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  • यहोवा पर हमें भरोसा रखना चाहिए

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  • यहोवा पर हमें भरोसा रखना चाहिए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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यहोवा पर हमें भरोसा रखना चाहिए

“यहोवा तेरा सहारा [भरोसा] होगा।”—नीतिवचन ३:२६, NHT.

१. जबकि अनेक लोग परमेश्‍वर पर भरोसा रखने का दावा करते हैं, किस बात से पता चलता है कि वे हमेशा ऐसा नहीं करते?

अमरीका के नोटों पर यह संदेश छपा है, “हमारा भरोसा परमेश्‍वर पर है।” लेकिन क्या इस देश में या इसके बाहर इन नोटों का इस्तेमाल करनेवाले लोग वाकई परमेश्‍वर पर भरोसा रखते हैं? या क्या उनका भरोसा सिर्फ उस नोट पर होता है? इस देश के पैसे पर या किसी और देश के पैसे पर ऐसा भरोसा रखने का ताल्लुक प्रेम करनेवाले सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर पर भरोसा रखने से बिलकुल नहीं हो सकता, क्योंकि परमेश्‍वर कभी-भी अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल नहीं करता और ना ही वह कभी लालच करता है। दरअसल वह लालच करने से सख्त मना करता है।—इफिसियों ५:५.

२. धन के धोखे के बारे में सच्चे मसीहियों का क्या नज़रिया है?

२ सच्चे मसीही परमेश्‍वर पर भरोसा रखते हैं ना कि धन पर जो एक “धोखा” है। (मत्ती १३:२२) वे जानते हैं कि खुशी हासिल करने और ज़िंदगी बचाने में पैसे की ताकत ज़्यादा काम नहीं आती। लेकिन सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की ताकत के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। (सपन्याह १:१८) इसलिए यह सलाह कितनी बुद्धि से भरी है: “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।”—इब्रानियों १३:५.

३. व्यवस्थाविवरण ३१:६ की पूरी बात पढ़ने से हम कैसे पौलुस द्वारा दोहराई गई इस आयत को समझते हैं?

३ जब प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को यह बात लिखी तब वह मूसा की हिदायत को दोहरा रहा था। मूसा ने अपनी मौत से पहले इस्राएलियों को यह हिदायत दी थी: “तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, उन से न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्‍वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा।” (व्यवस्थाविवरण ३१:६) पूरी बात पढ़ने से पता चलता है कि मूसा उन्हें सिर्फ अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के पूरा होने के लिए ही नहीं बल्कि उससे भी ज़्यादा के लिए यहोवा पर भरोसा रखने का प्रोत्साहन दे रहा था। वह कैसे?

४. परमेश्‍वर ने इस्राएलियों को कैसे सबूत दिया कि वह भरोसे के लायक है?

४ उन ४० सालों के दौरान वफादारी से परमेश्‍वर ने इस्राएलियों की ज़रूरतें पूरी कीं जब उन्हें जंगल में भटकना पड़ा। (व्यवस्थाविवरण २:७; २९:५) उसने उनकी अगुवाई भी की। इसका एक सबूत था दिन के समय बादल का और रात के समय आग का खंभा, जो इस्राएलियों को उस देश में ले गया “जिस में दूध और मधु की धारा बहती” थी। (निर्गमन ३:८; ४०:३६-३८) जब इस प्रतिज्ञा किए हुए देश में पहुँचने का वक्‍त आया, तो यहोवा ने मूसा की जगह लेने के लिए यहोशू को चुना। उस देश के लोग चुपचाप हथियार डालनेवालों में से नहीं थे। लेकिन सालों से यहोवा अपने लोगों का साथ दे रहा था इसलिए डरने की कोई ज़रूरत नहीं थी। इस्राएलियों के पास यहोवा परमेश्‍वर पर भरोसा रखने के लिए सबूतों की कमी नहीं थी!

५. आज मसीहियों के हालात प्रतिज्ञा किए हुए देश में पहुँचने से पहले इस्राएलियों के हालात की तरह कैसे हैं?

