वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w14 5/15 पेज 16-20
  • यहोवा ने वाकई मेरी बहुत मदद की है

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • यहोवा ने वाकई मेरी बहुत मदद की है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2014
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • वे एक बाइबल और छोटी-सी काली किताब इस्तेमाल करती थीं
  • यहोवा ने मुझे हिम्मत दी
  • “भाइयों को दिखाओ कि तुम उनकी परवाह करते हो”
  • मेरी पत्नी यहोवा और मेरी तरफ वफादार रहती है
  • बेथेल—सीखने और सिखाने की जगह
  • तीन अधिवेशनों ने बदल दी मेरी ज़िंदगी
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2009
  • पूरे समय की सेवा—मुझे कहाँ ले गयी
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2014
  • सत्तर सालों से मैंने यहूदी के वस्त्र की छोर को पकड़ रखा है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2012
  • यहोवा बचपन से मुझे सिखाता आया है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2003
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2014
w14 5/15 पेज 16-20
केनेथ और एवलिन लिटिल

जीवन कहानी

यहोवा ने वाकई मेरी बहुत मदद की है

केनेथ लिटिल की ज़ुबानी

अपनी प्यारी पत्नी, एवलिन से शादी करने के कुछ ही समय बाद, हम दोनों हॉर्नपेन पहुँचे, जो कनाडा के उत्तरी ऑन्टेरीयो के दूर-दराज़ इलाके में एक छोटा-सा कसबा है। सुबह का वक्‍त था और कड़ाके की ठंड थी। एक भाई हमें स्टेशन पर लेने आए। हमने उस भाई, उसकी पत्नी और बेटे के साथ जमकर नाश्‍ता किया और उसके फौरन बाद हमने बर्फ में पैदल चलकर घर-घर का प्रचार किया। उसी दिन दोपहर को, 1957 में, मैंने सर्किट निगरान के तौर पर अपना पहला जन भाषण दिया। लेकिन उस सभा में सिर्फ पाँच जन ही हाज़िर थे। हम लोगों के सिवा और कोई नहीं आया।

 केनेथ लिटिल

दरअसल इतनी कम हाज़िरी देखकर मुझे इतना बुरा भी नहीं लगा। क्योंकि बात यह है कि बचपन से ही मैं बहुत शर्मीला हूँ। इतना शर्मीला कि बचपन में जब हमारे घर मेहमान आते थे, तो मैं छिप जाता था, तब भी जब मैं उन्हें जानता था।

इसलिए शायद आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि यहोवा के संगठन में मुझे मिली ज़्यादातर ज़िम्मेदारियाँ ऐसी थीं, जिनमें मुझे लोगों के साथ संपर्क में रहना पड़ता था। उनमें से कुछ तो अपने ही भाई-बहन थे, तो कुछ अजनबी। लेकिन एक शर्मीले स्वभाव के इंसान के लिए, जिसमें आत्म-विश्‍वास की इतनी कमी हो, यह कैसे मुमकिन हो सकता है? मैं अपने बल पर ऐसा नहीं कर सकता था। मुझे जो भी ज़िम्मेदारी मिली, उसे पूरा करने में यहोवा ने हमेशा मेरी मदद की है। उसने अपना यह वादा निभाया है: “मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा।” (यशा. 41:10) कई बार उसने दूसरे मसीहियों के ज़रिए मेरी मदद की है। आइए मैं आपको उनमें से कुछ भाई-बहनों के बारे में बताऊँ। शुरूआत मेरे बचपन से करते हैं।

वे एक बाइबल और छोटी-सी काली किताब इस्तेमाल करती थीं

केनेथ लिटिल अपने परिवार के खेत में, जब वह छोटा था

दक्षिण-पश्‍चिमी ऑन्टेरीयो में हमारे परिवार के खेत में

सन्‌ 1944 के आस-पास की बात है। एक दिन रविवार सुबह अच्छी धूप खिली हुई थी, जब बहन एलसी हनटिंगफर्ड दक्षिण-पश्‍चिमी ऑन्टेरीयो में हमारे परिवार के खेत पर आयीं। मेरे पिताजी मेरी तरह शर्मीले स्वभाव के थे, इसलिए माँ ने दरवाज़ा खोला। मैं और पिताजी अंदर ही बैठकर उन दोनों की बातचीत सुनने लगे। पिताजी को लगा कि बहन हनटिंगफर्ड कुछ बेचने आयी हैं, और उन्हें फिक्र होने लगी कि माँ उस चीज़ को खरीद लेंगी। इसलिए वे दरवाज़े पर गए और कहा कि हमें उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। बहन हनटिंगफर्ड ने पूछा, “क्या आप लोगों को बाइबल अध्ययन करने में कोई दिलचस्पी नहीं?” पिताजी ने कहा, “हाँ, उसमें हमें बेशक दिलचस्पी है।”

जब बहन हनटिंगफर्ड हमसे मिलने आयीं, तब मेरे माता-पिता सच्चाई कबूल करने के लिए तैयार थे। वे कनाडा के ‘यूनाइटेड चर्च’ के कार्यक्रमों में काफी हिस्सा लिया करते थे। लेकिन उन्होंने चर्च छोड़ने का फैसला कर लिया था। क्यों? क्योंकि चर्च के पादरी ने उन लोगों की एक सूची बनायी थी, जिन्होंने चर्च के लिए दान दिया था। और उसे उसने ऐसी जगह लगाया था, जहाँ सब उसे देख सकें। मेरे माता-पिता के नाम उस सूची के आखिरी कुछ नामों में थे, इसलिए सब जान गए कि उन्होंने दूसरों के मुकाबले कम दान दिया था। हालाँकि मेरे माता-पिता के पास खूब सारा पैसा नहीं था, लेकिन चर्च के पादरी और पैसे देने के लिए उन पर दबाव डालते थे। उनके चर्च छोड़ने की एक और वजह यह थी कि एक पादरी ने कबूल किया कि जो बातें वह मानता था, उन्हें वह सिखाता नहीं था, क्योंकि उसका कहना था कि अगर वह ऐसा करेगा, तो उसकी नौकरी चली जाएगी। इसलिए हमने चर्च जाना छोड़ दिया, मगर हम अब भी परमेश्‍वर की उपासना करना चाहते थे और उसके बारे में सीखना चाहते थे।

उस वक्‍त, कनाडा में यहोवा के साक्षियों के काम पर पाबंदी लगी थी और वहाँ पर खुलेआम प्रचार करना मुमकिन नहीं था। इसलिए शुरू-शुरू में बहन हनटिंगफर्ड हमें सिखाने के लिए सिर्फ बाइबल और एक छोटी-सी काली किताब का इस्तेमाल करती थीं, जिसमें उन्होंने कुछ नोट्‌स लिखे थे। बाद में, जब उन्हें यकीन हो गया कि हम उन्हें धोखा नहीं देंगे, तो उन्होंने हमें बाइबल पर आधारित कुछ साहित्य दिए। हर अध्ययन के बाद, हम साहित्य को अच्छी तरह छिपा देते।a

केनेथ लिटिल के माता-पिता

मेरे माता-पिता ने सच्चाई कबूल की और 1948 में बपतिस्मा लिया

विरोध और दूसरी समस्याओं के बावजूद, बहन हनटिंगफर्ड जोश के साथ प्रचार में लगी रहीं। उनके जोश ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी और मैंने यहोवा की सेवा करने का फैसला कर लिया। सन्‌ 1948 में मेरे माता-पिता ने बपतिस्मा ले लिया। मेरा बपतिस्मा 27 फरवरी, 1949 को धातु से बनी एक नाँद में हुआ, जिसमें जानवरों के लिए पानी रखा जाता है। उस वक्‍त मैं 17 साल का था। बपतिस्मे के बाद, मैंने ठान लिया कि मैं पायनियर बनूँगा।

