मैंने वो पाया जो सोने से भी कीमती है
चार्ल्स मिल्टन की ज़बानी
एक दिन पिताजी ने कहा: “क्यों न हम चार्ली को अमरीका भेज दें जहाँ पैसे पेड़ों पर उगते हैं? खुद भी कुछ कमा लेगा, हमें भी भेज देगा!”
दरअसल, लोगों का तो यह सोचना था कि अमरीका में सड़कें भी सोने की होती हैं। उन दिनों पूर्वी यूरोप में ज़िंदगी मौत से भी बदतर थी। मेरे माँ-बाप के पास छोटा-सा खेत था और कुछ गायें और मुर्गियाँ थीं। हमारे घर में न तो बिजली थी, न ही नल। हमारे यहाँ तो क्या, आस-पड़ोस में किसी के यहाँ भी नहीं था।
मेरा जन्म करीब १०६ साल पहले, होसोचेक में १ जनवरी १८९३ को हुआ। हमारा गाँव गलीश में था, यह प्रांत उस वक्त आस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य का एक भाग था। अब होसोचेक पूर्वी पोलैंड में है, स्लोवाकिया और यूक्रेन के करीब। वहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती थी और जमकर बर्फ गिरती थी। जब मैं करीब सात साल का था, तब मुझे कुदाल लेकर कुछ आधा किलोमीटर नदी तक जाना पड़ता था और पानी निकालने के लिए जमी हुई बर्फ काटनी पड़ती थी। फिर पानी लेकर घर आता था जिससे माँ खाना बनाती और साफ-सफाई करती थी। वह कपड़े धोने नदी पर जाती थी और बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़ों पर कपड़े रगड़ती थी।
होसोचेक में स्कूल नहीं था फिर भी मुझे पोलिश, यूक्रेनियन, रूसी और स्लोवाक भाषा बोलनी आती थीं। हमारी परवरिश ग्रीक ऑर्थोडॉक्स परिवार में हुई थी और मैं एक ऑलटर बॉय था। लेकिन उस छोटी-सी उम्र में भी, मैं पादरियों से खिसिया गया क्योंकि वे शुक्रवार के दिन हमें तो मीट खाने से मना करते थे पर खुद खाते थे।
हमारे कुछ दोस्त अमरीका से पैसे कमाकर लौटे ताकि अपने घर की मरम्मत करा सकें और खेती करने का सामान खरीद सकें। और यही कारण था कि मेरे पिताजी मुझे अमरीका भेजना चाहते थे। हमारे कुछ पड़ोसी एक बार फिर वहाँ जाने की योजना बना रहे थे और पिताजी भी मुझे उन्हीं के साथ भेजना चाहते थे। यह १९०७ की बात है जब में १४ साल का था।
मैं अमरीका में खो गया
मैं जहाज़ पर सवार हो गया और दो हफ्ते में ही हमने अटलांटिक पार कर लिया। उस वक्त अगर आपके पास २० डालर न हों, तो आपको आपके देश लौटा दिया जाता था। मेरे पास तो चाँदी के २० डालर थे, इसलिए लाखों लोगों के साथ मैं भी एलस् द्वीप पार कर अमरीका के द्वार न्यू यॉर्क तक पहुँच गया। बेशक, वहाँ पैसे पेड़ों पर नहीं उगते थे और ना ही सड़कें सोने की बनी थीं। अलबत्ता, कई सड़कें तो बनी ही नहीं थीं!
