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  • यीशु की तरह जागते रहिए
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यीशु की तरह जागते रहिए

“जागते रहो और . . . प्रार्थना करते रहो।”—मत्ती 26:41.

आप क्या जवाब देंगे?

हमारी प्रार्थनाएँ कैसे ज़ाहिर कर सकती हैं कि हम जाग रहे हैं?

किन तरीकों से हम दिखा सकते हैं कि हम अपने प्रचार काम में जाग रहे हैं?

परीक्षा के दौरान जागते रहना क्यों ज़रूरी है और हम यह कैसे कर सकते हैं?

1, 2. (क) जागते रहने के बारे में यीशु ने जो मिसाल रखी, उस पर चलने के सिलसिले में क्या सवाल उठते हैं? (ख) क्या यीशु की सिद्ध मिसाल पापी इंसानों के लिए मददगार हो सकती है? उदाहरण देकर समझाइए।

आप शायद सोचें: ‘क्या जागते रहने के मामले में यीशु की मिसाल पर चलना वाकई मुमकिन है? आखिर यीशु एक सिद्ध इंसान था, लेकिन हम तो असिद्ध हैं! इसके अलावा, कई बार तो यीशु को यह खबर रहती थी कि भविष्य में क्या होनेवाला है, यहाँ तक कि हज़ारों साल बाद क्या होगा। तो फिर उसे सतर्क रहने की ज़रूरत क्यों थी?’ (मत्ती 24:37-39; इब्रा. 4:15) आइए हम इन सवालों के जवाब देखें, ताकि हम यह जान पाएँ कि जागते रहने के विषय पर ध्यान देना आज हमारे लिए इतना ज़रूरी क्यों है।

2 क्या एक सिद्ध इंसान की मिसाल हम पापी इंसानों के लिए मददगार हो सकती है? बिलकुल। एक माहिर शिक्षक की मिसाल से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक इंसान निशानेबाज़ी सीख रहा है। शुरू-शुरू में वह तीर को निशाने पर नहीं मार सकता, मगर वह अपनी कोशिश जारी रखता है। इसके लिए वह इस बात का ध्यान से अध्ययन करता है कि उसका शिक्षक किस तरह पक्का निशाना लगाता है। वह गौर करता है कि उसका शिक्षक कैसे खड़ा होता है, किस तरह धनुष पकड़ता है और कैसे कमान की डोरी पर तीर रखता है। धीरे-धीरे वह सीख जाता है कि उसे डोरी पर कितना ज़ोर लगाना है। वह हवा के रुख और उसकी तेज़ी का भी ध्यान रखने लगता है और लगातार अभ्यास करता है। वह अपने शिक्षक की मिसाल से सीखता रहता है और धीरे-धीरे उसका निशाना और भी पक्का हो जाता है। उसी तरह, हम भी अपने सिद्ध शिक्षक यीशु की मिसाल पर चलकर और उसकी हिदायतें मानकर बेहतर मसीही बन सकते हैं।

3. (क) यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया कि उसे भी जागते रहने की ज़रूरत थी? (ख) हम इस लेख में किस बात पर गौर करेंगे?

3 क्या यीशु को जागते रहने की ज़रूरत थी? जी हाँ। धरती पर अपनी आखिरी रात को यीशु ने अपने वफादार प्रेषितों को यह बढ़ावा दिया: “मेरे साथ जागते रहो।” फिर उसने कहा: “जागते रहो और लगातार प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (मत्ती 26:38, 41) हालाँकि यीशु हमेशा सचेत रहता था, मगर खासकर इस मुश्‍किल घड़ी में उसने जागते रहने और अपने पिता के करीब रहने की ज़रूरत महसूस की। वह जानता था कि उसके चेलों को भी उसी तरह सतर्क रहने की ज़रूरत है; सिर्फ उस वक्‍त ही नहीं, बल्कि भविष्य में भी। तो आइए हम देखें कि यीशु क्यों चाहता है, हम जागते रहें। उसके बाद हम ऐसे तीन तरीकों की जाँच करेंगे जिनसे हम भी यीशु की तरह जागते रह सकते हैं।

यीशु क्यों चाहता है कि हम जागते रहें

4. भविष्य के बारे में हम जो नहीं जानते, उसका जागते रहने की हमारी ज़रूरत से क्या ताल्लुक है?

