यरूशलेम—क्या आप इसे “अपने बड़े से बड़े आनन्द से श्रेष्ठ” मानते हैं?
“यदि मैं यरूशलेम को अपने बड़े से बड़े आनन्द से श्रेष्ठ न जानूं, तो मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक जाए।”—भजन १३७:६, NHT.
१. परमेश्वर के चुने हुए नगर के लिए बाबुल में रहनेवाले कई यहूदियों का रवैया कैसा था?
जब सा.यु.पू. ५३७ में यहूदी पहली बार यरूशलेम वापस लौटे, तब से करीब ७० साल गुज़र चुके थे। परमेश्वर का मंदिर बनाया जा चुका था मगर बाकी का नगर अब भी खंडहर था। इस दौरान, बाबुल में रहनेवाले यहूदियों की एक नयी पीढ़ी आ चुकी थी। बेशक उनमें से कई लोग उस भजनहार की तरह महसूस करते थे जिसने यह गीत गाया: “हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे भूल जाऊं, तो मेरा दाहिना हाथ भी काम करना भूल जाए।” (भजन १३७:५, NHT) कुछ लोगों ने यरूशलेम को न सिर्फ याद किया बल्कि उन्होंने अपने कामों से दिखाया कि वे इसे “अपने बड़े से बड़े आनन्द से श्रेष्ठ” मानते थे।—भजन १३७:६, NHT.
२. एज्रा कौन था और उसे कैसे आशीषें मिलीं?
२ मिसाल के तौर पर याजक एज्रा को लीजिए। अपने देश लौटने से पहले ही, उसने यरूशलेम में सच्ची उपासना को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की। (एज्रा ७:६, १०) एज्रा को इसके लिए बहुत आशीषें मिलीं। यहोवा परमेश्वर ने फारस के राजा के दिल में यह डाला और उसने एज्रा को यह इजाज़त दे दी कि वह यहूदियों के दूसरे दल को यरूशलेम ले जाए। इसके अलावा, राजा ने उसे बहुत सारा सोना और चाँदी दिया कि “यहोवा के . . . भवन को संवारे।”—एज्रा ७:२१-२७.
३. नहेमायाह ने कैसे दिखाया कि यरूशलेम उसकी सबसे पहली चिंता थी?
३ लगभग १२ साल बाद नहेमायाह नाम के एक और यहूदी ने एक ज़बरदस्त कदम उठाया। वह फारस के शूशन नाम राजगढ़ में सेवा करता था। वह राजा अर्तक्षत्र का साकी था और इसलिए उसका बहुत आदर और सम्मान था, लेकिन नहेमायाह के लिए यह “बड़े से बड़े आनन्द” का कारण नहीं था। इसके बजाय, उसकी हसरत थी कि यरूशलेम जाए और उसका फिर से निर्माण करे। महीनों तक नहेमायाह ने इसके लिए दुआ की और यहोवा परमेश्वर ने ऐसा करने के लिए उसे आशीष दी। नहेमायाह की चिंता की वज़ह जानकर फारस के राजा ने उसे चिट्ठियाँ दीं जिनमें उसे यरूशलेम का फिर से निर्माण करने का अधिकार दिया गया था और उसकी मदद करने के लिए सेना भी साथ भेजी।—नहेमायाह १:१-२:९.
४. हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि यहोवा की उपासना हमारे लिए ऐसी किसी भी बात से श्रेष्ठ है जिस पर हम आनंद मना सकते हैं?
४ इसमें कोई शक नहीं कि एज्रा, नहेमायाह और उनका साथ देनेवाले कई यहूदियों ने साबित किया कि यरूशलेम में केंद्रित यहोवा की उपासना से ज़्यादा और कोई भी बात उनके लिए महत्त्व नहीं रखती थी। यही उपासना उनके “बड़े से बड़े आनन्द से श्रेष्ठ” थी यानी ऐसी किसी भी बात से श्रेष्ठ जिस पर वे आनंद मना सकते थे। इन लोगों की मिसाल से आज ऐसे लोगों को कितनी हिम्मत मिलती होगी जो यहोवा, उसकी उपासना और उसकी आत्मा के ज़रिये चलाए जा रहे संगठन को ऐसी ही नज़र से देखते हैं! क्या आप भी इनमें से एक हैं? क्या आप परमेश्वर के मार्ग पर चलने में धीरज धरते हुए यह दिखाते हैं कि आपके लिए आनंद का सबसे बड़ा कारण यहोवा के समर्पित लोगों के साथ मिलकर उसकी उपासना करना है? (२ पतरस ३:११) अगर हम एज्रा की यरूशलेम की यात्रा के अच्छे नतीजों पर गौर करें तो हमें ऐसा करने के लिए हिम्मत मिलेगी।
आशीषें और ज़िम्मेदारियाँ
५. एज्रा के दिनों में यहूदा के निवासियों को कौन-सी अपरंपार आशीषें मिलीं?
