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w98 9/15 पेज 24-27

अफ्रीकी रिवाज़ में वधू-मूल्य

बाइबल के ज़माने की तरह आज भी कुछ-कुछ संस्कृतियों में यह ज़रूरी माना जाता है कि स्त्री से विवाह करने के लिए पुरुष वधू-मूल्य दे। याक़ूब ने अपने होनवाले ससुरजी, लाबान से कहा, “मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिये सात बरस तेरी सेवा करूंगा।” (उत्पत्ति २९:१८) राहेल से मुहब्बत की वज़ह से याक़ूब ने ऊँची कीमत पेश की—सात साल की मज़दूरी! लाबान को यह मंज़ूर था लेकिन उसने याक़ूब को चकमा देकर उसकी शादी पहले अपनी बड़ी बेटी लिआ से करवा दी। उसके बाद लाबान का याक़ूब के साथ व्यवहार हमेशा धूर्तपूर्ण ही था। (उत्पत्ति ३१:४१) लाबान ने भौतिक लाभ को बहुत अहमियत दी जिसकी वज़ह से उसकी बेटियों की नज़रों में उसके लिए जो आदर था, उसने उसे खो दिया। उन दोनों ने पूछा, “क्या हम उसकी दृष्टि में पराये न ठहरीं? देख, उस ने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है।”—उत्पत्ति ३१:१५.

अफसोस की बात है कि आज की भौतिकवादी दुनिया में अनेक माता-पिता लाबान की तरह हैं। और कुछ तो इससे भी बदतर हैं। अफ्रीका के एक अखबार के मुताबिक, कुछ विवाहों को तो “लालची पिता बस लाभ पाने की खातिर” तय करते हैं। एक और कारण है आर्थिक भार जिसकी वज़ह से कुछ माता-पिता अपनी बेटियों को आर्थिक बोझ हलका करने का ज़रिया समझने के लिए प्रलोभित होते हैं।a

कुछ माता-पिता अपनी बेटियों का विवाह करने में देर करते हैं क्योंकि वे सबसे ऊँची बोली लगानेवाले के इंतज़ार में रहते हैं। इससे गंभीर समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं। पूर्वी अफ्रीका के अखबार के एक रिपोर्टर ने लिखा: “युवा लोग, ज़िद्दी ससुरालवालों द्वारा बहुत ज़्यादा माँग किए गए दहेज के कारण साथ मिलकर भाग जाने का चुनाव करते हैं।” बहुत ज़्यादा वधू-मूल्य की माँग ने लैंगिक अनैतिकता की समस्या को भी जन्म दिया है। और तो और, कुछ युवक पत्नी को तो मोल ही लेते हैं लेकिन फिर भारी कर्ज़ तले दब जाते हैं। “माता-पिताओं को समझदारी से काम लेना चाहिए,” दक्षिण अफ्रीका के एक समाज सेवक ने आग्रह किया। “उन्हें बड़ी रकम की माँग नहीं करनी चाहिए। नव-दंपति को अपनी जीविका चलानी है . . . सो युवक का दिवालिया क्यों निकालें?”

वधू-मूल्य का लेन-देन तय करते वक्‍त, मसीही माता-पिता समझदारी की मिसाल कैसे रख सकते हैं? यह एक गंभीर मामला है, क्योंकि बाइबल आदेश देती है: “तुम्हारी कोमलता [समझदारी] सब मनुष्यों पर प्रगट हो।”—फिलिप्पियों ४:५.

