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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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यहोवा के मार्ग पर चलते रहिए

“यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा।”—भजन ३७:३४.

१, २. यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए राजा दाऊद को क्या-क्या करना था और आज मसीहियों के लिए क्या-क्या करना ज़रूरी है?

“जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे, क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं।” (भजन १४३:८) राजा दाऊद की तरह आज मसीही भी दिल से यही बात कहते हैं। उनकी यह दिली तमन्‍ना है कि यहोवा को खुश करें और उसके मार्ग पर चलें। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? जहाँ तक दाऊद की बात थी, उसे परमेश्‍वर की व्यवस्था का पालन करना था। दूसरे देशों से मदद माँगने के बजाय उसे यहोवा पर भरोसा रखना था। जी हाँ, उसे वफादारी से यहोवा की सेवा करनी थी, न कि पड़ोसी देशों के देवताओं की। लेकिन मसीहियों को यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए और भी बहुत कुछ करना है।

२ एक बात तो यह है कि आज यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास रखना और उसे ही “मार्ग और सच्चाई और जीवन” के रूप में स्वीकार करना ज़रूरी है। (यूहन्‍ना ३:१६; १४:६; इब्रानियों ५:९) साथ ही, “मसीह की व्यवस्था” का पालन करना ज़रूरी है, जिसके मुताबिक मसीहियों को एक-दूसरे से और खासकर यीशु के अभिषिक्‍त भाइयों से प्यार करना है। (गलतियों ६:२; मत्ती २५:३४-४०) यहोवा के मार्ग पर चलनेवाले उसके उसूल और उसकी आज्ञाओं को भी प्यार करते हैं। (भजन ११९:९७; नीतिवचन ४:५, ६) मसीही सेवकाई में हिस्सा लेना उनके लिए बड़े सम्मान की बात है जिसकी वे दिलो-जान से कदर करते हैं। (कुलुस्सियों ४:१७; २ तीमुथियुस ४:५) वे हर रोज़ प्रार्थना में लगे रहते हैं। (रोमियों १२:१२) और वे ‘ध्यान से देखते हैं, कि वे कैसी चाल चलते हैं; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं।’ (इफिसियों ५:१५) धन-दौलत से मिलनेवाले पल भर के फायदे के लिए या भोग-विलास और ऐयाशी के लिए वे अपने आध्यात्मिक धन को नहीं छोड़ते। (मत्ती ६:१९, २०; १ यूहन्‍ना २:१५-१७) इसके अलावा, वे हर हाल में यहोवा के वफादार रहते हैं और उस पर भरोसा रखते हैं। (२ कुरिन्थियों १:९; १०:५; इफिसियों ४:२४) क्यों? क्योंकि आज मसीही भी ऐसे ही हालात में जी रहे हैं जैसे हालात में कभी इस्राएल जाति थी।

भरोसा रखना और वफादार रहना ज़रूरी

३. यहोवा के मार्ग पर चलते रहने में वफादारी, विश्‍वास और भरोसा हमें कैसे मदद देंगे?

३ इस्राएल एक छोटा-सा देश था जिसके पड़ोसी देश उसे पसंद नहीं करते थे। ये देश अपनी मूरतों की पूजा करते वक्‍त ऐसी घिनौनी रस्में मानते थे जिनमें व्यभिचार किया जाता था। (१ इतिहास १६:२६) सिर्फ इस्राएल देश ही एक सच्चे और अनदेखे परमेश्‍वर, यहोवा की उपासना करता था। और यहोवा की माँग थी कि इस्राएली ऊँचे आदर्श बनाए रखें। (व्यवस्थाविवरण ६:४) आज भी ऐसा ही है। दुनिया की छः अरब आबादी में सिर्फ कुछ लाख इंसान ही हैं जो यहोवा की उपासना करते हैं। बाकी लोगों का जीने का तरीका और परमेश्‍वर के बारे में उनके विचार इनसे बिलकुल अलग हैं। अगर हम उन कुछ लाख लोगों में से हैं, तो हमें ध्यान रखना है कि इस दुनिया का हम पर कोई गलत असर न हो। यह हम कैसे करेंगे? अगर हम यहोवा परमेश्‍वर के वफादार रहें, उस पर विश्‍वास करें और पक्का भरोसा रखें कि वह अपने वादे पूरे करेगा तो हमें इस दुनिया के असर से बचने में मदद मिलेगी। (इब्रानियों ११:६) ऐसा करके, हम उन चीज़ों पर भरोसा नहीं करेंगे जिन पर यह दुनिया भरोसा करती है।—नीतिवचन २०:२२; १ तीमुथियुस ६:१७.

