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  • अपनी ज़िंदगी में सफलता पाइए!
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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अपनी ज़िंदगी में सफलता पाइए!

“धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्‍ति पर नहीं चलता . . . जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”—भजन १:१, ३.

१. आज कई जवानों के लिए सफलता का मतलब क्या है? (ख) लेकिन बाइबल में किस आदमी को सफल कहा गया है?

सफलता—अगर कोई आपसे इसका मतलब पूछे, तो आप क्या जवाब देंगे? एक जवान लड़के ने कहा “बिज़नॆस में सफल होना ही मेरे लिए सबसे बड़ी सफलता है।” एक जवान लड़की ने कहा “मेरा यही सपना है कि मेरा हँसता-खेलता परिवार हो।” लेकिन एक और लड़की कहती है: “मेरा बस इतना सा सपना है कि मेरे पास अपना बंगला हो, गाड़ी हो . . . मैं बस अपने लिए जीना चाहती हूँ।” लेकिन न तो धन-दौलत होने, ना ही परिवार में खुशी या बिज़नॆस में कामयाबी पाने को सच्ची सफलता कहा जा सकता है क्योंकि भजन १:१-३ में बताया गया है: “धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्‍ति पर नहीं चलता . . . वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता . . . जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”

२. सच्ची सफलता कैसे मिलती है और इसे हासिल करने का एकमात्र तरीका क्या है?

२ बाइबल हमें उस चीज़ के बारे में बताती है जो कोई इंसान हमें नहीं दे सकता, वह है सच्ची सफलता! बाइबल के मुताबिक सच्ची सफलता का मतलब बहुत ज़्यादा धन-दौलत हासिल करना नहीं है। दरअसल बाइबल हमें इसके बारे में आगाह करती है: “रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है।” (१ तीमुथियुस ६:१०) सच्ची सफलता यहोवा परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने और उसे खुश करने से, हाँ, उसके नियमों का पालन करने से मिलती है। अगर हम इस तरह आध्यात्मिक बातों की खोज में रहेंगे सिर्फ तभी हमें सच्ची संतुष्टि और खुशी मिलेगी! शायद यह सुनना अच्छा न लगे कि यहोवा के नियमों का पालन करना और उसका हुक्म मानना है। लेकिन यीशु ने बताया था: “खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।” (मत्ती ५:३, NW) चाहे हमें इस बात का एहसास हो या न हो, मगर हमें इस ढंग से बनाया गया है कि हम सभी में आध्यात्मिक भूख होती है। हमारे दिल में कहीं न कहीं परमेश्‍वर को जानने की और उसके उद्देश्‍यों को समझने की गहरी प्यास होती है। इसलिए आपको सच्ची खुशी सिर्फ तभी मिलेगी जब आप अपनी इस आध्यात्मिक प्यास को बुझाएँगे और “यहोवा की व्यवस्था” का पालन करेंगे।

हमें परमेश्‍वर के नियमों की ज़रूरत क्यों है?

३. ‘अपने डग’ यहोवा के नियमों के “अधीन” करके हम क्यों खुश हो सकते हैं?

३ भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने लिखा: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।” (यिर्मयाह १०:२३) चाहे बूढ़े हों या जवान, यह बात हर किसी पर लागू होती है। अपने डग को अपने अधीन रखने के लिए न सिर्फ हमारे पास बुद्धि, अनुभव और ज्ञान की कमी है, बल्कि ऐसा करने का अधिकार ही हमें नहीं दिया गया है। क्योंकि बाइबल का प्रकाशितवाक्य ४:११ कहता है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्‍वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” यहोवा ने ही हमें बनाया है और वही “जीवन का सोता” है। (भजन ३६:९) उससे बढ़कर कोई और हमें यह नहीं बता सकता कि हमें अपनी ज़िंदगी कैसे बितानी चाहिए। इसलिए उसने हमारे ही फायदे के लिए नियम बनाए हैं, हमसे हमारी खुशियाँ छीनने के लिए नहीं। (यशायाह ४८:१७) अगर आप यहोवा के इन नियमों को मानने में लापरवाही बरतेंगे तो आप ज़िंदगी में कभी भी कामयाब नहीं हो सकते।

४. कई जवान लोग अपनी ज़िंदगी क्यों बरबाद कर लेते हैं?

