‘मसीह में चलते रहो’
“सो जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो।”—कुलुस्सियों २:६.
१, २. (क) बाइबल यहोवा की सेवा में हनोक के वफादारी से बिताए गए जीवन का वर्णन कैसे करती है? (ख) जैसे कुलुस्सियों २:६, ७ बताता है, अपने साथ-साथ चलने में यहोवा हमारी मदद कैसे करता है?
क्या आपने कभी एक छोटे से लड़के को अपने पिता के साथ-साथ चलते हुए देखा है? यह मुन्ना हर कदम अपने पिता की नकल करते हुए चलता है और उसे अपने पिता पर बहुत नाज़ है; पिता भी उसे हाथ पकड़कर चलाता है और उसके चेहरे से प्यार और खुशी झलकती है। यहोवा उसकी सेवा में वफादारी से बिताए गए जीवन की मिसाल इसी तरह देता है। उदाहरण के लिए परमेश्वर का वचन कहता है कि वफादार हनोक सच्चे “परमेश्वर के साथ साथ चलता” रहा।—उत्पत्ति ५:२४; ६:९.
२ ठीक जैसे एक प्रेमी पिता अपने छोटे बेटे की अपने साथ-साथ चलने में मदद करता है, वैसे ही यहोवा ने भी हमारी मदद के लिए सबसे बढ़िया इंतज़ाम किया है। उसने अपने एकलौते बेटे को इस पृथ्वी पर भेजा। इस पृथ्वी पर अपनी ज़िंदगी के हर कदम पर यीशु मसीह ने अपने पिता के व्यक्तित्व को हू-ब-हू प्रदर्शित किया। (यूहन्ना १४:९, १०; इब्रानियों १:३) इसलिए अगर परमेश्वर के साथ-साथ चलना है तो ज़रूरी है कि हम यीशु के साथ-साथ चलें। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “सो जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो, और उसी में जड़ पकड़ते जाओ और तुम्हारा निर्माण उसी पर हो और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, धन्यवाद में विश्वास से उमड़ते जाओ।”—कुलुस्सियों २:६, ७, NW.
३. कुलुस्सियों २:६, ७ के मुताबिक, हम यह क्यों कह सकते हैं कि मसीह में चलने का मतलब सिर्फ बपतिस्मा लेना नहीं है?
३ क्योंकि सच्चे बाइबल विद्यार्थी मसीह में चलना चाहते हैं और उसके नक्शे-कदम की नकल करने की कोशिश करते हैं इसलिए वे बपतिस्मा लेते हैं। (लूका ३:२१; इब्रानियों १०:७-९) दुनिया भर में १९९७ में ही ३,७५,००० से भी ज़्यादा लोगों ने यह ज़रूरी कदम उठाया—हर दिन १,००० की औसत से भी ज़्यादा लोगों ने। यह वाकई ज़बरदस्त बढ़ोतरी है! मगर, कुलुस्सियों २:६, ७ में दिए गए पौलुस के शब्दों से पता चलता है कि मसीह में चलने का मतलब सिर्फ बपतिस्मा लेना नहीं है। वह यूनानी शब्द जिसे “चलते रहो” अनुवादित किया गया है एक ऐसे काम का ज़िक्र करता है जिसे लगातार करते रहना चाहिए। पौलुस ने आगे कहा कि मसीह में चलते रहने में चार बातें शामिल हैं: मसीह में जड़ पकड़ना, उस पर निर्माण होना, विश्वास में दृढ़ होना, और धन्यवाद में विश्वास से उमड़ते रहना। आइए हर एक बात पर गौर करें और देखें कि मसीह में चलते रहने में ये कैसे हमारी मदद करती हैं।
क्या आपने ‘मसीह में जड़ पकड़ी’ है?
४. ‘मसीह में जड़ पकड़ने’ का मतलब क्या है?
