धन्य है वह जो प्रकाशितवाक्य के वचन को पढ़ता है
“धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं और इस में लिखी हुई बातों को मानते हैं।”—प्रकाशितवाक्य १:३.
१. किन हालात में प्रेरित यूहन्ना ने प्रकाशितवाक्य लिखा, और उसने ये दर्शन क्यों लिखे?
“मैं यूहन्ना . . . परमेश्वर के वचन, और यीशु की गवाही के कारण पतमुस नाम टापू में था।” (प्रकाशितवाक्य १:९) प्रेरित यूहन्ना को रोमी सम्राट डोमिशियन के शासन के दौरान (सा.यु. ८१-९६ तक) देशनिकाला देकर पतमुस भेज दिया गया था। क्यों? क्योंकि उस वक्त सम्राट डोमिशियन ने सभी लोगों पर सम्राट-उपासना करने की ज़बरदस्ती की थी और यूहन्ना ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था। बाकी मसीहियों पर भी इसी वज़ह से ज़ुल्म ढाया जा रहा था। ऐसे हालात में जब यूहन्ना पतमुस में था, तब उसे कई दर्शन मिले और उसने उन्हें प्रकाशितवाक्य की किताब में लिख लिया। उसने मसीहियों को डराने या उनमें दहशत फैलाने के लिए यह सब नहीं लिखा था। बल्कि वह प्रकाशितवाक्य से उनका हौसला बुलंद करना चाहता था और उनकी हिम्मत बँधाना चाहता था, क्योंकि वे परीक्षाओं और सताहटों से गुज़र रहे थे और आगे भी उन पर कई परीक्षाएँ आनेवाली थीं।—प्रेरितों २८:२२; प्रकाशितवाक्य १:४; २:३, ९, १०, १३.
२. यूहन्ना और उस समय के मसीहियों के हालात आज हम मसीहियों के लिए क्यों अहमियत रखते हैं?
२ जिन हालात में बाइबल की यह पुस्तक लिखी गयी, वो आज के मसीहियों के लिए बहुत ही अहमियत रखते हैं। उस समय यूहन्ना को सताया जा रहा था क्योंकि उसने यहोवा परमेश्वर और उसके बेटे यीशु मसीह के बारे में गवाही दी थी। हालाँकि वह और बाकी मसीही अच्छे नागरिक थे लेकिन वे सम्राट की उपासना नहीं करते थे। इसलिए उनके खिलाफ नफरत की आग भड़क रही थी। (लूका ४:८) आज भी कुछ देशों में ऐसे ही हालात हैं। वहाँ की सरकार, अपने नागरिकों के लिए इसका फैसला करती है कि धर्म के मामले में वे कौन-से काम कर सकते हैं और कौन-से नहीं। सो, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के शुरुआती शब्द पढ़कर ही हमें कितनी तसल्ली मिलती है: “धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं और इस में लिखी हुई बातों को मानते हैं, क्योंकि समय निकट आया है।” (प्रकाशितवाक्य १:३) जी हाँ, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को ध्यान से पढ़नेवाले और उसे माननेवालों को सचमुच खुशी और आशीष मिल सकती है।
३. यूहन्ना को दिया गया प्रकाशितवाक्य असल में किस ने दिया है?
३ यह प्रकाशितवाक्य असल में किसने दिया है, और इसे हम तक पहुँचाने के लिए किस का इस्तेमाल किया गया है? सबसे पहली आयत इसका जवाब देती है: “यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य जो उसे परमेश्वर ने इसलिये दिया, कि अपने दासों को वे बातें, जिन का शीघ्र होना अवश्य है, दिखाए: और उस ने अपने स्वर्गदूत को भेजकर उसके द्वारा अपने दास यूहन्ना को बताया।” (प्रकाशितवाक्य १:१) दूसरे शब्दों में कहें, तो प्रकाशितवाक्य असल में यहोवा परमेश्वर की तरफ से है। यहोवा ने उसे यीशु को दिया, और यीशु ने एक स्वर्गदूत के द्वारा उसे यूहन्ना तक पहुँचाया। और ध्यान से देखने पर पता चलता है कि यीशु ने यूहन्ना को दर्शन दिखाने और कलीसियाओं तक प्रकाशितवाक्य का अपना संदेश पहुँचाने के लिए पवित्र आत्मा का भी इस्तेमाल किया।—प्रकाशितवाक्य २:७, ११, १७, २९; ३:६, १३, २२; ४:२; १७:३; २१:१०. प्रेरितों २:३३ से तुलना कीजिए।
४. यहोवा अपने लोगों को मार्गदर्शन देने के लिए अब भी किस का इस्तेमाल कर रहा है?
