पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी
एक बागी नौजवान, जिसे लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं था, वह लोगों से प्यार करने और उनकी मदद करने लगा। मैक्सिको में एक आदमी ने बदचलन ज़िंदगी जीना छोड़ दिया। जापान में एक बड़े खिलाड़ी ने परमेश्वर की सेवा करने की खातिर साइकिल रेस में हिस्सा लेना छोड़ दिया। आखिर इन तीनों ने इतने बड़े-बड़े बदलाव क्यों किए? आइए उन्हीं से जानें।
‘मैं अकड़ू और बदतमीज़ था, बात-बात पर भड़क उठता था।’—डेनस ओबाइरन
जन्म: 1958
देश: इंग्लैंड
अतीत: एक बागी नौजवान, जिसे लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं था
मेरा बीता कल: मेरे पापा का परिवार आयरलैंड से है। हम कैथोलिक थे, पर मुझे अकेले ही चर्च जाना पड़ता था। और मुझे चर्च जाना बिलकुल पसंद नहीं था। लेकिन हाँ, मैं परमेश्वर के बारे में ज़रूर जानना चाहता था। मैं रोज़ प्रभु की प्रार्थना करता था, पर उसका मतलब नहीं जानता था। हर रात बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं प्रार्थना की एक-एक बात समझने की कोशिश करता था।
जब मैं करीब 16 साल का हुआ, तो मैं ऐसे कई अलग-अलग समूहों से जुड़ गया जो समाज को अपना दुश्मन समझते थे। मैं ड्रग्स लेने लगा, खासकर गाँजा। लगभग हर दिन मैं गाँजा फूँकता था। यही नहीं, मुझे किसी चीज़ की परवाह नहीं थी। इसलिए मैं खूब पीता था, खतरनाक चीज़ें करता था और दूसरों के साथ बुरा सलूक करता था। मुझे लोगों से बात करना भी बिलकुल पसंद नहीं था। और अगर बात करता भी था तो बस काम के लिए। मुझे यह भी पसंद नहीं था कि कोई मेरी फोटो खींचे। अब मैं सोचता हूँ कि पहले मैं कितना अकड़ू और बदतमीज़ था, बात-बात पर भड़क उठता था। मैं सिर्फ अपने दोस्तों के साथ अच्छे-से रहता था।
फिर जब मैं करीब 20 साल का हुआ तो बाइबल में मेरी रुचि बढ़ने लगी। मेरा एक दोस्त, जो ड्रग्स बेचता था, जेल में बाइबल पढ़ने लगा। मैं और वह अलग-अलग विषयों पर घंटों बात करते थे, जैसे धर्म और चर्च के बारे में और यह भी कि शैतान दुनिया को कैसे चला रहा है। फिर मैंने एक बाइबल खरीदी और खुद से उसका अध्ययन करने लगा। मैं और मेरा दोस्त अलग से बाइबल के कुछ हिस्से पढ़ते थे, फिर मिलकर चर्चा करते थे कि हमने क्या सीखा। ऐसा कई महीनों तक चला।
जो बातें हमने सीखीं उनमें से कुछ थीं: हम इस दुनिया के आखिरी दिनों में जी रहे हैं। मसीहियों को राज की खुशखबरी सुनानी चाहिए। उन्हें दुनिया का भाग नहीं होना चाहिए, यहाँ तक कि राजनीति में भी कोई हिस्सा नहीं लेना चाहिए। अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए बाइबल में बढ़िया उसूल दिए गए हैं। हमें साफ पता चल गया कि बाइबल में लिखी बातें सच्ची हैं और एक सच्चा धर्म ज़रूर होगा। पर हम उसे कैसे पहचानें? पहले हमें लगा कि शायद बड़े-बड़े चर्च सच्चा धर्म होंगे। पर जब हमने उनकी बड़ी-बड़ी इमारतें देखीं और देखा कि वे कैसे धूम-धाम से रीति-रिवाज़ मनाते हैं और राजनीति में हिस्सा लेते हैं, तो हमें लगा कि यीशु ने तो ऐसा कुछ नहीं किया था। इस तरह हम समझ गए कि ये चर्च सच्चा धर्म नहीं हैं। इसलिए हम ऐसे धर्मों की जाँच करने लगे जो इतने जाने-माने नहीं थे।
हम इन धर्मों के लोगों से मिलते और उनसे कई सवाल करते। हमें पहले से पता था कि बाइबल में इन सवालों के क्या जवाब हैं। हम ऐसे सवाल यह देखने के लिए करते थे कि वे बाइबल से जवाब देंगे या नहीं। और हर मुलाकात के बाद मैं परमेश्वर से यह भी प्रार्थना करता था, ‘अगर ये सच्चे धर्म के लोग हैं, तो मुझे उभारिए कि मैं इनसे दोबारा मिलूँ।’ कई महीनों तक ऐसा चलता रहा, पर मुझे ऐसा कोई समूह नहीं मिला जो बाइबल से हमारे सवालों के जवाब दे। और मेरा कभी मन भी नहीं हुआ कि मैं उनसे दोबारा मिलूँ।
आखिरकार, मैं और मेरा दोस्त यहोवा के साक्षियों से मिले। हमने उनसे भी वही सवाल किए और उन्होंने सारे जवाब बाइबल से दिए। हमने जो सीखा था उन्होंने वही बातें बतायीं। तब हमने उनसे ऐसे सवाल किए जिनके जवाब हमें बाइबल से नहीं मिले थे। जैसे, सिगरेट पीना और ड्रग्स लेना परमेश्वर की नज़र में सही है या नहीं। उन्होंने इसका जवाब भी बाइबल से दिया। इसलिए जब उन्होंने हमें सभा के लिए राज-घर आने को कहा, तो हम मान गए।
पर उस सभा में इतने लोगों के बीच रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। भले ही सभी साक्षी अच्छे-से तैयार होकर आए थे और बड़े प्यार से मुझसे मिल रहे थे, फिर भी मुझे उनमें से कुछ के इरादों पर शक हुआ। और मैं किसी से बात नहीं करना चाहता था। मैंने सोच लिया कि मैं इनकी सभाओं में दोबारा नहीं आऊँगा। पर हमेशा की तरह, इस बार भी मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि अगर ये सच्चे धर्म के लोग हैं तो मुझे उभारिए कि मैं इनसे दोबारा मिलूँ। मुझमें साक्षियों से बाइबल सीखने की ऐसी ज़बरदस्त इच्छा जागी कि मैं खुद को रोक नहीं पाया।
पवित्र शास्त्र ने मेरी ज़िंदगी किस तरह बदल दी?: मैं समझ गया कि मुझे ड्रग्स लेना छोड़ना होगा। और मैं ऐसा फौरन कर पाया। पर सिगरेट पीना छोड़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मैंने कई बार यह आदत छोड़ने की कोशिश की, पर मुझसे नहीं हो पाया। जब मैंने जाना कि ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने एक ही बार में सिगरेट पीना छोड़ दिया, तो मैंने इस बारे में यहोवा से प्रार्थना की। फिर यहोवा की मदद से मैं सिगरेट पीना छोड़ पाया। इससे मैंने सीखा कि कोई भी समस्या हो, मुझे खुलकर यहोवा को बताना चाहिए।
मुझे एक और बड़ा बदलाव करना था। मैं जिस तरह के कपड़े पहनता था और बाल बनाता था, मुझे वह बदलना था। जब मैं पहली बार सभा के लिए गया, तो मैंने स्पाइकी स्टाइल में अपने बाल बनाए थे (खड़े बाल हेयरस्टाइल) और मेरे बालों में चटकीले नीले रंग की एक धारी थी। बाद में मैंने अपने पूरे बाल चटकीले नारंगी रंग के करवा दिए। मैं जीन्स पहनता था और एक चमड़े की जैकट जिस पर कुछ नारे लिखे होते थे। हालाँकि साक्षियों ने प्यार से मुझे समझाने की कोशिश की, पर मुझे नहीं लगा कि मुझे बदलने की ज़रूरत है। पर फिर मैंने 1 यूहन्ना 2:15-17 में लिखी बात के बारे में सोचा: “तुम न तो दुनिया से प्यार करो, न ही दुनिया की चीज़ों से। अगर कोई दुनिया से प्यार करता है तो उसमें पिता के लिए प्यार नहीं है।” मैं समझ गया कि मैं अपने पहनावे से दिखा रहा हूँ कि मुझे इस दुनिया से प्यार है। लेकिन अगर मुझे परमेश्वर से प्यार है, तो मुझे अपना पहनावा बदलना होगा। और मैंने ऐसा ही किया।