4 चंद शब्दों में कहें तो जो बातें हम नहीं जानते और जो हम जानते हैं, उनकी वजह से यीशु चाहता है कि हम जागते रहें। जब यीशु इस धरती पर था, तब क्या वह भविष्य की हर बात जानता था? नहीं, उसने नम्रता से कबूल किया: “उस दिन और उस वक्‍त के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा, लेकिन सिर्फ पिता जानता है।” (मत्ती 24:36) उस वक्‍त “बेटा” यानी यीशु नहीं जानता था कि किस घड़ी इस दुष्ट दुनिया का अंत होगा। आज हमारे बारे में क्या? हम भी भविष्य के बारे में सब कुछ नहीं जानते। हम नहीं जानते कि किस वक्‍त यहोवा इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था का खात्मा करने के लिए अपने बेटे को भेजेगा। अगर हमें यह पता होता तो हमें जागते रहने की ज़रूरत ही न होती। जैसा यीशु ने समझाया, अंत अचानक आएगा, जब किसी को उसके आने की उम्मीद ना होगी, इसलिए ज़रूरी है कि हम हमेशा जागते रहें।—मत्ती 24:43 पढ़िए।

5, 6. (क) परमेश्‍वर के मकसद के बारे में हम जो जानते हैं, उसका हमारे जागते रहने से क्या ताल्लुक है? (ख) शैतान के बारे में हम जो जानते हैं, उससे हमें और भी चौकन्‍ना क्यों रहना चाहिए?

5 दूसरी तरफ, यीशु भविष्य में होनेवाली कई शानदार बातों के बारे में जानता था। ये ऐसी सच्चाइयाँ थीं जिनसे उसके आस-पास के ज़्यादातर लोग अनजान थे। हालाँकि हम अपने ज्ञान की बराबरी यीशु के ज्ञान से करने की सोच भी नहीं सकते, लेकिन फिर भी यीशु की बदौलत हम परमेश्‍वर के राज और उससे मिलनेवाली आशीषों के बारे में काफी कुछ जान पाए हैं। जब हम अपने इर्द-गिर्द लोगों को देखते हैं, चाहे स्कूल में, काम की जगह पर या हमारे प्रचार के इलाके में, तो क्या हमें ऐसा नहीं लगता कि वे इन खूबसूरत सच्चाइयों से बेखबर, घोर अंधकार में जी रहे हैं? यह हमें जागते रहने की एक और वजह देता है। यीशु की तरह हमें भी सतर्क रहकर दूसरों को परमेश्‍वर के राज के बारे में बताने के लिए हरदम तैयार रहना चाहिए। गवाही देने का हर मौका बहुत कीमती होता है, इसलिए हमें कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। आखिर लोगों की ज़िंदगी दाँव पर लगी है!—1 तीमु. 4:16.

6 यीशु कुछ और भी जानता था जिससे उसे जागते रहने में मदद मिली। उसे मालूम था कि शैतान उसके सामने आज़माइशें लाने, उस पर ज़ुल्म ढाने और उसकी खराई तोड़ने पर उतारू है। यीशु की परीक्षा लेने के लिए उसका यह दुश्‍मन ‘सही मौके’ की तलाश में था। (लूका 4:13) यीशु हमेशा चौकस रहा। वह हर आज़माइश के लिए तैयार रहना चाहता था, फिर चाहे वह कोई प्रलोभन हो, विरोध हो या किसी तरह का ज़ुल्म हो। क्या हम भी यीशु के जैसे हालात का सामना नहीं कर रहे? हम जानते हैं कि आज भी शैतान “गरजते हुए शेर की तरह इस ताक में घूम रहा है कि किसे निगल जाए।” इसलिए परमेश्‍वर का वचन सभी मसीहियों को बढ़ावा देता है: “अपने होश-हवास बनाए रखो, चौकन्‍ने रहो।” (1 पत. 5:8) लेकिन हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?

