बेतेल—लाभ और हानि का शहर
कुछ शहरों में कुछ ऐसी वारदातें होती हैं जिससे कि उनका नाम या तो सरनाम हो जाता है या बदनाम। बहरहाल, बेतेल इस मामले में अनोखा है क्योंकि यह अपनी अच्छाई और बुराई दोनों के लिए जाना जाता है। कुलपिता याकूब ने इस शहर का नाम बेतेल रखा जिसका अर्थ है “परमेश्वर का भवन।” परंतु हज़ार वर्षों बाद भविष्यवक्ता होशे ने उसे “हानि का भवन” कहा। यह शहर अच्छे से बुरा कैसे हो गया? और हम उसके इतिहास से क्या सीख सकते हैं?
इब्राहीम के समय से ही, सा.यु.पू. १९४३ के दौरान परमेश्वर के लोगों का संबंध बेतेल से जुड़ा। उस समय वह शहर अपने पुराने कनानी नाम लूज से जाना जाता था। वह यरूशलेम के उत्तर में करीब १७ किलोमीटर दूर पहाड़ी देश में स्थित था। ज़रा सोचिए कि इब्राहीम और उसका भतीजा लूत बेतेल के आस-पास के सबसे ऊँचे पहाड़ पर खड़े होकर नीचे यरदन घाटी की उपजाऊ ज़मीन को निहार रहे हैं। इब्राहीम प्यार से लूत को अपने-अपने पशुओं के लिए चराई के मैदानों की समस्या के बारे में समझाता है: “मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए, तो मैं बाईं ओर जाऊंगा।”—उत्पत्ति १३:३-११.
इब्राहीम ने दावा नहीं किया कि चुनाव करने का पहला हक उसका है। इसके बजाय उसने उम्र में छोटे अपने भतीजे को चुनाव करने का मौका दिया। हम इब्राहीम की इस बढ़िया मनोवृत्ति की नकल कर सकते हैं। हम भी शांति से बात करने की पहल करके और निःस्वार्थ रूप से कार्य करके झगड़े मिटा सकते हैं।—रोमियों १२:१८.
सालों बाद जब इब्राहीम के पोते याकूब ने लूज में डेरा डाला तो उसने एक अनोखा स्वप्न देखा। उसने देखा, “एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है: और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। और यहोवा उसके ऊपर खड़ा [है]।” (उत्पत्ति २८:११-१९; यूहन्ना १:५१ से तुलना कीजिए।) स्वप्न एक खास संदेशा दे रहा था। याकूब ने जो स्वर्गदूत देखे वे वंश के संबंध में किए गए परमेश्वर के वादे की पूर्ति में उसकी सेवा-टहल करते। सीढ़ियों के ऊपर यहोवा का उच्च स्थान पर खड़े होने का मतलब है कि वह इस काम में स्वर्गदूतों को निर्देशित करता।
इस ईश्वरीय समर्थन से याकूब बहुत ही भावप्रेरक हो गया। और स्वप्न से जागने के बाद उसने उस जगह का नाम बेतेल रखा जिसका अर्थ है “परमेश्वर का भवन।” फिर यहोवा से मन्नत माँगी कि “जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा।”a (उत्पत्ति २८:२०-२२) यह जानकर कि जो भी उसके पास था सब परमेश्वर से ही आया है इसलिए उसने उसका एक बड़ा हिस्सा एहसानमंदी के सबूत के रूप में देना चाहा।
स्वर्गदूत आज मसीहियों की भी सेवा-टहल करते हैं। (भजन ९१:११; इब्रानियों १:१४) तो मसीही भी अपनी सारी आशीषों के लिए उसी तरह एहसानमंदी दिखा सकते हैं ताकि ‘परमेश्वर का बहुत धन्यवाद हो।’—२ कुरिन्थियों ९:११, १२.
समय के गुज़रते याकूब का वंश एक बड़ी जाति बन गया। कनान की लड़ाई में यहोशू ने शुरूआत ही में बेतेल के अन्यजाति के राजाओं को हराया था। (यहोशू १२:१६) न्यायियों के समय में दबोरा नामक नबिया, बेतेल के करीब रहती थी और यहोवा का वचन लोगों को सुनाती थी। शमूएल भी बेतेल जाया करता था और इस्राएली जाति का न्याय किया करता था।—न्यायियों ४:४, ५; १ शमूएल ७:१५, १६.
