क्या आप आशावादी हैं या निराशावादी?
“वोजश्न का दिन था, वो मातम की रात, . . . वो उम्मीदों की बहार थी, वो मायूसी का आलम, हमारी मुट्ठी में सारा जहान था, हमारे हाथ खाली थे।” चार्ल्स डिकनस् के महान लेखन दो शहरों की दास्तान (अंग्रेज़ी) के शुरूआती लफ़्ज़ बखूबी इस बात का फ़रक ज़ाहिर करते हैं कि घटनाएँ कैसे हमारे ख़्यालों, हमारे जज़्बातों और हमारे नज़रिए पर असर डाल सकती हैं।
जिन दो शहरों का ज़िक्र किया गया था वे फ्रांसीसी क्रांति की खलबली के दौरान लंदन और पैरिस थे। अठारहवीं-सदी के फ्रांस में, ज़ुल्मों के शिकार लोगों के लिए इंसानी हक़ की क्रांति का यह बिगुल वाक़ई “उम्मीदों की बहार” था। लेकिन फ्रांस के राजनैतिक और सामाजिक अगुवों के लिए या सत्ता से बाहर जाती राजनैतिक व्यवस्था के लिए, यह उस “मायूसी का आलम,” था जो मौत और बर्बादी की तरफ़ ले जा रहा था।
आशावाद या निराशावाद? ये सिर्फ़ इस बात पर निर्भर था कि आप किस तरफ़ थे। और आज भी यह इसी बात पर निर्भर है।
गिरेबान में झाँकने का वक़्त
क्या आप आशावादी हैं? क्या आप ज़िंदगी के उज्जवल पहलुओं पर नज़र रखते हैं, हमेशा क़ामयाबी की उम्मीद रखते हैं? या क्या आपका रुझान निराशावादी है, अपने आनेवाले कल की उम्मीदों के बारे में नकारात्मक विचार रखते हैं, क़ामयाब होना तो चाहते हैं लेकिन साथ-साथ उम्मीद रखते हैं बदतर की?
साठ साल पहले अमरीका के उपन्यासकार जेम्स ब्राँच केबल ने इन दो परस्पर विरोधी तत्त्वज्ञानों का सार इस तरह दिया: “आशावादी कहते हैं कि हम सबसे संभव बेहतरीन समाज में जीते हैं; लेकिन निराशावादी यह सोचते हैं कि अगर यह सच है तो कोई उम्मीद नहीं।” अगर आपको लगता है कि यह नज़रिया शायद निंदात्मक है तो आज की दुनिया में पाए जानेवाले बस तीन पहलुओं के दोनों पक्षों की जाँच कीजिए जो नीचे दिए गए हैं। फिर अपने जवाब को जाँचिए और खुद से पूछिए, ‘क्या मैं आशावादी हूँ या निराशावादी?’
हमेशा की शांति: आप दुनिया के कितने गड़बड़ीवाले इलाक़ों के नाम गिनवा सकते हैं? आयरलैंड, भूतपूर्व युगोस्लाविया, मिडिल इस्ट, बुरूण्डी, रूवाण्डा—का नाम एकदम ध्यान में आता है। क्या इनमें हो रहे झगड़ों और दुनिया के बाक़ी झगड़ों का निपटारा कभी किया जा सकेगा, ताकि दुनिया भर में हमेशा के लिए शांति हो सके? क्या दुनिया शांति की तरफ़ बढ़ रही है?
आर्थिक स्थिरता: वर्ष १९९९ तक वित्तीय संघ की आशा रखते हुए, यूरोपीय संघ के देश मुद्रास्फीती और जनता से उधारी का गंभीरता से सामना कर रहे हैं। दूसरी जगहों पर, भ्रष्टाचार ऐसे अनेक अमरीकी और अफ्रीकी देशों के आर्थिक ढाँचे को खोखला बना रहा है, जहाँ मुद्रास्फीती लगभग एक असहनीय बोझ बन गयी है और जहाँ नृजातीय समस्याएँ आज भी लोगों में फूट डाल रही हैं। क्या संसार की आर्थिक स्थिरता एकदम क़रीब है?
बेरोज़गारी: वर्ष १९९७ के राष्ट्रीय चुनाव में ब्रिटॆन के चर्चों ने मिलकर सभी राजनैतिक पार्टियों से आग्रह किया कि वे पूर्ण रोज़गारी को अपने अजेंडा में सबसे पहला दर्जा दें। लेकिन दुनिया का लगभग ३० प्रतिशत मज़दूर वर्ग बिना काम के होते हुए या उसके बेरोज़गार रहते हुए—ख़ासकर युवाओं के लिए—क्या हमेशा के लिए सबके पास रोज़गार आ सकता है?
निराशावादी महसूस करना कितना आसान है! फिर भी एक उजाले की किरण है और हम आपको इस पर विचार करने के लिए आमंत्रित करते हैं कि आशावादी नज़रिया विकसित करना कैसे संभव है।
[पेज 3 पर तसवीर]
फ्रांसीसी क्रांति
[चित्र का श्रेय]
पुस्तक पिक्टोरियल हिस्ट्री ऑफ़ द वर्ल्ड से