उचित बाइबल सिद्धांत

मसीही माता-पिता वधू-मूल्य लेने का फैसला करते हैं या नहीं, यह एक निजी फैसला है। यदि वे लेना चाहते हैं, तो ऐसे समझौते बाइबल सिद्धांतों के सामंजस्य में किए जाने चाहिए। परमेश्‍वर का वचन कहता है, “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो।” (इब्रानियों १३:५) यदि यह सिद्धांत विवाह में तय होनेवाले समझौतों में नहीं दिखता, तो एक मसीही माता या पिता शायद यह दिखा रहा है कि वह एक अच्छा आदर्श नहीं है। मसीही कलीसिया में ज़िम्मेदार पदवाले लोगों को “नम्र,” अर्थात्‌ समझदार होना चाहिए, न कि ‘धन के लोभी’ या “नीच कमाई के लोभी।” (१ तीमुथियुस ३:३, ८, NHT) जो मसीही लालच से बहुत ही ज़्यादा वधू-मूल्य वसूल करता है और पछतावा नहीं दिखाता है, उसे कलीसिया से बहिष्कृत भी किया जा सकता है।—१ कुरिन्थियों ५:११, १३; ६:९, १०.

लालच की वज़ह से उठी समस्याओं के कारण, कुछ सरकारों ने अपने नागरिकों को शोषित होने से बचाने के लिए नियम निकाले हैं। उदाहरण के लिए भारत में, दहेज के पैसे लेना या दहेज लेने के लिए किसी भी समझौते को गैर-कानूनी माना जाता है और ऐसा करने पर सज़ा मिल सकती है। भारत में रहनेवाले मसीही इस कानून का पालन करते हैं। पश्‍चिम अफ्रीका का एक देश, टोगो का कानून कहता है कि वधू-मूल्य “माल व नकद या दोनों ही तरह से दिया जा सकता है।” कानून आगे कहता है: “किसी भी स्थिति में कुल राशी को कुल मिलाकर १०,००० F CFA (८०० रु.) से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।” बार-बार बाइबल मसीहियों को आदेश देती है कि वे कानून का पालन करनेवाले नागरिक हों। (तीतुस ३:१) यदि सरकार ऐसा नियम मानने के लिए ज़बरदस्ती नहीं भी करती हो, तौभी एक सच्चा मसीही आज्ञा मानना पसंद करेगा। इस प्रकार वह परमेश्‍वर के सामने एक साफ विवेक बनाए रखेगा और दूसरों के लिए ठोकर का कारण नहीं बनेगा।—रोमियों १३:१, ५; १ कुरिन्थियों १०:३२, ३३.

कुछ-कुछ संस्कृतियों में, जिस तरीके से वधू-मूल्य तय किया जाता है, वह एक और महत्त्वपूर्ण सिद्धांत से टकरा सकता है। बाइबल के मुताबिक, अपने परिवार के मामलों के लिए पिता ज़िम्मेदार है। (१ कुरिन्थियों ११:३; कुलुस्सियों ३:१८, २०) इसीलिए, कलीसिया में ज़िम्मेदारी के पद पर रहनेवाले लोगों को ऐसे पुरुष होना चाहिए जो ‘लड़केबालों और अपने घरों का अच्छा प्रबन्ध करना जानता हो।’ —१ तीमुथियुस ३:१२.

बहरहाल, समाज में यह शायद आम बात हो कि विवाह की महत्त्वपूर्ण बातों के फैसले परिवार के मुखिया के रिश्‍तेदारों पर छोड़े जाएँ। और ये रिश्‍तेदार वधू-मूल्य में हिस्सा पाने की माँग करते हैं। ऐसी स्थिति से मसीही परिवारों की परीक्षा होती है। दस्तूर के नाम पर, कुछ परिवारों के मुखियाओं ने गैर-मसीही रिश्‍तेदारों को बहुत ज़्यादा वधू-मूल्य वसूल करने दिया है। इसका परिणाम कभी-कभी ऐसा हुआ है कि मसीही लड़की का विवाह किसी गैर-विश्‍वासी के साथ हो गया। यह इस सलाह के बिलकुल उलट है कि मसीहियों को “केवल प्रभु में” विवाह करना चाहिए। (१ कुरिन्थियों ७:३९) कुछ परिवार के मुखिया गैर-विश्‍वासी रिश्‍तेदारों को ऐसे फैसले करने देते हैं जो उनके बच्चों की आध्यात्मिक खैरियत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। परिवार के ऐसे मुखिये के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह “अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करता” है।—१ तीमुथियुस ३:४.

