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यहोवा के मार्गदर्शन की आशीषें

“परमेश्‍वर का मार्ग तो सिद्ध है, यहोवा का वचन ताया हुआ है।”—२ शमूएल २२:३१, NHT.

१, २. (क) सभी इंसानों की बुनियादी ज़रूरत क्या है? (ख) हमें किसकी मिसाल पर चलना चाहिए?

सभी इंसानों की एक बुनियादी ज़रूरत होती है कि कोई उन्हें राह दिखाए। बेशक, हमें ज़िंदगी में सही राह पर चलते रहने के लिए मदद की ज़रूरत होती है। माना कि यहोवा ने हमें सही और गलत की पहचान करने के लिए दिमाग के साथ-साथ विवेक भी दिया है, लेकिन अगर हम चाहते हैं कि हमारा विवेक ऐसा हो जिस पर भरोसा किया जा सके और जो हमें सही राह दिखा सके, तो यह ज़रूरी है कि हम उसे भले-बुरे की पहचान करने में निपुण बनाएँ। (इब्रानियों ५:१४) साथ ही, सही और गलत में फैसले करने के लिए सही जानकारी लेना ज़रूरी है और इस जानकारी को कैसे अमल में लाएँ यह सीखना भी ज़रूरी है। (नीतिवचन २:१-५) लेकिन इन सबके बावजूद, कई बार हमारे फैसले सही नहीं निकलते, क्योंकि हमारी ज़िंदगी में कल कैसा समय आएगा यह हम नहीं जानते। (सभोपदेशक ९:११) हम अपने बल-बूते पर ठीक-ठीक यह कभी नहीं जान सकते कि हमारे भविष्य में क्या होगा।

२ इसीलिए भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने लिखा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह १०:२३) यहाँ तक कि सबसे महान पुरुष खुद यीशु मसीह ने भी मार्गदर्शन की ज़रूरत महसूस की। उसने कहा: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।” (यूहन्‍ना ५:१९) तो फिर, हमारे लिए यह कितनी बुद्धिमानी की बात होगी कि सही राह पर चलने के लिए हम भी यीशु की मिसाल पर चलें और यहोवा से मार्गदर्शन लें! राजा दाऊद ने गीत में कहा: “परमेश्‍वर का मार्ग तो सिद्ध है, यहोवा का वचन ताया हुआ है। जो उसमें शरण लेते हैं उन सब की वह ढाल है।” (२ शमूएल २२:३१, NHT) अपनी समझ का सहारा न लेकर, अगर हम यहोवा के मार्गदर्शन के मुताबिक चलें तो हमारा मार्ग सिद्ध होगा। लेकिन, अगर हम परमेश्‍वर के मार्गदर्शन को ठुकराते हैं, तो इससे हमारी ही तबाही होगी।

यहोवा मार्गदर्शन देता है

३. यहोवा ने आदम और हव्वा का मार्गदर्शन किस तरह किया और इससे उनको कैसा भविष्य मिलता?

३ अब आदम और हव्वा को लीजिए। सिद्ध इंसान होने के बावजूद भी उन्हें मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। अदन के सुंदर बगीचे में यहोवा ने आदम को यूँ ही नहीं छोड़ दिया। इसके बजाय, उसने आदम को बताया कि उसे क्या-क्या काम करना है। पहले, आदम को सभी जानवरों के नाम रखने थे। फिर, यहोवा ने आदम और हव्वा को एक बड़ा काम सौंपा। अब उन्हें सारी पृथ्वी को अपने वश में करके उसे सँवारना था और उसे अपनी संतान से भरना था, साथ ही उन्हें जानवरों की देखभाल भी करनी थी। (उत्पत्ति १:२८) यह वाकई एक बहुत बड़ा काम था, लेकिन इस काम के खत्म होने पर सारी पृथ्वी अदन के बगीचे की तरह सुंदर बन जाती, जहाँ सिर्फ सिद्ध इंसान होते और वे जानवरों के साथ शांति से रहते। सच, भविष्य कितना शानदार होता! यही नहीं, अगर आदम और हव्वा यहोवा के मार्गदर्शन के मुताबिक वफादारी से चलते रहते तो उनके पास खुद यहोवा से बात करने की आशीष होती। (उत्पत्ति ३:८ से तुलना कीजिए।) इंसानों के लिए यह कितना बड़ा सम्मान होता कि वे अपने सिरजनहार के साथ एक निजी रिश्‍ता कायम रखते!

