क्या आपके बच्चे को बोर्डिंग स्कूल जाना चाहिए?
कल्पना कीजिए कि आप विकासशील देश के एक छोटे-से शहर में रहते हैं। यहाँ के कई बच्चे प्राथमिक विद्यालय में हैं, लेकिन १२ साल की उम्र में वे माध्यमिक विद्यालय में जाएँगे। आपके इलाक़े के, माध्यमिक विद्यालय भरे हुए हैं, उनमें साधनों, और योग्य शिक्षकों की कमी है। हड़तालें कभी-कभी स्कूलों को एक बार में हफ़्तों और महीनों के लिए बन्द कर देती हैं।
कोई आपके हाथ में एक आकर्षक ब्रोशर थमा देता है जिसमें शहर के एक बोर्डिंग स्कूल के बारे में बताया गया है। आप विद्यार्थियों की तसवीरें देखते हैं जो ख़ुश, अच्छी तरह कपड़े पहने, सुविधाओं से सम्पन्न कक्षाओं, प्रयोगशालाओं, और लाइब्रेरियों में पढ़ रहे हैं। विद्यार्थी कमप्यूटरों को इस्तेमाल करते और स्वच्छ, आकर्षक सोने के कमरों में आराम करते हैं। आप पढ़ते हैं स्कूल का एक लक्ष्य है कि विद्यार्थी “ऐसी सर्वोत्तम शिक्षा पाएँ जिसके वे लायक़ हैं।” आप आगे पढ़ते हैं: “सभी विद्यार्थियों को चालचलन के उन्हीं स्तरों का पालन करने की ज़रूरत हैं जो सामान्य तौर पर एक परिवार में की जाती हैं जहाँ, लिहाज़, शिष्टता, माता-पिता और बड़ों के लिए आदर, सहयोग, सहनशीलता, कृपा, ईमानदारी और खराई पर ज़ोर दिया जाता है।”
एक नौजवान को यह कहते हुए दिखाया गया है: “मेरे माता-पिता ने मुझे सर्वश्रेष्ठ स्कूल में पढ़ने का जीवन का सबसे बढ़िया विशेषाधिकार दिया है।” एक लड़की कहती है: “स्कूल चुनौतीपूर्ण और रोमांचकारी है। यहाँ अपने आप सीखना आ जाता है।” क्या आप अपने बेटे या बेटी को ऐसे बोर्डिंग स्कूल में भेजेंगे?
शिक्षा और आध्यात्मिकता
सभी परवाह करनेवाले माता-पिता अपने बच्चों को जीवन में एक अच्छी शुरूआत देना चाहते हैं, और इसे पाने के लिए एक उचित, संतुलित शिक्षा महत्त्वपूर्ण है। अकसर लौकिक शिक्षा भावी रोज़गार अवसरों के द्वार खोल देती है और युवजनों को अपनी और अपने भावी परिवारों की देख-भाल करने के योग्य वयस्क बनने में मदद करती है।
‘यदि एक बोर्डिंग स्कूल अच्छी शिक्षा साथ ही कुछ नैतिक मार्गदर्शन देता है, तो क्यों न इसका लाभ उठाया जाए?’ शायद आप पूछें। इस सवाल का जवाब देते वक़्त, मसीही माता-पिता को एक अति महत्त्वपूर्ण तथ्य पर प्रार्थनापूर्वक विचार करना चाहिए—अपने बच्चों का आध्यात्मिक हित। यीशु मसीह ने पूछा: “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा?” (मरकुस ८:३६) निश्चय ही, इसमें कोई भी लाभ नहीं है। इसलिए, अपने बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में भेजने का फ़ैसला करने से पहले, मसीही माता-पिता को विचार करना चाहिए कि उनके बच्चों की अनन्त जीवन की भावी संभावनाओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है।
अन्य विद्यार्थियों का प्रभाव
शायद कुछ बोर्डिंग स्कूलों में प्रभावकारी शैक्षिक स्तर हों। लेकिन उन लोगों के नैतिक स्तरों के बारे में क्या जो ऐसे स्कूलों में पढ़ते हैं या जो ऐसे स्कूलों को चलाते हैं? ऐसे लोगों के बारे में जो इन “अन्तिम दिनों” में बहुतायत में पाए जाते, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतध्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना।”—२ तीमुथियुस ३:१-५.