५ वैसे ही आज मसीही भी इस दुष्ट संसार के जंगल से गुज़रते हुए परमेश्‍वर की नयी दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं। इनमें से कुछ लोगों को तो इस रास्ते पर चलते हुए ४० से भी ज़्यादा साल बीत चुके हैं। अब वे परमेश्‍वर की नयी दुनिया की सरहद पर हैं। लेकिन फिर भी दुश्‍मन रास्ता रोके खड़े हैं, और नहीं चाहते कि कोई भी इस नयी दुनिया में पहुँचे जो मानो प्रतिज्ञा किया हुआ देश होगी बल्कि उस प्राचीन देश से कहीं ज़्यादा बेहतर और शानदार होगी जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती थीं। तो आज मसीहियों के लिए मूसा की बात कितनी सही है जिसे पौलुस ने दोहराया था: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा”! उन सभी लोगों को इनाम ज़रूर मिलेगा जो दृढ़ और साहसी बने रहते हैं, मज़बूत विश्‍वास रखते हैं और यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा रखते हैं।

ज्ञान और मित्रता—भरोसे का आधार

६, ७. (क) यहोवा पर इब्राहीम के भरोसे की परीक्षा कैसे हुई? (ख) जिस जगह पर इसहाक की बलि चढ़ानी थी वहाँ जाते वक्‍त इब्राहीम ने कैसा महसूस किया होगा?

६ एक दिन इस्राएलियों के पूर्वज इब्राहीम को अपने बेटे इसहाक को होमबलि करके चढ़ाने की आज्ञा दी गई। (उत्पत्ति २२:२) इस प्रेमी पिता का यहोवा पर इतना अटूट भरोसा रखने की क्या वज़ह थी कि वह आज्ञा का पालन करने के लिए फौरन तैयार हो गया? इब्रानियों ११:१७-१९ हमें इसकी वज़ह बताता है: “विश्‍वास ही से इब्राहीम ने, परखे जाने के समय में, इसहाक को बलिदान चढ़ाया, और जिस ने प्रतिज्ञाओं को सच माना था। और जिस से यह कहा गया था, कि इसहाक से तेरा वंश कहलाएगा; वह अपने एकलौते को चढ़ाने लगा। क्योंकि उस ने विचार किया, कि परमेश्‍वर सामर्थी है, कि मरे हुओं में से जिलाए, सो उन्हीं में से दृष्टान्त की रीति पर वह उसे फिर मिला।”

७ याद रहे कि जिस जगह पर बलिदान चढ़ाया जाना था वहाँ पहुँचने के लिए इब्राहीम और इसहाक को तीन दिन लगे। (उत्पत्ति २२:४) इस बीच इब्राहीम के पास अपना इरादा बदलने के लिए काफी वक्‍त था। उसके जज़बात, उसके दिल पर जो गुज़र रही थी, क्या आप उसका अंदाज़ा लगा सकते हैं? इसहाक के पैदा होने से इब्राहीम और सारा की ज़िंदगी में बहार आ गई थी। इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा जो पहले बाँझ थी, परमेश्‍वर के इस चमत्कार की वज़ह से उसके और भी करीब आ गए थे। इसके बाद वे यह देखने की उम्मीद में जी रहे थे कि इसहाक और उसके वंश का भविष्य कैसा होगा। अब क्योंकि परमेश्‍वर ने उनसे ऐसी माँग की है, क्या उनके सपने चूर-चूर होनेवाले हैं?

८. कैसे इब्राहीम का यहोवा पर सिर्फ इतना ही भरोसा नहीं था कि वह इसहाक को फिर से ज़िंदा कर सकता है?

८ मगर, इब्राहीम के भरोसे का आधार वह जानकारी थी जो दो जिगरी दोस्त एक-दूसरे के बारे में रखते हैं। ‘यहोवा के मित्र’ के नाते इब्राहीम ने “[यहोवा] पर विश्‍वास किया और यह विश्‍वास उसके लिए धार्मिकता गिना गया।” (याकूब २:२३, NHT) इब्राहीम का यहोवा पर सिर्फ इतना ही भरोसा नहीं था कि वह इसहाक को फिर से ज़िंदा कर सकता है। जबकि इब्राहीम कई बातें नहीं जानता था फिर भी उसे पूरा यकीन था कि यहोवा उससे जो माँग रहा था वह सही है। उसने ऐसा कभी नहीं सोचा कि यह माँग करने में यहोवा अधर्मी है। जब इब्राहीम, इसहाक को बलि करनेवाला ही था तभी यहोवा के दूत ने आकर उसे इसहाक की जान लेने से रोक दिया और इससे इब्राहीम का भरोसा और भी मज़बूत हो गया।—उत्पत्ति २२:९-१४.

९, १०. (क) इब्राहीम ने पहले भी यहोवा पर कब भरोसा किया था? (ख) हम इब्राहीम से कौन-सा बड़ा सबक सीख सकते हैं?

९ इब्राहीम ने लगभग २५ साल पहले भी यहोवा के न्याय पर इसी तरह भरोसा किया था। जब उसे बताया गया कि सदोम और अमोरा का विनाश होनेवाला है, तो ज़ाहिर है कि उसे वहाँ रहनेवाले धर्मी लोगों की चिंता होने लगी जिनमें उसका भतीजा लूत भी था। इब्राहीम ने परमेश्‍वर से यह बिनती की: “इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे: क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे[गा]?”—उत्पत्ति १८:२५.

