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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 4/1 पेज 15-20

परमेश्‍वर की ओर से एक किताब

“कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।”—२ पतरस १:२१.

१, २. (क) आधुनिक जीवन के लिए बाइबल के अर्थपूर्ण होने के बारे में कुछ लोग क्यों सवाल उठाते हैं? (ख) किन तीन सबूतों का इस्तेमाल करके हम दिखा सकते हैं कि बाइबल परमेश्‍वर की ओर से है?

इक्कीसवीं सदी की कगार पर खड़े लोगों के लिए क्या बाइबल अर्थपूर्ण है? कुछ लोग सोचते हैं, नहीं। “कोई भी व्यक्‍ति कॆमिस्ट्री की किताब के १९२४ संस्करण का प्रयोग एक आधुनिक कॆमिस्ट्री कक्षा के लिए करने का पक्ष नहीं लेगा—तब से कॆमिस्ट्री का हमारा ज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है,” बाइबल पुरानी हो चुकी है ऐसा महसूस करने का कारण समझाते हुए डॉ. इलाइ एस. चॆसन ने लिखा। यह तर्क लगता तो सही है। आखिरकार, बाइबल के लिखे जाने के बाद से विज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य और मानव व्यवहार के बारे में मनुष्य ने बहुत कुछ सीखा है। इसलिए कुछ लोग सोचते हैं: ‘ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी प्राचीन किताब में विज्ञान-संबंधी गलतियाँ न हों? ऐसा कैसे हो सकता है कि इसमें आधुनिक जीवन के लिए व्यावहारिक सलाह हो?’

२ बाइबल खुद जवाब देती है। दूसरा पतरस १:२१ में हमें बताया गया है कि बाइबल भविष्यवक्‍ता “पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।” बाइबल इस तरह दिखाती है कि यह परमेश्‍वर की ओर से एक किताब है। लेकिन, हम दूसरों को कैसे क़ायल कर सकते हैं कि ऐसा ही है? आइए तीन सबूत देखें कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है: (१) यह वैज्ञानिक रूप से यथार्थ है, (२) इसमें ऐसे शाश्‍वत सिद्धांत हैं जो आधुनिक जीवन के लिए व्यावहारिक हैं, और (३) इसमें सुस्पष्ट भविष्यवाणियाँ हैं जो पूरी हुई हैं, और इनकी पूर्ति का सबूत ऐतिहासिक घटनाओं से मिलता है।

किताब जो विज्ञान से सहमत है

३. बाइबल को वैज्ञानिक आविष्कारों से कोई ख़तरा क्यों नहीं रहा है?

३ बाइबल विज्ञान की किताब नहीं है। लेकिन हाँ, यह सच्चाई की किताब है, और सच समय की परीक्षा पार कर सकता है। (यूहन्‍ना १७:१७) बाइबल को वैज्ञानिक आविष्कारों से कोई ख़तरा नहीं रहा है। जब यह विज्ञान से जुड़े विषयों पर बात करती है, तब यह ऐसे प्राचीन “वैज्ञानिक” विचारों से बिलकुल मुक्‍त है जो महज़ कहानियाँ निकलीं। असल में, बाइबल में ऐसे कथन हैं जो न केवल वैज्ञानिक रूप से सही थे बल्कि उस समय के स्वीकृत विचारों के सीधे विरोध में थे। उदाहरण के लिए, बाइबल और चिकित्सा विज्ञान के बीच तालमेल पर ध्यान दीजिए।

४, ५. (क) प्राचीन डॉक्टर रोग के बारे में कौन-सी बात पूरी तरह समझ नहीं पाए थे? (ख) मिस्र के वैद्यों के चिकित्सा के तरीक़ों से क्यों मूसा निश्‍चय ही परिचित था?