यह नैतिक और आध्यात्मिक गिरावट विश्वव्यापी है, जो यहोवा के साक्षियों के सामने बाइबल सिद्धान्तों के अनुसार जीने में एक चुनौती प्रस्तुत करती है। विद्यार्थी जो हर रोज़ वापस घर आते हैं यह पाते हैं कि दुनियावी स्कूल साथियों के साथ उनकी थोड़ी-सी संगति भी उनकी आध्यात्मिकता पर एक नकारात्मक शक्तिशाली प्रभाव डाल सकती है। अपने माता-पिता से नियमित सहायता, सलाह, और प्रोत्साहन के बावजूद भी इस प्रभाव का विरोध करना साक्षी बच्चों के लिए एक बड़ा संघर्ष हो सकता है।
तब, उन बच्चों की क्या परिस्थिति है जिन्हें अपने घरों से बोर्डिंग स्कूलों में भेजा जाता है? वे अलग हो जाते हैं और उन्हें अपने प्रेममय माता-पिता का नियमित आध्यात्मिक समर्थन नहीं मिलता। क्योंकि वे हर दिन अपने कक्षा साथियों के साथ २४ घंटे रहते हैं, तो टोली की बात मानने का दबाव उनके युवा मन और हृदयों पर संभवतः उन विद्यार्थियों से ज़्यादा होता है जो घर पर रहते हैं। एक विद्यार्थी ने कहा: “नैतिक रूप से, सुबह से लेकर रात तक एक बोर्डिंग विद्यार्थी ख़तरे में जीता है।”
पौलुस ने लिखा: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (१ कुरिन्थियों १५:३३) मसीही माता-पिता को यह सोचकर धोखा नहीं खाना चाहिए कि उनके साथ नियमित संगति रखने से जो परमेश्वर की सेवा नहीं करते उनके बच्चों को कुछ भी आध्यात्मिक हानि नहीं होगी। समय गुज़रने पर, धार्मिक बच्चे मसीही मूल्यों के प्रति लापरवाह हो सकते हैं और आध्यात्मिक बातों के प्रति पूरी तरह मूल्यांकन खो सकते हैं। कभी-कभी यह बात माता-पिता को तब तक पता नहीं चलती जब तक कि उनके बच्चे बोर्डिंग स्कूल छोड़ नहीं देते। अकसर तब मामलों को सुलझाने में काफ़ी देर हो चुकी होती है।
क्लेमॆन्ट का अनुभव इसका एक उदाहरण है। वह समझाता है: “बोर्डिंग स्कूल जाने से पहले, मुझमें सच्चाई के लिए प्रेम था और मैं भाइयों के साथ क्षेत्र सेवा में जाता था। मैंने ख़ास तौर पर हमारे पारिवारिक बाइबल अध्ययन और कलीसिया पुस्तक अध्ययन का आनन्द उठाया। लेकिन, १४ की उम्र में मेरे बोर्डिंग स्कूल जाने के बाद, मैंने पूरी तरह सच्चाई को छोड़ दिया। उन पूरे पाँच सालों में जो मैंने बोर्डिंग स्कूल में बिताए, मैं कभी-भी सभाओं में उपस्थित नहीं हुआ। बुरी संगति के परिणामस्वरूप, मैं नशीले पदार्थों को लेने, धूम्रपान करने, और बहुत ज़्यादा शराब पीने में अन्तर्ग्रस्त हो गया।”
अध्यापकों का प्रभाव
किसी भी स्कूल में नैतिक रूप से भ्रष्ट अध्यापक हो सकते हैं जो अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं। कुछ क्रूर और कठोर होते हैं, जबकि अन्य लैंगिक रूप से अपने विद्यार्थियों का शोषण करते हैं। बोर्डिंग स्कूलों में ऐसे अध्यापकों के काम ज़्यादातर संभवतः रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं।
लेकिन, अधिकांश अध्यापक समाज के योग्य सदस्य बनने, उनके चारों ओर की दुनिया में जमने, उसके अनुसार ढलने में बच्चों की निष्कपट रूप से प्रशिक्षण देने की कोशिश करते हैं। लेकिन यहाँ साक्षी बच्चों को एक और समस्या आती है। संसार के मूल्य हमेशा मसीही सिद्धान्तों के साथ मेल नहीं खाते। जबकि अध्यापक विद्यार्थियों को दुनिया में जमने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, यीशु ने कहा कि उसके अनुयायी “संसार के नहीं” होते।—यूहन्ना १७:१६.
तब क्या यदि बाइबल सिद्धान्तों पर चलने से बच्चों के लिए समस्या खड़ी हो जाती है? यदि बच्चे स्थानीय स्कूल में पढ़ रहे हैं और घर पर रह रहे हैं, तो वे ऐसे मामलों पर अपने माता-पिता के साथ चर्चा कर सकते हैं। बदले में, माता-पिता अपने बच्चों को मार्गदर्शन दे सकते हैं और संभवतः अध्यापकों से बात कर सकते हैं। जिसके परिणामस्वरूप, समस्याएँ और मतभेद आम तौर पर शीघ्रता से निपट जाते हैं।
बोर्डिंग स्कूल में यह एक अलग बात है। ऐसे विद्यार्थी अपने अध्यापकों के लगातार नियंत्रण में रहते हैं। यदि बच्चों को मसीही सिद्धान्तों के लिए खड़ा होना है तो यह उन्हें अपने माता-पिता के रोज़मर्रा के समर्थन के बिना ऐसा करना ज़रूरी है। कभी-कभी, ऐसी परिस्थितियों के अधीन बच्चे परमेश्वर के प्रति वफ़ादार रह पाते हैं। लेकिन, ज़्यादातर, वे वफ़ादार नहीं रह पाते। एक बच्चा एक अध्यापक की मर्ज़ी के आगे संभवतः झुक जाए।
नियंत्रित गतिविधि
विश्वविद्यालयों की विषमता में, जहाँ विद्यार्थी जब चाहे जैसे चाहे आ-जा सकते हैं, बोर्डिंग स्कूल बच्चों की गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं। अनेक स्कूल अपने विद्यार्थियों को रविवार को छोड़ और किसी दिन स्कूल बाउन्ड्री से बाहर जाने की अनुमति नहीं देते, और कई तो इसकी भी अनुमति नहीं देते। एरू नामक, एक ११ साल की छात्रा कहती है: “स्कूल अधिकारी हमें सभाओं तक में नहीं जाने देते, क्षेत्र सेवकाई की तो बात ही छोड़ो। स्कूल के अन्दर केवल कैथोलिकों और मुसलमानों के लिए धार्मिक सेवाएँ हैं। या तो प्रत्येक विद्यार्थी इन दोनों में से एक को चुने या अध्यापकों और विद्यार्थियों दोनों के सख़्त विरोध का सामना करे। विद्यार्थियों के साथ राष्ट्रीय गीत और गिरजे के भजन गाने की भी ज़बरदस्ती की जाती है।”
जब माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में भेजते हैं, तो वे अपने बच्चों को क्या सन्देश दे रहे होते हैं? सन्देश यह हो सकता है कि लौकिक शिक्षा, उपासना और चेला बनाने के काम से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है—परमेश्वर के प्रति खराई से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण।—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०; २ कुरिन्थियों ६:१४-१८; इब्रानियों १०:२४, २५.
कुछ बोर्डिंग स्कूलों में, साक्षी बच्चे किसी तरह मिलकर बाइबल अध्ययन कर लेते हैं, लेकिन यह भी अकसर कठिन होता है। ब्लैस्सिंग नामक एक युवती, जो १६ की है, जिस बोर्डिंग स्कूल में वह जाती है उसके बारे में यह कहती है: “प्रतिदिन वे तथा-कथित मसीही प्रार्थना करने आते हैं। हम साक्षी उनसे बिनती करने की कोशिश करते हैं ताकि हम अपना अध्ययन कर सकें, लेकिन बड़े विद्यार्थी हमसे कहते हैं कि हमारा संगठन मान्यता-प्राप्त नहीं है। तब वे हमें उनके साथ प्रार्थना करने के लिए बाध्य करते हैं। यदि हम मना करते हैं, तो वे हमें सज़ा देते हैं। अध्यापकों से शिकायत करने से मामला बदतर बन जाता है। वे हमें न जाने क्या-क्या कहते हैं और बड़े बच्चों से हमें सज़ा देने के लिए कहते हैं।”
दूसरों से अलग दिखना
जब बोर्डिंग स्कूल विद्यार्थी यहोवा के साक्षियों के तौर पर स्पष्ट रूप से जाने जाते हैं, तो यह उनके फ़ायदे के लिए काम कर सकता है। स्कूल अधिकारी शायद उन्हें उन अनिवार्य झूठी धार्मिक गतिविधियों से मुक्त रखें जो साक्षी विश्वास के ख़िलाफ़ हों। साथी विद्यार्थी शायद उन्हें अनुचित गतिविधियों और बातचीत में शामिल करने की कोशिश करने से दूर रहें। संगी विद्यार्थियों और अध्यापकों को साक्षी देने का शायद रास्ता निकल आए। इसके अलावा, जो लोग मसीही सिद्धान्तों के अनुरूप जीते हैं उन पर घोर दुष्कार्य करने का शक संभवतः न किया जाए, और कभी-कभी अध्यापकों और संगी विद्यार्थियों का आदर भी हासिल कर पाएँ।
लेकिन, हमेशा ऐसा नहीं होता। दूसरों से अलग दिखना अकसर एक युवा व्यक्ति को विद्यार्थियों और अध्यापकों दोनों के द्वारा सताहट और निन्दा का लक्ष्य बना देता है। यिन्का, एक १५ साल का लड़का जो बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता है, कहता है: “यदि स्कूल में आप एक यहोवा के साक्षी के तौर पर जाने जाते हैं तो आप एक निशाना बनते हैं। क्योंकि वे हमारी आध्यात्मिक और नैतिक स्थिति जानते हैं, तो वे हमें फँसाने के लिए चाल चलते हैं।”
जनकीय ज़िम्मेदारी
कोई अध्यापक, स्कूल या कालेज सही माने में बच्चों को यहोवा के समर्पित सेवकों के रूप में ढालने की ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता। यह न तो उनका काम है न ही ज़िम्मेदारी। परमेश्वर का वचन निर्देशन देता है कि माता-पिता को स्वयं अपने बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरतों की परवाह करनी है। पौलुस ने लिखा: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४) माता-पिता इस ईश्वरीय सलाह को कैसे लागू कर सकते हैं यदि उनके बच्चे दूर एक बोर्डिंग स्कूल में हों और जहाँ उनसे महीने में केवल एक या दो बार मिला जा सकता हो?
परिस्थितियाँ बहुत भिन्न होती हैं, लेकिन मसीही माता-पिता को इस उत्प्रेरित कथन के सामंजस्य में कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए: “पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।”—१ तीमुथियुस ५:८.
क्या इसके अलावा कोई चारा है?
तो माता-पिता क्या कर सकते हैं यदि लगे कि उनके पास केवल दो रास्ते हैं—बोर्डिंग स्कूल या एक बेकार साधनोंवाला स्थानीय स्कूल? कुछ लोग जिन्होंने ख़ुद को ऐसी परिस्थिति में पाया है अपने बच्चों की स्थानीय स्कूली शिक्षा के साथ-साथ अतिरिक्त ट्यूशन दिलवाते हैं। अन्य माता-पिता अपने बच्चों को ख़ुद ट्यूशन देने के लिए समय निकालते हैं।
कभी-कभी माता-पिता पहले से ही उस समय के लिए अच्छी योजना बनाने के द्वारा समस्याओं को टाल देते हैं जब उनके बच्चे माध्यमिक विद्यालय में जाने लायक़ हो जाते हैं। यदि आपके पास छोटे बच्चे हैं या आप एक परिवार बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, तो आप यह पता लगा सकते हैं कि क्या आपके इलाक़े में उचित माध्यमिक विद्यालय है। यदि नहीं है, तो किसी एक विद्यालय के पास रहने के लिए चले जाना संभव हो सकता है।
जैसा कि माता-पिता अच्छी तरह जानते हैं, एक बच्चे में यहोवा के लिए प्रेम पैदा करने के लिए कौशल, धीरज, और बहुत समय की ज़रूरत पड़ती है। यदि यह तब कठिन होता है जब एक बच्चा घर पर रहता है, तो यह और कितना कठिन होगा जब एक बच्चा दूर रहता है! जबकि एक बच्चे का अनन्त जीवन अन्तर्ग्रस्त है, तो माता-पिता को गंभीरतापूर्वक और प्रार्थनापूर्वक निर्णय करना ज़रूरी है कि उनके बच्चों को बोर्डिंग स्कूल के हवाले करने का ख़तरा मोल लिया जा सकता है या नहीं। बोर्डिंग-स्कूल शिक्षा के फ़ायदों के लिए बच्चे के आध्यात्मिक हितों को बलिदान करना कितनी ही अदूरदर्शिता होगी! यह सिर्फ़ जलते हुए घर में एक मामूली चीज़ को बचाने के लिए जाने और जलकर मरने के समान होगा।
परमेश्वर का वचन कहता है: “चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़कर दण्ड भोगते हैं।” (नीतिवचन २२:३) एक बुरी स्थिति में न पड़ना बाद में उसे सुधारने से अच्छा है। इसके बारे में सोचना अच्छा होगा यदि आप ख़ुद से पूछते हैं, ‘क्या मेरे बच्चे को बोर्डिंग स्कूल में जाना चाहिए?’
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युवा साक्षी बोर्डिंग स्कूल के बारे में बताते हैं
“बोर्डिंग स्कूलों में साक्षी बच्चे आध्यात्मिक संगति से कट जाते हैं। बुराई करने के लिए दबाव डालनेवाला यह एक प्रतिकूल माहौल है।”—रॉटीमी, जो ११ से १४ की उम्र में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ा था।
“मसीही सभाओं में हाज़िर होना हद से ज़्यादा कठिन था। मैं ऐसा केवल रविवार को कर पाती थी, और ऐसा करने के लिए, मुझे विद्यार्थियों के गिरजे के लिए लाइन लगाते वक़्त छुपकर निकल जाने के द्वारा करना होता था। मैं कभी-भी ख़ुश नहीं थी, क्योंकि घर पर मैं सभी कलीसिया सभाओं में जाया करती थी, और शनिवार और रविवार को क्षेत्र सेवकाई में जाया करती थी। स्कूल एक प्रोत्साहनजनक अनुभव नहीं था। मैंने बहुत कुछ खोया।”—एस्तॆर, जिसे अध्यापक नियमित रूप से छड़ी से पीटते थे क्योंकि वह स्कूल में गिरजे की धर्म सभाओं में हिस्सा नहीं लेती थी।
“बोर्डिंग स्कूल में संगी विद्यार्थियों को साक्षी देना आसान नहीं था। अलग दिखना आसान नहीं था। मैं टोली के साथ चलना चाहती थी। संभवतः मैं और साहसी होती यदि मैं सभाओं और क्षेत्र सेवकाई में शामिल होने में समर्थ होती। लेकिन मैं तभी ऐसा कर सकती थी जब मेरी छुट्टी होती थी, जो बस साल में तीन बार होती थीं। यदि आपके पास एक ऐसा दिया है जिसमें तेल न भरा जाए, तो रोशनी मन्द होती जाती है। स्कूल में मेरी हालत यही थी।”—लारा, जो ११ से १६ साल की उम्र तक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ी थी।
“अब जबकि मैं बोर्डिंग स्कूल में नहीं हूँ, मैं ख़ुश हूँ कि मैं सभी सभाओं में उपस्थित हो सकती हूँ, क्षेत्र सेवा में हिस्सा ले सकती हूँ, और बाक़ी परिवार के साथ दैनिक पाठ का आनन्द उठा सकती हूँ। हालाँकि स्कूल में रहने से कुछ फ़ायदे थे, लेकिन यहोवा के साथ मेरे सम्बन्ध से ज़्यादा और कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं है।”—नेओमी, जिसने अपने पिता को उसे बोर्डिंग स्कूल से निकलवाने के लिए राज़ी किया।