पूर्वी एशिया में क्रिसमस
• करीब दो सौ साल पहले की बात है। कोरिया का एक बहुत बड़ा विद्वान चीन का पेकिंग शहर देखने गया। वहाँ वह एक चर्च में भी गया और जब उसने सिर उठाकर छत की ओर देखा तो उसे एक पेंटिंग दिखाई दी। उसमें मरियम को दिखाया गया था जो नन्हें यीशु को गोद में लिए हुए थी। पेंटिंग देखकर विद्वान को बहुत हैरानी हुई और इसका वर्णन उसने यूँ किया:
“वह एक माँ की तस्वीर थी जिसकी गोद में पाँच या छः साल का लड़का था। बच्चा इतना मरियल-सा था कि माँ उसे देखने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रही थी। और उनके काफी पीछे, बहुत सारे भूत दिख रहे थे, साथ ही पंख लगे हुए छोटे-छोटे बच्चे यहाँ-वहाँ उड़ रहे थे। उन्हें देखकर मुझे लगा कहीं वे मुझ पर गिर न पड़ें! इसलिए मैंने जल्दी से अपने हाथ आगे बढ़ा दिए ताकि उन्हें लपक लूँ।”
यह तब की बात है जब यूरोप में ईसाई धर्म को आए कई सदियाँ बीत चुकी थीं। धर्म-सुधार हो चुका था और मध्य युगों की लंबी अँधेरी रात भी बीत चुकी थी। लेकिन जहाँ तक एशियाई देशों का सवाल है, वहाँ के ज़्यादातर लोग ईसाई धर्म से बिलकुल अनजान थे, ठीक उतने ही जितनी उस विद्वान के लिए चर्च की वह पेंटिंग। लेकिन आज तो इन देशों की बात ही कुछ और है! हर साल यहाँ, क्रिसमस से कुछ दिन पहले जगह-जगह नन्हे यीशु की तस्वीरें देखने को मिलती हैं। और तो और, क्रिसमस के वक्त पूर्वी देशों और पश्चिमी देशों की सड़कों के बीच कोई खास फर्क नज़र नहीं आता। वाकई आज पूर्वी देशों में क्रिसमस एक बहुत ही आम त्योहार बन गया है।
मिसाल के लिए, हर साल की तरह सन् १९९८ में भी, क्रिसमस से एक महीने पहले यानी २५ नवंबर की शाम को पैरिस की मशहूर शान्ज़एलीज़े सड़क को खूब सजाया गया था। सड़क की दोनों तरफ ३०० पेड़ हैं जिन्हें १,००,००० से भी ज़्यादा बल्बों से रौशन किया गया था। ठीक इसी तरह कोरिया, सीओल में भी हर साल एक बड़े डिपार्टमेंट स्टोर में एक विशाल क्रिसमस पेड़ को सजाया जाता है जो सारी रात बत्तियों से जगमगाता रहता है। इसके अलावा शहर की सभी सड़कों को इतना सजाया जाता है कि वे झिलमिला उठती हैं।
आए दिन टीवी और रेडियो पर क्रिसमस के कार्यक्रम पेश किए जाते हैं और अखबारों में रोज़ इसका ज़िक्र होता है। देश-भर में हर जगह लोग क्रिसमस की धुन में रहते हैं और फिर नए साल के स्वागत की तैयारियों में जुट जाते हैं। आज सीओल में चर्च इतने बढ़ गए हैं कि बाहर से आनेवालों को देखकर हैरानी होती है और इन सब चर्चों को क्रिसमस से पहले कुछ ही समय में खूब सजाया जाता है। इस तरह कोरिया और एशिया के बाकी देशों में नवंबर महीने के आखिर से ही क्रिसमस की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं और ठीक उन्हीं दिनों, अमरीका में थैंक्सगिविंग डे मनाया जाता है।
दरअसल एशिया के कई देशों में लोग ईसाई धर्म को नहीं मानते। मिसाल के लिए, कोरिया में सिर्फ २६.३ प्रतिशत लोग ईसाई है। हॉन्ग कॉन्ग में ७.९ प्रतिशत, ताइवान में ७.४ और जापान में सिर्फ १.२ प्रतिशत ईसाई हैं। तो इससे साफ ज़ाहिर है कि पूरब के ज़्यादातर लोग ईसाई धर्म को नहीं मानते लेकिन उन्हें क्रिसमस मनाने में कोई एतराज़ नहीं है। देखा जाए तो वे इसे पश्चिम के ईसाई देशों से भी बढ़कर धूम-धाम से मनाते हैं। मिसाल के तौर पर, हॉन्ग कॉन्ग में ज़्यादातर लोग बौद्ध या दाओ धर्म को मानते हैं लेकिन क्रिसमस मनाने में यह देश बहुत ही माहिर है। चीन में भी क्रिसमस लोगों का पसंददीदा त्यौहार बनता जा रहा है जबकि वहाँ सिर्फ ०.१ प्रतिशत लोग ईसाई हैं।
लेकिन आज पूरब के लोग क्रिसमस के इतने दीवाने कैसे बन गए हैं? वे यीशु को मसीहा नहीं मानते मगर फिर भी वे क्रिसमस मनाने के इतने शौकीन क्यों हैं? आखिर क्रिसमस तो ईसाइयों का त्योहार है जो यह सोचकर उसे मनाते हैं कि क्रिसमस के दिन यीशु का जन्म हुआ था। क्या सच्चे मसीहियों को भी क्रिसमस मनाना चाहिए? आइए हम इन सवालों के जवाब देखें। इसके लिए पहले यह पता करें कि पूरब के एक बहुत पुराने देश, कोरिया में क्रिसमस किस तरह मशहूर हुआ।