४ पहली बात पौलुस बताता है कि हमें ‘मसीह में जड़ पकड़नी’ चाहिए। (मत्ती १३:२०, २१ से तुलना कीजिए।) एक व्यक्ति को ‘मसीह में जड़ पकड़ने’ के लिए क्या करना चाहिए? पौधे की जड़ें दिखाई तो नहीं देती मगर ये हैं बहुत ज़रूरी—ये पौधे को मज़बूती देती हैं और उस तक खुराक पहुँचाती हैं। उसी तरह, मसीह का उदाहरण और उसकी शिक्षाएँ पहले हमारे दिल और दिमाग में जड़ पकड़कर असर करती हैं जहाँ हम देख नहीं सकते। वहाँ ये हमें पोषण और मज़बूती देती हैं। जब हम इन्हें अपने सोच-विचार, अपने कामों और अपने फैसलों पर असर करने देते हैं तो हममें यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने की इच्छा पैदा होती है।—१ पतरस २:२१.
५. हम आध्यात्मिक भोजन के लिए कैसे ‘लालसा विकसित कर’ सकते हैं?
५ परमेश्वर के ज्ञान से यीशु को गहरा प्रेम था। यहाँ तक कि उसने इस ज्ञान को भोजन कहा। (मत्ती ४:४) उसने अपने पहाड़ी उपदेश में इब्रानी शास्त्र की आठ अलग-अलग किताबों से २१ हवाले दिए। उसके उदाहरण पर चलने के लिए हमें प्रेरित पतरस के आग्रह के मुताबिक “नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं” आध्यात्मिक भोजन के लिए ‘लालसा विकसित करनी’ चाहिए। (१ पतरस २:२, NW) दूध के लिए अपनी ज़ोरदार भूख को ज़ाहिर करने में एक नन्हा बच्चा कोई कसर नहीं छोड़ता। अगर आध्यात्मिक भोजन के लिए हमें अभी यह लालसा नहीं है तो पतरस हमें ऐसी लालसा “विकसित” करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हम यह कैसे कर सकते हैं? भजन ३४:८ (NHT, फुटनोट) में दिया गया सिद्धांत हमारी मदद कर सकता है: ‘चख कर देखो कि यहोवा कैसा भला है।’ ऐसे ही अगर हम यहोवा के वचन, बाइबल को नियमित रूप से “चख कर” देखें, जैसे रोज़ उसका एक भाग पढ़ें, तो हमें पता चलेगा कि यह हमारे लिए आध्यात्मिक रूप से पोषक और भला है। कुछ समय बाद इसके लिए हमारी लालसा बढ़ जाएगी।
६. जो हम पढ़ते हैं उस पर मनन करना क्यों ज़रूरी है?
६ जिस तरह खाना खाने के बाद उसे अच्छी तरह पचाना ज़रूरी है उसी तरह पढ़ने के बाद उस पर मनन करना भी हमारे लिए ज़रूरी है। (भजन ७७:११, १२) उदाहरण के लिए जब हम वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब पढ़ते हैं, तो हर अध्याय से हमें तब और भी फायदा मिलेगा जब हम रुककर अपने आपसे पूछें कि ‘इस घटना से मसीह के गुणों के बारे में मुझे क्या पता चलता है और मैं इन्हें अपनी ज़िंदगी में कैसे दिखा सकता हूँ?’ इस तरह मनन करने से जो हम सीखते हैं उसे लागू कर पाएँगे। फिर, कभी हमें कोई फैसला करने की ज़रूरत पड़े तो हम अपने आपसे पूछ सकते हैं कि अगर यीशु होता तो क्या करता। अगर हम इस तरह फैसले करेंगे, तो हम यह सबूत देंगे कि हमने मसीह में वाकई जड़ पकड़ी है।
७. ठोस आध्यात्मिक अन्न के बारे में हमारा नज़रिया क्या होना चाहिए?
७ पौलुस हमसे ठोस “अन्न” खाने का यानी परमेश्वर के वचन की गूढ़ सच्चाइयों को ग्रहण करने का भी आग्रह करता है। (इब्रानियों ५:१४) इसमें पूरी बाइबल पढ़ना हमारा पहला कदम हो सकता है। फिर अलग-अलग विषयों पर अध्ययन किया जा सकता है, जैसे मसीह के छुड़ौती बलिदान पर, अनेक वाचाओं पर जो यहोवा ने अपने लोगों के साथ बांधी, या बाइबल की कुछ भविष्यवाणियों पर। ऐसे ढेरों प्रकाशन हैं जो ठोस आध्यात्मिक अन्न खाने और पचाने में हमारी मदद करेंगे। ऐसा ज्ञान लेने का हमारा मकसद क्या है? इसका मकसद खुद पर घमंड करना नहीं बल्कि यहोवा के लिए अपना प्यार बढ़ाना और खुद को उसके और करीब लाना है। (१ कुरिन्थियों ८:१; याकूब ४:८) अगर हम भूखों की तरह ये ज्ञान लें, अपनी ज़िंदगी में इसे लागू करें और दूसरों की मदद करने के लिए इसका इस्तेमाल करें, तब हम सचमुच मसीह की सी चाल चल रहे होंगे। ऐसा करना हमें उसमें मज़बूती से जड़ पकड़े रहने में मदद देगा।
क्या आपका ‘निर्माण मसीह पर हो रहा’ है?
