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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 5/15 पेज 24-27

आप आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं

वास्तविक मूल्य पहचानना मुश्‍किल हो सकता है। हीरों के साथ ऐसा ही होता है। हालाँकि एक परिष्कृत हीरा चमकता है, एक अपरिष्कृत हीरे की चमक-दमक महज़ फीकी होती है। फिर भी, इस अपरिष्कृत हीरे का एक अनमोल मणि होने की पूरी संभावना है।

मसीही भी कई तरीकों से अपरिष्कृत हीरों के समान होते हैं। हालाँकि हम परिपूर्णता से अब भी कोसों दूर हैं, हमारे अंदर एक ऐसी खूबी है जिसे यहोवा मूल्यवान समझता है। हीरों की तरह, हम सब में अपने-अपने विशिष्ट गुण हैं। और यदि यह हमारी दिली तमन्‍ना है तो हममें से हरेक व्यक्‍ति और भी आगे आध्यात्मिक प्रगति कर सकता है। हमारी शख्सियत को तराशा जा सकता है, ताकि यह यहोवा की महिमा के लिए और भी तेज़ चमके।—१ कुरिन्थियों १०:३१.

काट-छाँट करने व तराशे जाने के बाद, हीरे को एक ऐसे जड़ाव में रखा जाता है जिससे उसके परावर्ती गुण में चार चाँद लग जाते हैं। उसी तरह, यहोवा हमें भिन्‍न-भिन्‍न जड़ाव या कार्य-नियुक्‍तियों में प्रयोग कर सकता है यदि हम ‘नये मनुष्यत्व को पहिन लेते हैं, जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।’—इफिसियों ४:२०-२४.

ऐसी आध्यात्मिक प्रगति अपने आप ही नहीं हो जाती, ठीक उसी तरह जैसे एक हीरा अपने स्वाभाविक रूप में मणि की तरह बमुश्‍किल ही चमकता है। हमें अपनी किसी पुरानी कमज़ोरी से पीछा छुड़ाने, ज़िम्मेदारी लेने के प्रति अपनी मनोवृत्ति को ठीक करने, या फिर एक-ही आध्यात्मिक ढर्रे से बाहर निकलने के लिए जी-तोड़ कोशिश करने की ज़रूरत हो सकती है। लेकिन यदि हम सचमुच चाहते हैं, तो हम प्रगति कर सकते हैं क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर हमें “असीम सामर्थ” दे सकता है।—२ कुरिन्थियों ४:७; फिलिप्पियों ४:१३.

यहोवा अपने सेवकों को शक्‍ति देता है

हीरों को काटने के लिए आत्मविश्‍वास की ज़रूरत होती है जो सही-सही जानकारी की वज़ह से मिलता है, क्योंकि अपरिष्कृत हीरे का अगर कोई भी भाग काट दिया जाता है तो वह प्रायः बेकार हो जाता है। एक महँगे पदार्थ को—कभी-कभी तो अपरिष्कृत रत्न का ५० प्रतिशत तक—इच्छुक आकार देने के लिए काट कर हटा देना पड़ता है। हमें भी यथार्थ ज्ञान से मिले विश्‍वास की ज़रूरत है ताकि हम अपनी शख्सियत को आकार दे सकें और आध्यात्मिक रूप से प्रगति कर सकें। खासकर हमें इस बात का विश्‍वास होना चाहिए कि यहोवा हमें शक्‍ति प्रदान करेगा।

लेकिन हम शायद नाकाबिल महसूस करें, या यह सोचें कि हम अब और नहीं कर सकते। अतीत में परमेश्‍वर के वफादार सेवकों ने कभी-कभी ऐसा ही महसूस किया था। (निर्गमन ३:११, १२; १ राजा १९:१-४) जब परमेश्‍वर ने यिर्मयाह को “जातियों का भविष्यद्वक्‍ता” होने के लिए नियुक्‍त किया, तब उसने कहा: “देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूं।” (यिर्मयाह १:५, ६) लेकिन अपने संकोची स्वभाव के बावजूद, यिर्मयाह एक साहसी भविष्यवक्‍ता बना जिसने बैरियों के मुँह पर संदेश सुनाया। यह कैसे संभव हुआ? उसने यहोवा पर भरोसा करना सीखा। यिर्मयाह ने बाद में लिखा: “धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिस ने परमेश्‍वर को अपना आधार माना हो।”—यिर्मयाह १७:७; २०:११.