४. अन्यजाति के लोगों की “बुद्धि अन्धेरी” क्यों हो गयी है?

४ मसीहियों को इस दुनिया से कितना अलग होना चाहिए यह बात प्रेरित पौलुस ने बतायी। उसने लिखा: “इसलिये मैं यह कहता हूं, और प्रभु में जताए देता हूं कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं।” (इफिसियों ४:१७, १८) यीशु ही “सच्ची ज्योति” है। (यूहन्‍ना १:९) जो कोई उस पर विश्‍वास नहीं करता या जो कोई उस पर विश्‍वास रखने का दावा तो करता है लेकिन “मसीह की व्यवस्था” को नहीं मानता उसकी “बुद्धि अन्धेरी” हो गयी है। ऐसे इंसान “परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं,” और उसके मार्ग से बहुत दूर चले गए हैं। वे चाहे दुनिया की बातों में खुद को बहुत ज्ञानी समझें, मगर यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के ज्ञान के बारे में उनमें “अज्ञानता” ही है। और सिर्फ यही ज्ञान उन्हें हमेशा की ज़िंदगी दिला सकता है।—यूहन्‍ना १७:३; १ कुरिन्थियों ३:१९.

५. हालाँकि सारी दुनिया में सच्चाई की रोशनी फैल रही है, फिर भी कई लोगों के मन कठोर क्यों हैं?

५ दूसरी ओर, सच्चाई की ज्योति से सारी दुनिया में रोशनी फैल रही है! (भजन ४३:३; फिलिप्पियों २:१५) “बुद्धि सड़क में ऊंचे स्वर से बोलती है।” (नीतिवचन १:२०) पिछले साल यहोवा के साक्षियों ने, यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के बारे में अपने पड़ोसियों को बताते हुए एक अरब से ज़्यादा घंटे बिताए। लाखों लोगों ने उनका संदेश सुना और इसे स्वीकार भी किया। लेकिन, क्या हमें इस बात पर ताज्जुब करना चाहिए कि बहुत-से लोगों ने यह संदेश नहीं सुना? नहीं। पौलुस ने बताया कि उनके “मन की कठोरता” के कारण वे नहीं सुनते। कुछ लोगों के मन स्वार्थ या पैसे के प्यार की वज़ह से कठोर हो गए हैं। कुछ और लोगों पर झूठे धर्म या आज के दुनियावी सोच-विचार का असर हुआ है। कुछ लोगों ने ज़िंदगी में इतनी ठोकरें खायी हैं कि अब उनका परमेश्‍वर पर से भरोसा उठ गया है। कुछ लोग हैं जो अपने चालचलन को यहोवा के ऊँचे नैतिक आदर्शों के मुताबिक बदलना नहीं चाहते। (यूहन्‍ना ३:२०) क्या ऐसा हो सकता है कि यहोवा के मार्ग पर चलनेवाले किसी इंसान का मन भी इन वज़हों से कठोर हो जाए?

६, ७. कौन-सी घटनाएँ दिखाती हैं कि यहोवा परमेश्‍वर के उपासक होने के बावजूद भी इस्राएली भटक गए और ऐसा क्यों हुआ?