८. ‘मसीह पर निर्माण होने’ का क्या मतलब है?
८ मसीह में चलने के लिए दूसरी बात समझाते वक्त प्रेरित पौलुस हमारे सामने दूसरी तस्वीर रखता है—पौधे के बाद एक बिल्डिंग की। जब हम एक बिल्डिंग बनते हुए देखते हैं, तो क्या हम सिर्फ उसकी नीव के बारे में ही सोचते हैं। नहीं, बल्कि उस नीव पर कड़ी मेहनत से खड़ी की गई पूरी इमारत के बारे में भी। उसी तरह, हमें भी मसीह समान गुणों और आदतों का निर्माण करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसी कड़ी मेहनत ज़रूर प्रकट होती है, जैसे पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा: “तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो।” (१ तीमुथियुस ४:१५; मत्ती ५:१६) कौन-से ऐसे कुछ मसीही कार्य हैं जो हमारा निर्माण करते हैं?
९. (क) सेवकाई में मसीह की नकल करने के लिए हम कौन-से कुछ व्यावहारिक लक्ष्य रख सकते हैं? (ख) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा चाहता है कि हम अपनी सेवकाई में खुशी हासिल करें?
९ यीशु ने हमें सुसमाचार का प्रचार करने और सिखाने के लिए नियुक्त किया है। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) उसने हमारे सामने साहस और प्रभावशाली गवाही देने की सबसे बढ़िया मिसाल रखी है। बेशक, हम गवाही देने में उसकी बराबरी नहीं कर सकेंगे। मगर, प्रेरित पतरस हमारे सामने एक लक्ष्य रखता है: “मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ।” (१ पतरस ३:१५) अगर आपको लगता कि आप “उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार” नहीं हैं, तो निराश मत होइए। ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें आप पा सकते हैं और जो आपको धीरे-धीरे मंज़िल तक ले जाएँ। पहले से तैयारी करना मौके के मुताबिक गवाही देने और एक-दो शास्त्रवचन बताने में आपकी मदद कर सकता है। आप ज़्यादा बाइबल साहित्य देने, ज़्यादा पुनःभेंट करने या बाइबल अध्ययन शुरू करने का लक्ष्य रख सकते हैं। हमें सिर्फ घंटों, पेश किए गए प्रकाशनों या अध्ययनों की गिनती पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि इस पर ध्यान देना चाहिए कि इन्हें कैसे किया जाता है। हमें ऐसे लक्ष्य रखने हैं जिन्हें हम पा सकते हैं। इन लक्ष्यों तक पहुँचने की पूरी कोशिश करने से हम अपनी सेवकाई में खुशी हासिल कर सकते हैं। यहोवा हमसे यही चाहता है कि हम “आनन्द से” उसकी सेवा करें।—भजन १००:२. २ कुरिन्थियों ९:७ से तुलना कीजिए।
१०. और कौन-से मसीही कार्य हमें करने चाहिए और ये हमारी मदद कैसे करते हैं?
१० कलीसिया में भी ऐसे कार्य हैं जो मसीह पर हमारा निर्माण करते हैं। उनमें सबसे ज़रूरी है एक दूसरे से प्यार करना, क्योंकि सच्चे मसीहियों की पहचान करानेवाली निशानी यही है। (यूहन्ना १३:३४, ३५) जैसा अकसर होता है, हममें से कितनों को अध्ययन के दौरान अपने सिखानेवाले के साथ लगाव हो जाता है। मगर क्या अब हम कलीसिया में और भी लोगों के साथ जान-पहचान बढ़ाकर पौलुस की इस सलाह को लागू कर सकते हैं कि “अपना हृदय खोल दो”? (२ कुरिन्थियों ६:१३) प्राचीनों को भी हमारा प्यार और हमारी कदर चाहिए। उनका साथ देने, उनसे बाइबल की सलाह माँगने और उसे लागू करने से हम उनका मुश्किल काम काफी आसान बना सकते हैं। (इब्रानियों १३:१७) ऐसा करने से हमारा भी मसीह पर निर्माण होता है।
११. बपतिस्मे के बारे में हमारा कौन-सा सही नज़रिया होना चाहिए?