हमने पेन्सिलवेनिया के शहर जॉनस्टाऊन के लिए ट्रेन पकड़ी। मेरे साथवाला आदमी पहले भी वहाँ जा चुका था, इसलिए ऐसा बोर्डिंग हाउस जानता था जहाँ मैं रह सकता था। बात यह थी कि मुझे अपनी बड़ी बहन की तलाश थी जो पेन्सिलवेनिया, जरोम में रहती थी और मैंने यह बाद में जाना कि यह जगह बस २५ किलोमीटर दूर थी। लेकिन मैं जरोम के बजाय यॉरोम कहा करता था क्योंकि हमारी भाषा में “ज” को “य” बोलते थे। और यॉरोम तो किसी ने सुना नहीं था, सो मैं एक अनजाने देश में था, न तो मुझे अंग्रेज़ी बोलनी आती थी और न ही मेरे पास बहुत पैसे थे।
मेरी हर सुबह नौकरी ढूँढ़ने में निकल जाती। रोज़गार दफ्तर के बाहर सैकड़ों लोगों की कतार लगी रहती थी, लेकिन बस दो या तीन को ही मज़दूरी पर लिया जाता था। इसलिए हर दिन मुझे बोर्डिंग हाउस लौटना पड़ता था और फिर मैं कुछ किताबों की मदद से अंग्रेज़ी पढ़ना सीखता था। कभी-कभार मुझे छोटा-मोटा काम मिल जाता था लेकिन महीने बीतते चले गए और पैसों के लाले पड़ने लगे।
भाई-बहनों से मिलाप
एक दिन मैं एक बार से गुज़रा जो रेलवे स्टेशन के पास था। खाने की बढ़िया खुशबू आ रही थी! उस बार में बियर खरीदने पर जो कि एक बड़े ग्लास का पाँच सैंट था, सैंडविच, हॉट डॉग और दूसरी चीज़ें मुफ्त मिलती थीं। मैं तो नाबालिग था, फिर भी बारवाले ने मुझ पर तरस खाकर मुझे बियर दे दी।
मैं खा ही रहा था कि कुछ आदमी अंदर आकर कहने लगे: “फटाफट पियो भाई! जरोम की गाड़ी आ रही है।”
“तुम्हारा मतलब यॉरोम?” मैंने पूछा।
“नहीं भाई, जरोम,” आदमी ने कहा। वहीं मुझे पता चला कि मेरी बहन कहाँ रहती है। क्योंकि उस बार में मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो मेरी बहन के घर से बस तीन दरवाज़े छोड़कर रहता था! इसलिए मैंने ट्रेन की टिकट खरीदी और आखिरकार मुझे अपनी बहन मिल गई।
मेरी बहन और जीजाजी बोर्डिंग हाउस चलाते थे, जिसमें कोयले की खान के कर्मचारी रहते थे और मैं उनके साथ रहने लगा। उन्होंने मुझे नौकरी दिलाई। मेरा काम था खान से पानी बाहर खींचनेवाले पंप की निगरानी रखना। अगर वह कभी बंद पड़ जाता तो मुझे मकैनिक को बुलाना होता था। इस काम के मुझे दिन में १५ सैंट मिलते थे। इसके बाद मैंने रेल रोड में, ईंट बनाने के भट्टे में और बीमा एजॆन्ट का काम भी किया। फिर मैं पिटस्बर्ग चला गया जहाँ मेरा भाई स्टीव रहता था। वहाँ हम स्टील के मिलों में काम करते थे। लेकिन मैंने कभी इतना नहीं कमाया कि घर भेज सकूँ।
खुशियाँ और मातम
एक दिन काम पर जाते वक्त मेरी नज़र एक मकान के सामने खड़ी लड़की पर पड़ी, जो वहीं काम करती थी। उसे देखते ही मैंने कहा, ‘कितनी खूबसूरत है।’ और तीन हफ्ते बाद १९१७ में, मैंने हेलेन से शादी कर ली। अगले दस सालों में हमारे छः बच्चे हुए और उनमें से एक बचपन में ही चल बसा।
सन् १९१८ में पिटस्बर्ग रेलवे ने मुझे ट्रैम ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया। ट्रैम डिपो के पास ही एक केफे था जहाँ कॉफी मिलती थी। दो यूनानी व्यक्ति उस जगह के मालिक थे। उन्हें इसकी परवाह नहीं थी कि आप कुछ ऑडर करते हैं या नहीं, बस बाइबल के बारे में बात करने में उन्हें ज़्यादा दिलचस्पी थी। मैं कहता, “क्या तुम यह कहना चाहते हो कि सारी दुनिया गलत है और सिर्फ तुम दोनों ही सही हो?”