१० कुलपिता इब्राहीम को पूरा यकीन था कि यहोवा कभी-भी कोई अधर्म का काम नहीं करता। सदियों बाद भजनहार ने इसे गीत में लिखा: “यहोवा अपनी सब गति में धर्मी और अपने सब कामों में करुणामय है।” (भजन १४५:१७) यह हमारे भले के लिए होगा अगर हम खुद से पूछें: ‘जब यहोवा मुझे बुरे हालात से गुज़रने देता है तब क्या मैं उसके धर्मी होने पर शक किए बिना उन हालात को सह लेता हूँ? क्या मुझे यकीन है कि वह जो कुछ होने देता है उससे मेरा और दूसरों का भी भला होगा?’ अगर हम हाँ में जवाब दे सकते हैं, तो हमने इब्राहीम से एक बड़ा सबक सीख लिया है।

यहोवा के चुने हुओं पर भरोसा रखना

११, १२. (क) परमेश्‍वर के सेवकों के लिए और किस पर भरोसा करना ज़रूरी रहा है? (ख) हमें कभी-कभी क्या समस्या हो सकती है?

११ जो लोग यहोवा पर भरोसा रखते हैं वे उन लोगों पर भी भरोसा रखते हैं जिन्हें यहोवा अपना उद्देश्‍य पूरा करने के लिए चुनता है। इस्राएलियों के मामले में इसका मतलब था मूसा पर भरोसा रखना और बाद में उसकी जगह लेनेवाले यहोशू पर। पहली सदी के मसीहियों के लिए इसका मतलब था, प्रेरितों और यरूशलेम की कलीसिया के प्राचीनों पर भरोसा रखना। आज हमारे लिए इसका मतलब है “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” पर भरोसा रखना जिसे हमारे लिए “समय पर . . . [आध्यात्मिक] भोजन” देने के लिए ठहराया गया है साथ ही इस दास वर्ग से लिए गए लोगों से बने शासी निकाय पर भरोसा रखना।—मत्ती २४:४५.

१२ दरअसल, मसीही कलीसिया में अगुवाई करनेवालों पर भरोसा रखना हमारी अपनी भलाई के लिए है। हमसे कहा गया है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”—इब्रानियों १३:१७.

यहोवा के चुनाव पर शक मत कीजिए

१३. अगुवाई के लिए ठहराए गए पुरुषों पर भरोसा रखने का हमारे पास क्या कारण है?

१३ यहोवा के लोगों की अगुवाई करनेवालों पर भरोसा रखने के बारे में सही नज़रिया क्या है। यह समझने में बाइबल हमारी मदद करती है। हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मूसा ने कभी-भी कोई गलती नहीं की थी? क्या प्रेरित हमेशा यीशु की तरह बर्ताव करते थे जैसे यीशु चाहता था?’ जवाब साफ है। यहोवा ने वफादार और समर्पित पुरुषों को अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए चुना है, भले ही वे असिद्ध हैं। हालाँकि आज के प्राचीन भी असिद्ध हैं, फिर भी हमें मानना चाहिए कि ‘परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करने के लिए पवित्र आत्मा ने उन्हें अध्यक्ष ठहराया है।’ इसलिए वे हमारे सहयोग और इज़्ज़त के लायक हैं।—प्रेरितों २०:२८.

१४. अगुवाई करने के लिए हारून या मरियम को चुनने के बजाय यहोवा द्वारा मूसा को चुनने से हमें क्या पता चलता है?

१४ हारून, मूसा से तीन साल बड़ा था लेकिन दोनों ही अपनी बहन मरियम से छोटे थे। (निर्गमन २:३, ४; ७:७) और क्योंकि हारून बात करने में मूसा से तेज़ था, उसे अपने भाई के बदले में बात करने के लिए ठहराया गया। (निर्गमन ६:२९–७:२) फिर भी, इस्राएलियों की अगुवाई करने के लिए यहोवा ने उनमें बड़ी मरियम या बात करने में सबसे तेज़ हारून को नहीं चुना। सभी हालात और वक्‍त की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए यहोवा ने मूसा को चुना था। जब हारून और मरियम थोड़े समय के लिए इस बात को भूल गए तब उन्होंने शिकायत की: “क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं?” मरियम को, जिसने शायद इस शिकायत की शुरूआत की थी, परमेश्‍वर के चुने हुए को बेइज़्ज़त करने के लिए सज़ा दी गई। उसे और हारून को मालूम होना चाहिए था कि परमेश्‍वर का यह चुना हुआ “पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।”—गिनती १२:१-३, ९-१५.