११ बपतिस्मा खुशी का अवसर है! मगर हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि इसके बाद ज़िंदगी का हर अवसर उसी तरह खुशी से भरा होगा। मसीह पर निर्माण होते रहने में ज़्यादातर यही शामिल है कि ‘जहां तक हम पहुंचे हैं, उसी के अनुसार चलते रहें।’ (फिलिप्पियों ३:१६) इसका मतलब यह नहीं कि ज़िंदगी बेमज़ा और बोर हो जाएगी। इसका मतलब है सीधे आगे बढ़ना या दूसरे शब्दों में, अच्छी आध्यात्मिक आदतें डालना और उन्हें हर रोज़, हमेशा तक मानते रहना। याद रखें, “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मत्ती २४:१३.
क्या आप “विश्वास में दृढ़” हैं?
१२. “विश्वास में दृढ़” होने का क्या मतलब है?
१२ मसीह में हमारी चाल के बारे में तीसरी बात बताते हुए पौलुस हमसे “विश्वास में दृढ़” होने का आग्रह करता है। एक अनुवाद कहता है “विश्वास में पक्का” होना क्योंकि पौलुस ने जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया है, उसका मतलब “पक्का करना, गारंटी देना और अटल होना” भी है। जैसे-जैसे हम ज्ञान में बढ़ते जाते हैं, हमारे पास यह देख पाने के और भी कारण होंगे कि यहोवा परमेश्वर में हमारा विश्वास ठोस और अटल है। इससे हम और भी दृढ़ होते हैं। इसलिए हमें बहकाना, शैतान की दुनिया के लिए और भी मुश्किल हो जाता है। यह हमें पौलुस की इस सलाह की याद दिलाता है कि “हम सिद्धता [“प्रौढ़ता,” NW] की ओर आगे बढ़ते जाएं।” (इब्रानियों ६:१) प्रौढ़ होना दृढ़ होना है।
१३, १४. (क) पहली सदी में कुलुस्से के मसीहियों की दृढ़ता को कौन-से खतरे थे? (ख) प्रेरित पौलुस को शायद क्या चिंता सता रही थी?
१३ पहली-सदी में अपनी दृढ़ता बनाए रखने के लिए कुलुस्से के मसीहियों के सामने कई खतरे थे। पौलुस ने चेतावनी दी: “चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।” (कुलुस्सियों २:८) पौलुस नहीं चाहता था कि कुलुस्से के मसीही जो “[परमेश्वर के] प्रिय पुत्र के राज्य” की प्रजा बन गए थे, भटकाए जाएँ और इस धन्य आत्मिक अवस्था से दूर किए जाएँ। (कुलुस्सियों १:१३) किस माध्यम से भटकाए जाते? पौलुस ने कहा “तत्व-ज्ञान” के माध्यम से। यह शब्द बाइबल में सिर्फ एक ही बार आता है। क्या वह प्लेटो और सुकरात जैसे यूनानी तत्व-ज्ञानियों की बात कर रहा था? इन जैसे लोगों का तत्व-ज्ञान सच्चे मसीहियों के लिए खतरा था। मगर उन दिनों के शब्द “तत्व-ज्ञान” में और भी बातें शामिल थीं। रोज़मर्रा की भाषा में यह अनेक तरह की विचार-धाराओं को सूचित करता था—धार्मिक विचार-धाराओं को भी। मिसाल के तौर पर, जोसीफस और फाइलो जैसे पहली-सदी के यहूदियों ने अपने धर्म को तत्व-ज्ञान कहा—शायद उसे आकर्षक बनाने के लिए।
१४ पौलुस को जिस तत्व-ज्ञान की चिंता सता रही थी, वह शायद धर्म के बारे में था। कुलुस्सियों को अपनी पत्री के उसी अध्याय में आगे उसने ऐसी शिक्षा देनेवालों को लिखा जो कहते थे: “यह न छूना, उसे न चखना, और उसे हाथ न लगाना।” वे मूसा की व्यवस्था की तरफ इशारा कर रहे थे जिसका मसीह की मौत के ज़रिए अंत कर दिया गया था। (रोमियों १०:४) ऐसे विधर्मी तत्व-ज्ञान के अलावा कलीसिया की आध्यात्मिकता के लिए और भी खतरे थे। (कुलुस्सियों २:२०-२२) पौलुस ने “संसार की आदि शिक्षा” के तत्व-ज्ञान के बारे में चेतावनी दी। यह झूठी शिक्षा इंसानों की शिक्षा थी।
१५. ऐसी विचार-धाराओं द्वारा भटकाए जाने से हम कैसे बचे रह सकते हैं जो परमेश्वर के वचन पर आधारित नहीं हैं और जिनका हम अकसर सामना करते हैं?
