यीशु का जन्म असली कहानी
ज़रा आप अपने देश की किसी मशहूर ऐतिहासिक घटना के बारे में सोचिए। आप पाते हैं कि यह घटना प्रमाणिक है और एक से ज़्यादा इतिहासकारों ने इसे लिखा है। मगर तब आपको कैसा लगेगा जब कोई आपसे यह कहता है कि यह घटना कभी घटी ही नहीं, यह तो बस एक कल्पना है? इस बात को समझने के लिए दूसरे शब्दों में, तब क्या जब कोई आपसे कहता है कि आपके घरवालों ने आपके दादाजी के जन्म और जीवन के बारे में जो कुछ आपको बताया है, वह सब झूठ है? इन दोनों परिस्थितियों में, ऐसी बात सुनकर शायद आपको गुस्सा आ जाएगा। बेशक ऐसी बातों के सिर्फ दावे से आप इन पर यकीन नहीं करने लगेंगे।
फिर भी आलोचक आज खुलेआम यीशु के जन्म के उस वर्णन को नकारते हैं जो सुसमाचार की पुस्तकों यानी मत्ती और लूका में दिया गया है। वे कहते हैं कि मत्ती और लूका का वर्णन आपस में नहीं मिलता और एक दूसरे के विपरीत भी है, साथ ही दोनों की बातें सफेद झूठ हैं। ये दोनों इतिहास के नाम पर धोखा हैं। क्या ऐसा कहना सच है? आइए ऐसे इलज़ामों पर यकीन करने से पहले हम खुद सुसमाचार की इन किताबों में दिए गए वर्णन की जाँच करें और यह देखें कि आज हमारी शिक्षा के लिए इनमें क्या है।
लिखने का मकसद
शुरूआत में यह याद रखने से हमें मदद मिलेगी कि इन बाइबल के वर्णनों को लिखने का क्या मकसद था। ये वर्णन जीवन-कथाएँ नहीं हैं; बल्कि ये सुसमाचार की पुस्तकें हैं। और इन दोनों में फर्क जानना बहुत ज़रूरी है। जीवन-कथा में तो एक लेखक सिर्फ यह दिखाने के लिए सैकड़ों पेज भर सकता है कि वह मशहूर व्यक्ति जिसके बारे में लिखा जा रहा है, इस पद तक कैसे पहुँचा। इसलिए कुछ कथाकार बीसियों पेज सिर्फ माता-पिता, जन्म और बचपन की जानकारी देने में ही भर देते हैं। लेकिन सुसमाचार की किताबें अलग हैं। चार सुसमाचार की किताबों में से सिर्फ दो किताबें मत्ती और लूका ही यीशु के जन्म और बचपन के बारे में बताती हैं। इन किताबों का मकसद यह जानकारी देना नहीं था कि यीशु बचपन से जवानी तक कैसे पला-बढ़ा। याद रखिए कि यीशु के चेलों को इस बात का एहसास था कि यीशु पृथ्वी पर पैदा होने से पहले एक आत्मिक प्राणी के रूप में अस्तित्व में रह चुका था। (यूहन्ना ८:२३, ५८) तो मत्ती और लूका ने यीशु के बचपन से जवानी तक की जानकारी सिर्फ यह बताने के लिए नहीं दी कि यीशु बचपन में कैसा था और आगे चलकर कैसा व्यक्ति बना। इसके बजाए उन्होंने ऐसी घटनाओं के बारे में जानकारी दी जो उनके सुसमाचार को लिखने के मकसद के मुताबिक थीं।
