परमेश्वर के वचन से आप कितना प्यार करते हैं?
“अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।”—भजन ११९:९७.
१. कौन-से एक तरीके से, परमेश्वर पर श्रद्धा रखनेवाले लोग दिखाते हैं कि उन्हें परमेश्वर के वचन से प्यार है?
आज करोड़ों लोग अपने घर में बाइबल रखते हैं। मगर बाइबल रखना एक बात है और उससे प्यार करना दूसरी बात है। अगर एक व्यक्ति कभी-कभार ही बाइबल यानी परमेश्वर के वचन को पढ़ता है तो क्या उसका यह दावा करना ठीक है कि वह उससे प्यार करता है? जी नहीं! दूसरी ओर, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके दिल में पहले परमेश्वर के वचन के लिए प्यार नहीं था, मगर आज वे बाइबल को रोज़ पढ़ते हैं। इन लोगों ने परमेश्वर के वचन से प्यार करना सीखा है और अब वे भी भजनहार की तरह “दिन भर” उस पर ध्यान लगाए रहते हैं।—भजन ११९:९७.
२. कठिन हालात में भी एक यहोवा के साक्षी का विश्वास कैसे मज़बूत बना रहा?
२ नाशो डोरी नाम के एक व्यक्ति ने परमेश्वर के वचन से प्यार करना सीखा। वह अल्बेनिया में पैदा हुआ था, जहाँ यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगी थी। इसके बावजूद भाई डोरी अपने संगी विश्वासियों के साथ बहुत सालों तक धीरज से यहोवा की सेवा करता रहा। पाबंदी के समय इन वफादार मसीहियों को बाइबल समझानेवाली बहुत कम किताबें मिलती थीं। फिर भी, भाई डोरी अपने विश्वास में कभी नहीं डगमगाया। यह कैसे हो सका? उसने कहा, “मेरा एक ही लक्ष्य था कि हर रोज़ कम-से-कम एक घंटा बाइबल ज़रूर पढ़ूँ। और ऐसा मैं अपनी आँखें खराब होने तक यानी तकरीबन ६० साल की उम्र तक करता रहा।” उसकी अपनी अल्बेनियन भाषा में पूरी बाइबल न होने के बावजूद भी वह यूनानी भाषा में बाइबल पढ़ता था क्योंकि यह भाषा उसने बचपन में सीखी थी। अल्बेनियन भाषा में तो पूरी बाइबल हाल ही में निकली है। रोज़ाना बाइबल पढ़ने की वज़ह से ही वह जीवन में आनेवाली कठिनाइयों को पार कर सका। उसी तरह अगर हम भी रोज़ बाइबल पढ़ें तो हम भी जीवन में आनेवाली कठिनाइयों का सामना कर सकेंगे।
परमेश्वर के वचन के लिए “लालसा करो”
३. परमेश्वर के वचन के बारे में मसीहियों का क्या नज़रिया होना चाहिए?
३ प्रेरित पतरस ने लिखा, “नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो।” (१ पतरस २:२) जब एक बच्चा भूखा होता है तो वह अपनी माँ के दूध के लिए तब तक लालसा करता है, जब तक कि उसकी भूख नहीं मिटती। उसी तरह जिस मसीही को आध्यात्मिक भूख होती है, वह परमेश्वर के वचन के लिए तब तक लालसा करता है, जब तक कि वो उसे ना मिले और मिलने पर वह उसे बड़े चाव से पढ़ता है। क्या आप में ऐसी लालसा है? अगर नहीं है, तो निराश मत होइए। आप भी परमेश्वर के वचन के लिए ऐसी लालसा विकसित कर सकते हैं।
४. रोज़ बाइबल पढ़ने की आदत बनाने के लिए क्या करना ज़रूरी?
