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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2006
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 10/15 पेज 8-11

प्यार की बेहतरीन राह पर चलना सीखिए

कॉसॉवॉ, लेबनॉन और आयरलैंड। ये नाम पिछले कुछ सालों से सुर्खियों में रहे हैं। ये नाम सुनते ही लोगों के मन में खून-खराबा, बम-विस्फोट और मार-पीट की तस्वीरें उभर आती हैं। बेशक धर्म, जाति, देश या किसी और बात में भेदभाव को लेकर हिंसा पर उतारू होना कोई नई बात नहीं है। दरअसल इतिहास के पन्‍ने ऐसे ही हादसों से भरे पड़े हैं और इनसे इंसान को इतनी दुःख-तकलीफें पहुँची हैं कि उनका कोई हिसाब नहीं।

पूरे इतिहास में शुरू से ही युद्धों का सिलसिला जारी रहा है और इसलिए कई लोग सोचते हैं कि युद्धों को रोकना किसी के बस में नहीं और कि इंसान का एक-दूसरे से नफरत करना स्वाभाविक बात है। लेकिन ऐसे सोच-विचार परमेश्‍वर के वचन, बाइबल के बिलकुल खिलाफ हैं। बाइबल साफ-साफ बताती है: “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्‍वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है।” (१ यूहन्‍ना ४:८) तो इसमें कोई शक नहीं कि सिरजनहार चाहता है कि इंसान एक-दूसरे से प्रेम करें।

बाइबल यह भी बताती है कि इंसान परमेश्‍वर के स्वरूप में सृजा गया था। (उत्पत्ति १:२६, २७) इसका मतलब है कि इंसान में परमेश्‍वर के गुण दिखाने की काबिलीयत है और वह परमेश्‍वर का सबसे खास गुण, प्रेम भी दिखा सकता है। अगर ऐसा है तो फिर इंसान एक-दूसरे से प्रेम करने में क्यों इतनी बुरी तरह नाकाम हुए हैं? इसका जवाब भी बाइबल देती है। यह इसलिए क्योंकि पहले जोड़े, आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की और वे पापी बन गए। नतीजा यह हुआ कि उनकी संतान को भी विरासत में पाप और असिद्धता मिली। रोमियों ३:२३ बताता है: “सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।” परमेश्‍वर ने हमें प्रेम करने की जो काबिलीयत दी है उसमें पाप और असिद्धता की वज़ह से कमी आ गई। लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि इंसान में एक-दूसरे को प्रेम करने की काबिलीयत और नहीं रही? क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि कभी हम एक-दूसरे के साथ शांति और प्रेम से जी पाएँगे?

हमें परमेश्‍वर से प्रेम करना सीखना होगा

यहोवा परमेश्‍वर जानता है कि असिद्ध होने के बावजूद भी इंसान प्रेम दिखाने के काबिल है। इसीलिए यहोवा की माँग है कि जो भी उसे खुश करना चाहता है, वह जितना हो सके उतना प्रेम दिखाए। यहोवा की इस माँग के बारे में उसके बेटे, यीशु मसीह ने साफ-साफ बताया जब उससे एक बार पूछा गया था कि इस्राएलियों को दी गई व्यवस्था में सबसे बड़ा नियम कौन-सा है। उसने कहा: “तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।” फिर उसने कहा: “उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था . . . का आधार है।”—मत्ती २२:३७-४०.

लेकिन कई लोग सोचते हैं कि एक ऐसे शख्स से प्रेम करना बहुत ही मुश्‍किल है जो आँखों से दिखाई नहीं देता। यह सच है कि हम इंसान, यहोवा परमेश्‍वर को नहीं देख सकते क्योंकि वह एक आत्मा है। (यूहन्‍ना ४:२४) मगर परमेश्‍वर ने जो किया है उसका फायदा हमें हर दिन मिलता है और जो कुछ उसने बनाया है उसी पर हमारी ज़िंदगी कायम है। प्रेरित पौलुस ने भी यही बात कही: “[परमेश्‍वर] ने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।”—प्रेरितों १४:१७.