६ प्राचीन इस्राएल के साथ ऐसा ही हुआ और पौलुस ने इसके बारे में लिखा: “ये बातें हमारे लिये दृष्टान्त ठहरीं, कि जैसे उन्हों ने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें। और न तुम मूरत पूजनेवाले बनो; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, कि लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने [“नाचने,” न्यू हिन्दी बाइबल] उठे। और न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: और एक दिन में तेईस हजार मर गये।”—१ कुरिन्थियों १०:६-८.

७ पहले, पौलुस ने ‘मूरत पूजनेवालों’ का ज़िक्र करते हुए उस घटना के बारे में बताया जब इस्राएलियों ने सीनै पहाड़ के पास सोने के बछड़े की पूजा की। (निर्गमन ३२:५, ६) ऐसा करके इस्राएलियों ने परमेश्‍वर की वह आज्ञा तोड़ दी जिसके बारे में सिर्फ कुछ ही हफ्ते पहले उन्होंने कहा था कि हम उसे मानेंगे। (निर्गमन २०:४-६; २४:३) इसके बाद, पौलुस उस घटना के बारे में बताता है जब इस्राएलियों ने मोआब की बेटियों के साथ कुकर्म किया और बाल-देवता को दंडवत्‌ किया। (गिनती २५:१-९) बछड़े की पूजा में वे मौज-मस्ती और ‘नाचने-गाने’ में डूबे रहे।a बाल की उपासना करते वक्‍त उन्होंने खुलेआम व्यभिचार किया। (प्रकाशितवाक्य २:१४) इस्राएलियों ने ये पाप क्यों किए? क्योंकि उन्होंने “बुरी वस्तुओं का लालच” किया, जैसे मूर्तिपूजा का या उन घिनौने और अनैतिक रीति-रिवाज़ों का जो इस पूजा में माने जाते थे।

८. इस्राएलियों के साथ जो हुआ उससे हम क्या सीख सकते हैं?

८ पौलुस ने कहा कि हमें इन घटनाओं से सबक लेना चाहिए। कौन-सा सबक? आज ऐसा तो नहीं हो सकता कि एक मसीही किसी सोने के बछड़े या पुराने ज़माने के मोआबी देवता को दंडवत्‌ करे। लेकिन व्यभिचार या मौज-मस्ती में डूबे रहने के बारे में क्या? आज तो ये बातें आम हैं और अगर हम अपने दिल में इनका लालच करने लगें तो ये हमारे और यहोवा के बीच में दीवार बनकर खड़ी हो जाएँगी। और इसका नतीजा भी वही होगा जो मूर्तिपूजा का होता है, यानी हम यहोवा से कोसों दूर चले जाएँगे। (कुलुस्सियों ३:५; फिलिप्पियों ३:१९ से तुलना कीजिए।) इसमें ताज्जुब नहीं कि पौलुस इन घटनाओं के बारे में अपनी चर्चा को खत्म करते वक्‍त संगी विश्‍वासियों से अनुरोध करता है: “मूर्त्ति पूजा से बचे रहो।”—१ कुरिन्थियों १०:१४.

परमेश्‍वर के मार्ग पर चलने में मदद

९. (क) यहोवा के मार्ग पर चलते रहने के लिए हमें कौन-सी मदद मिलती है? (ख) कौन-से एक तरीके से ‘हमारे कानों को पीछे से यह वचन’ सुनाई देता है?