परमेश्‍वर का भय माननेवाले कुलपिता इब्राहीम के मामले की तरह, तब क्या जब एक मसीही पिता अपने किसी बच्चे की विवाह की बातें तय करने में सीधे-सीधे हिस्सा नहीं लेता है? (उत्पत्ति २४:२-४) यदि किसी और को इसके लिए नियुक्‍त किया जाता है, तब मसीही पिता को यह निश्‍चित कर लेना चाहिए कि समझौता करनेवाला व्यक्‍ति उन निर्देशों का पालन करता है जो बाइबल के उपयुक्‍त सिद्धांतों के अनुसार हैं। और तो और, वधू-मूल्य तय करने के लिए कोई भी कदम उठाने से पहले, मसीही माता-पिताओं को मामले पर ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए और अनुचित दस्तूरों या माँगों की बातों में नहीं आना चाहिए।—नीतिवचन २२:३.

गैर-मसीही आदतों से दूर रहना

बाइबल अहंकार करने की और “जीविका का घमण्ड” करने की निंदा करती है। (१ यूहन्‍ना २:१६; नीतिवचन २१:४) फिर भी, मसीही कलीसिया के साथ संगति करनेवाले कुछ-कुछ लोगों ने अपने विवाह के समझौतों में इन गुणों को दिखाया है। कुछ लोग बहुत ज़्यादा वधू-मूल्य की देय-राशी या प्राप्त की गयी राशी का ढिंढ़ोरा पीटने के द्वारा दुनिया की नकल करते हैं। दूसरी तरफ, वॉच टावर सोसाइटी के अफ्रीका के शाखा दफ्तर ने रिपोर्ट दी: “जब ससुरालवाले अपनी माँगें पेश करने में समझदारी दिखाते हैं, तब कुछ पति इसके प्रति आदर नहीं दिखाते और ऐसे पति अपनी-अपनी पत्नियों को ‘बकरी’ के दाम में खरीदा हुआ समझकर व्यवहार करते हैं।”

कुछ मसीही बहुत ज़्यादा वधू-मूल्य पाने की लालच में आ जाते हैं और इसका अंजाम दुःखद ही रहा है। बतौर नमूना, इस रिपोर्ट पर ध्यान दीजिए जो वॉच टावर सोसाइटी के दूसरे शाखा दफ्तर से मिला है: “अविवाहित भाइयों या बहनों के लिए विवाह करना प्रायः मुश्‍किल हो जाता है। सो इसका अंजाम है बढ़ती संख्या में लैंगिक अनैतिकता के कारण बहिष्करण। कुछ भाई खदानों में सोने या हीरे की तलाश में जाते हैं ताकि वे इन्हें बेचकर विवाह करने के लिए पर्याप्त साधन इकट्ठा कर सकें। ऐसा करने में उन्हें एकाध या उससे भी ज़्यादा साल लग सकता है जिसके दौरान वे भाइयों व कलीसिया के साथ संगति नहीं करने के कारण सामान्यतः आध्यात्मिक तौर पर कमज़ोर पड़ जाते हैं।”

ऐसे दुःखद अंजामों से बचने के लिए, मसीही माता-पिताओं को कलीसिया के प्रौढ़ जनों के नक्शे-कदम पर चलना चाहिए। हालाँकि प्रेरित पौलुस एक जनक नहीं था, वह संगी विश्‍वासियों के साथ समझदारी से पेश आता था। वह इस बात पर ध्यान देता था कि वह कहीं किसी पर भारी बोझ न डाल दे। (प्रेरितों २०:३३) यकीनन, मसीही माता-पिताओं को वधू-मूल्य के समझौते तय करते वक्‍त पौलुस के निःस्वार्थ उदाहरण पर विचार करना चाहिए। दरअसल, पौलुस को यह लिखने के लिए ईश्‍वरीय रूप से प्रेरित किया गया: “हे भाइयो, तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो, और उन्हें पहिचान रखो, जो इस रीति पर चलते हैं जिस का उदाहरण तुम हम में पाते हो।”—फिलिप्पियों ३:१७.

समझदारी दिखाने की मिसालें

जब विवाह का लेन-देन तय करने की बात आती है, तब अनेक मसीही माता-पिताओं ने समझदारी दिखाने में बढ़िया मिसाल रखी है। जोसॆफ व उसकी पत्नी, मे के किस्से पर गौर फरमाइए।b ये दोनों पूर्ण-समय के सुसमाचार प्रचारक के तौर पर सेवा करते हैं। वे सॉलोमन द्वीप समूह के एक ऐसे द्वीप पर रहते हैं जहाँ वधू-मूल्य के समझौते तय करने में कभी-कभी समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। ऐसी दिक्कतों से दूर रहने के लिए, जोसॆफ व मे ने पास के द्वीप पर अपनी बेटी हैलॆन का विवाह करने का प्रबंध किया। अपनी दूसरी बेटी एस्तॆर का भी विवाह उन्होंने इसी प्रकार रचाया। जोसॆफ इस बात से भी राज़ी हुआ कि उसका दामाद पीटर, उचित वधू-मूल्य से भी काफी कम रकम दे। पूछने पर कि उसने ऐसा क्यों किया, जोसॆफ ने समझाया: “मैं नहीं चाहता था कि मेरे दामाद पर कोई बोझ पड़े क्योंकि वह एक पायनियर है।”

अफ्रीका के अनेक यहोवा के साक्षियों ने भी समझदारी दिखाने में बढ़िया मिसाल रखी है। वहाँ के कुछ देशों में परिवार के साथ उनके कुछ रिश्‍तेदार भी रहते हैं। तब प्रायः ये रिश्‍तेदार असल वधू-मूल्य की बातें तय किए जाने से पहले ही काफी बड़ी रकम पाने की अपेक्षा करते हैं। और दुल्हन पाने के लिए, दुल्हे से यह वादा करने की अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी मँगेतर के छोटे भाई का भावी वधू-मूल्य भी देगा।

इसके उलट, कोसी व उसकी पत्नी, मारा की मिसाल पर गौर फरमाइए। उनकी बेटी, बेबोको ने हाल ही में यहोवा के साक्षियों के एक सफरी ओवरसियर से विवाह किया। विवाह से पहले, रिश्‍तेदारों ने वधू-मूल्य में से बड़ा हिस्सा पाने के लिए माता-पिता पर बहुत दबाव डाला। लेकिन माता-पिता टस-से-मस नहीं हुए और ऐसी माँगों को नहीं माने। इसके बजाय, उन्होंने सीधे-सीधे अपने भावी दामाद से बातें तय कीं, और अपनी बेटी के लिए बहुत ही कम वधू-मूल्य माँगा। रकम मिलने पर उन्होंने आधी रकम युवा दंपति को वापस दे दी ताकि वे अपने विवाह की तैयारी में इसे इस्तेमाल करें।

उसी देश की एक और मिसाल है युवा साक्षी ईटोंगो। पहले पहल, उसके परिवार ने कम वधू-मूल्य का ही निवेदन किया। लेकिन रिश्‍तेदारों ने राशी बढ़ाने की माँग की। माहौल तनावपूर्ण था और ऐसा लगा कि रिश्‍तेदारों की दाल गल ही जाएगी। हालाँकि ईटोंगो शर्मीली है, उसने खड़े होकर आदरपूर्वक कहा कि वह सांग्जे नाम के उत्साही मसीही से विवाह करने का संकल्प कर चुकी है और वह भी उन शर्तों पर जो पहले तय की जा चुकी थीं। इसके बाद उसने साहसपूर्वक कहा, “म्बी के” (मतलब, “मामला तय हो चुका”) और बैठ गयी। उसकी मसीही माँ, साम्बेको ने उसका साथ दिया। आगे कुछ भी चर्चा नहीं हुई और जोड़े ने पहले तय की हुई योजना के मुताबिक विवाह किया।

ऐसी कुछ बातें होती हैं जो प्रेममय मसीही माता-पिताओं के लिए वधू-मूल्य से मिलनेवाले निजी लाभ से भी कहीं बढ़कर होती हैं। कैमरून में रहनेवाला एक पति कहता है: “मेरी सास मुझसे बार-बार यही कहती है कि मैं अपनी पत्नी के लिए जो भी वधू-मूल्य देना चाहता था, उसे मैं उसकी बेटी की ज़रूरतें पूरी करने में इस्तेमाल करूँ।” प्रेममय माता-पिता अपने बच्चों की आध्यात्मिक खैरियत के बारे में भी चिंतित रहते हैं। मसलन, फेराई व रूडो को लीजिए जो ज़िम्बाबवे में रहते हैं और परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार के प्रचार में काफी समय बिताते हैं। हालाँकि वे नौकरी करनेवाले लोग नहीं है फिर भी उन्होंने अपनी दो बेटियों का विवाह, आम तौर पर माँगे जानेवाले वधू-मूल्य से काफी कम राशी में कराया। उनका कारण? वे चाहते थे कि उनकी बेटियों को, यहोवा से सचमुच प्रेम करनेवाले पुरुषों से विवाह करके लाभ मिले। “जो बात हमारे लिए सबसे अहम थी, वह है हमारी बेटियों व दामादों की आध्यात्मिकता,” उन्होंने कहा। कितनी बढ़िया बात! ऐसे ससुरालवाले काबिल-ए-तारीफ हैं जो अपने विवाहित बच्चों की आध्यात्मिक व भौतिक भलाई के लिए प्रेममय परवाह दिखाते हैं।

समझदारी दिखाने के लाभ

सॉलोमन द्वीप समूह के रहनेवाले जोसॆफ व मे को, जिन्होंने अपनी बेटियों का विवाह उदारता व सावधानी बरतते हुए किया, ऐसा करने के लिए आशीष मिली। अतः, उनके दामाद कर्ज़ के बोझ तले नहीं दबे। इसके बजाय, दोनों दंपति राज्य संदेश को फैलाने के पूर्ण-समय कार्य में कई साल बिता पाए। बीती बातों पर विचार करने पर जोसॆफ कहता है: “जो भी फैसले मैंने व मेरे परिवार ने किए हैं उससे हमें भरपूर आशीष मिली है। सच है, ऐसे लोगों से कभी-कभी काफी दबाव भी आया जो समझते नहीं हैं, लेकिन मेरा विवेक साफ है और मुझे संतुष्टि मिलती है जब मैं देखता हूँ कि मेरे बच्चे यहोवा की सेवा में व्यस्त व मज़बूत हैं। वे तो खुश हैं ही, मेरी पत्नी व मैं तो और भी ज़्यादा खुश हैं।”

एक और लाभ है कि ससुरालवालों के बीच में रिश्‍ता मधुर होता है। बतौर नमूना, ज़ोंडाई व सिबूसीसो अपनी-अपनी पत्नियों के साथ वॉच टावर सोसाइटी के ज़िम्बाबवे शाखा में स्वयंसेवा का काम करते हैं। इन दोनों की पत्नियाँ सगी बहने हैं। उनके ससुर, डाकाराई पूर्ण-समय का सुसमाचार प्रचारक है और नौकरी नहीं करता। वधू-मूल्य तय करते वक्‍त, इसने कहा कि वे जो भी दे सकते हैं, वह उसे स्वीकार करेगा। ज़ोंडाई व सिबूसीसो कहते हैं, “हम अपने ससुरजी को बहुत प्यार करते हैं, और यदि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत आन पड़े तो हम अपना सब कुछ एक करके उसकी मदद करेंगे।”

जी हाँ, वधू-मूल्य तय करने में समझदारी दिखाने से परिवार की खुशी बढ़ती है। मसलन, इससे नवविवाहित कर्ज़ के बोझ तले नहीं दबेंगे, जिससे उनके लिए वैवाहिक जीवन में ऐडजस्ट होना ज़्यादा आसान हो जाता है। इसकी वज़ह से अनेक युवा दंपति आध्यात्मिक कार्यों में लगे रह सके हैं, जैसे कि प्रचार करने व चेले बनाने के अति ज़रूरी कार्य में पूर्ण-समय की सेवा। बदले में, इससे विवाह के प्रेममय आरंभक, यहोवा परमेश्‍वर की महिमा होती है।—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०.

[फुटनोट]

a कुछ संस्कृतियों में स्थिति इसके बिलकुल उलट है। ससुरालवाले दुल्हन के माता-पिता से दहेज की उम्मीद लगाए बैठते हैं।

b इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 27 पर बक्स]

उन्होंने वधू-मूल्य लौटा दिया

कुछ समाजों में, यदि वधू-मूल्य कम होता है तो दुल्हन व उसके माता-पिता को तुच्छ समझा जाता है। इसी वज़ह से, बहुत ज़्यादा दाम तय करने के कभी-कभी कारण होते हैं अहंकार व परिवार की हैसियत का दिखावा करना। लागोस, नाइजीरिया का एक परिवार इससे बिलकुल भिन्‍न है। उनका दामाद, डेले समझाता है:

“मेरी पत्नी के परिवार ने मुझे रिवाज़ी वधू-मूल्य के दस्तूरों के कई खर्चों से छुटकारा दिलाया जैसे की कई दामी कपड़ों की खरीदारी। जब मेरे परिवार ने वधू-मूल्य उनको पेश किया, तब उनके प्रवक्‍ता ने पूछा: ‘आप इस लड़की को पत्नी के तौर पर या बेटी के तौर पर लेना चाहते हैं?’ एकसुर में मेरे परिवार ने जवाब दिया: ‘हम उसे अपनी बेटी के तौर पर लेना चाहते है।’ इसके बाद, हमें उसी लिफाफे में वधू-मूल्य लौटा दिया गया।

“जिस तरह मेरे ससुरालवालों ने हमारी शादी के दस्तूरों को निपटाया, उसकी मैं आज तक कदर करता हूँ। इससे मेरे दिल में उनके लिए सम्मान बढ़ गया। उनके बढ़िया आध्यात्मिक नज़रिए की वज़ह से मैं उन्हें अपना घनिष्ठ रिश्‍तेदार मानता हूँ। मेरी पत्नी के प्रति मेरे नज़रिए पर भी इसका काफी प्रभाव पड़ा। जिस तरह से मेरी पत्नी के परिवार ने मेरे साथ व्यवहार किया, उसकी वज़ह से मेरे दिल में मेरी पत्नी के लिए गहरी कदर पैदा हुई। जब भी हमारे बीच कोई नोक-झोंक हो जाती है, तो मैं उसे बढ़कर कोई समस्या बनने नहीं देता हूँ। यह याद आते ही कि वह किस तरह के परिवार से आयी है, कोई भी मतभेद फीका पड़ जाता है।

“हम दोनों का परिवार दोस्ती के मज़बूत बंधन में बंध गया है। हमारे विवाह के दो साल बीत चुके हैं। लेकिन अब भी, मेरे पिताजी मेरी पत्नी के परिवार को तोहफे या खाने-पीने की चीज़ें भेजते रहते हैं।”

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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