आपके विश्वास का गुण—अभी परखा जाता है
“हे मेरे भाइयो, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।”—याकूब १:२, ३.
१. मसीहियों को अपने विश्वास की परीक्षाओं की अपेक्षा क्यों करनी चाहिए?
सच्चे मसीहियों को सताहट सहने का ना तो कोई शौक है और ना ही उन्हें दर्द और अपमान सहने में कोई मज़ा आता है। फिर भी वे यीशु के सौतेले भाई याकूब के उपरोक्त शब्दों को मन में रखते हैं। मसीह ने अपने चेलों को साफ बताया था कि वे परमेश्वर के वचन पर चलने के कारण सताहट और दूसरी तरह की कठिनाइयाँ सहने की अपेक्षा कर सकते हैं। (मत्ती १०:३४; २४:९-१३; यूहन्ना १६:३३) फिर भी, इन परीक्षाओं से आनंद उत्पन्न हो सकता है। वह कैसे?
२. (क) हमारे विश्वास की परीक्षाएँ आनंद में कैसे बदल सकती हैं? (ख) हमारे मामले में धीरज अपना काम कैसे पूरा कर सकता है?
२ संकट में या हमारे विश्वास की परीक्षा के समय में आनंद पाने का एक मुख्य कारण यह है कि इससे अच्छा फल पैदा हो सकता है। जैसा याकूब कहता है कि परीक्षाओं या कठिनाइयों के समय सहन करने से “धीरज उत्पन्न होता है।” हम इस मूल्यवान मसीही गुण को विकसित करने से लाभ उठा सकते हैं। याकूब ने लिखा: “पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।” (याकूब १:४) धीरज को कुछ करना है, एक “काम।” इसका काम हमें हर क्षेत्र में मज़बूत करना है, एक मसीही के रूप में हमें परिपक्व बनने में मदद करना है। इसलिए, परीक्षाओं को किसी अशास्त्रीय तरीके से समाप्त करने के बजाय पूरा होने देने से हमारा विश्वास परखा जाता और शुद्ध होता है। अगर हालात से निपटने या संगी मनुष्यों से बर्ताव करने में हमारे अंदर संयम, करुणा, कृपा या प्रेम की कमी हो रही है तो धीरज हमारी ये कमियाँ पूरी कर सकता है। जी हाँ, सिलसिला ऐसे चलता है: परीक्षाएँ धीरज उत्पन्न करती हैं; धीरज मसीही गुण बढ़ाता है; ये गुण आनंद का कारण हैं।—१ पतरस ४:१४; २ पतरस १:५-८.
३. हमें संकटों और परीक्षाओं से डरकर पीछे क्यों नहीं हटना चाहिए?
३ प्रेरित पतरस ने भी यह बात विशिष्ट की कि क्यों हमें विश्वास की परीक्षाओं से न तो डरना चाहिए न ही पीछे हटना चाहिए। उसने लिखा: “इस कारण तुम मगन होते हो, यद्यपि अवश्य है कि अब कुछ दिन तक नाना प्रकार की परीक्षाओं के कारण उदास हो। और यह इसलिये है कि तुम्हारा परखा हुआ विश्वास, जो आग से ताए हुए नाशमान सोने से भी कहीं अधिक बहुमूल्य है, यीशु मसीह के प्रगट होने पर प्रशंसा, और महिमा, और आदर का कारण ठहरे।” (१ पतरस १:६, ७) ये शब्द आज खासकर प्रोत्साहक हैं क्योंकि “भारी क्लेश”—प्रशंसा, महिमा, आदर और छुटकारे का समय—जितना शायद कुछ लोग सोचें उससे कहीं ज़्यादा निकट है और जब हमने विश्वास किया था तब से और निकट आ पहुँचा है।—मत्ती २४:२१; रोमियों १३:११, १२.
४. एक भाई ने उन परीक्षाओं के बारे में कैसा महसूस किया जिसे उसने और अन्य अभिषिक्त मसीहियों ने सहा था?
४ पिछले लेख में, हमने उन परीक्षाओं पर गौर किया था जिन्हें अभिषिक्त शेषवर्ग ने १९१४ से सहा था। क्या ये आनंद का कारण थीं? ए. एच. मैकमिलन ने, पिछली बातों को देखते हुए यह दृष्टिकोण पेश किया: “मैंने संगठन पर अनेक कठिन परीक्षाएँ आती देखीं और उसके सदस्यों के विश्वास को परखा जाते देखा। परमेश्वर की आत्मा की मदद से यह संगठन बना रहा और समृद्ध होता गया। किसी नये विचार को लेकर परेशान होने के बजाय, मैंने धीरज से यहोवा की बाट जोहने में ही बुद्धिमानी समझी कि वही शास्त्रीय विषयों पर हमारी समझ को ठीक करे। . . . समय-समय पर हमें अपने विचारों में चाहे जो भी बदलाव करने पड़ें, यह छुड़ौती के कृपापूर्ण प्रबंध और अनंत जीवन की परमेश्वर की प्रतिज्ञा को नहीं बदलेगा। सो अधूरी आशाओं या विचारों में परिवर्तन के कारण हमें अपने विश्वास को कमज़ोर होने देने की कोई ज़रूरत नहीं।”—प्रहरीदुर्ग, (अंग्रेज़ी) अगस्त १५, १९६६, पृष्ठ ५०४.
५. (क) शेषवर्ग के परीक्षाओं से गुज़रने से क्या फायदे हुए? (ख) परखे जाने के मामले में आज हमें दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए?
५ वे अभिषिक्त मसीही जो १९१४-१९ के परीक्षा के समय से बच निकले थे, उन्हें संसार और बाबुलीय धार्मिक रीतियों के शक्तिशाली प्रभाव से आज़ाद किया गया था। शेषवर्ग शुद्ध और निखारे गए लोगों के रूप में आगे बढ़ा, और स्वेच्छा से परमेश्वर को स्तुति के बलिदान इस विश्वास के साथ चढ़ाए कि वह लोगों के तौर पर उसे स्वीकार्य हैं। (यशायाह ५२:११; २ कुरिन्थियों ६:१४-१८) न्याय परमेश्वर के घर से शुरू हुआ था लेकिन इसे एक ही निश्चित अवधि में पूरा नहीं होना था। परमेश्वर के लोगों की परीक्षा और छटनी का काम जारी है। जो लोग “बड़ी भीड़” के रूप में “बड़े क्लेश” से बचने की आशा रखते हैं उनके भी विश्वास की परीक्षा हो रही है। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) दूसरे तरीकों के अलावा इस परीक्षा में वे तरीके भी शामिल हैं जिनका अभिषिक्त शेषवर्ग के लोगों ने सामना किया है।
आपकी परीक्षा शायद कैसे हो?
६. एक प्रकार की कठिन परीक्षा कौन-सी थी जिसे अनेक लोगों ने सहा?
६ अनेक मसीहियों ने प्रत्यक्ष रूप में आनेवाली आक्रमण रूपी परीक्षाओं की चुनौती का सामना करने के बारे में सोचा है। वे इस रिपोर्ट को याद करते हैं: “[यहूदी अगुवों ने] प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना। वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे।” (प्रेरितों ५:४०, ४१) और परमेश्वर के लोगों का आधुनिक इतिहास, खासकर विश्वयुद्धों के समय साफ ज़ाहिर करता है कि अनेक यहोवा के साक्षियों ने सतानेवालों के हाथों से, सचमुच मार खाई और उससे भी बुरा व्यवहार सहा।
७. विश्वास दिखाने के मामले में आज के मसीही किस हद तक गए हैं?