९ अगर हमने यहोवा के मार्ग पर चलते रहने की ठान ली है, तो वह हमें इसके लिए मदद भी देता है। यशायाह ने भविष्यवाणी की थी: “जब कभी तुम दहिनी वा बाई ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह ३०:२१) ‘हमारे पीछे से यह वचन हमारे कानों में कैसे पड़ेगा?’ बेशक, हमें सचमुच की कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती या परमेश्‍वर खुद हमें कोई संदेश नहीं देता। जो “वचन” हमें सुनाई देता है वह हम सबके पास एक-समान तरीके से आता है। सबसे पहले यह परमेश्‍वर द्वारा प्रेरित शास्त्र, बाइबल के ज़रिये आता है जिसमें उसके विचारों और इंसानों के साथ उसके व्यवहार के बारे में लिखा है। “परमेश्‍वर के जीवन से अलग” की हुई यह दुनिया अलग-अलग तरीकों से अपने विचार हम पर लगातार थोपती रहती है। अगर हम यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखना चाहते हैं तो हमारे लिए बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करते रहना ज़रूरी है। इस तरह हम “व्यर्थ वस्तुओं” से दूर रहेंगे और “प्रत्येक भले कार्य के लिए कुशल और तत्पर हो” जाएँगे। (प्रेरितों १४:१४, १५; २ तीमुथियुस ३:१६, १७, NHT) इससे हम मज़बूत होंगे, हमें शक्‍ति मिलेगी और हम “अपने मार्ग को सफल बना” पाएँगे। (यहोशू १:७, ८, NHT) इसीलिए यहोवा का वचन अनुरोध करता है: “अब हे मेरे पुत्रो, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो।”—नीतिवचन ८:३२, ३३.

१०. किस दूसरे तरीके से हमें अपने ‘पीछे से यह वचन’ सुनायी देता है?

१० ‘पीछे से यह वचन’ एक और तरीके से हम तक पहुँचता है, और वह है “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिये जो ‘समय पर हमें भोजन देता’ है। (मत्ती २४:४५-४७) यह भोजन देने का एक तरीका है, बाइबल की शिक्षाएँ समझानेवाली किताबें। हाल के सालों में इस किस्म का भोजन बहुतायत में दिया जा रहा है। इसकी एक मिसाल है प्रहरीदुर्ग पत्रिका जिसके ज़रिये हमें कई भविष्यवाणियों को अच्छी तरह समझने में मदद मिली है। यह पत्रिका प्रचार करने और चेले बनाने के काम में लगे रहने के लिए हमारी हिम्मत बँधाती आयी है, चाहे फिर लोग सुनें या न सुनें। यह हमें फंदों से बचने के लिए मदद देती आयी है, और हमें उत्तम मसीही गुणों को बढ़ाने के लिए उकसाती आयी है। सही समय पर मिलनेवाला ऐसा भोजन सचमुच कितना फायदेमंद है!

११. हमारे ‘पीछे से यह वचन’ सुनायी देने के तीसरे तरीके के बारे में बताइए।

११ नियमित रूप से होनेवाली सभाओं के ज़रिये भी विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास हमें भोजन देता है। अलग-अलग जगहों पर कलीसियाओं में सभाएँ होती हैं, साल में दो बार सर्किट सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं और इनसे बड़े सालाना अधिवेशन होते हैं। ऐसा कौन वफादार मसीही है जो इन सभाओं की कदर न करता हो? यहोवा के मार्ग पर चलते रहने के लिए इन सभाओं से मिलनेवाले सहारे की हमें सख्त ज़रूरत है। हमारे बहुत-से भाई-बहनों को नौकरी पर या स्कूल में ऐसे लोगों के साथ काफी वक्‍त बिताना पड़ता है जो सच्चे परमेश्‍वर को नहीं मानते, इसलिए इन सभाओं में अपने मसीही भाई-बहनों से मिलकर वे तरोताज़ा हो जाते हैं और उन्हें अपनी वफादारी बनाए रखने में मदद मिलती है। सभाओं में हमें बढ़िया मौका मिलता है कि ‘प्रेम, और भले कामों में एक दूसरे को उस्काएँ।’ (इब्रानियों १०:२४) ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं और उनसे मिलना-जुलना हमें अच्छा लगता है।—भजन १३३:१.

१२. यहोवा के साक्षियों का क्या संकल्प है और हाल ही में उन्होंने इसे कैसे ज़ाहिर किया?