सिरजनहार के इंतज़ामों से किसी-न-किसी रूप में हर कोई फायदा उठाता है लेकिन उसे धन्यवाद देनेवाले बहुत कम हैं। इसलिए हमें खुद को याद दिलाना चाहिए कि परमेश्‍वर ने हमारे लिए कौन-कौन से भले काम किए हैं और इस बात पर ध्यान करना चाहिए कि इन कामों से उसके कौन से अच्छे गुण नज़र आते हैं। ऐसा करने से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि हमारे महान सिरजनहार की बुद्धि और शक्‍ति कितनी बेमिसाल है। (यशायाह ४५:१८) सबसे खास बात यह है कि हम यह जान सकेंगे कि यहोवा कितना प्रेमी है क्योंकि उसने हमें सिर्फ ज़िंदगी ही नहीं दी है बल्कि हमें इस काबिल बनाया है कि हम ज़िंदगी से पूरा-पूरा मज़ा पा सकें।

मिसाल के तौर पर, ज़रा सोचकर देखिए कि परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर इतने अलग-अलग तरह के खूबसूरत फूल बनाए हैं कि उनका कोई हिसाब नहीं। और यह कितनी खुशी की बात है कि उसने हमें देखने के लिए आँखें दी है, जिनसे हम इन खूबसूरत नज़ारों को देखकर उनका मज़ा ले सकें! उसी तरह परमेश्‍वर ने हमारे लिए तरह-तरह का स्वादिष्ट भोजन दिया है ताकि हम खाकर जी सकें। और उसने कितना सोच-समझकर हमारी सृष्टि की है कि हम भोजन का स्वाद चखकर उसका मज़ा ले सकते हैं! क्या ये सब इस बात के ज़बरदस्त सबूत नहीं हैं कि परमेश्‍वर सचमुच हमसे प्रेम करता है और हमेशा हमारी भलाई चाहता है?—भजन १४५:१६, १७; यशायाह ४२:५, ८.

सिरजनहार खुद को “सृष्टि की किताब” से ज़ाहिर करने के अलावा, अपने वचन बाइबल के ज़रिए भी बताता है कि वह किस तरह का परमेश्‍वर है। बाइबल में बताया गया है कि यहोवा परमेश्‍वर ने बीते समयों में कौन-कौन से अच्छे काम किए थे और उसके वादे के मुताबिक आनेवाले दिनों में हमें किस तरह ढेर सारी आशीषें मिलनेवाली हैं। (उत्पत्ति २२:१७, १८; निर्गमन ३:१७; भजन ७२:६-१६; प्रकाशितवाक्य २१:४, ५) और बाइबल यह भी बताती है कि परमेश्‍वर ने हमें पाप और मौत से छुड़ाने के लिए अपने एकलौते बेटे की कुरबानी दी है जो उसके प्यार का सबसे बड़ा सबूत है। (रोमियों ५:८) सचमुच, हम अपने प्यारे सिरजनहार के बारे जितना ज़्यादा सीखते हैं, हमारा दिल उसके लिए प्यार से उतना ही ज़्यादा भर जाता है।

एक-दूसरे से प्रेम करना सीखिए

जैसा कि यीशु ने कहा, परमेश्‍वर को अपने सारे मन, अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम करने के साथ-साथ हमें अपने पड़ोसियों को भी अपने समान प्रेम करना चाहिए। सच तो यह है कि अगर हम परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं तो हम पर इंसान से प्रेम करने की ज़िम्मेदारी भी आती है। प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा: “हे प्रियो, जब परमेश्‍वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।” फिर उसने ज़ोर देकर कहा: “यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्‍वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्‍वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता। और उस से हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, वह अपने भाई से भी प्रेम रखे।”—१ यूहन्‍ना ४:११, २०, २१.

ठीक जैसे बाइबल में बताया गया है, हम आज एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ ज़्यादातर लोग “अपस्वार्थी” हैं, वे हमेशा बस अपने ही बारे में सोचते हैं। (२ तीमुथियुस ३:२) इसलिए अगर हम चाहते हैं कि प्यार की बेहतरीन राह पर चलना सीखें तो हमें दुनिया की तरह स्वार्थी होने के बजाय अपने मन को नया करने और अपने प्यारे सिरजनहार की तरह बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। (रोमियों १२:२; इफिसियों ५:१) परमेश्‍वर “उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है” और वह “भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।” जब हमारा स्वर्गीय पिता प्यार दिखाने में इतनी बढ़िया मिसाल रखता है तो हमें भी सब के साथ भलाई करने और उनकी मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम अपने प्यारे “स्वर्गीय पिता की सन्तान” साबित होंगे।—लूका ६:३५; मत्ती ५:४५.

जब हम इस तरह दूसरों से प्यार करते हैं और उनकी मदद करते हैं तो वे भी सच्चे परमेश्‍वर को जानकर उसके उपासक बन जाते हैं। कुछ साल पहले यहोवा की एक साक्षी ने अपनी एक पड़ोसन को बाइबल की सच्चाई बताने की कोशिश की, लेकिन उसने सुनने से साफ इंकार कर दिया। मगर बहन निराश नहीं हुई। इसके बजाय वह हमेशा अपनी पड़ोसन के साथ अच्छी तरह पेश आई और उसकी मदद करती रही। एक बार जब उसकी पड़ोसन अपना घर बदल रही थी तो बहन ने भी उसके काम में हाथ बँटाया। एक और बार जब वह पड़ोसन एयरपोर्ट पर अपने रिश्‍तेदार को लाने जा रही थी तो बहन ने उसके साथ किसी और के भी जाने का इंतज़ाम किया। नतीजा यह हुआ कि बाद में उस पड़ोसन ने बाइबल सीखना शुरू किया। उसके पति ने उसे बहुत सताया फिर भी उसमें इतना जोश था कि वह आखिरकार एक साक्षी बन गई। जी हाँ, उस बहन द्वारा दिखाए गए प्यार की वज़ह से हमेशा की आशीषें पाने का रास्ता खुल गया।

सच कहें तो परमेश्‍वर हमें इसलिए प्रेम नहीं करता क्योंकि हमारे अंदर बहुत सारी खूबियाँ हैं। इसके बजाय, हमारी ढेरों खामियों और गलतियों के बावजूद वह हमसे प्रेम करता है। तो फिर हमें भी दूसरों से प्रेम करना चाहिए हालाँकि वे कई गलतियाँ करते हैं। दूसरों में गलतियाँ ढूँढ़ने के बजाय अगर हम उनकी खूबियाँ जानने और उनकी कदर करना सीखेंगे तो उनसे प्यार करना हमारे लिए बहुत आसान हो जाएगा। और हम सिर्फ अपना एक फर्ज़ समझकर उनसे प्यार नहीं करेंगे बल्कि यह प्यार हमारे दिल से निकलेगा और उनके लिए एक ऐसा गहरा लगाव होगा जैसा एक दोस्त के लिए होता है।

अपने प्रेम को बढ़ाना

दूसरों से अपने प्यार और दोस्ती को हमेशा बढ़ाते रहना चाहिए तभी यह कायम रह सकती है। इसके लिए कई बातें ज़रूरी हैं, जैसे कि सच बोलना और ईमानदार होना। कुछ लोग दूसरों से अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश करते हैं ताकि वे उनकी नज़रों में अच्छे बने रहें और उन्हें अपने दोस्त बना सकें। लेकिन इसका नतीजा अकसर उलटा होता है क्योंकि आज नहीं तो कल दूसरों को सच्चाई मालूम हो जाती है और इस कपट की वज़ह से दूसरे उनसे नफरत करने लगते हैं। इसलिए हो सकता है हमारे अंदर कई कमज़ोरियाँ हों और हम उनपर काबू पाने की कोशिश भी कर रहे हों मगर फिर भी हमें दूसरों को अपने बारे में सच्चाई बताने से कभी डरना नहीं चाहिए। इससे उनके साथ दोस्ती बनाने का रास्ता खुल सकता है।