७ मसीहियों को सताए जाने के बारे में, संसार ने अभिषिक्त शेषवर्ग और ‘अन्य भेड़ों’ के साथ एक समान बर्ताव किया है। (यूहन्ना १०:१६, NW) सालों के दौरान, परमेश्वर के प्रति प्रेम और उस पर विश्वास के कारण कैदखानों में डालने यहाँ तक कि मौत के घाट उतारने के द्वारा दोनों ही समूहों के लोगों की बुरी तरह परीक्षा ली गई है। दोनों ही समूहों को परमेश्वर की आत्मा की ज़रूरत पड़ी चाहे उनकी आशा जो भी रही थी। (प्रहरीदुर्ग, जून १५, १९९६, पृष्ठ ३१ से तुलना कीजिए।) १९३० और १९४० के दशकों के दौरान नात्ज़ी जर्मनी में अनेक यहोवा के सेवकों ने, जिनमें बच्चे भी शामिल थे, असाधारण विश्वास दिखाया और बहुतों की परीक्षाएँ सारी हदें पार कर गयीं। अभी हाल के समयों में, यहोवा के लोगों ने ऐसे देशों में सताहट की परीक्षाएँ सही हैं जैसे बुरुण्डी, एरिट्रिया, इथियोपिया, मलावी, मोज़म्बीक, रुवाण्डा, सिंगापुर और ज़ाएर। और इस तरह की परीक्षाएँ जारी हैं।
८. अफ्रीका के एक भाई के कथन यह कैसे दिखाते हैं कि हमारे विश्वास के परखे जाने में मार खाने जैसी सताहट को झेलने से ज़्यादा शामिल है?
८ लेकिन जैसा पहले बताया गया है, हमारे विश्वास की और भी छलपूर्ण तरीकों से परीक्षा होती है। कुछ परीक्षाएँ एकदम सीधे नहीं आतीं और उन्हें आसानी से पहचानना भी मुश्किल होता है। ज़रा सोचिए कि नीचे बताई गईं परीक्षाओं में आप कैसा रुझान दिखाते। अंगोला में एक भाई के दस बच्चे थे और वह एक ऐसी कलीसिया में था जिसका कुछ वक्त के लिए ज़िम्मेदार भाइयों से संपर्क टूट गया था। बाद में अन्य लोगों का इस कलीसिया में जाना संभव हुआ। उससे पूछा गया कि वह अपने परिवार का पेट कैसे भर सका। जवाब देना उसके लिए आसान नहीं था, और उसने बस इतना कहा कि हालात मुश्किल थे। अपने बच्चों को सिर्फ एक वक्त का खाना खिला पाना भी क्या उसके लिए संभव था? उसने जवाब दिया: “मुश्किल था। जो कुछ रूखा-सूखा था हमने बस उसी से गुज़ारा करना सीखा।” उसके बाद पूरे यकीन के साथ उसने कहा: “लेकिन क्या इन आखिरी दिनों में हम इसी बात की उम्मीद नहीं करते?” इस दुनिया में ऐसा विश्वास रखना अनोखा है लेकिन निष्ठावान मसीहियों के बीच यह असाधारण नहीं, जो राज्य प्रतिज्ञाएँ पूरी होने पर पक्का विश्वास रखते हैं।
९. पहला कुरिन्थियों ११:३ के संबंध में हमारी परीक्षा कैसे की जा रही है?
९ ईश्वरशासित तौर-तरीकों के संबंध में भी बड़ी भीड़ की परीक्षा हुई है। विश्वव्याप्त मसीही कलीसिया ईश्वरीय सिद्धांतों और ईश्वरशासित स्तरों के अनुसार चलती है। इसमें सबसे पहले यीशु को लीडर मानना शामिल है, जिसे कलीसिया का सिर नियुक्त किया गया है। (१ कुरिन्थियों ११:३) एकता से यहोवा की इच्छा पूरी करने से संबंधित ईश्वरशासित नियुक्तियों और फैसलों में अपना पूरा विश्वास दिखाने के द्वारा यीशु के और उसके पिता के प्रति हमारी अधीनता प्रकट होती है। इसके अलावा हर स्थानीय कलीसिया में अगुवाई करने के लिए पुरुष नियुक्त किए गए हैं। ये अपरिपूर्ण इंसान हैं जिनके खोट हमें साफ नज़र आ सकते हैं; फिर भी ऐसे ओवरसियरों का आदर करने और उनके अधीन रहने की हमसे माँग की गई है। (इब्रानियों १३:७, १७) क्या आपको कभी-कभी ऐसा करने में मुश्किल होती है? क्या यह आपके लिए वाकई एक परीक्षा है? अगर ऐसा है, तो क्या आप अपने विश्वास की इस परीक्षा से फायदा उठा रहे हैं?