तो फिर उनके लिखने का मकसद क्या था? शब्द “सुसमाचार” (gospel) का अर्थ है “खुशी की खबर।” दोनों लेखकों का मकसद एक ही था, यह खबर देना कि—यीशु ही वह मसीहा या ख्रिस्त है जिसके बारे में प्रतिज्ञा की गई थी, उसने मानवजाति के पापों को मिटाने की खातिर अपना बलिदान दिया, और स्वर्ग के लिए उसका पुनरुत्थान हुआ। लेकिन इन दोनों लेखकों की पृष्ठभूमि अलग-अलग थी। उन्होंने जिन पाठकों को मन में रखकर लिखा था वे भी अलग-अलग पृष्ठभूमियों से थे। मत्ती एक चुंगी लेनेवाला था। उसने ज़्यादातर यहूदी लोगों को समझाने के लिए लिखा। लूका एक डाक्टर था। उसने “श्रीमान् थियुफिलुस” के लिए लिखा जो शायद किसी ऊँची पदवी पर था। और साथ-ही उसके पाठक यहूदी और बहुत-से अन्यजाति के लोग थे। (लूका १:१-३) हरेक लेखक ने ऐसी घटना चुनी जो उसके पाठकों के लिए उचित हो और वे उस पर विश्वास करें। इसलिए मत्ती के वर्णन में इब्रानी शास्त्र की उन भविष्यवाणियों की पूर्ति के बारे में बताया गया है जो यीशु पर पूरी हुईं। और लूका ने ज़्यादातर ऐसी ऐतिहासिक बातों को इस्तेमाल किया जिन्हें गैर-यहूदी पढ़नेवाले अच्छी तरह जानते थे।
तो फिर इसमें अचरज की तो कोई बात नहीं होनी चाहिए कि दोनों के वर्णन में भिन्नता है। मगर ये बात सच नहीं जो आलोचक कहते हैं कि दोनों वर्णन एक दूसरे के विपरीत हैं। बल्कि ये तो एक-दूसरे के संपूरक हैं, और इन दोनों को मिलाने से पूरी तस्वीर नज़र आती है।
बैतलहम में यीशु का जन्म
मत्ती और लूका के वर्णन बताते हैं कि यीशु का जन्म चमत्कारिक रूप से हुआ—वह एक कुंवारी से पैदा हुआ। मत्ती बताता है कि इस चमत्कारिक घटना द्वारा कई शताब्दियों पहले यशायाह की भविष्यवाणी की पूर्ति हुई थी। (यशायाह ७:१४; मत्ती १:२२, २३) लूका बताता है कि यीशु का जन्म बैतलहम में इसलिए हुआ था क्योंकि यूसुफ और मरियम को कैसर द्वारा बनाए गए रजिस्ट्रेशन के कानून को मानने के लिए बैतलहम जाना पड़ा था। (पेज ७ पर बक्स देखिए।) बैतलहम में यीशु के जन्म होने का बहुत महत्त्व था। शताब्दियों पहले भविष्यवक्ता मीका ने पहले से बता दिया था कि मसीहा यरूशलेम के पास इसी एक मामूली से गाँव में पैदा होगा।—मीका ५:२.
क्रिसमस की झाँकियों की वज़ह से यीशु के जन्म की रात बहुत मशहूर हो गई है। मगर जैसा अकसर दिखाया जाता है, जन्म की असली कहानी इन झाँकियों से बिल्कुल अलग है। जो इतिहासकार लूका हमें यह बताता है कि जनगणना की वज़ह से यूसुफ और मरियम को बैतलहम जाना पड़ा था वही लूका यह भी बताता है कि उस खास रात में चरवाहे अपनी भेड़ों के साथ मैदान में थे। इन दो परिस्थितियों को देखकर बहुत से बाइबल के विद्वान इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि यीशु का जन्म दिसंबर में नहीं हो सकता। वे कहते हैं, यह हो नहीं सकता कि कैसर हिंसक यहूदियों को कड़कती ठंड और बरसात में अपने-अपने जन्म के स्थान पर जाने की आज्ञा दे। ऐसा करने से तो बगावती यहूदी और ज़्यादा भड़क उठते। विद्वान यह भी कहते हैं, यह हो नहीं सकता कि चरवाहे ठंड और बरसात के इतने खराब मौसम में घरों से बाहर मैदान में अपनी भेड़ों के साथ हों।—लूका २:८-१४.