१२ ऐसे आध्यात्मिक भोजन से ताकत पाकर, आज लगभग साठ लाख लोग यहोवा के मार्ग पर चल रहे हैं। इनके अलावा लाखों और भी हैं जो बाइबल का अध्ययन करके सीख रहे हैं कि कैसे इस मार्ग पर चलें। क्या ये सभी यह सोचकर निराश या कमज़ोर हो गए हैं कि इस दुनिया के अरबों लोगों के सामने उनकी गिनती तो बहुत ही कम है? हरगिज़ नहीं! वे ‘पीछे से आनेवाले इस वचन’ को मानने का और वफादारी से यहोवा की इच्छा पूरी करने का संकल्प कर चुके हैं। इस संकल्प को सरेआम ज़ाहिर करने के लिए, साक्षियों ने १९९८/९९ के “ईश्‍वरीय जीवन का मार्ग” ज़िला और अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में एक रॆज़ल्यूशन पास किया जिससे यह पता चला कि वे पूरे मन से क्या करने की ठान चुके हैं। उस रॆज़ल्यूशन की बातें यहाँ बतायी गयी हैं।

रॆज़ल्यूशन

१३, १४. यहोवा के साक्षी दुनिया की हालत के बारे में किस सच्चाई को मानते हैं?

१३ “ ‘ईश्‍वरीय जीवन का मार्ग’ अधिवेशन में जमा हुए, हम यहोवा के साक्षी पूरे दिल से इस बात को मानते हैं कि ईश्‍वरीय जीवन का मार्ग ही ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन मार्ग है। लेकिन हमें इस बात का भी एहसास है कि आज दुनिया के ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं मानते। इंसानों ने ऐसे कई विचारों, फिलॉसफियों और धर्मों को आज़मा कर देखा है, जिन्हें वे जीवन का सबसे बेहतरीन मार्ग समझते हैं। दुनिया के इतिहास पर एक नज़र डालने और आज की दुनिया की हालत की ठीक-ठीक जाँच करने पर परमेश्‍वर की कही बात सच साबित होती है। जैसा यिर्मयाह १०:२३ में लिखा है: ‘मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।’

१४ “हर दिन हमें इस बात के सबूत देखने को मिल जाते हैं कि ये वचन कितने सच हैं। आज दुनिया के ज़्यादातर लोग परमेश्‍वर के मार्ग को बेकार समझते हैं। लोग उसी के पीछे भाग रहे हैं जो उन्हें सही लगता है। इसका नतीजा बहुत बुरा हुआ है—परिवारों का टूट जाना, जिससे बच्चे बेसहारा हो जाते हैं और उन्हें अच्छी शिक्षा देनेवाला कोई नहीं होता; धन-दौलत और ऐशो-आराम के पीछे अंधाधुंध भागना, जिससे खालीपन महसूस होता है और झुँझलाहट हाथ लगती है; खतरनाक जुर्म और खून-खराबा, जिससे न जाने कितने लोग मारे जाते हैं; देश या जाति के नाम पर फसाद और लड़ाइयाँ, जिनमें बेदर्दी से लाखों लोगों की जानें ली गयी हैं; अनैतिकता और बदचलनी की भरमार, जिससे खतरनाक लैंगिक बीमारियों की बाढ़ आ गई है। ये उन बड़ी-बड़ी समस्याओं में से बस कुछ ही हैं जो सुख, शांति और सलामती हासिल करने में बाधा डालती हैं।

१५, १६. रॆज़ल्यूशन में ईश्‍वरीय जीवन के मार्ग के बारे में हमारा कौन-सा फैसला साफ-साफ बताया गया है?

१५ “इंसानों की इस बुरी हालत को और अरमगिदोन कहलानेवाली ‘सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के बड़े दिन की लड़ाई’ (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) को पास आते देख, हम यहोवा के साक्षी इस बात का दृढ़-संकल्प करते हैं:

१६ “पहला: हम यहोवा के हैं, और हममें से हरेक ने बिना किसी शर्त के यहोवा को अपना समर्पण किया है और यहोवा ने अपने पुत्र यीशु मसीह के ज़रिए जिस छुड़ौती बलिदान का प्रबंध किया है हम उस पर अटल विश्‍वास रखेंगे। हम परमेश्‍वर के मार्ग पर चलने का फैसला करते हैं, हम उसके साक्षी हैं और हम उसके राज्य के अधीन रहेंगे जिसका राजा यीशु मसीह है।

१७, १८. यहोवा के साक्षी नैतिक स्तरों और मसीही बिरादरी के बारे में किस संकल्प पर डटे रहेंगे?