१०. क्षेत्र सेवा के संबंध में हम कौन-सी परीक्षा का सामना करते हैं?
१० नियमित रूप से क्षेत्र सेवा में शामिल होने के विशेषाधिकार और माँग के संबंध में भी हमारी परीक्षा होती है। इस परीक्षा में सफल होने के लिए, हमें यह एहसास होना चाहिए कि सेवकाई में पूरा भाग लेने में सिर्फ कम-से-कम या नाम के लिए प्रचार करने से ज़्यादा शामिल है। गरीब विधवा की सराहना करने के यीशु के शब्दों को याद कीजिए जिसने अपना सबकुछ दे दिया था। (मरकुस १२:४१-४४) हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं भी अपनी क्षेत्र सेवकाई में इसी तरह अपना सबकुछ दे रहा हूँ?’ हम सभी को हर समय यहोवा के साक्षी रहना है, हर मौके पर अपना उजियाला चमकाने के लिए तैयार रहना है।—मत्ती ५:१६.
११. बाइबल की समझ में फेर-बदल और चालचलन के बारे में सलाह कैसे परीक्षा बन सकती है?
११ एक और परीक्षा जिसका हम सामना कर सकते हैं, वह बाइबल सच्चाइयों के बारे में बढ़ती रोशनी और विश्वासयोग्य दास वर्ग द्वारा प्रदान की गई सलाह के लिए हम कितनी कदर दिखाते हैं इसके बारे में है। (मत्ती २४:४५) कई बार इसमें व्यक्तिगत चालचलन में सुधार करने की ज़रूरत पड़ती है, जैसा तब हुआ जब तंबाकू सेवन करनेवालों के बारे में साफ ज़ाहिर हुआ कि अगर वे कलीसिया में बने रहना चाहते हैं तो उन्हें तंबाकू छोड़ना होगा।a (२ कुरिन्थियों ७:१) या संगीत की हमारी पसंद अथवा मनोरंजन के दूसरे तरीकों के बारे में हमारे संयम बरतने की ज़रूरत को स्वीकार करने की परीक्षा हो सकती है।b क्या हम सलाह की बुद्धिमानी पर शक करेंगे? या क्या हम परमेश्वर की आत्मा को हमारे सोच-विचार बदलने देंगे और मसीही व्यक्तित्व धारण करने में हमारी मदद करने देंगे?—इफिसियों ४:२०-२४; ५:३-५.
१२. एक व्यक्ति के बपतिस्मा लेने के बाद विश्वास को मज़बूत बनाने के लिए क्या ज़रूरी है?
१२ दशकों से बड़ी भीड़ की संख्या बढ़ती जा रही है और अपने बपतिस्मे के बाद वे यहोवा के साथ अपने रिश्ते को लगातार मज़बूत बनाते जा रहे हैं। इसमें किसी मसीही सम्मेलन में हाज़िर होने, राज्यगृह में कुछ सभाओं के लिए जाने, या कभी-कभी क्षेत्र सेवकाई में भाग लेने से ज़्यादा शामिल है। समझने के लिए: एक इंसान बड़े बाबुल यानी झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य से शारीरिक रूप से बाहर हो सकता है, लेकिन क्या उसने सचमुच उसे पीछे छोड़ दिया है? क्या अभी-भी वह उन चीज़ों से लिपटा हुआ है जो बड़े बाबुल की आत्मा को प्रदर्शित करती हैं—ऐसी आत्मा जो परमेश्वर के धार्मिक स्तरों का ठट्ठा उड़ाती है? क्या वह नैतिकता और वैवाहिक वफादारी को हलकी बात समझता है? क्या वह आध्यात्मिक लाभ से ज़्यादा ज़ोर व्यक्तिगत और भौतिक लाभ पर देता है? जी हाँ, क्या वह संसार से निष्कलंक रहा है?—याकूब १:२७.
परखे हुए विश्वास के फायदे
१३, १४. सच्ची उपासना का रास्ता अपनाने के बाद कुछ लोगों ने क्या किया?
१३ अगर हम सचमुच बड़े बाबुल से निकल आए हैं और संसार से भी निकल आए हैं, तो आइए हम पीछे मुड़कर उन्हें न देखें। लूका ९:६२ में पाए गए सिद्धांत के मुताबिक हममें से किसी के भी पीछे देखने का मतलब हो सकता है परमेश्वर के राज्य की प्रजा बनने से हाथ धो बैठना। यीशु ने कहा: “जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।”
१४ लेकिन कुछ लोग जो पहले मसीही बने थे उन्होंने तब से इस रीति-व्यवस्था के अनुसार खुद को ढलने दिया है। उन्होंने इस संसार की आत्मा का विरोध नहीं किया है। (२ पतरस २:२०-२२) सांसारिक विकर्षणों ने उनकी दिलचस्पी और समय पर कब्ज़ा कर लिया है, और इस तरह उनकी उन्नति में बाधा डाली है। अपने मन और हृदय को परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता पर केंद्रित करने, इन्हें अपने जीवन में पहला दर्जा देने की बजाय वे भटककर भौतिक लक्ष्यों के पीछे भागने लगे हैं। जब तक वे अपने कमज़ोर विश्वास और गुनगुनी हालत को मान नहीं लेते और ईश्वरीय सलाह पाने के ज़रिए बदलाव नहीं करते, यहोवा और उसके संगठन से उनका कीमती रिश्ता टूटने का खतरा बना रहता है।—प्रकाशितवाक्य ३:१५-१९.
१५. परमेश्वर द्वारा स्वीकारयोग्य बने रहने में किस बात की ज़रूरत है?
१५ हमारा स्वीकृत पाया जाना और तेज़ी से चले आ रहे बड़े क्लेश से बचना हमारे शुद्ध रहने और अपने वस्त्रों को ‘मेम्ने के लोहू में धोने’ पर निर्भर करता है। (प्रकाशितवाक्य ७:९-१४; १ कुरिन्थियों ६:११) अगर हम परमेश्वर के सामने एक शुद्ध, धार्मिक स्थिति कायम नहीं रखते तो हमारी पवित्र सेवा स्वीकार नहीं की जाएगी। निश्चित ही हममें से हरेक को यह एहसास होना चाहिए कि विश्वास का परखा हुआ गुण ही हमें धीरज धरने और परमेश्वर की नाराज़गी से बचे रहने में हमारी मदद करेगा।
१६. झूठ किन तरीकों से हमारे विश्वास की परीक्षा ले सकता है?
१६ कभी-कभी, समाचार-माध्यम और अधिकारी भी परमेश्वर के लोगों पर झूठे आरोप लगाते हैं, हमारे मसीही विश्वासों और जीवन शैली का झूठा रूप प्रस्तुत करते हैं। हमें इससे चकित नहीं होना चाहिए, क्योंकि यीशु स्पष्ट रूप से दिखाता है कि ‘संसार हम से बैर करेगा क्योंकि हम संसार के नहीं।’ (यूहन्ना १७:१४) जिनको शैतान ने अंधा कर रखा है क्या हम उनके धमकाने में आ जाएँगे और निराश हो जाएँगे और सुसमाचार को लज्जा की बात समझेंगे? क्या हम सत्य के बारे में झूठी बातों के कारण अपनी नियमित सभा उपस्थिति और अपनी प्रचार गतिविधि को प्रभावित होने देंगे? या क्या हम यहोवा और उसके राज्य के बारे में सत्य की घोषणा करते रहने के लिए स्थिर और साहसी और पहले से भी अधिक दृढ़ होंगे?
१७. लगातार विश्वास दिखाते रहने के लिए क्या आश्वासन हमें प्रोत्साहन दे सकता है?