१५, १६. कालेब ने कैसे साबित किया कि उसका भरोसा यहोवा पर था?

१५ जब प्रतिज्ञा किए हुए देश का भेद लेने के लिए १२ भेदिए भेजे गए तब उनमें से १० ने आकर उस देश के बारे में बुरी खबर देकर उसकी निंदा की। उन्होंने इस्राएलियों के दिलों में डर बैठा दिया कि कनान के लोग “बड़े डील डौल के हैं।” यह सुनकर इस्राएली “मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे।” लेकिन सभी भेदियों ने मूसा और यहोवा पर भरोसे की कमी नहीं दिखायी। लिखा है: “कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगों को चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि निःसन्देह हम में ऐसा करने की शक्‍ति है।” (गिनती १३:२, २५-३३; १४:२) यहोशू को भी अपने साथी कालेब की तरह इसका पूरा यकीन था। दोनों ने दिखाया कि उनका भरोसा यहोवा पर था जब उन्होंने कहा: “यदि यहोवा हम से प्रसन्‍न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमें दे देगा। केवल इतना करो कि . . . उस देश के लोगों से [मत] डरो, . . . यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।” (गिनती १४:६-९) इस तरह यहोवा पर भरोसा करने की उन्हें आशीष मिली। उस वक्‍त के सयाने लोगों की पीढ़ी में से सिर्फ कालेब, यहोशू और कुछ लेवियों को ही प्रतिज्ञा किए हुए देश में जाने का सुनहरा मौका मिला।

१६ कुछ साल बाद कालेब ने कहा: “मैं ने अपने परमेश्‍वर यहोवा की पूरी रीति से बात मानी। . . . जब से यहोवा ने मूसा से यह वचन कहा था तब से पैंतालीस वर्ष हो चुके हैं, जिन में इस्राएली जंगल में घूमते फिरते रहे; उन में यहोवा ने अपने कहने के अनुसार मुझे जीवित रखा है; और अब मैं पचासी वर्ष का हूं। जितना बल मूसा के भेजने के दिन मुझ में था उतना बल अभी तक मुझ में है।” (यहोशू १४:६-११) कालेब के सही नज़रिए, उसकी वफादारी और उसकी ताकत के बारे में सोचिए। फिर भी मूसा का वारिस होने के लिए यहोवा ने कालेब को नहीं चुना बल्कि यह जगह यहोशू को दी गई। हम यकीन कर सकते हैं कि यहोवा ने सब कुछ देखकर यह चुनाव किया था और उसका यह चुनाव एकदम सही था।

१७. किन बातों की वज़ह से शायद ऐसा लगे कि पतरस ज़िम्मेदारी सौंपे जाने के लायक नहीं था?

१७ प्रेरित पतरस ने तीन बार अपने मालिक का इनकार किया। उसने तैश में आकर कानून को अपने हाथ में लेने की भी कोशिश की जब उसने महायाजक के दास का कान उड़ा दिया। (मत्ती २६:४७-५५, ६९-७५; यूहन्‍ना १८:१०, ११) कुछ लोग शायद कहेंगे कि पतरस एक कायर और गरम-मिज़ाज इंसान था, और इसलिए कोई भी ज़िम्मेदारी सौंपे जाने के लायक नहीं था। फिर भी किसको राज्य की कुंजियाँ सौंपकर यह ज़िम्मेदारी दी गई कि तीन समूहों के लिए स्वर्गीय बुलावे का रास्ता खोले? पतरस ही को।—प्रेरितों २:१-४१; ८:१४-१७; १०:१-४८.

१८. कौन-सी गलती हमें नहीं करनी चाहिए जिसका ज़िक्र यहूदा करता है?

१८ ये मिसालें दिखाती हैं कि हमें बाहरी रंग-रूप के आधार पर कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए। अगर हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं तो हम उसके चुनाव पर शक नहीं करेंगे। हालाँकि धरती पर उसकी कलीसिया असिद्ध इंसानों से बनी है और वे अचूक होने का दावा भी नहीं करते, फिर भी वह इन्हें ज़बरदस्त तरीके से इस्तेमाल कर रहा है। यीशु के सौतेले भाई, यहूदा ने पहली सदी के मसीहियों को कुछ ऐसे लोगों के बारे में खबरदार किया जो “प्रभुता को तुच्छ जानते [थे]; और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते [थे]।” (यहूदा ८-१०) हम कभी-भी ऐसा न करें।

१९. हमारे पास यहोवा के चुनाव पर शक करने का कोई कारण क्यों नहीं है?