४ यहोवा इस धरती पर अपने सेवकों को सिखाने के लिए अब भी यीशु का इस्तेमाल कर रहा है, इसलिए उसे “कलीसिया का सिर” भी कहा जाता है। (इफिसियों ५:२३; यशायाह ५४:१३; यूहन्ना ६:४५) इसके अलावा, वह अपनी आत्मा या शक्ति के ज़रिए भी उन्हें सिखा रहा है। (यूहन्ना १५:२६; १ कुरिन्थियों २:१०) और जिस तरह यीशु ने पहली सदी की कलीसियाओं को आध्यात्मिक भोजन देने के लिए “अपने दास यूहन्ना” का इस्तेमाल किया। ठीक उसी तरह आज वह अभिषिक्त ‘भाइयों’ से बने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का इस्तेमाल कर रहा है, ताकि वे उसके घराने को और उनके साथियों को “समय पर . . . भोजन दे।” (मत्ती २४:४५-४७; २५:४०) धन्य हैं वे जो समझते हैं कि हमें आध्यात्मिक भोजन का उत्तम दान यहोवा की ओर से मिलता है और इसे हम तक पहुँचाने के लिए वही यीशु के द्वारा विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास का इस्तेमाल कर रहा है।—याकूब १:१७.
मसीह के मार्गदर्शन में चलनेवाली कलीसियाएँ
५. (क) मसीही कलीसियाओं और उनके ओवरसियरों की तुलना किस से की गयी है? (ख) हालाँकि सभी कलीसियाओं और उनके ओवरसियरों में खूबियाँ और खामियाँ होती हैं मगर फिर भी किस बात से हम खुश हो सकते हैं?
५ प्रकाशितवाक्य के पहले कुछ अध्यायों में यीशु, मसीही कलीसियाओं को दीवट कहता है। और इन कलीसियाओं के प्राचीनों की तुलना दूतों और तारों से करता है। (प्रकाशितवाक्य १:२०)a और खुद के बारे में यीशु कहता है: “जो सातों तारे अपने दहिने हाथ में लिए हुए है, और सोने की सातों दीवटों के बीच में फिरता है, वह यह कहता है।” (प्रकाशितवाक्य २:१) पहली सदी में, एशिया की सात कलीसियाओं की और उनके प्राचीनों की अपनी-अपनी खूबियाँ और खामियाँ थी। इसलिए यीशु ने इन कलीसियाओं को सात संदेश भेजे। इससे पता चलता है कि वह हर कलीसिया के बारे में बखूबी जानता था। आज भी ऐसा ही है। हर कलीसिया की अपनी-अपनी खूबियाँ हैं, खामियाँ हैं, और मसीह हर कलीसिया को बहुत ही अच्छी तरह जानता है। हमारे लिए कितनी खुशी की बात है कि सभी कलीसियाएँ यीशु मसीह के अधीन हैं और उसके मार्गदर्शन पर चलती हैं। कलीसिया का मुखिया होने के नाते वह बहुत अच्छी तरह जानता है कि कलीसियाओं में क्या-क्या हो रहा है। आज भी वह कलीसियाओं के बीच मौजूद है। कलीसिया के ओवरसियर लाक्षणिक तौर पर उसके “दहिने हाथ में” हैं, यानी वे उसके अधीन काम करते हैं और उसके मार्गदर्शन पर चलते हैं। और जिस तरह से वे कलीसियाओं की चरवाही करते हैं, उसके लिए उन्हें यीशु को जवाब देना पड़ेगा।—प्रेरितों २०:२८; इब्रानियों १३:१७.
६. हम क्यों कह सकते हैं कि सिर्फ ओवरसियरों को ही मसीह को जवाब नहीं देना पड़ेगा?
