शादी में सफलता हासिल करने के लिए क्या ज़रूरी है?
तैराकी सीखे बगैर, क्या आप नदी में तैरने के लिए कूद पड़ेंगे? ऐसा पागलपन तो बैठे-बिठाए मुसीबत खड़ी कर सकता है यहाँ तक कि जानलेवा भी हो सकता है। अब ज़रा सोचिए, आप ऐसे कितने लोगों को जानते हैं जिन्होंने झटपट शादी तो कर ली मगर यह नहीं सोचा कि शादी के बाद ज़िम्मेदारियाँ कैसे संभालें।
यीशु ने कहा: “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहिले बैठकर खर्च न जोड़े, कि पूरा करने की विसात [गुंजाइश] मेरे पास है कि नहीं?” (लूका १४:२८) जैसे गढ़ बनाने के बारे में सच है वैसे ही शादी रचाने के बारे में भी सच है। वे लोग जो शादी करना चाहते हैं उन्हें पहिले बैठकर ध्यान से अपनी जाँच करनी चाहिए कि शादी करने की जो कीमत चुकानी पड़ती है क्या वे उसे चुका सकेंगे?
शादी पर एक नज़र
जीवन के सुख-दुख में साथ निभानेवाला साथी मिल जाना वाकई एक आशिष है। शादी एक इंसान की ज़िंदगी में, खालीपन या निराशा को दूर कर सकती है। वैसे भी बचपन से ही हमारे अंदर प्यार पाने, किसी का साथ चाहने और नज़दीकी रिश्ता बनाने की जो चाहत होती है, शादी उसे पूरा कर सकती है। आदम को सृष्ट करने के बाद परमेश्वर ने अच्छे कारण से ही यह कहा: “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए।”—उत्पत्ति २:१८; २४:६७; १ कुरिन्थियों ७:९.
जी हाँ, शादी करने से कुछ समस्याएँ दूर हो सकती हैं। मगर दूसरी नई समस्याएँ आ जाएँगी। ऐसा क्यों? क्योंकि शादी ऐसे दो अलग-अलग व्यक्तित्वों का मिलन है जो मेल तो खा सकते हैं लेकिन एक समान बिलकुल नहीं हो सकते। इसलिए ऐसा भी होता है कि वे जोड़े जिनका व्यक्तित्व एक-दूसरे से काफी मिलता है उनमें भी कभी-कभी तकरार हो जाती है। मसीह प्रेरित पौलुस ने लिखा कि वे जो शादी करना चाहते हैं “ऐसों को शारीरिक दुख होगा” या जैसे द न्यू इंग्लिश बाइबल कहती है, “इस जीवन में शरीर में कष्ट और दुख होगा।”—१ कुरिन्थियों ७:२८.
क्या पौलुस निराशावादी व्यक्ति था? बिल्कुल नहीं! वह उनको जो शादी के बारे में सोच रहे थे बता रहा था कि उन्हें शादी की गंभीरता से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए। किसी की तरफ आकर्षित होने से जो खुशी मिलती है उससे यह पता नहीं चल जाता कि शादी के कुछ महीनों और सालों के बाद ज़िंदगी कैसी होगी। शादी के बाद हर जोड़े को अलग ही चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए सवाल यह नहीं है कि समस्याएँ आएँगी या नहीं बल्कि यह कि जब समस्याएँ आएँगी तब उनका सामना कैसे किया जाए।
जब समस्याएँ आती हैं तभी पति-पत्नी की परख होती है कि वे एक-दूसरे से किस हद तक प्यार करते हैं। इसे एक दृष्टांत से देखा जा सकता है: एक बड़ा समुद्री जहाज़ बंदरगाह पर खड़ा बहुत मज़बूत दिखाई दे सकता है। मगर उसकी असली मज़बूती तभी साबित होगी जब वह समुद्र के बीच में हो और जब उस पर तूफानी लहरों के हमले हों। ठीक इसी तरह शादी का बंधन कितना मज़बूत है यह तब पता चलेगा जब एक जोड़े को तूफान जैसी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है रोमांस के खुशनुमा लमहों में नहीं जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा हो।
