घमंड की कीमत—कितनी बड़ी?
क्या कभी आपका वास्ता ऐसे आदमी से पड़ा जिसने जानबूझकर आपको नीचा दिखाने की कोशिश की, जिसने आपको तुच्छ समझकर आपके साथ घटिया सलूक किया हो? वह शायद आपका मैनेजर, बॉस, ओवरसियर, या यहाँ तक कि आपका कोई रिश्तेदार ही रहा हो? तो आपको उस आदमी के बारे में कैसा लगा? क्या वह आदमी आपको पसंद आया? बिलकुल नहीं! क्यों? क्योंकि घमंड रिश्तों में दीवारें खड़ी कर देता है और बातचीत की किसी भी संभावना को हमेशा के लिए मिटा देता है।
घमंडी व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष, वह हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है ताकि वह खुद उनसे ऊँचा नज़र आए। वह आदमी जिसे घमंड करने की आदत होती है शायद ही कभी दूसरों के बारे में कोई अच्छी बात कहता है। उसके पास दूसरों के बारे में कोई बुरी बात कहने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ होता है। जैसे—“चलो मान लिया कि उसमें यह अच्छाई है तौभी उसमें बुराइयों की कमी नहीं, चाहो तो उसकी खामियाँ गिनवाता हूँ।”
चान्दी के शब्दों में सोने जैसी बातें (अंग्रेज़ी) किताब में घमंड के बारे में कुछ इस तरह बयान किया गया है: “घमंड ऐसा रोग है जो इंसान को खा जाता है। यह उसे बरबादी की ओर ले जाता है। लोग ऐसे इंसान के साये से भी नफरत करते हैं।” तो क्या इसमें कोई हैरानी की बात है कि एक घमंडी इंसान के पास कोई भी जाना पसंद नहीं करता? दरअसल घमंड की कीमत सच्चे दोस्तों को खोकर चुकानी पड़ती है। “मगर दूसरी तरफ,” वही किताब बताती है, “दुनिया नम्र लोगों से प्यार करती है—नम्रता का ढोंग करनेवाले घमंडियों से नहीं, मगर उनसे जो सचमुच दिल-से नम्र हैं।” बाइबल एकदम सही बताती है: “मनुष्य का घमंड उसे अपमान दिलाता है, लेकिन जो दिल से नम्रता दिखाता है उसका सम्मान होगा।”—नीतिवचन २९:२३, द जेरूसलेम बाइबल।
घमंड का दोस्ती या लोगों से सम्मान पाने पर असर ज़रूर पड़ता है मगर इनसे भी बढ़कर, घमंड का परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते पर क्या असर पड़ता है? परमेश्वर घमंडी, अभिमानी और अक्खड़ व्यक्ति को किस नज़र से देखता है? हम घमंड करें या नम्रता दिखाएँ, क्या इससे परमेश्वर को कोई फर्क पड़ता है?
नम्रता का एक सबक
नीतिवचन के लेखक ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा: “विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है। घमण्डियों के संग लूट बांट लेने से, दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है।” (नीतिवचन १६:१८, १९) इन शब्दों की सच्चाई हम अराम के सेनापति नामान के किस्से में देख सकते हैं। यह उन दिनों की बात है जब एलीशा इस्राएल में भविष्यवक्ता था।
नामान एक कोढ़ी था। इलाज की खोज में उसने सामरिया तक की यात्रा यह सोचकर की कि वहाँ एलीशा खुद उसका इलाज करेगा। लेकिन भविष्यवक्ता एलीशा ने खुद उससे मिलने के बजाय अपने सेवक को सलाह देकर नामान के पास भेजा कि वह जाए और यरदन नदी में सात डुबकी लगाकर स्नान करे। नामान इलाज के इस तरीके से बहुत क्रोधित हुआ। वह बोला कि भविष्यवक्ता ने खुद आकर मुझसे बात क्यों नहीं की, उसने अपने सेवक को क्यों भेजा? और, अराम की नदियाँ भी उतनी ही अच्छी हैं जितनी कि यरदन नदी है! उसकी समस्या थी घमंड। नतीजा क्या हुआ? किसी की अच्छी सलाह मानने से उसका भला हुआ। “तब उस ने परमेश्वर के भक्त के वचन के अनुसार यरदन को जाकर उस में सात बार डुबकी मारी, और उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; और वह शुद्ध हो गया।”—२ राजा ५:१४.