६ लेकिन ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ ओवरसियरों को ही अपने कामों के लिए मसीह को जवाब देना पड़ेगा। यीशु मसीह एक कलीसिया से कहता है: “सब कलीसियाएं जान लेंगी कि हृदय और मन का परखनेवाला मैं ही हूं: और मैं तुम में से हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला दूंगा।” (प्रकाशितवाक्य २:२३) ये शब्द हमारे लिए एक चेतावनी हैं, क्योंकि इससे पता चलता है यीशु की नज़रों में हमारी कोई बात छिपी नहीं रहती। वह हमारे हर इरादे को जानता है। साथ ही, इन शब्दों से हमें हौसला भी मिलता है कि यीशु की खातिर हम जो भी मेहनत करते हैं उसे वह अच्छी तरह जानता है। इसलिए अगर हम तन-मन से सेवा में लगे रहें, तो वह हमें ज़रूर आशीष देगा।—मरकुस १४:६-९; लूका २१:३, ४.
७. फिलेदिलफिया के मसीहियों ने कैसे ‘धीरज के बारे में यीशु के वचन को थामा’ था?
७ लिडिया प्रांत की फिलेदिलफिया शहर की कलीसिया को भेजे संदेश में मसीह ने उन्हें डांट नहीं लगाई थी। मगर उसने उनसे एक ऐसा वादा किया जिसमें हम सब को दिलचस्पी लेनी चाहिए। उसने कहा: “तू ने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिये मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूंगा, जो पृथ्वी पर रहनेवालों के परखने के लिये सारे संसार पर आनेवाला है।” (प्रकाशितवाक्य ३:१०) यूनानी में “धीरज के वचन को थामा है,” इस वाक्य का मतलब “धीरज के बारे में मैंने जो कहा था, उसे माना है,” यह भी हो सकता है। सो आयत ८ से पता चलता है कि फिलेदिलफिया के मसीहियों ने न सिर्फ यीशु की आज्ञाओं को माना था, बल्कि उसकी इस सलाह को भी माना था कि वे आखिर तक वफादार बने रहें।—मत्ती १०:२२; लूका २१:१९.
८. (क) यीशु ने फिलेदिलफिया के मसीहियों से कौन-सा वादा किया? (ख) आज कौन-कौन ‘परीक्षा के समय’ से गुज़र रहे हैं?
८ यीशु ने वादा किया था कि वह उन्हें “परीक्षा के . . . समय” बचाएगा। हम नहीं जानते कि उस समय यह वादा कैसे पूरा हुआ। हालाँकि सा.यु. ९६ में डोमिशियन के मरने के बाद सताहट कुछ हद तक थम गई थी, लेकिन जब ट्रेजन की हुकूमत (सा.यु. ९८-११७) शुरू हुई, तो मसीहियों पर सताहट की एक नयी लहर दौड़ पड़ी। बेशक इस वज़ह से मसीहियों को कई परीक्षाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन सबसे बड़ी ‘परीक्षा’ ‘प्रभु के दिनों’ में यानी अंतिम दिनों में होगी और आज हम इन्हीं अंतिम दिनों में जी रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य १:१०; दानिय्येल १२:४) पहले विश्व युद्ध के दौरान और उसके बाद, आत्मा से अभिषिक्त मसीहियों पर परीक्षा का समय आया था। यह ‘परीक्षा का समय’ अब भी खत्म नहीं हुआ है। इस परीक्षा से ‘पृथ्वी पर रहनेवाले सभी लोग’ गुज़र रहे हैं। इसमें बड़ी भीड़ के लाखों लोग भी शामिल हैं जिन्हें बड़े क्लेश से बचाया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य ३:१०; ७:९, १४) हम धन्य होंगे अगर हम ‘धीरज के बारे में यीशु की इस बात को मानेंगे’: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मत्ती २४:१३.
यहोवा की हुकूमत के अधीन होनेवाले धन्य हैं
९, १०. (क) यहोवा के सिंहासन के दर्शन का हम पर कैसा असर होना चाहिए? (ख) प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को पढ़कर हम कब धन्य कहलाएँगे?