१७ “दूसरा: हम बाइबल में बताए गए ऊँचे नैतिक और आध्यात्मिक स्तरों पर चलते रहेंगे। हमारा फैसला है कि बाकी लोगों की तरह हम अपने मन की अनर्थ रीति पर नहीं चलेंगे। (इफिसियों ४:१७-१९) यह हमारा संकल्प है कि हम यहोवा के सामने शुद्ध रहेंगे और इस संसार से निष्कलंक रहेंगे।—याकूब १:२७.

१८ “तीसरा: हम दुनिया भर की अपनी मसीही बिरादरी के सदस्य बने रहेंगे जैसा बाइबल में बताया गया है। हम मसीही शिक्षा पर चलते हुए राष्ट्रों की राजनीति या युद्धों से कोई संबंध नहीं रखेंगे। हम जाति, देश या भाषा के नाम पर किसी से नफरत नहीं करेंगे, ना ही हम इनके नाम पर होनेवाले किसी भी झगड़े में हिस्सा लेंगे।

१९, २०. (क) मसीही माता-पिता क्या करेंगे? (ख) सभी सच्चे मसीही कैसे मसीह के चेले होने की पहचान देते रहेंगे?

१९ “चौथा: हम अपने बच्चों को परमेश्‍वर के मार्ग की शिक्षा देंगे। हम मसीही जीवन की अच्छी मिसाल रखेंगे। जिसमें रोज़ बाइबल पढ़ना, परिवार के साथ अध्ययन करना और मसीही कलीसिया में और प्रचार के काम में पूरे मन से हिस्सा लेना शामिल है।

२० “पाँचवा: हम वे सभी गुण बढ़ाने की पूरी कोशिश करेंगे जिसकी मिसाल हमारा परमेश्‍वर और सिरजनहार खुद रखता है। और जैसा यीशु ने किया था, हम उसके नक्शे-कदम पर चलने की कोशिश करेंगे। (इफिसियों ५:१) मसीह के चेले होने की पहचान देते हुए हम फैसला कर चुके हैं कि हम अपने सभी मामले प्यार से निपटाएँगे।—यूहन्‍ना १३:३५.

२१-२३. यहोवा के साक्षी क्या करते रहेंगे और उन्हें किस बात का पूरा यकीन है?

२१ “छठा: हम बिना रुके परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते रहेंगे, चेले बनाते रहेंगे और हम उन्हें परमेश्‍वर के मार्ग की शिक्षा देते रहेंगे और उनको प्रोत्साहन देंगे कि वे मसीही सभाओं में आकर और ज़्यादा ट्रेनिंग पाएँ।—मत्ती २४:१४; २८:१९, २०; इब्रानियों १०:२४, २५.

२२ “सातवाँ: हम खुद और हमारा धार्मिक संगठन परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने को अपने जीवन में पहला स्थान देंगे। उसके वचन बाइबल को गाइड की तरह इस्तेमाल करते हुए हम परमेश्‍वर के मार्ग से दाएँ या बाएँ नहीं मुड़ेंगे, इससे हम यह सबूत देंगे कि परमेश्‍वर का मार्ग दुनिया के किसी भी मार्ग से कहीं ज़्यादा बेहतर और श्रेष्ठ है। हमारा संकल्प है कि हम परमेश्‍वर के मार्ग पर टिके रहेंगे और वफादारी से अभी और हमेशा तक चलते रहेंगे!