१५ ऐसी मानवी शिक्षा और विचारा-धाराओं को बढ़ावा देना जो परमेश्वर के वचन पर आधारित नहीं है, मसीहियों की दृढ़ता के लिए खतरनाक हो सकती हैं। ऐसे खतरों से आज हमें होशियार रहना चाहिए है। प्रेरित यूहन्ना ने आग्रह किया: “हे प्रियो, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: बरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं।” (१ यूहन्ना ४:१) इसलिए अगर स्कूल में आपका साथी आपको समझाने की कोशिश करे कि यह वक्त बाइबल के हिसाब से जीने का नहीं या अगर आपका पड़ोसी आपको धन-दौलत के पीछे लगने के लिए उकसाए या आपके साथ काम करनेवाला कोई आपके बाइबल प्रशिक्षित विवेक का कहना न मानने के लिए फुसलाने की कोशिश करे, यहाँ तक कि एक संगी विश्वासी भी अगर कलीसिया के लोगों के बारे में बुरा-भला या जो जी में आए कहे तो ऐसे लोगों के बहकावे में मत आइए। बल्कि ऐसी बातों को परखें कि वे परमेश्वर के वचन से मेल खाती हैं या नहीं। अगर हम ऐसा करते हैं तो हम मसीह में दृढ़ता से चलते रहेंगे।
“धन्यवाद में विश्वास से उमड़ते” जाना
१६. मसीह में चलने में चौथी बात क्या है और हम अपने-आपसे क्या सवाल पूछ सकते हैं?
१६ मसीह में चलने के लिए पौलुस जिस चौथी बात का ज़िक्र करता है, वह है “धन्यवाद में विश्वास से उमड़ते” जाना। (कुलुस्सियों २:७, NW) शब्द ‘उमड़ना’ हमें एक ऐसी नदी की याद दिलाता है जो पानी से उमड़ रही है। यह बताता है कि मसीही होने के नाते हमें लगातार धन्यवादी होना चाहिए, यानी यह हमारी आदत होनी चाहिए। इसलिए हममें से हरेक व्यक्ति अपने-आपसे पूछ सकता है, “क्या मैं धन्यवादी हूँ?”
१७. (क) ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि बुरे से बुरे वक्त में भी हम सभी के पास धन्यवादी होने के बहुत से कारण हैं? (ख) यहोवा ने कौन-से कुछ वरदान दिए हैं जिनके लिए आप खास तौर पर आभारी हैं?
१७ वाकई, यहोवा के लिए दिन-रात धन्यवाद से उमड़ते रहने के हमारे पास बहुत-से कारण हैं। बुरे से बुरे वक्त में भी, छोटी-छोटी बातें हमें थोड़ी राहत दे सकती हैं। जैसे कि एक दोस्त का हमदर्दी जताना, किसी अपने का हमें प्यार से सहलाना या रात की अच्छी नींद से ताज़गी पाना या ज़ायकेदार खाने से ज़ोरदार भूख मिटाना या पंछी का चहचहाना, बच्चे का खिलखिलाना। नीला आसमान, ठंडी हवा—इन सभी का या इनसे भी ज़्यादा का अनुभव हम शायद एक ही दिन में कर लें। ऐसी आशीषों को हलकी बात समझना कितना आसान होता है। लेकिन क्या हमें इन सबके लिए “धन्यवाद” नहीं करना चाहिए? ये सभी आशीषें यहोवा से मिलती हैं। “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” वही देता है। (याकूब १:१७) और उसने हमें ऐसे वरदान दिए हैं जो इन सभी वरदानों से बढ़कर हैं—मसलन, हमारी ज़िंदगी। (भजन ३६:९) साथ ही उसने हमें हमेशा के लिए जीने का भी एक मौका दिया है। इस वरदान को देने के लिए यहोवा ने अपना एकलौता बेटा भेजकर सबसे बड़ी कुरबानी दी है, उस बेटे की “जिसे वह खासकर चाहता था।”—नीतिवचन ८:३०, NW; यूहन्ना ३:१६.
१८. हम यहोवा का कैसे धन्यवाद कर सकते हैं?
१८ भजनहार की बात कितनी सच है “यहोवा का धन्यवाद करना भला है।” (भजन ९२:१) उसी तरह, पौलुस ने थिस्सलुनीके के मसीहियों को याद दिलाया: “हर बात में धन्यवाद करो।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:१८; इफिसियों ५:२०; कुलुस्सियों ३:१५) हममें से हरेक यह संकल्प कर सकता है कि वह और भी ज़्यादा धन्यवादी बने। ज़रूरी नहीं कि हम अपनी प्रार्थनाओं में सिर्फ अपनी ज़रूरतों की ही गुज़ारिश करें। इनकी अपनी जगह है। ज़रा एक ऐसे दोस्त के बारे में सोचिए जो सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर ही आपसे बात करता है! तो क्यों न यहोवा का धन्यवाद और स्तुति करने के लिए उससे प्रार्थना करें? जब वह इस एहसानफरामोश दुनिया पर नज़र डालता है, तो ऐसी प्रार्थनाओं से उसका दिल कितना खुश होता है! इसका दूसरा फायदा यह है कि ऐसी प्रार्थनाएँ हमें ज़िंदगी की सिर्फ अच्छी बातों पर ही ध्यान देने में मदद करती हैं और यह याद दिलाती हैं कि हमें कितनी आशीषें मिली हैं।
१९. कुलुस्सियों २:६, ७ में पौलुस के शब्दों से कैसे पता चलता है कि हम सभी के पास मसीह के साथ-साथ चलते और बढ़ते रहने की गुंजाइश है?
१९ क्या यह ताज्जुब की बात नहीं कि परमेश्वर के वचन की एक ही आयत से इतनी बुद्धि का मार्गदर्शन पाया जा सकता है? मसीह के साथ-साथ चलते रहने की पौलुस की सलाह पर हम सभी को ध्यान देना चाहिए। तो आइए हम संकल्प करें कि हम ‘मसीह में जड़ पकड़ें,’ हमारा ‘उस पर निर्माण हो,’ हम “विश्वास में दृढ़” हों, और ‘धन्यवाद से उमड़ते रहें।’ ये सलाहें बपतिस्मा पाए हुए नए जनों के लिए खासकर ज़रूरी है। मगर ये हम सभी पर लागू होती हैं। सोचिए कि कैसे एक जड़ नीचे बढ़ती जाती है और कैसे एक इमारत ऊँची बनती जाती है। इसी तरह मसीह के साथ-साथ हमारा चलना कभी खत्म नहीं होता। बढ़ते रहने की बहुत गुंजाइश है। यहोवा हमारी मदद करेगा और हमें आशीष देगा, क्योंकि वह चाहता है कि हम उसके और उसके प्यारे बेटे के साथ-साथ हमेशा चलते रहें।
आपका जवाब क्या है?
◻ मसीह में चलने में क्या-क्या शामिल है?
◻ ‘मसीह में जड़ पकड़ने’ का क्या मतलब है?
◻ हमारा ‘निर्माण मसीह पर’ कैसे हो सकता है?
◻ “विश्वास में दृढ़” होना इतना ज़रूरी क्यों है?
◻ ‘धन्यवाद से उमड़ते रहने’ के हमारे पास कौन-से कारण हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
पेड़ की जड़ें दिखायी नहीं देतीं, मगर ये पेड़ को खुराक और मज़बूती देती हैं