बेतेल धर्मत्याग का अड्डा बन जाता है
लेकिन सा.यु.पू. ९९७ में राज्य के बँटवारे के बाद से बेतेल का रिश्ता सच्ची उपासना से पूरी तरह खत्म हो गया। राजा यारोबाम बेतेल में बछड़े की उपासना शुरू करवाता है। उसने कहा कि यह बछड़ा यहोवा को चित्रित करता है। (१ राजा १२:२५-२९) इसीलिए होशे ने बेतेल के विनाश की भविष्यवाणी करते वक्त उसे “बेतावेन” कहकर पुकारा जिसका अर्थ है “हानि का भवन।”—होशे १०:५, ८.
हालाँकि बेतेल आध्यात्मिक हानि का अड्डा बन गया था, उससे जुड़ी घटनाएँ फिर भी महत्त्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। (रोमियों १५:४) एक ऐसा ही सबक एक बेनाम भविष्यवक्ता से संबंधित है जिसे यहूदा से बेतेल की वेदियों और उसके याजकों के विनाश की भविष्यवाणी करने के लिए भेजा गया था। यहोवा ने उसे बिना खाए-पीए कुछ ही किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर यहूदा लौटने के लिए भी कहा था। इस भविष्यवक्ता ने इस्राएल के राजा यारोबाम के सामने बेधड़क होकर बेतेल की वेदी के विनाश की भविष्यवाणी की। लेकिन बाद में, बेतेल में बूढ़े नबी के घर खाना खाकर उसने परमेश्वर की अवज्ञा की। क्यों? बूढ़े नबी ने झूठा दावा किया कि यहोवा के दूत ने उसे आज्ञा दी है कि वह अपने संगी भविष्यवक्ता को पहुनाई दिखाए। अवज्ञा के कारण यहूदा के इस भविष्यवक्ता की असमय ही मृत्यु हो गई।—१ राजा १३:१-२५.
अगर एक संगी विश्वासी हमें कोई ऐसा शंकायुक्त काम करने के लिए कहता है तो हमें क्या करना चाहिए? याद रखिए कि नेक इरादे से दी गई सलाह भी अगर गलत है, तो नुकसानदायक हो सकती है। (मत्ती १६:२१-२३ से तुलना कीजिए।) हम उस बेनाम भविष्यवक्ता की तरह भयानक गलती करने से बच सकते हैं अगर हम यहोवा से प्रार्थना करके और उसके वचन का अध्ययन करके उसका मार्गदर्शन लें।—नीतिवचन १९:२१; १ यूहन्ना ४:१.
कुछ डेढ़ सौ साल बाद भविष्यवक्ता आमोस भी बेतेल के विरुद्ध भविष्यवाणी करने के लिए उत्तर की ओर चल पड़ा। आमोस ने दृढ़तापूर्वक अपने दुश्मनों की निंदा की, जिनमें याजक अमस्याह भी था। उसने आमोस से कहा था कि “यहां से निकलकर यहूदा देश में भाग जा।” लेकिन आमोस ने तो निडरता से याजक के घराने पर आनेवाली विपत्ति के बारे में कह दिया। (आमोस ५:४-६; ७:१०-१७) उसका उदाहरण हमें याद दिलाता है कि यहोवा अपने नम्र सेवकों को साहसी बना सकता है।—१ कुरिन्थियों १:२६, २७.
आखिरकार वफादार राजा योशिय्याह ने ‘बेतेल में जो वेदी थी, उसे ढा दिया, और ऊंचे स्थान को फूंककर बुकनी कर दिया और अशेरा को फूंक दिया।’ (२ राजा २३:१५, १६) आज प्राचीन भी परमेश्वर के निर्देशनों को जोश के साथ लागू करने और कलीसिया को शुद्ध रखने में अगुवाई करने के द्वारा राजा योशिय्याह के उत्तम उदाहरण की नकल कर सकते हैं।
बेतेल में घटी ये वारदातें एकदम स्पष्ट कर देती हैं कि धार्मिकता और दुष्टता का तथा यहोवा की आज्ञा मानने और न मानने का क्या नतीजा हो सकता है। बरसों पहले मूसा ने इस्राएल जाति के सामने यह चुनाव रखा था: “आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।” (व्यवस्थाविवरण ३०:१५, १६) बेतेल के इतिहास पर मनन करने से हम हमेशा “परमेश्वर के भवन” में रहने के लिए प्रोत्साहित होंगे न कि “हानि के भवन” में।
[फुटनोट]
a याकूब और इब्राहीम दोनों ही ने स्वेच्छा से दशमांश दिया।
[पेज 23 पर तसवीर]
बेतेल के खँडहर, जहाँ यारोबाम ने बछड़े की उपासना शुरू करवाई थी