९ प्रकाशितवाक्य के चौथे और पाँचवें अध्याय में यहोवा के सिंहासन और स्वर्ग में उसकी अदालत का एक शानदार दर्शन दिया गया है। उसके सिंहासन के चारों ओर आत्मिक प्राणी हैं जो दिल से यहोवा की स्तुति करते हैं और उसकी धर्मी हुकूमत को कुबूल करते हैं। (प्रकाशितवाक्य ४:८-११) इस दर्शन से हमारे अंदर यहोवा के लिए बहुत ही इज़्ज़त और श्रद्धा पैदा होनी चाहिए। हमें भी उन लोगों के साथ सुर में सुर मिलाकर यह कहना चाहिए: “जो सिंहासन पर बैठा है, उसका, और मेम्ने का धन्यवाद, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे।”—प्रकाशितवाक्य ५:१३.
१० यह कैसे हो सकता है? इसके लिए हमें अपनी हर बात में, हर काम में खुशी-खुशी यहोवा की इच्छा पूरी करनी चाहिए। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।” (कुलुस्सियों ३:१७) सो, हमारे लिए प्रकाशितवाक्य को पढ़ना ही काफी नहीं है। हमें अपने दिल की गहराइयों से कुबूल करना चाहिए कि यहोवा ही इस दुनिया-जहाँ का शहंशाह और मालिक है, और अपनी सारी ज़िंदगी उसकी इच्छा के मुताबिक बिताने की कोशिश करनी चाहिए। तभी हम धन्य कहलाएँगे।
११, १२. (क) शैतान की व्यवस्था का नाश कैसे किया जाएगा? (ख) प्रकाशितवाक्य के ७वें अध्याय के मुताबिक उस भयानक दिन में “कौन ठहर सकता है?”
११ अगर हम यह कुबूल करेंगे कि यहोवा ही तमाम जहाँ का मालिक है तो हमें सच्ची खुशी मिल सकती है। जल्द ही एक बहुत बड़े लाक्षणिक भूकंप में शैतान की पूरी व्यवस्था को जड़ से हिलाया जाएगा और पूरी तरह नाश कर दिया जाएगा क्योंकि वह यहोवा की हुकूमत के अधीन नहीं है। अगर कोई इंसान यहोवा की हुकूमत को और उसकी तरफ से ठहराई गई यीशु मसीह की स्वर्गीय सरकार को कुबूल न करे तो उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं होगी। इसके बारे में प्रकाशितवाक्य की एक भविष्यवाणी कहती है: “पृथ्वी के राजा, और प्रधान, और सरदार, और धनवान और सामर्थी लोग, और हर एक दास, और हर एक स्वतंत्र, पहाड़ों की खोहों में, और चटानों में जा छिपे। और पहाड़ों, और चटानों से कहने लगे, कि हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुंह से जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने के प्रकोप से छिपा लो। क्योंकि उन के प्रकोप का भयानक दिन आ पहुंचा है, अब कौन ठहर सकता है?”—प्रकाशितवाक्य ६:१२, १५-१७.
१२ “कौन ठहर सकता है?” इस सवाल का जवाब प्रकाशितवाक्य के सातवें अध्याय में दिया गया है। इस अध्याय में यूहन्ना कहता है कि उस भयानक दिन या महा क्लेश से बड़ी भीड़ के लोग बच निकलते हैं और वे ‘सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़े’ होते हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४, १५) परमेश्वर के सिंहासन के सामने उनके खड़े होने का मतलब यह है कि वे यहोवा के सिंहासन के अधिकार को या उसकी हुकूमत को दिल से कुबूल करते हैं। इसलिए परमेश्वर भी उनसे खुश है और उनको आशीष देता है।
१३. (क) पृथ्वी के ज़्यादातर लोग किसे पूजते हैं, और उनके माथे या हाथ पर छाप होने का मतलब क्या है? (ख) धीरज की ज़रूरत क्यों होगी?
१३ अध्याय १३ में एक और किस्म के लोगों की बात की गयी है। वे हैं पृथ्वी के बाकी लोग, जो शैतान की राजनैतिक व्यवस्था को पूजते हैं, जिसे जंगली पशु कहा गया है। इन लोगों के “माथे” पर या “हाथ” पर एक छाप लगाई जाती है, जिससे पता चलता है कि वे पूरी तरह शैतान की व्यवस्था के पक्ष में हैं। (प्रकाशितवाक्य १३:१-८, १६, १७) इसके बाद अध्याय १४ में कहा गया है: “जो कोई उस पशु और उस की मूरत की पूजा करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उस की छाप ले। तो वह परमेश्वर के प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा . . . पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु पर विश्वास रखते हैं।” (प्रकाशितवाक्य १४:९, १०, १२) जल्द ही, हरेक इंसान को इन सवालों का जवाब देना पड़ेगा: आप किस की तरफ हैं? यहोवा और उसकी हुकूमत की तरफ या शैतान की अधर्मी राजनैतिक व्यवस्था की तरफ, जिसे एक जंगली पशु कहा गया है? हर इंसान को पशु की छाप लेने से आखिर तक बचे रहना है, और इसके लिए उसे धीरज की ज़रूरत होगी। धन्य हैं वे जिन पर इस पशु की छाप नहीं है और जो यहोवा की हुकूमत को कुबूल करते है और वफादारी दिखाते हुए अंत तक धीरज धरते हैं।
१४, १५. अरमगिदोन की जंग के ब्योरे को बीच में रोककर यीशु क्या कहता है और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
१४ जल्द ही विश्व हुकूमत के मसले को लेकर एक बहुत बड़ी टक्कर होनेवाली है। इस लड़ाई में एक तरफ “सारे संसार” के राजा हैं और दूसरी तरफ यहोवा। यह लड़ाई अरमगिदोन में होगी। इस लड़ाई को “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” भी कहा जाता है। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) लेकिन प्रकाशितवाक्य की किताब जंग का ब्योरा देते-देते, बीच में ही एक दिलचस्प बात बताती है। यीशु कहता है: “देख, मैं चोर की नाईं आता हूं; धन्य वह है, जो जागता रहता है, और अपने वस्त्र की चौकसी करता है, कि नङ्गा न फिरे, और लोग उसका नङ्गापन न देखें।” (प्रकाशितवाक्य १६:१५) यीशु शायद मंदिर का पहरा देनेवाले लेवियों की बात कर रहा था। अगर उन्हें पहरा देने के बजाय सोते हुए पकड़ा जाता, तो उन्हें सरेआम नंगा करके ज़लील किया जाता था।
१५ सो, यहाँ पर साफ-साफ बताया गया है कि अगर हम अरमगिदोन से बच निकलना चाहते हैं, तो हमें जागते रहना है और ऐसे काम करते रहना है जिनसे हम यहोवा परमेश्वर के वफादार साक्षियों के तौर पर पहचाने जाएँ। इस तरह हम अपने वस्त्र की चौकसी कर रहे होंगे। अगर हम आलस न करें और बड़े जोश के साथ परमेश्वर के राज्य का “सनातन सुसमाचार” सुनाते रहें, तो हम धन्य होंगे।—प्रकाशितवाक्य १४:६.
‘धन्य है वह, जो इन बातों को मानता है’
१६. प्रकाशितवाक्य के आखिरी अध्यायों में हमारे लिए कौन-सी खुशखबरी है?
१६ अगर हम प्रकाशितवाक्य के आखिरी अध्यायों को पढ़ें, तो हमारा रोम-रोम खुशी से झूम उठेगा, क्योंकि इसमें एक बहुत ही सुंदर भविष्य की दिलकश तस्वीर पेश की गई है। एक नया आकाश और नयी पृथ्वी होगी, यानी स्वर्ग में एक धर्मी सरकार होगी जो धरती पर वफादार इंसानों पर हुकूमत चलाएगी। इस तरह “सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर” यहोवा की महिमा होगी। (प्रकाशितवाक्य २१:२२) ये शानदार दर्शन दिखाने के बाद स्वर्गदूत यूहन्ना से कहता है: “ये बातें विश्वास के योग्य, और सत्य हैं, और प्रभु ने जो भविष्यद्वक्ताओं की आत्माओं का परमेश्वर है, अपने स्वर्गदूत को इसलिये भेजा, कि अपने दासों को वे बातें जिन का शीघ्र पूरा होना अवश्य है दिखाए। देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूं; धन्य है वह, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें मानता है।”—प्रकाशितवाक्य २२:६, ७.
१७. प्रकाशितवाक्य २२:६ से हमें क्या हौसला मिलता है? (ख) हमें किन फंदों से दूर रहना है?
१७ प्रकाशितवाक्य २२:६ में हमने देखा कि सभी भविष्यवाणियों का “शीघ्र पूरा होना अवश्य है।” प्रकाशितवाक्य की किताब पढ़नेवालों को याद होगा कि ऐसे ही शब्द इस “पुस्तक” की शुरुआत में भी कहे गए थे। (प्रकाशितवाक्य १:१, ३) इससे हमें यह हौसला मिलता है कि प्रकाशितवाक्य की सारी भविष्यवाणियाँ बहुत जल्द पूरी होंगी। हम अंत के दिनों के इतने आखिरी भाग में जी रहे हैं कि हमारे समय के बारे में प्रकाशितवाक्य में बतायी गयी घटनाएँ एक-के-बाद-एक तेज़ी से होंगी। इसलिए अगर हमें लगे कि शैतान की व्यवस्था स्थिर हो गयी है, तो यह एक धोखा है। हमें इस धोखे में नहीं आना चाहिए। हमें जागते रहना चाहिए और एशिया की सात कलीसियाओं को दी गयी चेतावनियों को याद रखना चाहिए। इस तरह हम रुपए-पैसे, मूर्तिपूजा, बदचलनी और धर्मत्यागियों के फंदों में फंसने से बचे रहेंगे और अपनी सेवा में कभी गुनगुने नहीं होंगे।
१८, १९. (क) यीशु किस लिए शीघ्र आएगा और यूहन्ना की तरह हम भी क्या चाहते हैं? (ख) यहोवा क्यों ‘आ’ रहा है?
१८ प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में यीशु कई बार कहता है: “मैं शीघ्र ही आनेवाला हूं” (प्रकाशितवाक्य २:१६; ३:११; २२:७, २०क) जी हाँ, यीशु शीघ्र ही आएगा और बड़े बाबुल का और शैतान की राजनैतिक व्यवस्था का नाश करेगा। साथ ही वह उन लोगों का भी नाश करेगा जो मसीह के राज्य को ठुकराते हैं और इस तरह यहोवा की हुकूमत को कुबूल नहीं करते हैं। इसलिए हम प्रेरित यूहन्ना के साथ कहते हैं: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।”—प्रकाशितवाक्य २२:२०ख.
१९ यहोवा भी कहता है: “देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूं; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है।” (प्रकाशितवाक्य २२:१२) हमें हमेशा की ज़िंदगी का शानदार प्रतिफल चाहे “नए आकाश” में मिले या “नयी पृथ्वी” पर, आइए हम नेकदिल लोगों को जोश के साथ यह न्योता देते रहें: “आ; और जो प्यासा हो, वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।” (प्रकाशितवाक्य २२:१७) हमारी यही दुआ है कि वे भी परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी प्रकाशितवाक्य को पढ़ें और धन्य कहलाएँ!
[फुटनोट]
a प्रकाशितवाक्य—इसकी शानदार पूर्ति जल्द ही! पेज २८-९, १३६ (फुटनोट) देखिए।
दोहराने के लिए कुछ बातें
◻ यूहन्ना तक प्रकाशितवाक्य पहुँचाने के लिए यहोवा ने किन का इस्तेमाल किया और इससे हमें आज के बारे में क्या पता चलता है?
◻ एशिया की सात कलीसियाओं को भेजे गए संदेशों को पढ़कर हमें क्यों खुश होना चाहिए?
◻ ‘परीक्षा के समय’ में हम कैसे सुरक्षित रह सकते हैं?
◻ प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में बतायी गयी बातों को मानने से हमें कौन-सी खुशी मिलेगी?
[पेज 15 पर तसवीर]
यह सुसमाचार किस की तरफ से है, यह जाननेवाले लोग धन्य हैं
[पेज 18 पर तसवीर]
धन्य है वह जो जागता रहे