मिसाल के तौर पर, एक पूर्वी देश की कलीसिया में एक बुज़ुर्ग बहन है जो बहुत कम पढ़ी-लिखी है। लेकिन यह बात वह कभी दूसरों से छिपाने की कोशिश नहीं करती। जैसे कि वह साफ-साफ कबूल करती है कि उसे दूसरों को यह समझाना नहीं आता कि किस तरह बाइबल की भविष्यवाणियों और इतिहास के सबूतों के मुताबिक अन्यजातियों को दिया गया समय १९१४ में खत्म हुआ।a लेकिन प्रचार करने, भाई-बहनों को प्यार करने और उनकी मदद करने में वह इतनी अच्छी मिसाल है कि उसे प्यार से कलीसिया का रत्न कहा जाता है।

कुछ देशों में दूसरों के लिए प्यार की भावनाएँ खुलेआम ज़ाहिर करना गलत माना जाता है। लोगों को सिखाया जाता है कि वे एक-दूसरे के साथ अदब-कायदे से ही पेश आएँ। यह सच है कि आदर और सम्मान से पेश आना अच्छी बात है लेकिन हमें इस हद तक अदब की रस्मों से बँधा हुआ नहीं होना चाहिए कि दूसरों के प्रति हमारी भावनाएँ अंदर ही अंदर दबकर रह जाएँ। यहोवा ने अपने चुने हुए लोगों यानी इस्राएलियों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने में शर्मिंदा महसूस नहीं किया। उसने उनसे कहा: “मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूं।” (यिर्मयाह ३१:३) उसी तरह, प्रेरित पौलुस ने भी थिस्सलुनीके के भाई-बहनों से कहा: “हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्‍वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिये कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।” (१ थिस्सलुनीकियों २:८) इसलिए जब हम दूसरों के लिए दिल में सच्चा प्यार बढ़ाने की कोशिश करते हैं तो बाइबल के मुताबिक यह बिलकुल ठीक होगा कि हम अपने प्यार को ज़ाहिर भी करें, न कि उसे दिल में ही दबाकर रखें।

कोशिश करते रहने की ज़रूरत है

हमें हमेशा सीखते रहने की ज़रूरत है कि दूसरों के लिए प्यार कैसे बढ़ाएँ और ज़ाहिर करें। इसके लिए हमें बहुत कोशिश करनी होगी क्योंकि एक तो हमें खुद अपनी असिद्धताओं पर काबू पाना है और साथ ही इस बात का ख्याल रखना है कि नफरत भरी इस दुनिया का हम पर कहीं असर न पड़ जाए। लेकिन, अगर हम कोशिश करते रहें तो हमें बढ़िया नतीजे भी मिलेंगे।—मत्ती २४:१२.

इस असिद्ध संसार में भी एक-दूसरे के साथ अच्छे रिश्‍ते कायम करना मुमकिन है और ऐसा करने से हमें और दूसरों को भी खुशी, शांति और संतुष्टि मिलेगी। अगर हम दूसरों से प्रेम करेंगे तो हम साबित कर सकेंगे कि हम परमेश्‍वर की नई दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने के काबिल हैं। और सबसे खास बात यह है कि अगर हम प्यार की बेहतरीन राह पर चलना सीखेंगे तो हमारा प्यारा सिरजनहार हमसे खुश होगा और अभी और हमेशा के लिए आशीषें देगा!

[फुटनोट]

a इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स, खंड १, पेज १३२-५ देखिए।

[पेज 10 पर तसवीरें]

मसीही प्रेम दूसरों की भलाई करने के ज़रिए दिखाया जा सकता है

[पेज 8 पर चित्र का श्रेय]

UN PHOTO 186226/M. Grafman

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