अपने मन को नरम और मुलायम मिट्टी की तरह बनाए रखिए
इस्राएली याजक एज्रा व्यवस्था का एक बहुत बड़ा विद्वान, उपदेशक और शास्त्र की नकल करनेवाला व्यक्ति था। वह पूरे दिल से परमेश्वर की भक्ति करता था जो आज के मसीहियों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। क्यों? वह बाबुल में रहता था जहाँ झूठे देवी-देवताओं और पिशाचों की बड़े पैमाने पर उपासना की जाती थी, मगर इसके बावजूद भी उसकी भक्ति पर ऐसी झूठी उपासना का बिलकुल भी असर नहीं हुआ। वह परमेश्वर का पूरा-पूरा वफादार बना रहा।
एज्रा के दिल में परमेश्वर के लिए गहरी भक्ति अपने आप नहीं आयी, बल्कि इसे पैदा करने के लिए उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ी। दरअसल वह हमें बताता है कि उसने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने . . . के लिये अपना मन लगाया था।” (तिरछे टाइप हमारे।) (एज्रा 7:10) यहाँ जिस शब्द का अनुवाद ‘मन लगाना’ किया गया है, उसका असल में अर्थ है, मन को ‘तैयार करना।’ इसका मतलब है कि एज्रा ने परमेश्वर की व्यवस्था को समझने और उसके अनुसार चलने के लिए अपने मन को तैयार किया था।
आज यहोवा के लोग ऐसी दुनिया में रहते हैं जो सच्ची उपासना के खिलाफ है। मगर इसके बावजूद भी वे एज्रा की तरह, यहोवा की हर आज्ञा को मानते हैं और वफादार बने रहते हैं। और जिस तरह एज्रा ने अपने मन को तैयार किया था, उसी तरह हम भी अपने मन को तैयार कर सकते हैं। सो आइए देखें कि हम अपने विचारों, मनोवृत्तियों, इच्छाओं और इरादों को, यानी अपने मन को कैसे तैयार कर सकते हैं, ताकि हम भी ‘यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ सकें, और उसके अनुसार चल’ सकें।
अपने मन को तैयार करना
बृहत हिन्दी कोश के अनुसार “तैयार” और “तैयारी” का मतलब है ‘जो बनकर बिलकुल ठीक हो गया हो; पूर्णतः व्यवहार के योग्य; शिक्षा आदी के द्वारा काम के योग्य बनाया हुआ; अभ्यास से प्राप्त कुशलता।’ सो, अगर आपने परमेश्वर के वचन का सही-सही ज्ञान पाया है और अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी है, तो आपका मन तैयार हो गया है। और आपका मन उस “अच्छी भूमि” या मुलायम मिट्टी की तरह बन गया है, जिसके बारे में यीशु ने बीज बोनेवाले के अपने दृष्टांत में बताया था।—मत्ती 13:18-23.
लेकिन हमारे मन को मुलायम मिट्टी की तरह बनाए रखने के लिए अपने मन पर लगातार ध्यान देने और उसे शुद्ध रखने की ज़रूरत है। क्यों भला? इसके दो कारण हैं। पहला, क्योंकि हमारे मन के मुलायम मिट्टी में जंगली दानों जैसे बुरे विचार आसानी से जड़ पकड़ सकते हैं। इन “अन्तिम दिनों” में इसका खतरा और भी ज़्यादा है क्योंकि शैतान की दुनिया की “हवा” में बुरे सोच-विचारों के जंगली दाने चारों तरफ बिखरे हुए हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5; इफिसियों 2:2, किताब-ए-मुकद्दस) अब आइए हम दूसरा कारण देखते हैं। अगर भूमि को यूँ ही छोड़ दिया जाता है, या ढेर सारे लोग इस पर चलते-फिरते हैं तो मिट्टी जल्द ही सूखकर या दबकर सख्त हो जाएगी और उपजाऊ नहीं रहेगी। हमारा मन भी इसी मिट्टी की तरह है। अगर हम इसकी तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं देते हैं, या अगर हम दूसरे लोगों या रिश्तेदारों को हमारा काफी समय बरबाद करने देते हैं, तो हमारे पास आध्यात्मिक बातों के लिए बिलकुल भी समय नहीं बचेगा, जिसकी वज़ह से हम कोई भी अच्छा आध्यात्मिक फल पैदा नहीं कर पाएँगे।
तो फिर यह कितना ज़रूरी है कि हम सब बाइबल की इस सलाह को अमल में लाएँ: “सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।”—नीतिवचन 4:23.