यहाँ गौर कीजिए कि यहोवा ने अपने बेटे के जन्म की सूचना उन दिनों के पढ़े-लिखे प्रभावशाली धार्मिक नेताओं को नहीं दी बल्कि गाँव के अनपढ़ मजदूरों को दी जो घरों से बाहर रहते थे। सदूकियों और फरीसियों का चरवाहों से बहुत कम वास्ता पड़ता था, क्योंकि उनका अधिकतर समय बाहर बीतता था और वे बहुत सारे मौखिक नियमों का पालन नहीं कर पाते थे। लेकिन परमेश्वर ने इन नम्र और वफादार मज़दूर आदमियों पर अनुग्रह किया और उन्हें बहुत बड़ा सम्मान दिया, स्वर्गदूतों के एक दल ने उन्हें बताया कि परमेश्वर के वफादार सेवक जिस मसीहा का हज़ारों सालों से इंतज़ार कर रहे थे वह बस कुछ ही देर पहले बैतलहम में पैदा हुआ है। तो ये चरवाहे थे जो मरियम, यूसुफ और चरनी में लेटे यीशु से मिलने आए थे, न कि वे “तीन राजा” जिन्हें अकसर क्रिसमस की झाँकियों में दिखाया जाता है।—लूका २:१५-२०.
यहोवा ने सच्चाई ढूढ़नेवाले नम्र लोगों पर अनुग्रह किया
परमेश्वर का अनुग्रह उन नम्र लोगों पर होता है जो उससे प्यार करते हैं और पूरे दिल से परमेश्वर के उद्देश्यों के पूरे होने का इंतज़ार करते हैं। और यीशु के जन्म पर और बाद में होनेवाली घटनाओं से इस बात का सबूत मिलता है। यीशु के जन्म के करीब एक महीने बाद मरियम और यूसुफ, मूसा की व्यवस्था के मुताबिक मंदिर में “पंडुकों का एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे” बलिदान चढ़ाने जाते हैं। (लूका २:२२-२४) वैसे तो व्यवस्था में एक भेड़ी के बच्चे का बलिदान चढ़ाने के लिए कहा गया था मगर गरीब लोगों को कम कीमत के बलिदान चढ़ाने की भी अनुमति दी गई थी। (लैव्यव्यवस्था १२:१-८) जरा इस बात को सोचिए। यहोवा परमेश्वर, इस जहाँ के मालिक ने एक धनवान परिवार नहीं बल्कि एक गरीब परिवार को चुना जहाँ उसके प्यारे और इकलौते बेटे की परवरिश होती। अगर आप एक माता या पिता हैं तो आप इस घटना से सीख सकते हैं कि आपका अपने बच्चों के लिए धन-दौलत या ऊँची शिक्षा से भी बेहतर तोहफा होगा कि आप अपने बच्चों को एक ऐसा माहौल दें जिसमें आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान दिया जाता है।
मंदिर में दो और वफादार, नम्र उपासकों पर यहोवा का अनुग्रह हुआ। एक थी हन्नाह जो ८४ वर्ष की विधवा थी, और “मन्दिर को नहीं छोड़ती थी” (लूका २:३६, ३७) और दूसरा था शमौन, एक बुज़ुर्ग वफादार उपासक। वे दोनों खुशी से झूम गए जब परमेश्वर ने उन पर अनुग्रह करके उन्हें सम्मान दिया और उनकी मौत से पहले वादा किए मसीहा को देखने का उन्हें मौका दिया। शमौन ने बच्चे के बारे में भविष्यवाणी की। यह भविष्यवाणी आशा के साथ-साथ दुखभरी भी थी। उसने बच्चे की माँ मरियम से कहा: एक दिन अपने बेटे की पीड़ा देखकर उसका प्राण छिद जाएगा।—लूका २:२५-३५.