४. किस तरह आदम और हव्वा ने दिखाया कि उनको परमेश्‍वर पर भरोसा नहीं था और वे उसके वफादार नहीं हैं और इसका अंजाम क्या हुआ?

४ यहोवा ने इस पहले मानव जोड़े को अदन में भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाने से मना किया था। परमेश्‍वर की इस आज्ञा से उन्हें यह दिखाने का मौका मिलता कि वे उसके आज्ञाकारी हैं और उसके मार्ग पर चलना चाहते हैं। (उत्पत्ति २:१७) और कुछ ही समय बाद इस बारे में उनकी परीक्षा भी हुई। जब शैतान ने अपनी छल भरी बातों से आदम और हव्वा को भरमाने की कोशिश की, तो उनको चाहिए था कि वे यहोवा के वफादार रहें, उसके वादों पर पूरा भरोसा रखें, और इस तरह उसकी आज्ञा मानें। मगर दुःख की बात है कि वे न तो वफादार रहे और ना ही उन्होंने यहोवा के वादों पर भरोसा किया। सो, जब शैतान ने यहोवा पर झूठ बोलने का इलज़ाम लगाया और हव्वा को परमेश्‍वर से आज़ाद होने का लालच दिया, तब वह शैतान के बहकावे में आ गयी और उसने परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ दी। और आदम भी पाप की राह पर हव्वा के संग हो लिया। (उत्पत्ति ३:१-६; १ तीमुथियुस २:१४) इसका अंजाम यह हुआ कि उनका भविष्य अंधकार में डूब गया। अगर वे यहोवा के मार्ग पर चलते हुए उसकी इच्छा पूरी करते तो उनकी खुशी कभी कम न होती। मगर अब उनकी ज़िंदगी मायूसी और तकलीफों से भरी हुई थी और वे मौत का इंतज़ार करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते थे।—उत्पत्ति ३:१६-१९; ५:१-५.

५. भविष्य के लिए यहोवा का क्या मकसद है और इसके पूरा होने की उम्मीद करनेवालों को वह कैसे मदद देता आया है?

५ इतना कुछ होने के बाद भी, यहोवा ने अपना मकसद नहीं बदला कि वह पृथ्वी को एक दिन ऐसा सुंदर बगीचा बनाएगा जिसमें सिद्ध और निष्पाप इंसान रहेंगे। (भजन ३७:११, २९) इस मकसद के पूरा होने की उम्मीद करनेवालों को और उसके मार्ग पर चलनेवालों को यहोवा उत्तम मार्गदर्शन भी देता आया है। जो लोग यहोवा की सुनना चाहते हैं, उनके कानों में ये वचन सुनाई देते हैं: “मार्ग यही है, इसी पर चलो।”—यशायाह ३०:२१.

कुछ लोग जो यहोवा के मार्ग पर चले

६. पुराने ज़माने में कौन-से दो पुरुष यहोवा के मार्ग पर चले और इससे उन्हें कौन-सी उम्मीद मिली?

६ बाइबल में लिखा इतिहास बताता है कि आदम और हव्वा की संतानों में से कुछ ही लोग यहोवा के मार्ग पर चले। इनमें से सबसे पहला था हाबिल। उसे जवानी में ही मार डाला गया, लेकिन जब तक वह जीया यहोवा उससे खुश था। इसलिए जब परमेश्‍वर के ठहराए हुए समय में ‘धर्मी जी उठेंगे’ तब वह भी ज़रूर जी उठेगा। (प्रेरितों २४:१५) तब वह इस पृथ्वी और इंसान के लिए यहोवा के शानदार मकसद को पूरा होते देखेगा। (इब्रानियों ११:४) यहोवा के मार्ग पर चलनेवाला एक और व्यक्‍ति था हनोक। इस दुनिया के अंत के बारे में उसी की कही हुई भविष्यवाणी आज यहूदा के किताब में पायी जाती है। (यहूदा १४, १५) हनोक की मौत भी वक्‍त से पहले हो गयी। (उत्पत्ति ५:२१-२४) इसके बावजूद, “उस की यह गवाही दी गई थी, कि उस ने परमेश्‍वर को प्रसन्‍न किया।” (इब्रानियों ११:५) जब हनोक की मौत हुई, तब हाबिल की तरह उसे भी मुरदों से जी उठने की पूरी उम्मीद थी और वह भी यहोवा के मकसदों को पूरा होते देखेगा।