४ अपनी लालसा बढ़ाने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है कि हम नियमित रूप से बाइबल पढ़ने की आदत डालें, हो सके तो रोज़ पढ़ने की आदत। (प्रेरितों १७:११) नाशो डोरी ने तो बाइबल पढ़ने के लिए हर दिन एक घंटा निकाला, लेकिन आपके लिए शायद यह मुश्किल हो। फिर भी अगर आप कोशिश करें तो हर दिन परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उस पर ध्यान करने के लिए आप थोड़ा वक्त ज़रूर निकाल पाएँगे। कई मसीही बाइबल के कुछ पाठों को पढ़ने के लिए सुबह जल्दी उठते हैं। यह कितनी अच्छी आदत है, सुबह बाइबल पढ़ने से हम सारा दिन उस पर ध्यान कर सकेंगे और ताज़गी महसूस करेंगे! कुछ लोग रात को सोने से पहले बाइबल पढ़ना ज़्यादा पसंद करते हैं। तो कुछ लोग दिन-भर में, जब भी उन्हें वक्त मिलता है, तब बाइबल पढ़ते हैं। ज़रूरत इस बात कि है कि हम बाइबल को नियमित रूप से पढ़ने की आदत बनाएँ। और पढ़ने के बाद थोड़ी देर उस पर मनन भी करें। आइए, अब कुछ ऐसे उदाहरणों पर गौर करें जिन्होंने परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उस पर मनन करने से फायदा उठाया है।
भजनहार जो परमेश्वर के वचन से प्यार करता था
५, ६. एक सौ उन्नीसवाँ भजन लिखनेवाले भजनहार का नाम हम भले ही न जानें, फिर भी उसने जो लिखा उसे पढ़ने और मनन करने से हम उसके बारे में क्या सीखते हैं?
५ एक सौ उन्नीसवाँ भजन लिखनेवाले भजनहार के दिल में परमेश्वर के वचन के लिए बहुत कदर थी। वह भजनहार कौन था? बाइबल उसका नाम तो नहीं बताती, मगर उस अध्याय के आस-पास की आयतों को पढ़ने से उसके बारे में कुछ जानकारी ज़रूर मिलती है। वह एक ऐसा इंसान था जिसकी ज़िंदगी समस्याओं से घिरी थी। उसके कुछ जान-पहचानवाले, जो कहने को तो यहोवा के उपासक थे, पर बाइबल सिद्धांतों की बिलकुल कदर नहीं करते थे। फिर भी, भजनहार पर उनके रवैये का कोई असर नहीं हुआ, उसने हमेशा वही किया जो सही था। (भजन ११९:२३) आपकी स्थिति भी उस भजनहार की तरह हो सकती है, जब आप ऐसे लोगों के साथ रहते हैं या काम करते हैं, जो बाइबल सिद्धांतों का आदर नहीं करते।
६ भजनहार एक धर्मी इंसान था मगर उसने कभी धर्मी होने का दिखावा नहीं किया। बल्कि उसने खुलकर कबूल किया कि वह एक असिद्ध इंसान है। (भजन ११९:५, ६, ६७) मगर असिद्ध होने के बावजूद भी उसने पाप को अपने पर हावी नहीं होने दिया। उसने पूछा: “जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे?” फिर जवाब भी दिया: “तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से।” (भजन ११९:९) आगे उसने इस बात पर ज़ोर दिया कि परमेश्वर के वचन में इतनी शक्ति है कि वह एक इंसान को गलत काम करने से रोकती है। उसने कहा: “मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं।” (भजन ११९:११) तो देखिए कि परमेश्वर का वचन हमें कैसे उकसाता है कि हम उसके विरुद्ध पाप न करें!
७. नौजवानों को खासकर बाइबल पढ़ने के लिए क्यों सचेत रहना चाहिए?
७ यहोवा की उपासना करनेवाले नौजवानों को भजनहार की बातों पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए। इस दुनिया में मसीही जवानों को गुमराह करने की बहुत कोशिश की जा रही है। और खासकर इन्हें भ्रष्ट करके शैतान को बड़ी खुशी होगी। शैतान का यही मकसद है कि ये नौजवान अपनी शारीरिक अभिलाषाओं में फँसकर परमेश्वर के नियमों को तोड़ दें। आजकल हम देखते हैं कि फिल्मों और टी.वी. कार्यक्रमों के ज़रिए अकसर शैतान के विचारों को ही उजागर किया जाता है। इनमें जो किरदार दिखाए जाते हैं, वे देखने में बेहद आकर्षक और मन को लुभानेवाले होते हैं; इनके बीच होनेवाले अवैध संबंधों को भी ऐसे दिखाया जाता है, मानो यह मामूली बात है। दरअसल, वे कहना क्या चाहते हैं? यही कि ‘अगर एक लड़का-लड़की एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं, तो शादी से पहले लैंगिक संबंध रखना कोई गलत बात नहीं।’ दुःख की बात तो यह है कि इन्हीं घटिया विचारों के बहकावे में आकर हर साल हमारे कई नौजवान इसके चंगुल में फँस जाते हैं। इसीलिए हमारे कुछ जवानों का विश्वास रूपी जहाज़ डूब गया है। हाँ, यह बिलकुल सच है कि आज नौजवानों पर दबाव बहुत ज़बरदस्त है। मगर क्या दबाव सचमुच इतना है कि आप उसका सामना नहीं कर सकते? हरगिज़ नहीं! यहोवा ने मसीही जवानों को ऐसा रास्ता दिखाया है, जिस पर चलकर वे बुरी अभिलाषाओं पर काबू पा सकते हैं। अगर वे ‘परमेश्वर के वचन के अनुसार सावधान रहें और उसके वचन को अपने हृदय में रखें,’ तो वे अपने आप को शैतान के फँदों से बचा सकेंगे। तो जवानों, आप बाइबल पढ़ने और मनन करने में नियमित रूप से कितना समय लगाते हैं?
८. यहाँ दिए गए उदाहरण, मूसा की व्यवस्था के लिए कदरदानी बढ़ाने में आपकी मदद कैसे कर सकते हैं?
८ एक सौ उन्नीसवाँ भजन लिखनेवाले ने बड़े आनंद से कहा: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!” (भजन ११९:९७) वह कौन-सी व्यवस्था की बात कर रहा था? वह यहोवा के वचन बाइबल के बारे में कह रहा था, जिसमें मूसा की व्यवस्था भी शामिल है। कुछ लोग शायद इस व्यवस्था पर नज़र डालते ही अपना मुँह फेरकर कहें कि यह तो पुरानी हो चली है और इससे भला कोई कैसे प्यार कर सकता है। लेकिन भजनहार की तरह अगर हम भी मूसा की व्यवस्था पर ध्यान करें, जिसमें कई तरह के नियम दिए गए हैं तो हम व्यवस्था में नज़र आनेवाली बुद्धि को ज़रूर सराहेंगे। व्यवस्था के कई नियम भविष्य में होनेवाली बातों की ओर इशारा करते थे, मगर इसमें कुछ ऐसे भी नियम दिए गए थे जो साफ-सफाई और खान-पान के मामले में थे, इससे आस-पास का वातावरण साफ-सुथरा रहता था और तंदुरुस्ती भी बनी रहती थी। (लैव्यव्यवस्था ७:२३, २४, २६; ११:२-८) व्यवस्था ईमानदारी से कारोबार करने पर भी ज़ोर देती थी साथ ही इस्राएलियों को यह सलाह दी गई थी कि वे ज़रूरतमंद भाइयों पर दया करें और न्याय करते वक्त पक्षपात न करें। (निर्गमन २२:२६, २७; २३:६; लैव्यव्यवस्था १९:३५, ३६; व्यवस्थाविवरण २४:१७-२१; १६:१९; १९:१५) भजनहार ने खुद अपने तज़ुर्बे से देखा कि जिसने भी परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार ज़िंदगी बितायी, उसकी ज़िंदगी कामयाब रही और धीरे-धीरे उसके दिल में व्यवस्था के लिए भी प्यार गहरा होता गया। उसी तरह आज जो मसीही बाइबल के सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू करने में सफल हुए हैं, उनके दिल में भी परमेश्वर के वचन के लिए प्यार गहरा होता गया और कदर बढ़ गई।
राजकुमार जिसमें अलग दिखने की हिम्मत थी
९. परमेश्वर के वचन के प्रति हिजकिय्याह का रवैया कैसा था?
९ जब हिजकिय्याह एक राजकुमार था तब जैसी ज़िंदगी उसने बितायी थी, उस जानकारी के आधार पर ऐसा लगता है कि भजन ११९ की बातें उसी के विचार हैं क्योंकि ये उसके विचारों से बहुत मिलते-जुलते हैं। बाइबल के कुछ विद्वानों का मानना है कि हिजकिय्याह ने ही वह भजन लिखा होगा। यह तो ठीक-ठीक पता नहीं कि इसे किसने लिखा, मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि हिजकिय्याह के दिल में परमेश्वर के वचन के लिए गहरा आदर था। जिस तरह उसने अपनी ज़िंदगी बसर की, उससे साफ पता चलता है कि वह भजन ११९:९७ के विचारों से पूरी तरह सहमत था। हिजकिय्याह के बारे में बाइबल कहती है: “वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी थीं, उनका वह पालन करता रहा।”—२ राजा १८:६.
१०. हिजकिय्याह का उदाहरण उन मसीहियों की हिम्मत कैसे बढ़ाता है जिनके माता-पिता सच्चे परमेश्वर के रास्ते पर नहीं चलते?
१० हिजकिय्याह के बारे में पढ़ने से पता चलता है कि उसकी परवरिश ऐसे परिवार में हुई थी, जो परमेश्वर के रास्ते पर नहीं चलता था। उसका पिता राजा आहाज़ अविश्वासी और मूर्तिपूजक था। उसने झूठे देवता को बलि चढ़ाने के लिए हिजकिय्याह के भाई यानी अपने ही एक बेटे को आग में होम कर दिया था। (२ राजा १६:३) इसके बावजूद भी हिजकिय्याह ने अपनी ‘चाल को शुद्ध रखा’ और झूठे धर्मों का अपने पर असर नहीं होने दिया क्योंकि वह परमेश्वर के वचन पर ध्यान लगाए रहता था।—२ इतिहास २९:२.
११. जैसा कि हिजकिय्याह ने खुद देखा, विश्वासघाती होने की वज़ह से उसके पिता के राज्य में क्या हुआ?
११ जब हिजकिय्याह बड़ा हुआ तो उसने खुद अपनी आँखों से देखा कि कैसे उसका मूर्तिपूजक पिता राजकीय मामलों को निपटाता था। उस समय यहूदा राज्य दुश्मनों से घिरा हुआ था। अराम के राजा रसीन ने, इस्राएल के राजा पेकह के साथ मिलकर यरूशलेम पर चढ़ाई की। (२ राजा १६:५, ६) एदोमी और पलिश्ती भी उसके दुश्मन थे, उन्होंने यहूदा पर धावा बोला और उसके कुछ नगरों पर भी कब्ज़ा कर लिया। (२ इतिहास २८:१६-१९) आहाज़ ने इन मुश्किलों का सामना कैसे किया? आराम के आक्रमण से बचने के लिए आहाज़ ने यहोवा से मदद माँगने के बजाय अश्शूर के राजा से मदद ली। और उसने उसे सोना और चाँदी की रिश्वत दी, यहाँ तक कि उसे मंदिर के खज़ाने में से भी निकालकर दे दिया। इतना सब कुछ करने पर भी यहूदा में हमेशा के लिए शांति नहीं रही।—२ राजा १६:६, ८.
१२. क्या करने से हिजकिय्याह अपने पिता की गलतियों को दोहराने से बच सकता था?
१२ अपने पिता आहाज़ की मौत के बाद हिजकिय्याह राजा बना। उस समय उसकी उम्र सिर्फ २५ वर्ष थी। (२ इतिहास २९:१) काफी कम उम्र होने के बावजूद भी वह एक कामयाब राजा बना। अपने विश्वासघाती पिता का चाल-चलन अपनाने के बजाय वह यहोवा की व्यवस्था पर ध्यान देता रहा। यहोवा की व्यवस्था में राजाओं के लिए एक खास आज्ञा दी गई थी: “जब [राजा] राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक, जो लेवीय याजकों के पास रहेगी, उसकी एक नकल अपने लिये कर ले। और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था . . . की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे।” (व्यवस्थाविवरण १७:१८, १९) परमेश्वर का वचन हर रोज़ पढ़ने से हिजकिय्याह यहोवा का भय मानना सीख सकता था और तभी वह अपने दुष्ट पिता की गलतियों को दोहराने से बच सकता था।
१३. एक मसीही कैसे तय कर सकता है कि आध्यात्मिक तौर पर वह जो कुछ करे उसमें वह सफल होगा?
१३ परमेश्वर के वचन पर लगातार ध्यान न केवल इस्राएल के राजाओं को, बल्कि परमेश्वर का भय माननेवाले हर इस्राएली को देना था। पहला भजन बताता है कि जो व्यक्ति “यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है,” वह वाकई खुश है। (भजन १:१, २) ऐसे व्यक्ति के बारे में भजनहार कहता है: “जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन १:३) इसके उलट, जो यहोवा परमेश्वर पर पूरा विश्वास नहीं रखता, बाइबल कहती है: “वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।” (याकूब १:८) हम सभी अपनी ज़िंदगी में खुश रहना और सफल होना चाहते हैं। इसलिए अगर हम नियमित रूप से गहरी खोज-बीन करते हुए ध्यान लगाकर बाइबल को पढ़ें तो इससे हमारी खुशी बढ़ेगी।
परमेश्वर के वचन से यीशु को लगातार हिम्मत मिलती रही
१४. यीशु ने परमेश्वर के वचन के लिए कैसे प्यार दिखाया?
१४ एक बार यीशु के माता-पिता ने देखा कि वह यरूशलेम के मंदिर में उपदेशकों के बीच बैठा है। और परमेश्वर के वचन में माहिर ये उपदेशक “उस की समझ और उसके उत्तरों से [कितने] चकित थे!” (लूका २:४६, ४७) यह तब की बात है जब यीशु सिर्फ १२ साल का था। इस घटना से हम देख सकते हैं कि इस छोटी-सी उम्र में भी उसे परमेश्वर के वचन से कितना प्यार था। और बड़े होने पर भी शैतान को फटकारने के लिए उसने शास्त्रवचनों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।” (मत्ती ४:३-१०) इसके बाद जल्द ही, उसने अपने गृहनगर नासरत में लोगों को प्रचार करने के लिए परमेश्वर के वचन का ही इस्तेमाल किया।—लूका ४:१६-२१.
१५. दूसरों को प्रचार करने के मामले में यीशु ने हमारे लिए किस तरह की बढ़िया मिसाल रखी?
१५ लोगों को सिखाते वक्त यीशु अकसर परमेश्वर के वचन से हवाला देता था। और सुननेवाले “उसके उपदेश से चकित” हो जाते थे। (मत्ती ७:२८) इसमें ज़रा भी शक नहीं कि यीशु जो भी सिखाता था, अपनी तरफ से नहीं बल्कि सब कुछ परमेश्वर यहोवा की तरफ से ही था। यीशु ने कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बड़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उस में अधर्म नहीं।”—यूहन्ना ७:१६, १८.
१६. यीशु ने किस हद तक परमेश्वर के वचन के लिए अपना प्यार दिखाया?
१६ एक सौ उन्नीसवाँ भजन लिखनेवाला भजनहार तो असिद्ध था। लेकिन यीशु में कोई “अधर्म” और पाप नहीं था क्योंकि वह परमेश्वर का पुत्र था। फिर भी उसने “अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि . . . मृत्यु भी सह ली।” (फिलिप्पियों २:८; इब्रानियों ७:२६) सिद्ध होने के बावजूद, यीशु ने परमेश्वर की व्यवस्था पढ़ी और उसके मुताबिक चला। यही सबसे बड़ा कारण था कि वह खराई में बना रहा। जब प्रेरित पतरस ने अपने गुरू यीशु को गिरफ्तारी से बचाने के लिए तलवार चलाई, तो यीशु ने उसे फटकारते हुए कहा: “क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूं, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? परन्तु पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य हैं, क्योंकर पूरी होंगी?” (मत्ती २६:५३, ५४) यीशु जानता था कि किस तरह उसे ज़लील किया जाएगा और बेदर्दी से मार डाला जाएगा। फिर भी उसने इन बातों की परवाह न करते हुए शास्त्र की बातों को पूरा करना ज़्यादा ज़रूरी समझा। परमेश्वर के वचन के लिए प्यार की क्या ही बढ़िया मिसाल!
मसीह के अनुसार चलनेवाले दूसरे लोग
१७. परमेश्वर के वचन के लिए प्रेरित पौलुस का नज़रिया कैसा था?
१७ प्रेरित पौलुस ने संगी मसीहियों को लिखा: “तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।” (१ कुरिन्थियों ११:१) अपने गुरू यीशु की तरह ही पौलुस ने अपने दिल में परमेश्वर के वचन के लिए प्यार बढ़ाया था। उसने कहा: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से . . . परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं।” (रोमियों ७:२२) पौलुस ने बार-बार परमेश्वर के वचन से हवाला दिया। (प्रेरितों १३:३२-४१; १७:२, ३; २८:२३) तिमुथियुस ने पौलुस के साथ-साथ काम किया था और पौलुस उसे बहुत पसंद भी करता था। उसे आखिरी हिदायत देते हुए पौलुस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जो “परमेश्वर का जन” है, उसकी ज़िंदगी में हर दिन परमेश्वर के वचन के लिए एक खास जगह होनी चाहिए।—२ तीमुथियुस ३:१५-१७.
१८. इस सदी के एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण दीजिए जिसके दिल में परमेश्वर के वचन के लिए प्यार था?
१८ यीशु मसीह की तरह आज भी यहोवा के कई वफादार सेवकों के दिल में परमेश्वर के वचन के लिए प्यार है। इस सदी की शुरुआत की ही बात लीजिए। एक नौजवान को अपने दोस्त से एक बाइबल मिली। इस अनमोल तोहफे का उस नौजवान पर क्या असर हुआ इसके बारे में वह खुद इस तरह कहता है: “मैंने यह पक्का फैसला किया कि जब तक साँस है, तब तक बिना नागा, हर दिन बाइबल का थोड़ा-थोड़ा भाग ज़रूर पढूँगा।” वह नौजवान था, फ्रेड्रीक फ्रान्ज़ जिसके दिल में परमेश्वर के वचन के लिए गहरा प्यार था। इस वज़ह से वह अपनी लंबी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में खुशी-खुशी बिता सका। आज भी भाई फ्रान्ज़ को इस बात के लिए याद किया जाता है कि वह बाइबल के कई अध्याय मुँह जबानी बोल सकता था।
१९. कुछ लोग थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में दी गई हफ्ते भर की बाइबल पढ़ाई किस तरह करते हैं?
१९ यहोवा के साक्षी नियमित रूप से बाइबल पढ़ने पर बहुत ज़ोर देते हैं। हर हफ्ते उनकी एक सभा थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में, बाइबल के कुछ अध्यायों की खास झलकियाँ दी जाती हैं। और वे इसकी तैयारी पहले से ही अपने घर में करते हैं। कुछ साक्षी हफ्ते भर की इस बाइबल पढ़ाई को सात भागों में बाँट देते हैं और हर रोज़ उसका एक-एक भाग पढ़ते हैं। पढ़ने के साथ-साथ वे उस पर मनन भी करते हैं। जब कभी उन्हें मौका मिलता है तो वे बाइबल आधारित किताबों की मदद से उस पर और गहरी खोज-बीन करते हैं।
२०. नियमित रूप से बाइबल पढ़ने के लिए क्या करने की ज़रूरत है?
२० “अवसर को बहुमोल” समझते हुए दूसरे कामों से समय निकालिए और नियमित रूप से बाइबल पढ़िए। (इफिसियों ५:१६) आप ऐसा करने के लिए जो भी त्याग करेंगे उससे कहीं बढ़कर आपको आशीषें मिलेंगी। हर रोज़ जैसे-जैसे आप बाइबल पढ़ने की आदत बनाएँगे, आप देखेंगे कि परमेश्वर के वचन के लिए आपका प्यार और भी गहरा होता जा रहा है। और जल्द ही आप भजनहार कि तरह कहेंगे: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।” (भजन ११९:९७) परमेश्वर के वचन के लिए अगर हम ऐसा नज़रिया रखें तो हमें बहुत-से फायदे होंगे, आज भी और भविष्य में भी, जैसा कि अगले लेख में हम देखेंगे।
क्या आपको याद है?
◻ एक सौ उन्नीसवाँ भजन लिखनेवाले ने परमेश्वर के वचन के लिए गहरा प्यार कैसे दिखाया?
◻ यीशु और पौलुस के उदाहरणों से हम कौन-सा सबक सीख सकते हैं?
◻ हम अपने दिल में परमेश्वर के वचन के लिए प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं?
[पेज 10 पर तसवीरें]
वफादार राजाओं को नियमित रूप से परमेश्वर का वचन पढ़ना था। क्या आप पढ़ते हैं?
[पेज 12 पर तसवीर]
बचपन में भी यीशु को परमेश्वर के वचन से प्यार था