४ मिसाल के तौर पर, क्या आपको पता है कि ज़्यादातर जवान लोग नशीली दवाइयाँ लेकर, अनैतिक कामों में फँसकर और दुनिया-भर के गंदे काम करके अपनी ज़िंदगी क्यों बरबाद कर लेते हैं? इसका जवाब भजन ३६:१, २ में दिया गया है: “दुष्ट जन का अपराध मेरे हृदय के भीतर यह कहता है कि परमेश्‍वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। वह अपने अधर्म के प्रगट होने और घृणित ठहरने के विषय अपने मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है।” कई जवानों में “परमेश्‍वर का भय” और उसके लिए श्रद्धा नहीं होती इसलिए वे यह सोचकर खुद को बेवकूफ बनाते हैं कि वे चाहे कितने बुरे से बुरे काम क्यों न करें उनको कोई पूछनेवाला नहीं है। लेकिन सच तो यह है कि आज नहीं तो कल, उनको इस हकीकत का सामना करना ही पड़ता है: “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। क्योंकि जो अपने शरीर के लिये बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्मा के लिये बोता है, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा।”—गलतियों ६:७, ८.

‘अपने दिन गिनना’

५, ६. (क) जवानों को क्यों ‘अपने दिन गिनने’ चाहिए और ऐसा करने का मतलब क्या है? (ख) “अपने सृजनहार को स्मरण” करने का मतलब क्या है?

५ तो फिर, आपको ज़िंदगी में सफल होने और बाद में ‘अनन्त जीवन की कटनी काटने’ के लिए क्या करना होगा? मूसा ने लिखा: “हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएं, . . . क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं।” (भजन ९०:१०) लेकिन इंसान मरने के बारे में कम सोचता है और यही वज़ह है कि क्यों कई नौजवान ऐसी हरकतें करते हैं मानो उन्हें कोई मार ही नहीं सकता। मगर मूसा हमें इस कड़वी सच्चाई का एहसास दिलाता है कि हमारी ज़िंदगी बस चार दिन की है और इसकी भी कोई गारंटी नहीं कि हम ७० या ८० साल जीएँगे। और “समय और संयोग” किसी को भी बेवक्‍त मौत की नींद सुला सकता है, फिर वे चाहे हट्टे-कट्टे जवान ही क्यों न हों। (सभोपदेशक ९:११) इसलिए ज़िंदगी बहुत अनमोल है। तो आप किस तरह की ज़िंदगी जीना पसंद करेंगे? मूसा ने यहोवा से यह कहकर प्रार्थना की: “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं।”—भजन ९०:१२.

६ अपने दिन गिनने का मतलब क्या है? इसका मतलब यह नहीं कि आप हमेशा इसी चिंता में रहें कि आप और कितने दिन जीएँगे। इसके बजाय मूसा, यहोवा से यह बिनती कर रहा था कि वह अपने लोगों को ऐसी समझ दे ताकि वे अपनी ज़िंदगी इस तरह जीएँ जिससे यहोवा की महिमा हो। क्या आप भी अपनी ज़िंदगी के दिन गिन रहे हैं यानी एक-एक दिन को कीमती समझकर उसे यहोवा की स्तुति करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं? बाइबल जवान लोगों को यह सलाह देती है: “अपने मन से खेद और अपनी देह से दु:ख दूर कर, क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ है। अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख।” (सभोपदेशक ११:१०-१२:१) अपने सृजनहार को स्मरण रखने का मतलब बस उसे याद रखना ही नहीं है क्योंकि यीशु की मौत से पहले जब एक कुकर्मी ने उससे मिन्‍नत की कि “जब तू अपने राज्य में आए तो मुझे स्मरण करना,” तो वह यह नहीं कह रहा था कि यीशु उसे सिर्फ याद करे। वह चाहता था कि यीशु उसकी खातिर कुछ करे, उसका पुनरुत्थान करे! (लूका २३:४२, NHT. उत्पत्ति ४०:१४, २३; अय्यूब १४:१३ से तुलना कीजिए।) उसी तरह, यहोवा को स्मरण करने का मतलब सिर्फ उसे याद करना नहीं बल्कि कुछ काम करना है, ऐसे काम जिनसे वह खुश हो। तो, क्या आपके बारे में यह कहा जा सकता है कि आप यहोवा को स्मरण कर रहे हैं?