तो उनका जवाब होता, “आप, बाइबल से ही देख लें!” लेकिन उस वक्त उनकी बात का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।
दुःख की बात है कि १९२८ में हेलेन बीमार पड़ गई। बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से हो सके इसलिए मैं उन्हें जरोम में अपनी बहन और जीजाजी के घर छोड़ आया। तब तक उन्होंने एक खेत खरीद लिया था। मैं अकसर बच्चों से मिलने जाया करता और उनके खाने का पैसा हर महीने दे आता। उनके लिए कपड़े भी भेजता। लेकिन अफसोस कि हेलेन की तबीयत बिगड़ती ही चली गई और २७ अगस्त १९३० को उसका निधन हो गया।
मानो मेरी दुनिया ही उजड़ गई और मैं बिलकुल तनहा रह गया। जब अंत्येष्टि के लिए मैं पादरी के पास गया तो उसने कहा: “तुम्हारा अब इस चर्चा से कोई लेना-देना नहीं। एक साल से भी ऊपर तुमने अपनी फीस नहीं दी।”
मैंने समझाया कि मेरी पत्नी लंबे समय से बीमार थी और मुझे अपने बच्चों को भी ज़्यादा पैसे भेजने पड़ते हैं ताकि वे जरोम चर्च में भी चंदा दे सकें। इसके बावजूद पादरी अंत्येष्टि के लिए राज़ी नहीं हुआ, जब तक कि मैंने कहीं से उधार लाकर ५० डालर की फीस न दे दी। मास करने के लिए भी पादरी को और १५ डालर चाहिए थे, जिसके लिए सारे दोस्त और रिश्तेदार हेलेन की बड़ी बहन के घर जमा हुए थे ताकि उसे आखिरी श्रद्धांजली दे सकें। मैं १५ डॉलरों का बंदोबस्त तो नहीं कर पाया लेकिन पादरी इस शर्त पर मास के लिए राज़ी हो गया कि तनख्वाहवाले दिन मैं उसे पैसे दे दूँगा।
जब तनख्वाह मिली तो बच्चों के स्कूल के जूते और कपड़े खरीदने में ही सारे पैसे सारे खर्च हो गए। खैर, करीब दो हफ्ते बाद पादरी मेरी ट्रैम पर चढ़ा। उसने कहा, “मेरे १५ डालर अब भी तुम पर बकाया हैं।” फिर स्टॉप पर उतरकर उसने मुझे धमकी दी, “मैं तुम्हारे बॉस के पास जाकर तुम्हारी तनख्वाह में से पैसे ले लूँगा।”
उस दिन काम खत्म करने के बाद मैंने अपने सुपरवाइज़र के पास जाकर सारा किस्सा कह सुनाया। कैथोलिक होने के बावजूद उसने कहा, “अगर वह पादरी यहाँ आता है, तो मैं उससे सुलट लूँगा!” लेकिन तब से ही मेरे दिमाग में यह बात घूमने लगी और मैं सोचने लगा, ‘ये पादरी लोग तो बस हमारा पैसा चाहते हैं, लेकिन बाइबल की बातें कभी नहीं सिखाते।’
सच्चाई सीखना
अगली बार केफे में उन दो यूनानियों से मैंने पादरी के बारे में बात की। इसका नतीजा यह निकला कि मैं बाइबल विद्यार्थियों के साथ अध्ययन करने लगा। यहोवा के साक्षियों को उन दिनों में बाइबल विद्यार्थी कहा जाता था। मैं रात-रात भर जागकर बाइबल और बाइबल समझानेवाली किताबें पढ़ा करता था। मैंने जाना कि हेलेन परगेटॅरी यानी शोधन-स्थान में तड़प नहीं रही, जैसा पादरी कहता था बल्कि वह मौत की नींद सो रही है। (अय्यूब १४:१३, १४; यूहन्ना ११:११-१४) जी हाँ, मुझे वो मिला जो सचमुच सोने से भी कीमती है—वो है सच्चाई!
