क्या आपको याद है?
क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ पढ़ने का आनंद लिया है? देखिए कि क्या आप नीचे दिए गए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:
• शादी के बाद कुछ मसीही जोड़े किस बड़ी चुनौती का सामना करते हैं और उन्हें क्या करने का जतन करना चाहिए?
शादी के बाद, कुछ मसीहियों को शायद लगे कि उनकी और उनके साथी की राय बिलकुल नहीं मिलती। फिर भी, वे जानते हैं कि बिना किसी बाइबल आधार के तलाक लेना गलत है। इसलिए उन्हें अपने रिश्ते को बरकरार रखने का जतन करना चाहिए।—4/15, पेज 17.
• वृद्धाश्रम या नर्सिंग होम में एक बुज़ुर्ग मसीही को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है?
उसे शायद एक ऐसे वृद्धाश्रम में रख दिया जाए, जो किसी दूसरी कलीसिया के इलाके में आता हो और जिसके भाई-बहनों को वह न जानता हो। वृद्धाश्रम में वह शायद खुद को ऐसे लोगों से घिरा पाए, जो दूसरे धर्मों को मानते हैं। और हो सकता है, वे लोग उसे धार्मिक कामों या समारोह में शरीक करने की कोशिश करें। मसीही रिश्तेदारों और कलीसिया के भाई-बहनों को इन चुनौतियों के बारे में पता होना चाहिए और उन्हें इन बुज़ुर्ग मसीहियों की मदद करनी चाहिए और उनके लिए परवाह दिखानी चाहिए।—4/15, पेज 25-27.
• ऐसे चार कदम क्या हैं, जिनकी मदद से पति-पत्नी अपनी समस्याओं को सुलझा सकते हैं?
मसले पर बात करने के लिए एक समय तय कीजिए। (सभो. 3:1, 7) खुलकर और आदर के साथ अपनी राय बताइए। (इफि. 4:25) अपने साथी की सुनिए और उसकी भावनाओं को नज़रअंदाज़ मत कीजिए। (मत्ती 7:12) समस्या का ऐसा हल निकालिए, जिससे आप दोनों सहमत हों, फिर उसे लागू करने में एक-दूसरे की मदद कीजिए। (सभो. 4:9, 10)—7/1, पेज 10-12.
• शासी निकाय के सदस्य किन अलग-अलग समितियों में सेवा करते हैं?
प्रबंधक समिति, बेथेल स्वंयसेवक समिति, प्रकाशन समिति, सेवा समिति, शिक्षा समिति और लेखन समिति।—5/15, पेज 29.
• हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि नूह के दिनों में पूरी धरती पर जलप्रलय आया था?
यीशु को पूरा विश्वास था कि नूह के ज़माने में पूरी धरती पर जलप्रलय आया था। और इस सच्ची घटना की बिनाह पर ही बाइबल में चेतावनियाँ दी गयी हैं।—7/1, पेज 24.
• रोमियों 1:24-32 में जिन कामों का ज़िक्र किया गया है, क्या वे यहूदियों के बारे में कहे गए हैं या अन्यजातियों के बारे में?
ये बातें यहूदियों और अन्यजातियों दोनों पर लागू हो सकती हैं। लेकिन पौलुस यहाँ खास तौर पर उन इस्राएलियों की बात कर रहा था, जो सदियों से व्यवस्था का पालन करने से चूक रहे थे। इस्राएली परमेश्वर की आज्ञा जानते थे, फिर भी वे उसके मुताबिक नहीं जी रहे थे।—6/15, पेज 29.
• अपने हालात के मुताबिक लक्ष्य रखने से हम अपनी खुशी कैसे बढ़ा सकते हैं?
अगर हम हर हाल में उन लक्ष्यों को पाने की कोशिश करते हैं, जिन्हें हासिल करना हमारे बस में नहीं है, तो हम बेवजह अपने लिए तनाव बढ़ाते हैं। लेकिन दूसरी तरफ, हमें सावधान रहना चाहिए कि हम खुद के साथ ढिलाई न बरतें और अपनी सीमाओं का बहाना बनाकर मसीही सेवा में धीमे न पड़ जाएँ।—7/15, पेज 29.