साथियों का दबाव और प्रचार करने की अनमोल देन
साथियों के दबाव का हम पर बड़ा ज़बरदस्त असर होता है और यह असर हमारी भलाई या बुराई के लिए हो सकता है। हमारे साथ यहोवा की सेवा करनेवालों का हम पर अच्छा असर होता है क्योंकि वे हमें अच्छे मसीही काम करने के लिए उकसाते हैं। (इब्रा. 10:24) फिर भी, परिवार के जो लोग सच्चाई में नहीं हैं, साथ काम करनेवाले, स्कूल के साथी, पड़ोसी या दूसरे जान-पहचानवाले लोग, हम पर ऐसे काम करने का दबाव डाल सकते हैं जो मसीही उसूलों के खिलाफ हैं। वे अपनी बातों से ‘मसीह में हमारे अच्छे चाल-चलन को तुच्छ जानते’ हैं। (1 पत. 3:16, NHT) साथियों के ऐसे बुरे दबाव का सामना करने के बावजूद भी, हम प्रचार करते रहने के अपने इरादे को कैसे मज़बूत बनाए रख सकते हैं?
2 परिवार के सदस्य: कई बार हो सकता है कि एक पति और पिता को, जो खुद साक्षी नहीं है, अपनी पत्नी और बच्चों का प्रचार काम में हिस्सा लेना पसंद ना हो। ऐसी ही स्थिति मॆक्सिको के एक परिवार की थी। वहाँ एक व्यक्ति की पत्नी और उसके सात बच्चों ने सच्चाई सीखी। शुरू-शुरू में, पति ने विरोध किया क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसका परिवार घर-घर जाकर प्रचार करे और बाइबल समझानेवाली किताबें बाँटे। उसे लगा कि ऐसा करने से उनकी इज़्ज़त घट जाएगी। फिर भी, उसकी पत्नी और बच्चों ने यहोवा की सेवा करने और सेवकाई में लगातार भाग लेने के अपने पक्के इरादे को बनाए रखा। थोड़े समय बाद, पति को समझ आने लगा कि परमेश्वर के प्रबंध के मुताबिक प्रचार करना कितना ज़रूरी है और उसने भी अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया। उसे सच्चाई को अपनाने में 15 साल लग गए, लेकिन क्या कभी वह ऐसा कर पाता अगर उसका परिवार प्रचार करने की इस अनमोल देन की कदर न करता?—लूका 1:75; 1 कुरि. 7:16.
3 साथ काम करनेवाले: हो सकता है कि आपके काम की जगह पर कुछ लोग आपके प्रचार करने से खुश न हों। एक बहन ने बताया कि जब उसके दफ्तर में दुनिया के अंत के बारे में चर्चा हुई, तब उसने सबको मत्ती का 24 अध्याय पढ़ने के लिए कहा। इस वजह से सब लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया। लेकिन कुछ दिन बाद, उनमें से एक स्त्री ने बहन से आकर कहा कि उसने वह अध्याय पढ़ा और वह इससे काफी प्रभावित हुई। बहन ने इस स्त्री को एक किताब दी, और फिर उस स्त्री और उसके पति के साथ बाइबल स्टडी करने का प्रबंध किया गया। पहली स्टडी रात के दो बजे तक चली। तीसरी स्टडी के बाद, वे दोनों मीटिंगों में आने लगे, और जल्द-ही उन्होंने सिगरेट पीनी छोड़ दी और प्रचार काम करने लगे। अगर ये बहन अपनी आशा को दूसरों के साथ बाँटने की कोशिश नहीं करती तो क्या यह सब मुमकिन हो पाता?
4 स्कूल के साथी: स्कूल में साथियों के दबाव का सामना करना और इस बात से डरना कि प्रचार करने की वजह से दूसरे बच्चे उनकी हँसी उड़ाएँगे, नौजवान साक्षियों के लिए कोई नई बात नहीं है। अमरीका में रहनेवाली एक किशोर बहन ने कहा: “पहले मुझे दूसरे लड़के-लड़कियों को गवाही देने में शर्म आती थी क्योंकि मुझे, डर था कि वे मेरी हँसी उड़ाएँगे।” इसलिए जब इस बहन को स्कूल में या प्रचार करते वक्त अपने स्कूल के किसी साथी को गवाही देने का मौका मिलता तो वह इससे दूर भागती। साथियों के ऐसे दबाव का सामना करने की हिम्मत आप कैसे जुटा सकते हैं? यहोवा पर भरोसा रखिए और कोशिश कीजिए की आप यहोवा के दिल को खुश कर सकें। (नीति. 29:25) इस बात पर फख्र कीजिए कि आप परमेश्वर के वचन को अपनी सेवकाई में बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं। (2 तीमु. 2:15) जिस बहन के बारे में ऊपर बताया गया है उसने यहोवा से प्रार्थना करनी शुरू की। इन प्रार्थनाओं में उसने, अपने स्कूल के साथियों से बात करने की इच्छा को बढ़ाने के लिए यहोवा से मदद माँगी। जल्द ही उसने दोस्ताना बातचीत करते-करते गवाही देना शुरू किया, जिससे अच्छे नतीजे निकले और बहुत जल्द यह बहन उन सभी को साक्षी देने लगी, जिनको वह जानती थी। आखिर में उस ने कहा: “ये नौजवान भविष्य के लिए एक आशा चाहते हैं जिसकी इन्हें ज़रूरत भी है। और यहोवा उनकी मदद करने के लिए हमें इस्तेमाल कर रहा है।”
5 पड़ोसी: साक्षी होने की वजह से और हमारे विश्वासों की वजह से, हो सकता है कि हमारे पड़ोसी या जान-पहचानवाले हमसे थोड़ा-बहुत चिढ़ते हों। अगर आपको यह डर है कि न जाने वे आपके बारे में क्या सोचते हैं तो अपने आपसे ये सवाल कीजिए: ‘क्या वे उस सच्चाई के बारे में जानते हैं जो अनन्त जीवन की ओर ले जाती है? मैं उनके दिलों में सच्चाई को बैठाने के लिए क्या कर सकता हूँ?’ एक सफरी ओवरसियर ने देखा कि जब नपे-तुले ढंग से पड़ोसियों को प्रचार किया जाता है तो कौन-कौन-से अच्छे नतीजे निकलते हैं। सच्चे दिलवालों को लगातार ढूँढते रहने के लिए, हौसला और बुद्धि पाने के लिए यहोवा से विनती कीजिए।—फिलि. 4:13.
6 साथियों के गलत किस्म के दबाव के सामने हार मान लेने से शायद हमारे साथी खुश हों, लेकिन क्या इससे उनका या हमारा भला होगा? यीशु का विरोध करनेवाले उसके अपने समाज के ही लोग थे। और-तो-और उसे अपने सौतेले भाइयों के चुभनेवाले ताने भी सुनने पड़े। लेकिन वह जानता था कि परमेश्वर ने उसके लिए जो मार्ग तैयार किया है उसी पर चलते रहने से ही वह उनकी मदद कर सकता था। इस प्रकार, यीशु ने ‘पापियों का ऐसा विद्रोह सह लिया’ जो उन्हीं के “विरोध में” था। (इब्रा. 12:2, 3, NHT) हमें भी ऐसा ही करना चाहिए। तो ठान लीजिए कि राज्य के संदेश को प्रचार करने की जो अनमोल देन आपको मिली है उसका आप पूरा-पूरा इस्तेमाल करेंगे। ऐसा करने से, आप ‘अपने, और अपने सुननेवालों के लिये उद्धार का कारण होंगे।’—1 तीमु. 4:16.