कुछ हफ्ते बाद पिटस्बर्ग, गार्डन थियेटर में बाइबल विद्यार्थियों की सभा में, जब मैं पहली ही बार उपस्थित हुआ था मैंने हाथ उठाकर कहा: “मैंने आज बाइबल के बारे में इतना कुछ सीख लिया, जितना मैंने कैथोलिक होकर भी अपनी पूरी ज़िंदगी में नहीं सिखा था।” फिर जब उन्होंने पूछा कि अगले दिन प्रचार में कौन जाना चाहेगा तो मैंने दोबारा अपना हाथ उठाया।
इसके बाद मैंने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया और ४ अक्तूबर १९३१ को पानी में बपतिस्मा लिया। इसी बीच मैंने किराये पर घर ले लिया और साथ रहने के लिए मैं बच्चों को वापस ले आया। बच्चों की देखभाल के लिए मैंने एक आया रखी। परिवार की ज़िम्मेदारियों के बावजूद मैंने जनवरी १९३२ से जून १९३३ तक खास सेवा में भाग लिया, जिसे सहयोगी पायनियर कार्य कहते हैं। इसमें हर महीने मैं ५० से ६० घंटे दूसरों को बाइबल सिखाने में बिताता था।
इस दौरान मैं एक खूबसूरत लड़की को देखा करता था, जो हमेशा काम पर मेरी ही ट्रैम से आया जाया करती थी। अकसर हम गाड़ी में लगे शीशे से एक-दूसरे को निहारा करते थे। और इसी तरह मेरी मुलाकात, मॆरी से हुई। हमने एक-दूसरे से मिलना शुरू किया और अगस्त १९३६ में हमने शादी कर ली।
सन् १९४९ में, नौकरी में अपनी सीनियॉरिटी के कारण मैं कोई भी शिफ्ट चुन सकता था और इसलिए मैं पायनियर बन सका। पूर्ण-समय के प्रचार काम को पायनियरिंग कहा जाता है। मेरी सबसे छोटी बेटी जीन ने १९४५ में पायनियरिंग शुरू की थी और फिर हम दोनों मिलकर पायनियरिंग करने लगे। बाद में जीन की मुलाकात सैम फ्रेंड से हुई। वह न्यू यॉर्क, ब्रुकलिन बेथेल में था जो यहोवा के साक्षियों का मुख्यालय है।a उन्होंने १९५२ में शादी कर ली। मैंने पिटस्बर्ग में अपनी पायनियरिंग जारी रखी और कई बाइबल अध्ययन चलाए। एक समय पर मैं हफ्ते में १४ अलग-अलग परिवारों के साथ अध्ययन करता था। सन् १९५८ में मैंने ट्रैम की नौकरी से रिटायरमॆंट ले ली। पायनियरिंग करना मेरे लिए आसान हो गया था क्योंकि अब मुझे रोज़ नौकरी पर आठ घंटे बिताने नहीं पड़ते थे।
फिर १९८३ में मॆरी बीमार पड़ गई। उसने करीब ५० सालों तक मेरी अच्छी देखभाल की थी और मैंने भी उसकी अच्छी देखभाल करने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। लेकिन आखिरकार, १४ सितंबर १९८६ में वह चल बसी।
मेरी जन्मभूमि
सन् १९८९ में जीन और सैम मुझे अपने साथ पोलैंड के अधिवेशन में ले गए। फिर हम वहाँ भी गए, जहाँ मैंने अपना बचपन गुज़ारा था। जब रूसी लोगों ने वहाँ कब्ज़ा किया था, तब उन्होंने कुछ शहरों के नाम बदल दिए थे और लोगों को दूसरे देशों में भेज दिया था। मेरे एक भाई को इस्तानबूल और एक बहन को रूस भेज दिया गया था। और मेरे गाँव का नाम वहाँ रहनेवाले नहीं जानते थे।
जब हम जा ही रहे थे तभी दूर से मुझे कुछ पहाड़ जाने-पहचाने से लगने लगे। और जैसे-जैसे हम करीब आते गए दूसरी चीज़ें भी पहचान में आने लगीं—एक टीला, एक दोराहा, एक चर्च, नदी का एक पुल। और हम हैरान रह गए जब हमने अचानक एक बोर्ड पर “होसोचेक” लिखा देखा! अब कम्युनिस्टों का कब्ज़ा नहीं था इसीलिए गाँवों को फिर से उनका पुराना नाम दे दिया गया था।