बच्चे के लिए खतरा
शमौन की भविष्यवाणी इस बात की सख्त चेतावनी थी कि यह मासूम बच्चा नफरत का शिकार बनेगा। जबकि यीशु बालक ही था तभी से हम उसके खिलाफ नफरत को देख सकते हैं। मत्ती का विवरण हमें बताता है कि ऐसा कैसे हुआ। कुछ ही महीने बीते थे और यूसुफ, मरियम, और यीशु बैतलहम में एक घर में रह रहे थे कि एक दिन कुछ विदेशी मेहमान उनके घर पधारे। मत्ती कोई गिनती नहीं देता कि कितने लोग आए थे जैसा कि क्रिसमस की सैकड़ों झाँकियों में यीशु के जन्म के बारे में दिखाया जाता है, और न ही वह उन्हें “बुद्धिमान पुरुष” कहता और “तीन राजा” तो बिल्कुल भी नहीं कहता। वह यूनानी शब्द मागी इस्तेमाल करता है जिसका मतलब है “ज्योतिषी।” सिर्फ इस बात को देखकर ही पढ़नेवालों को एक सुराग मिल जाता है कि ज़रूर इसमें कोई शैतानी ताकत काम कर रही थी। क्योंकि ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जिसे परमेश्वर के वचन यानी बाइबल में गलत बताया गया है और वफादार यहूदी अपनी खराई बनाए रखने के लिए इससे दूर रहते थे।—व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२; यशायाह ४७:१३, १४.
ये ज्योतिषी लोग पूर्व से एक तारे का पीछा करते हुए वहाँ पहुँचे थे। और वे ‘यहूदियों के राजा के लिए जिसका जन्म हुआ था’ भेंट लाए थे। (मत्ती २:२) मगर यह तारा उन्हें बैतलहम नहीं ले गया। यह पहले उन्हें यरूशलेम में हेरोदेस के पास ले गया। एक ऐसे आदमी के पास जिसे बालक यीशु को मारने में ज़रा भी देर नहीं लगती और उस वक्त यीशु का उससे बड़ा और कोई दुश्मन नहीं हो सकता था। इस महत्वाकांक्षी, खूनी आदमी ने अपने परिवार के उन सगे रिश्तेदारों को भी मौत के घाट उतार दिया था जिन पर उसे ज़रा भी शक था और जिन्हें वह खतरा समझता था।a आगे चलकर “यहूदियों के राजा” बननेवाले इस बच्चे के जन्म की खबर सुनकर वह बौखला गया। उसने ज्योतिषियों को बैतलहम भेजा ताकि उस बालक का पता लगाएँ। जैसे ही वे गए एक चमत्कारिक घटना घटी। वह “तारा” जो उन्हें यरूशलेम लाया था फिर से चल पड़ा!—मत्ती २:१-९.
हम नहीं जानते कि यह तारा आसमान में सचमुच की ज्योति था या सिर्फ एक दर्शन। मगर हम इतना तो ज़रूर जानते हैं कि वह “तारा” परमेश्वर की ओर से नहीं था। वह शैतानी तारा उन्हें ठीक उस जगह पर ले गया जहाँ यीशु था। वह छोटा, मासूम और लाचार था और उसकी रक्षा के लिए सिर्फ एक गरीब बढ़ई और उसकी पत्नी वहाँ मौजूद थे। ज्योतिषी हेरोदेस की धूर्त चाल से बेखबर थे और वे वापस जाकर बच्चे के बारे में खूनी राजा को बता देते जिससे वह बच्चे को मरवा डालता। मगर परमेश्वर ने उन्हें सपने के द्वारा चेतावनी देकर दूसरे रास्ते से अपने घर लौटने के लिए कहा। क्या ही खिलवाड़ है, कि ‘तारे’ और ज्योतिषियों को क्रिसमस की झाँकियों में परमेश्वर के संदेशवाहक और दूतों के रूप में दर्शाया जाता है!—मत्ती २:९-१२.
इतना सब कुछ होने के बावजूद, शैतान अपनी करतूतों से बाज़ नहीं आया। उसके हाथों की कठपुतली राजा हेरोदेस ने यह हुक्म दिया कि बैतलहम में जितने भी बच्चे दो साल या उससे छोटे हैं सब को मौत के घाट उतार दिया जाए। मगर शैतान परमेश्वर के खिलाफ लड़ाई जीत नहीं सकता। मत्ती बताता है परमेश्वर ने तो बहुत सालों पहले ही देख लिया था कि नन्हे-नन्हे बच्चों का खून बहाया जाएगा। यहोवा ने शैतान की चाल को एक बार फिर पलट दिया, उसने यूसुफ को स्वर्गदूत के ज़रिए चेतावनी दी कि सुरक्षा के लिए मिस्र भाग जाए। मत्ती बताता है कि कुछ समय बाद यूसुफ अपने छोटे-से परिवार को लेकर नासरत में जा बसा, और वहीं यीशु अपने छोटे भाई-बहनों के साथ पला-बढ़ा।—मत्ती २:१३-२३; १३:५५, ५६.
मसीह का जन्म—आपके लिए इसका महत्त्व
यीशु के जन्म और उसके बालकपन के माहौल की सच्चाई जानकर क्या आपको अचरज हो रहा है? बहुत-से लोगों को होता है। उन्हें इस बात से अचरज होता है कि न सिर्फ ये वर्णन एक-दूसरे से मेल खाते हैं बल्कि ये सही हैं, चाहे बहुत से लोग दावा क्यों न करें कि ये झूठे हैं। उन्हें ताज्जुब होता है कि कुछ घटनाएँ तो सैकड़ों साल पहले ही बता दी गई थीं। उन्हें ताज्जुब होता है कि लोग जो मानते हैं और यीशु के जन्म की झाँकियों और चरनी के दृश्यों में जो दिखाया जाता है वह सुसमाचार की किताबों में बताई गई बातों से एकदम अलग है।
इससे भी ज़्यादा चौंकाने की बात तो यह है कि आज क्रिसमस पर सुसमाचार में बताए गए वर्णन के खास मकसद को भूला दिया गया है। और यीशु के असली पिता—यूसुफ नहीं बल्कि यहोवा परमेश्वर की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। ज़रा परमेश्वर के बारे में सोचिए कि उस पर क्या बीती होगी जब उसने अपना प्यारा बेटा यूसुफ और मरियम को पालने-पोसने के लिए दिया होगा। ज़रा सोचिए उस स्वर्गीय पिता को कितना दर्द हुआ होगा जब उसने अपने बेटे को एक ऐसी गंदी दुनिया में बड़ा होने दिया जहाँ लोग तब से उसके खून के प्यासे थे जब वह नन्हा-सा बालक ही था! वह मानवजाति से गहरा प्यार ही था जिसकी वज़ह से यहोवा इस बलिदान को देने के लिए तैयार था।—यूहन्ना ३:१६.
क्रिसमस पर सचमुच के यीशु को तो अकसर भूला ही दिया जाता है। ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता जिससे पता चले कि यीशु ने कभी अपने जन्म की तारीख अपने चेलों को बताई हो। और न ही ऐसा कोई संकेत मिलता है कि उसके चेलों ने कभी उसका जन्म दिन मनाया हो।
उसने अपने चेलों को अपना जन्म नहीं मगर अपनी मौत की यादगार मनाने की आज्ञा दी थी। और इसी यादगार का एक ऐतिहासिक महत्त्व है। (लूका २२:१९, २०) यीशु नहीं चाहता कि अब उसे एक मासूम बच्चे के रूप में याद किया जाए जो चरनी में पड़ा था। वह अब कमज़ोर नहीं है। अपनी बलिदानी मौत के ६० से ज़्यादा साल बाद यीशु ने यूहन्ना को दर्शन में खुद को एक ऐसे ताकतवर राजा के रूप में दिखाया जो जंग के लिए सवार होता है। (प्रकाशितवाक्य १९:११-१६) अब वह परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य का राजा है। और हमें आज यीशु को इसी रूप में जानने की ज़रूरत है, क्योंकि वह ऐसा राजा है जो दुनिया को बदलनेवाला है।
[फुटनोट]
a कैसर औगूस्तुस ने भी कहा कि हेरोदेस के पाले हुए सूअर के कत्ल होने के आसार कम थे लेकिन उसके हाथों अपने ही बेटे का कत्ल किए जाने के आसार ज़्यादा थे।
[पेज 7 पर बक्स/तसवीरें]
क्या लूका गलत था?