आज, यहोवा ऐसे लोगों को शक्‍ति देता है जो इसी तरह उस पर भरोसा रखते हैं। चार बच्चों के पिता एडवर्डa ने इसे सच पाया, जो आध्यात्मिक प्रगति करने में धीमा था। वह समझाता है: “मैं नौ साल से यहोवा का एक साक्षी रहा हूँ, लेकिन आध्यात्मिक तौर पर लगता था कि मानो मैं स्थिर खड़ा हूँ। समस्या यह थी कि मुझमें बहुत कम प्रेरक-शक्‍ति थी और बिलकुल भी आत्म-विश्‍वास नहीं था। स्पेन को स्थानांतरित होने के बाद, मैंने अपने आपको एक छोटी-सी कलीसिया में पाया जहाँ बस एक ही प्राचीन व एक ही सहायक सेवक था। ज़रूरत को देखते हुए, प्राचीन ने मुझसे अनेक कार्य-नियुक्‍तियाँ सँभालने के लिए कहा। अपने प्रथम भाषणों व सभा के अन्य भागों को प्रस्तुत करते वक्‍त मैं थर-थर काँपता था। फिर भी, मैंने यहोवा पर भरोसा रखना सीखा। वह प्राचीन हमेशा मेरी सराहना करता और सुधार के लिए व्यवहार-कुशल रूप से सुझाव देता।

“साथ ही साथ, मैं क्षेत्र सेवा में ज़्यादा समय बिताने लगा और अपने परिवार में बेहतर तरीके से आध्यात्मिक अगुवाई करने लगा। नतीजा यह हुआ कि परिवार के लिए सच्चाई ज़्यादा अर्थपूर्ण बनने लगी, और मैंने और भी ज़्यादा तृप्त महसूस किया। अब मैं एक सहायक सेवक हूँ, और जो गुण एक मसीही ओवरसियर होने के लिए चाहिए ऐसे गुणों को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूँ।”

‘पुराने मनुष्यत्व को उतार डालो’

जैसे एडवर्ड को एहसास हुआ, आध्यात्मिक प्रगति यहोवा पर भरोसे की माँग करती है। मसीह-सरीखे “नए मनुष्यत्व” को विकसित करना भी अनिवार्य है। यह कैसे किया जा सकता है? पुराने मनुष्यत्व के लक्षणों को ‘उतार डालना’ पहला कदम है। (कुलुस्सियों ३:९, १०) ठीक जिस तरह एक अपरिष्कृत हीरे को चमचमाता मणि बनाने के लिए उसकी त्रुटियों, जैसे कि बाहरी खनिजों को हटाना पड़ता है, उसी तरह “संसार की” मनोवृत्तियों को निकालने की ज़रूरत है ताकि हमारा नया मनुष्यत्व अधिक चमके।—गलतियों ४:३.

एक ऐसी मनोवृत्ति है, इस डर से ज़िम्मेदारी लेने से कतराना कि कहीं हमसे बहुत ज़्यादा की माँग तो नहीं की जाएगी। सच है कि ज़िम्मेदारी का मतलब है काम करना, लेकिन यह काम संतुष्टिदायक है। (प्रेरितों २०:३५ से तुलना कीजिए।) पौलुस कबूल करता है कि ईश्‍वरीय भक्‍ति यह माँग करती है कि हम ‘परिश्रम और यत्न करें।’ उसने कहा, हम खुशी-खुशी ऐसा करते हैं “[क्योंकि] हमारी आशा उस जीवते परमेश्‍वर पर है,” जो अपने संगी मसीहियों तथा अन्य लोगों के लिए किए गए हमारे कार्य को कभी नहीं भूलता।—१ तीमुथियुस ४:९, १०; इब्रानियों ६:१०.

कुछ हीरों में “कमज़ोर स्थान” होते हैं जो उनकी रचना होते वक्‍त बन जाते हैं और इन पर ध्यानपूर्वक कार्य करने की ज़रूरत होती है। लेकिन पोलारिस्कोप नामक एक साधन की मदद से, तराशनेवाला व्यक्‍ति इस कमज़ोर स्थान का पता लगा सकता है और रत्न पर ठीक से काम कर सकता है। शायद अपनी पृष्ठभूमि या हमारे साथ हुए किसी बुरे हादसे की वज़ह से हममें कोई आंतरिक कमज़ोरी, या शख्सियत में कोई त्रुटि हो। हम क्या कर सकते हैं? पहला, हमें अपने आपसे इस समस्या को कबूल करने और फिर इसे दूर करने की हर संभव कोशिश करने का दृढ़-संकल्प करने की ज़रूरत है। हमें प्रार्थना में यहोवा के सामने अपना बोझ हलका करने की ज़रूरत है, हो सके तो किसी मसीही प्राचीन से आध्यात्मिक मदद पाने की कोशिश करनी चाहिए।—भजन ५५:२२; याकूब ५:१४, १५.

ऐसी आंतरिक कमज़ोरी ने निकलस को प्रभावित किया। “मेरा पिता शराबी था, और उसने मुझे व मेरी बहन को खूब तकलीफ दी,” वह कहता है। “स्कूल छोड़ने पर मैं सेना में भर्ती हो गया, लेकिन मेरे विद्रोही रुझान ने जल्दी ही मुझे मुसीबत में डाल दिया। सेनाधिकारियों ने मुझे नशीले पदार्थ बेचने के जुर्म में जेल में डाल दिया, और एक अन्य अवसर पर मैं खुद अपना पद छोड़कर चला आया। अंततः, मैंने सेना का कार्य छोड़ दिया, लेकिन मुसीबत ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा था। हालाँकि नशीले पदार्थों के दुरुपयोग तथा पियक्कड़पन की वज़ह से मेरी ज़िंदगी अस्त-व्यस्त हो चुकी थी, मुझे बाइबल में रुचि थी और जीवन में उद्देश्‍य पाने की लालसा थी। आखिरकार, यहोवा के साक्षियों से मेरा संपर्क हुआ, और मैंने अपनी जीवन-शैली बदलकर सच्चाई को गले लगा लिया।

“लेकिन अपनी शख्सियत की खामी को स्वीकारने में मुझे सालों लगे। मुझे अधिकार चलानेवालों से सख्त नफरत थी और जब कोई मुझे सलाह देता तब मैं जल-भून जाता। हालाँकि मैं चाहता था कि यहोवा मुझे पूरी तरह इस्तेमाल करे, लेकिन इस कमज़ोरी ने मेरे कदम रोक दिए। अंततः दो हमदर्द प्राचीनों की सहायता से, मैंने अपनी कमज़ोरी कबूल की और उनकी प्रेममय शास्त्रीय सलाह को लागू करना शुरू किया। हालाँकि कभी-कभी मैं थोड़ा-बहुत चिढ़ जाता हूँ, लेकिन अब मैंने अपने विद्रोही स्वभाव पर काबू पा लिया है। मेरे साथ यहोवा के धैर्यपूर्वक व्यवहार करने के तरीके तथा प्राचीनों की प्रेममय मदद के लिए मैं बहुत ही शुक्रगुज़ार हूँ। मेरी आध्यात्मिक प्रगति के कारण, हाल ही में मुझे सहायक सेवक के तौर पर नियुक्‍त किया गया।”

जैसे निकलस ने पाया, गहरी पैठी मनोवृत्तियों को बदलना आसान नहीं है। हम भी शायद कुछ इसी प्रकार की चुनौती का सामना करें। शायद हम बहुत ज़्यादा ही संवेदनशील हों। हम शायद कोई नाराज़गी पाल रहे हों, या हम आज़ादी को बहुत ज़्यादा महत्त्व दे रहे हों। इस प्रकार, हमारी मसीही प्रगति सीमित हो सकती है। हीरों को तराशनेवाले नाट्‌स नामक रत्नों के साथ कुछ इसी प्रकार अनुभव करते हैं। ये वास्तव में दो रत्न होते हैं जो हीरा बनते वक्‍त गल कर एक हो जाते हैं। फलतः, नाट्‌स के दो विरोधात्मक विकास-स्वरूप होते हैं जो इसे इसके रेशे या स्वभाव के मुताबिक काटना बहुत ही मुश्‍किल कर देता है। हमारे मामले में, हम अपरिपूर्ण शरीर के “स्वभाव” को इच्छुक आत्मा के “स्वभाव” के साथ संघर्ष करते हुए पाते हैं। (मत्ती २६:४१; गलतियों ५:१७) कभी-कभी, हम ऐसा महसूस कर सकते हैं कि संघर्ष करना पूरी तरह से बंद कर दें, और शायद यह तर्क करें कि वैसे भी हमारे व्यक्‍तित्व की अपरिपूर्णताएँ अहम हैं ही नहीं। हम शायद कहें, ‘और वैसे भी, मेरे परिवारवाले व दोस्त तो मुझसे अब भी प्यार करते हैं।’

लेकिन यदि हमें अपने भाइयों की सेवा व अपने स्वर्गीय पिता की महिमा करनी है, तो हमें ‘अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाने’ की ज़रूरत है। इसमें लगायी गयी मेहनत बेकार नहीं जाएगी, जैसे निकलस तथा अन्य अनगिनत लोग इसका सबूत दे सकते हैं। हीरे का तराशनेवाला बखूबी जानता है कि एक त्रुटि पूरे हीरे को बिगाड़ सकती है। उसी तरह, हमारी शख्सियत के किसी कमज़ोर पहलू को नज़रअंदाज़ करने के द्वारा, हम अपने आध्यात्मिक दिखाव-बनाव को बिगाड़ सकते हैं। इससे भी बदतर, एक गंभीर कमज़ोरी हमारे आध्यात्मिक पतन का कारण हो सकती है।—नीतिवचन ८:३३.

हमारे अंदर एक ‘रोशनी’ के माफिक

हीरे का तराशनेवाला हीरे के अंदर की रोशनी को बरकरार रखने की कोशिश करता है। यह इसके पहलुओं को इस तरह व्यवस्थित करने के द्वारा किया जाता है जिससे कि उसमें से बहुरंगी प्रभाव निकले। हीरे के अंदर बहुरंगी प्रकाश आगे-पीछे प्रतिबिंबित होता है, जिससे वह रोशनी निकलती है और हीरे चमकते हैं। उसी तरह, परमेश्‍वर की आत्मा हमारे अंदर रोशनी अर्थात्‌ “आग” की तरह हो सकती है, जो हममें ‘उत्साह’ भरती है।—१ थिस्सलुनीकियों ५:१९, रिवाइज़्ड ओल्ड वर्शन; प्रेरितों १८:२५; रोमियों १२:११.

लेकिन तब क्या यदि हमें आध्यात्मिक प्रेरणा की ज़रूरत महसूस हो? यह कैसे किया जा सकता है? हमें अपने “अपने चालचलन पर विचार” करने की ज़रूरत है। (भजन ११९:५९, ६०, NHT) इसमें ऐसी बातों को पहचानना शामिल है जो हमें आध्यात्मिक रूप से धीमा कर देती हैं और फिर यह बात निर्धारित करना भी शामिल है कि हमें कौन-से ईश्‍वरशासित कार्यों में और भी मेहनत करने की ज़रूरत है। हम नियमित व्यक्‍तिगत अध्ययन व भावपूर्ण प्रार्थना के ज़रिए अपनी आध्यात्मिक समझ को और भी बढ़ा सकते हैं। (भजन ११९:१८, ३२; १४३:१, ५, ८, १०) और तो और, विश्‍वास में कठिन परिश्रम करनेवालों के साथ संगति करने के द्वारा, हम उत्साही रूप से यहोवा की सेवा करने के अपने संकल्प को और भी मज़बूत करेंगे।—तीतुस २:१४.

लॆवीज़ नामक एक युवा मसीही स्त्री ने कबूल किया: “मैंने पायनियर, या पूर्ण-समय के राज्य उद्‌घोषक के तौर पर खुद का नाम दर्ज़ कराने से पहले पूरे दो साल तक नियमित पायनियर-कार्य के बारे में विचार किया। कोई भी बात नहीं थी जो मेरे आड़े आ रही थी, लेकिन मेरी एक आरामदायक जीवन-शैली थी, और उसे छोड़ने का प्रयास मुझसे करते नहीं बना। फिर मेरे पिता अचानक चल बसे। तब मुझे एहसास हुआ कि ज़िंदगी कितनी क्षण-भंगुर है और मैं अपनी ज़िंदगी का सर्वोत्तम इस्तेमाल नहीं कर रही थी। सो मैंने अपना आध्यात्मिक दृष्टिकोण बदला, सेवा में ज़्यादा समय बिताया, और एक नियमित पायनियर बन गयी। इस संबंध में मुझे खास मदद अपने उन आध्यात्मिक भाई-बहनों से मिली जो हमेशा क्षेत्र सेवा प्रबंधों का समर्थन करते थे तथा सेवकाई में मेरे साथ नियमित रूप से निकलते थे। मैंने सीखा है कि चाहे अच्छे के लिए हो या बुरे के लिए, हम अपने संगी-साथियों के महत्त्वों व लक्ष्यों के हिस्सेदार हैं।”

चमकाए गए मानो लोहे से

धरती पर प्राकृतिक तौर पर मिलनेवाले पदार्थों में से सबसे कठोर पदार्थ हीरा है। अतः, हीरे को काटने के लिए दूसरे हीरे की ही ज़रूरत होती है। इससे शायद बाइबल विद्यार्थियों के मन में उस नीतिवचन की याद ताज़ा हो जाए जो कहता है: “जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।” (नीतिवचन २७:१७) एक व्यक्‍ति का मुख कैसे ‘चमकाया’ जा सकता है? एक व्यक्‍ति दूसरे व्यक्‍ति की विचार-शक्‍ति व आध्यात्मिक दशा को चमकाने में कामयाब हो सकता है, ठीक जैसे लोहे के एक टुकड़े को उसी धातु से बनी चीज़ की धार तेज़ करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। एक उदाहरण लें तो, यदि हम किसी निराशा की वज़ह से हताश हो जाते हैं, तो दूसरे व्यक्‍ति का प्रोत्साहन हमें उस निराशा से बाहर निकाल सकता है। इस प्रकार हमारा दुःखी भाव सुखी भाव में बदल सकता है, और फिर से उत्साही कार्य के लिए हम तरोताज़ा हो सकते हैं। (नीतिवचन १३:१२) विशेषकर कलीसिया के प्राचीन सुधार के लिए शास्त्रीय प्रोत्साहन व सलाह देने के द्वारा हमें चमकदार बनाने में मदद कर सकते हैं। वे सुलैमान द्वारा कहे गए सिद्धांत का पालन करते हैं: “बुद्धिमान को शिक्षा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा; धर्मी को चिता दे, वह अपनी विद्या बढ़ाएगा।”—नीतिवचन ९:९.

इसमें शक नहीं कि आध्यात्मिक प्रशिक्षण के लिए समय लगता है। दस साल से भी ज़्यादा समय तक, प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को अपने अनुभव व सिखाने के तरीके बताए। (१ कुरिन्थियों ४:१७; १ तीमुथियुस ४:६, १६) कुछ ४० साल की अवधि के दौरान मूसा द्वारा यहोशू को दिए गए लंबे प्रशिक्षण से इस्राएल जाति को काफी लंबे समय तक फायदा हुआ। (यहोशू १:१, २; २४:२९, ३१) भविष्यवक्‍ता एलिय्याह के साथ एलीशा शायद ६ साल तक था, और इस दौरान उसने अपनी सेवकाई के लिए अच्छी नींव पाई। उसने लगभग ६० साल तक सेवा की। (१ राजा १९:२१; २ राजा ३:११) प्राचीन धैर्यपूर्वक जारी प्रशिक्षण देने के द्वारा, पौलुस, मूसा व एलिय्याह के नक्शे-कदम पर चलते हैं।

सराहना देना प्रशिक्षण का एक अनिवार्य भाग है। अच्छी तरह से निभायी गयी कार्य-नियुक्‍तियों या प्रशंसनीय कार्यों के लिए दिल से की गयी कदरदानी की अभिव्यक्‍तियों से दूसरों में शायद परमेश्‍वर की सेवा और भी पूरी तरह से करने की इच्छा जागृत हो। सराहना से विश्‍वास बढ़ता है, जो क्रमशः कमज़ोरियों पर कार्य कर विजय पाने की प्रेरणा देता है। (१ कुरिन्थियों ११:२ से तुलना कीजिए।) सच्चाई में प्रगति करने का प्रोत्साहन राज्य-प्रचार कार्य व कलीसिया की अन्य गतिविधियों में पूरी तरह से व्यस्त होने से भी मिलता है। (प्रेरितों १८:५) भाइयों की आध्यात्मिक प्रगति को देखते हुए जब प्राचीन उन्हें ज़िम्मेदारी देते हैं, तो इससे इन पुरुषों को बहुमूल्य अनुभव मिलता है और इससे संभवतः आध्यात्मिक रूप से प्रगति करते रहने की उनकी इच्छा मज़बूत होती है।—फिलिप्पियों १:८, ९.

आध्यात्मिक प्रगति करने का अच्छा कारण

हीरों को बेशकीमती समझा जाता है। यहोवा के उपासकों के विश्‍वव्यापी परिवार के साथ अब संगति करनेवालों के बारे में यही सच साबित हो रहा है। दरअसल, परमेश्‍वर उन्हें खुद सभी राष्ट्रों में से “मनभावनी,” या “अनमोल” वस्तुएँ कहता है। (हाग्गै २:७, NW फुटनोट) गत वर्ष, ३,७५,९२३ लोग यहोवा के बपतिस्मा-प्राप्त साक्षी बने थे। इस वृद्धि की वज़ह से, ‘तम्बू का स्थान और चौड़ा करने’ की ज़रूरत है। आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने के द्वारा—और मसीही सेवा के विषेशाधिकारों के लिए आगे बढ़ने के द्वारा—इस वृद्धि की देखरेख करने में हिस्सा लेना संभव है।—यशायाह ५४:२; ६०:२२.

ऐसे अनेक अनमोल हीरों से भिन्‍न, जिन्हें बैंक की तिजोरियों में रखा जाता है और जिन्हें हम विरले ही देख पाते हैं, हमारा आध्यात्मिक मूल्य तेज़ चमक सकता है। और जैसे-जैसे हम लगातार अपने मसीही गुणों को तराशते व प्रकट करते रहते हैं, हम यहोवा परमेश्‍वर की महिमा करते हैं। यीशु ने अपने अनुयायियों से आग्रह किया: “तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।” (मत्ती ५:१६) निश्‍चय ही, आध्यात्मिक प्रगति करने के लिए यह हमें ठोस कारण देता है।

[फुटनोट]

a इस लेख में वैकल्पिक नाम इस्तेमाल किए गए हैं।

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