७. नूह और उसके परिवार ने कैसे यहोवा पर भरोसा रखा और उसके वफादार रहे?

७ जलप्रलय से पहले पृथ्वी पर दुष्टता बढ़ती गयी, और यह सब लोगों के लिए एक परीक्षा थी कि कौन यहोवा की आज्ञा मानेगा और उसका वफादार होगा। जलप्रलय के वक्‍त कुछ ही लोग यहोवा के मार्ग पर चल रहे थे। ये लोग थे नूह और उसका परिवार जिन्होंने यहोवा की हर बात ध्यान से सुनी और उस पर भरोसा किया। जो काम उनको दिया गया उन्होंने उसे वफादारी से पूरा किया और वे उस संसार के बुरे कामों से दूर रहे। (उत्पत्ति ६:५-७, १३-१६; इब्रानियों ११:७; २ पतरस २:५) वे यहोवा के वफादार रहे, उस पर भरोसा रखते हुए उन्होंने उसकी आज्ञाएँ मानी और इसी वज़ह से वे जलप्रलय से बच गए। हमें उनका कितना एहसानमंद होना चाहिए क्योंकि आज उन्हीं की बदौलत हमने ज़िंदगी पायी है।—उत्पत्ति ६:२२; १ पतरस ३:२०.

८. इस्राएल जाति को परमेश्‍वर के मार्गदर्शन के मुताबिक चलने के लिए क्या करना था?

८ कुछ समय बाद, यहोवा ने वफादार याकूब की संतान के साथ एक वाचा बाँधी और वे लोग उसकी खास जाति बन गए। (निर्गमन १९:५, ६) यहोवा ने अपनी इस खास जाति, इस्राएल को मार्गदर्शन दिया। उसने यह मार्गदर्शन देने के लिए एक कानून-व्यवस्था दी, याजकों का प्रबंध किया और बार-बार भविष्यवक्‍ता भेजे। लेकिन इस्राएलियों को खुद फैसला करना था कि वे इस मार्गदर्शन के मुताबिक चलेंगे या नहीं। यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता के ज़रिए उनसे कहा: “सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और शाप दोनों रख देता हूं। अर्थात्‌ यदि तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की इन आज्ञाओं को जो मैं आज तुम्हें सुनाता हूं मानो, तो तुम पर आशीष होगी, और यदि तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञाओं को नहीं मानोगे, और जिस मार्ग की आज्ञा मैं आज सुनाता हूं उसे तजकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लोगे जिन्हें तुम नहीं जानते हो, तो तुम पर शाप पड़ेगा।”—व्यवस्थाविवरण ११:२६-२८.

कुछ लोगों ने यहोवा का मार्ग क्यों छोड़ दिया

९, १०. किन हालात की वज़ह से इस्राएलियों को यहोवा पर भरोसा रखने और उसके वफादार रहने की ज़रूरत थी?

९ जैसा आदम और हव्वा को करना था, इस्राएलियों को भी यहोवा की आज्ञा मानते रहने के लिए उस पर भरोसा रखना था और उसके वफादार रहना था। इस्राएल अपने आस-पड़ोस के झगड़ालू देशों के बीच एक छोटा-सा देश था। उसके दक्षिण-पश्‍चिम में मिस्र और इथियोपिया थे। उत्तर-पूर्व में सूर और अश्‍शूर। आसपास पलिश्‍ती, अम्मोन, मोआब और इदूमिया थे। किसी-न-किसी समय पर, इन सभी देशों की इस्राएल से दुश्‍मनी रही थी। इसके अलावा, ये सभी देश झूठे धर्मों का पालन करते थे। वे मूर्तिपूजा करते थे, ज्योतिष-विद्या में विश्‍वास करते थे और कुछ देशों में लैंगिकता से जुड़े बहुत ही गंदे रीति-रिवाज़ माने जाते थे, साथ ही बड़ी निर्दयता से बच्चों की बलि चढ़ायी जाती थी। ये पड़ोसी देश, संतान के लिए, अच्छी फसल के लिए और युद्ध में जीत हासिल करने के लिए अपने-अपने देवताओं पर भरोसा करते थे।