४ प्राचीन डॉक्टर पूरी तरह समझ नहीं पाए थे कि रोग कैसे फैलते हैं, ना ही वे बीमारी को रोकने में सफ़ाई-प्रबंध का महत्त्व समझ पाए थे। चिकित्सा के अनेक प्राचीन तरीक़े आधुनिक स्तरों के अनुसार गँवारू लगते थे। उपलब्ध सबसे पुराने चिकित्सीय लेखों में से एक है एबर्स्‌ पपीरस। यह लेख मिस्री चिकित्सीय ज्ञान का एक संग्रह है, और यह करीब सा.यु.पू. १५५० के समय का है। इसमें अलग-अलग रोगों, “मगरमच्छ के काटे से लेकर पैर की उँगली के नाख़ून में हुए दर्द” के लिए कुछ ७०० इलाज बताए गए हैं। कुछ इलाजों का तो कोई प्रभाव नहीं होता था, लेकिन कुछ तो बहुत ही खतरनाक थे। किसी घाव के इलाज के लिए, एक नुस्खे में मानव मल और अन्य वस्तुओं से बने एक मिश्रण का लेप लगाने का सुझाव दिया गया था।

५ मिस्र के इलाजों का यह लेख लगभग, बाइबल की पहली किताबों के समय पर लिखा गया था, जिनमें मूसा का नियम शामिल था। मूसा जो सा.यु.पू. १५९३ में पैदा हुआ था, मिस्र में पला-बढ़ा। (निर्गमन २:१-१०) फिरौन के घराने में उसकी परवरिश हुई और मूसा को “मिसरियों की सारी विद्या पढ़ाई गई।” (प्रेरितों ७:२२) वह मिस्र के “वैद्यों” से परिचित था। (उत्पत्ति ५०:१-३) क्या उनके चिकित्सा के बेकार या खतरनाक तरीक़ों का प्रभाव उसके लेखनों पर पड़ा?

६. मूसा की व्यवस्था में दिए गए सफाई-प्रबंध के किस नियम को आज का चिकित्सा विज्ञान उचित समझेगा?

६ इसके विपरीत, मूसा के नियम में सफ़ाई-प्रबंध के बारे में ऐसे नियम थे जिन्हें आज का चिकित्सा विज्ञान उचित समझेगा। उदाहरण के लिए, छावनियों के बारे में एक नियम में माँग की गयी थी कि छावनी से दूर मल को ज़मीन में गाड़ा जाए। (व्यवस्थाविवरण २३:१३) यह बहुत ही विकसित रक्षात्मक कार्य था। इसने उनके पानी के स्रोतों को दूषित होने से बचाने में मदद की और मक्खियों से फैलनेवाले शिजॆल्लोसिस और दस्त की अन्य बीमारियों से सुरक्षा दी जो अब भी विकासशील देशों में करोड़ों जानें लेती हैं।

७. मूसा की व्यवस्था में दिए गए सफाई-प्रबंध के कौन-से नियमों से संक्रामक रोगों के फैलाव को रोकने में मदद मिलती थी?

७ मूसा के नियम में सफ़ाई-प्रबंध के दूसरे नियम थे जिनसे संक्रामक रोगों के फैलाव को रोकने में मदद मिलती थी। अगर किसी व्यक्‍ति को कोई संक्रामक रोग था या होने का संदेह था तो उसे अलग रखा जाता था। (लैव्यव्यवस्था १३:१-५) अपने आप (शायद रोग से) मरनेवाले किसी जानवर के संपर्क में आनेवाले कपड़ों या बर्तनों को दुबारा इस्तेमाल करने से पहले धोया जाना था या फिर नष्ट किया जाना था। (लैव्यव्यवस्था ११:२७, २८, ३२, ३३) कोई भी व्यक्‍ति जो किसी शव को छूता था उसे अशुद्ध समझा जाता था और उसे शुद्धीकरण की प्रक्रिया का पालन करना पड़ता था जिसमें अपने वस्त्र धोना और नहाना शामिल था। अशुद्धता के सात दिनों के दौरान, उसे दूसरों के साथ शारीरिक संपर्क को टालना था।—गिनती १९:१-१३.

८, ९. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि मूसा की व्यवस्था में दी गयी सफ़ाई-प्रबंध की नियम-संहिता अपने समय से बहुत आगे थी?