ऐसा कैसे हो सकता है कि यीशु जो नासरत में पला-बढ़ा और नासरी कहलाया वहाँ से करीब १५० किलोमीटर दूर बैतलहम में पैदा हुआ? लूका बताता है: “उन दिनों में [यीशु के जन्म से पहले] औगूस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं। यह पहिली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्विरिनियुस सूरिया का हाकिम था। और सब लोग नाम लिखवाने के लिये अपने अपने नगर को गए।”—लूका १:१; २:१-३.
आलोचक बस इन आयतों को पकड़ लेते हैं और कहते हैं ये बकवास हैं, इनमें कुछ गड़बड़ है, ये झूठी हैं। वे यह दावा करते हैं कि यह जन-गणना की आज्ञा क्विरिनियुस गवर्नर के काल में सा.यु. ६ या ७ में दी गई थी। अगर आलोचक सही हैं तो फिर लूका गलत साबित होता है क्योंकि प्रमाण बताते हैं कि यीशु सा.यु.पू. २ में पैदा हुआ था। मगर इन आलोचकों ने दो खास बातें तो नज़रअंदाज़ ही कर दी हैं। पहली, लूका बताता है कि जन-गणना एक-से ज़्यादा बार हुई थी, यहाँ गौर कीजिए कि वह कहता है “यह पहिली नाम लिखाई” थी। इसका मतलब वह दूसरी नाम लिखाई से भी अच्छी तरह वाकिफ था जो बाद में हुई थी। (प्रेरितों ५:३७) और यह वही बाद की जन-गणना है जो सा.यु. ६ में हुई थी और जिसके बारे में इतिहासकार जोसिफस ने ज़िक्र किया था। अब दूसरी बात, क्विरिनियुस के गवर्नर होने का समय चाहे कोई भी क्यों न हो मगर हमें इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि यीशु के जन्म की तारिख गलत है। क्यों? क्योंकि सबूत बताते हैं कि क्विरिनियुस दो बार उस पद पर नियुक्त हुआ था। कई विद्वान इस बात को मानते हैं कि क्विरिनियुस पहली बार सा.यु.पू. २ में अपने पद पर नियुक्त हुआ था।
कुछ आलोचक कहते हैं कि लूका ने जन-गणना के बारे में अपनी मन-मर्ज़ी से लिख दिया था जिससे यह सबूत मिल सके कि यीशु बैतलहम में पैदा हुआ था। और ऐसा करके वह दिखा सके कि मीका ५:२ की भविष्यवाणी की पूर्ति हुई थी। इस थियोरी के मुताबिक लूका ने जानबूझकर झूठ लिखा यानी वह एक झूठा इतिहासकार था। और कोई भी आलोचक यह नहीं मान सकता कि ऐसा झूठा इतिहासकार सुसमाचार की किताब और प्रेरितों की किताब लिख सकता है।
और भी एक बात है जिसे कोई भी आलोचक समझा नहीं सकता: गणना ने तो अपने आप ही भविष्यवाणी की पूर्ति कर दी थी! सा.यु.पू. छठी शताब्दी में भविष्यवक्ता दानिय्येल ने पहले से बता दिया था कि एक शासक होगा “जो शिरोमणि राज्य में अन्धेर करनेवाले को घुमाएगा।” क्या यह भविष्यवाणी औगूस्तुस पर लागू होती है जिसने ये हुक्म दिया था कि इस्राएल की जन-गणना की जाए? देखिए, भविष्यवाणी आगे क्या कहती है उस शासक के उत्तराधिकारी के शासन-काल के दौरान, मसीहा या “वाचा का प्रधान . . . नाश” होगा। बेशक यीशु “नाश” हुआ, औगूस्तुस के उत्तराधिकारी, तिबिरियुस के शासनकाल के दौरान।—दानिय्येल ११:२०-२२.
[तसवीरें]
कैसर औगूस्तुस (सा.यु.पू. २७—सा.यु. १४.)
तिबिरियुस कैसर (सा.यु. १४-३७.)
[चित्रों का श्रेय]
Musée de Normandie, Caen, France
Photograph taken by courtesy of the British Museum
[पेज 8 पर तसवीर]
यहोवा के स्वर्गदूत ने मसीह के जन्म की खुशखबरी सुनाकर नम्र चरवाहों पर अनुग्रह किया