नफरत की फैलती आग
“नफरत करनेवाले उन्हें समझने की कोशिश नहीं करते, जिनसे वे नफरत करते हैं।”
—जेम्स रसल लोवैल, निबंधकार और राजनयिक।
आज जहाँ देखो वहाँ नफरत की आग भड़की हुई है। और जब नफरत की बात आती है तो लोगों की ज़ुबाँ पर कोसावो, कश्मीर, लाइबेरिया, पंजाब, साराजीवो और लिटल-टन जैसे इलाकों का, साथ ही नियो-नात्ज़ी, स्किनहैड, व्हाइट सुप्रीमैसिस्ट जैसे गुटों का नाम आता है जो रंग-रूप और जात-पाँत के नाम पर दूसरों से बेहद नफरत करते हैं। और आँखों के सामने कोयले की तरह झुलसे सैकड़ों-हज़ारों लाशों की भयानक तस्वीर उभर आती है।
एक वक्त था जब लोग एक सुखी संसार का ख्वाब देखते थे जहाँ नफरत, लड़ाई-झगड़े और हिंसा का नामो-निशान नहीं होगा। मगर ऐसा हुआ नहीं। फ्रांस के दिवंगत राष्ट्रपति की पत्नी दानयल मिट्टरएंड, अपनी जवानी के दिनों को यानी दूसरे विश्वयुद्ध से पहले के दिनों को याद करते हुए कहती हैं: “उन दिनों हम एक हसीन दुनिया में जीने का ख्वाब देखा करते थे। हमें पक्का यकीन था कि वह समय जल्द ही आएगा जब सभी लोग प्यार-मुहब्बत से रहेंगे, एक-दूसरे पर भरोसा करेंगे, हर तरफ खुशहाली होगी, किसी को किसी चीज़ की कमी नहीं होगी और कोई खतरा नहीं होगा।” मगर उस सपने का क्या हुआ? वह दुःख के साथ कहती है: “हमारा वह सपना टूटकर बिखर गया।”
आज लोगों के दिलों में नफरत इस कदर बढ़ गई है कि छुपाए नहीं छुप सकती। अब लोग खुलेआम अपनी नफरत का इज़हार करने से नहीं झिझकते। ऐसी जगहों पर भी जहाँ लोग सोचा करते थे कि उन्हें कोई खतरा छू तक नहीं सकता, आज वहाँ पर भी नफरत की वज़ह से ऐसे भयंकर अपराध हुए हैं जिसे सुनकर दिल दहल जाता है। लेकिन आप शायद सोचें कि मैं तो अपने घर या अपने देश में बिलकुल सुरक्षित हूँ। मगर सच तो यह है कि दुनिया का कोना-कोना इस नफरत की आग में झुलस रहा है। टेलीविज़न पर हम अपनी आँखों से इसके ढेरों सबूत देख सकते हैं। यहाँ तक कि अब इंटरनॆट पर भी नफरत की आग फैल चुकी है। आइए ज़रा नफरत के अलग-अलग पहलुओं पर गौर करें।
पिछले दशक के दौरान लोगों में देश-प्रेम की ऐसी भावना जाग उठी है जो पहले कभी नहीं थी। हार्वड सैंटर फॉर इंटरनैशनल अफैयर्स के अधिकारी जोसेफ एस. नाइ ने कहा: “कहा जाता था कि वैज्ञानिक तरक्कियों की वज़ह से पूरी दुनिया मानो सिमट-सी गई है। मगर आपस में प्यार करने के बजाए लोग जाति और देश को लेकर और भी ज़्यादा भेद-भाव करने लगे हैं। इस वज़ह से लड़ाई-झगड़ों की गुंजाइश और भी बढ़ गई है।”
नफरत की आग न सिर्फ राष्ट्रों के बीच या पड़ोसी देशों के बीच है बल्कि खुद देशों के अंदर भी यह आग भड़की हुई है। अब कनाडा देश की ही बात लीजिए। लोग इस देश की तारीफों के पुल बाँधा करते थे कि यहाँ के लोग आपस में भेद-भाव करना तो जानते ही नहीं। मगर जब उसी देश में, पाँच गोरों ने मिलकर एक बुज़ुर्ग सिक्ख को बड़ी बेरहमी से मार डाला तो यह बात जग ज़ाहिर हो गयी कि दुनिया में ऐसी कोई जगह बाकी नहीं रही, जहाँ नफरत का काला साया न मँडरा रहा हो। एक समय था जब जर्मनी में जात-पाँत के नाम पर झगड़े बहुत कम हुआ करते थे। लेकिन ऐसा ज़्यादा दिनों तक नहीं रहा। 1997 में अचानक ही ऐसे झगड़ों की गिनती 27 प्रतिशत बढ़ गई। वहाँ के एक मंत्री मानफ्रेट कान्थर ने कहा: “ऐसी खबरें सुनकर दिल बहुत निराश हो जाता है।”
दुनिया में एक और तरह की नफरत पल रही है जिसे “खानदानी नफरत” कहा जा सकता है यानी परिवारों के बीच पुश्तों से चली आ रही दुश्मनी। उत्तरी अल्बेनिया में “इस तरह की खानदानी नफरत ने हज़ारों परिवारों का जीना दूभर कर दिया है।” एक रिपोर्ट के मुताबिक वहाँ 6,000 से ज़्यादा बच्चे एक तरह से कैदियों की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। माता-पिता उन्हें कड़ी निगरानी में रखते हैं क्योंकि उन्हें डर रहता है कि कहीं उनके बच्चों पर दुश्मन हमला न कर दें। फैड्रल ब्यूरो ऑफ इंवैस्टीगेशन को मिली रिपोर्ट के मुताबिक अमरीका में “वर्ष 1998 में नफरत के 7,755 अपराध दर्ज़ हुए और इनमें आधे से ज़्यादा अपराध जात-पाँत को लेकर हुए थे।” बाकी अपराध धर्म और राष्ट्र के नाम पर हुए, तो कुछ अपराध विकलांगों से नफरत की वज़ह से हुए।
इसके अलावा शरणार्थियों को भी नफरत की नज़रों से देखा जाता है। आज दुनिया भर में शरणार्थियों की संख्या 2.1 करोड़ के लगभग है। और दुःख की बात यह है कि इन पर ज़ुल्म ढाने में सबसे आगे हैं नौजवान। और इस काम में बड़ी-बड़ी हस्तियाँ और नेता इन नौजवानों का कठपुतलियों की तरह इस्तेमाल करते हैं। इन शरणार्थियों के खिलाफ नफरत कई बार बाहर से नज़र नहीं आती, मगर यह लोगों के दिलों में पल रही होती है। वे सोचते हैं कि परदेसी भरोसे के लायक नहीं होते। वे उनके जाति-धर्म और संस्कृति को तुच्छ समझते हैं और उनके बारे में गलतफहमियाँ रखते हैं।
मगर लोगों के दिलों में नफरत की आग इतनी तेज़ी से क्यों भड़क रही है? यह आग कैसे बुझेगी? अगले लेख में इसी विषय पर चर्चा किया जाएगा।
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Daud/Sipa Press