८ सफ़ाई-प्रबंध की यह नियम-संहिता उस बुद्धि को व्यक्‍त करती है जो अपने समय से बहुत आगे थी। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने रोगों के फैलाव और उनकी रोकथाम के बारे में बहुत कुछ जाना है। उदाहरण के लिए, उन्‍नीसवीं सदी की चिकित्सीय प्रगति के कारण, पूतिरोध (एंटीसेप्सिस्‌) की चिकित्सीय प्रणाली की शुरूआत हुई, जिसमें संक्रमण को घटाने के लिए साफ-सफाई रखी जाती है। इसका परिणाम, संक्रमण और असमय मृत्यु की संख्या में उल्लेखनीय कटौती हुई। सन्‌ १९०० में, अनेक यूरोपीय देशों और अमरीका में जन्म के समय अपेक्षित जीवन ५० से कम था। तब से, न केवल रोग को नियंत्रित करने में चिकित्सीय प्रगति के कारण बल्कि बेहतर सफ़ाई-प्रबंध और वातावरण के कारण भी इसमें एकाएक वृद्धि हुई है।

९ फिर भी, रोग किस तरह फैलता है इस बारे में चिकित्सा विज्ञान के जानने से हज़ारों साल पहले, बाइबल में रोग के विरुद्ध बचाव के रूप में उचित रोगनिरोधी उपाय बताए गए थे। आश्‍चर्य की बात नहीं कि मूसा अपने समय में आम तौर पर इस्राएलियों के बारे में कह सका कि उनकी उम्र ७० या ८० साल है। (भजन ९०:१०) मूसा को सफ़ाई-प्रबंध के बारे में ऐसे नियमों का कैसे पता चला होगा? बाइबल ही बताती है: व्यवस्था की नियम-संहिता “स्वर्गदूतों के द्वारा . . . ठहराई गई।” (गलतियों ३:१९) जी हाँ, बाइबल मानवी बुद्धि की किताब नहीं है; यह परमेश्‍वर की ओर से एक किताब है।

आधुनिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक किताब

१०. हालाँकि बाइबल क़रीब २,००० साल पहले पूरी की गयी थी, उसकी सलाह के बारे में क्या बात सच है?

१० सलाह देनेवाली किताबें जल्द ही पुरानी हो जाती हैं और कुछ समय बाद ही उनमें फेर-बदल होता है या वे फेंक दी जाती हैं। लेकिन बाइबल सचमुच अनोखी है। “तेरी चितौनियां अति विश्‍वासयोग्य हैं,” भजन ९३:५ कहता है। हालाँकि बाइबल करीब २,००० साल पहले पूरी की गयी थी, इसके शब्द अब भी असरदार हैं। और चाहे हमारा रंग कोई भी क्यों न हो या चाहे हम किसी भी देश में क्यों न रहते हों, इनका असर हर जगह एक-सा है। बाइबल की शाश्‍वत, “अति विश्‍वासयोग्य” सलाह के कुछ उदाहरणों पर ध्यान दीजिए।

११. कई दशक पहले, बच्चों को अनुशासन देने के बारे में अनेक माता-पिताओं को क्या मानने के लिए उकसाया गया?

११ कई दशकों पहले अनेक माता-पिताओं ने—बाल प्रशिक्षण पर “नए-नए विचारों” से प्रेरित होकर—सोचा कि “मना करना मना है।” उन्हें डर था कि बच्चों पर प्रतिबंध लगाने से उन्हें दुःख और निराशा होगी। बच्चों के पालन-पोषण पर नेकनीयत सलाहकार इस बात पर बल दे रहे थे कि माता-पिता को अपने बच्चों को केवल नरमी से डाँटना चाहिए। अब ऐसे अनेक विशेषज्ञ “माता-पिता से विनती कर रहे हैं कि थोड़े सख्त हों, और बच्चों पर फिर से नियंत्रण रखें,” द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करता है।

१२. “शिक्षा” अनुवादित यूनानी संज्ञा का क्या अर्थ है और बच्चों को ऐसी शिक्षा की ज़रूरत क्यों है?