आगे चलकर मुझे एहसास हुआ कि सिर्फ साक्षी ही नहीं बल्कि परमेश्वर भी चाहता है कि मैं सभाओं में जाऊँ। और यही बात इब्रानियों 10:24, 25 में बतायी गयी है। तब मैं सभाओं में जाने लगा और भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने लगा। नतीजा, मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया और बपतिस्मा लिया।
मुझे क्या फायदा हुआ?: यहोवा जिस तरह हमें अपने करीब लाता है, वह बात मेरे दिल को छू गयी। उसकी करुणा और परवाह ने मुझे उभारा कि मैं भी उसकी तरह बनूँ और उसके बेटे यीशु के नक्शे-कदम पर चलूँ। (1 पतरस 2:21) पर मैंने यह भी सीखा कि बाइबल में बताए गुण बढ़ाने का यह मतलब नहीं कि मैं अपनी पूरी पहचान खो दूँ। मेरी अपनी राय और पसंद-नापसंद भी हो सकती है। दूसरे लोगों से प्यार करने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है। मैं अपनी पत्नी और बेटे के साथ यीशु की तरह पेश आने को कोशिश करता हूँ। मैं भाई-बहनों की सच्चे दिल से परवाह करता हूँ। यीशु के जैसा बनने की वजह से मैं खुद के बारे में अच्छा महसूस करता हूँ और दूसरों से प्यार कर पा रहा हूँ।
“उन्होंने मुझे इज़्ज़त दी।”—ग्वाडालूपे बील्यारेआल
जन्म: 1964
देश: मैक्सिको
अतीत: बदचलन ज़िंदगी
मेरा बीता कल: हम सात भाई-बहन हैं। हमारी परवरिश मैक्सिको के सनोरा राज्य के ऐरमोसीयो शहर में हुई। हम जिस इलाके में रहते थे, वहाँ बहुत-से लोग गरीब थे। मैं बहुत छोटा था जब हमारे पिता की मौत हो गयी। इसलिए माँ को घर चलाने के लिए काम करना पड़ा। हमारे पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, इसलिए मैं नंगे पैर घूमता था। जब मैं छोटा ही था तो घर का खर्चा चलाने के लिए मैं भी काम करने लगा। दूसरे परिवारों की तरह हम भी एक छोटे-से घर में रहते थे।
माँ ज़्यादातर समय काम की वजह से बाहर रहती थीं और हम बच्चे अकेले होते थे। जब मैं 6 साल का था तब 15 साल का एक लड़का मेरे साथ गलत काम करने लगा। ऐसा लंबे समय तक चलता रहा। इसका एक नतीजा यह हुआ कि इसका मेरी सोच पर बुरा असर पड़ा। मुझे लगने लगा कि आदमियों की तरफ आकर्षित होना गलत नहीं है। और जब मैंने डॉक्टरों और पादरियों से इस बारे में पूछा, तो उन्होंने भी कहा कि मैं जैसा महसूस कर रहा हूँ उसमें कोई बुराई नहीं है।
इसलिए जब मैं 14 साल का हुआ, तो मैं लड़कियों की तरह कपड़े पहनने और पेश आने लगा। अगले 11 सालों तक मैं ऐसे ही जीता रहा। मैं कई अलग-अलग आदमियों के साथ भी रहा। मैंने हेयर स्टाइलिस्ट का काम सीखा और फिर एक ब्यूटी पार्लर खोल लिया। लेकिन मैं खुश नहीं था। मुझे ज़िंदगी में दुख और धोखे के अलावा कुछ नहीं मिला। मैं समझ गया कि मैं जो कर रहा हूँ वह सही नहीं है। मैं सोचने लगा, ‘क्या इस दुनिया में अच्छे और भरोसेमंद लोग हैं?’