यहोवा ने मुझे हिम्मत दी

केनेथ लिटिल बेथेल में काम करते हुए

1952 में जब मुझे बेथेल आने का न्यौता मिला, तो मुझे बहुत ताज्जुब हुआ

मुझे सीधे पायनियर सेवा शुरू करने में झिझक महसूस हो रही थी, क्योंकि मुझे लगा कि पहले मुझे कुछ पैसे कमाने चाहिए। इसलिए मैंने दो-दो नौकरियाँ करनी शुरू कीं, एक बैंक में और दूसरी दफ्तर में। लेकिन मैं जवान था और मुझे ज़िंदगी का तजुरबा भी नहीं था। इसलिए मैं जो भी पैसे कमाता था, उसे फौरन खर्च कर देता था। टेड सारजंट नाम के एक भाई ने मुझे हिम्मत रखने और यहोवा पर विश्‍वास रखने का बढ़ावा दिया। (1 इति. 28:10) उन्होंने मुझे जो हौसला दिया, उससे मुझे मदद मिली और नवंबर 1951 में मैंने पायनियर सेवा शुरू कर दी। मेरे पास सिर्फ 40 डॉलर, एक इस्तेमाल की हुई पुरानी साइकिल, और एक नया बैग था। लेकिन यहोवा ने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि मुझे जिन चीज़ों की वाकई ज़रूरत थी, वे मुझे मिल जाएँ। मैं भाई टेड का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे पायनियर सेवा करने का बढ़ावा दिया। आगे चलकर, इस फैसले के बहुत अच्छे नतीजे निकले।

अगस्त 1952 की एक शाम को मुझे कनाडा के टोरोन्टो बेथेल से फोन आया। मुझे वहाँ सितंबर से काम करने का न्यौता मिला। हालाँकि मैं बहुत शर्मीला था और पहले कभी बेथेल नहीं गया था, फिर भी मैं वहाँ जाकर काम करने के लिए बेताब था, क्योंकि मैंने बेथेल के बारे में इतनी सारी अच्छी बातें सुनी थीं। जब मैं वहाँ पहुँचा, तो मुझे फौरन अपनापन महसूस होने लगा।

“भाइयों को दिखाओ कि तुम उनकी परवाह करते हो”

बेथेल आने के दो साल बाद, मुझे टोरोन्टो के शॉ यूनिट का मंडली सेवक (जिसे अब प्राचीनों के निकाय का संयोजक कहा जाता है) नियुक्‍त किया गया।b मैं भाई बिल येकस की जगह ले रहा था, जो उम्र में मुझसे बड़े थे और ज़्यादा तजुरबा रखते थे। उस वक्‍त मैं सिर्फ 23 साल का था और मुझे लग रहा था जैसे मैं तो बस एक नादान-सा देहाती लड़का हूँ। लेकिन भाई येकस ने बहुत प्यार से और नम्रता दिखाते हुए मुझे सिखाया कि मुझे क्या-क्या करना होगा। यहोवा ने वाकई मेरी बहुत मदद की।

भाई येकस एक गठीले भाई थे, जिनकी बहुत प्यारी-सी मुसकान थी। वे लोगों की दिल से परवाह करते थे। वे भाइयों से बहुत प्यार करते थे और भाई भी उन्हें बहुत प्यार करते थे। भाई येकस अकसर उनसे मिलने उनके घर जाते, सिर्फ उस वक्‍त नहीं जब भाई किसी मुश्‍किल में हों। भाई येकस ने मुझे भी ऐसा ही करने का बढ़ावा दिया। उन्होंने मुझे भाइयों के साथ प्रचार करने का भी बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा, “केन, भाइयों को दिखाओ कि तुम उनकी परवाह करते हो। इस तरह बहुत सारी खामियों को माफ करना आसान हो जाएगा।”

मेरी पत्नी यहोवा और मेरी तरफ वफादार रहती है

जनवरी 1957 से यहोवा ने मुझे एक बहुत ही खास तरीके से मदद दी है। उस महीने मैंने एवलिन से शादी की, जो गिलियड स्कूल की 14वीं क्लास से ग्रैजुएट हुई थी। शादी से पहले, वह क्यूबेक प्रांत में सेवा करती थी, जहाँ फ्रांसीसी भाषा बोली जाती है। उस इलाके में रोमन कैथोलिक चर्च का बहुत दबदबा था, इसलिए एवलिन के लिए वहाँ प्रचार करना बहुत मुश्‍किल था। मगर वह यहोवा की वफादार रही और उसने प्रचार करना बंद नहीं किया।

केनेथ और एवलिन लिटिल अपनी शादी के दिन

1957 में मेरी और एवलिन की शादी हुई

एवलिन ने वफादारी से मेरा भी साथ दिया है। (इफि. 5:31) कभी-कभी ऐसा करना आसान नहीं था। मिसाल के लिए, हमारी शादी के बस एक ही दिन बाद, शाखा दफ्तर ने मुझे कनाडा बेथेल जाने के लिए कहा, ताकि मैं वहाँ होनेवाली एक हफ्ते की सभा में हाज़िर हो सकूँ। मगर हमने अपना हनीमून मनाने के लिए अमरीका के फ्लॉरिडा राज्य जाने की सोची थी। लेकिन मैं और एवलिन वही करना चाहते थे, जो यहोवा चाहता था, इसलिए हमने अपनी योजना बदल दी और कनाडा के लिए रवाना हो गए। उस हफ्ते, एवलिन ने शाखा दफ्तर के आस-पास प्रचार किया। हालाँकि वहाँ का प्रचार इलाका क्यूबेक के प्रचार इलाके से बहुत अलग था, लेकिन फिर भी एवलिन ने वहाँ गवाही देने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की।

उस हफ्ते के आखिर में कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में हम कभी सोच भी नहीं सकते थे। मुझे उत्तरी ऑन्टेरीयो में सर्किट निगरान के तौर पर सेवा करने के लिए नियुक्‍त किया गया। मेरी शादी को बस कुछ ही दिन हुए थे और मैं सिर्फ 25 साल का था। और मुझे ज़िंदगी का इतना तजुरबा भी नहीं था। मगर हमें पूरा भरोसा था कि यहोवा हमारी मदद करेगा। हमने कनाडा की ज़बरदस्त सर्दी में रात की एक ट्रेन पकड़ी और वहाँ के लिए रवाना हो गए। कई तजुरबेकार सर्किट निगरान भी, जो अपने-अपने सर्किट इलाके में लौट रहे थे, उसी ट्रेन में सफर कर रहे थे। उन्होंने हमारा बहुत हौसला बढ़ाया! एक भाई नहीं चाहते थे कि हम रात-भर सीट पर बैठकर सफर करें। इसलिए वे कहते रहे कि हम उनके कंपार्टमेंट में चले जाएँ, जहाँ एक बिस्तर था। आखिर में हमने उनकी बात मान ही ली। अगली सुबह हम हॉर्नपेन के एक छोटे-से समूह का दौरा किया, जैसा कि मैंने लेख की शुरूआत में बताया था। यह हम दोनों को मिली सबसे पहली ज़िम्मेदारी थी, और हमारी शादी को सिर्फ 15 दिन ही हुए थे।

कुछ साल बाद, हमारी ज़िंदगी में एक और बदलाव आया। सन्‌ 1960 के आखिर में, जब मैं ज़िला निगरान के तौर पर सेवा कर रहा था, तब मुझे गिलियड स्कूल की 36वीं क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला। यह स्कूल फरवरी 1961 में शुरू होनेवाला था। मैं इतना खुश था कि मुझे 10 महीनों के लिए बाइबल का अध्ययन करने का मौका मिल रहा था। मगर मुझे इस बात का दुख भी था कि और बहुत-से भाइयों की पत्नियों की तरह, एवलिन को भी स्कूल में हाज़िर होने का न्यौता नहीं मिला था। उसे यह बताते हुए एक खत लिखना था कि जब तक मैं ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में स्कूल में हूँ, तब तक वह कनाडा में रहने के लिए तैयार है। हालाँकि वह इस बारे में सोचकर रो पड़ी कि हम दोनों इतने लंबे समय तक एक-दूसरे से अलग होंगे, लेकिन हम दोनों ही इस बात से सहमत थे कि मुझे गिलियड स्कूल जाना चाहिए। एवलिन खुश थी कि मुझे यह बेहतरीन तालीम मिलनेवाली थी।

जब तक मैं ब्रुकलिन में था, एवलिन ने कनाडा बेथेल में सेवा की। वहाँ उसे मारग्रेट लवेल नाम की एक अभिषिक्‍त बहन के साथ एक ही कमरे में रहने का मौका मिला। इसमें कोई शक नहीं कि एवलिन को और मुझे एक-दूसरे की बहुत याद आती थी। मगर यहोवा ने हम दोनों को अपना-अपना काम दिल लगाकर करने में मदद दी। एवलिन यहोवा के लिए त्याग करने को तैयार थी, और इस बात ने मेरा दिल छू लिया।

मुझे गिलियड स्कूल में तीन महीने ही हुए थे कि मुझे भाई नेथन नॉर से, जो उस वक्‍त दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम की अगुवाई कर रहे थे, एक न्यौता मिला। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं वापस कनाडा जाकर ‘राज-सेवा स्कूल’ में एक शिक्षक के तौर पर सिखाना चाहूँगा। उन्होंने कहा कि कनाडा में ‘राज-सेवा स्कूल’ खत्म होने के बाद, मुझे शायद गिलियड स्कूल फिर कभी न बुलाया जाए। भाई नॉर ने कहा कि यह ज़रूरी नहीं कि मैं इस ज़िम्मेदारी को कबूल करूँ, अगर मैं चाहूँ तो गिलियड स्कूल पूरा करने का चुनाव भी कर सकता हूँ, जिसके बाद ज़ाहिर है मुझे विदेश में मिशनरी के तौर पर भेजा जाता। उन्होंने कहा कि मैं अपनी पत्नी से बात करके फैसला ले सकता हूँ।

लेकिन मुझे एवलिन से सलाह-मशविरा करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि मुझे मालूम था कि इस बारे में उसकी क्या राय होगी। हमारा हमेशा से यही मानना है कि यहोवा का संगठन हमें जहाँ भी भेजेगा, हम वहाँ जाएँगे, फिर चाहे वह ज़िम्मेदारी हमारी पसंद की हो या न हो। इसलिए मैंने फौरन भाई नॉर से कहा, “यहोवा का संगठन हमसे जो भी चाहता है, वह हम खुशी-खुशी करने के लिए तैयार हैं।”

अप्रैल 1961 में, मैं ‘राज-सेवा स्कूल’ में सिखाने के लिए वापस कनाडा लौट गया। बाद में, मुझे और एवलिन को कनाडा बेथेल में सेवा करने का न्यौता मिला। फिर हमें इतना ताज्जुब हुआ जब मुझे गिलियड स्कूल की 40वीं क्लास में हाज़िर होने का न्यौता मिला, जो 1965 में शुरू होनेवाली थी। एक बार फिर, एवलिन को यह कहने के लिए एक खत लिखना पड़ता कि जब तक मेरा स्कूल खत्म नहीं हो जाता, तब तक वह कनाडा में रहने के लिए तैयार है। लेकिन गिलियड स्कूल का न्यौता मिलने के कुछ ही हफ्तों बाद, एवलिन को भी उस स्कूल में हाज़िर होने का न्यौता मिला। हमारी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था!

गिलियड स्कूल पहुँचने के बाद भाई नॉर ने हमें बताया कि फ्रांसीसी भाषा की क्लास में हाज़िर हुए सभी विद्यार्थियों के साथ हमें भी अफ्रीका भेजा जाएगा। मगर जब स्कूल के बाद हमें वापस कनाडा जाने के लिए कहा गया, तो हमें ताज्जुब हुआ। उस वक्‍त मेरी उम्र सिर्फ 34 साल थी, और मुझे वहाँ का शाखा निगरान नियुक्‍त किया गया था। मैंने भाई नॉर को याद दिलाया, “मैं अभी काफी छोटा हूँ।” लेकिन उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। शुरू से ही, कोई भी गंभीर फैसला लेने से पहले, मैंने हमेशा उन भाइयों से सलाह-मशविरा किया, जो ज़्यादा तजुरबा रखते थे।

बेथेल—सीखने और सिखाने की जगह

बेथेल में यहोवा की सेवा करते वक्‍त, मुझे दूसरों से सीखने का बेहतरीन मौका मिला। मैं शाखा-समिति के दूसरे सदस्यों का बहुत आदर करता हूँ और उनकी बहुत कदर करता हूँ। मैंने सैकड़ों जवान भाई-बहनों से भी बहुत कुछ सीखा है, जिनसे मैं यहाँ बेथेल में और उन अलग-अलग मंडलियों में मिला हूँ, जहाँ हमने सेवा की है।

केनेथ लिटिल मॉर्निंग वर्शिप लेते हुए

कनाडा बेथेल परिवार में मॉर्निंग वर्शिप लेते हुए

बेथेल में, मुझे दूसरों को सिखाने का और यहोवा पर अपना विश्‍वास मज़बूत करने में उन्हें मदद देने का भी मौका मिला है। प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस से कहा था: “जो बातें तू ने सीखी हैं . . . उन्हीं बातों पर कायम रह।” पौलुस ने यह भी कहा था: “जो बातें तू ने मुझसे सुनी हैं और जिसकी बहुतों ने गवाही दी है, वे बातें विश्‍वासयोग्य पुरुषों को सौंप दे ताकि वे बदले में दूसरों को सिखाने के लिए ज़रूरत के हिसाब से योग्य बनें।” (2 तीमु. 2:2; 3:14) मुझे अब बेथेल में सेवा करते हुए 57 साल हो चुके हैं। कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने इन सालों के दौरान क्या सीखा है। मेरा बस एक ही आसान-सा जवाब है: “यहोवा का संगठन आपसे जो भी करने के लिए कहता है, उसे बिना देर किए खुशी-खुशी कीजिए। और भरोसा रखिए कि यहोवा आपकी मदद करेगा।”

मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है जब मैंने अपनी जवानी में बेथेल में पहला कदम रखा था। तब मैं बहुत ही शर्मीला इंसान था, जिसे दुनिया का कोई तजुरबा नहीं था। लेकिन इन सालों के दौरान यहोवा ने मेरा ‘दहिना हाथ पकड़े’ रखा है। उसने अकसर प्यारे भाई-बहनों के ज़रिए मुझे सहारा दिया है, और वह भी उस वक्‍त जब मुझे सहारे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। इस तरह, यहोवा मुझसे कह रहा है: “मत डर, मैं तेरी सहायता करूंगा।”—यशा. 41:13.

a 22 मई, 1945 को कनाडा सरकार ने यहोवा के साक्षियों के काम पर से पाबंदी हटा दी।

b उस वक्‍त, अगर एक शहर में एक-से-ज़्यादा मंडलियाँ होतीं, तो हर मंडली को यूनिट कहा जाता था।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें