यहोवा के दिन को नज़दीक आते देख, लोगों के बारे में हमारा नज़रिया कैसा होना चाहिए?
“प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, . . . पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।”—2 पतरस 3:9.
1, 2. (क) आज यहोवा, लोगों के बारे में क्या नज़रिया रखता है? (ख) हम खुद से क्या सवाल पूछ सकते हैं?
यहोवा के सेवकों को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है कि वे ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाएँ।’ (मत्ती 28:19) आज जब हम यह काम कर रहे हैं और ‘यहोवा के भयानक दिन’ का इंतज़ार कर रहे हैं, तो हमें लोगों को उसी नज़र से देखना चाहिए जिस नज़र से यहोवा देखता है। (सपन्याह 1:14) उसका नज़रिया क्या है? प्रेरित पतरस कहता है: “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9) परमेश्वर हर इंसान से यह उम्मीद रखता है कि वह पश्चाताप करेगा। “वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमुथियुस 2:4) और अगर कोई “दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे” तो वह मगन होता है!—यहेजकेल 33:11.
2 क्या हममें से हरेक ने यहोवा का नज़रिया अपनाया है? यहोवा की तरह क्या हम भी हर जाति और राष्ट्र के लोगों के बारे में उम्मीद रखते हैं कि वे “उसकी चराई की भेड़ें” बनेंगे? (भजन 100:3; प्रेरितों 10:34, 35) आइए ऐसे दो उदाहरणों पर गौर करें जो दिखाते हैं कि परमेश्वर का नज़रिया रखना कितना ज़रूरी है। दोनों ही किस्सों में हम पाते हैं कि विनाश बहुत करीब था और यहोवा के सेवकों को इस बारे में पहले से जानकारी दी गयी थी। ये उदाहरण आज के वक्त के लिए खास मायने रखते हैं क्योंकि आज हम यहोवा के महान दिन का इंतज़ार कर रहे हैं।
इब्राहीम, यहोवा का नज़रिया रखता था
3. सदोम और अमोरा के निवासियों के बारे में यहोवा ने कैसा महसूस किया?
3 पहला उदाहरण, वफादार कुलपिता इब्राहीम और सदोम और अमोरा नाम के शहरों का है जहाँ दुष्टता फैली हुई थी। जब यहोवा ने “सदोम और अमोरा नगरों के विरुद्ध लोगों की दुहाई” सुनी तो उसने तुरंत उन शहरों और उनके निवासियों का नाश नहीं किया। पहले उसने वहाँ के हालात का जायज़ा लिया। (उत्पत्ति 18:20, 21, नयी हिन्दी बाइबिल) उसने दो स्वर्गदूतों को सदोम भेजा जो धर्मी पुरुष लूत के घर ठहरे। जिस रात स्वर्गदूत वहाँ पहुँचे, उस रात “नगर के पुरुषों ने, जवानों से लेकर बूढ़ों तक, वरन चारों ओर के सब लोगों ने आकर उस घर को घेर लिया।” वे उन स्वर्गदूतों के साथ समलैंगिक संबंध रखने के इरादे से वहाँ आए थे। उस शहर के लोगों की नीचता से यह बात पूरी तरह साबित हो गयी कि वह शहर नाश किए जाने लायक था। मगर फिर भी, स्वर्गदूतों ने लूत से पूछा: “यहां तेरे और कौन कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियां, वा नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभों को लेकर इस स्थान से निकल जा”! इस तरह यहोवा ने उस शहर के कुछ लोगों के लिए अपनी जान बचाने का रास्ता खोला, मगर आखिर में हुआ यह कि सिर्फ लूत और उसकी दोनों बेटियाँ नाश से बच पायीं।—उत्पत्ति 19:4, 5, 12, 16, 23-26.
4, 5. इब्राहीम ने सदोम के निवासियों की खातिर मिन्नत क्यों की और क्या उसका नज़रिया, यहोवा के नज़रिए के मुताबिक था?
