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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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पाठकों के प्रश्‍न

क्या यह कहा जा सकता है कि मत्ती २४:३४ में शब्द “पीढ़ी” की हाल की ताज़ा समझ इस विचार की अनुमति देती है कि रीति-व्यवस्था का अंत दूर भविष्य में विलंबित हो सकता है?

ऐसा बिलकुल नहीं है। इसके विपरीत, इस मामले की हाल की बेहतर समझ से हमें अंत की लगातार प्रत्याशा करने में मदद मिलनी चाहिए। वह कैसे?

जैसा प्रहरीदुर्ग, नवम्बर १, १९९५ ने समझाया, यीशु ने “यह पीढ़ी” अभिव्यक्‍ति उसके समकालीन दुष्ट लोगों पर लागू की थी। (मत्ती ११:७, १६-१९; १२:३९, ४५; १७:१४-१७; प्रेरितों २:५, ६, १४, ४०) यह किसी ख़ास तारीख़ से शुरू होनेवाली कोई निश्‍चित समयावधि का वर्णन नहीं था।

दरअसल, प्रहरीदुर्ग के उसी अंक के “पाठकों के प्रश्‍न” ने दो मुख्य बातों पर ध्यान केंद्रित किया: “लोगों की एक पीढ़ी को निश्‍चित सालों की एक समयावधि नहीं माना जा सकता” और, “एक पीढ़ी के लोग अपेक्षाकृत छोटी समयावधि के लिए जीते हैं।”

हम अकसर “पीढ़ी” को इसी तरह प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, हम शायद कहें: ‘नॆपोलियन की पीढ़ी के सैनिक हवाई-जहाज़ों और परमाणु बमों के बारे में कुछ नहीं जानते थे।’ क्या हम उन सैनिकों का ज़िक्र कर रहे होंगे जो उसी साल पैदा हुए जिस साल नॆपोलियन पैदा हुआ था? क्या हम केवल उन फ्राँसीसी सैनिकों के बारे में बात करते जो नॆपोलियन के मरने से पहले मर गए? बिलकुल नहीं; न ही हम “पीढ़ी” के ऐसे इस्तेमाल से सालों की नियत संख्या निश्‍चित करने की कोशिश कर रहे होंगे। परन्तु, हम अपेक्षाकृत छोटी समयावधि का ज़िक्र कर रहे होंगे, नॆपोलियन के समय से सैकड़ों साल बाद के समय का नहीं।

यीशु ने जैतून पहाड़ पर दी अपनी भविष्यवाणी में जो कहा उसकी हमारी समझ से यह मेल खाता है। उस भविष्यवाणी के विभिन्‍न पहलुओं की पूर्ति सिद्ध करती है कि इस रीति-व्यवस्था का अंत निकट है। (मत्ती २४:३२, ३३) याद रखिए कि प्रकाशितवाक्य १२:९, १० के अनुसार, १९१४ में परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य के स्थापित होते ही, शैतान को पृथ्वी के परिवेश में फेंक दिया गया था। प्रकाशितवाक्य आगे कहता है कि शैतान अब अति क्रोधित है। क्यों? क्योंकि वह जानता है “कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (तिरछे टाइप हमारे)—प्रकाशितवाक्य १२:१२.

अतः यह उचित था कि नवम्बर १ की प्रहरीदुर्ग में यह उपशीर्षक था: “‘जागते रहो’!” उसके अगले अनुच्छेद ने उचित ही कहा: “हमें घटनाओं के सही समय को जानने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, हमारा ध्यान जागते रहने, दृढ़ विश्‍वास विकसित करने, और यहोवा की सेवा में व्यस्त रहने पर केंद्रित होना चाहिए—एक तिथि का पता लगाने पर नहीं।” फिर उसमें यीशु के शब्दों को उद्धृत किया गया: “देखो, जागते और प्रार्थना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। जो मैं तुम से कहता हूं, वही सब से कहता हूं, जागते रहो।”—मरकुस १३:३३, ३७.

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