हमारा घर तो अब नहीं रहा, लेकिन चुल्हा था जो ज़मीन में आधा धँसा था। इसका इस्तेमाल हम बाहर खाना बनाने के लिए करते थे। फिर मैंने एक बड़े-से पेड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा: “वह पेड़ देखा। मैंने अमरीका जाने से पहले उसे लगाया था। देखो, अब कितना बड़ा हो गया है!” इसके बाद हम कई कब्रिस्तानों में गए। सोचा, शायद हमें वहीं कब्रों पर लिखे हमारे परिवार के नाम मिल जाए पर निराशा ही हाथ लगी।
पहले सच्चाई
जब १९९३ में जीन के पति का निधन हुआ तो उसने मुझसे पूछा, क्या आप चाहते हैं कि मैं बेथेल छोड़ूँ और साथ रहकर आपकी देखभाल करूँ? मैंने उससे कहा, ऐसा करना तो तुम्हारे लिए सबसे बुरी बात होगी। और आज भी मैं ऐसा ही सोचता हूँ। तब से १०२ की उम्र तक मुझे किसी की देखभाल की ज़रूरत नहीं पड़ी लेकिन बाद में मुझे नर्सिंग होम में भरती होना पड़ा। मैं आज भी पिटस्बर्ग की बॆलव्यू कलीसिया में प्राचीन हूँ और रविवार के दिन भाई आकर मुझे सभाओं के लिए किंगडम हॉल ले जाते हैं। हालाँकि मैं ज़्यादा प्रचार नहीं कर पाता फिर भी मेरा नाम इंर्फम (अशक्त) पायनियर लिस्ट में है।
कई सालों से ओवरसियरों को ट्रेनिंग देने के लिए वॉच टावर सोसाइटी ने जो खास स्कूल चलाए हैं, उनमें भी हिस्सा लेने का मुझे मौका मिला है। मैं पिछले दिसंबर, प्राचीनों के लिए आयोजित किंगडम मिनिस्ट्री स्कूल में थोड़े समय के लिए उपस्थित हुआ। और इस बार ११ अप्रैल को जीन मुझे मसीह की मृत्यु की यादगार मनाने के लिए ले गई। एक ऐसा उत्सव जिसमें मैं १९३१ से भाग लेता आया हूँ और इसमें भाग लेना मेरे लिए सम्मान की बात है।
जिनके साथ मैंने अध्ययन किया था, आज उनमें से कुछ प्राचीन हैं, दूसरे दक्षिण अमरीका में मिशनरी हैं और कुछ दादा-दादी या नाना-नानी बन चुके हैं और अपने बच्चों के साथ मिलकर सेवा कर रहे हैं। मेरे अपने तीन बच्चे—मेरी जेन, जॉन और जीन—साथ ही उनके बच्चे और पोते वफादारी से यहोवा परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। मेरी यही प्रार्थना है कि एक दिन मेरी दूसरी बेटी और मेरे बाकी के पोते और परपोते भी ऐसा ही करें।
इस १०५ की उम्र में भी, मैं सभी को बाइबल पढ़ने और जो भी उन्होंने सीखा है उसे दूसरों को सिखाने के लिए कहता हूँ। हाँ, मुझे पूरा विश्वास है कि अगर आप यहोवा के करीब रहें तो आप कभी निराश नहीं होंगे। तब आपको भी वो मिल सकेगा जो नाशमान सोने से कहीं कीमती होगा—और वो है सच्चाई, जिसके ज़रिए हम अपने जीवन-दाता, यहोवा परमेश्वर के साथ एक अनमोल रिश्ता बना सकते हैं।
[फुटनोट]
a सैम फ्रैंड की जीवनी अगस्त १, १९८६ के प्रहरीदुर्ग के अंग्रेज़ी अंक में पेज २२-६ पर दी गई है।
[पेज 25 पर तसवीर]
जब मैं ट्रैम चलाता था
[पेज 26 पर तसवीर]
नर्सिंग होम जहाँ मैं अब रहता हूँ
[पेज 27 पर तसवीर]
बोर्ड जो हमने १९८९ में देखा