१० केवल इस्राएल जाति ही एक सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की उपासना करती थी। यहोवा ने उनसे वादा किया था कि अगर वे उसकी आज्ञाएँ मानते रहेंगे तो वह उन्हें संतान की आशीष देगा, भरपूर फसल देगा और दुश्‍मनों से उनकी रक्षा करेगा। (व्यवस्थाविवरण २८:१-१४) मगर अफसोस, ज़्यादातर इस्राएलियों ने ऐसा नहीं किया। और जो यहोवा के मार्ग पर चले भी तो उन्हें अपनी वफादारी के लिए बहुत-सी तकलीफें झेलनी पड़ीं। कुछ लोगों पर तो कई तरह के ज़ुल्म ढाए गए, उनका मज़ाक उड़ाया गया, उनको कोड़े मारे गए, कैद किया गया, पत्थरवाह किया गया और अंत में अपनी ही जाति के लोगों ने उन्हें मार दिया। (प्रेरितों ७:५१, ५२; इब्रानियों ११:३५-३८) वफादार लोगों के लिए यह कितनी बड़ी परीक्षा रही होगी! लेकिन, ज़्यादातर इस्राएलियों ने यहोवा का मार्ग क्यों छोड़ दिया? यह समझने के लिए आइए हम इस्राएल के इतिहास में से ऐसे दो उदाहरण देखें जो हमें उनकी गलत सोच को जानने में मदद करेंगे।

आहाज की बुराई

११, १२. (क) अराम देश के चढ़ाई करने पर, आहाज ने क्या करने से इनकार कर दिया? (ख) आहाज ने सुरक्षा के लिए किस-किस से मदद माँगी?

११ आहाज, सा.यु.पू. आठवीं सदी में दक्षिण के यहूदा राज्य का राजा था। उसके राज में शांति नहीं थी। एक बार, उत्तर के इस्राएल राज्य ने अराम देश से मिलकर यहूदा पर चढ़ाई की और ‘तब आहाज और उसकी प्रजा का मन कांप उठा।’ (यशायाह ७:१, २) लेकिन, जब यहोवा ने आहाज की मदद करनी चाही और उससे कहा कि वह कोई चिन्ह माँगकर उसकी परीक्षा ले, तो आहाज ने साफ इनकार कर दिया! (यशायाह ७:१०-१२) इसका अंजाम बहुत बुरा हुआ क्योंकि यहूदा युद्ध हार गया और बहुत लोग मार डाले गए।—२ इतिहास २८:१-८.

१२ आहाज ने घमंड में आकर यहोवा की परीक्षा लेने और उसकी मदद लेने से इनकार तो कर दिया, लेकिन अश्‍शूर के राजा से मदद माँगते वक्‍त न जाने उसका घमंड कहाँ चला गया। और इस मदद का कोई फायदा भी नहीं हुआ, क्योंकि यहूदा के पड़ोसी उसे सताते ही रहे। यहाँ तक कि खुद अश्‍शूर का राजा आहाज के खिलाफ हो गया और उसको “कष्ट दिया।” तब आहाज ने “दमिश्‍क के देवताओं के लिये जिन्हों ने उसको मारा था, बलि चढ़ाया; क्योंकि उस ने यह सोचा, कि आरामी राजाओं के देवताओं ने उनकी सहायता की, तो मैं उनके लिये बलि चढ़ाऊंगा कि वे मेरी सहायता करें।”—२ इतिहास २८:२०, २३.

१३. अराम के देवताओं का सहारा लेकर आहाज ने क्या दिखाया?