कभी-कभी थोड़ी-सी नम्रता दिखाने से बहुत बड़े-बड़े फायदे हो जाते हैं।
घमंड की कीमत
घमंड करने से हमें जितना फायदा होता है, उससे कहीं ज़्यादा हमें नुकसान होता है। घमंड का एक और रूप होता है जिसे यूनानी भाषा में ईव्रिस कहते हैं। यूनानी भाषा के विद्वान विलियम बार्कले के मुताबिक “ईव्रिस का मतलब है, ऐसा घमंड जिसमें क्रूरता हो . . . यह ऐसा अभिमान है जिसमें लोग दूसरों को नीचा दिखाने के लिए बेरहमी से उनके दिलों को पाँव तले रौंदते हैं।”
हद-से-ज़्यादा घमंड दिखाने का एकदम साफ उदाहरण बाइबल में मिलता है। यह अम्मोन के राजा हानून का किस्सा है। इनसाईट ऑन द स्क्रिपचर्स किताब बताती है: “हानून के पिता नाहाश ने दाऊद को बहुत प्रीति दिखाई थी इसलिए उसके मरने पर दाऊद ने हानून को शांति देने के लिए अपने कुछ राजदूत भेजे। लेकिन हानून के हाकिमों ने उससे कहा कि दाऊद उसके साथ धोखा कर रहा है और उसने अपने राजदूतों को इस देश का भेद लेने के लिए भेजा है। इस पर हानून ने दाऊद के राजदूतों को पकड़ा, और उनकी आधी-आधी डाढ़ी मुड़वाकर और आधे वस्त्र, अर्थात् नितम्ब तक कटवाकर, उनको भेज दिया।”a इस किस्से में बार्कले कहता है: “ऐसे व्यवहार को ईव्रिस कहते हैं। इसमें किसी की बेइज़्ज़ती करना, घोर अपमान करना और सबके सामने नीचा दिखाना, सब कुछ शामिल है।”—२ शमूएल १०:१-५.
जी हाँ, घमंडी आदमी अभिमानी होकर दूसरों का अपमान करता फिरता है। उसमें रहम नाम की कोई चीज़ नहीं होती, और दूसरों को चोट पहुँचाने में उसे बड़ा मज़ा आता है। और जब दूसरों को तकलीफ होती है तो उन्हें देखकर उसके कलेजे को बहुत ठंडक मिलती है। लेकिन किसी को बदनाम करना या उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिलाना दोधारी तलवार के समान है। एक तरफ इसका अंजाम होता है एक दोस्त गवाँ बैठना और दूसरी तरफ एक दुश्मन का बढ़ जाना।
क्या एक सच्चा मसीही घमंड में आकर किसी को चोट पहुँचा सकता है, जबकि उसके गुरू ने आज्ञा दी हो कि ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख’? (मत्ती ७:१२; २२:३९) ऐसा करने का मतलब है परमेश्वर और मसीह के खिलाफ जाना। इस आयत पर बार्कले ने बहुत गहरी बात कही है: “ईव्रिस वह घमंड है जिससे एक आदमी परमेश्वर का विरोधी बन जाता है।” क्योंकि घमंडी कहता है: “कोई परमेश्वर [यहोवा] है ही नहीं।” (भजन १४:१) या जैसे भजन १०:४ में बताया गया है: “दुष्ट अपने अभिमान के कारण कहता है कि वह लेखा नहीं लेने का; उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं।” ऐसा घमंड या अभिमान न सिर्फ हमसे दोस्तों और रिश्तेदारों को दूर करवा देता है, बल्कि यह हमें परमेश्वर से भी दूर ले जाता है। घमंड की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है!
अपने अंदर घमंड का ज़हर पैदा मत होने दीजिए
कई बातों पर घमंड किया जा सकता है—देश पर, जाति पर, समाज में उच्च स्थान, वर्ग, शिक्षा, धन-दौलत, प्रतिष्ठा और ताकत पर। किसी-न-किसी तरीके से हममें आसानी से घमंड पैदा हो सकता है और यह हमारे अच्छे गुणों को बरबाद कर सकता है।
बहुत-से व्यक्ति अपने से बड़ों या बराबरवालों से बड़ी नम्रता से पेश आते हैं। मगर तब क्या हो जाता है जब ऐसी नम्रता दिखानेवाले व्यक्तियों के हाथ में थोड़ा-सा अधिकार आ जाता है? अचानक वे ज़ालिम बन जाते हैं और अपने से छोटों का जीना दुश्वार कर देते हैं! कुछ लोगों के साथ तब ऐसा हो सकता है जब उन्हें कोई वर्दी मिल जाती है या बिल्ला मिल जाता है, जिससे ताकत की पहचान होती है। यहाँ तक कि सरकारी कर्मचारी भी पब्लिक से अपने व्यवहार में घमंडी हो सकते हैं। वे सोचने लगते हैं कि पब्लिक उनकी सेवा करने के लिए है, न कि वे पब्लिक की। घमंड आपको कठोर और बेरहम बना सकता है, मगर नम्रता आपको दयालु बना सकती है।
यीशु भी घमंड कर सकता था और अपने चेलों से कठोर व्यवहार कर सकता था क्योंकि वह एकदम सिद्ध पुरुष था और परमेश्वर का बेटा था। उसके चेले असिद्ध, जज़बाती और उतावले थे। इसके बावजूद उसने सुननेवालों को क्या निमंत्रण दिया? “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।”—मत्ती ११:२८-३०.
क्या हम हमेशा यीशु के उदाहरण की नकल करना चाहते हैं? या क्या आप कठोर, ढीठ, ज़ुल्मी, बेरहम और घमंडी हैं? यीशु की तरह, लोगों को खुशी दीजिए उन्हें नीचा मत दिखाइए। घमंड एक ज़हर है। इससे बचे रहिए।
इन सब बातों को देखते हुए क्या सब तरह का घमंड गलत है?
घमंड के बजाए आत्म-सम्मान
एक सही और जायज़ गुण है जिसे आत्म-सम्मान कहते हैं। आत्म-सम्मान का मतलब है कि खुद के लिए सम्मान होना। इसका यह भी मतलब है कि इस बात पर ध्यान देना कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं। आप अपने बारे में और अपनी इज़्ज़त के बारे में परवाह करते हैं। यह स्पैनिश कहावत सच है जो कहती है, “मुझे सिर्फ इतना बताओ कि तुम किसके साथ घूमते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कैसे हो।” अगर आप लापरवाह, आलसी, असभ्य, और गंदी भाषा बोलनेवाले लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं तो एक दिन आप भी वैसे ही बन जाएँगे। उनका व्यवहार आपको भी बदल देगा, आप भी उनकी तरह बन जाएँगे, आप अपना आत्म-सम्मान खो बैठेंगे।
दूसरी तरफ, घमंड की दूसरी हद है जो इंसान को बहुत ही अहंकारी बना सकती है। यीशु के दिनों में फरीसी और सदूकी अहंकारी थे और अपने रीति-रिवाज़ों और अति-धर्मी दिखनेवाली वेश-भूषा पर घमंड करते थे। यीशु ने उनके बारे में चेतावनी दी: “वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं: [और ज़्यादा पवित्र दिखने के लिए] वे अपने तावीजों को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की कोरें बढ़ाते हैं। जेवनारों में मुख्य मुख्य जगहें, और सभा में मुख्य मुख्य आसन। और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी कहलाना उन्हें भाता है।”—मत्ती २३:५-७.
इसलिए हमें उचित या सही नज़रिया अपनाना चाहिए। यह भी याद रखिए कि यहोवा बाहरी रूप-रंग को नहीं देखता, बल्कि दिल को जाँचता है। (१ शमूएल १६:७; यिर्मयाह १७:१०) खुद को ज़्यादा धर्मी समझना परमेश्वर की धार्मिकता नहीं है। तो फिर सवाल यह पैदा होता है कि हम खुद में कैसे सच्ची नम्रता पैदा कर सकते हैं और घमंड की बड़ी कीमत चुकाने से कैसे बच सकते हैं?
[फुटनोट]
a वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
[पेज 4 पर तसवीर]
थोड़ी-सी नम्रता दिखाने से नामान को बहुत फायदे हुए