१७ पूर्ण हो चुकी बाइबल भविष्यवाणियों के मुताबिक हम अंतिम दिनों के आखिरी भाग में जी रहे हैं। धार्मिकता के नये संसार के लिए हमारी बाइबल-आधारित अपेक्षाएँ निश्चित ही एक आनंदपूर्ण वास्तविकता बनेंगी। उस दिन के आने तक, ऐसा हो कि हम सभी परमेश्वर के वचन में अडिग विश्वास रखें और संसार भर में राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने में धीमे न पड़ने के द्वारा अपना विश्वास साबित करें। हर हफ्ते बपतिस्मा लेनेवाले हज़ारों नए चेलों के बारे में सोचिए। क्या यह हमारे लिए मूल्यांकन दिखाने का पर्याप्त कारण नहीं कि अपने न्याय के कार्यान्वयन में यहोवा का धीरज अनेक लोगों के उद्धार का कारण हो सकता है? क्या हम आनंदित नहीं कि यहोवा ने इस जीवन-रक्षक राज्य-प्रचार गतिविधि को जारी रहने दिया है? और क्या हम प्रसन्न नहीं कि लाखों लोगों ने सत्य को स्वीकार किया है और अपना विश्वास प्रदर्शित कर रहे हैं?
१८. यहोवा की सेवा करने के बारे में आपका क्या संकल्प है?
१८ हमारे विश्वास की वर्तमान परीक्षा कब तक चलेगी हम नहीं कह सकते। लेकिन इतना निश्चित है: वर्तमान दुष्ट आकाश और पृथ्वी का लेखा लेने के लिए यहोवा का एक नियत दिन है। इस बीच, आइए उस परखे हुए विश्वास के उत्कृष्ट गुण की नकल करने का दृढ़संकल्प करें जो हमारे विश्वास के सिद्ध करनेवाले, यीशु ने दिखाया। और आइए पृथ्वी पर वृद्ध होते अभिषिक्त शेषजनों और अन्य व्यक्तियों के उदाहरण का अनुकरण करें जो हमारे बीच साहसपूर्वक सेवा कर रहे हैं।
१९. आपके अनुसार कौन-सा गुण निश्चय ही इस संसार पर विजय प्राप्त करेगा?
१९ आकाश में उड़ रहे स्वर्गदूत को सहयोग देते हुए, हमारा संकल्प होना चाहिए कि धीमा पड़े बिना हर जाति, कुल, भाषा और लोगों को सनातन सुसमाचार सुनाएँ। उन्हें स्वर्गदूतीय घोषणा सुनने दें: “परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है।” (प्रकाशितवाक्य १४:६, ७) जब वह ईश्वरीय न्याय चुकाया जाएगा, तब हमारे विश्वास के परखे हुए गुण के संबंध में क्या परिणाम होगा? क्या यह एक शानदार विजय नहीं होगी—वर्तमान रीति-व्यवस्था से बचकर परमेश्वर के धार्मिक नए संसार में पहुँचना? अपने विश्वास की परीक्षाओं को सहने के द्वारा, हम प्रेरित यूहन्ना की तरह कह सकेंगे: “वह विजय जिस से संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है।”—१ यूहन्ना ५:४.
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) जून १, १९७३, पृष्ठ ३३६-४३, और जुलाई १, १९७३, पृष्ठ ४०९-११ देखिए।
b प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) जुलाई १५, १९८३, पृष्ठ २७-३१ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ यह कैसे हो सकता है कि हमारे विश्वास की परीक्षाएँ आनंद की बात हो?
◻ हमारी विश्वास की कुछ ऐसी कौन-सी परीक्षाएँ हो सकती हैं जिन्हें आसानी से नहीं पहचाना जा सकता?
◻ अपने विश्वास की परीक्षाओं का सफलतापूर्वक सामना करने के द्वारा हम फायदा कैसे उठा सकते हैं?
[पेज 17 पर तसवीरें]
ए. एच. मैकमिलन (सामने बाएँ) उस समय जब उन्हें और वॉच टावर सोसाइटी के अन्य अधिकारियों को अनुचित ही कैद किया गया
डिटरॉइट, मिशीगन, १९२८ के अधिवेशन में वे एक प्रतिनिधि थे
भाई मैकमिलन अपने आखिरी सालों में भी विश्वास प्रदर्शित करते रहे
[पेज 18 पर तसवीरें]
इस परिवार की तरह, अफ्रीका में अनेक मसीहियों ने अपने विश्वास के परखे हुए गुण को प्रदर्शित किया है