4 अब आइए हम उस वक्त के बारे में ध्यान दें जब यहोवा ने इब्राहीम से कहा था कि वह सदोम और अमोरा का मुआयना करने जा रहा है। तभी इब्राहीम ने यहोवा से यह मिन्नत की: “कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों: तो क्या तू सचमुच उस स्थान को नाश करेगा और उन पचास धर्मियों के कारण जो उस में हों न छोड़ेगा? इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे: क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?” इब्राहीम ने दो बार ऐसा कहा: ‘इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे।’ वह अपने तजुर्बे से जानता था कि यहोवा दुष्टों के साथ-साथ धर्मियों को नाश नहीं करेगा। जब यहोवा ने उससे कहा कि ‘यदि सदोम में पचास धर्मी मिलें,’ तो वह उस शहर को बख्श देगा, तब इब्राहीम धर्मी लोगों की संख्या घटाते-घटाते तब तक पूछता रहा जब तक कि वह 10 पर न आ गया।—उत्पत्ति 18:22-33.
5 अगर इब्राहीम की मिन्नतें, यहोवा के नज़रिए से हटकर होतीं, तो क्या यहोवा उसकी बात पर कान देता? ज़ाहिर है कि वह नहीं सुनता। “परमेश्वर का मित्र” होने के नाते, शायद इब्राहीम यहोवा के नज़रिए से वाकिफ था और वह भी ऐसा ही नज़रिया रखता था। (याकूब 2:23) जब यहोवा ने सदोम और अमोरा के खिलाफ कार्यवाही करने का फैसला किया तो उसने इब्राहीम की मिन्नतों पर ध्यान दिया। क्यों? क्योंकि स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।”
लोगों के बारे में योना का नज़रिया —बिलकुल ही अलग
6. योना का संदेश सुनकर नीनवे के लोगों ने क्या किया?
6 अब आइए हम दूसरे उदाहरण पर गौर करें। यह योना के बारे में है। इस वाकये में नाश के लिए तय किया गया शहर था, नीनवे। भविष्यवक्ता योना को यह प्रचार करने की ज़िम्मेदारी दी गयी कि उस शहर की बुराई ‘यहोवा की दृष्टि में बढ़ गई है।’ (योना 1:2) नीनवे के उपनगरों को भी साथ मिलाकर देखें, तो यह काफी बड़ा शहर था और “उसे पूरा घूमने में तीन दिन लगते थे।” (NHT) जब योना, आखिरकार यहोवा की आज्ञा मानकर, नीनवे गया तो उसने लगातार यह संदेश सुनाया: “अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।” यह सुनकर “नीनवे के मनुष्यों ने परमेश्वर के वचन की प्रतीति की; और उपवास का प्रचार किया गया और . . . सभों ने टाट ओढ़ा।” यहाँ तक कि नीनवे के राजा ने भी मन फिराया।—योना 3:1-6.
7. यहोवा ने नीनवे के लोगों के पश्चाताप को किस नज़र से देखा?
7 नीनवे के लोग, सदोम के लोगों से कितने अलग थे! यहोवा ने पश्चाताप करनेवाले नीनवे के लोगों को किस नज़र से देखा? योना 3:10 कहता है: “परमेश्वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया।” जब यहोवा ने देखा कि नीनवे के लोगों ने अपने बुरे काम छोड़ दिए, तो उसने अपनी “इच्छा बदल” दी यानी उनके खिलाफ कार्यवाही करने का अपना इरादा बदल दिया। हालाँकि उस मौके पर यहोवा के स्तर नहीं बदले, मगर उसने नीनवे के लोगों का पश्चाताप देखकर अपना फैसला बदल दिया था।—मलाकी 3:6.
8. योना के रूठ जाने की वजह क्या थी?
8 जब योना को पता चला कि नीनवे का नाश नहीं किया जाएगा, तो क्या उसने भी मामले को यहोवा के नज़रिए से देखा? नहीं, क्योंकि हम पढ़ते हैं: “यह बात योना को बहुत ही बुरी लगी, और उसका क्रोध भड़का।” योना ने और क्या किया? वृत्तांत कहता है: “उस ने यहोवा से यह कहकर प्रार्थना की, हे यहोवा जब मैं अपने देश में था, तब क्या मैं यही बात न कहता था? इसी कारण मैं ने तेरी आज्ञा सुनते ही तर्शीश को भाग जाने के लिये फुर्ती की; क्योंकि मैं जानता था कि तू अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर है, और विलम्ब से कोप करनेवाला करुणानिधान है, और दुःख देने से प्रसन्न नहीं होता।” (योना 4:1, 2) योना, यहोवा के गुणों को अच्छी तरह जानता था। फिर भी, उस वक्त योना यहोवा से रूठ गया और उसने नीनवे के पश्चाताप करनेवालों को यहोवा के नज़रिए से नहीं देखा।
9, 10. (क) यहोवा ने योना को क्या सबक सिखाया? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि बाद में योना ने नीनवे के लोगों के बारे में, यहोवा का नज़रिया अपनाया होगा?