तभी मुझे मेरी दीदी की याद आयी। उन्होंने यहोवा के साक्षियों से बाइबल सीखी थी और कुछ समय बाद बपतिस्मा ले लिया था। वे जो सीख रही थीं, मुझे भी बताती थीं। पर मैं उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता था। फिर भी वे जिस तरह अपनी ज़िंदगी जी रही थीं और उनका जीजाजी के साथ जैसा रिश्ता था, वह काबिले-तारीफ था। मैं देख सकता था कि वे दोनों एक-दूसरे की कितनी इज़्ज़त करते हैं, एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं और अच्छे-से पेश आते हैं। कुछ समय बाद यहोवा की एक साक्षी मेरे साथ बाइबल अध्ययन करने लगी। शुरू में तो मैंने नाम के लिए अध्ययन किया। पर बाद में मेरा रवैया बदल गया।
पवित्र शास्त्र ने मेरी ज़िंदगी किस तरह बदल दी?: साक्षियों ने मुझे एक सभा के लिए बुलाया और मैं गया। वहाँ का माहौल बहुत अलग था। आम तौर पर लोग मेरा मज़ाक उड़ाते थे, पर साक्षियों ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने प्यार से मेरा स्वागत किया। उन्होंने मुझे इज़्ज़त दी। यह बात मेरे दिल को छू गयी।
फिर जब मैं साक्षियों के एक सम्मेलन में गया, तो मुझे और भी यकीन हो गया कि वे अच्छे लोग हैं। मैंने देखा कि जब वे बड़े समूह में मिलते हैं, तब भी वे अच्छे-से पेश आते हैं। सब दीदी की तरह सच्चे दिल के थे। यह देखकर मैंने सोचा कि कहीं ये वही अच्छे और भरोसेमंद लोग तो नहीं जिनकी मुझे तलाश है। साक्षियों के बीच जो प्यार और एकता थी, वह मैंने कहीं नहीं देखी थी! यही नहीं, मेरे हर सवाल का जवाब वे बाइबल से देते थे! मैं समझ गया कि वे इतने अच्छे इसलिए हैं क्योंकि वे बाइबल के मुताबिक जीते हैं। और उनकी तरह बनने के लिए मुझे कई बदलाव करने होंगे।
कहने का मतलब है कि मुझे खुद की पूरी कायापलट करनी थी। मेरा बात करने का तरीका, चाल-ढाल, कपड़े, बनाव-शृंगार, सबकुछ लड़कियों की तरह था। यहाँ तक कि मुझे अपने दोस्त भी बदलने थे। वे ताना मारते हुए मुझसे कहते थे, “यह क्या कर रहे हो तुम? तुम जैसे हो ठीक हो। सबकुछ तो है तुम्हारे पास, तो बाइबल क्यों पढ़ रहे हो?” पर जो बदलाव करना मेरे लिए सबसे मुश्किल था, वह था अपनी बदचलन ज़िंदगी छोड़ना।
फिर भी मैं जानता था कि मैं बदल सकता हूँ। पहला कुरिंथियों 6:9-11 में लिखा है, “क्या तुम नहीं जानते कि जो लोग परमेश्वर के नेक स्तरों पर नहीं चलते, वे उसके राज के वारिस नहीं होंगे? धोखे में न रहो। नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवाले, मूर्तिपूजा करनेवाले, व्यभिचारी, आदमियों के साथ संभोग के लिए रखे गए आदमी, आदमियों के साथ संभोग करनेवाले आदमी . . . परमेश्वर के राज के वारिस नहीं होंगे। तुममें से कुछ लोग पहले ऐसे ही काम करते थे। मगर तुम्हें धोकर शुद्ध किया गया।” इस वचन से मुझे यकीन हो गया कि अगर यहोवा ने उन्हें बदलने में मदद दी तो वह मेरी भी मदद करेगा। और ऐसा ही हुआ। हालाँकि मुझे बदलाव करने में कई साल लगे और काफी संघर्ष करना पड़ा, पर साक्षियों के प्यार और मदद से मैं बदलाव कर पाया।
मुझे क्या फायदा हुआ?: आज मैं एक साक्षी हूँ। मेरी शादी हो चुकी है। मैं और मेरी पत्नी अपने बेटे को बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीना सिखा रहे हैं। मैं अपनी पुरानी ज़िंदगी बहुत पीछे छोड़ आया हूँ। आज यहोवा के साथ मेरा एक अच्छा रिश्ता है और मैं खुशी-खुशी उसकी सेवा कर रहा हूँ। मैं एक प्राचीन हूँ और बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने में दूसरों की मदद करता हूँ। जब मेरी माँ ने देखा कि मैं कितना बदल गया हूँ तो वे बहुत खुश हुईं और बाइबल अध्ययन करने के लिए राज़ी हो गयीं। आगे चलकर उन्होंने बपतिस्मा लिया। मेरी एक छोटी बहन भी साक्षी बन गयी जो पहले बदचलन ज़िंदगी जीती थी।
मेरे पुराने दोस्त भी, जिन्होंने मुझे समलैंगिक ज़िंदगी जीते रहने का बढ़ावा दिया था, मानते हैं कि मैंने खुद को बदलकर अच्छा किया। और इस बदलाव के पीछे यहोवा का हाथ है। मैं मदद के लिए डॉक्टरों के पास गया था, पर उन सब ने मुझे गलत सलाह दी। सिर्फ यहोवा ने ही मुझे सही मदद दी। वह इतना महान, बुद्घिमान और प्यार करनेवाला परमेश्वर है, फिर भी उसने मुझ नाचीज़ पर ध्यान दिया। वह चाहता था कि मैं एक अच्छी ज़िंदगी जीऊँ। और वह मेरे साथ प्यार और सब्र से भी पेश आया। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। इसी से मुझे बदलाव करने की हिम्मत मिली।
“मेरे पास सबकुछ था, फिर भी मैं खुश नहीं था। मेरी ज़िंदगी में एक खालीपन था।”—काज़ूहीरो कूनिमोची
जन्म: 1951
देश: जापान
अतीत: उस पर साइकिल रेस में जीतने का जुनून सवार था
मेरा बीता कल: मेरी परवरिश जापान के शीज़ूवोका ज़िले के एक बंदरगाह कसबे में हुई। यह एक बहुत शांत जगह थी। मेरे परिवार में 8 लोग थे और हम एक छोटे-से घर में रहते थे। मेरे पापा की एक दुकान थी जहाँ वे साइकिल बेचते थे और उनकी मरम्मत करते थे। बचपन से ही पापा मुझे साइकिल रेस में ले जाने लगे। इसी से इस खेल में मुझे रुचि होने लगी। तब से पापा ने सोच लिया कि वे मुझे ट्रेनिंग देंगे ताकि मैं बड़ा होकर साइकिल रेस का एक खिलाड़ी बनूँ। जब मैं कुछ 5-8 क्लास में था, तब से पापा ऐसा करने लगे। जब मैं हाई स्कूल में था तब मैं लगातार तीन साल तक राष्ट्रीय स्तर पर साइकिल रेस में जीत हासिल करता रहा। मुझे एक यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिला, पर मैं वहाँ नहीं गया। मैनें सीधे रेसिंग स्कूल जाने का फैसला किया। उन्नीस साल की उम्र तक मैं एक खिलाड़ी बन गया।
मेरा सपना था कि मैं जापान में साइकिल रेस का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनूँ। मैं खूब पैसा कमाना चाहता था ताकि मेरे परिवार को कोई कमी ना हो और वह एक अच्छी ज़िंदगी जी सके। इसलिए मैंने ट्रेनिंग में अपना खून-पसीना एक कर दिया। पर यह आसान नहीं था। जब भी मुझे लगता कि अब मुझसे और ट्रेनिंग नहीं होगी या रेस बहुत मुश्किल है, तो मैं खुद को याद दिलाता कि मैं इसी के लिए पैदा हुआ हूँ और मुझे किसी भी हाल में यह करना ही है। इससे मुझमें फिर से जोश आ जाता। आखिरकार मेरी मेहनत रंग लायी। पहले साल में नए खिलाड़ियों की प्रतियोगिता में मैं पहली जगह आया। अगले साल ही मुझे जापान के राष्ट्रीय खेल में हिस्सा लेने के लिए चुना गया। छः बार उस रेस में मैं दूसरे नंबर पर आया।
मैंने कई रेस जीती जिस वजह से लोग मुझे ‘तोकाइ की मज़बूत टाँगे” कहने लगे। (तोकाइ, जापान का एक इलाका है।) मेरे दिमाग में यही रहता था कि मुझे हर हाल में जीतना है। और इसी धुन में मैं इस तरह साइकिल चलाता था कि दूसरे खिलाड़ी मुझसे डरते थे। मैं खूब पैसा कमाने लगा, इतना कि मैं जो चाहे खरीद सकता था। मैंने एक घर खरीदा जिसमें कसरत करने के लिए एक अलग कमरा था। उसमें एक-से-बढ़कर-एक मशीनें थीं। मैंने इम्पोर्टिड कार खरीदी जिसकी कीमत लगभग एक घर की कीमत के बराबर थी। मैंने कुछ पैसा प्रौपर्टी और शेयर्स में भी लगाया।
मेरे पास सबकुछ था, फिर भी मैं खुश नहीं था। मेरी ज़िंदगी में एक खालीपन था। उस वक्त तक मेरी शादी हो चुकी थी और मेरे तीन बेटे थे। मुझमें ज़रा भी सब्र नहीं था, मैं बात-बात पर भड़क उठता था। इसलिए मेरे बीवी-बच्चे मुझसे डर-डरकर रहते थे। मुझसे बात करने से पहले वे देखते थे कि मेरा मूड कैसा है।
वक्त के चलते मेरी पत्नी यहोवा के साक्षियों से बाइबल सीखने लगी। इससे हमारी ज़िंदगी बदलने लगी। एक बार उसने कहा कि वह साक्षियों की सभाओं में जाना चाहती है। तब मैंने फैसला किया कि हमारा पूरा परिवार सभाओं में जाएगा। फिर एक शाम एक प्राचीन हमारे घर आए और मेरे साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। वह शाम मुझे आज भी याद है! अध्ययन से मैंने जो सीखा उसका मुझ पर गहरा असर हुआ।
पवित्र शास्त्र ने मेरी ज़िंदगी किस तरह बदल दी?: इफिसियों 5:5 में लिखा है, “ऐसा कोई भी इंसान जो नाजायज़ यौन-संबंध रखता है या अशुद्ध काम करता है या लालची है जो कि मूर्तिपूजा करनेवाले के बराबर है, वह मसीह के और परमेश्वर के राज में कोई विरासत नहीं पाएगा।” इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। कई लोग साइकिल रेस में सट्टा लगाते हैं और इस वजह से वे बहुत लालची बन जाते हैं। इस बात को लेकर मेरा ज़मीर मुझे कचोटने लगा। मैं समझ गया कि यहोवा को खुश करने के लिए मुझे रेस छोड़नी होगी। पर ऐसा करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था।
अभी-अभी जो साल गुज़रा था, वह मेरे साइकिल रेस में हिस्सा लेने का अब तक का सबसे बढ़िया साल था। पर और भी रेस जीतने के लिए मुझे जीतने का जोश बनाए रखना था। लेकिन अध्ययन करने की वजह से अब मुझमें पहले जैसा जोश नहीं रहा। मैं काफी शांत हो चुका था। हालाँकि अध्ययन शुरू करने के बाद से मैंने बस तीन बार रेस में हिस्सा लिया, पर अब भी मेरे दिल में इसके लिए लगाव था। मुझे चिंता होने लगी कि अब मैं अपने परिवार का पेट कैसे पालूँगा। एक तरह से मेरे पैर दो नाव पर थे। मैं ना साइकिल रेस पूरी तरह छोड़ पा रहा था, ना ही यहोवा की सेवा करने के लिए आगे बढ़ पा रहा था। और-तो-और बाइबल का अध्ययन करने की वजह से मेरे रिश्तेदार मेरा विरोध करते थे। मेरे पापा भी मुझसे बहुत नाराज़ थे। इन सारी वजह से मैं टेंशन में आ गया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं करूँ तो क्या करूँ। इसके चलते मेरे पेट में अलसर हो गया।
लेकिन मैं यह मुश्किल दौर पार कर पाया। ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि मैं बाइबल अध्ययन करता रहा और साक्षियों की सभाओं में जाता रहा। धीरे-धीरे मेरा विश्वास बढ़ने लगा। मैंने यहोवा से कहा कि वह मेरी प्रार्थनाएँ सुने और मेरी मदद करे ताकि मैं देख सकूँ कि उसने जवाब दिया है। और ऐसा ही हुआ जिससे मेरी चिंता कम होने लगी। मेरी चिंता और भी कम हुई जब मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि खुश रहने के लिए उसे एक बड़े घर की ज़रूरत नहीं है। धीरे-धीरे मैं यहोवा की सेवा करने के लिए कदम उठाने लगा।
मुझे क्या फायदा हुआ?: मत्ती 6:33 में यीशु ने कहा, “इसलिए परमेश्वर के राज और उसके नेक स्तरों को पहली जगह देते रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।” मैंने देखा कि यह बात बिलकुल सच है। हमें कभी-भी “बाकी सारी चीज़ों” की यानी खाने, पहनने और रहने की कोई कमी नहीं हुई। मैं पहले जितना कमाता था, अब उससे बहुत ही कम कमाता हूँ। फिर भी पिछले 20 सालों में मेरे परिवार को कोई कमी नहीं हुई है।
इससे भी बड़ी बात है कि जब मैं भाई-बहनों के साथ मिलकर उपासना से जुड़े काम करता हूँ, तो मुझे बहुत खुशी और संतुष्टि मिलती है। यहोवा की सेवा में लगे रहने की वजह से वक्त का पता ही नहीं चलता। अब परिवार में भी हमारा अच्छा रिश्ता है। मेरे तीनों बेटे और बहुएँ वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं।