश्‍वर के वचन के यथार्थ ज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक समझ पाना चाहते हैं। जब हम शास्त्र का अध्ययन करते हैं, तो यह मानो ऐसा है जैसे कि हम आध्यात्मिक समझ की इमारती ईंटों को खोदकर निकाल रहे हैं। हम जो सीखते हैं वह हमें ऐसे निर्णय करने में मदद कर सकता है जो यहोवा को प्रसन्‍न करते हैं।

३. हम आध्यात्मिक समझ कैसे हासिल कर सकते हैं?

३ जब परमेश्‍वर ने इस्राएल के राजा सुलैमान से पूछा कि वह क्या आशिष चाहता था, तो उस युवा शासक ने कहा: “तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्‍ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं।” सुलैमान ने समझ माँगी, और यहोवा ने उसे यह असाधारण मात्रा में दी। (१ राजा ३:९; ४:३०) समझ हासिल करने के लिए, हमें प्रार्थना करना और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के माध्यम से उपलब्ध कराए जानेवाले ज्ञानप्रद प्रकाशनों की मदद लेकर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करना चाहिए। (मत्ती २४:४५-४७) यह हमें उस हद तक आध्यात्मिक समझ विकसित करने में मदद करेगा कि हम “समझ में सियाने” हो जाएँ, और “भले बुरे में भेद करने [या, के बीच अन्तर समझने] के” योग्य हों।—१ कुरिन्थियों १४:२०; इब्रानियों ५:१४.

समझ की ख़ास ज़रूरत

४. एक “निर्मल” आँख रखने का क्या अर्थ है, और यह हमें कैसे लाभ पहुँचा सकती है?

४ उचित समझ के साथ, हम यीशु मसीह के इन शब्दों के सामंजस्य में काम कर सकते हैं: “परन्तु तुम पहले परमेश्‍वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो तो ये सब [भौतिक] वस्तुएं तुम्हें दे दी जाएंगी।” (मत्ती ६:३३, NHT) यीशु ने यह भी कहा: “तेरे शरीर का दीया तेरी आंख है, इसलिये जब तेरी आंख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है।” (लूका ११:३४) आँख एक लाक्षणिक दीया है। एक “निर्मल” आँख निश्‍छल, एक दिशा में केन्द्रित होती है। ऐसी आँख से, हम समझ दिखा सकते हैं और आध्यात्मिक रूप से ठोकर खाए बिना चल सकते हैं।

५. व्यापारिक सौदें करते वक़्त, मसीही कलीसिया के उद्देश्‍य के बारे में हमें मन में क्या रखना चाहिए?

५ अपनी आँख को निर्मल रखने के बजाय कुछ लोगों ने ख़ुद का जीवन और दूसरों का जीवन प्रलोभित करनेवाले व्यापारिक सौदों के द्वारा जटिल बना लिया है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि मसीही कलीसिया “सत्य का खंभा, और नेव” है। (१ तीमुथियुस ३:१५) एक इमारत के स्तंभों की तरह, कलीसिया परमेश्‍वर की सच्चाई को ऊँचा उठाती है न कि किसी के व्यापारिक उद्यम को। यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं की स्थापना व्यापारिक हितों, वस्तुओं, या सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए एक स्थान के रूप में नहीं की गई है। राज्यगृह में व्यक्‍तिगत व्यापारिक कार्य करने से हमें दूर रहना चाहिए। समझ हमें यह देखने में मदद करती है कि यहोवा के साक्षियों के राज्यगृह, कलीसिया पुस्तक अध्ययन, सम्मेलन, और अधिवेशन मसीही संगति और आध्यात्मिक चर्चा के स्थान हैं। यदि हम आध्यात्मिक सम्बन्धों का प्रयोग किसी भी प्रकार के वाणिज्यवाद को बढ़ावा देने के लिए करते, तो क्या यह आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति कुछ हद तक मूल्यांकन की कमी प्रदर्शित नहीं करेगा? कभी भी आर्थिक लाभ के लिए कलीसियाई सम्बन्धों का अनुचित फ़ायदा नहीं उठाया जाना चाहिए।

६. कलीसिया सभाओं में व्यापारिक उत्पादनों और सेवाओं के सौदे क्यों नहीं किए जाने चाहिए या उन्हें क्यों नहीं बढ़ावा दिया जाना चाहिए?

६ कुछ लोगों ने ईश्‍वरशासित सम्पर्कों का इस्तेमाल, स्वास्थ्य अथवा सौन्दर्य प्रसाधनों, विटामिन उत्पादनों, दूर-संचार सेवाओं, निर्माण सामग्री, पर्यटन, कम्प्यूटर प्रोग्रामों और उपकरण, इत्यादि का व्यापार करने के लिए किया है। लेकिन, कलीसिया सभाएँ व्यापारिक उत्पादनों अथवा सेवाओं को बेचने या बढ़ावा देने का स्थान नहीं हैं। हम इसके आधार-भूत सिद्धान्त को समझ सकते हैं यदि हम याद रखें कि यीशु ने “सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिथरा दिए, और पीढ़ों को उलट दिया। और कबूतर बेचनेवालों से कहा; इन्हें यहां से ले जाओ: मेरे पिता के भवन को ब्योपार का घर मत बनाओ।”—यूहन्‍ना २:१५, १६.

पैसा लगाने के बारे में क्या?

७. पैसा लगाने के सम्बन्ध में समझ और सावधानी की ज़रूरत क्यों है?

७ जोखिम-भरे व्यापार में पैसा लगाते वक़्त समझ और सावधानी दोनों की ज़रूरत होती है। मान लीजिए कोई व्यक्‍ति पैसा उधार लेना चाहता है और इस तरह के वायदे करता है: “मैं गारंटी देता हूँ कि आप पैसा कमाएँगे।” “आपको कोई घाटा नहीं हो सकता। ये बात पक्की है।” जब कोई आपको ऐसे आश्‍वासन दे, तो सावधान रहिए। या तो वह यथार्थवादी नहीं है या वह बेईमान है क्योंकि पैसा लगाकर निश्‍चित ही सफलता पाना एक पक्की बात नहीं होती है। वास्तव में, कुछ चिकनी-चुपड़ी बातें करनेवाले, बेईमान व्यक्‍तियों ने कलीसिया के सदस्यों को धोखा दिया है। यह हमें उन ‘अधर्मी मनुष्यों’ (NHT) की याद दिलाता है जो प्रथम-शताब्दी कलीसिया में चुपके से आ घुसे थे और जिन्होंने ‘परमेश्‍वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डाला।’ वे पानी में छिपी हुई दाँतेदार चट्टान सरीखे थे जो एक तैराक को चीर सकती थीं और मार सकती थीं। (यहूदा ४, १२) सच है कि लालची धोखेबाज़ों के इरादे अलग होते हैं, लेकिन वे भी कलीसिया के सदस्यों का शिकार करते हैं।

८. कुछ लाभदायक दिखनेवाले जोखिम-भरे व्यापार के सम्बन्ध में क्या घटित हुआ है?

८ यहाँ तक कि नेकनीयत भाइयों ने संभावित मुनाफ़ेवाले जोखिम-भरे व्यापार की जानकारी दूसरों के साथ बाँटी है, और उन्हें केवल यह पता लगा है कि उन्होंने और उनके उदाहरण पर चलनेवालों ने लगाया हुआ पैसा खो दिया। परिणामस्वरूप, अनेक मसीहियों ने कलीसिया में विशेषाधिकारों को खो दिया है। जब जल्द-अमीर-बनिए व्यापार छली योजनाएँ निकलती हैं, तो फ़ायदा सिर्फ़ धोखा देनेवाले को होता है, जो ज़्यादातर तुरन्त ग़ायब हो जाता है। समझ एक व्यक्‍ति को ऐसी परिस्थितियों से दूर रहने में कैसे मदद कर सकती है?

९. पैसा लगाने के दावों की परख करने के लिए समझ क्यों ज़रूरी है?

९ समझ का अर्थ है एक अस्पष्ट बात को समझने के योग्य होना। इस योग्यता की ज़रूरत पैसे लगाने के बारे में दावों की परख करने में होती है। मसीही एक दूसरे पर भरोसा करते हैं, कुछ शायद तर्क करें कि उनके आध्यात्मिक भाई-बहन एक ऐसे जोखिम-भरे व्यापार में शामिल नहीं होते जो संगी विश्‍वासियों के साधनों के लिए ख़तरा पैदा करते हैं। लेकिन यह बात कि एक व्यवसायी एक मसीही है इस बात की गारंटी नहीं देता कि वह व्यापारिक मामलों में माहिर है अथवा उसका व्यापार सफल होगा।

१०. कुछ मसीही व्यापार के लिए संगी विश्‍वासियों से पैसा उधार लेने की कोशिश क्यों करते हैं, और ऐसे पैसे का क्या हो सकता है?

१० कुछ मसीही व्यवसाय के लिए संगी विश्‍वासियों से पैसा उधार लेते हैं क्योंकि जानी-मानी उधार देनेवाली ऐजॆन्सियाँ उनके जोखिम-भरे उद्यमों के लिए कभी-भी उधार पैसा नहीं देतीं। अनेक लोगों को इस बात पर विश्‍वास करने के लिए मूर्ख बनाया गया है कि मात्र अपना पैसा लगाने से, वे ज़्यादा काम किए बिना या शायद बिना कोई काम किए जल्दी पैसा कमा सकते हैं। कुछ लोग अमुक व्यापार में पैसा लगाने के साथ जुड़ी मोहकता की ओर आकर्षित होने की वजह से ऐसा करते हैं, और अपने जीवन-भर की जमा-पूँजी गँवा देते हैं! एक मसीही ने मात्र दो सप्ताहों में २५ प्रतिशत मुनाफ़ा पाने की आशा से, एक बड़ी रक़म लगाई। जब दिवालिया घोषित कर दिया गया, तो उसने वह सारा पैसा गँवा दिया। एक दूसरे जोखिम-भरे व्यापार में, एक भू-संपत्ति विकासक ने कलीसिया में दूसरों से बड़ी रक़म उधार ली। उसने हद से ज़्यादा ऊँचे मुनाफ़ों का वायदा किया लेकिन वह दिवालिया हो गया और उधार ली हुई रक़म गँवा बैठा।

जब जोखिम-भरा व्यापार असफल हो जाता है

११. लालच और रुपये के लोभ के बारे में पौलुस ने क्या सलाह दी?

११ कुछ मसीहियों के लिए, जो अनुपयुक्‍त जोखिम-भरे व्यापारों में शामिल हुए थे, व्यापार में असफलता, निराशा और यहाँ तक कि आध्यात्मिकता खो बैठने का कारण बना है। समझ को एक रक्षक के रूप में कार्य न करने देने में असफलता का परिणाम पीड़ा और कड़वाहट रहा है। लालच ने अनेक लोगों को फँदे में फँसाया है। पौलुस ने लिखा, “जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में . . . लोभ की चर्चा तक न हो।” (इफिसियों ५:३) और उसने चिताया: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्‍वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:९, १०.

१२. यदि मसीही आपस में व्यापार करते हैं, तो उन्हें ख़ास तौर पर क्या याद रखना चाहिए?

१२ यदि एक मसीही रुपए का लोभ विकसित करता है, तो वह अपनी बहुत ज़्यादा आध्यात्मिक क्षति करेगा। फरीसी रुपये का लोभ करनेवाले थे, और इन अन्तिम दिनों में यह अनेक लोगों का एक लक्षण है। (लूका १६:१४; २ तीमुथियुस ३:१, २) इसकी विषमता में, एक मसीही का स्वभाव “लोभरहित” होना चाहिए। (इब्रानियों १३:५) निःसंदेह, मसीही एक-दूसरे के साथ व्यापार कर सकते हैं या साथ मिलकर व्यापार शुरू कर सकते हैं। लेकिन, जब वे ऐसा करते हैं, तब बातचीत और मोल-तोल को कलीसिया के मामलों से अलग रखा जाना चाहिए। और याद रखिए: आध्यात्मिक भाइयों के बीच में भी, हमेशा व्यापारिक समझौतों को लिखित रूप में कीजिए। इस सम्बन्ध में फरवरी ८, १९८३ की सजग होइए! (अंग्रेज़ी), पृष्ठ १३ से १५ में प्रकाशित “लिखित में कीजिए!” नामक लेख बहुत सहायक है।

१३. जोखिम-भरे व्यापार के सम्बन्ध में आप नीतिवचन २२:७ कैसे लागू करेंगे?

१३ नीतिवचन २२:७ हमसे कहता है: “उधार लेनेवाला उधार देनेवाले का दास होता है।” ख़ुद को या अपने भाई को दास के स्थान पर रखना प्रायः मूर्खता है। जब कोई व्यक्‍ति हमसे एक जोखिम-भरे व्यापार के लिए उसे पैसे उधार देने के लिए कहता है, तो उस व्यक्‍ति की रक़म लौटाने की योग्यता पर ध्यान देना उपयुक्‍त होगा। क्या वह भरोसे के योग्य और विश्‍वसनीय होने के लिए जाना जाता है? जी हाँ, हमें यह अहसास होना चाहिए कि इस तरह पैसा देने का अर्थ पैसे को खोना हो सकता है क्योंकि अनेक जोखिम-भरे व्यापार असफल हो जाते हैं। एक इक़रारनामा अपने आप में एक सफल व्यापार की गारंटी नहीं देता। और निश्‍चित ही किसी भी व्यक्‍ति के लिए यह समझदारी की बात नहीं है कि किसी उद्यम में उससे ज़्यादा पैसा लगाए जितने का नुक़सान वह बर्दाश्‍त कर सकता है।

१४. यदि हमने एक मसीही को पैसा उधार दिया था जिसका व्यापार असफल हो गया, तो हमें समझ दिखाने की ज़रूरत क्यों है?

१४ यदि हमने एक मसीही को व्यापार के लिए पैसा उधार दिया है और हालाँकि कोई बेईमानी का काम नहीं किया गया है फिर भी पैसा गँवाया गया है, तो हमें समझ दिखाने की ज़रूरत है। यदि व्यापार की असफलता हमारे संगी विश्‍वासी की ग़लती नहीं थी जिसने हमसे पैसा उधार लिया था, क्या हम कह सकते हैं कि हमारे साथ किसी तरह का धोखा हुआ है? जी नहीं, क्योंकि उधार हमने अपनी मर्ज़ी से दिया था, शायद हम उस पर ब्याज भी ले रहे हों, और कोई बेईमानी नहीं हुई है। क्योंकि कोई बेईमानी शामिल नहीं थी, हमारे पास उधार लेनेवाले के ख़िलाफ़ कानूनी कार्यवाही करने का कोई आधार नहीं है। एक ईमानदार संगी मसीही पर मुक़दमा करने से क्या फ़ायदा होगा, जिसे दिवालिया होने का दावा दायर करना पड़ा हो, क्योंकि एक नेकनीयत व्यापार असफल हो गया?—१ कुरिन्थियों ६:१.

१५. यदि दिवालिया घोषित कर दिया जाता है तो कौन-से कारणों पर ध्यान देने की ज़रूरत है?

१५ जो लोग व्यापार में असफलता का अनुभव कर रहे होते हैं कभी-कभी दिवालिया होने की घोषणा करने के द्वारा राहत पाने की कोशिश करते हैं। चूँकि मसीही अपने ऋणभार के बारे में लापरवाह नहीं हैं, कुछ कर्ज़ों से कानूनी तौर पर मुक्‍त किए जाने पर भी, लेनदारों को, यदि वे अदायगी स्वीकार करते हैं तो, माफ़ किया गया कर्ज़ चुकाने की कोशिश करने के लिए कुछ मसीहियों ने बाध्य महसूस किया है। लेकिन तब क्या यदि एक उधार लेनेवाला अपने भाई का पैसा खो देता है और उसके बाद वह तुलनात्मक रूप से ऐशोआराम से रहता है? या तब क्या यदि उधार लेनेवाला, जितना उसने उधार लिया था उसे वापस चुकाने के लिए पर्याप्त पैसा हासिल करता तो है लेकिन आर्थिक रूप से अपने भाई के प्रति अपनी नैतिक बाध्यता को नज़रअन्दाज़ करता है? तब कर्ज़ लेनेवाले की, कलीसिया में एक ज़िम्मेदारी के पद पर काम करने की योग्यता के बारे में सवाल उठेंगे।—१ तीमुथियुस ३:३, ८; सितम्बर १, १९९४ की प्रहरीदुर्ग देखिए, पृष्ठ ३०-१.

