“अभी खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त है”
“देखो! अभी खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त है। देखो! अभी उद्धार का वह दिन है।”—2 कुरिं. 6:2.
1. यह समझना क्यों ज़रूरी है कि कौन-सा काम कब किया जाना है?
“हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है।” (सभो. 3:1) राजा सुलैमान इस बात की अहमियत बता रहा था कि हर ज़रूरी काम करने का एक वक्त होता है, फिर चाहे वह खेती का काम हो, सफर करना हो, कारोबार हो या किसी से बात करनी हो। इसके अलावा, हमें यह भी समझना चाहिए कि सबसे ज़रूरी काम क्या है, जिसे तय वक्त में करना है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें साफ पता होना चाहिए कि कौन-सा काम सबसे पहले करना है।
2. यह कैसे पता चलता है कि जब यीशु धरती पर था तो उसे मालूम था कि वह किस वक्त में जी रहा है?
2 जब यीशु धरती पर था तो उसे अच्छी तरह मालूम था कि वह किस वक्त में जी रहा है और उसे क्या करना है। उसके मन में सबसे ज़रूरी काम एकदम साफ था। वह जानता था कि मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणियों के पूरा होने का वक्त आ गया है, जिसका लोग सालों से इंतज़ार कर रहे थे। (1 पत. 1:11; प्रका. 19:10) उसे कुछ ऐसे काम करने थे, जिनसे साफ हो जाता कि वही वादा किया हुआ मसीहा है। उसे राज की सच्चाई की अच्छी गवाही देनी थी और उन्हें इकट्ठा करना था जो भविष्य में उसके साथ स्वर्ग में राज करते। और उसे मसीही मंडली की नींव डालनी थी, जिसके ज़रिए दुनिया के कोने-कोने तक प्रचार और चेला बनाने का काम होता।—मर. 1:15.
3. वक्त की नज़ाकत को समझने की वजह से यीशु ने क्या कदम उठाया?
3 यीशु वक्त की नज़ाकत को पहचानता था इसलिए वह अपने पिता की इच्छा पूरे जोश के साथ कर सका। उसने अपने चेलों से कहा: “कटाई के लिए फसल वाकई बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए खेत के मालिक से बिनती करो कि वह कटाई के लिए और मज़दूर भेज दे।” (लूका 10:2; मला. 4:5, 6) यीशु ने अपने चेलों में से पहले 12 को, फिर 70 को चुना और उन्हें खास निर्देश दिए और यह ज़बरदस्त संदेश सुनाने के लिए भेजा कि “स्वर्ग का राज पास आ गया है।” और जहाँ तक यीशु की बात है, उसके बारे में लिखा है: जब [वह] अपने बारह चेलों को हिदायतें दे चुका, तो वह वहाँ से दूसरे शहरों में सिखाने और प्रचार करने निकल पड़ा।”—मत्ती 10:5-7; 11:1; लूका 10:1.
4. पौलुस कैसे यीशु की मिसाल पर चला?
4 यीशु ने परमेश्वर के लिए जोश और भक्ति दिखाने में एक बेहतरीन उदाहरण रखा। प्रेषित पौलुस ने उसकी इसी मिसाल की तरफ इशारा करते हुए संगी विश्वासियों से कहा था: “मेरी मिसाल पर चलो, ठीक जैसे मैं मसीह की मिसाल पर चलता हूँ।” (1 कुरिं. 11:1) पौलुस कैसे मसीह की मिसाल पर चला? खासकर खुशखबरी का प्रचार करने के मामले में उसने भी यीशु की तरह कोई कसर नहीं छोड़ी। पौलुस ने मंडलियों को जो खत लिखे, अगर हम उनके शब्दों पर गौर करें तो उससे हमें प्रचार के बारे में उसका नज़रिया पता चलता है। उसने लिखा: “अपने काम में आलस न दिखाओ,” “यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो,” “प्रभु की सेवा में व्यस्त रहने के लिए हमेशा तुम्हारे पास बहुत काम हो,” और “तुम चाहे जो भी काम करो, उसे तन-मन लगाकर ऐसे करो मानो यहोवा के लिए करते हो।” (रोमि. 12:11; 1 कुरिं. 15:58; कुलु. 3:23) पौलुस दमिश्क के रास्ते पर प्रभु यीशु के साथ हुई भेंट को कभी नहीं भूला और न ही उन शब्दों को भूला, जो यीशु ने उसके बारे में हनन्याह से कहे थे: “यह आदमी मेरा चुना हुआ पात्र है जो गैर-यहूदियों, साथ ही राजाओं और इसराएलियों के पास मेरा नाम ले जाएगा।”—प्रेषि. 9:15; रोमि. 1:1, 5; गला. 1:16.
“खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त”
5. किस बात ने पौलुस को जोश के साथ प्रचार करने के लिए उभारा?
5 प्रचार के मामले में पौलुस के जोश और हिम्मत को हम प्रेषितों की किताब में साफ देख सकते हैं। (प्रेषि. 13:9, 10; 17:16, 17; 18:5) पौलुस ने वक्त की नज़ाकत को समझा। इसलिए उसने कहा: “देखो! अभी खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त है। देखो! अभी उद्धार का वह दिन है।” (2 कुरिं. 6:2) पुराने ज़माने में जब इसराएली ईसा पूर्व 537 में बैबिलोन की बंधुआई से अपने वतन लौटे तो वह उनके लिए परमेश्वर की मंज़ूरी पाने का वक्त था। (यशा. 49:8, 9) लेकिन जब पौलुस ने ऐसा कहा, तो वह किस बात की तरफ इशारा कर रहा था? आयतों के संदर्भ से हमें पता चलता है कि पौलुस के मन में क्या था।
6, 7. आज अभिषिक्त मसीहियों को कौन-सा सम्मान दिया गया है और कौन इस काम में उनका हाथ बँटा रहा है?
6 अगर हम गौर करें तो पौलुस ने अपने खत में यह भी लिखा था कि उसे और उसके संगी अभिषिक्त जनों को बहुत बड़ा सम्मान मिला है। (2 कुरिंथियों 5:18-20 पढ़िए।) उसने बताया कि परमेश्वर ने उन्हें खास मकसद से यानी “सुलह करवाने की सेवा” के मकसद से चुना है। इसका मतलब है कि उन्हें लोगों से बिनती करनी है कि वे “परमेश्वर के साथ सुलह” या फिर से दोस्ती कर लें।
7 अदन के बाग में जब से बगावत हुई, तब से ही इंसानों का नाता यहोवा से टूट गया और वे उससे अलग हो गए। (रोमि. 3:10, 23) नतीजा यह हुआ कि वे आध्यात्मिक अंधकार में डूब गए, जिससे उन पर दुख और मौत का कहर टूट पड़ा। पौलुस ने लिखा: “हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक एक-साथ कराहती और दर्द से तड़पती रहती है।” (रोमि. 8:22) लेकिन परमेश्वर ने कदम उठाया और उसने सुलह करने की या लोगों को अपने पास लौट आने के लिए “बिनती” की। यही वह सेवा थी जो उसने पौलुस और अभिषिक्त मसीहियों को सौंपी थी। वह दरअसल “मंज़ूरी पाने का वक्त” था और जो लोग यीशु में विश्वास दिखाते उनके लिए वह “उद्धार का . . . दिन” होता। आज भी सारे अभिषिक्त मसीही और उनकी साथी “दूसरी भेड़ें” मिलकर यह सेवा कर रही हैं और सबको ‘मंज़ूरी पाने के इस वक्त’ से फायदा उठाने का न्यौता दे रही हैं।—यूह. 10:16.
8. सुलह के संदेश की एक खासियत क्या है?
8 सुलह के संदेश की एक खासियत गौर करने लायक है। हालाँकि परमेश्वर और इंसानों के रिश्ते में आयी दरार का कारण सिर्फ इंसान था, फिर भी इस दरार को भरने के लिए पहला कदम परमेश्वर ने उठाया। (1 यूह. 4:10, 19) उसने क्या किया? पौलुस जवाब देता है: “परमेश्वर, मसीह के ज़रिए दुनिया की अपने साथ सुलह करवा रहा है और उसने उनके गुनाहों का उनसे हिसाब नहीं लिया और हमें सुलह का संदेश सौंपा।—2 कुरिं. 5:19; यशा. 55:6.
9. परमेश्वर की दया के लिए पौलुस ने कैसे कदर दिखायी?
9 यहोवा ने यीशु के फिरौती बलिदान का इंतज़ाम करके उन लोगों के लिए पापों की माफी पाने और उसके साथ फिर से नाता जोड़ने का रास्ता खोल दिया, जो फिरौती पर विश्वास करते हैं। इसके अलावा, वह अपने प्रतिनिधियों को सुलह की बिनती करने के लिए भेजता है ताकि वक्त रहते लोग परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप कर लें। (1 तीमुथियुस 2:3-6 पढ़िए।) पौलुस ने परमेश्वर की इच्छा और वक्त की नज़ाकत को समझा था इसलिए उसने “सुलह करवाने की सेवा” में खुद को पूरी तरह लगा दिया। आज भी यहोवा की इच्छा बदली नहीं है, उसने इंसानों के साथ सुलह करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया है। पौलुस के ये शब्द “अभी खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त है” और “अभी उद्धार का . . . दिन है,” हमारे दिनों में भी लागू होते हैं। वाकई यहोवा कितना दयालु और करुणामय है!—निर्ग. 34:6, 7.
“उस कृपा का मकसद मत भूलो”
10. बीते ज़माने में और आज अभिषिक्त मसीहियों के लिए ‘उद्धार के दिन’ का क्या मतलब है?
10 परमेश्वर के साथ सुलह करने का सबसे पहला फायदा उन्हें मिला, जो “मसीह के साथ एकता” में बंधे थे। (2 कुरिं. 5:17, 18) अभिषिक्त जनों के लिए “उद्धार का . . . दिन” ईसवी सन् 33 के पिन्तेकुस्त से शुरू हो गया। उस वक्त से उन्हें “सुलह का संदेश” ऐलान करने का काम सौंपा गया। आज भी बचे हुए अभिषिक्त जनों ने “सुलह करवाने की सेवा” जारी रखी है। उन्हें एहसास है कि प्रेषित यूहन्ना ने दर्शन में जिन चार स्वर्गदूतों को देखा, वे “पृथ्वी की चारों हवाओं को मज़बूती से थामे हुए हैं ताकि पृथ्वी . . . पर हवा न चले।” इसलिए “उद्धार का . . . दिन” और “खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त” आज भी है। (प्रका. 7:1-3) इस वजह से बीसवीं सदी की शुरूआत से ही, शेष अभिषिक्त जन “सुलह करवाने की सेवा” धरती की एक छोर से दूसरी छोर तक पूरे ज़ोर-शोर से कर रहे हैं।
11, 12. बीसवीं सदी की शुरूआत में मसीहियों ने कैसे दिखाया कि उन्होंने वक्त की नज़ाकत को समझा है? (पेज 15 पर दी गयी तसवीर देखिए।)
11 उदाहरण के लिए, जेहोवाज़ विटनेसस—प्रोक्लेमर्स ऑफ गॉड्स किंगडम किताब बताती है कि बीसवीं सदी की शुरूआत में “सी. टी. रसल और उनके साथियों को पूरा विश्वास था कि वे कटाई के समय में जी रहे हैं और लोगों को सच्चाई जानने की ज़रूरत है ताकि उनका उद्धार हो सके।” तो उन्होंने क्या किया? यह जानते हुए कि वे कटाई के दिनों में जी रहे हैं, जो “खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त है” उन्होंने लोगों को धार्मिक सभा में आने का न्यौता देना शुरू किया। वैसे तो ईसाईजगत के पादरी लंबे समय से यह काम कर रहे थे। मगर अभिषिक्त मसीही सिर्फ इतने से संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने खुशखबरी के काम को ज़ोर-शोर से फैलाने के लिए कई कारगर तरीके अपनाए, जिनमें नयी-नयी तकनीकों का इस्तेमाल करना शामिल था।
12 राज की खुशखबरी फैलाने में इन जोशीले प्रचारकों के छोटे समूह ने ट्रैक्ट, परचों, पत्रिकाओं और किताबों का इस्तेमाल किया। उन्होंने हज़ारों अखबारों में छापने के लिए संदेश तैयार किए। उन्होंने देश-विदेश में बाइबल का संदेश रेडियो से प्रसारित किया। चलती-फिरती तसवीरोंवाली ऐसी फिल्में बनायीं जिनमें आवाज़ भी थी, हालाँकि तब तक फिल्म जगत में चलचित्रों के साथ आवाज़वाली कोई फिल्म नहीं बनी थी। इस ज़बरदस्त जोश का क्या नतीजा हुआ? आज करीब 70 लाख लोगों ने राज के संदेश में दिलचस्पी दिखायी है और वे भी यह संदेश सुना रहे हैं: “परमेश्वर के साथ सुलह कर लो।” जी हाँ, ज़्यादा अनुभव न होने के बावजूद शुरूआती दौर के उन मुट्ठी भर सेवकों ने कमाल का जोश दिखाया!
13. परमेश्वर के किस मकसद को हमें दिल में उतारने की ज़रूरत है?
13 पौलुस की यह बात कि “अभी खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्त है” आज हमारे लिए भी सच है। हमने यहोवा की महा-कृपा देखी है, इसलिए हम इसके लिए बहुत आभारी हैं कि उसने हमें सुलह का संदेश सुनने और कबूल करने का मौका दिया है। इसलिए अपने आपमें संतुष्ट रहने के बजाय हमें पौलुस के आगे कहे शब्दों को दिल में उतारने की ज़रूरत है: “परमेश्वर के साथ काम करते हुए हम तुमसे यह भी गुज़ारिश करते हैं कि परमेश्वर की महा-कृपा को स्वीकार करने के बाद उस कृपा का मकसद मत भूलो।” (2 कुरिं. 6:1) परमेश्वर की महा-कृपा का मकसद है, मसीह के ज़रिए “दुनिया की अपने साथ सुलह” करवाना।—2 कुरिं. 5:19.
14. कई देशों में लोगों को क्या मौका मिल रहा है?
14 आज ज़्यादातर लोगों को शैतान ने अंधा कर दिया है, इसलिए वे परमेश्वर से दूर हैं और उसकी महा-कृपा के मकसद से अनजान हैं। (2 कुरिं. 4:3, 4; 1 यूह. 5:19) लेकिन जब लोग दुनिया के बदतर हालात देखते हैं और जब उन्हें बताया जाता है कि बुराइयाँ और तकलीफें इसलिए हैं क्योंकि इंसान परमेश्वर से दूर हो गया है, तो कई लोग हमारे संदेश को कबूल कर लेते हैं। उन देशों में भी, जहाँ लोग हमारे प्रचार काम को पसंद नहीं करते थे, अब खुशखबरी सुन रहे हैं और परमेश्वर के साथ सुलह करने के लिए कदम उठा रहे हैं। तो क्या हम यह देख सकते हैं कि आज पहले से कहीं ज़्यादा, हमें जोश के साथ लोगों से बिनती करने की ज़रूरत है कि “परमेश्वर के साथ सुलह कर लो।”
15. लोगों को सिर्फ खुश करने के लिए खुशखबरी सुनाने के बजाय हम उन्हें क्या जानकारी देना चाहते हैं?
15 हमारा काम लोगों से सिर्फ इतना कहना नहीं कि अगर वे परमेश्वर की सेवा करेंगे तो वह उनकी सारी समस्याएँ दूर कर देगा और वे अच्छा महसूस करेंगे। बहुत-से लोग इसी उम्मीद से चर्च जाते हैं और पादरी भी ऐसा कहकर उन्हें झूठा दिलासा देते हैं। (2 तीमु. 4:3, 4) लेकिन हमारी सेवा का मकसद यह नहीं है। हम यह खुशखबरी सुनाते हैं कि यहोवा प्यार की वजह से यीशु मसीह के ज़रिए लोगों के पाप माफ करने के लिए तैयार है। इस तरह लोगों को परमेश्वर के साथ सुलह करके उसके करीब आने का मौका मिलता है। (रोमि. 5:10; 8:32) लेकिन “मंज़ूरी पाने का वक्त” बस खत्म होने पर है।
“पवित्र शक्ति के तेज से भरे रहो”
16. पौलुस किस वजह से साहस और जोश दिखा पाया?
16 हम सच्ची उपासना के लिए कैसे जोश पैदा कर सकते हैं और उसे कायम रख सकते हैं? कुछ लोग शायद शर्मीले हों या दूसरों के साथ घुलना-मिलना उनके लिए मुश्किल हो। लेकिन यह याद रखना अच्छा होगा कि जोश सिर्फ बाहर से नहीं दिखाया जाता और न ही यह किसी की शख्सियत पर निर्भर होता है। पौलुस ने बताया कि जोश कैसे पैदा किया जा सकता है। उसने संगी मसीहियों से कहा: “पवित्र शक्ति के तेज से भरे रहो।” (रोमि. 12:11) पौलुस को अपनी सेवा में हिम्मत और ताकत देने के लिए यहोवा की पवित्र शक्ति ने खास भूमिका निभायी। यीशु ने पौलुस को जिस दिन चुना, उस दिन से लेकर उसके आखिरी बार कैद होने और रोम में शहीद होने तक, करीब तीस साल गुज़रे मगर पौलुस के जोश में कोई कमी नहीं आयी। उसने हमेशा परमेश्वर से मदद माँगी जिसने अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए उसे ज़रूरी ताकत दी। पौलुस ने कहा: “जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्ति मिलती है।” (फिलि. 4:13) अगर हम पौलुस के उदाहरण पर चलेंगे तो हमें क्या फायदा होगा?
17. हम कैसे “पवित्र शक्ति के तेज से भरे” रह सकते हैं?
17 “तेज से भरे रहो” का शब्दिक अर्थ है “उबलना।” (किंगडम इंटरलीनियर) केतली में पानी उबलता रहे इसके लिए ज़रूरी है कि लगातार आग जलती रहे। उसी तरह “पवित्र शक्ति के तेज से भरे” रहने के लिए हमें लगातार परमेश्वर की पवित्र शक्ति की ज़रूरत है। यह पाने के लिए हमें उन सारे इंतज़ामों का फायदा उठाना होगा जो यहोवा हमें आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करने के लिए मुहैया कराता है। इसका मतलब है, पारिवारिक और मंडली की उपासना को गंभीरता से करना। हमें नियमित तौर पर निजी और पारिवारिक अध्ययन, प्रार्थना और अपने संगी मसीहियों के साथ सभाओं में हाज़िर होना चाहिए। इससे मानो हमें ‘उबलते रहने’ के लिए “आग” मिलती रहेगी, ताकि हम “पवित्र शक्ति के तेज से भरे” रहें।—प्रेषितों 4:20; 18:25 पढ़िए।
18. एक समर्पित मसीही होने के नाते हमें अपना ध्यान किस मकसद पर लगाए रखना चाहिए?
18 एक समर्पित इंसान उसे कहते हैं जिसका पूरा ध्यान अपने मकसद को हासिल करने पर होता है। वह किसी भी चीज़ से अपना ध्यान जल्दी भटकने नहीं देता और न ही निराश होता है। समर्पित मसीही होने के नाते हमारा मकसद है, यहोवा की हर इच्छा पूरी करना ठीक जैसे यीशु ने भी की थी। (इब्रा. 10:7) परमेश्वर चाहता है कि जितना हो सके उतने लोगों को परमेश्वर के साथ सुलह करने का मौका मिले। तो आइए इस बेहद ज़रूरी काम को जो आज किया जाना है, यीशु और पौलुस की तरह पूरे जोश के साथ करें।
क्या आपको याद है?
• पौलुस और दूसरे अभिषिक्त मसीहियों को सौंपी गयी “सुलह करवाने की सेवा” क्या थी?
• अभिषिक्त मसीहियों के शेष जनों ने ‘खास तौर पर मंज़ूरी पाने के वक्त’ का कैसे अच्छा इस्तेमाल किया है?
• मसीही सेवक कैसे “पवित्र शक्ति के तेज से भरे” रह सकते हैं?
[पेज 12 पर तसवीर]
प्रभु यीशु के साथ हुई भेंट को पौलुस कभी नहीं भूला