कुकर्मियों से मत कुढ़िये

७. कुछ नौजवान यहोवा को क्यों भूल जाना चाहते हैं? एक मिसाल दीजिए।

७ साक्षियों में कई जवान अपने सृजनहार यहोवा को भूल जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी ज़िंदगी में कोई आज़ादी नहीं है और वे बस कायदे-कानूनों में फँसे हुए हैं। स्पेन का एक भाई बताता है कि जब वह किशोर था तो उसे कैसा महसूस होता था: “मुझे दुनिया से लगाव होने लगा क्योंकि मुझे लगता था कि सच्चाई में बने रहना मुझसे नहीं होगा, इसमें बहुत सारी बंदिशें हैं। हमेशा मीटिंग जाना, ध्यान लगाना, किताबें पढ़ना, टाई पहनना . . . ये सब मेरे लिए एक बोझ था।” क्या आपको भी कभी-कभी लगता है कि यहोवा के एक साक्षी होने की वज़ह से आप औरों की तरह ज़िंदगी का मज़ा नहीं ले पा रहे हैं? शायद आपको ताज्जुब हो कि बाइबल के एक लेखक ने भी बिलकुल आपकी तरह ही महसूस किया था। आइए हम अपनी बाइबल में भजन ७३ पढ़कर देखें।

८. आसाप को “घमण्डियों के विषय डाह” क्यों होने लगी?

८ आइए इस भजन की कुछ आयतों पर अच्छी तरह गौर करें। आयत २ और ३ में कहा गया है: “मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, मेरे डग फिसलने ही पर थे। क्योंकि जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था, तब उन घमण्डियों के विषय डाह करता था।” जब हम यह भजन खोलते हैं तो वहाँ लिखा है कि यह आसाप का भजन है। आसाप, राजा दाऊद के ज़माने का एक लेवी और भजनहार था। (१ इतिहास २५:१, २; २ इतिहास २९:३०) उसे परमेश्‍वर के मंदिर में सेवा करने की एक बहुत बड़ी आशीष मिली थी, मगर फिर भी वह दुष्टों और घमंडियों से “डाह” करने लगा। उन्हें देखकर आसाप को लगता था कि वे बड़े मज़े से ज़िंदगी काट रहे हैं। उनके पास सुख-शांति है, उन्हें किसी तरह का दुःख नहीं। जब “उनके मन की भावनाएँ उमण्डती हैं” तो वे अपनी हर बुराई में हद-से-ज़्यादा कामयाब होते हैं! (आयत ५, ७) वे बड़े घमंड के साथ और “दुष्टता से अन्धेर की बातें बोलते हैं।” (आयत ८) “वे डींग मारते हैं। वे मानो स्वर्ग में बैठे हुए बोलते हैं, और वे पृथ्वी में बोलते फिरते,” और किसी की परवाह नहीं करते, न तो स्वर्ग के परमेश्‍वर की और ना ही पृथ्वी पर किसी मनुष्य की।—आयत ९.

९. आसाप की तरह आज शायद कुछ मसीही जवान क्या सोचने लगें?

९ शायद आपके स्कूल के दोस्त भी ऐसे ही हों। वे शायद बड़ी बेशर्मी से अपनी लैंगिक करतूतों के बारे में सबको बताते हों और शायद सुनाते हों कि उन्होंने लड़के-लड़कियों की पार्टियों में कितनी मौज-मस्ती की और वे शायद शराब पीने और ड्रग्स लेने की भी डींग मारें। जब आप देखते हैं कि आप जिस सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं यह बहुत ही सकरा है जबकि ये लोग दुनिया की रंगरलियों का मज़ा लूट रहे हैं तो शायद आपको भी इन ‘घमण्डियों से डाह’ होने लगे। (मत्ती ७:१३, १४) आसाप को दुष्टों से इतनी डाह होने लगी कि वह यहाँ तक कहने लगा: “निश्‍चय, मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है; क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूं।” (आयत १३, १४) जी हाँ, वह सोचने लगा कि आखिर परमेश्‍वर की सेवा करने और सच्चाई की राह पर चलने का क्या फायदा।

१०, ११. (क) किस बात ने आसाप को सँभलने में मदद दी? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि बुराई करनेवाले असल में “फिसलनेवाले स्थानों में” खड़े हैं? मिसाल दीजिए।

१० खुशी की बात है कि आसाप जल्द ही सँभल गया, उसे एहसास हुआ कि उसका सोचना कितना गलत था। उसे समझ आया कि दुष्टों का सुख, दरअसल एक धोखा है और वह भी कुछ ही पलों का! अब वह कहने लगा: “निश्‍चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है। अहा, वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! वे मिट गए, वे घबराते घबराते नाश हो गए हैं।” (आयत १८, १९) मौज-मस्ती करनेवाले वे लड़के-लड़कियाँ भी इसी तरह “फिसलनेवाले स्थानों में” खड़े हैं। आज नहीं तो कल, उन्हें अपने अशुद्ध चालचलन और अपने बुरे कामों का सिला ज़रूर मिलेगा, शायद कोई लड़की गर्भवती हो जाए, या किसी को लैंगिक बदचलनी की वज़ह से होनेवाली कोई गंदी बीमारी लग जाए, हो सकता है उन्हें जेल का मुँह भी देखना पड़े या उनकी मौत भी हो जाए! इससे भी बदतर तो यह है कि वे अपने सृजनहार परमेश्‍वर से बहुत दूर चले जाते हैं।—याकूब ४:४.

११ स्पेन की एक जवान मसीही बहन ने इस सच्चाई को ठोकर खाके सीखा। वह दोहरी ज़िंदगी जीती थी। उसने आवारा और बदचलन नौजवानों से दोस्ती बढ़ा ली। जल्द ही, वह एक लड़के के प्यार में पड़ गयी, जो नशीली दवाएँ लेता था। हालाँकि वह खुद तो नशीली दवाइयाँ नहीं लेती थी, मगर उसके लिए खरीदती ज़रूर थी। वह यह भी कबूल करती है “जब वह ड्रग्स की सिरिंज लगाता था तो मैं उसकी मदद करती थी।” लेकिन, खुशी की बात है कि जल्द ही उस बहन के होश ठिकाने आ गए और वह वापस सच्चाई की राह पर आ गयी। बाद में यह जानकर उसे कितना धक्का लगा कि नशीली दवाएँ लेनेवाले उसके बॉयफ्रेंड की एड्‌स की वज़ह से मौत हो गई है। जी हाँ, ठीक जैसे भजनहार ने कहा था, अशुद्ध चाल चलनेवाले दरअसल “फिसलनेवाले स्थानों में” खड़े हैं। कुछ तो शायद जल्द ही अपनी बदचलनी की वज़ह से बेवक्‍त मर जाएँ। और अगर दूसरों के साथ ऐसा ना भी हुआ और वे अपनी बुराई में लगे रहे तो जल्द ही उनको भी सज़ा मिलेगी जब “प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। और जो परमेश्‍वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उन से पलटा लेगा।”—२ थिस्सलुनीकियों १:७, ८.

१२. जापान के एक नौजवान ने कैसे जाना कि दुष्टों से जलना बेवकूफी है?

१२ तो फिर, उन लोगों से जलना या डाह करना कितनी बेवकूफी है जो “परमेश्‍वर को नहीं पहचानते”! असल में, ईर्ष्या तो दूसरों को हमसे होनी चाहिए क्योंकि हमें कितनी आशीषें मिली हैं। हम यहोवा को जानते हैं और हमारे पास हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा भी है। जापान के एक नौजवान भाई को इसी आशीष का एहसास हुआ। वह भी दूसरों की तरह “आज़ादी चाहता था।” वह कहता है: “पहले मुझे लगा कि मैं ज़िंदगी का मज़ा नहीं ले पा रहा हूँ। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं सच्चाई में नहीं होता तो मेरी ज़िंदगी बिलकुल खोखली होती, मैं मौज-मस्ती की ज़िंदगी जीकर बस ७० या ८० साल में ही मर जाता और मुझे कोई आशा नहीं होती। लेकिन सिर्फ यहोवा ही हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी देने का वादा करता है! तब मेरी समझ में आया कि मेरे पास जो सच्चाई है, वह वाकई कितनी अनमोल है।” यह बिलकुल सच है लेकिन यह भी सच है कि दुष्टों से भरी इस दुनिया में परमेश्‍वर के वफादार बने रहना आसान नहीं। तो फिर दुनिया के लोगों से आनेवाले दबावों का सामना करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

अपने दोस्तों को ध्यान से चुनिए!

१३, १४. हमें अपने दोस्तों को क्यों ध्यान से चुनना चाहिए?

१३ आइए अब फिर से भजन १:१-३ में बताए गए सफल मनुष्य के बारे में पढ़ें: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्‍ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है! परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”

१४ ध्यान दीजिए कि आपके दोस्तों का आपकी ज़िंदगी पर बहुत भारी असर हो सकता है। नीतिवचन १३:२० कहता है: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” इसका मतलब यह नहीं कि आप उन युवाओं से रूखा व्यवहार करें या कठोरता से पेश आएँ जो यहोवा के साक्षी नहीं हैं। बाइबल हमसे अनुरोध करती है कि हम अपने पड़ोसियों से प्रेम करें और “सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप” रखें। (रोमियों १२:१८; मत्ती २२:३९) लेकिन, अगर आप बाइबल के दर्जे न माननेवाले जवानों के साथ दोस्ती बढ़ाते हैं तो आप भी ‘उनकी युक्‍ति पर चलने’ लगेंगे।

बाइबल पढ़ने के फायदे

१५. जवान लोग बाइबल पढ़ने की लालसा कैसे पैदा कर सकते हैं?

१५ भजनहार ने यह भी कहा कि एक सफल मनुष्य यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्‍न रहता है और “उस पर रात दिन ध्यान करता रहता है।” (भजन १:१, २) सच है कि बाइबल पढ़ना हमेशा आसान नहीं होता और उसमें “कितनी बातें ऐसी हैं, जिनका समझना कठिन है।” (२ पतरस ३:१६) मगर बाइबल की पढ़ाई को एक बोझ मत समझिए। परमेश्‍वर के वचन के “शुद्ध आत्मिक दूध के लिए” लालसा पैदा कीजिए। (१ पतरस २:२, NHT) हर दिन इसका एक छोटा-सा भाग पढ़ने की कोशिश कीजिए। अगर कुछ बातें आपकी समझ में नहीं आतीं तो संस्था की किताबों में खोजिए। जो आपने पढ़ा उसके बारे में सोचिए। (भजन ७७:११, १२) अगर पढ़ाई में आपका ध्यान नहीं लग रहा तो थोड़ा ज़ोर से पढ़िए और ‘ध्यान’ लगाने की कोशिश कीजिए। कुछ समय बाद, आपको बाइबल पढ़ना अच्छा लगने लगेगा। ब्राज़ील की एक युवा बहन बताती है: “पहले यहोवा मेरे लिए बहुत दूर था। लेकिन अब कुछ महीनों से मैं ज़्यादा ध्यान देकर स्टडी करने लगी हूँ और बाइबल की पढ़ाई करने लगी हूँ। अब मुझे लगता है, यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत है। वह मेरा एक अच्छा दोस्त बन गया है।”

१६. हम सभाओं से कैसे बहुत कुछ सीख सकते हैं?

१६ परमेश्‍वर की सेवा में बढ़ते जाने के लिए, कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होना भी निहायत ज़रूरी है। अगर आप सभाओं में ‘चौकस रहकर सुनें’ तो आप कई बातें सीख सकते हैं। (लूका ८:१८) क्या आपको कभी ऐसा लगता है कि सभाओं में ज़रा भी जान नहीं है और आप बैठे-बैठे ऊब जाते हैं? लेकिन अपने आप से पूछिए, ‘सभाओं में जान डालने के लिए मैं क्या कर रहा हूँ? क्या मैं ध्यान से सुनता हूँ? क्या मैं सभाओं के लिए तैयारी करता हूँ? क्या मैं जवाब देता हूँ?’ बाइबल हमसे कहती है कि “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें . . . एक दूसरे को समझाते रहें।” (इब्रानियों १०:२४, २५) ऐसा करने के लिए आपको सभाओं में भाग लेना चाहिए! और बेशक, भाग लेने के लिए आपको पहले से तैयारी करनी होगी। एक युवा बहन का कहना है: “जब आप पहले से तैयारी करते हैं तो सभाओं में भाग लेना सचमुच बहुत आसान हो जाता है।”

परमेश्‍वर के मार्ग पर चलने से सफलता मिलती है

१७. मन लगाकर बाइबल की पढ़ाई करनेवाला कैसे “उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है”?

१७ भजनहार उस सफल मनुष्य के बारे में आगे कहता है, “वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है।” ये बहती नालियाँ शायद खेत में बनायी गयी पानी की धाराएँ हैं जिनसे खेत या बाग के पेड़-पौधों को पानी मिलता है। (यशायाह ४४:४) मन लगाकर रोज़ बाइबल की पढ़ाई करना ऐसा है मानो जैसे आप निरंतर बह रही जल-धारा से ताकत और ताज़गी पा रहे हैं। (यिर्मयाह १७:८) आपको परीक्षाओं और मुश्‍किलों का सामना करते रहने की शक्‍ति हर दिन मिलती रहेगी। जब आप यहोवा के विचार सीखेंगे तो आपको ऐसी बुद्धि मिलेगी जिससे आपको सही फैसले करने में आसानी होगी।

१८. यहोवा की सेवा में एक युवा कैसे सफल हो सकता है?

१८ कभी-कभी, यहोवा की सेवा करना मुश्‍किल लग सकता है। मगर ऐसा कभी मत सोचिए कि यह आपके बस से बाहर है। (व्यवस्थाविवरण ३०:११) अगर आपकी ज़िंदगी का मकसद यहोवा के दिल को खुश करना है, तो बाइबल वादा करती है कि आप ‘जो कुछ करेंगे वह सफल होगा’! (नीतिवचन २७:११) और याद रखिए आप अकेले नहीं हैं। आपके साथ यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह हैं। (मत्ती २८:२०; इब्रानियों १३:५) वे जानते हैं कि आप पर कैसे-कैसे दबाव आते हैं और वे कभी-भी आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे। (भजन ५५:२२) आपके साथ सारी दुनिया के भाई-बहन भी हैं और अगर आपके माता-पिता भी सच्चाई में हैं तो वे भी आपके साथ हैं। (१ पतरस २:१७) ऐसे सहारे के साथ और आपकी मेहनत और लगन से आप न सिर्फ अभी बल्कि हमेशा-हमेशा तक ज़िंदगी में सफलता पाते रहेंगे!

आइए याद करें

◻ सच्ची सफलता क्या है?

◻ हमें अपने डग को यहोवा के नियमों के अधीन क्यों करना चाहिए?

◻ जवान ‘अपने दिन कैसे गिन’ सकते हैं?

◻ दुष्ट काम करनेवालों से जलना बेवकूफी क्यों है?

◻ जवानों को ज़िंदगी में सफल होने के लिए हर रोज़ बाइबल पढ़ने और हर सभा में जाने से कैसे मदद मिल सकती है?

[पेज 20 पर तसवीर]

कई जवानों में “परमेश्‍वर का भय” और उसके लिए श्रद्धा नहीं होती इसलिए वे बुरे से बुरे काम करते हैं

[पेज 22 पर तसवीर]

जवान अकसर यह भूल जाते हैं कि उनके कामों का अंजाम उन्हें ही भुगतना होगा

[पेज 23 पर तसवीर]

बाइबल पढ़ने की लालसा पैदा कीजिए

[पेज 23 पर तसवीर]

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