जागते रहना—प्रार्थना के मामले में

7, 8. यीशु ने प्रार्थना के बारे में क्या सलाह दी और उसने इस मामले में कैसी मिसाल कायम की?

7 बाइबल बताती है कि आध्यात्मिक तौर पर जागते रहने और प्रार्थना करने के बीच गहरा नाता है। (कुलु. 4:2; 1 पत. 4:7) अपने चेलों से यह कहने के बाद कि वे उसके साथ जागते रहें, यीशु ने कहा: “जागते रहो और लगातार प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (मत्ती 26:41) क्या यीशु की यह सलाह सिर्फ परीक्षाओं के दौर में लागू होती है? जी नहीं, यह एक ऐसा उसूल है जिसे हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं।

8 यीशु ने प्रार्थना करने की एक उम्दा मिसाल कायम की। आपको शायद याद हो कि उसने एक बार अपने पिता से प्रार्थना करने में पूरी रात बितायी। आइए उस दृश्‍य की कल्पना करें। (लूका 6:12, 13 पढ़िए।) वसंत का मौसम है। यह शायद मछुवारों के शहर कफरनहूम की बात है, जहाँ यीशु अकसर ठहरता था। सूरज ढलने के बाद यीशु एक पहाड़ पर चला जाता है, जहाँ से गलील झील नज़र आती है। जैसे-जैसे अंधेरा होता है, उसे पहाड़ पर से कफरनहूम शहर और आस-पास के दूसरे गाँवों में जगमगाते हुए दीए दिखायी देते हैं। लेकिन जब वह प्रार्थना करता है, तो उसका पूरा ध्यान सिर्फ यहोवा से बात करने पर लगा हुआ है। कुछ मिनट बीत जाते हैं, फिर घंटों बीत जाते हैं। धीरे-धीरे नीचे शहर में बत्तियाँ बुझने लगती हैं, चाँद आसमान की एक छोर से दूसरी छोर पहुँच जाता है और जानवर खाने की तलाश में झाड़ियों में घूमने लगते हैं। लेकिन यीशु का ध्यान नहीं भटकता। वह 12 प्रेषितों को चुनने के बारे में यहोवा से बात कर रहा है। हम कल्पना कर सकते हैं कि यीशु ने अपने पिता को हर चेले के बारे में अपने विचार और चिंताएँ बतायी होंगी और सही फैसला लेने के लिए उससे मार्गदर्शन और बुद्धि की बिनती की होगी।

9. पूरी रात प्रार्थना करने की यीशु की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