१९ यहोवा कुछ लोगों को खास ज़िम्मेदारियों के लिए इसलिए चुनता है क्योंकि उनके पास वे खास गुण होते हैं जो उसकी मरज़ी के मुताबिक और उस वक्‍त के हिसाब से उसके लोगों की अगुवाई करने के लिए ज़रूरी होते हैं। इस सच्चाई को समझना बहुत ज़रूरी है और परमेश्‍वर के चुनाव पर हमें शक नहीं करना चाहिए। इसके बजाय हमें नम्रता से अपनी उसी जगह पर काम करने में संतुष्ट रहना है जहाँ यहोवा ने हमें रखा है। इस तरह हम दिखाएँगे कि हमारा भरोसा यहोवा पर है।—इफिसियों ४:११-१६; फिलिप्पियों २:३.

यहोवा की धार्मिकता पर भरोसा रखना

२०, २१. मूसा के साथ परमेश्‍वर के बर्ताव से हम क्या सबक सीख सकते हैं?

२० अगर हम यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय कभी-कभी खुद पर ज़्यादा भरोसा रखने लगते हैं तो हमें मूसा से सबक सीखना चाहिए। जब वह ४० साल का था तब वह अपने ही बलबूते पर इस्राएलियों को मिस्रियों की गुलामी से आज़ाद कराने के लिए निकल पड़ा। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा करने में उसका इरादा नेक था मगर इससे इस्राएलियों को न तो आज़ादी मिली और न ही उसे खुद कोई फायदा हुआ। दरअसल इसकी वज़ह से उसे वहाँ से फरार होना पड़ा। चालीस साल तक एक अजनबी देश में सख्त ट्रेनिंग के बाद ही वह उस काम के लायक बना जिसे पहले वह अपने ही बलबूते पर करना चाहता था। इस बार वह भरोसा रख सकता था कि यहोवा उसके साथ है क्योंकि अब काम यहोवा के तरीके से और उसके समय के मुताबिक हो रहा था।—निर्गमन २:११–३:१०.

२१ हममें से हरेक खुद से पूछ सकता है: ‘क्या मैं कभी-कभी यहोवा और कलीसिया में ठहराए गए प्राचीनों पर भरोसा रखने के बजाय खुद पर ज़्यादा भरोसा रखते हुए जल्दबाज़ी करने की या अपने तरीके से काम करने की कोशिश करता हूँ? यह महसूस करने के बजाय कि मुझे फलाँ-फलाँ ज़िम्मेदारी नहीं दी गई, क्या मैं ट्रेनिंग के इस गुज़रते वक्‍त से सबक सीख रहा हूँ?’ कहने का मतलब यह है कि क्या हमने मूसा से अहम सबक सीखा है?

२२. एक बड़ा अधिकार खोने के बावजूद मूसा ने यहोवा के बारे में कैसा महसूस किया?

२२ इसके अलावा हम मूसा से एक और सबक सीख सकते हैं। गिनती २०:७-१३ हमें उसकी एक गलती के बारे में बताता है जिसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस्राएलियों को प्रतिज्ञा किए हुए देश में ले जाने का अधिकार उससे ले लिया गया। तब क्या उसने यह कहा कि यहोवा अन्याय कर रहा है? क्या वह एक कोने में बैठकर टसुए बहाने लगा कि परमेश्‍वर उसके साथ कितना बुरा बर्ताव कर रहा है? क्या मूसा का यहोवा की धार्मिकता से भरोसा उठ गया? हम इसका जवाब खुद मूसा के शब्दों में पा सकते हैं जो उसने अपनी मौत से पहले इस्राएलियों से कहे थे। यहोवा के बारे में मूसा ने कहा: “उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्‍वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण ३२:४) इसका मतलब है कि मरते दम तक मूसा का विश्‍वास यहोवा पर बना रहा। हमारे बारे में क्या कहा जा सकता है? क्या हम भी यहोवा और उसकी धार्मिकता पर अपना भरोसा पक्का करने के लिए कदम उठा रहे हैं? हम यह कैसे कर सकते हैं? आइए देखें।

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ इस्राएलियों के पास यहोवा पर भरोसा रखने के क्या कारण थे?

◻ भरोसे के बारे में इब्राहीम से क्या सबक सीखा जा सकता है?

◻ हमें यहोवा के चुनाव पर शक क्यों नहीं करना चाहिए?

[पेज 13 पर तसवीर]

यहोवा पर भरोसा रखने का मतलब है कलीसिया में अगुवाई करनेवालों की भी इज़्ज़त करना

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