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  • आज कौन परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई कर रहा है?

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  • आज कौन परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई कर रहा है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
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  • यीशु शासी निकाय की अगुवाई करता है
  • “यह किसी इंसान का काम नहीं, परमेश्‍वर का काम है”
  • “असल में वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है?”
  • “जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं . . . उन्हें याद रखो”
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
w17 फरवरी पेज 23-28
पहली सदी का शासी निकाय

आज कौन परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई कर रहा है?

“जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं . . . उन्हें याद रखो।”—इब्रा. 13:7.

गीत: 43, 5

क्या आप समझा सकते हैं?

किस तरह पहली सदी में और आज परमेश्‍वर के लोगों की अगुवाई करनेवालों ने . . .

  • पवित्र शक्‍ति से ताकत पायी?

  • स्वर्गदूतों से मदद पायी?

  • परमेश्‍वर के वचन से मार्गदर्शन पाया?

1, 2. यीशु के स्वर्ग जाने के बाद प्रेषित शायद क्या सोच रहे होंगे?

यीशु के प्रेषित जैतून पहाड़ पर खड़े आकाश की तरफ ताक रहे हैं। अभी-अभी उनके मालिक और दोस्त यानी यीशु को ऊपर उठा लिया गया है और एक बादल ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया है। (प्रेषि. 1:9, 10) करीब दो सालों से यीशु उन्हें सिखा रहा था, उनकी हिम्मत बढ़ा रहा था और उनकी अगुवाई कर रहा था। लेकिन अब वह जा चुका है। अब वे क्या करेंगे?

2 स्वर्ग जाने से पहले यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “तुम . . . यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) चेले ये काम कैसे कर पाते? यीशु ने वादा किया था कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उनकी मदद करेगी। (प्रेषि. 1:5) लेकिन पूरी दुनिया में प्रचार करने के लिए उन्हें कौन निर्देश देता और संगठित करता? प्रेषित जानते थे कि बीते ज़माने में यहोवा ने इसराएलियों पर इंसानी अगुवे ठहराए थे। तो वे शायद सोच रहे होंगे, ‘क्या यहोवा अब उन पर एक नया अगुवा ठहराएगा?’

3. (क) यीशु के स्वर्ग जाने के बाद, वफादार प्रेषितों ने मिलकर क्या ज़रूरी फैसला किया? (ख) इस लेख में हमें किन सवालों के जवाब मिलेंगे?

3 यीशु के स्वर्ग जाने के फौरन बाद उसके प्रेषितों ने शास्त्र की जाँच की, परमेश्‍वर से मदद के लिए प्रार्थना की और फिर यहूदा इस्करियोती की जगह मत्तियाह को बारहवाँ प्रेषित होने के लिए चुना। (प्रेषि. 1:15-26) लेकिन ऐसा करना उनके लिए और यहोवा के लिए क्यों ज़रूरी था? प्रेषितों को एहसास हुआ कि उनकी गिनती 12 होनी चाहिए।a यीशु ने प्रेषितों को सिर्फ इसलिए नहीं चुना था कि वे प्रचार में उसके साथ रहें बल्कि उसने उन्हें परमेश्‍वर के लोगों के बीच एक अहम भूमिका निभाने के लिए चुना था। वह भूमिका क्या थी और यहोवा और यीशु ने उन्हें इस भूमिका के लिए कैसे तैयार किया? आज इससे मिलता-जुलता कौन-सा इंतज़ाम किया गया है? हम कैसे ‘हमारे बीच अगुवाई करनेवालों को याद रख’ सकते हैं, खासकर “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को?—इब्रा. 13:7; मत्ती 24:45.

यीशु शासी निकाय की अगुवाई करता है

4. यरूशलेम में प्रेषित और दूसरे प्राचीन क्या भूमिका अदा करते थे?

4 ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त से प्रेषित मसीही मंडली की अगुवाई करने लगे। बाइबल बताती है कि “पतरस उन ग्यारहों के साथ खड़ा हुआ” और एक बड़ी भीड़ को जीवन बचानेवाली सच्चाइयाँ सिखाने लगा। (प्रेषि. 2:14, 15) उसमें से कई लोग मसीही बन गए। इसके बाद, ये नए मसीही “प्रेषितों से लगातार सीखते रहे।” (प्रेषि. 2:42) प्रेषित मंडली के पैसों का हिसाब-किताब रखते थे। (प्रेषि. 4:34, 35) वे परमेश्‍वर के लोगों को सिखाते थे और उनके लिए प्रार्थना करते थे। उनका कहना था कि “हम प्रार्थना करने और वचन सिखाने की सेवा में लगे रहेंगे।” (प्रेषि. 6:4) वे तजुरबेकार मसीहियों को नए इलाकों में प्रचार करने के लिए भेजते थे। (प्रेषि. 8:14, 15) बाद में दूसरे अभिषिक्‍त प्राचीन भी प्रेषितों के साथ मंडली की अगुवाई करने लगे। इन प्रेषितों और प्राचीनों से मिलकर शासी निकाय बना और यह निकाय सभी मंडलियों को निर्देश देता था।—प्रेषि. 15:2.

5, 6. (क) पवित्र शक्‍ति ने शासी निकाय पर किस तरह काम किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) स्वर्गदूतों ने शासी निकाय की किस तरह मदद की? (ग) परमेश्‍वर के वचन से शासी निकाय को क्या मार्गदर्शन मिला?

5 पहली सदी में मसीही जानते थे कि यहोवा ही यीशु के ज़रिए शासी निकाय की अगुवाई कर रहा है। उन्हें इस बात का यकीन क्यों था? पहली बात, वे साफ देख सकते थे कि पवित्र शक्‍ति शासी निकाय पर ज़बरदस्त तरीके से काम कर रही थी। (यूह. 16:13) सभी अभिषिक्‍त मसीहियों को पवित्र शक्‍ति मिली थी लेकिन पवित्र शक्‍ति खास तरीके से यरूशलेम में प्रेषितों और प्राचीनों पर काम कर रही थी ताकि वे निगरान होने की अपनी ज़िम्मेदारी निभा सकें। मिसाल के लिए, ईसवी सन्‌ 49 में शासी निकाय ने पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में खतना के बारे में एक अहम फैसला किया। मंडलियों ने शासी निकाय के फैसले को माना। नतीजा, “मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती गयी।” (प्रेषि. 16:4, 5) खतना के बारे में जो चिट्ठी मंडलियों को भेजी गयी थी उससे पता चलता है कि शासी निकाय पर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति काम कर रही थी और यह निकाय प्यार और विश्‍वास जैसे पवित्र शक्‍ति के गुण ज़ाहिर कर रहा था।—प्रेषि. 15:11, 25-29; गला. 5:22, 23.

6 दूसरी बात, स्वर्गदूत शासी निकाय की मदद कर रहे थे। मिसाल के लिए, एक स्वर्गदूत ने कुरनेलियुस से कहा कि वह प्रेषित पतरस को अपने यहाँ बुलाए। पतरस ने कुरनेलियुस और उसके रिश्‍तेदारों को प्रचार किया। हालाँकि कुरनेलियुस और उसके घराने के आदमियों का खतना नहीं हुआ था फिर भी जब पतरस बात कर ही रहा था तो उन सबको पवित्र शक्‍ति मिली। इस तरह कुरनेलियुस वह पहला खतनारहित गैर-यहूदी था जो मसीही बना। जब प्रेषितों और दूसरे भाइयों ने इस बारे में सुना तो उन्होंने इसे परमेश्‍वर की मरज़ी जाना और खतनारहित गैर-यहूदियों का मसीही मंडली में स्वागत किया। (प्रेषि. 11:13-18) प्रचार काम की अगुवाई करने में स्वर्गदूतों ने शासी निकाय का पूरा-पूरा साथ दिया। (प्रेषि. 5:19, 20) तीसरी बात, शासी निकाय को परमेश्‍वर के वचन से मार्गदर्शन मिला। उन भाइयों ने शास्त्र की मदद से मसीही शिक्षाओं के बारे में ज़रूरी फैसले किए और मंडलियों को निर्देश दिए।—प्रेषि. 1:20-22; 15:15-20.

7. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु शुरू के मसीहियों की अगुवाई कर रहा था?

7 हालाँकि मंडली में शासी निकाय को अधिकार था मगर इसके सदस्य जानते थे कि यीशु मसीह उनका अगुवा है। हम यह कैसे जानते हैं? प्रेषित पौलुस ने कहा कि मसीह ने “कुछ को प्रेषित” ठहराया। उसने यह भी कहा कि मसीह, मंडली का “सिर” या अगुवा है। (इफि. 4:11, 15) चेले किसी प्रेषित के नाम से नहीं जाने गए थे मगर वे “परमेश्‍वर के मार्गदर्शन से . . . ‘मसीही’ कहलाए।” (प्रेषि. 11:26) प्रेषितों और अगुवाई करनेवाले दूसरे भाइयों की शिक्षाएँ शास्त्र पर आधारित थीं और पौलुस जानता था कि इन्हें मानना कितना ज़रूरी है। फिर भी उसने कहा, “तुम जान लो कि हर आदमी का सिर मसीह है।” हर आदमी में शासी निकाय के सदस्य भी शामिल थे। फिर पौलुस ने कहा, “मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (1 कुरिं. 11:2, 3) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा ने अपने बेटे मसीह यीशु को मंडली का अगुवा ठहराया था।

“यह किसी इंसान का काम नहीं, परमेश्‍वर का काम है”

8, 9. भाई रसल ने क्या अहम भूमिका निभायी?

8 सन्‌ 1870 में भाई चार्ल्स टेज़ रसल और उनके कुछ दोस्त चाहते थे कि वे बाइबल के मुताबिक परमेश्‍वर की उपासना करें। और ऐसा करने में वे दूसरों की मदद करना चाहते थे, उन लोगों की भी जो अलग-अलग भाषाएँ बोलते थे। इसलिए सन्‌ 1884 में ज़ायन्स वॉच टावर ट्रैक्ट सोसाइटी की स्थापना की गयी और भाई रसल को उसका अध्यक्ष बनाया गया।b भाई रसल गहराई से बाइबल का अध्ययन करते थे और दूसरों को यह बताने से नहीं डरते थे कि त्रिएक और अमर आत्मा जैसी चर्च की शिक्षाएँ बाइबल से नहीं हैं। भाई रसल ने अपने अध्ययन से यह भी सीखा कि मसीह की वापसी अदृश्‍य होगी और “राष्ट्रों के लिए तय किया गया वक्‍त” 1914 में पूरा होगा। (लूका 21:24) भाई रसल ने अपना समय, पैसा और ताकत दूसरों को ये सच्चाइयाँ सिखाने में लगायी। इससे साफ पता चलता है कि यहोवा और यीशु ने इतिहास के इस अहम दौर में भाई रसल को अगुवाई करने के लिए इस्तेमाल किया।

9 भाई रसल लोगों की वाह-वाही नहीं चाहते थे। सन्‌ 1896 में उन्होंने लिखा कि वे और दूसरे ज़िम्मेदार भाई नहीं चाहते कि उन्हें कोई खास उपाधि देकर उनका सम्मान किया जाए और कोई भी समूह उनके नाम से जाना जाए। अपने काम के बारे में उन्होंने बाद में यह कहा, “यह किसी इंसान का काम नहीं, परमेश्‍वर का काम है।”

10. (क) यीशु ने कब “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ठहराया? (ख) समझाइए कि किस तरह यह साफ बताया गया कि शासी निकाय वॉच टावर सोसाइटी से अलग है।

10 सन्‌ 1916 में भाई रसल की मौत हो गयी। इसके तीन साल बाद यानी 1919 में यीशु ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ठहराया। किस लिए? ताकि उसके चेलों को “सही वक्‍त पर खाना” मिले। (मत्ती 24:45) उन सालों के दौरान न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन शहर के मुख्यालय में अभिषिक्‍त भाइयों का एक छोटा-सा समूह आध्यात्मिक खाना तैयार कर रहा था। “शासी निकाय” यह शब्द 1940 के बाद से हमारे प्रकाशनों में आने लगा। उस समय यह माना जाता था कि शासी निकाय, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी से करीबी से जुड़ा हुआ है। लेकिन 1971 में यह साफ बताया गया कि वॉच टावर सोसाइटी सिर्फ कानूनी मामलों की देखरेख करती है और शासी निकाय इससे अलग है। उसके बाद से शासी निकाय के सदस्य बननेवाले अभिषिक्‍त भाइयों के लिए यह ज़रूरी नहीं था कि वे सोसाइटी के निर्देशक हों। हाल के सालों में ‘दूसरी भेड़ों’ से ज़िम्मेदार भाई वॉच टावर सोसाइटी और दूसरे निगमों के निर्देशक बने हैं। नतीजा यह हुआ है कि शासी निकाय के भाई अपना पूरा ध्यान बाइबल की शिक्षाएँ और निर्देश देने में लगा पाए हैं। (यूह. 10:16; प्रेषि. 6:4) पंद्रह जुलाई 2013 की प्रहरीदुर्ग के अंक में समझाया गया था कि “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” अभिषिक्‍त भाइयों का एक छोटा-सा समूह है। इन्हीं भाइयों से मिलकर शासी निकाय बनता है।

सन्‌ 1950 के दशक का शासी निकाय

1950 के दशक का शासी निकाय

11. शासी निकाय किस तरह फैसला लेता है?

11 हर हफ्ते शासी निकाय के सदस्यों की बैठक होती है और वे एक समूह के तौर पर ज़रूरी फैसले लेते हैं। इस तरह बैठक रखने से उनमें अच्छी बातचीत हो पाती है और वे एकता में बने रह पाते हैं। (नीति. 20:18) शासी निकाय के किसी भी सदस्य को दूसरे सदस्यों से बढ़कर नहीं समझा जाता इसलिए हर साल अलग-अलग सदस्य शासी निकाय की बैठक में सभापति की भूमिका निभाते हैं। (1 पत. 5:1) शासी निकाय की छ: समितियों में भी यही किया जाता है। शासी निकाय का कोई भी सदस्य यह नहीं सोचता कि वह अपने भाइयों का अगुवा है। इसका हर सदस्य खुद को कर्मचारी समझता है, आध्यात्मिक खाने से फायदा उठाता है और विश्‍वासयोग्य दास के निर्देशों को मानता है।

सन्‌ 1800 के दशक से लेकर अब तक की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ; आज का शासी निकाय

सन्‌ 1919 में विश्‍वासयोग्य दास को ठहराया गया, तब से यह दास परमेश्‍वर के लोगों को आध्यात्मिक खाना दे रहा है (पैराग्राफ 10, 11 देखिए)

“असल में वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है?”

12. अब हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

12 शासी निकाय को परमेश्‍वर की तरफ से कोई प्रेरणा नहीं मिलती, न ही वह परिपूर्ण है। इसलिए बाइबल की समझ देने या संगठन से जुड़े निर्देश देने में शासी निकाय के भाइयों से गलती हो सकती है। मिसाल के लिए, वॉचटावर पब्लिकेशन्स इंडेक्स में “बिलीफ्स क्लैरिफाइड” विषय के तहत 1870 से बाइबल की समझ में हुए फेरबदल की एक सूची दी गयी है।c यीशु ने यह नहीं कहा था कि विश्‍वासयोग्य दास जो खाना तैयार करेगा वह परिपूर्ण होगा। तो फिर हम यीशु के इस सवाल का क्या जवाब देंगे: “असल में वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है?” (मत्ती 24:45) ऐसे क्या सबूत हैं जो दिखाते हैं कि शासी निकाय ही विश्‍वासयोग्य दास है? आइए हम उन्हीं तीन बातों पर गौर करें जिससे पहली सदी के शासी निकाय को मदद मिली थी।

13. पवित्र शक्‍ति ने किस तरह शासी निकाय की मदद की है?

13 पवित्र शक्‍ति शासी निकाय की मदद करती है। पवित्र शक्‍ति ने शासी निकाय को बाइबल की ऐसी सच्चाइयाँ समझने में मदद दी है जिनके बारे में पहले साफ समझ नहीं थी। मिसाल के लिए, ज़रा उस सूची पर ध्यान दीजिए जिसका ज़िक्र पिछले पैराग्राफ में किया गया था। कोई भी इंसान अपने बलबूते ‘परमेश्‍वर की इन गहरी बातों’ को न तो समझ सकता था न ही समझा सकता था। (1 कुरिंथियों 2:10 पढ़िए।) शासी निकाय, प्रेषित पौलुस की तरह महसूस करता है जिसने लिखा, “हम ये बातें दूसरों को बताते भी हैं मगर इंसानी बुद्धि के सिखाए शब्दों से नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति के सिखाए शब्दों से।” (1 कुरिं. 2:13) जब सैकड़ों सालों से झूठी शिक्षाएँ फैली हुई थीं और कोई साफ निर्देश नहीं मिल रहे थे, तो फिर 1919 से एक-के-बाद-एक बाइबल की साफ समझ क्यों मिलने लगी? इसकी एक ही वजह हो सकती है और वह है कि परमेश्‍वर अपनी पवित्र शक्‍ति से शासी निकाय की मदद कर रहा है।

14. प्रकाशितवाक्य 14:6, 7 के मुताबिक स्वर्गदूत, आज शासी निकाय और परमेश्‍वर के लोगों की मदद कैसे कर रहे हैं?

14 स्वर्गदूत शासी निकाय की मदद करते हैं। शासी निकाय पर दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम की देखरेख की बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिस काम में 80 लाख से भी ज़्यादा प्रचारक लगे हुए हैं। इस काम में क्यों इतनी कामयाबी मिली है? इसकी एक वजह है कि स्वर्गदूत इस काम में हमारा साथ दे रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 14:6, 7 पढ़िए।) कई बार ऐसा हुआ है कि कोई व्यक्‍ति परमेश्‍वर से मदद के लिए प्रार्थना कर ही रहा था कि तभी उससे यहोवा का एक साक्षी मिलने आया।d जिन इलाकों में हमारे प्रचार और सिखाने के काम का कड़ा विरोध किया जा रहा है वहाँ भी बढ़ोतरी हो रही है। यह सिर्फ स्वर्गदूतों की मदद से मुमकिन हो पाया है।

15. मिसाल देकर समझाइए कि शासी निकाय ईसाईजगत के अगुवों से कैसे अलग है।

15 परमेश्‍वर के वचन से शासी निकाय को मार्गदर्शन मिल रहा है। (यूहन्‍ना 17:17 पढ़िए।) गौर कीजिए कि 1973 में क्या हुआ। एक जून की प्रहरीदुर्ग के अंक में पूछा गया कि “अगर एक व्यक्‍ति तंबाकू की लत नहीं छोड़ता, तो क्या वह बपतिस्मे के योग्य ठहरेगा?” उस अंक में बताया गया कि बाइबल की जाँच करने पर हमें पता चलता है कि वह व्यक्‍ति योग्य नहीं ठहरेगा। इसके अलावा, प्रहरीदुर्ग में कई आयतों के आधार पर समझाया गया था कि क्यों उस व्यक्‍ति का बहिष्कार किया जाना चाहिए जो सिगरेट पीना नहीं छोड़ता। (1 कुरिं. 5:7; 2 कुरिं. 7:1) उसमें यह भी बताया गया था कि यह सख्त नियम इंसान की तरफ से नहीं बल्कि “परमेश्‍वर की तरफ से है जिसने अपने लिखित वचन में साफ बताया है कि उसे क्या पसंद है, क्या नहीं।” यहोवा के संगठन को छोड़ ऐसा कोई संगठन नहीं जो परमेश्‍वर के वचन पर पूरी तरह भरोसा रखता है फिर चाहे उन बातों को मानना इसके कुछ सदस्यों के लिए मुश्‍किल क्यों न हो। हाल ही में अमरीका में धर्म पर लिखी गयी एक किताब बताती है, “ईसाईजगत के अगुवों ने समय-समय पर अपनी शिक्षाओं में फेरबदल किया है ताकि ये शिक्षाएँ उनके सदस्यों और समाज के बदलते विचारों से मेल खाएँ।” मगर शासी निकाय लोगों की पसंद के मुताबिक नहीं बल्कि परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक चलता है। इससे साबित होता है कि आज यहोवा ही अपने लोगों की अगुवाई कर रहा है।

“जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं . . . उन्हें याद रखो”

16. शासी निकाय के भाइयों को याद करने का एक तरीका क्या है?

16 इब्रानियों 13:7 पढ़िए। बाइबल बताती है कि “जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं . . . उन्हें याद रखो।” ऐसा करने का एक तरीका है, शासी निकाय के लिए प्रार्थना करना। (इफि. 6:18) शासी निकाय के पास कई ज़िम्मेदारियाँ हैं, जैसे आध्यात्मिक खाना देना, दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम की देखरेख करना और मिलनेवाले दान का अच्छा इस्तेमाल करना। इसलिए ज़रूरी है कि हम शासी निकाय के भाइयों के लिए रोज़ प्रार्थना करें ताकि वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभा पाएँ।

17, 18. (क) हम कैसे दिखाते हैं कि हम शासी निकाय के निर्देशों को मानते हैं? (ख) प्रचार में हिस्सा लेकर हम कैसे दिखाते हैं कि हम शासी निकाय और यीशु का साथ दे रहे हैं?

17 हम एक और तरीके से शासी निकाय को याद रख सकते हैं। और वह है उससे मिलनेवाले निर्देशों को मानकर। शासी निकाय प्रकाशनों, सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों के ज़रिए हमें हिदायतें देता है। वह सर्किट निगरानों को भी ठहराता है, जो मंडली में प्राचीनों को नियुक्‍त करते हैं। जब सर्किट निगरान और प्राचीन, शासी निकाय से मिलनेवाले निर्देशों का अच्छी तरह पालन करते हैं तो वे दिखाते हैं कि वे शासी निकाय को याद रखते हैं। जब हम उन आदमियों की आज्ञा मानते हैं जिन्हें यीशु इस्तेमाल कर रहा है, तो हम अपने अगुवे यीशु का आदर कर रहे होते हैं।—इब्रा. 13:17.

18 एक और तरीके से हम शासी निकाय को याद रख सकते हैं। कैसे? प्रचार काम में पूरी मेहनत करके। इब्रानियों 13:7 में मसीहियों को बढ़ावा दिया गया है कि वे अगुवाई करनेवालों के विश्‍वास की मिसाल पर चलें। शासी निकाय जोश के साथ प्रचार करके और इस काम को बढ़ावा देकर अपने मज़बूत विश्‍वास का सबूत दे रहा है। क्या हम इस ज़रूरी काम में उसका पूरा साथ दे रहे हैं? अगर हम ऐसा कर रहे हैं तो हमें यीशु के ये शब्द सुनकर बहुत खुशी होगी, “जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे साथ किया।”—मत्ती 25:34-40.

19. आपने क्यों ठान लिया है कि आप अपने अगुवे यीशु के पीछे चलेंगे?

19 स्वर्ग लौटने के बाद यीशु ने अपने चेलों को बेसहारा नहीं छोड़ा। (मत्ती 28:20) वह जानता था कि जब वह धरती पर था तो पवित्र शक्‍ति, स्वर्गदूत और परमेश्‍वर के वचन से उसे बहुत मदद मिली थी। इसलिए वही मदद वह आज अपने विश्‍वासयोग्य दास को दे रहा है। शासी निकाय के भाई “मेम्ने [यानी यीशु] के पीछे जहाँ-जहाँ वह जाता है वहाँ-वहाँ जाते हैं।” (प्रका. 14:4) इसलिए जब हम शासी निकाय के निर्देशों को मानते हैं तो हम अपने अगुवे यीशु के पीछे चल रहे होते हैं। जल्द ही यीशु हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा। (प्रका. 7:14-17) कोई भी इंसानी अगुवा हमें ऐसी ज़िंदगी देने का वादा नहीं कर सकता!

a ऐसा मालूम होता है कि यहोवा ने 12 प्रेषितों को इसलिए चुना था ताकि वे भविष्य में नयी यरूशलेम के ‘12 नींव के पत्थर’ बन सकें। (प्रका. 21:14) इसलिए बाद में जब वफादार प्रेषितों की मौत हुई तो उनकी जगह किसी और को प्रेषित होने के लिए नहीं चुना गया।

b सन्‌ 1955 से यह निगम, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ पेन्सिलवेनिया के नाम से जाना गया।

c यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड में शीर्षक, “यहोवा के साक्षी>हमारी शिक्षाओं की बढ़ती समझ” भी देखिए।

d किताब ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’ के पेज 58-59 देखिए।

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