पत्रिकाएँ पेश करने के लिए क्या कहना चाहिए
सजग होइए! अक्टू.-दिसं.
“आज दुनिया में हर तरफ धर्म और जाति के नाम पर लोगों में नफरत की भावना भरी हुई है। ऐसे माहौल में क्या आपको लगता है कि ‘अपने बैरियों से प्रेम रखना’ मुमकिन या व्यावहारिक है? [जवाब के लिए रुकिए।] एक महान शिक्षक ने यही करने का सुझाव दिया था, उसने कहा: [मत्ती 5:44 पढ़िए।] इस पत्रिका में बताया गया है कि उसका यह कहने का क्या मतलब था और आज उसकी शिक्षा का क्या असर हो रहा है।”
प्रहरीदुर्ग अक्टू.15
“एक बेहतर और खुशियों से भरी दुनिया बनाने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है? [जवाब के लिए रुकिए।] इंसान ने हालात को सुधारने के लिए एक-के-बाद-एक, कई किस्म की सरकारों को आज़माया है। मगर ध्यान दीजिए कि परमेश्वर इस बारे में क्या सोचता है। [यिर्मयाह 10:23 पढ़िए।] इस लेख में बताया गया है कि ‘खुशहाल संसार लाने का असली ज़रिया’ क्या है, और यह कैसे लाया जाएगा।”
सजग होइए! अक्टू.-दिसं.
“युवा होने के नाते आप किस बात की सबसे ज़्यादा चिंता करते हैं? [जवाब के लिए रुकिए।] बहुत-से नौजवान अपने भविष्य, अपनी परीक्षाओं के बारे में या नौकरी पाने या अपने दोस्तों से पसंद किए जाने के बारे में चिंता करते हैं। मगर हद-से-ज़्यादा चिंता करना आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है। [नीतिवचन 12:25 पढ़िए।] सजग होइए! के इस अंक में, हमारी ज़िंदगी में तनाव और चिंताओं को कम करने के बारे में कुछ कारगर सुझाव दिए गए हैं। मैं समझता/ती हूँ कि इससे आपको काफी फायदा होगा।”
प्रहरीदुर्ग नवं.1
समाचार में आयी किसी बुरी खबर के बारे में बताने के बाद, पूछिए: “लोग ऐसे बुरे काम क्यों करते हैं? हम सभी को पता होना चाहिए कि सही क्या है और गलत क्या, मगर फिर भी लोग बुरे काम करते हैं। ऐसा क्यों है? [जवाब मिलने के बाद, प्रकाशितवाक्य 12:9 पढ़िए।] यह पत्रिका बताती है कि हम अपने विवेक की रक्षा करके कैसे अपनी हिफाज़त कर सकते हैं।”