१३ बाद में, यहोवा ने इस्राएल से कहा: “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं। भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरों के नाईं होता।” (यशायाह ४८:१७, १८) आहाज ने अराम के देवताओं का सहारा लेकर यह दिखाया कि ‘जिस मार्ग से उसे जाना चाहिए’ था उससे वह कितनी दूर था। आसपास के देशों के घटिया सोच-विचार ने उसकी सोच को भी पूरी तरह बिगाड़ दिया था। यहोवा को छोड़कर वह उनका सहारा लेना चाहता था जो उसे सच्ची सुरक्षा नहीं दे सकते थे।

१४. आहाज के पास झूठे देवताओं का सहारा लेने के लिए कोई उचित कारण क्यों नहीं था?

१४ सदियों पहले यह साफ ज़ाहिर हो चुका था कि दूसरे देशों के साथ-साथ अराम के देवता भी बेजान, बेकार और निकम्मी ‘मूरतें’ ही हैं। (यशायाह २:८) क्योंकि जब राजा दाऊद के राज में यहोवा ने अराम के लोगों को दाऊद का दास बना दिया तब अराम के देवता यहोवा की ताकत के सामने कुछ नहीं कर सके। (१ इतिहास १८:५, ६) सिर्फ यहोवा ही “ईश्‍वरों का परमेश्‍वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान्‌ पराक्रमी और भय योग्य ईश्‍वर” है जो सच्ची सुरक्षा दे सकता है। (व्यवस्थाविवरण १०:१७) मगर, आहाज ने यहोवा से मुँह मोड़ लिया और सुरक्षा के लिए दूसरे देशों के देवताओं का सहारा लिया। और इसका नतीजा यहूदा के लिए विनाश था।—२ इतिहास २८:२४, २५.

मिस्र में यिर्मयाह के साथ यहूदी

१५. यिर्मयाह के दिनों में मिस्र जाकर यहूदियों ने कौन-सा पाप किया?

१५ जब इस्राएल ने यहोवा को पूरी तरह छोड़ दिया, तो सा.यु.पू. ६०७ में यहोवा ने बाबुलियों को यरूशलेम और उसका मंदिर नाश करने दिया। ज़्यादातर इस्राएलियों को बंधुआ बनाकर बाबुल ले जाया गया। लेकिन, कुछ लोग यरूशलेम में ही रह गए और यिर्मयाह भविष्यवक्‍ता भी वहीं था। जब गवर्नर गदल्याह को मार दिया गया, तो ये लोग मिस्र को भाग गए और अपने साथ यिर्मयाह को भी ले गए। (२ राजा २५:२२-२६; यिर्मयाह ४३:५-७) वहाँ जाकर, वे झूठे देवी-देवताओं को बलि चढ़ाने लगे। यिर्मयाह ने इन गद्दार यहूदियों को बहुत समझाया मगर वे अड़े रहे। उन्होंने यहोवा की उपासना करने से इनकार कर दिया और हठीले होकर कहा कि वे “स्वर्ग की रानी” के लिए धूप जलाते रहेंगे। क्यों? क्योंकि वे और उनके पुरखे ‘यहूदा के नगरों में और यरूशलेम की सड़कों में [यही] करते थे; क्योंकि उस समय वे पेट भरके खाते और भले चंगे रहते थे और किसी विपत्ति में नहीं पड़ते थे।’ (यिर्मयाह ४४:१६, १७) यहूदियों ने तो यह भी दावा किया: “जब से हम ने स्वर्ग की रानी के लिये धूप जलाना और तपावन देना छोड़ दिया, तब से हम को सब वस्तुओं की घटी है; और हम तलवार और महंगी के द्वारा मिट चले हैं।”—यिर्मयाह ४४:१८.

१६. मिस्र में यहूदियों की सोच क्यों बिलकुल गलत थी?

१६ देखिए भला, यहूदियों को सिर्फ यही याद रह गया था। क्या उनकी इस बात में ज़रा भी सच्चाई थी? यह सच है कि यहूदियों ने यहोवा द्वारा दी गयी ज़मीन पर झूठे देवी-देवताओं के लिए बलियाँ चढ़ायी थीं। और जब कभी वे यहोवा को छोड़ झूठे देवताओं को मानते थे तो उन पर मुसीबतें आती थीं, जैसे आहाज के दिनों में भी हुआ। यहोवा ने उन पर “विलम्ब से कोप” किया, क्योंकि इस्राएली उसके चुने हुए लोग थे। (निर्गमन ३४:६; भजन ८६:१५) उसने अपने भविष्यवक्‍ताओं को भेजकर उनसे पश्‍चाताप करने का अनुरोध किया। जब कभी इस्राएल का राजा यहोवा का वफादार रहता तो उसे आशीष मिलती थी और इससे उसकी प्रजा भी खुशहाल रहती थी। मगर ज़्यादातर इस्राएली खुद यहोवा के वफादार नहीं थे। (२ इतिहास २०:२९-३३; २७:१-६) इसलिए, मिस्र भाग जानेवाले उन यहूदियों का यह सोचना कितना गलत था कि वे अपने देश में झूठे देवी-देवताओं की वज़ह से ही खुशहाल थे!

१७. यहूदियों ने अपना देश और मंदिर क्यों खो दिया?

१७ यहोवा ने सा.यु.पू. ६०७ से पहले अपने लोगों से अनुरोध किया था: “मेरे वचन को मानो, तब मैं तुम्हारा परमेश्‍वर हूंगा, और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे; और जिस मार्ग की मैं तुम्हें आज्ञा दूं उसी में चलो, तब तुम्हारा भला होगा।” (यिर्मयाह ७:२३) यहूदियों ने अपना मंदिर और अपना देश सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि यहोवा ने ‘जिस मार्ग की आज्ञा उन्हें दी थी,’ वे उस मार्ग पर नहीं चले। हम कभी-भी ऐसी खतरनाक गलती न करें।

यहोवा अपने मार्ग पर चलनेवालों को आशीष देता है

१८. यहोवा के मार्ग पर चलनेवालों से क्या-क्या माँग की जाती है?

१८ जैसा पुराने ज़माने में था, वैसे ही आज भी यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए वफादारी की माँग की जाती है और वफादारी यही है कि हम सिर्फ और सिर्फ यहोवा की ही सेवा करने का संकल्प करें। हमसे भरोसा रखने की भी माँग की जाती है, यानी हमें पूरा यकीन रखना है कि यहोवा के वादे कभी नहीं टलेंगे और हर हाल में पूरे होंगे। इसके अलावा, हमसे आज्ञा मानने की भी माँग की जाती है, यानी बिना चूके उसके सभी नियमों को मानना और उसके धर्मी स्तरों के मुताबिक जीना। क्योंकि “यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामों से प्रसन्‍न रहता है।”—भजन ११:७.

१९. आज ज़्यादातर लोग किन देवताओं की पूजा करते हैं और इसका अंजाम क्या हुआ है?

१९ आहाज ने सुरक्षा पाने के लिए अराम के देवताओं का सहारा लिया। मिस्र में इस्राएली यह उम्मीद लगाए हुए थे कि “स्वर्ग की रानी,” जिसे पुराने ज़माने के मध्य-पूर्वी देशों में बहुत-से लोग मानते थे, उन्हें धन-दौलत दिलाएगी। आज, कई ऐसे देवता पूजे जाते हैं जिनकी असल में कोई मूर्ति नहीं है। यीशु ने यहोवा के बजाय “धन” को पूजने के बारे में चेतावनी दी। (मत्ती ६:२४) प्रेरित पौलुस ने “लोभ” के बारे में बताया “जो मूर्त्ति पूजा के बराबर है।” (कुलुस्सियों ३:५) उसने ऐसे लोगों के बारे में भी बताया जिनका ‘ईश्‍वर उनका पेट’ है। (फिलिप्पियों ३:१९) जी हाँ, आज पैसा और सुख-सुविधा की चीज़ें ही बड़े-बड़े देवता बन चुके हैं जिनकी पूजा की जाती है। असल में ज़्यादातर लोग, चाहे वे धार्मिक प्रवृत्ति के ही क्यों न हों, ‘चंचल धन पर आशा रखते हैं।’ (१ तीमुथियुस ६:१७) बहुत-से लोग इन देवताओं की सेवा करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं और उनको इसका फल भी मिलता है, वे अच्छे-से-अच्छे मकानों में रहते हैं, कीमती चीज़ें इस्तेमाल करते हैं और बढ़िया खाना खाते हैं। लेकिन ऐसा ठाठ-बाट सब लोगों के हिस्से में नहीं आता। और जो लोग इन सब चीज़ों को पा भी लेते हैं तो इनसे उन्हें सुख-चैन और संतोष नहीं मिलता। क्योंकि ये चीज़ें सदा तक कायम नहीं रहतीं और आध्यात्मिक ज़रूरत को पूरा नहीं करतीं।—मत्ती ५:३.

२०. ज़िंदगी में हमें किन बातों को अहमियत देनी चाहिए और मुश्‍किलों में हमें क्या करना चाहिए?

२० यह सही है कि इस दुनिया के आखिरी दिनों में जीते वक्‍त हमें व्यावहारिक भी होना है। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए हम जो उचित है वह ज़रूर करेंगे। लेकिन शानो-शौकत से जीने, पैसे के पीछे भागने या ऐसी ही दूसरी बातों को अगर हम परमेश्‍वर की सेवा से ज़्यादा अहमियत दें तो हम एक किस्म की मूर्तिपूजा के फंदे में फँस गए हैं और यहोवा के मार्ग पर नहीं चल रहे। (१ तीमुथियुस ६:९, १०) लेकिन, तब हम क्या करेंगे जब हम बहुत बीमार हो जाते हैं या पैसों की कमी के कारण मुसीबत में पड़ जाते हैं या ऐसी कोई और मुश्‍किल में पड़ जाते हैं? हम मिस्र में उन यहूदियों की तरह न हों जिन्होंने अपनी मुसीबतों के लिए परमेश्‍वर को ज़िम्मेदार ठहराया था। इसके बजाय हम यहोवा को परखकर देखें जो कि आहाज ने नहीं किया। वफादार रहते हुए परमेश्‍वर से मार्गदर्शन लें। इस मार्गदर्शन पर पूरे भरोसे के साथ चलें और किसी भी हालात का सामना करने के लिए यहोवा से ताकत और समझ के लिए प्रार्थना करें। और फिर, पूरे विश्‍वास के साथ उससे आशीष पाने का इंतज़ार करें।

२१. यहोवा के मार्ग पर चलनेवालों को कौन-सी आशीषें मिलती हैं?

२१ यहोवा ने अपने मार्ग पर चलनेवाले इस्राएलियों को ढेर सारी आशीषें दीं। राजा दाऊद ने गीत गाया: “हे यहोवा, मेरे शत्रुओं के कारण अपने धर्म के मार्ग में मेरी अगुआई कर।” (भजन ५:८) यहोवा ने दाऊद को पड़ोसी देशों पर जीत दिलायी। बाद में इन्हीं देशों ने आहाज को सताया जो यहोवा के मार्ग पर न चला। और सुलैमान के राज में, इस्राएल को ऐसी शांति और खुशहाली की आशीष मिली जिसके लिए बाद में मिस्र में यहूदी तरस रहे थे। आहाज के बेटे हिजकिय्याह को तो यहोवा ने उस शक्‍तिशाली अश्‍शूर पर भी जीत दिलायी। (यशायाह ५९:१) जी हाँ, अपने उन वफादार लोगों को बचाने के लिए यहोवा कमज़ोर नहीं था, जो “पापियों के मार्ग में” खड़े नहीं हुए और यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहे। (भजन १:१, २) आज भी यह बात सच है। लेकिन, आज हम यह कैसे जान सकते हैं कि हम यहोवा के मार्ग पर चल रहे हैं या नहीं? इसकी चर्चा अगले लेख में की जाएगी।

क्या आपको याद है?

◻ यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए कौन-से गुण ज़रूरी हैं?

◻ आहाज की सोच क्यों गलत थी?

◻ मिस्र में यहूदियों की सोच क्यों गलत थी?

◻ यहोवा के मार्ग पर चलने के अपने संकल्प को मज़बूत करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

[पेज 13 पर तसवीर]

आहाज ने यहोवा के बजाय अराम के देवताओं का सहारा लिया

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