हमारे मन की ‘मिट्टी’ को उपजाऊ बनाना
आइए हम देखें कि हम अपने मन की ‘मिट्टी’ को कैसे उपजाऊ बनाए रख सकते हैं। ऐसा करने में कई बातें हमारी मदद कर सकती हैं। मगर हम यहाँ सिर्फ छः बातों पर गौर फरमाएँगे। ये हैं: अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत, नम्रता, ईमानदारी, परमेश्वर का भय, विश्वास और प्रेम।
यीशु ने कहा था, “खुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।” (मत्ती 5:3, NW) अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत होने की वज़ह से हम ठीक उसी तरह आध्यात्मिक भोजन लेने के लिए तरसेंगे जिस तरह भूख लगने पर हम खाने के लिए तरसते हैं। आध्यात्मिक भोजन लेने के लिए इंसान में जन्म से ही लालसा होती है, क्योंकि जिस तरह भोजन हमें जीने के लिए ताकत देता है उसी तरह आध्यात्मिक भोजन हमें जीने का मकसद देता है। लेकिन हम आध्यात्मिक भोजन लेने में ढीले पड़ सकते हैं। इसकी वज़ह है कि शैतान की व्यवस्था से हम पर दबाव आ सकता है या स्टडी के मामले में हम बहुत आलसी हो सकते हैं। मगर हमें यीशु की इस बात को याद रखना चाहिए: “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।”—मत्ती 4:4.
जब व्यक्ति ठीक समय पर पौष्टिक खाना खाता है, तो इससे उसकी सेहत बनी रहती है। उसे भूख भी लगती है और वह अगले खाने का इंतज़ार करता है। यही बात आध्यात्मिक सेहत के बारे में भी सच है। आप शायद ऐसे व्यक्ति न हों जो काफी समय तक एक ही जगह बैठकर, बड़े ध्यान लगाकर स्टडी करते हों, लेकिन अगर आप हर रोज़ बाइबल पढ़ने की आदत डालते हैं और अगर आप बाइबल पर आधारित दूसरी किताबों की हमेशा स्टडी करते हैं, तो आपकी आध्यात्मिक भूख बढ़ेगी और आप अगली बार बाइबल स्टडी करने का बेसब्री से इंतज़ार करेंगे। इसलिए आध्यात्मिक भूख बढ़ाने के लिए कोशिश करते रहिए, कड़ी मेहनत करते रहिए।
नम्रता व्यक्ति को दीन बनाती है
मन को मिट्टी की तरह मुलायम बनाने के लिए नम्रता बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह व्यक्ति को दीन बनाता है जिससे वह शिक्षा, ताड़ना और सुधार को आसानी से स्वीकार करता है। राजा योशिय्याह की बढ़िया मिसाल पर विचार कीजिए। उसके राज के दौरान मूसा द्वारा दी गयी परमेश्वर की व्यवस्था की एक पुस्तक मिली। जब योशिय्याह ने व्यवस्था में दी गयी बातें सुनीं और उसे यह एहसास हुआ कि उसके बाप-दादा सच्ची उपासना से बहुत दूर भटक गए थे, तो उसे इतना दुःख हुआ कि उसने अपने वस्त्र फाड़े और यहोवा के सामने फूट-फूट कर रोने लगा। परमेश्वर के वचन ने इस राजा के मन को इस कदर कैसे छू लिया? बाइबल कहती है कि उसका मन “नरम” था, इसलिए उसने यहोवा की बातें सुनकर खुद को नम्र और दीन बनाया। (किताब-ए-मुकद्दस) यहोवा ने योशिय्याह को आशीष दी क्योंकि वह नम्र और दीन था और परमेश्वर ने अपने वचन के ज़रिए उसे जो शिक्षा दी थी उसे उसने पूरे दिल से स्वीकार किया था।—2 राजा 22:11, 18-20.
यीशु के शिष्य “अनपढ़ और साधारण” लोग थे, मगर फिर भी वे गहरी आध्यात्मिक बातों को समझकर अमल में ला सके क्योंकि वे नम्र थे। लेकिन दूसरे लोग हालाँकि “सांसारिक दृष्टि से” ‘ज्ञानी और समझदार’ थे, मगर फिर भी वे इन गहरी बातों को बिलकुल भी समझ नहीं पाए। (प्रेरितों 4:13; लूका 10:21; 1 कुरिन्थियों 1:26, ईज़ी टू रीड वर्शन) ये लोग यहोवा की शिक्षा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि उनका मन घमंड से फूला हुआ था और बहुत ही सख्त हो गया था। तो क्या इसमें कोई ताज्जुब की बात है कि यहोवा घमंड से नफरत करता है?—नीतिवचन 8:13; दानिय्येल 5:20.
ईमानदारी और परमेश्वर का भय
भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने लिखा कि “मनुष्य का हृदय छल-कपट से भरा होता है, निस्सन्देह वह सब से अधिक भ्रष्ट होता है। मनुष्य के हृदय को कौन समझ सकता है?” (यिर्मयाह 17:9, नयी हिंदी बाइबल) मनुष्य के मन में भरा यह छल-कपट कई तरीकों से ज़ाहिर होता है, जैसे गलती करने पर अपनी चमड़ी बचाने के लिए बहाने बनाना, अपने चरित्र के बड़े-बड़े खोट पर परदा डालने के लिए सफाई देना। मगर जब हम ईमानदार होंगे, तो हम अपनी खामियों को जानकर उसे कबूल करेंगे और फिर उसे सुधारने की कोशिश करेंगे। भजनहार की प्रार्थना में यही ईमानदारी दिखायी दी: “हे यहोवा, मुझ को जांच और परख; मेरे मन और हृदय को परख।” जी हाँ, भजनहार ने अपने मन को इस तरह तैयार किया कि जब यहोवा जाँच-परखकर उसे शिक्षा दे, तो वह उसे स्वीकार कर सके। और इसमें यह बात कबूल करना भी शामिल है कि जब इस जाँच-परख से उसके चरित्र के कुछ बुरे गुण नज़र आएँगे, तो वह इन्हें सुधारने की कोशिश करेगा।—भजन 17:3; 26:2.
परमेश्वर का भय का मतलब है “बुराई से बैर रखना,” और यह गुण अपने मन को शुद्ध करने में काफी मदद करता है। (नीतिवचन 8:13) यहोवा का भय रखनेवाला व्यक्ति जानता है कि यहोवा प्रेमी और भला है, मगर वह यह भी जानता है कि परमेश्वर अपनी आज्ञा न माननेवालों को सज़ा देता है, फिर चाहे वह सज़ा मौत ही क्यों न हो। यहोवा ने इस्राएलियों के बारे में कहा: “भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे।” (व्यवस्थाविवरण 5:29) इससे यही पता चलता है कि जो लोग परमेश्वर का भय रखते हैं वे उसकी आज्ञाओं को भी मानेंगे।
लेकिन परमेश्वर का भय मानने का मतलब यह नहीं है कि हम उसके सामने थरथराएँ और डर-डरकर उसकी हर आज्ञा को मानें। बल्कि इसका मतलब यह है कि हम अपने प्रेमी पिता को नाखुश करना नहीं चाहते, हम उसकी हर आज्ञा को मानना चाहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि वह सिर्फ हमारी भलाई ही चाहता है। दरअसल, परमेश्वर के प्रति इस तरह के भय से हमें खुशियाँ मिलती हैं और इसी तरह का भय यीशु मसीह ने भी दिखाया था।—यशायाह 11:3; लूका 12:5.
तैयार मन विश्वास में पक्का होता है
वह व्यक्ति जिसका मन विश्वास में पक्का होता है, वह जानता है कि यहोवा अपने वचन के द्वारा हमसे जो भी करने के लिए कहता है या जो भी राह हमें दिखाता है, वह हमेशा सही होती है और हमारे भले के लिए ही होती है। (यशायाह 48:17, 18) ऐसे व्यक्ति को नीतिवचन 3:5, 6 में दी गयी सलाह को अमल में लाने से गहरा संतोष और सुकून मिलता है। वहाँ लिखा है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” लेकिन, जिनके मन में विश्वास की कमी है वे यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा करने से कतराते हैं, क्योंकि ऐसा करने के लिए काफी कुर्बानियाँ करनी पड़ती हैं, जैसे राज्य के कामों को अपनी ज़िंदगी में सबसे आगे रखने के लिए सीधी-सादी ज़िंदगी बिताना। (मत्ती 6:33) इसी वज़ह से जिस मन में विश्वास की कमी है, उसे यहोवा “बुरा” या दुष्ट समझता है।—इब्रानियों 3:12.
हम यहोवा पर अपने विश्वास को कई बातों से ज़ाहिर कर सकते हैं, जैसे उन कामों से जो हम अपने घर के चार-दीवारी के अंदर करते हैं। क्या हम अकेले में भी बाइबल के सभी सिद्धांतों को मानते हैं? मिसाल के तौर पर गलतियों 6:7 में दिए गए सिद्धांत को ही लीजिए, जहाँ लिखा है: “धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।” इस सिद्धांत पर हमारा विश्वास इन बातों से दिखेगा कि हम किस तरह की फिल्में देखते हैं, कौन-सी किताबें पढ़ते हैं, कितनी बाइबल स्टडी करते हैं। यही हमारी प्रार्थनाओं से भी ज़ाहिर होगा। जी हाँ, पक्का विश्वास होने से हम ‘आत्मा के लिए बोएँगे।’ यह पक्का विश्वास होना बहुत ज़रूरी है ताकि हम इस तरह का मन तैयार कर सकें जो यहोवा के वचन को स्वीकार करता हो और उसके अनुसार चलता हो।—गलतियों 6:8.
सबसे बड़ा गुण—प्रेम
लेकिन बाकी सभी गुणों से बढ़कर, प्रेम सचमुच हमारे मन को इस कदर मुलायम बनाता है कि हम यहोवा के वचन को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए प्रेरित पौलुस ने प्रेम के साथ विश्वास और आशा की तुलना करते हुए कहा: “इन सब [गुणों] में सब से बड़ा प्रेम है।” (1 कुरिन्थियों 13:13) जिसके मन में परमेश्वर के लिए प्रेम भरा हो, उसे परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने में बहुत ही खुशी मिलती है। परमेश्वर की माँगों के खिलाफ कुड़कुड़ाना तो उसके दिमाग में भी नहीं आएगा। प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” (1 यूहन्ना 5:3) इसी तरह यीशु ने भी कहा था: “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा।” (यूहन्ना 14:23) ध्यान दीजिए कि अगर हम यहोवा से प्रेम करते हैं, तो वह भी हमसे उतना ही प्रेम करेगा।
यहोवा जानता है कि हम असिद्ध हैं और इसलिए बार-बार पाप करते हैं। मगर फिर भी वह खुद को हमसे दूर नहीं रखता। वह अपने सेवकों में यही देखता है कि उनका ‘मन खरा’ हो, जिसकी वज़ह से वे “प्रसन्न जीव” से उसकी सेवा करते रहें। (1 इतिहास 28:9) बेशक यहोवा जानता है कि हमें अपने मन में ऐसे अच्छे गुण और आत्मा के फल पैदा करने में समय और मेहनत लगती है। (गलतियों 5:22, 23) इसलिए, वह हमारे साथ धीरज से काम लेता है, “क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) यही गुण यीशु ने भी दिखाया, क्योंकि जब उसके चेले कोई गलती कर बैठते, तो वह उनकी बुरी तरह निंदा करने के बजाय धीरज से उनकी मदद करता और उनका हौसला बढ़ाता। सो, यहोवा और यीशु ने जो प्रेम, दया और धीरज जैसे गुण दिखाए, क्या वह आपके दिल को छू नहीं लेते? क्या आपका भी मन नहीं करता कि आप उनसे और भी ज्यादा प्रेम करें?—लूका 7:47; 2 पतरस 3:9.
अगर आप देखते हैं कि आपके दिल में बुरे गुण जंगली दानों की तरह गहराई से जड़ पकड़कर बैठे हैं, या कुछ बुरी आदतें आपके दिल में इतनी घर कर गयी हैं कि वे पत्थर की तरह सख्त हो गयी हैं, और इन बुरे गुणों और आदतों को निकालने में आपको दिक्कत होती है, तो निराश मत होइए, हिम्मत मत हारिए। सुधार करने की लगातार कोशिश करते रहिए, और ‘प्रार्थना में लगे रहिए’ और यहोवा से उसकी आत्मा की मदद माँगते रहिए। (रोमियों 12:12) यहोवा मदद करने को हमेशा तैयार रहता है। उसकी मदद से आप भी एज्रा की तरह ऐसा मन पाने में कामयाब होंगे जो पूरी तरह से “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने” के लिए तैयार है।
[पेज 31 पर तसवीर]
बाबुल में रहते हुए भी एज्रा ने परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखी
[पेज 29 पर चित्र का श्रेय]
Garo Nalbandian