१२ लेकिन, बाइबल ने बच्चों के पालन-पोषण पर हमेशा से स्पष्ट, उचित सलाह दी है। यह सलाह देती है: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा [अनुशासन], और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४) “शिक्षा” अनुवादित यूनानी संज्ञा का अर्थ है “पालन-पोषण, प्रशिक्षण, उपदेश।” बाइबल कहती है कि ऐसी शिक्षा [अनुशासन] या उपदेश माता-पिता के प्रेम का सबूत है। (नीतिवचन १३:२४) सुस्पष्ट नैतिक निर्देशनों के साथ बच्चे उन्‍नति करते हैं। और ये निर्देशन सही तथा गलत की अच्छी परख पैदा करने में उन्हें मदद देते हैं। उचित तरीके से दिया गया अनुशासन उन्हें सुरक्षित महसूस कराने में मदद देता है; इससे उन्हें यह संदेश मिलता है कि उनके माता-पिता को उनकी और वे जिस प्रकार के व्यक्‍ति बनने जा रहे हैं, उसकी चिंता है।—नीतिवचन ४:१०-१३ से तुलना कीजिए।

१३. (क) बाइबल अनुशासन के मामले में माता-पिता को किस तरह सावधान करती है? (ख) बाइबल किस प्रकार के अनुशासन की सिफारिश करती है?

१३ लेकिन बाइबल अनुशासन के इस मामले में माता-पिता को सावधान करती है। माता-पिता के अधिकार में कभी दुर्व्यवहार शामिल नहीं होना चाहिए। (नीतिवचन २२:१५) किसी भी बच्चे को कभी क्रूरता से सज़ा नहीं दी जानी चाहिए। बाइबल के अनुसार जीनेवाले परिवार में शारीरिक हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। (भजन ११:५) ना ही भावात्मक हिंसा के लिए, यानी कटु शब्द कहने, हर घड़ी आलोचना करने, और चुभनेवाले ताने मारने के लिए कोई जगह है। इन सब से बच्चा निरुत्साहित हो जाता है। (नीतिवचन १२:१८ से तुलना कीजिए।) बुद्धिमत्ता से बाइबल माता-पिताओं को सावधान करती है: “अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए [या, “न हो कि तुम उन्हें निराश कर दो,” फिलिप्पस्‌]।” (कुलुस्सियों ३:२१) बाइबल में एहतियात बरतने को कहा गया है। व्यवस्थाविवरण ११:१९ में, माता-पिता से आग्रह किया गया है कि अपने बच्चों के मन में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य बिठाने के लिए अनौपचारिक मौकों का फायदा उठाएँ। बच्चों के पालन-पोषण पर ऐसी स्पष्ट, उचित सलाह जितनी बाइबल के समय में अर्थपूर्ण थी उतनी ही आज भी है।

१४, १५. (क) किस तरीके से बाइबल केवल बुद्धिमानी भरी सलाह ही नहीं बल्कि इससे भी ज़्यादा देती है? (ख) बाइबल की कौन-सी शिक्षाएँ हैं जो अलग-अलग जातियों और राष्ट्रों के स्त्री-पुरुषों को एक दूसरे को समान समझकर व्यवहार करने में मदद देती हैं?

१४ बाइबल में केवल बुद्धिमानी भरी सलाह ही नहीं दी गयी। इसका संदेश हृदय को आकर्षित करता है। इब्रानियों ४:१२ कहता है: “क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” बाइबल की प्रेरक शक्‍ति के एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए।

१५ आज जातीय, राष्ट्रीय और नृजातीय बाधाएँ लोगों को अलग करती हैं। संसार भर के युद्धों में निर्दोष मनुष्यों के कत्लेआम में इन बनावटी सीमाओं का हाथ रहा है। दूसरी ओर, बाइबल में ऐसी शिक्षाएँ हैं जो अलग-अलग जातियों और राष्ट्रों के स्त्री-पुरुषों को एक दूसरे को समान समझकर व्यवहार करने में मदद देती हैं। उदाहरण के लिए, प्रेरितों १७:२६ कहता है कि परमेश्‍वर ने “एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां . . . बनाई हैं।” यह दिखाता है कि असल में केवल एक जाति है—मानवजाति! बाइबल आगे हमें ‘परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनने’ का प्रोत्साहन देती है, जिसके बारे में वह कहती है: “[वह] किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (इफिसियों ५:१; प्रेरितों १०:३५) जो व्यक्‍ति सचमुच बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार जीना चाहते हैं, उनके बीच यह ज्ञान एकता लाता है। यह गहराई तक जाकर, मनुष्य के हृदय में काम करता है, जिससे लोगों को अलग करनेवाली मानव-निर्मित बाधाएँ खत्म हो जाती हैं। क्या यह आज की दुनिया में सचमुच कारगर है?

१६. एक अनुभव बताइए जो दिखाता है कि यहोवा के साक्षियों का सचमुच में एक अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा है।

१६ बेशक है! यहोवा के साक्षी अपने अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे के लिए सुप्रसिद्ध हैं, जिसमें ऐसी अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग एक हो जाते हैं जो आम तौर पर एक दूसरे से लड़ते रहते हैं। उदाहरण के लिए, रुवाण्डा में नृजातीय झगड़ों के दौरान हर कबीले के यहोवा के साक्षियों ने दूसरे कबीले के अपने मसीही भाई-बहनों की रक्षा की और ऐसा करते हुए अपनी जान भी जोखिम में डाली। एक मामले में, हूटू साक्षी ने अपनी कलीसिया के छः सदस्यों के एक टूटसी परिवार को अपने घर में छिपाए रखा। दुःख की बात है कि उस टूटसी परिवार को आखिरकार खोजकर मार डाला गया। अब हूटू भाई और उसका परिवार हत्यारों के प्रकोप का सामना कर रहे थे और उन्हें भागकर तंज़ानिया जाना पड़ा। ऐसे ही अनेक उदाहरणों की रिपोर्ट दी गयी थी। यहोवा के साक्षी इस बात को सहजता से स्वीकार करते हैं कि ऐसी एकता, इसलिए संभव है कि वे बाइबल के संदेश की शक्‍ति से प्रेरित होते हैं। घृणा से भरे इस संसार में बाइबल लोगों को एक कर सकती है, यह इसके परमेश्‍वर की ओर से होने का एक शक्‍तिशाली सबूत है।

सच्ची भविष्यवाणी की किताब

१७. बाइबल भविष्यवाणियाँ मनुष्यों द्वारा किए गए पूर्वकथनों से कैसे अलग हैं?

१७ “पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी व्यक्‍तिगत विचारधारा का विषय नहीं है,” २ पतरस १:२० (NHT) कहता है। बाइबल के भविष्यवक्‍ताओं ने संसार में हो रही घटनाओं का विश्‍लेषण करके, और फिर इन घटनाओं की व्यक्‍तिगत समझ के आधार पर भविष्यवाणी नहीं की। ना ही उन्होंने अस्पष्ट पूर्वकथन किए, जिन्हें किसी भी भावी घटना से मेल खाने के लिए बदला जा सकता था। उदाहरण के लिए, आइए एक बाइबल भविष्यवाणी पर ध्यान दें जिसमें असाधारण सुस्पष्टता थी और जिसने उस समय के लोगों ने जो आशा की होगी उसके बिलकुल उलट पूर्वकथन किए।

१८. इसमें कोई आश्‍चर्य की बात क्यों नहीं कि प्राचीन बाबुल के निवासी बहुत सुरक्षित महसूस करते थे, फिर भी यशायाह ने बाबुल के बारे में कौन-सी भविष्यवाणी की?

१८ सामान्य युग पूर्व सातवीं सदी तक, बाबुल बाबुलीय साम्राज्य की अजेय लगनेवाली राजधानी थी। यह नगर फरात नदी पर फैला हुआ था, और नदी के पानी का प्रयोग करके एक चौड़ी, गहरी खंदक बनायी गयी थी और नहरों का एक जाल बिछाया गया था। वह नगर दोहरी दीवारों की एक विशाल व्यवस्था से सुरक्षित था, जिसे अनेक प्रतिरक्षा मीनारों से मज़बूती मिली थी। कोई आश्‍चर्य नहीं कि बाबुल के निवासी बहुत सुरक्षित महसूस करते थे। फिर भी, सा.यु.पू. आठवीं सदी में, इससे पहले कि बाबुल अपने वैभव की ऊँचाई हासिल करता, भविष्यवक्‍ता यशायाह ने भविष्यवाणी की: “बाबुल . . . ऐसा हो जाएगा जैसे सदोम और अमोरा, जब परमेश्‍वर ने उन्हें उलट दिया था। वह फिर कभी न बसेगा और युग युग उस में कोई बास न करेगा; अरबी लोग भी उस में डेरा खड़ा न करेंगे, और न चरवाहे उस में अपने पशु बैठाएंगे।” (यशायाह १३:१९, २०) ध्यान दीजिए कि भविष्यवाणी ने न सिर्फ बाबुल के विनाश के बारे में बताया बल्कि यह भी कि वह सदा के लिए उजड़ जाएगा। क्या ही साहसपूर्ण पूर्वकथन! क्या ऐसा हो सकता था कि यशायाह ने वीरान बाबुल को देखने के बाद इन शब्दों को लिखा? इतिहास जवाब देता है कि नहीं!

१९. यशायाह की भविष्यवाणी की पूर्ति, सा.यु.पू. ५३९ के अक्‍तूबर ५ को पूरी तरह क्यों नहीं हुई?

१९ सामान्य युग पूर्व ५३९ के अक्‍तूबर ५ की रात को, कुस्रू महान के नेतृत्व में मादी-फारस की सेना के हाथों बाबुल का पतन हुआ। लेकिन, यशायाह की भविष्यवाणी की पूर्ति अभी पूरी नहीं हुई थी। कुस्रू के अधिकार में आने के बाद, बाबुल की बस्ती—हालाँकि छोटी—सदियों तक बसी रही। सामान्य युग पूर्व दूसरी सदी में, लगभग उसी समय जब यशायाह के मृत सागर खर्रे की नक़ल उतारी जा रही थी, पारथी-वासियों ने बाबुल पर कब्ज़ा किया। उस समय बाबुल को एक खज़ाना समझा जाता था, जिसके लिए आसपास के राष्ट्रों में लड़ाइयाँ होती थीं। यहूदी इतिहासकार जोसीफ़स ने रिपोर्ट किया कि वहाँ सा.यु.पू. पहली सदी में “बहुतेरे” यहूदी रहते थे। केम्ब्रिज एन्शियन्ट हिस्ट्री के अनुसार, पालमाइरा के व्यापारियों ने सा.यु. २४ में बाबुल में एक फलती-फूलती व्यापार कॉलोनी बसायी। सो, सा.यु. पहली सदी के समय तक, बाबुल अब भी पूरी तरह वीरान नहीं हुआ था; परंतु यशायाह की किताब उससे बहुत पहले पूरी की जा चुकी थी।—१ पतरस ५:१३.

२०. कौन-सा सबूत दिखाता है कि बाबुल आखिरकार “खण्डहरों का ढेर” बन गया?

२० यशायाह बाबुल को उजड़ता हुआ देखने के लिए जीवित नहीं रहा। लेकिन भविष्यवाणी के अनुसार, बाबुल आखिरकार “खण्डहरों का ढेर” बन गया। (यिर्मयाह ५१:३७, NHT) (सा.यु. चौथी सदी में जन्मे) इब्रानी विद्वान जेरोम के अनुसार, उसके दिन तक बाबुल शिकारगाह बन चुका था जिसमें “सब प्रकार के पशु” घूमते थे। और बाबुल आज तक वीरान पड़ा है। एक पर्यटन स्थल के रूप में बाबुल की कोई पुनःस्थापना शायद पर्यटकों को आकर्षित करे, लेकिन बाबुल के ‘बेटे-पोते’ सदा के लिए जा चुके हैं, जैसे यशायाह ने पूर्वबताया।—यशायाह १४:२२.

२१. वफ़ादार भविष्यवक्‍ता अचूक यथार्थता से भविष्य के बारे में क्यों पूर्वबता सकते थे?

२१ भविष्यवक्‍ता यशायाह ने जानकारी पर आधारित अटकलें नहीं लगायीं। ना ही उसने इतिहास फिर-से लिखा ताकि वह भविष्यवाणी लगे। यशायाह सच्चा भविष्यवक्‍ता था। वैसे ही बाइबल के अन्य सभी वफ़ादार भविष्यवक्‍ता भी सच्चे थे। ये व्यक्‍ति ऐसा काम कैसे कर सके जो कोई और मनुष्य नहीं कर सकता था—अचूक यथार्थता से भविष्य को पूर्वबतलाना? जवाब साफ है। भविष्यवाणियों का स्रोत भविष्यवाणी का परमेश्‍वर, यहोवा था जो “अन्त की बात आदि से . . . बताता आया” है।—यशायाह ४६:१०.

२२. सच्चे मन के लोगों को परमेश्‍वर के वचन की ख़ुद जाँच करने का आग्रह करने के लिए हमें क्यों अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए?

२२ तो क्या बाइबल जाँचे जाने के योग्य है? हम जानते हैं कि यह है! लेकिन अनेक लोग इस बात के कायल नहीं हैं। उन्होंने बाइबल के बारे में एक राय कायम कर ली है, हालाँकि उन्होंने शायद इसे कभी पढ़ा भी न हो। पिछले लेख की शुरूआत में जिस प्रोफ़ॆसर का ज़िक्र किया गया था उसे याद कीजिए। वह बाइबल अध्ययन करने के लिए सहमत हुआ, और ध्यानपूर्वक बाइबल की जाँच करने के बाद, वह इस नतीजे पर पहुँचा कि यह परमेश्‍वर की ओर से एक किताब है। बाद में उसने यहोवा के एक साक्षी के रूप में बपतिस्मा लिया, और आज वह एक प्राचीन की हैसियत से सेवा कर रहा है! सच्चे मन के लोगों को परमेश्‍वर के वचन की ख़ुद जाँच करने और उसके बाद राय कायम करने का आग्रह करने के लिए आइए हम अपनी पूरी कोशिश करें। हमें विश्‍वास है कि अगर वे सच्चे मन से ख़ुद इसकी जाँच करें, तो वे यह महसूस करेंगे कि यह अनोखी किताब, बाइबल, सचमुच सब लोगों के लिए एक किताब है!

क्या आप समझा सकते हैं?

◻ यह दिखाने के लिए कि बाइबल मनुष्य की ओर से नहीं है आप मूसा की व्यवस्था को कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?

◻ बाइबल के कौन-से शाश्‍वत सिद्धांत आधुनिक जीवन के लिए व्यावहारिक हैं?

◻ यशायाह १३:१९, २० की भविष्यवाणी को क्यों घटना घटने के बाद नहीं लिखा जा सकता था?

◻ सच्चे मन के लोगों को क्या करने का हमें प्रोत्साहन देना चाहिए, और क्यों?

[पेज 19 पर बक्स]

अप्रमाण्य के बारे में क्या?

बाइबल में ऐसे अनेक कथन हैं जिनके लिए अलग भौतिक सबूत नहीं है। उदाहरण के लिए, आत्मिक व्यक्‍तियों के रहने के एक अदृश्‍य क्षेत्र के बारे में बाइबल के उल्लेख का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं दिया जा सकता—ना ही उसे असत्य प्रमाणित किया जा सकता है। क्या ज़रूरी है कि अप्रमाणित बातों के ये उदाहरण बाइबल को विज्ञान के विरुद्ध कर देते हैं?

यह सवाल एक ग्रहीय-भूवैज्ञानिक के सामने था जिसने कुछ साल पहले यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। “मुझे यह मानना पड़ेगा कि पहले-पहल बाइबल को स्वीकार करना मेरे लिए मुश्‍किल था क्योंकि मैं बाइबल के कुछ कथन वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं कर सकता था,” वह याद करता है। इस निष्कपट व्यक्‍ति ने बाइबल का अध्ययन करना जारी रखा और आखिरकार कायल हुआ कि उपलब्ध सबूत दिखाता है कि यह परमेश्‍वर का वचन है। “इस बात से बाइबल के हर तथ्य को अलग-अलग साबित करने की मेरी लालसा कम हुई,” वह बताता है। “वैज्ञानिक रुझान रखनेवाले व्यक्‍ति को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बाइबल को जाँचने की इच्छा होनी चाहिए, नहीं तो वह कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करेगा। ऐसी आशा नहीं की जा सकती कि विज्ञान बाइबल के हर कथन का प्रमाण देगा। लेकिन सिर्फ इसलिए कि कुछ कथन अप्रमाण्य हैं, वे असत्य नहीं हो जाते। महत्त्व की बात यह है कि जहाँ कहीं प्रमाण मिल सकता है वहाँ बाइबल की यथार्थता का सबूत मौजूद है।”

[पेज 17 पर तसवीर]

मूसा ने सफाई-प्रबंध के ऐसे नियम लिखे जो उनके समय से बहुत आगे थे

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