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  • “मेरे पीछे हो ले”
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“मेरे पीछे हो ले”

दुनिया के ज़्यादातर लोग सिर्फ अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए जीते हैं। फिर भी उन्हें ज़िंदगी में खुशी नहीं मिलती। मगर यीशु ने बताया कि अपने लिए न जीकर दूसरों की खातिर खुद को दे देना सच्ची खुशी का राज़ है। (प्रेरि. 20:35) उसने कहा था: “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आप से इन्कार करे और . . . मेरे पीछे हो ले।” (मर. 8:34) इसके लिए इतना काफी नहीं कि हम कभी-कभी अपनी खुशियों को त्याग दें, बल्कि यह ज़रूरी है कि हम हर दिन अपनी ज़िंदगी यहोवा को खुश करने के लिए जीएँ, न कि खुद को।—रोमि. 14:8; 15:3.

2 प्रेरित पौलुस की मिसाल लीजिए। “यीशु मसीह के ज्ञान की श्रेष्ठता के कारण” उसने अपने दुनियावी लक्ष्यों का पीछा करना छोड़ दिया और राज्य के काम को आगे बढ़ाने में पूरे जोश के साथ लग गया। (फिलि. 3:7,8, NHT) पौलुस ने कहा था कि दूसरों की खातिर “[मैं] बहुत आनन्द से खर्च करूंगा, बरन आप भी खर्च हो जाऊंगा।” (2 कुरि. 12:15) हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए: ‘मैं अपना वक्‍त, अपनी ताकत, अपनी काबिलीयतों और साधनों का कैसे इस्तेमाल करता हूँ? क्या मैं अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने में लगा हुआ हूँ या मैं यहोवा को खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ?’

3 दूसरों को देने के मौके: परमेश्‍वर के लोग, जीवन बचाने का काम करने यानी राज्य का प्रचार करने में हर साल, एक अरब से भी ज़्यादा घंटे बिता रहे हैं। कलीसिया में बूढ़े-जवान सभी, दूसरों को फायदा पहुँचाने के लिए अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं। इसके अलावा, सम्मेलनों और अधिवेशनों का इंतज़ाम करने में कई भाई-बहन बहुत मेहनत करते हैं, और सच्ची उपासना को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल की जानेवाली इमारतें बनाने और उनकी मरम्मत करने में भी वे काफी मेहनत करते हैं। साथ ही, ‘अस्पताल संपर्क समितियों’ और ‘मरीज़ मुलाकात दलों’ में काम करनेवाले उन भाइयों को भी याद कीजिए जो प्यार से दूसरों की मदद करते हैं। ये सभी भाई जिस कदर अपना सुख-चैन त्यागकर, दूसरों की खातिर खुद को दे देते हैं, उससे हमारे मसीही भाईचारे को कितना फायदा होता है!—भज. 110:3.

4 इसके अलावा, जब किसी जगह पर बाढ़ या भूकंप जैसा कोई हादसा हो जाता है, या अचानक कोई आफत आ जाती है, तो हमें दूसरों की तकलीफ में मदद देने के कई मौके मिलते हैं। मगर चाहे ऐसी बड़ी-बड़ी मुसीबतें न आएँ, फिर भी हम शायद किसी भाई या बहन को देखकर भाँप लें कि उसे कुछ मदद की ज़रूरत है, या उसकी हिम्मत बँधाने के लिए चंद शब्द कहने की ज़रूरत है। (नीति. 17:17) जब हम दूसरों की मदद करने और राज्य के काम को आगे बढ़ाने के लिए अपने आप को खुशी-खुशी देते हैं, तो हम यीशु के नक्शे-कदम पर चल रहे होते हैं। (फिलि. 2:5-8) तो आइए हम ऐसा करने की कोशिश करते रहें।

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