सफलतापूर्वक सामना करने के लिए एक जोड़े को वचनबद्ध होने की ज़रूरत है क्योंकि परमेश्वर का उद्देश्य था कि पुरुष “अपनी पत्नी से मिला” रहे और वे दोनों ‘एक ही तन बने रहें।’ (उत्पत्ति २:२४) आज वचनबद्धता के नाम से ही कई लोग डर जाते हैं। फिर भी यह उचित है कि वे दो जन जो वाकई एक-दूसरे से प्यार करते हैं यह वादा करना चाहेंगे कि वे एक-साथ ज़िंदगी बिताने के लिए तैयार हैं। वचनबद्धता शादी को और गरिमा प्रदान करती है। इससे यह भरोसा होता है कि अगर कल कोई समस्या आई तो पति-पत्नी पूरी तरह एक-दूसरे का साथ देंगे।a लेकिन अगर आप इस तरह वचन देने के लिए तैयार नहीं तो इसका मतलब यह है कि आप अभी शादी के लायक नहीं हैं। (सभोपदेशक ५:४, ५ से तुलना कीजिए।) यहाँ तक कि उन लोगों को भी जिनकी शादी हो चुकी है अपनी वचनबद्धता के प्रति मूल्यांकन दिखाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से शादी हमेशा कायम रहती है।
खुद को जाँचिए
इसमें कोई शक नहीं कि आप उन गुणों की एक लम्बी लिस्ट बना सकते है जो आप चाहेंगे कि आपके होनेवाले जीवन-साथी में हों। मगर मुश्किल बात यह होती है कि खुद को जाँचे कि मैं कैसे शादी निभाने में अपना योगदान दे सकता हूँ। विवाह-बंधन की शपथ लेने से पहले और बाद में खुद की जाँच करना अच्छा है। उदाहरण के लिए आप खुद से ये सवाल पूछ सकते हैं।
• क्या मैं अपने साथी से, जीवन-भर साथ रहने का वादा करने के लिए तैयार हूँ?—मत्ती १९:६.
बाइबल में बताए गए भविष्यवक्ता मलाकी के दिनों में, बहुत-से पतियों ने अपनी जीवन-संगिनी को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वे दूसरी जवान स्त्रियों से शादी करना चाहते थे। यहोवा ने कहा कि उसकी वेदी रोनेवाली और आहें भरनेवाली त्यागी हुई पत्नियों के आँसुओं से भीगी है, और उसने उन आदमियों को दोषी ठहराया जिन्होंने अपनी-अपनी स्त्रियों से “विश्वासघात” किया था।—मलाकी २:१३-१६.
• अगर मैं शादी करने की सोच रहा हूँ तो क्या मेरा लड़कपन ढल गया है जिसमें लैंगिक भावनाएँ बहुत गहरी होती हैं और जिससे सही चुनाव करने में मुश्किल हो सकती है?—१ कुरिन्थियों ७:३६.
जब निक्की की शादी हुई तब वह २२ साल की थी। वह कहती है: “जवानी की शुरुआत में ही शादी कर लेना बहुत खतरनाक है।” वह खबरदार करती है: “१७, १९ साल की उम्र से लेकर २५ या २९ की उम्र तक आपकी भावनाएँ, उद्देश्य, और पसंद लगातार बदलती रहती हैं।” बेशक, शादी के लायक आप हैं या नहीं इसे सिर्फ उम्र से नहीं नापा जा सकता। फिर भी एक जन जो जल्दी शादी कर लेता है और जिसका अभी लड़कपन खतम नहीं हुआ है और जिसमें लैंगिक भावनाएँ नई और गहरी हैं आगे चलकर शादी में आनेवाली समस्याओं के बारे में सोच समझ नहीं सकता।
• मुझमें ऐसे कौन-से गुण हैं जो शादी को निभाने में मदद करेंगे?—गलतियों ५:२२, २३.
प्रेरित पौलुस ने कुलुस्सियों को लिखा: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।” (कुलुस्सियों ३:१२) यह सलाह उन लोगों के लिए एकदम सही है जो अभी शादी के बारे में सोच रहे हैं या जो शादी कर चुके हैं।
• क्या मुझ में वह परिपक्वता है कि मैं मुसीबत के समय में अपने साथी की मदद कर सकूँ?—गलतियों ६:२.
एक डॉक्टर कहता है: “जब समस्याएँ खड़ी होती हैं” तो “एक-दूसरे पर दोष लगाने की आदत होती है। यहाँ पर यह बात सबसे ज़रूरी नहीं है कि किस पर दोष लगाया जाए बल्कि यह कि पति-पत्नी दोनों साथ मिलकर अपना रिश्ता कैसे और मज़बूत बना सकते हैं।” बुद्धिमान राजा, सुलैमान के शब्द पति-पत्नी पर लागू होते हैं। उसने लिखा “एक से दो अच्छे हैं,” वह आगे कहता है “क्योंकि यदि उन में से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परन्तु हाय उस पर जो अकेला होकर गिरे और उसका कोई उठानेवाला न हो।”—सभोपदेशक ४:९, १०.
• क्या मैं खुश रहनेवाला और आशावादी हूँ या फिर निराशावादी और नकारात्मक मनोवृत्ति रखनेवाला हूँ?—नीतिवचन १५:१५.
नकारात्मक मनोवृत्तिवाले इंसान के लिए हर दिन बुरा ही होता है। और शादी करने से कोई चमत्कार तो हो नहीं जाएगा कि उसकी मनोवृत्ति बदल जाए! एक अकेला व्यक्ति—पुरुष या स्त्री—जो बहुत ज़्यादा आलोचना करता है या निराशावादी है शादी के बाद भी पहले की तरह ही आलोचना करनेवाला और निराशावादी रहता है, फर्क सिर्फ इतना होता है कि अब वह शादीशुदा है। ऐसा नकारात्मक गुण शादीशुदा ज़िंदगी में भारी तनाव पैदा कर सकता है।—नीतिवचन २१:९ से तुलना कीजिए।
• कुछ दबाव आने पर क्या मैं शांति बनाए रखता हूँ या बेलगाम, गुस्से से भर जाता हूँ?—गलतियों ५:१९, २०.
मसीहियों को यह आज्ञा दी गई है कि वे ‘क्रोध में धीमे हों।’ (याकूब १:१९) शादी से पहले और शादी के बाद भी, आदमी हो या औरत उन्हें अपने अंदर इस हिदायत के मुताबिक गुणों को पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।”—इफिसियों ४:२६.
अपने होनेवाली जीवन-साथी पर एक नज़र
बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।” (नीतिवचन १४:१५) अपने साथी का चुनाव करते वक्त यह बात लागू होती है। शादी के लिए जीवन-साथी का चुनाव करना एक आदमी या औरत के लिए, अपनी ज़िंदगी का सबसे अहम फैसला होता है। जबकि ऐसा भी देखा गया है कि बहुत-से लोग कार खरीदने या किस कॉलेज में दाखिला लिया जाए इसका फैसला करने में बहुत वक्त लगा देते हैं मगर शादी किससे करें इसका फैसला करने में ज़्यादा वक्त नहीं लगाते।
मसीही कलीसिया में, जिन लोगों को ज़िम्मेदारी दी जाती है वे “पहिले परखे” जाते हैं। (१ तीमुथियुस ३:१०) अगर आप शादी करने के बारे में सोच रहे हैं तो आप दूसरे जन को ‘परखकर’ तसल्ली करना चाहेंगे कि वह आपके लिए ठीक है कि नहीं। उदाहरण के लिए नीचे दिए गए सवालों पर ध्यान दीजिए। जबकि बताई गई बातें स्त्रियों पर लागू होती हैं मगर बहुत-से सिद्धांत पुरुषों पर भी लागू होते हैं। यहाँ तक की जिनकी शादी हो चुकी है वे भी इन बातों पर ध्यान दे सकते हैं।
• उसकी कैसी इज़्ज़त है?—फिलिप्पियों २:१९-२२.
नीतिवचन ३१:२३ ऐसे पति के बारे में बताती है जो “सभा में देश के पुरनियों के संग बैठता है, तब उसका सन्मान होता है।” शहर के फाटकों पर शहर के बुज़ुर्ग न्याय करने के लिए बैठते थे। इसका मतलब लोगों की नज़र में इस आदमी की इज़्ज़त थी। जिस नज़र से लोग एक आदमी को देखते हैं उससे उस आदमी की इज़्ज़त के बारे में पता चलता है। और अगर यह आपके मामले में लागू होता है तो यह देखना भी फायदेमंद होगा कि उसके नीचे जो लोग काम करते हैं वे उसके बारे में कैसा सोचते हैं। ऐसा करना यह जानने में मदद करेगा कि जब आप उसकी साथी बनेंगी तो आप उसे किस नज़र से देखेंगी।—१ शमूएल २५:३, २३-२५ से तुलना कीजिए।
• उसमें कैसे नैतिक गुण हैं?
परमेश्वरीय ज्ञान सबसे “पहिले तो पवित्र होता है।” (याकूब ३:१७) क्या आपका होनेवाला साथी परमेश्वर के सामने अपनी और आपकी स्थिति से ज़्यादा, अपनी लैंगिक ख्वाहिशों को पूरा करने पर ज़्यादा ज़ोर देता है? अगर वह परमेश्वर के नैतिक गुणों के मुताबिक, अभी चलने के लिए यत्न नहीं कर रहा तो फिर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि वह शादी के बाद ऐसा करेगा?—उत्पत्ति ३९:७-१२.
• वह मेरे साथ कैसे व्यवहार करता है?—इफिसियों ५:२८, २९.
बाइबल की नीतिवचन किताब ऐसे पति के बारे में कहती है जिसके ‘मन में अपनी पत्नी के प्रति विश्वास है।’ इससे ज़्यादा वह “उसकी प्रशंसा करता है।” (नीतिवचन ३१:११, २८, NHT) वह ना तो हद से ज़्यादा ईष्यालु होता है और न ही उसकी माँगें अनुचित होती हैं। याकूब ने लिखा कि जो ज्ञान ऊपर से आता है वह “मिलनसार, कोमल, . . . दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ” होता है।—याकूब ३:१७.
• वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है?—निर्गमन २०:१२.
बच्चे माता-पिता का आदर करें यह सिर्फ एक माँग ही नहीं है। बाइबल कहती है: “अपने जन्मानेवाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।” (नीतिवचन २३:२२) डा. डब्लयू. ह्यू मिस्सिलदिन ने एक बड़ी अच्छी बात लिखी: “बहुत-सी वैवाहिक समस्याओं और बेमेल से बचा जा सकता है—या इन्हें पहले से देखा जा सकता है—अगर एक-दूसरे से शादी का इरादा रखनेवाले एक-दूसरे के घर अकसर आते-जाते रहें और अपने ‘होनेवाले’ साथी का उसके माता-पिता के साथ व्यवहार देख सकें। उसका अपने माता-पिता के बारे में जैसा नज़रिया है उसी तरह उसका नज़रिया अपने जीवन-साथी के बारे में भी हो सकता है। एक जन अपने आप से पूछ सकता है: ‘क्या मैं चाहती हूँ कि मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाए जैसा वह अपने माता-पिता के साथ करता है?’ और जिस तरह से उसके माता-पिता उसके साथ व्यवहार करते हैं। इससे यह पता चल सकता है कि वह खुद कैसा व्यवहार करेगा और आप से कैसा व्यवहार चाहेगा—हनिमून के बाद।”
• क्या उसे गुस्से के दौरे पड़ते हैं या वह गंदी भाषा का इस्तेमाल करता है?
बाइबल सलाह देती है: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।” (इफिसियों ४:३१) पौलुस ने तीमुथियुस को उन मसीहियों से सचेत रहने के लिए कहा जिन्हें “विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है” और जो “डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे बुरे सन्देह . . . व्यर्थ रगड़े झगड़े” उत्पन्न करते हैं।—१ तीमुथियुस ६:४, ५.
इसके अलावा, पौलुस ने लिखा कि कलीसिया में खास ज़िम्मेदारी के लिए जिसे चुना जाए वह “मारपीट करनेवाला न हो”—मूल यूनानी भाषा के मुताबिक, “प्रहार करनेवाला ना हो।” (१ तीमुथियुस ३:३, NW फुटनोट) वह ऐसा न हो जो लोगों से हाथा-पाई करता हो या दूसरों पर कड़वी बातें बोलकर प्रहार करता हो। ऐसा आदमी जिसे क्षण-भर में गुस्सा आ जाता है वह जीवन-साथी बनने के लायक नहीं है।
• उसके क्या-क्या लक्ष्य हैं?
कुछ लोग धन-दौलत का पीछा करते हैं और इसके बुरे नतीजे भुगतते हैं। (१ तीमुथियुस ६:९, १०) और कुछ ऐसे हैं जिनके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता और वे उद्देश्यहीन जीवन जीते हैं। (नीतिवचन ६:६-११) लेकिन परमेश्वर का भय माननेवाला एक व्यक्ति वैसा ही दृढ़संकल्प रखता है जैसा यहोशू ने रखा था, उसने कहा था: “मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूंगा।”—यहोशू २४:१५.
इनाम और ज़िम्मेदारियाँ
शादी एक ईश्वरीय प्रबंध है। यहोवा परमेश्वर ने इसकी स्थापना की और इसकी इजाज़त भी दी। (उत्पत्ति २:२२-२४) उसने स्त्री और पुरुष के बीच में हमेशा का रिश्ता कायम करने के लिए शादी का इंतज़ाम किया ताकि वे दोनों एक-दूसरे की मदद कर सकें। जब पति-पत्नी बाइबल सिद्धांतों पर अमल करते हैं तब वे उम्मीद कर सकते हैं कि उनका वैवाहिक जीवन बहुत आनंददायक होगा।—सभोपदेशक ९:७-९.
हमें यह एहसास होना चाहिए कि हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। बाइबल ने बहुत पहले से बताया था कि हमारे समय में लोग ‘अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी होंगे।’ (२ तीमुथियुस ३:१-४) इन अवगुणों का एक शादी पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। तो फिर जो लोग अभी शादी करने के बारे में सोच रहे उन्हें बैठकर ध्यान से देखना चाहिए कि क्या वे शादी की कीमत चुका सकते हैं। और वे लोग जो शादीशुदा हैं उन्हें लगातार एकता बनाए रखने के लिए बाइबल में मिलनेवाले ईश्वरीय निर्देशनों पर अमल करते रहना चाहिए।
जी हाँ, जो लोग शादी करने के बारे में सोच रहे हैं उन्हें शादी के दिन से आगे की ज़िंदगी के बारे में सोचना चाहिए। और सभी को सिर्फ यही नहीं देखना चाहिए कि शादी कैसे करनी चाहिए मगर यह भी सोचना चाहिए कि शादी के बाद जीवन कैसे जीना चाहिए। मदद पाने के लिए यहोवा से निर्देशन लीजिए जिससे आप वास्तविक होकर सोच सकें रोमांटिक होकर नहीं। अगर आप ऐसा करेंगे तो आप शादी का मज़ा हमेशा-हमेशा तक उठाते रह सकते हैं।
[फुटनोट]
a बाइबल बताती है कि तलाक लेकर दूसरी शादी करना, सिर्फ एक आधार पर हो सकता है और वह है “व्यभिचार”—अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी दूसरे से लैंगिक (सेक्स) संबंध रखना।—मत्ती १९:९.
[पेज 5 पर बक्स]
“प्यार का सबसे अच्छा विवरण जो मैंने पहले कभी नहीं पढ़ा”
डा. केविन लेमन लिखता है: “आप कैसे पता कर सकते हैं कि आपको वाकई प्यार है?” “बहुत पुरानी एक ऐसी किताब है जो प्यार के बारे में बताती है। और यह किताब करीब-करीब दो हज़ार साल पुरानी है। मगर पुरानी होने के बावजूद, इसमें प्यार का सबसे अच्छा विवरण है जो मैंने पहले कभी नहीं पढ़ा।”
डा. लेमन, मसीही प्रेरित पौलुस के शब्दों को बता रहा था जो बाइबल में १ कुरिन्थियों १३:४-८ में लिखे हैं।
“प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं।”
[पेज 8 पर बक्स]
भावनाएँ गुमराह कर सकती हैं
बाइबल के दिनों में शूलेम्मिन लड़की को यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि मुहब्बती-भावनाएँ गुमराह कर सकतीं हैं। जब शक्तिशाली राजा सुलैमान ने उसका प्यार जीतने की कोशिश की, तब उसने अपनी सखियों से कहा: “जब तक प्रेम आप से न उठे, (मुझमें) तब तक उसको न उसकाओ न जगाओ।” (श्रेष्ठगीत २:७) यह बुद्धिमान लड़की नहीं चाहती थी कि उसकी सखियाँ उस पर दबाव डालें जिससे उसकी भावनाएँ उस पर राज करने लगें। और यही बात आज उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है जो शादी करने के बारे में सोच रहे हैं। अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण रखिए। अगर आप शादी करना चाहते हैं, तो शादी इसलिए कीजिए की आप सिर्फ शादी करने की भावनाओं से प्यार नहीं करते बल्कि उस साथी से प्यार करते हैं।
[पेज 6 पर तसवीर]
यहाँ तक कि वे लोग भी जिनकी शादी हुए कई साल हो गए हैं अपनी शादी के रिश्ते को मज़बूत कर सकते हैं
[पेज 7 पर तसवीर]
वह अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करता है?