9 हम यीशु के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? यही कि हमें प्रार्थना में कई घंटे बिताने चाहिए? नहीं, ऐसा नहीं है। यीशु जानता है कि ऐसा करना शायद हमारे लिए मुमकिन ना हो। तभी तो उसने अपने चेलों के बारे में कहा, “दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” (मत्ती 26:41) फिर भी हमारे लिए यीशु की मिसाल पर चलना मुमकिन है। जब हमें कोई ऐसा फैसला लेना होता है जिसका हम पर, हमारे परिवार पर या हमारे आध्यात्मिक भाई-बहनों पर असर होगा, तो क्या हम अपने पिता यहोवा से प्रार्थना करते हैं? क्या हम प्रार्थना में अपने विश्‍वासी भाई-बहनों के लिए अपनी चिंता ज़ाहिर करते हैं? क्या हम दिल से प्रार्थना करते हैं या फिर सिर्फ गिने-चुने शब्दों को हमेशा दोहराते रहते हैं? ध्यान दीजिए कि यीशु एकांत में दिल खोलकर अपने पिता से प्रार्थना करने को बहुत अनमोल समझता था। दौड़-धूप भरी इस ज़िंदगी में शायद हम इस कदर उलझ जाएँ कि हम यह भूल बैठें कि क्या बातें असल में मायने रखती हैं। अगर हम दिल खोलकर प्रार्थना करने के लिए काफी समय निकालेंगे, तो हम आध्यात्मिक तौर पर और भी अच्छी तरह जागते रह सकेंगे। (मत्ती 6:6, 7) ऐसा करने से हम खुद को यहोवा के और करीब महसूस करेंगे, हमारे अंदर उसके साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने की इच्छा जागेगी और हम ऐसे हर काम से दूर रहेंगे, जिससे वह रिश्‍ता कमज़ोर पड़ सकता है।—याकू. 4:8.

जागते रहना—प्रचार के मामले में

10. कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि यीशु गवाही देने के मौकों की ताक में रहा?

10 यहोवा ने यीशु को जो काम दिया था, उसे पूरा करने के लिए भी वह जागता रहा। कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें करते वक्‍त अगर आपका ध्यान कहीं और हो, तब भी आपके काम पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ता। लेकिन कई काम ऐसे होते हैं जिन्हें अपना पूरा ध्यान लगाकर करना पड़ता है। हमारी मसीही सेवा भी एक ऐसा ही काम है। यीशु इस काम में बहुत सतर्क था। वह खुशखबरी का प्रचार करने के लिए हमेशा मौके की ताक में रहता था। मिसाल के लिए, एक दिन सुबह से लेकर दोपहर तक चलने के बाद जब यीशु और उसके चेले सूखार नाम शहर पहुँचे, तो उसके चेले खाना खरीदने चले गए। यीशु एक कुएँ के पास आराम करने के लिए बैठ गया, मगर वह सतर्क रहा और उसे गवाही देने का एक मौका दिखायी दिया। एक सामरी स्त्री पानी भरने आयी। यीशु चाहता तो थोड़ी देर के लिए झपकी ले सकता था और उससे बात ना करने की ढेरों वजह सोच सकता था। लेकिन उसने उससे बातचीत की और एक ज़बरदस्त गवाही दी, जिसका उस शहर के कई लोगों पर भी गहरा असर हुआ। (यूह. 4:4-26, 39-42) क्या हम भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मिलनेवाले लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं? अगर हम ऐसा करें, तो हम जागते रहने की यीशु की मिसाल पर चल रहे होंगे।

11, 12. (क) यीशु ने उन लोगों से क्या कहा जिन्होंने प्रचार काम से उसका ध्यान हटाने की कोशिश की? (ख) यीशु ने अपने काम में कैसे संतुलन दिखाया?

11 कुछ लोगों ने अनजाने में यीशु का ध्यान प्रचार काम से हटाने की कोशिश की। कफरनहूम के लोग उसकी चंगाई के कामों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उससे कहा कि वह उन्हीं के पास ठहर जाए। हम समझ सकते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों सोचा होगा। लेकिन यीशु को उस एक शहर के लोगों के लिए ही नहीं भेजा गया था, बल्कि उसका मकसद पूरे “इसराएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों” को प्रचार करना था। (मत्ती 15:24) इसलिए उसने उनसे कहा: “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:40-44) ज़ाहिर है कि यीशु की ज़िंदगी में प्रचार काम सबसे अहमियत रखता था। उसने किसी भी चीज़ को इसके आड़े नहीं आने दिया।

12 क्या यीशु अपने काम में इस कदर दीवाना हो गया था कि वह सब कुछ छोड़-छाड़कर वैरागी बन गया? क्या वह प्रचार काम में इतना व्यस्त हो गया था कि वह लोगों की ज़रूरतों को समझ ही नहीं सकता था? जी नहीं, यीशु ने संतुलन बनाए रखने में एक उम्दा मिसाल कायम की। उसने ज़िंदगी का लुत्फ उठाया और अपने दोस्तों के साथ खुशी के पल बिताए। उसे परिवारों की परवाह थी और उसने उनकी ज़रूरतों और उनकी परेशानियों को बखूबी समझा। उसने खुलकर बच्चों पर अपना प्यार भी ज़ाहिर किया।—मरकुस 10:13-16 पढ़िए।

13. प्रचार काम में जागते रहने और संतुलन बनाए रखने की यीशु की मिसाल पर हम कैसे चल सकते हैं?

13 क्या हम भी जागते रहने की यीशु की मिसाल पर चलते हुए संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हैं? हम इस दुनिया को अपने काम के आड़े नहीं आने देंगे। हमारे दोस्त और रिश्‍तेदार शायद नेक इरादे से हमें कहें कि प्रचार में इतना जोश दिखाने की ज़रूरत नहीं या फिर हमें एक ‘आम ज़िंदगी’ जीने का बढ़ावा दें। लेकिन अगर हम यीशु की मिसाल पर चलेंगे, तो हम अपनी प्रचार सेवा को भोजन की तरह समझेंगे। (यूह. 4:34) प्रचार काम हमें आध्यात्मिक तौर पर पोषण देता है और इससे हमें खुशी भी मिलती है। लेकिन इस काम की वजह से हम कभी भी यह नहीं जताना चाहेंगे कि हम बहुत धर्मी हैं या फिर यह कि हर तरह की मौज-मस्ती बिलकुल गलत है। इसके बजाय हम यीशु की तरह “आनंदित परमेश्‍वर” के सेवकों के तौर पर हमेशा खुश रहेंगे और संतुलन बनाए रखेंगे।—1 तीमु. 1:11.

जागते रहना—परीक्षाओं के दौर में

14. परीक्षा का सामना करते वक्‍त हमें क्या नहीं करना चाहिए और क्यों?

14 जैसा कि हमने देखा, यीशु ने तब जागते रहने पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया जब वह एक कठिन परीक्षा से गुज़र रहा था। (मरकुस 14:37 पढ़िए।) मुश्‍किलों का सामना करते वक्‍त यह खासकर ज़रूरी है कि हम उसकी मिसाल को ध्यान में रखें। परीक्षा के दौरान लोग अकसर एक अहम सच्चाई भूल जाते हैं। लेकिन इसे याद रखना इतना ज़रूरी है कि नीतिवचन की किताब में दो बार इसका ज़िक्र किया गया है, “ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।” (नीति. 14:12; 16:25) अगर हम अपनी समझ पर भरोसा रखें, खासकर जब हम किसी गंभीर समस्या का सामना कर रहे हों, तो हम खुद को और अपने अज़ीज़ों को खतरे में डाल सकते हैं।

15. आर्थिक तंगी के दौर में परिवार के मुखिया पर क्या दबाव आ सकता है?

15 उदाहरण के लिए, परिवार के मुखिया पर “अपनों” की ज़रूरतें पूरी करने का ज़बरदस्त दबाव आ सकता है। (1 तीमु. 5:8) हो सकता है कि उसे एक ऐसी नौकरी मिले, जिसे करने से वह कई सभाओं या प्रचार में नहीं जा पाएगा या फिर पारिवारिक उपासना में अगुवाई नहीं ले पाएगा। अगर वह सिर्फ अपनी समझ के सहारे चले तो शायद उसे ऐसी नौकरी कबूल करना जायज़ और सही भी लगे। लेकिन ऐसा करने से परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता कमज़ोर पड़ सकता है या पूरी तरह टूट सकता है। कितना अच्छा होगा अगर वह नीतिवचन 3:5, 6 में लिखी सुलैमान की इस सलाह को लागू करे: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”

16. (क) अपनी बुद्धि के बजाय यहोवा की बुद्धि पर भरोसा रखने में यीशु ने क्या मिसाल कायम की? (ख) बहुत-से परिवारों के मुखिया मुश्‍किलों के दौर में यहोवा पर कैसे भरोसा दिखा रहे हैं?

16 जब यीशु की परीक्षा हो रही थी, तो उसने अपनी समझ का सहारा बिलकुल नहीं लिया। ज़रा सोचिए! इस धरती पर रहनेवाले सबसे बुद्धिमान इंसान ने मुश्‍किलों का हल निकालने के लिए अपनी बुद्धि से काम नहीं लिया। उदाहरण के लिए, जब शैतान यीशु पर आज़माइशें लाया, तो यीशु ने हर बार यह कहकर जवाब दिया: “लिखा है।” (मत्ती 4:4, 7, 10) उसने उन आज़माइशों का सामना करने के लिए अपने पिता की बुद्धि पर भरोसा रखा। इस तरह उसने नम्रता ज़ाहिर की, एक ऐसा गुण जो शैतान में कतई नहीं है और जिसका वह कोई मोल नहीं समझता। क्या हम भी यहोवा की बुद्धि पर भरोसा रखते हैं? जो परिवार का मुखिया यीशु की मिसाल पर चलता है, वह परमेश्‍वर के वचन के मार्गदर्शन के मुताबिक काम करता है, खासकर मुश्‍किलों के दौर में। दुनिया-भर में हज़ारों परिवारों के मुखिया ठीक यही कर रहे हैं। वे हिम्मत के साथ परमेश्‍वर के राज और सच्ची उपासना को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं, यहाँ तक कि अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों से भी पहले। दरअसल ऐसा करके वे सही मायनों में अपने परिवार की देखभाल कर रहे होते हैं। अपने वादे के मुताबिक यहोवा इन भाइयों की मेहनत पर आशीष देता है और उनके परिवार की ज़रूरतें पूरी करता है।—मत्ती 6:33.

17. जागते रहने में यीशु की मिसाल पर चलने के लिए क्या बात आपको उभारती है?

17 इसमें कोई शक नहीं कि यीशु ने जागते रहने की सबसे बढ़िया मिसाल पेश की। उसके उदाहरण पर चलने से हमें काफी फायदा हो सकता है, यहाँ तक कि हमें हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। मगर याद रखिए कि शैतान की यही कोशिश रहती है कि वह आपको आध्यात्मिक नींद सुला दे। वह चाहता है कि आपका विश्‍वास कमज़ोर हो जाए, आप सच्ची उपासना में ढीले पड़ जाएँ और अपनी खराई तोड़ दें। (1 थिस्स. 5:6) उसे कामयाब मत होने दीजिए! यीशु की तरह अपनी प्रार्थना में, प्रचार काम में और परीक्षाओं का सामना करते वक्‍त जागते रहिए। ऐसा करके, आप आज इस डूबती हुई दुनिया में भी खुशियों और संतोष से भरी ज़िंदगी जी सकेंगे। अगर आप जागते रहें, तो जब आपका मालिक इस व्यवस्था का अंत करने के लिए आएगा, तो आपको सतर्क होकर यहोवा की मरज़ी पूरी करते हुए पाएगा। उस वक्‍त आपको अपनी वफादारी के लिए इनाम देने में यहोवा को कितनी खुशी होगी!—प्रका. 16:15.

[पेज 6 पर तसवीर]

यीशु ने कुएँ पर स्त्री को प्रचार किया। आप हर रोज़ प्रचार करने के कौन-से मौके ढूँढ़ते हैं?

[पेज 7 पर तसवीर]

अपने परिवार की आध्यात्मिक तौर पर देखभाल करके आप दिखाते हैं कि आप जाग रहे हैं

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