२३ “हमने यह संकल्प इसलिए किया है क्योंकि हमें यहोवा की इस प्रतिज्ञा पर पूरा भरोसा है कि जो कोई परमेश्‍वर की इच्छा पर चलेगा वह सदा सर्वदा बना रहेगा। हमने यह संकल्प इसलिए किया है क्योंकि हमें यकीन है कि बाइबल के नियमों पर चलना, उसकी सलाह मानना और उसकी ताड़ना सुनना ही आज जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। और यह आनेवाले भविष्य के लिए भी मज़बूत बुनियाद डालता है जिससे हम सत्य जीवन को वश में कर पाएँगे। (१ तीमुथियुस ६:१९; २ तीमुथियुस ४:७ख, ८) लेकिन सबसे बढ़कर हमने यह संकल्प इसलिए किया है क्योंकि हम यहोवा परमेश्‍वर से अपने सारे दिल, अपने सारे प्राण और अपने सारे मन और अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम करते हैं!

२४, २५. पेश किए गए रॆज़ल्यूशन का जवाब क्या दिया गया और जो यहोवा के मार्ग पर चलते हैं उनका संकल्प क्या है?

२४ “इस अधिवेशन में जमा सभी जन, जो इस संकल्प से सहमत हैं कृपया ‘हाँ’ कहिए!”

२५ “हाँ!” अधिवेशनों में मौजूद सभी लोगों के इस जवाब से दुनिया भर के सैकड़ों स्टेडियम और मैदान गूँज उठे। यहोवा के साक्षी हर हाल में यहोवा के मार्ग पर चलते रहेंगे। उन्हें यहोवा पर पूरा भरोसा है और यह विश्‍वास है कि वह अपने सभी वादों को पूरा करेगा। चाहे जो भी हो जाए, वे यहोवा के वफादार रहेंगे। और वे यह संकल्प कर चुके हैं कि यहोवा की इच्छा पूरी करते रहेंगे।

“परमेश्‍वर हमारी ओर है”

२६. यहोवा के मार्ग पर चलनेवाले क्यों खुश हैं?

२६ यहोवा के साक्षी भजनहार की यह हिम्मत बँधानेवाली बात याद रखते हैं: “यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा।” (भजन ३७:३४) वे पौलुस के इन शब्दों को भी याद रखते हैं जिनसे हौसला मिलता है: “यदि परमेश्‍वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया: वह उसके साथ हमें और सब क्योंकर न देगा?” (रोमियों ८:३१, ३२) जी हाँ, अगर हम यहोवा के मार्ग पर चलते रहें तो वह “हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत” से देगा। (१ तीमुथियुस ६:१७) अपने प्यारे भाई-बहनों के साथ-साथ हम यहोवा के मार्ग पर चल रहे हैं, और हमारे लिए इससे अच्छा मार्ग भला और कौन-सा हो सकता है! यहोवा हमारे साथ है, इसलिए आइए हम इस मार्ग पर चलते रहें और अंत तक धीरज धरने का संकल्प करें। क्योंकि हमें पूरा विश्‍वास है कि अपने ठहराए हुए समय पर यहोवा अपना हर वादा पूरा करेगा।—तीतुस १:२.

[फुटनोट]

a एक टीकाकार का कहना है कि जिस यूनानी शब्द का अनुवाद यहाँ “नाचना” किया गया है, वह शब्द झूठे देवी-देवताओं के त्योहारों में किए जानेवाले नाच को सूचित करता है। वह आगे कहता है: “इनमें ज़्यादातर नाच ऐसे थे जो खासकर काम-वासना को भड़काने के लिए मशहूर हैं।”

क्या आपको याद है?

◻ यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए एक मसीही से क्या माँग की जाती है?

◻ हमें क्यों यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए और उसके वफादार रहना चाहिए?

◻ यहोवा के मार्ग पर चलने के लिए हमें कौन-सी मदद मिलती है?

◻ “ईश्‍वरीय जीवन का मार्ग” अधिवेशन में पास किए गए रॆज़ल्यूशन की कुछ मुख्य बातें बताइए।

[पेज 18 पर तसवीर]

“ईश्‍वरीय जीवन का मार्ग” ज़िला और अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों में एक बहुत ही ज़रूरी प्रस्ताव पास किया गया

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