9 योना ने नीनवे शहर से बाहर आकर एक मंडप खड़ा किया, और वह उसकी छाँव तले तब तक बैठा रहा जब तक कि उसने नहीं देखा “कि नगर को क्या होगा।” फिर यहोवा ने चमत्कार करके एक लौकी का पौधा उगाया ताकि उससे योना को छाया मिले। लेकिन अगले ही दिन वह पौधा मुरझा गया। यह देखकर जब योना को बहुत गुस्सा आया, तो यहोवा ने उससे कहा: “रेंड़ के पेड़ [“लौकी के पौधे,” NW] . . पर तू ने तरस खाया है। फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिस में एक लाख बीस हजार से अधिक मनुष्य हैं जो अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत घरैलू पशु भी उस में रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊं?” (योना 4:5-11) लोगों के बारे में यहोवा का नज़रिया समझने के लिए योना को क्या ही बढ़िया सबक मिला!
10 यहोवा के समझाने के बाद योना ने कैसा रवैया दिखाया, इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती। लेकिन यह साफ ज़ाहिर है कि भविष्यवक्ता योना ने पश्चाताप करनेवाले नीनवे के लोगों के बारे में अपनी सोच को सुधारा होगा। ऐसा हम इसलिए कहते हैं क्योंकि यहोवा ने इन घटनाओं को दर्ज़ करने के लिए योना को ही अपनी आत्मा से प्रेरित किया।
आप कैसा नज़रिया रखते हैं?
11. अगर आज इब्राहीम ज़िंदा होता, तो वह लोगों के बारे में कैसा महसूस करता?
11 आज हमारे समय में भी एक विनाश होने जा रहा है। वह है यहोवा के महान दिन के दौरान इस दुष्ट संसार का नाश। (लूका 17:26-30; गलतियों 1:4; 2 पतरस 3:10) अगर आज इब्राहीम ज़िंदा होता, तो इस संसार के लोगों के बारे में वह कैसा महसूस करता जिसका जल्द ही नाश होनेवाला है? ज़रूर वह ऐसे लोगों के बारे में फिक्रमंद रहता जिन्हें अब तक “राज्य का . . . सुसमाचार” सुनने का मौका नहीं मिला है। (मत्ती 24:14) इब्राहीम ने सदोम में धर्मी लोगों के होने की उम्मीद करते हुए उनकी खातिर यहोवा से बार-बार मिन्नत की थी। क्या हममें से हरेक व्यक्ति भी उन लोगों की फिक्र करता है जिन्हें अगर मौका दिया जाए तो शायद वे दुनिया के तौर-तरीकों को ठुकराकर, पश्चाताप करेंगे और परमेश्वर की सेवा करेंगे?—1 यूहन्ना 5:19; प्रकाशितवाक्य 18:2-4.
12. सेवा में हम जिन लोगों से मिलते हैं, उनके बारे में योना के जैसा रवैया अपनाना क्यों आसान है और इस बारे में हम क्या कर सकते हैं?
12 संसार में फैली दुष्टता के अंत के लिए तरसना कोई गलत बात नहीं है। (हबक्कूक 1:2, 3) लेकिन हम बड़ी आसानी से योना के जैसा रवैया अपना सकते हैं और ऐसे लोगों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं जो शायद भविष्य में पश्चाताप कर सकते हैं। हममें यह रवैया खासकर तब पनप सकता है जब घर-घर के प्रचार में हमारी मुलाकात हमेशा ऐसे लोगों से होती है जो राज्य संदेश में दिलचस्पी नहीं दिखाते, परमेश्वर के वजूद पर संदेह करते, या फिर हमसे झगड़ा करते हैं। हम शायद ऐसे लोगों को भूल जाएँ, जिन्हें यहोवा इस दुष्ट संसार में से निकालने पर है। (रोमियों 2:4) इसलिए अपने सोच-विचार की गंभीरता से जाँच करने पर अगर हम पाते हैं कि हममें ज़रा भी ऐसा रवैया है जैसा योना ने शुरू में दिखाया था, तो हम प्रार्थना कर सकते हैं कि यहोवा हमें अपने जैसा नज़रिया पैदा करने में मदद दे।
13. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा, आज के लोगों की परवाह करता है?
13 यहोवा ऐसे लोगों की परवाह करता है जो अब तक उसके सेवक नहीं बने हैं और वह अपने समर्पित लोगों की मिन्नतें सुनता है। (मत्ती 10:11) मसलन, वह उनकी प्रार्थनाओं के मुताबिक ‘न्याय चुकाने’ के लिए कार्यवाही करेगा। (लूका 18:7, 8) इसके अलावा, यहोवा अपने ठहराए वक्त पर अपने सभी वादों और मकसदों को पूरा करेगा। (हबक्कूक 2:3) उनमें में एक यह है कि वह धरती पर से दुष्टता को पूरी तरह मिटा देगा, ठीक जैसे उसने बाद में नीनवे का नाश किया जब वहाँ के लोग दोबारा दुष्ट कामों में डूब गए।—नहूम 3:5-7.
14. यहोवा के महान दिन का इंतज़ार करते हुए हमें क्या करना चाहिए?
14 जब तक यहोवा के महान दिन के दौरान, इस दुष्ट संसार का नाश नहीं होता, तब तक क्या हम धीरज धरते हुए इंतज़ार करेंगे और उसकी मरज़ी पूरी करने में व्यस्त रहेंगे? यहोवा के दिन के आने से पहले, प्रचार काम किस हद तक पूरा होगा, इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि अंत आने से पहले, पूरे जगत में राज्य की खुशखबरी तब तक सुनायी जाएगी जब तक कि यहोवा चाहता है। और आज यहोवा जब अपने भवन को महिमा से शोभायमान कर रहा है तो बेशक हमें उन ‘मनभावनी वस्तुओं’ के बारे में फिक्रमंद होना चाहिए जिनका इस भवन में लाना अब भी बाकी है।—हाग्गै 2:7.
हमारा नज़रिया हमारे कामों से ज़ाहिर होता है
15. प्रचार काम कितना ज़रूरी है, इसे समझने में क्या बात हमारी मदद करेगी?
15 हो सकता है, हम जिस इलाके में रहते हैं, वहाँ के ज़्यादातर लोग, हमारे संदेश में खास दिलचस्पी नहीं दिखाते। और हमारे हालात ऐसे नहीं हैं कि हम ऐसी जगह जाकर बस जाएँ जहाँ राज्य के प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। लेकिन मान लीजिए कि हमारे इलाके में, अंत आने से पहले ऐसे दस लोग पाए जा सकते हैं जो सुसमाचार को कबूल करेंगे। तो क्या आपको नहीं लगता कि उन दसों को पाने के लिए हमारा मेहनत करना बेकार नहीं होगा? यीशु जब धरती पर था, तो उसे लोगों की भीड़ को देखकर “तरस आया क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती 9:36) बाइबल का अध्ययन करने, साथ ही प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के लेखों को गौर से पढ़ने से हम और अच्छी तरह जान पाएँगे कि यह दुनिया कितनी बदतर हालत में है। तब हमारा यह एहसास गहरा होगा कि लोगों को खुशखबरी सुनाना कितना ज़रूरी है। इतना ही नहीं, अगर हम “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए मिलनेवाले बाइबल के साहित्य का अच्छा इस्तेमाल करेंगे, तो हम ऐसे इलाकों में रहनेवालों को भी कायल कर सकेंगे जहाँ कई बार प्रचार हो चुका है।—मत्ती 24:45-47; 2 तीमुथियुस 3:14-17.
16. हम सेवा में ज़्यादा कामयाब होने के लिए क्या कर सकते हैं?