जब धोखाधड़ी हुई हो तब क्या?

१६. यदि हम व्यापारिक धोखाधड़ी का शिकार होते जान पड़ते हैं तो कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?

१६ समझ हमें यह स्वीकार करने में मदद करती है कि लगाए गए सारे पैसे से मुनाफ़ा नहीं होता। लेकिन यदि धोखाधड़ी शामिल है तब क्या? “छल, चालबाज़ी, या झूठ के द्वारा एक व्यक्‍ति को किसी ऐसी क़ीमती वस्तु को त्यागने के लिए जो उसकी है या किसी कानूनी अधिकार को त्यागने के लिए दबाव डालना” धोखाधड़ी है। यीशु मसीह ने उन क़दमों का ब्योरा दिया जो तब उठाए जा सकते हैं जब एक व्यक्‍ति सोचता है कि उसके साथ संगी उपासक ने धोखा किया है। मत्ती १८:१५-१७ के अनुसार, यीशु ने कहा: “यदि तेरा भाई तेरा अपराध करे, तो जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तू ने अपने भाई को पा लिया। और यदि वह न सुने, तो और एक दो जन को अपने साथ ले जा, कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुंह से ठहराई जाए। यदि वह उन की भी न माने, तो कलीसिया से कह दे, परन्तु यदि वह कलीसिया की भी न माने तो तू उसे अन्यजाति और महसूल लेनेवाले के ऐसा जान।” जो दृष्टान्त यीशु ने इसके बाद दिया वह यह सूचित करता है कि उसके मन में आर्थिक मामलों से सम्बन्धित ऐसे पाप थे, जिनमें धोखाधड़ी भी शामिल है।—मत्ती १८:२३-३५.

१७, १८. यदि एक नामधारी मसीही हमारे साथ धोखाधड़ी करता है, तो समझ हमारी रक्षा कैसे कर सकती है?

१७ जी हाँ, मत्ती १८:१५-१७ में दिए गए क़दम उठाने का कोई शास्त्रीय आधार नहीं होगा यदि धोखाधड़ी का प्रमाण या संकेत भी न हो। लेकिन, तब क्या जब नामधारी मसीही ने वास्तव में हमसे धोखा किया है? समझ ऐसे किसी भी कार्य को करने से हमारी रक्षा कर सकती है जिससे शायद कलीसिया की बदनामी हो। एक भाई को कचहरी में ले जाने के बजाय प्रेरित पौलुस ने संगी मसीहियों को सलाह दी कि वे ख़ुद अन्याय सहें और हानि भी उठाएँ।—१ कुरिन्थियों ६:७.

१८ हमारे सच्चे भाई-बहन, टोन्हा करनेवाले बार-यीशु की तरह, ‘छल और धूर्तता’ से भरे हुए नहीं हैं। (प्रेरितों १३:६-१२) सो जब उन जोखिम-भरे व्यापारों में पैसा गँवाया जाता है जिनमें संगी विश्‍वासी शामिल होते हैं, तो आइए हम समझ का प्रयोग करें। यदि हम कानूनी कार्यवाही करने के बारे में सोच रहे हैं, तो व्यक्‍तिगत रूप से हम पर, दूसरे व्यक्‍ति या व्यक्‍तियों पर, कलीसिया पर, और बाहरवालों पर उसके संभावित प्रभावों के बारे में हमें सोचना चाहिए। मुआवज़ा हासिल करने में हमारा ज़्यादातर समय, शक्‍ति, और दूसरे साधन ख़र्च हो सकते हैं। यह केवल वकीलों और अन्य पेशेवरों की जेबें भरने में शायद परिणित हो। दुःख की बात है, कुछ मसीहियों ने इन बातों में हद से ज़्यादा तल्लीन होने के कारण ईश्‍वरशासित विशेषाधिकारों को त्याग दिया है। इस प्रकार हमारा मार्ग से भटक जाना शैतान को ज़रूर ख़ुश करेगा, लेकिन हम यहोवा के हृदय को आनन्दित करना चाहते हैं। (नीतिवचन २७:११) दूसरी ओर, हानि उठाना हमें दुःखों से और हमारे और प्राचीनों के समय को बचा सकता है। यह कलीसिया की शान्ति को सुरक्षित रखने में मदद करेगी और हमें पहले राज्य की खोज करते रहने के योग्य बनाएगी।

समझ और निर्णय लेना

१९. जब हम तनावपूर्ण निर्णय करते हैं तब आध्यात्मिक समझ और प्रार्थना हमारे लिए क्या कर सकती हैं?

१९ आर्थिक या व्यापारिक मामलों में निर्णय लेना काफ़ी तनावपूर्ण हो सकता है। लेकिन आध्यात्मिक समझ तत्वों को तौलने और एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने में हमारी मदद कर सकती है। सबसे बढ़कर, यहोवा पर प्रार्थनापूर्ण भरोसा रखना हमें “परमेश्‍वर की शान्ति” दे सकता है। (फिलिप्पियों ४:६, ७) यह यहोवा के साथ एक नज़दीकी व्यक्‍तिगत सम्बन्ध द्वारा उत्पन्‍न होनेवाली स्थिरता और प्रशान्ति है। निश्‍चित रूप से, ऐसी शान्ति हमें अपना संतुलन रखने में मदद कर सकती है जब हमें कठिन निर्णय लेने होते हैं।

२०. जहाँ तक व्यापारिक मामलों और कलीसिया का सवाल है, हमें क्या करने के लिए दृढ़ निश्‍चय करना चाहिए?

२० आइए हम दृढ़ निश्‍चय करें कि हम व्यापारिक झगड़ों को हमारी या कलीसिया की शान्ति को भंग नहीं करने दें। हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि मसीही कलीसिया आध्यात्मिक रूप से हमारी मदद करने के लिए काम करती है, व्यापारिक कार्यों के केन्द्र के रूप में कार्य नहीं करती। व्यापारिक मामलों को कलीसिया की गतिविधियों से हमेशा अलग रखा जाना चाहिए। जोखिम-भरे व्यापारों में लगने से पहले हमें समझ और सावधानी बरतने की ज़रूरत है। और आइए हम हमेशा व्यापारिक मामलों में संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखें, पहले राज्य हितों की खोज करें। यदि एक जोखिम-भरा व्यापार जिसमें हमारे भाई-बहन शामिल हैं असफल होता है, तो ऐसा हो कि हम वह करने की कोशिश करें जो सभी अन्तर्ग्रस्त लोगों के लिए श्रेष्ठ है।

२१. हम कैसे समझ का प्रयोग कर सकते हैं और फिलिप्पियों १:९-११ के सामंजस्य में काम कर सकते हैं?

२१ आर्थिक मामलों या अन्य कम महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में हद से ज़्यादा चिन्तित होने के बजाय, आइए हम सभी अपना मन समझ की ओर लगाएँ, परमेश्‍वर के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और राज्य हितों को पहला स्थान दें। पौलुस की प्रार्थना के सामंजस्य में, ‘हमारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक [“पूर्ण समझ,” NHT] सहित और भी बढ़ते जाएँ। यहां तक कि हम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानें, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहें; और ठोकर न खाएँ’ या दूसरों के ठोकर खाने का कारण न बनें। अब जब मसीह राजा अपने स्वर्गीय सिंहासन पर विराजमान है, आइए अब हम जीवन के हर पहलू में आध्यात्मिक समझ का प्रयोग करें। और ‘हम धार्मिकता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होता है, भरपूर होते जाएँ जिस से परमेश्‍वर,’ सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा की ‘महिमा और स्तुति होती रहे।’—फिलिप्पियों १:९-११.

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ समझ क्या है?

◻ मसीहियों के बीच व्यापारिक सौदों के सम्बन्ध में समझ दिखाने की ख़ास ज़रूरत क्यों है?

◻ समझ हमारी कैसे मदद करेगी यदि हमें महसूस होता है कि संगी विश्‍वासी ने हमें धोखा दिया है?

◻ निर्णय लेने में समझ क्या भूमिका निभाती है?

[पेज 18 पर तसवीर]

समझ पहले राज्य की खोज करते रहने की यीशु की सलाह को लागू करने में हमारी मदद करेगी

[पेज 20 पर तसवीर]

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