५ एज्रा के साथ लौटनेवाले करीब ६,००० लोग अपने साथ यहोवा के मंदिर के लिए भेंट किया गया सोना और चाँदी लाए। आज के हिसाब से इनकी कीमत लगभग १४० करोड़ रुपए होगी। यह उस सोने-चाँदी से लगभग सात गुना ज़्यादा था जो पहली बार लौटनेवाले यहूदी अपने साथ लेकर आए थे। इतने सारे लोगों और सोने-चाँदी के रूप में मिली मदद के लिए यरूशलेम और यहूदा के निवासी यहोवा को कितना धन्यवाद दे रहे होंगे! लेकिन जब परमेश्वर आशीषें देता है तो उनके साथ ज़िम्मेदारियाँ भी आती हैं।—लूका १२:४८.
६. एज्रा ने अपने देश में आकर क्या पाया और उसने क्या किया?
६ एज्रा ने जल्द ही जान लिया कि कई यहूदियों ने विधर्मी पत्नियों से ब्याह करके परमेश्वर की व्यवस्था को तोड़ा है, और इन लोगों में कुछ याजक और प्राचीन भी शामिल हैं। (व्यवस्थाविवरण ७:३, ४) ज़ाहिर है कि परमेश्वर की व्यवस्था वाचा के इस तरह तोड़े जाने पर उसे गहरी चोट पहुँची। “यह बात सुनकर मैं ने अपने वस्त्र और बागे को फाड़ा, . . . और विस्मित होकर बैठा रहा।” (एज्रा ९:३) तब, व्याकुल इस्राएलियों की मौजूदगी में एज्रा ने दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना की। सब लोग सुन रहे थे जब एज्रा ने प्राचीनकाल में इस्राएल के अधर्म के कामों और परमेश्वर की इस चेतावनी को दोहराया कि उस देश के विधर्मी निवासियों के साथ शादी-ब्याह करने का नतीजा क्या होगा। आखिर में उसने कहा: “हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! तू तो धर्मी है, हम बचकर मुक्त हुए हैं जैसे कि आज वर्तमान है। देख, हम तेरे साम्हने दोषी हैं, इस कारण कोई तेरे साम्हने खड़ा नहीं रह सकता।”—एज्रा ९:१४, १५.
७. (क) पाप के मामले का सामना करते वक्त एज्रा ने कौन-सी अच्छी मिसाल रखी? (ख) एज्रा के दिनों में पाप करनेवालों ने क्या कदम उठाया?
७ एज्रा ने “हम” कहा। जी हाँ, उसने खुद को भी उन लोगों में शामिल किया हालाँकि उसने ऐसा कोई पाप नहीं किया था। एज्रा की पीड़ा और उसकी बिनती ने लोगों के दिलों को छू लिया और उन्होंने पछतावा महसूस किया और मन फिराव के योग्य काम किए। उन्होंने प्रायश्चित दिखाने के लिए खुद एक दर्दनाक तरीका चुना। जितने भी लोगों ने परमेश्वर की व्यवस्था तोड़ी थी उन सब ने अपनी विदेशी पत्नियों को और उनसे जन्मे बच्चों को वापस उनके देश भेजने का फैसला किया। एज्रा इस फैसले से सहमत हुआ और सभी दोषी लोगों को इस पर अमल करने के लिए उकसाया। फारस के राजा ने एज्रा को इतना अधिकार दिया था कि वह व्यवस्था तोड़नेवाले किसी भी आदमी को मौत की सज़ा दे सकता था या उसे यरूशलेम और यहूदा से देशनिकाला दे सकता था। (एज्रा ७:१२, २६) लेकिन ऐसा करने की नौबत नहीं आयी। “पूरी मण्डली” ने कहा: “जैसा तू ने कहा है, वैसा ही हमें करना उचित है।” इसके अलावा, उन्होंने कबूल किया: “हम ने इस बात में बड़ा अपराध किया है।” (एज्रा १०:११-१३) एज्रा १० अध्याय में १११ ऐसे पुरुषों के नाम दिए गए हैं जिन्होंने अपनी विदेशी पत्नियों और उनसे जन्मे बच्चों को वापस भेजकर इस फैसले पर अमल किया।
८. विदेशी पत्नियों को वापस भेजने की सख्त कार्यवाही से सारी मानवजाति का भला कैसे होता?
८ यह कदम न सिर्फ इस्राएल जाति के हित में था बल्कि इससे सारी मानवजाति का भी भला होता। अगर समस्या को सुलझाने के लिए कुछ न किया जाता तो इस्राएली, अलग जाति न रहकर अपने आस-पास की जातियों का भाग बन जाते। अगर ऐसा होता तो जिस वंशावली से सारी मानवजाति को आशीष देने के लिए वादा किया हुआ वंश आता वह वंशावली दोगली हो जाती। (उत्पत्ति ३:१५; २२:१८) तब यह बताना मुश्किल हो जाता कि वादा किया हुआ वंश सचमुच यहूदा के गोत्र के राजा दाऊद के वंश का है या नहीं। इसी ज़रूरी मसले पर लगभग १२ साल बाद फिर से ध्यान दिया गया और “इस्राएल के वंश के लोग सब अन्यजाति लोगों से अलग हो गए।”—नहेमायाह ९:१, २; १०:२९, ३०.
९. बाइबल उन मसीहियों को कौन-सी अच्छी सलाह देती है जिनके साथी अविश्वासी हैं?
९ आज यहोवा के सेवक इस घटना से क्या सीख सकते हैं? मसीही व्यवस्था वाचा के अधीन तो नहीं हैं। (२ कुरिन्थियों ३:१४) इसके बजाय, वे “मसीह की व्यवस्था” का पालन करते हैं। (गलतियों ६:२) इसलिए, एक मसीही जिसका साथी अविश्वासी है पौलुस की इस सलाह को मानता है: “यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े।” (१ कुरिन्थियों ७:१२) इसके अलावा जिन मसीहियों के साथी अविश्वासी हैं उन पर बाइबल यह ज़िम्मेदारी डालती है कि वे अपनी शादी को कामयाब बनाने के लिए मेहनत करें। (१ पतरस ३:१, २) इस बढ़िया सलाह को मानने से अकसर ऐसी आशीषें मिली हैं कि सच्ची उपासना के बारे में अविश्वासी साथियों का भी नज़रिया बदल गया है। कुछ तो बपतिस्मा लेकर वफादार मसीही भी बन गए हैं।—१ कुरिन्थियों ७:१६.
१०. मसीही उन १११ इस्राएली पुरुषों से कौन-सा सबक सीख सकते हैं जिन्होंने अपनी विदेशी पत्नियों को वापस भेज दिया?
१० इसके बावजूद, जिन इस्राएलियों ने अपनी विदेशी पत्नियों को वापस भेज दिया उनकी मिसाल अविवाहित मसीहियों को एक अच्छा सबक देती है। उन्हें ऐसे किसी स्त्री या पुरुष से शादी के इरादे से दोस्ती बढ़ाना या साथ घूमना-फिरना शुरू नहीं करना चाहिए जो अविश्वासी हो। ऐसे रिश्ते से खुद को दूर रखना मुश्किल हो सकता है शायद दर्दनाक भी हो, पर अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमें आशीष देता रहे तो यही सबसे बेहतरीन रास्ता होगा। मसीहियों को आज्ञा दी गयी है: “अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो।” (२ कुरिन्थियों ६:१४) कोई भी अविवाहित मसीही जो शादी करना चाहता है, उसे एक सच्चे संगी विश्वासी से शादी करने के बारे में ही सोचना चाहिए।—१ कुरिन्थियों ७:३९.
११. हमारे लिए सबसे बड़ा आनंद क्या है, इस मामले में हमारी परीक्षा इस्राएली पुरुषों की तरह कैसे हो सकती है?
११ बहुत-सी दूसरी बातों में भी, जब मसीहियों को बताया जाता है कि वे बाइबल के खिलाफ जा रहे हैं, तब उन्होंने अपने आप को सँभाला है। (गलतियों ६:१) बार-बार इस पत्रिका ने ऐसे चाल-चलन के बारे में बताया है जो बाइबल के स्तरों के खिलाफ है और जिससे एक व्यक्ति परमेश्वर के संगठन के काबिल नहीं रहता। मिसाल के तौर पर, १९७३ में यहोवा के लोगों को पूरी तरह समझ आया कि नशीली दवाओं और तंबाकू का सेवन गंभीर पाप है। परमेश्वर के मार्ग पर चलने के लिए ज़रूरी है कि हम “अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें।” (२ कुरिन्थियों ७:१) कई लोगों ने बाइबल की इस सलाह को माना; वे उन शारीरिक तकलीफों को झेलने के लिए तैयार थे जो इन आदतों को छोड़ने पर शुरू-शुरू में होती हैं क्योंकि वे परमेश्वर के शुद्ध लोगों का हिस्सा बनकर रहना चाहते थे। लैंगिक विषयों, कपड़ों और बनाव-श्रृंगार और नौकरी, मनोरंजन और संगीत का सोच-समझकर चुनाव करने पर भी बाइबल की साफ-साफ हिदायतें दी गयी हैं। ऐसा हो कि हम उन १११ इस्राएली पुरुषों की तरह ‘सम्भाले’ जाने के लिए हमेशा तैयार रहें, भले ही हमें बाइबल उसूलों को लेकर कोई भी सलाह क्यों न दी जाए। (२ कुरिन्थियों १३:११, NHT, फुटनोट) ऐसी इच्छा दिखाएगी कि यहोवा के पवित्र लोगों के साथ मिलकर उसकी उपासना करने का सम्मान ‘हमारे [लिए] बड़े से बड़े आनन्द से श्रेष्ठ’ है।
१२. सामान्य युग पूर्व ४५५ में क्या हुआ?
१२ विदेशी पत्नियों की वापसी के बारे में बताने के बाद, बाइबल हमें यह नहीं बताती कि यरूशलेम में अगले १२ सालों में क्या हुआ। बेशक, इस्राएल के साथ पड़ोसियों की दुश्मनी और बढ़ गयी क्योंकि उनकी बेटियों के साथ की गयी शादियाँ रद्द कर दी गयी थीं। सामान्य युग पूर्व ४५५ में, नहेमायाह सेना के साथ यरूशलेम आया। उसे यहूदा का गवर्नर बनाकर भेजा गया था और वह फारस के राजा की चिट्ठियाँ लाया था जिनमें उसे नगर का फिर से निर्माण करने का अधिकार दिया गया था।—नहेमायाह २:९, १०; ५:१४.
जलन रखनेवाले पड़ोसियों से विरोध
१३. य्यहूदियों के झूठा धर्म माननेवाले पड़ोसियों ने कैसा रवैया दिखाया और नहेमायाह ने इसका जवाब कैसे दिया?
१३ झूठा धर्म माननेवाले पड़ोसी नहेमायाह को उसके मकसद में कामयाब नहीं होने देना चाहते थे। उनके सरदारों ने यह कहकर उसे डराया: “क्या तुम राजा के विरुद्ध बलवा करोगे?” यहोवा पर पूरे भरोसे के साथ नहेमायाह ने जवाब दिया: “स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सुफल करेगा, इसलिये हम उसके दास कमर बान्धकर बनाएंगे; परन्तु यरूशलेम में तुम्हारा न तो कोई भाग, न हक्क, न स्मारक है।” (नहेमायाह २:१९, २०) जब दीवारें बनायी जाने लगीं तो इन्हीं दुश्मनों ने ठट्ठा किया: ‘वे निर्बल यहूदी क्या किया चाहते हैं? क्या वे मिट्टी के ढेरों में के पत्थरों को फिर नये सिरे से बनाएंगे? यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनाई हुई पत्थर की शहरपनाह को तोड़ देगा।’ इस तानाकशी का जवाब देने के बजाय, नहेमायाह ने दुआ माँगी: “हे हमारे परमेश्वर सुन ले, कि हमारा अपमान हो रहा है; और उनका किया हुआ अपमान उन्हीं के सिर पर लौटा दे।” (नहेमायाह ४:२-४) नहेमायाह ने लगातार यहोवा पर भरोसा रखने की यह बढ़िया मिसाल कायम की!—नहेमायाह ६:१४; १३:१४.
१४, १५. (क) नहेमायाह ने दुश्मन की हमले की धमकी के लिए क्या किया? (ख) यहोवा के साक्षी कड़े विरोध के बावजूद अपने आध्यात्मिक निर्माण के काम को किस तरह जारी रख पाए हैं?
१४ प्रचार करने की अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए, यहोवा के साक्षी आज भी परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं। विरोध करनेवाले ठट्ठा करके इस काम में बाधा डालने की कोशिश करते हैं। राज्य संदेश में दिलचस्पी दिखानेवाले व्यक्ति कभी-कभी ऐसी तानाकशी सह नहीं पाते और हार मान लेते हैं। अगर मज़ाक उड़ाए जाने का उन पर कोई असर नहीं होता तो विरोधी गुस्से में आकर उन्हें मारने-पीटने की धमकियाँ देते हैं। यरूशलेम की शहरपनाह के बनानेवालों पर भी यही गुज़री। मगर नहेमायाह डरा नहीं। इसके बजाय, उसने शहरपनाह बनानेवालों को दुश्मन के हमले का सामना करने के लिए हथियारों से लैस किया और यह कहकर उनका विश्वास मज़बूत किया: “उन से मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण करके, अपने भाइयों, बेटों, बेटियो, स्त्रियों और घरों के लिये युद्ध करना।”—नहेमायाह ४:१३, १४.
१५ जैसे नहेमायाह के दिनों में था, आज भी कड़े विरोध के बावजूद यहोवा के साक्षी अपना आध्यात्मिक निर्माण का काम जारी रखने के लिए पूरी तरह से लैस हैं। “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने विश्वास को मज़बूत करनेवाला आध्यात्मिक भोजन दिया है, जिससे ताकत पाकर परमेश्वर के लोग ऐसी जगहों पर भी फल लाने में कामयाब रहे हैं जहाँ काम पर पाबंदी है। (मत्ती २४:४५) इसकी वज़ह से यहोवा पूरी दुनिया में लगातार अपने लोगों को बढ़ोतरी की आशीषें दे रहा है।—यशायाह ६०:२२.
अंदरूनी समस्याएँ
१६. किन अंदरूनी समस्याओं की वज़ह से यरूशलेम की शहरपनाह बनानेवालों का जोश ठंडा होने का खतरा था?
१६ जैसे-जैसे यरूशलेम की शहरपनाह बनती गयी और ऊँची उठती गयी, वैसे-वैसे यह काम और भी मुश्किल होने लगा। उस वक्त एक ऐसी समस्या का पता चला जिससे दीवार बनानेवालों का जोश ठंडा होने का खतरा था। खाने की कमी की वज़ह से कुछ यहूदियों के लिए अपने परिवार का पेट भरना और फारसी सरकार को कर अदा करना मुश्किल हो गया था। धनवान यहूदी उन्हें खाने-पीने की चीज़ें और पैसा उधार में देते थे। परमेश्वर की व्यवस्था के खिलाफ इन गरीब इस्राएलियों को अपनी ज़मीन और बच्चे गिरवी रखने पड़े ताकि वे सूद समेत पैसा वापस करने तक ज़मानत के तौर पर रहें। (निर्गमन २२:२५; लैव्यव्यवस्था २५:३५-३७; नहेमायाह ४:६, १०; ५:१-५) अब लेनदार उनकी ज़मीन को जब्त करने की धमकी दे रहे थे और उनके बच्चों को दासों के रूप में बेचने के लिए उन्हें मजबूर कर रहे थे। नहेमायाह ऐसे कठोर और पैसों पर मरनेवाले लोगों के रवैये पर आग-बबूला हो उठा। उसने फौरन कार्यवाही की ताकि यरूशलेम की शहरपनाह को बनाने के काम पर यहोवा की आशीष बनी रहे।
१७. नहेमायाह ने क्या किया ताकि निर्माण के काम पर यहोवा की आशीष बनी रहे और इसका क्या नतीजा हुआ?
१७ “एक बड़ी सभा” हुई, और नहेमायाह ने दौलतमंद इस्राएलियों को साफ-साफ बताया कि उनकी करतूतों से यहोवा नाराज़ था। उसके बाद उसने इन गलती करनेवालों से, जिनमें कुछ याजक भी शामिल थे, अपील की कि वे सारा सूद लौटा दें और सूद न चुका पानेवालों की ज़मीनें लौटा दें जो उन्होंने गैर-कानूनी तरीके से ज़ब्त कर ली थीं। खुशी की बात है कि गलती करनेवालों का जवाब था: “हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे।” ये सिर्फ खोखले वादे नहीं थे, क्योंकि बाइबल बताती है कि “लोगों ने [नहेमायाह के] वचन के अनुसार काम किया।” और सारी सभा ने यहोवा की स्तुति की।—नहेमायाह ५:७-१३.
१८. यहोवा के साक्षी कैसी भावना रखने के लिए मशहूर हैं?
१८ हमारे दिनों के बारे में क्या? मुसीबत के मारे लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने के बजाय, यहोवा के साक्षी अपने संगी विश्वासियों और दूसरों की दिल खोलकर मदद करने के लिए मशहूर हैं। इस उदारता की वज़ह से आज भी कई बार यहोवा की महिमा हुई है जैसे नहेमायाह के दिनों में हुई थी। लेकिन, इसके साथ ही “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने ज़रूरी समझा है कि व्यापार के मामलों में और दूसरों से फायदा उठाने के लालच से दूर रहने की ज़रूरत के बारे में बाइबल की सलाह दे। कुछ देशों में हद-से-ज़्यादा वधू-मूल्य या महर माँगना आम बात है, लेकिन बाइबल साफ-साफ चेतावनी देती है कि लालची और लुटेरे परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे। (१ कुरिन्थियों ६:९, १०) ऐसी सलाह को ज़्यादातर मसीहियों ने अच्छी तरह माना है, जो हमें उन यहूदियों की याद दिलाता है जिन्होंने यह समझ लिया था कि अपने गरीब भाइयों को लूटना पाप है।
यरूशलेम की शहरपनाह पूरी हुई
१९, २०. (क) यरूशलेम की शहरपनाह के बनकर तैयार होने का, झूठा धर्म माननेवाले विरोधियों पर क्या असर हुआ? (ख) कई देशों में यहोवा के साक्षियों ने कैसी जीत हासिल की है?
१९ तमाम विरोधों के बावजूद यरूशलेम की शहरपनाह ५२ दिन में बनकर तैयार हो गयी। विरोधियों पर इसका क्या असर हुआ? नहेमायाह ने कहा: “जब हमारे सब शत्रुओं ने यह सुना, तब हमारे चारों ओर रहनेवाले सब अन्यजाति डर गए, और बहुत लज्जित हुए; क्योंकि उन्हों ने जान लिया कि यह काम हमारे परमेश्वर की ओर से हुआ।”—नहेमायाह ६:१६.
२० आज भी बहुत-सी जगहों में और अलग-अलग तरीकों से दुश्मन, परमेश्वर के काम का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, लाखों लोग यह समझ चुके हैं कि यहोवा के साक्षियों का विरोध करना बेकार है। मिसाल के तौर पर, नात्सी जर्मनी, पूर्वी यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में प्रचार काम को खत्म करने के लिए की गयी ज़बरदस्त कोशिशों पर ध्यान दीजिए। ऐसी सारी कोशिशें नाकाम रही हैं और अनेक लोग अब मानते हैं कि “यह काम हमारे परमेश्वर की ओर से” हो रहा है। यह उन वफादार लोगों के लिए कितना बड़ा इनाम है जो इन देशों में एक अरसे से यहोवा की उपासना को “अपने बड़े से बड़े आनन्द से श्रेष्ठ” मानते आए हैं!
२१. अगले लेख में किन महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर चर्चा की जाएगी?
२१ अगले लेख में हम उन महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर चर्चा करेंगे जो यरूशलेम की शहरपनाह के हर्ष भरे उद्घाटन से पहले घटीं। हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि इससे कहीं बड़े और महान नगर के जल्द ही बनकर पूरा होने पर कैसे सारी मानवजाति को फायदा होगा।
क्या आपको याद है?
◻ एज्रा और दूसरे कई लोगों ने यरूशलेम के लिए कैसे आनंद किया?
◻ एज्रा और नहेमायाह ने कई यहूदियों को कौन-सी गलतियाँ सुधारने में मदद दी?
◻ एज्रा और नहेमायाह के वृत्तांतों से आप कौन-से सबक सीख सकते हैं?
[पेज 15 पर तसवीर]
नहेमायाह के लिए सबसे बड़ी चिंता यरूशलेम था न कि शूशन में उसका बड़ा ओहदा
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
नहेमायाह की तरह, हमें भी यहोवा से मार्गदर्शन और शक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए कि हम सबसे महत्त्वपूर्ण प्रचार का काम करते रहें