16 अगर हमें उन लोगों की परवाह होगी जो शायद भविष्य में बाइबल का जीवनदायी संदेश कबूल कर सकते हैं, तो हम उनकी सहूलियत के मुताबिक अलग-अलग समय पर उनसे मिलने जाएँगे और संदेश सुनाने के लिए अलग-अलग तरीके आज़माएँगे। घर-घर जाते वक्त क्या हम पाते हैं कि ज़्यादातर लोग हमें नहीं मिलते? अगर ऐसा है तो हम गवाही देने के समय में फेर-बदल कर सकते हैं और लोगों से मिलने के लिए अलग-अलग जगह जा सकते हैं। तब हमें सेवा में पहले से ज़्यादा कामयाबी मिलेगी। मछुवे ऐसे वक्त पर मछुवाई करने निकलते हैं जब उन्हें मछलियाँ मिल सकती हैं। क्या हम आध्यात्मिक मछुवाई के काम में भी कुछ ऐसा ही कर सकते हैं? (मरकुस 1:16-18) क्यों न आप शाम के वक्त गवाही देने जाएँ और अगर आपके यहाँ कानून की इजाज़त हो तो टेलिफोन पर गवाही देने की कोशिश करें? कुछ भाई-बहनों ने पाया है कि कार खड़ी करने की जगहें, बस अड्डे और बड़ी-बड़ी दुकानें ‘मछलियों से भरे समुद्र’ की तरह हैं। ऐसी जगहों पर, मौके ढूँढ़कर गवाही देना भी एक तरीका है जो दिखाएगा कि हम लोगों के बारे में इब्राहीम जैसा नज़रिया रखते हैं।
17. हम किन तरीकों से विदेश में सेवा करनेवाले मिशनरियों और दूसरे भाई-बहनों की हौसला-अफज़ाई कर सकते हैं?
17 दुनिया में अब भी ऐसे लाखों लोग हैं जिन तक राज्य का संदेश नहीं पहुँचा है। प्रचार में जाने के अलावा, क्या हम घर पर रहकर भी उनके लिए अपनी परवाह दिखा सकते हैं? क्या हम ऐसे मिशनरियों या पूरे समय के सेवकों को जानते हैं जो विदेश में सेवा कर रहे हैं? अगर हाँ, तो हम उन्हें खत लिखकर बता सकते हैं कि हम उनकी सेवा की बहुत कदर करते हैं। ऐसा करने से लोगों के लिए हमारी परवाह कैसे ज़ाहिर होगी? जब हम अपने खतों से मिशनरियों की हौसला-अफज़ाई और तारीफ करेंगे तो विदेश में रहकर सेवा करने का उनका इरादा और भी मज़बूत होगा और वे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को सच्चाई का ज्ञान पाने में मदद दे सकेंगे। (न्यायियों 11:40) हम दूसरे देशों में सेवा करनेवाले मिशनरियों और उन लोगों के लिए प्रार्थना भी कर सकते हैं जो सच्चाई जानने के लिए तरस रहे हैं। (इफिसियों 6:18-20) लोगों के लिए चिंता ज़ाहिर करने का एक और तरीका है, संसार भर में होनेवाले यहोवा के साक्षियों के काम के लिए दान देना।—2 कुरिन्थियों 8:13, 14; 9:6, 7.
क्या आप दूसरी जगह जाकर बस सकते हैं?
18. कुछ मसीहियों ने अपने ही देश में रहते हुए, राज्य के कामों को बढ़ावा देने के लिए क्या किया है?
18 जो लोग ऐसी जगह जाकर बस गए हैं जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है, उन्हें अपने त्याग और अपनी मेहनत का फल मिला है। और कुछ साक्षियों ने, अपने ही देश में रहकर दूसरी भाषा सीखी है ताकि वे उनके देश में आकर बसनेवाले परदेसियों की आध्यात्मिक तरीके से मदद कर सकें। ऐसी मेहनत वाकई रंग लाती है। मसलन, अमरीका के टॆक्सस राज्य के एक शहर में सात साक्षी, चीनी लोगों को प्रचार करते हैं। उन साक्षियों को सन् 2001 में, प्रभु के संध्या भोज में 114 लोगों का स्वागत करने की खुशी मिली। ऐसे समूहों की मदद करनेवाले भाई-बहनों ने पाया है कि उनके खेत पककर कटनी के लिए तैयार हैं।—मत्ती 9:37, 38.
19. किसी और देश में प्रचार काम को बढ़ावा देने के लिए वहाँ जाकर बसने से पहले, क्या करना समझदारी होगी?
19 शायद आपको और आपके परिवार को लगता होगा कि आप ऐसी जगह जाकर रह सकते हैं जहाँ प्रचारकों की सख्त ज़रूरत है। मगर यह कदम उठाने से पहले, समझदारी की बात होगी कि आप ‘बैठकर खर्च जोड़ लें।’ (लूका 14:28) खासकर अगर आप विदेश में जाकर बसने की सोच रहे हैं, तो ऐसा करना बहुत ज़रूरी है। इस तरह का फैसला करने से पहले एक व्यक्ति को इन सवालों पर गंभीरता से सोचना चाहिए: ‘क्या मैं वहाँ अपने परिवार का गुज़ारा कर सकूँगा? क्या मुझे सही तरह का वीज़ा मिलेगा? क्या मुझे उस देश की भाषा आती है या क्या मैं उसे सीखने के लिए तैयार हूँ? क्या मैंने वहाँ के मौसम और लोगों के रहन-सहन के बारे में विचार किया है? क्या मैं सचमुच वहाँ के भाई-बहनों के लिए “प्रोत्साहन का कारण” बन सकूँगा और उन पर बोझ नहीं बनूँगा?’ (कुलुस्सियों 4:10, 11, NHT) आप जिस देश में जाकर बसने की सोच रहे हैं, वहाँ प्रचारकों की कितनी ज़रूरत है, इसका पता लगाने के लिए, अच्छा होगा कि आप यहोवा के साक्षियों के उस ब्रांच-ऑफिस को खत लिखकर पूछें जो उस देश के प्रचार काम की देख-रेख करता है।a
20. एक जवान मसीही ने विदेश में रहनेवाले मसीही भाइयों और दूसरों की मदद करने में कैसे अपने आपको लगा दिया?
20 जापान में किंगडम हॉल के निर्माण काम में हिस्सा लेनेवाले एक मसीही भाई को पता चला कि पराग्वे में उपासना की इमारतें बनाने के लिए हुनरमंद लोगों की ज़रूरत है। अविवाहित और जवानी की ताकत होने की वजह से, वह पराग्वे गया और वहाँ आठ महीने रहकर उसने किंगडम हॉल बनाने का काम किया। उस योजना के तहत काम करनेवालों में वह अकेला ऐसा था जो पूरे समय काम करता था। वहाँ रहते वक्त उसने स्पेनिश भाषा सीखी और बाइबल अध्ययन चलाए। उसने देखा कि वहाँ राज्य के प्रचारकों की सख्त ज़रूरत है। हालाँकि वह जापान लौट आया, मगर कुछ ही समय बाद वह फिर पराग्वे चला गया और वहाँ उसने जो किंगडम हॉल बनाया था, उसमें उपासना करने के लिए लोगों को इकट्ठा करने में मदद देने लगा।
21. यहोवा के महान दिन का इंतज़ार करते हुए हमें किस काम पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए और कैसा नज़रिया रखना चाहिए?
21 परमेश्वर इस बात का ध्यान रखेगा कि प्रचार का काम उसकी मरज़ी के मुताबिक, अच्छी तरह से पूरा किया जाए। आज वह आध्यात्मिक कटनी के इस आखिरी चरण में, काम को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है। (यशायाह 60:22) इसलिए आइए हम यहोवा के दिन का इंतज़ार करते हुए, कटनी के काम में ज़ोर-शोर से हिस्सा लें और लोगों के बारे में वही नज़रिया रखें जो हमारे प्यारे परमेश्वर का है।
[फुटनोट]
a जिस देश में प्रचार काम पर पाबंदी है या इस काम के लिए इतनी आज़ादी नहीं है, वहाँ जाकर बसने का फैसला खुद-ब-खुद कर लेना आपके लिए शायद अक्लमंदी नहीं होगी। हो सकता है इससे वहाँ के प्रचारकों को खतरा हो, जो शायद बड़ी समझ-बूझ से प्रचार करते होंगे।
क्या आपको याद है?
• यहोवा के दिन का इंतज़ार करते हुए, हमें लोगों के बारे में क्या नज़रिया रखना चाहिए?
• इब्राहीम ने सदोम में धर्मी लोगों के होने की उम्मीद करते हुए उनके बारे में कैसा नज़रिया दिखाया?
• नीनवे के पश्चाताप करनेवाले लोगों को योना ने किस नज़रिए से देखा?
• अब तक जिन लोगों को खुशखबरी नहीं सुनायी गयी है, उनके बारे में हम यहोवा का नज़रिया कैसे दिखा सकते हैं?
[पेज 16 पर तसवीर]
इब्राहीम ने लोगों को यहोवा की नज़र से देखा
[पेज 17 पर तसवीर]
नीनवे के पश्चाताप करनेवालों के बारे में योना ने बाद में यहोवा का नज़रिया अपनाया
[पेज 18 पर तसवीरें]
लोगों के लिए चिंता होने की वजह से, हम खुशखबरी सुनाने के लिए अलग-अलग समय पर प्रचार करते और अलग-अलग तरीके आज़माते हैं